जलालुद्दीन फिरोज खिलजी | JALALUDDIN FIROJ KHILJI |1290-1296 ई.

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी, खिलजी वंश का संस्थापक था, जिसने 1290 ई. से 1296 ई. तक छह वर्षों तक दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत खिलजी वंश के पहले सुल्तान के रूप में शासन किया। जलालुद्दीन फिरोज खिलजी प्रारंभ में गुलाम वंश के सुल्तान कैकुबाद का सेनापति था। कैकुबाद के लकवाग्रस्त हो जाने के बाद शासन कर पाने में विफल हो गया। उस समय तुर्क सरदारों ने कैकुबाद के तीन वर्षीय पुत्र जिसका नाम क्युमर्स था, को दिल्ली सल्तनत का उत्तराधिकारी बना दिया। परन्तु जलालुद्दीन फिरोज खिलजी खुद सुल्तान बनने के लिए कैकुबाद के तीन वर्षीय पुत्र क्युमर्स की हत्या कर देता है।

इस प्रकार से जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने गुलाम वंश के अंतिम वंशज की हत्या कर दी और खुद को दिल्ली सल्तनत का सुल्तान घोषित कर दिया। जलालुद्दीन फिरोज खिलजी का बचपन का नाम मालिक फिरोज था, जो एक गैर तुर्क परिवार से था। यह परिवार अफगान के शहर खिलजी में रहता था। इसी कारण से उसके नाम के अंत में खिलजी जुड़ गया, और उसका नाम जलालुद्दीन फिरोज खिलजी हो गया। जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने दिल्ली के ठीक बाहर किलोखरी में अपनी राजधानी स्थापित की। जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने 1290 ई. से 1296 ई. के बीच उत्तरी भारत के अधिकांश हिस्से पर विजय प्राप्त की।

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी का संक्षिप्त परिचय

  • पूरा नाम : जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी।
  • संस्थापक : खिलजी वंश।
  • राज्यारोहण : 13 जून, 1290 में कैकूबाद द्वारा निर्मित किलोखरी (कूलागढ़ी) महल में।
  • शासन का समय : 1290 ई.-1296 ई.।
  • मृत्यु: 1296 ई.।
  • उत्तराधिकारी : अलाउद्दीन खिलजी।
  • पूर्ववर्ती : शमशुद्दीन क्युमर्स।
  • पुत्र : खान-ए-खान महमूद, अरकली खान, रुकुनुद्दीन, इब्राहिम, कादर खान
  • जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने 70 वर्ष की उम्र में 13 जून 1290 ई0 को दिल्ली की राज गद्दी ग्रहण की।
  • अपनी उदार नीति के कारण जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी ने कहा था, “मै एक वृद्ध मुसलमान हूँ और मुसलमान का रक्त बहाना मेरी आदत नहीं है।
  • सुल्तान बनने से पहले जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी बुलंदशहर का इक्तादार था।
  • जलालुद्दीन ख़िलजी की हत्या इसके भतीजे एवं दामाद अलाउद्दीन ख़िलजी ने 1296 ई० को कड़ा मानिकपुर (प्रयागराज) नामक जगह पर किया था।
  • जलालुद्दीन फिरोज खिलजी सुल्तान बनने से पहले अपनी योग्यता के बल पर ‘सर-ए-जहाँदार/शाही अंगरक्षक’ का पद प्राप्त किया। तथा बाद में समाना का सूबेदार बना।
  • कैकुबाद ने जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को ‘आरिज-ए-मुमालिक’ का पद दिया और ‘शाइस्ता ख़ाँ’ की उपाधि भी दिया।
  • सुल्तान बनते समय जलालुद्दीन फिरोज खिलजी की उम्र 70 वर्ष की थी। 

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी का प्रारंभिक जीवन एवं राज्यारोहण

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी कैकुबाद का सेनापति था, जो की एक गैर तुर्क सरदार था। ख़िलजी क़बीला लंबे समय से अफ़ग़ानिस्तान में बसा हुआ था, और जलालुद्दीन फिरोज खिलजी वही का एक गैर तुर्क सरदार था। जलालुद्दीन खिलजी बलबन के कार्यकाल में एक अच्छे सेनानायक के रूप में अपनी पहचान बना रखा था। उसने अनेक मौकों पर मंगोल आक्रमणकारियों के हमले को निष्क्रिय किया।

