भारत के स्वतंत्रता सेनानी | वीरता और समर्पण

गुलाम भारत को स्वतंत्र भारत बनाने तक का सफर कोई आसान काम नहीं था भारत की आजादी के लिए कितने ही क्रांतिवीरों द्वारा समय-समय पर कई आंदोलन किये गए। इन्ही स्वतंत्रता सेनानी की बदौलत 15 अगस्त 1947 को हमारा देश भारत आज़ाद हुआ। और हमे गर्व होना चाहिए की हमने इस आज़ाद भूमि पर जन्म लिया जिसके लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना लहू बहाया है और अपनी वीरता का परिचय दिया। भारत में ही नहीं विदेशों में भी रह रहे भारतीयों ने किसी न किसी रूप में भारत की आज़ादी के लिए अपना योगदान दिया।

हर साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है और देशभक्ति गीत गाकर अपने उन क्रांतिवीरो को याद किया जाता है। आज हम आजाद भूमि में स्वतंत्र हैं गुलामी की जंजीरों से आजाद हैं। देश को आजाद करने में कई क्रांतिवीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी है जिसका मूल्य कभी नहीं चुकाया जा सकता है 15 अगस्त वह दिन है जब भारतवासी अपनी आज़ादी को धूम-धाम से मनाते हैं। कार्यालयों, स्कूल, कॉलेज में तिरंगा फहराया जाता है और राष्ट्रीय गान और देशभक्ति गीत लगाए जाते हैं।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसे क्रन्तिकारी वीर थे जिन्होंने छोटी सी ही आयु में अपना सब न्योछावर करके आपके को भारत माँ की आज़ादी के लिए सौंप दिया था अपना तन मन धन सब भारत माँ को ब्रिटिश शासन से आज़ाद करने में लगा लिया था। ऐसें क्रांतिवीरों का नाम भारत की आज़ादी के लिए स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया है।

कई ऐसे युवा और कई महिलाओं ने भारत की आज़ादी में अपना योगदान दिया अपनरे परिवार से पहले भारत देश को अपना परिवार समझा और कूद पड़े भारत की स्वतंत्रता के लिए। देश ही नहीं विदेशों में भी भारत की आजादी के लिए गुप्त संगठन बनाकर ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेकने रणनीति की रणनीति बनाई गयी।

स्वतंत्रता संग्रामियों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए स्वतंत्रता के लिए उस अग्नि में कूद पड़े जिसकी लपटें दूर दूर तक फैली हुयी थी पर वह अग्नि भी उनके अस्तित्व को न मिटा सकी। आज हमारा भारत उस गुलामी से तो आजाद हो गया किन्तु वर्तमान समय में भारत भ्रष्टाचार, बेईमानी, बेरोजगारी आदि समस्याओं का गुलाम बना चुका है जिसके लिए भारत के युवाओं को क्रांति लानी होगी। यदि भारत का युवा वर्ग इस गुलामी से लड़ने में सक्षम होगा तभी हम असल मायने में आज़ाद कहलाये जायेंगे।

