भारत की बहुरंगी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत विश्व पटल पर अपनी विशेष पहचान रखती है। इसी धरोहर को और समृद्ध करने की दिशा में भारत सरकार ने वर्ष 2025–26 के चक्र में “प्राचीन बौद्ध स्थल, सारनाथ” नामक एक डॉसियर यूनेस्को विश्व धरोहर केंद्र को प्रस्तुत किया है। यह नामांकन न केवल भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उजागर करता है, बल्कि यह सारनाथ जैसे ऐतिहासिक और आध्यात्मिक स्थल के महत्व को भी रेखांकित करता है।
सारनाथ: एक परिचय
सारनाथ, उत्तर प्रदेश के वाराणसी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक प्राचीन नगर है, जो बौद्ध धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यह वही स्थान है जहाँ गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के पश्चात अपना प्रथम उपदेश दिया था, जिसे ‘धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त’ कहा जाता है। यही उपदेश बौद्ध धर्म के औपचारिक आरंभ का प्रतीक है, क्योंकि इसी क्षण से बौद्ध संघ की नींव रखी गई।
सारनाथ का ऐतिहासिक महत्व
गौतम बुद्ध की जीवन यात्रा में सारनाथ का स्थान अत्यंत विशिष्ट है। यहाँ उन्होंने अपने पाँच पूर्व साथियों — कोंडञ्ञ, भद्दिय, वप्प, महानाम और अस्सजि — को प्रथम उपदेश दिया और उन्हें बौद्ध संघ का प्रथम सदस्य बनाया। यह ऐतिहासिक क्षण न केवल बौद्ध धर्म का आरंभ था, बल्कि मानव इतिहास में एक नये धार्मिक आंदोलन की शुरुआत भी मानी जाती है, जिसने करुणा, अहिंसा और मध्यम मार्ग जैसे सिद्धांतों पर आधारित एक विशाल आध्यात्मिक परंपरा की स्थापना की।
सारनाथ का सांस्कृतिक महत्व
सारनाथ, बोधगया, लुंबिनी और कुशीनगर के साथ मिलकर बौद्ध धर्म के चार प्रमुख पवित्र स्थलों में से एक है। ये स्थल बुद्ध के जीवन के विभिन्न चरणों — जन्म, ज्ञान प्राप्ति, प्रथम उपदेश और महापरिनिर्वाण — से जुड़े हुए हैं। प्राचीन काल में सारनाथ केवल एक तीर्थ स्थल ही नहीं था, बल्कि यह बौद्ध शिक्षा, कला, स्थापत्य और सांस्कृतिक आदान–प्रदान का एक प्रमुख केंद्र भी था।
यहाँ की वास्तुकला में मौर्य, कुषाण और गुप्त काल की कलात्मक छवियाँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। यहाँ विकसित बौद्ध कला और स्थापत्य का प्रभाव तिब्बत, चीन, जापान, थाईलैंड और श्रीलंका जैसे देशों तक पहुँचा, जिससे यह स्थल एक अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में भी स्थापित हुआ।
सारनाथ के प्रमुख स्मारक
धमेख स्तूप:
धमेख स्तूप सारनाथ का सबसे प्रमुख और प्राचीन स्मारक है। यह स्तूप उस स्थान को चिन्हित करता है जहाँ बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश दिया था। वर्तमान में जो स्तूप दिखाई देता है, वह लगभग 500 ईस्वी का है और गुप्त काल की स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसका आधार 28 मीटर व्यास का है और ऊँचाई लगभग 43.6 मीटर है। इस पर नक्काशीदार पुष्प एवं ज्यामितीय आकृतियाँ हैं, जो गुप्त युग की कलात्मक श्रेष्ठता को दर्शाती हैं।
अशोक स्तंभ:
सम्राट अशोक, जिन्होंने मौर्य साम्राज्य को बौद्ध धर्म के माध्यम से एकजुट करने का प्रयास किया, ने सारनाथ में एक विशाल स्तंभ की स्थापना की। इस स्तंभ के शीर्ष पर स्थित सिंह–स्तंभ (Lion Capital) अब भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है, जो चार मुखों वाले सिंहों का समूह है। यह स्तंभ बौद्ध धर्म के प्रचार–प्रसार और अशोक के धर्म–चक्र की अवधारणा का प्रतीक है।
चौखंडी स्तूप:
यह स्तूप उस स्थान को चिन्हित करता है जहाँ बुद्ध ने अपने पहले पाँच शिष्यों से भेंट की थी। यह स्तूप मूलतः एक ईंट संरचना था जिसे मुगल शासक अकबर के काल में एक अष्टकोणीय मीनार के रूप में परिवर्तित किया गया। यह स्तूप सारनाथ के पुरातात्त्विक और धार्मिक महत्व का एक और प्रमाण है।
मूलगंध कुटी विहार:
यह एक आधुनिक बौद्ध मंदिर है जिसे महाबोधि सोसाइटी द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर की दीवारों पर जापानी कलाकारों द्वारा बनाए गए भित्तिचित्र (frescoes) हैं, जो बुद्ध के जीवन की घटनाओं को चित्रित करते हैं। यह मंदिर वर्तमान समय में भी पूजा और ध्यान का एक सक्रिय केंद्र है और विश्वभर के बौद्ध तीर्थयात्रियों का आकर्षण केंद्र बना हुआ है।
