रूसी तेल पर अमेरिकी प्रतिबंध और भारत की प्रतिक्रिया: ऊर्जा संप्रभुता बनाम वैश्विक दोहरे मापदंड

21वीं सदी की वैश्विक राजनीति में ऊर्जा सुरक्षा और कूटनीतिक स्वायत्तता दो ऐसे तत्व बन गए हैं, जो किसी भी राष्ट्र की विदेश नीति के मूल आधार तय करते हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अंतरराष्ट्रीय संबंधों में जो भू-राजनीतिक असंतुलन उत्पन्न हुआ है, उसने वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला को भी गहरे रूप से प्रभावित किया है। इस संदर्भ में अमेरिका द्वारा प्रस्तावित “Russian Sanctions Act, 2025” ने भारत जैसे विकासशील देशों की ऊर्जा नीति पर बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।

अमेरिका ने इस अधिनियम के माध्यम से उन देशों पर आर्थिक दंड लगाने का प्रस्ताव रखा है जो रूस से तेल का आयात कर रहे हैं, और इस सूची में भारत प्रमुख रूप से शामिल है। प्रस्तावित अधिनियम में रूस से तेल आयात करने वाले देशों पर 500% तक शुल्क लगाने की बात कही गई है। भारत ने इस कदम को कड़े शब्दों में “वैश्विक दोहरे मापदंडों” की संज्ञा देते हुए, इसे ऊर्जा संप्रभुता पर सीधा आघात बताया है।

भारत का विरोध: क्यों और कैसे?

भारत ने प्रस्तावित US-Russia Sanctions Act, 2025 का खुलकर विरोध किया है और इसके पीछे कुछ ठोस व व्यापक कारण प्रस्तुत किए हैं:

1. ऊर्जा सुरक्षा पर सीधा खतरा

भारत अपनी घरेलू ऊर्जा आवश्यकताओं का लगभग 88% हिस्सा आयातित कच्चे तेल से पूरा करता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जब वैश्विक तेल बाजारों में अस्थिरता बढ़ी, तब रूस से रियायती दरों पर तेल खरीदकर भारत ने अपनी ईंधन कीमतों को नियंत्रण में रखा और महंगाई पर अंकुश लगाने में सफलता प्राप्त की।

इस विधेयक के लागू होने पर यदि रूस से तेल आयात करने पर 500% तक शुल्क लगाया जाता है, तो भारत की ऊर्जा आपूर्ति शृंखला गंभीर रूप से प्रभावित हो सकती है। इससे न केवल आयात बिल बढ़ेगा, बल्कि घरेलू ईंधन की कीमतों में भी भारी उछाल आ सकता है, जिससे आम जनता प्रभावित होगी।

2. रणनीतिक स्वायत्तता का उल्लंघन

भारत की विदेश नीति का मूल आधार गुटनिरपेक्षता और रणनीतिक स्वायत्तता रहा है। भारत न तो पश्चिमी धड़ों के पूर्ण समर्थन में रहा है और न ही रूस या चीन के साथ पूरी तरह से गठबंधन में। भारत ने हमेशा अपनी नीति को राष्ट्रीय हितों के अनुरूप स्वतंत्र रूप से तय करने पर जोर दिया है।

US-Russia Sanctions Act, 2025 को भारत अपनी संप्रभु निर्णय प्रक्रिया में हस्तक्षेप मानता है। भारत का कहना है कि यह अधिनियम विकासशील देशों को अमेरिका की नीतियों के अनुरूप चलने को मजबूर करने की रणनीति का हिस्सा है।

3. चयनात्मक प्रतिबंध और भू-राजनीतिक दोहरे मानक

भारत ने अमेरिका पर ‘भू-राजनीतिक दोहरे मानकों’ का आरोप लगाया है। अमेरिका जहां भारत को रूसी तेल खरीदने पर दंडित करना चाहता है, वहीं यूरोपीय देश अब भी रूस से प्राकृतिक गैस और अन्य ऊर्जा संसाधन खरीद रहे हैं, लेकिन उन पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है।

यह विरोधाभास दर्शाता है कि प्रतिबंधों का प्रयोग भू-राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है, न कि वैश्विक कानूनों के समान अनुपालन के लिए। भारत ने इसे वैश्विक कूटनीति में अनुचित भेदभाव बताया है।

भारत की ऊर्जा स्थिति: एक व्यापक परिप्रेक्ष्य

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक देश है और इसकी अर्थव्यवस्था के सुचारु संचालन के लिए तेल आपूर्ति की निरंतरता और स्थिरता अत्यंत आवश्यक है। आइए भारत की ऊर्जा सुरक्षा को समझने के लिए कुछ प्रमुख तथ्यों पर नज़र डालते हैं:

भारत के तेल आयात का वैश्विक परिदृश्य:

बिंदुविवरण
वैश्विक स्थानदुनिया में तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक
कुल निर्भरताकच्चे तेल की 88% आवश्यकता आयात से
प्रमुख आपूर्तिकर्ताइराक, सऊदी अरब, रूस, अमेरिका, UAE
रूस-यूक्रेन युद्ध के बादरूस से रियायती दरों पर खरीद में तेज़ी

भारत की प्रतिक्रिया में नीति-स्तरीय प्रयास:

भारत ने केवल विरोध तक सीमित न रहकर, अपनी ऊर्जा नीति में विविध प्रयास किए हैं:

  1. आपूर्ति स्रोतों का विविधीकरण:
    • भारत अब एक ही देश पर निर्भर न रहकर इराक, सऊदी अरब, अमेरिका, UAE, रूस आदि से तेल खरीद रहा है।
    • यह रणनीति भू-राजनीतिक संकट की स्थिति में वैकल्पिक मार्ग सुनिश्चित करती है।
  2. स्ट्रैटेजिक पेट्रोलियम रिज़र्व (SPR):
    • भारत ने संकट काल में काम आने वाले रणनीतिक तेल भंडार विकसित किए हैं।
    • इससे आपूर्ति में रुकावट की स्थिति में कुछ हफ्तों की खपत सुनिश्चित की जा सकती है।
  3. घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन:
    • भारत ने HELP (Hydrocarbon Exploration and Licensing Policy) के तहत घरेलू तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के प्रयास किए हैं।
  4. ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय स्रोतों में निवेश:
    • भारत सौर, पवन और बायो एनर्जी जैसे वैकल्पिक स्रोतों में निवेश कर रहा है।
    • ऊर्जा दक्षता बढ़ाने के लिए इंडस्ट्री, परिवहन और आवासीय क्षेत्रों में नवाचार को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
  5. द्विपक्षीय दीर्घकालिक समझौते:
    • भारत ने रूस, सऊदी अरब और इराक जैसे देशों के साथ दीर्घकालिक अनुबंध किए हैं ताकि स्थिर और भरोसेमंद आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।

Russian Sanctions Act, 2025: भारत पर संभावित प्रभाव

1. तेल आपूर्ति में बाधा:

यदि अधिनियम पारित होता है, तो यह भारत की सार्वजनिक और निजी तेल कंपनियों को रूसी कंपनियों (जैसे Rosneft) से व्यापार करने से रोक सकता है। इससे दीर्घकालिक अनुबंध समाप्त हो सकते हैं और भारत को वैकल्पिक, महंगे स्रोतों की ओर झुकना पड़ेगा।

2. ऊर्जा लागत में वृद्धि:

रूस से रियायती दरों पर तेल की खरीद बंद होने की स्थिति में भारत को मध्य पूर्व या अमेरिका से महंगे दामों पर तेल खरीदना पड़ेगा, जिससे आयात बिल में वृद्धि और घरेलू ईंधन कीमतों में भारी उछाल आ सकता है।

3. आपूर्ति श्रृंखला में अनिश्चितता:

भू-राजनीतिक अस्थिरता और अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत की ऊर्जा आपूर्ति शृंखला में अनिश्चितता उत्पन्न हो सकती है। इससे औद्योगिक उत्पादन, परिवहन और महंगाई जैसे क्षेत्रों पर गंभीर असर पड़ेगा।

भारत का दृष्टिकोण: ऊर्जा संप्रभुता का अधिकार

भारत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह अपने ऊर्जा स्रोत चुनने की संप्रभुता पर किसी भी बाहरी शक्ति का हस्तक्षेप स्वीकार नहीं करेगा। अमेरिका का यह विधेयक न केवल भारत के रणनीतिक हितों के विरुद्ध है, बल्कि अन्य विकासशील देशों के लिए भी चिंताजनक उदाहरण बन सकता है।

भारत का यह भी कहना है कि वैश्विक प्रतिबंधों को समान रूप से लागू किया जाना चाहिए। यदि यूरोपीय देशों को रूस से गैस खरीदने की छूट दी जाती है, तो भारत जैसे देश को भी आर्थिक आवश्यकताओं के आधार पर तेल स्रोत चुनने का पूर्ण अधिकार होना चाहिए।

समापन: वैश्विक द्वंद्व और भारत की नीति-स्पष्टता

US-Russia Sanctions Act, 2025 के प्रस्ताव से उत्पन्न विवाद भारत और अमेरिका के संबंधों में एक नये मोड़ की ओर संकेत करता है। यद्यपि भारत अमेरिका के साथ रणनीतिक, सैन्य और तकनीकी सहयोग बढ़ा रहा है, किंतु इस प्रकार के कदम भारत की स्वतंत्र नीति को चुनौती देते हैं।

भारत ने एक बार पुनः स्पष्ट किया है कि उसकी ऊर्जा संप्रभुता, रणनीतिक स्वायत्तता और बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की प्रतिबद्धता से वह कभी समझौता नहीं करेगा। इस मुद्दे पर भारत का रुख न केवल आंतरिक मजबूती को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक दक्षिण (Global South) की सामूहिक आकांक्षाओं का भी प्रतिनिधित्व करता है।

निष्कर्ष

आज के भू-राजनीतिक परिवेश में जब ऊर्जा आपूर्ति और वैश्विक शांति आपस में गुंथ चुके हैं, तब भारत जैसे विकासशील देश के लिए संतुलन बनाना अत्यंत आवश्यक है। अमेरिकी प्रतिबंधों का विरोध केवल कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक नीतिगत चेतावनी है कि वैश्विक मंच पर समानता, न्याय और पारदर्शिता के बिना कोई व्यवस्था स्थायी नहीं रह सकती।

भारत की यह नीति न केवल उसकी ऊर्जा ज़रूरतों को सुरक्षित करती है, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक आत्मनिर्भर, स्वतंत्र और सशक्त राष्ट्र के रूप में भी प्रस्तुत करती है।

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