गुलाम वंश का शासक कैकुबाद के समय वह ‘समाना’ का सूबेदार तथा सर-ए-जहांदार (शाही अंगरक्षक) के पद पर नियुक्त था। कैकूबाद  ने उसको ‘शाइस्ता खां’ की उपाधि दी। कैकुबाद के लकवा ग्रस्त हो जाने के कारण शासन कर पाने में विफल हो गया। इस स्थिति में जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी अपने आप को शासन के अगले उत्तराधिकारी के रूप में देखने लगा परन्तु तुर्क सरदारों ने कैकुबाद के पुत्र क्युमर्स जो की अभी सिर्फ तीन वर्ष का ही था, उसको अगला उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।

परन्तु जलालुद्दीन फिरोज खिलजी मौका पाकर क्युमर्स की हत्या कर दिया, और सत्ता अपने हाथ में ले लिया। इस प्रकार से वह दिल्ली सल्तनत में एक नए राजवंश की स्थापना करता है, जिसको खिलजी वंश के नाम से जाना जाता है। खिलजी वंश ने दिल्ली सल्तनत में सन 1290 ई. से सन 1320 ई. तक राज्य किया। खिलजी वंश सबसे कम समय तक रहा, इसलिए खिलजी वंश दिल्ली सल्तनत का सबसे छोटा वंश भी कहा जाता है।

एक सुल्तान के रूप में जलालुद्दीन फिरोज खिलजी

आम लोगों द्वारा जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को एक सौम्य, विनम्र और मिलनसार राजा कहा जाता था। जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने शाही राजधानी दिल्ली के पुराने तुर्क अमीरों के साथ संघर्ष से बचने के लिए अपने शासनकाल के पहले वर्ष कैकूबाद द्वारा निर्मित किलोखरी (दिल्ली के पास) से शासन किया। उसके विनम्र स्वभाव के कारण कई सरदारों ने उसे एक कमज़ोर शासक के रूप में देखा और विभिन्न अवसरों पर उसे सत्ता से हटाने का असफल प्रयास किया।

बलबन की ‘रक्त और लौह’ की नीति त्यागकर इसने उदार नीति अपनाई और मध्यकाल का पहला शासक बना, जिसने जनता की इच्छा को शासन का आधार बनाया। वस्तुतः जलालुद्दीन ने ‘अहस्तक्षेप की नीति’ को अपनाया। जलालुद्दीन खिलजी के समय 1292 ई. में अब्दुल्ला के नेतृत्व में मंगोलों ने आक्रमण किया। इसी के समय एक और मंगोल आक्रमण हलाकू के पौत्र उलूग खां के नेतृत्व मे हुआ।

जलालुद्दीन खिलजी ने अपने कुशल पराक्रम से मगोलों को पराजित कर दिया। जिसके पश्चात लगभग 4 हजार मंगोल इस्लाम धर्म को स्वीकार कर दिल्ली के निकट मुगलपुर/मंगोलपुरी में बस गए, जो ‘नवीन मुसलमान’ कहलाए।

जलालुद्दीन खिलजी विद्रोहियों के प्रति भी उदार था। हालाँकि जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने एक विद्रोही दरवेश सिदी मौला की हत्या करवा दिया था, जिसने कथित तौर उसको सत्ता से हटाने के लिए षड्यंत्र रचा था। जलालुद्दीन फिरोज खिलजी की उदार नीतियों का फायदा उठा कर उसके भतीजे अली गुरशस्प ने उसकी हत्या कर दी और अलाउद्दीन खिलजी के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठ गया। अलाउद्दीन खिलजी की नीतिया जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के ठीक विपरीत थी। वह शासन करने के लिए कड़े नियम बनाया तथा कठोरता के साथ शासन किया।

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी का शासन तथा उपलब्धियाँ

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी 70 वर्ष की आयु में 13 जून, 1290 ई. को सुल्तान बना। परन्तु अमीर तुर्की सरदार खिलजियों से नफरत करते थे अतः सिंहासनारोहण के बाद भी एक वर्ष तक ‘जलालुद्दीन फिरोज खिलजी’ सुल्तान कैकुबाद द्वारा दिल्ली के नजदीक बनाये गए एक नए नगर ‘किलखोरी’ में रहा।

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को जब यह आभास हो गया कि अपने उदारतापूर्ण कार्यों से उसने जनता को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया है, तभी उसने दिल्ली में प्रवेश किया परन्तु उसके दयालु स्वभाव तथा सहृदयता को उसकी कमजोरी समझ कर जगह-जगह उसके खिलाफ विद्रोह होने लगे।