सारनाथ पुरातात्त्विक संग्रहालय:
यह संग्रहालय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संचालित है और इसमें सारनाथ क्षेत्र से प्राप्त विभिन्न ऐतिहासिक कलाकृतियाँ प्रदर्शित हैं। इसमें बुद्ध की मूर्तियाँ, स्तूपों के अवशेष, बौद्ध धर्म से जुड़ी अनेक दुर्लभ वस्तुएँ और विशेष रूप से अशोक स्तंभ का सिंह शीर्ष प्रदर्शित है, जिसे देखने के लिए भारत और विदेश से हजारों पर्यटक आते हैं। यह संग्रहालय सारनाथ की सांस्कृतिक परंपरा और कलात्मक विरासत को संरक्षित करता है।
अंतरराष्ट्रीय महत्व और यूनेस्को नामांकन
सारनाथ न केवल भारत के लिए बल्कि समस्त बौद्ध विश्व के लिए एक श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। यहाँ पर भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संरक्षात्मक कार्यों के साथ-साथ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं। 2025–26 के यूनेस्को विश्व धरोहर नामांकन चक्र में सारनाथ के प्रस्ताव को प्रस्तुत करना इस दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
यूनेस्को द्वारा किसी भी स्थल को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता देने के लिए तीन मुख्य मानदंड होते हैं:
- स्थल का सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, या वैज्ञानिक महत्व,
- उसकी विशिष्टता और वैश्विक महत्व,
- उसकी संरक्षा और स्थायित्व के लिए उठाए गए कदम।
सारनाथ इन सभी मानदंडों पर खरा उतरता है। यह स्थल न केवल एक प्राचीन धार्मिक केंद्र है, बल्कि यह मानवता के सार्वभौमिक मूल्यों — करुणा, अहिंसा और आध्यात्मिक जागरूकता — का प्रतिनिधित्व करता है।
सरकारी प्रयास
भारत सरकार ने इस डॉसियर के माध्यम से सारनाथ की बहुआयामी विरासत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इसके अंतर्गत:
- स्थलीय संरक्षण और पुनर्निर्माण कार्य,
- पर्यावरणीय प्रबंधन और स्वच्छता,
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी,
- डिजिटल संग्रह और प्रचार,
- बहुभाषीय सूचनात्मक केंद्रों की स्थापना जैसे महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं।
पर्यटन और वैश्विक सांस्कृतिक संवाद में भूमिका
यदि सारनाथ को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में स्थान प्राप्त होता है, तो यह भारत के पर्यटन क्षेत्र को नई ऊँचाइयाँ देगा। इससे वैश्विक बौद्ध समुदाय के साथ भारत के सांस्कृतिक संबंध और भी सुदृढ़ होंगे। साथ ही, यह स्थल अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक संवाद का एक मंच भी बन सकता है, जहाँ विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग मिलकर मानवीय मूल्यों पर चर्चा कर सकें।
निष्कर्ष
सारनाथ न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह भारत की आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का जीवंत प्रमाण है। इसका यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित होना न केवल भारत के लिए गौरव की बात होगी, बल्कि यह विश्व मानवता के साझा मूल्यों का उत्सव भी होगा।
यह स्थल आज भी शांति, ज्ञान और करुणा का संदेश देता है — वही संदेश जो हजारों वर्ष पहले बुद्ध ने यहाँ दिया था।
इन्हें भी देखें –
- ट्रेकोमा (Trachoma) : वैश्विक स्वास्थ्य संकट से मुक्ति की ओर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि
- सोकोट्रा द्वीप (Socotra Island): एक अद्भुत प्राकृतिक धरोहर
- भारत-यूके मुक्त व्यापार समझौता (FTA): वैश्विक व्यापार में भारत की ऐतिहासिक छलांग
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 67(ए): उपराष्ट्रपति का इस्तीफा – संवैधानिक प्रक्रिया, महत्व और प्रभाव
- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: पद, प्रक्रिया और संभावित प्रभाव
- अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC): वैश्विक न्याय प्रणाली में यूक्रेन की नई भागीदारी और भारत की दूरी
- हिन्दी निबंध साहित्य: परिभाषा, स्वरूप, विकास, विशेषताएं, भेद और उदाहरण
- पूर्व भारतेंदु युग: हिंदी गद्य की नींव और खड़ी बोली का आरंभिक विकास
- भारतेंदु युग (नवजागरण काल) की समय-सीमा, स्वरूप और युग-निर्धारण की समीक्षा
- हिन्दी साहित्य के सर्वप्रथम कवि: एक विमर्श
- हिंदी के प्रमुख एकांकीकार एवं एकांकी | लेखक और रचनाएँ