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के शासन काल (खिलजी वंश) की सबसे बड़ी उपलब्धि देवगीरि की विजय थी। इसका श्रेय सुल्तान के दामाद अलाउद्दीन खिलजी को जाता है, क्योकि अलाउद्दीन खिलजी नेतृत्व में ही तुकों का प्रथम अभियान दक्षिण भारत की ओर गया। तुर्को ने देवगीरि के यादव राजा रामचन्द्र और उसके बेटे शंकरदेव को हराकर उन्हें दिल्ली सल्तनत की अधीनता स्वीकार करने पर मजबूर कर दिया।

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी की उपलब्धियों को निम्न बिन्दुओं में समझा जा सकता है –

मलिक छज्जू का विद्रोह

मलिक छज्जू बलबन (गुलाम वंश का अंतिम शासक) का भतीजा था । अगस्त 1290 ई. में मलिक छज्जू ने विद्रोह कर दिया। अवध के गवर्नर अमीर अली हातिम खान और पूर्वी क्षेत्रों के कई अन्य राजाओं ने इस विद्रोह में उनका समर्थन किया। सिंहासन पर दावा करने के लिए, उन्होंने दिल्ली की यात्रा की।

जलाल-उद-दीन के सबसे बड़े बेटे अरकली खान ने उसे बदायूँ के पास हरा दिया और पकड़ कर सुल्तान को सौंप दिया।
सुल्तान जलालुद्दीन ने उस पर दया की और उसे मुक्त कर दिया। जब उनके बेटे और सरदारों ने सुल्तान के व्यवहार की आलोचना की, तो उन्होंने यह दावा करके उन्हें चुप करा दिया कि वह राजशाही की खातिर मुसलमानों के खून का बलिदान करने को तैयार नहीं थे।

गलती करने वाले रईसों के प्रति उदारता

जब सुल्तान रणथंभौर के खिलाफ मार्च कर रहा था , तो कुछ रईसों ने, जो एक उत्सव के दौरान नशे में थे, सुल्तान को जान से मारने की धमकी दी। इसकी सूचना सुल्तान को दी गई तो उसने उन्हें दंडित करने के बजाय एक निजी सभा में बुलाया और उन्हें द्वंद्व युद्ध के लिए चुनौती दी।
लेकिन, एक बार शांत हो जाने के बाद, वह उन्हें एक साल के लिए अदालत से हटाने से ही संतुष्ट हो गए।

सिद्दी मौला की फाँसी

सुल्तान को पता चला कि कई विद्रोही सरदारों ने एक ‘ फकीर ‘ सिद्दी मौला का आशीर्वाद मांगा था। उन पर यह भी संदेह था कि वे सिद्दी मौला को राजा बनाने की योजना बना रहे थे। हालाँकि यह स्पष्ट नहीं था कि सिद्दी मौला निर्दोष था या सुल्तान की हत्या की साजिश में भागीदार था। बावजूद इसके, सुल्तान ने उसे हाथी के पैरों से कुचलवाया। इसके साथ ही अन्य षड्यंत्रकारियों को निर्वासित कर दिया गया या उनकी संपत्ति जब्त कर ली गई। दिल्ली का सुल्तान बनने के बाद शायद यह एकमात्र मौका था जब सुल्तान ने इतनी सख्ती बरती।

मंगोलों पर दया

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के शासनकाल के दौरान, मंगोलों ने भारत के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाया। आक्रमण के संबंध में दो वृत्तांत हैं। एक वृत्तांत के अनुसार, पंजाब में सुल्तान ने व्यक्तिगत रूप से युद्ध किया और उन्हें हराया। उन्हें माफ कर दिया गया और उनमें से कुछ को दिल्ली क्षेत्र में रहने की अनुमति दे दी गई। यह क्षेत्र मुगलपुर/मंगोलपुरी नाम से जाना जाता है। मंगोलों ने इस्लाम अपना लिया और उनके धर्म परिवर्तन के परिणामस्वरूप उन्हें ” नव मुस्लिम ” करार दिया गया।

एक अन्य किंवदंती का दावा है कि सुल्तान ने मंगोलों के अग्रिम रक्षकों को हरा दिया और उनमें से कई को पकड़ लिया। उसने मंगोलों के साथ शांति स्थापित कर ली क्योंकि वह उनकी मुख्य शक्ति का सामना करने से डरता था। मंगोल चले गए और उन्हें दिल्ली के बाहरी इलाके में बसने की अनुमति दी गई।

जलालुद्दीन फ़िरोज़ ख़िलजी के अभियान

सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने अपने भतीजे और दामाद अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा दो अभियान को अंजाम दिया। सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने अपने पहले अभियान के तहत अपने भतीजे और दामाद अलाउद्दीन खिलजी को भिलसा पर फतह करने के लिए भेजा। अलाउद्दीन खिलजी ने भिलसा को लूट लिया और लूट का माल सुल्तान को दे दिया।

सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज खिलजी का दूसरा अभियान दक्षिण भारत के राज्य देवगिरी को अपने अधीन करना था। उस समय दक्षिण का राज्य देवगिरी काफी शक्तिशाली राज्य हुआ करता था। लेकिन सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी इस कार्य के लिए अपने भतीजे और दामाद अलाउद्दीन खिलजी को भेजना नहीं चाहता था। परन्तु अलाउद्दीन खिलजी सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की सहमति लिए बिना ही दक्षिण विजय के लिए निकल गया।

एक भयंकर युद्ध के बाद अंत में अलाउद्दीन खिलजी देवगिरी को जीतने में सफल हो जाता है। देवगिरी पर विजय प्राप्त करने से अलाउद्दीन खिलजी को बड़ी धनराशि के साथ-साथ घोड़े और हाथी भी प्राप्त हुए। देवगीरि से अपार सम्पत्ति मिली जिसमें 50 मन सोना, 7 मन हीरे-मोती और अन्य लूट का माल कई हजार घोड़ों और 40 हाथियों पर लाद कर लाया गया।

जलालुद्दीन फिरोज खिलजी की मृत्यु

अलाउद्दीन खिलजी दक्षिण अभियान के तहत देवगिरी पर विजय प्राप्त करने के पश्चात देवगिरि से भारी खजाना लेकर लौटा। अपने भतीजे और दामाद अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिण विजय (देवगिरी में मिली जीत) से प्रसन्न होकर सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी उसे बधाई देने स्वयं कड़ा की ओर निकल पड़ा।

सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के कुछ करीबी सरदारों को अलाउद्दीन खिलजी के बेईमानी का संदेह हुआ, और उन्होंने सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज खिलजी को इससे आगाह भी किया। लेकिन सुल्तान ने उन्हें नजर अंदाज कर दिया और अलाउद्दीन खिलजी से मिलने के लिए कड़ा की तरफ चल दिया। कड़ा पहुचने के बाद जैसे ही वह अलाउद्दीन खिलजी से गले मिला उसी समय अलाउद्दीन खिलजी सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कर दिया और 22 अक्टूबर, 1296 ई. को खुद गद्दी पर बैठ गया।

परन्तु कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है की रास्ते में गंगा नदी के तट पर जब सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी अलाउद्दीन खिलजी के गले मिल रहा था तो उस समय अलाउद्दीन खिलजी द्वारा बनायीं गयी पूर्व योजना के आधार पर मुहम्मद सलीम ने उसकी हत्या कर दी। मुहम्मद सलीम ने सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी को अपनी तलवार से दो बार मारा । पहली बार उसके पीठ में और दूसरी बार में उसने सुल्तान जलालुद्दीन का सर उसके धड से अलग कर दिया तथा उसके समर्थकों को भी मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार अलाउद्दीन खिलजी 22 अक्टूबर, 1296 ई. को अपने चाचा और ससुर की हत्या करवा कर दिल्ली का सुल्तान बना।

जलालुद्दीन खिलजी उस काल में शासन किया जो प्रशासनिक उपलब्धियों की दृष्टि से बहुत समृद्ध नहीं था, फिर भी वह एक सफल शासक था। उन्होंने न केवल युवा मुस्लिम देश पर नियंत्रण स्थापित किया, बल्कि सल्तनत की कठिनाइयों को भी हल किया। उसके शासनकाल में शिक्षा और साहित्य का विकास हुआ। वह कलाकारों और लेखकों का संरक्षक था। उसने उदार एजेंडा अपनाया क्योंकि वे आतंकवाद, लापरवाही और निरर्थक रक्तपात के पक्ष में नहीं था। वह अपने पूर्ववर्ती की तरह ही हिंदू धर्म के प्रति असहिष्णु था।

सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज खिलजी एक सफल शासक हो सकता था और उसके कार्यक्रम अत्यंत लाभकारी हो सकते थे, लेकिन अलाउद्दीन की साजिश ने उसकी प्रगति को विफल कर दिया और वह उसकी महत्वाकांक्षाओं का शिकार बन गया। और आखिर में अलाउद्दीन की साजिश और विश्वासघात से खिलजी वंश के संस्थापक जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी के शासन का अंत हुआ और एक नए शासक अलाउद्दीन खिलजी ने सत्ता संभाली।


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