भारत के स्वतंत्रता सेनानियों की सूची

नामजन्ममृत्यु
महात्मा गांधी2 अक्टूबर 186930 जनवरी 1948
भगतसिंह28 सितम्बर 190723 मार्च 1931,
चंद्रशेखर आजाद23 जुलाई 190627 फरवरी 1931
सुभाष चन्द्र बोस23 जनवरी 189718 अगस्त 1945
जवाहरलाल नेहरु14 नवम्बर 188927 मई 1964
बाल गंगाधर तिलक23 जुलाई 18561 अगस्त 1920
वल्लभभाई पटेल31 अक्टूबर 187515 दिसम्बर 1950
बेगम हजरत महल18207 अप्रैल 1879
पंडित बालकृष्ण शर्मा8 दिसम्बर 189729 अप्रैल 1960
लक्ष्मी सहगल24 अक्टूबर 191423 जुलाई 2012
सागरमल गोपा3 नवम्बर 19004 अप्रैल 1946
रामप्रसाद बिस्मिल11 जून 18979 दिसम्बर 1927
गणेश दामोदर सावरकर13 जून 187916 मार्च 1945
भीमराव अम्बेडकर14 अप्रैल 18916 दिसम्बर 1956
खुदीराम बोस3 दिसम्बर 188911 अगस्त 1908
अशफाक़उल्ला खा22 अक्टूबर 190019 दिसम्बर 1927
मदन लाल ढींगरा8 फरवरी 188317 अगस्त 1909
एनी बीसेंट1 अक्टूबर 184720 सितम्बर 1933
लाला हरदयाल14 अक्टूबर 18844 मार्च 1939
अल्लूरी सीताराम राजू18987 मई 1924
कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी30 दिसम्बर 18878 फरवरी 1971
बिरसा मुंडा15 नवम्बर 18759 जून 1900
हेमू कालाणी23 मार्च 192321 जनवरी 1943
सुखदेव15 मई 190723 मार्च 1931
राजगुरु26 अगस्त 190823 मार्च 1931
दादाभाई नौरोजी4 सितम्बर 182530 जून 1917
भीकाजी कामा24 सितम्बर 186113 अगस्त 1936
गोपाल कृष्ण गोखले9 मई 186619 फरवरी 1915
बिपिन चन्द्र पाल7 नवम्बर 185820 मई 1932
लाला लाजपत राय28 जनवरी 186517 नवम्बर 1928
मोतीलाल नेहरु6 मई 18616 फरवरी 1931
राममनोहर लोहिया23 मार्च 191012 अक्टूबर 1967
मौलाना अबुल कलाम आजाद11 नवम्बर 188822 फरवरी 1958
सरोजनी नायडू13 फरवरी 187902 मार्च 1949
नरसिंहा रेड्डीज्ञात नही22 फरवरी 1847
शहीद उधम सिंह26 दिसम्बर 189931 जुलाई 1940
लाल बहादुर शास्त्री2 अक्टूबर 190411 जनवरी 1966
मंगल पांडे19 जुलाई 18278 अप्रैल 1857
टीपू सुल्तान20 नवम्बर 17504 मई 1799
बहादुर शाह जफर24 अक्टूबर 17757  नवम्बर 1862
बाबू कुंवर सिंहनवम्बर 177726 अप्रैल 1858
आचार्य कृपलानी11 नवम्बर 188819 मार्च 1982
रानी लक्ष्मीबाई19 नवम्बर 182818 जून 1858
कस्तूरबा गांधी11 April 186922 फरवरी 1944
चितरंजन दास5 नवम्बर 186916 जून 1925
सी.राजगोपालाचारी10 दिसम्बर 187825 दिसम्बर 1972
मदन मोहन मालवीय25 दिसम्बर 186112 नवम्बर 1946
खान अब्दुल गफ्फार खान6 फरवरी 189020 जनवरी 1988
रानी गिडालू26 जनवरी 191517 फरवरी 1993
अनंत लक्ष्मण कन्हेरे189119 अप्रैल 1910
अम्बिका चक्रवती18926 मार्च 1962
जयप्रकाश नारायण11 अक्टूबर 19028 अक्टूबर 1979
प्रफुल्ल चाकी10 दिसम्बर 18882 मई 1908
करतार सिंह सराभा24 मई 189616 नवम्बर 1915
अरुणा आसफ अली16 जुलाई 190929 जुलाई 1996
कमला नेहरु1 अगस्त 189928 फरवरी 1936
बीना दास24 अगस्त 191126 दिसम्बर 1986
सूर्या सेन22 मार्च 189412 जनवरी 1934
राजेन्द्र लाहिड़ी29 जून 190117 दिसम्बर 1927
सर अरविन्द घोष15 अगस्त 18725 दिसम्बर 1950
तात्या टोपे181418 अप्रैल 1859
नाना साहब19 मई 18241857
महादेव गोविन्द रानाडे18 जनवरी 184216 जनवरी 1901
पुष्पलता दास27 मार्च 19159 नवम्बर 2003
गरिमेला सत्यनारायण14 जुलाई 189318 दिसम्बर 1952
जतिंद्र मोहन सेन गुप्ता22 फरवरी 188523 जुलाई 1933
विनायक दामोदर सावरकर28 मई 188326 फरवरी 1966
बटुकेश्वर दत्त18 नवम्बर 191020 जुलाई 1965
दुर्गावती देवी7 अक्टूबर 190715 अक्टूबर 1999
रास बिहारी बोस25 मई 188621 जनवरी 1945
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी10 नवम्बर 18486 अगस्त 1925
पोट्टी श्रीराममल्लू16 मार्च 190115 दिसम्बर 1952
मतंगिनी हजरा19 अक्टूबर 187029 सितम्बर 1942
कमलादेवी चट्टोपाध्याय3 अप्रैल 190329 अक्टूबर 1988
नीलीसेन गुप्ता18861973
सुचेता कृपलानी25 जून  19081 दिसम्बर 1974
रानी चिन्म्मा23 अक्टूबर 17782 फरवरी 1829
तात्या टोपे1814 18 अप्रैल 1859 
गोपाल कृष्ण गोखले9 मई 1866 19 फरवरी 1915
राज गुरु24 अगस्त 190823 मार्च 1931

बहादुर शाह ज़फर

अधिकांश भारतीय विद्रोहियों ने बहादुर शाह ज़फर को भारत का राजा चुना और उनके अधीन वे एकजुट हो गए। अंग्रेजों की साजिश के सामने वो भी नहीं टिक पाए। उनके पतन से भारत में तीन सदी से ज्यादा पुराने मुगल शासन का अंत हो गया।

बख्त खान

ईस्ट इंडिया कंपनी में सूबेदार रहे बख्त खान ने रोहिल्ला सिपाहियों की एक सेना का निर्माण किया। मई 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ मेरठ में सिपाहियों के विद्रोह करने के बाद वो दिल्ली में सिपाही सेना का कमांडर बन गए।

सरोजनी नायडू

सरोजनी नायडू एक कवित्री और सामाजिक कार्यकर्ता थी। ये पहली महिला थी जो भारत व भारतीय नेशनल कांग्रेस की गवर्नर बनी। सरोजनी नायडू भारत के संबिधान के लिए बनी कमिटी की मेम्बर थी। बंगाल विभाजन के समय ये देश के मुख्य नेता जैसे महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरु के संपर्क में आई और फिर आजादी की लड़ाई में सहयोग देने लगी। ये पुरे भारत में घूम घूम कर लोगों को अपनी कविता और भाषण के माध्यम से स्वतंत्रता के बारे में बताती थी। देश की मुख्य महिला सरोजनी नायडू का जन्म दिवस अब महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भारत के स्वतंत्रता सेनानी: वीरता और समर्पण सरोजनी नायडू

जन्म13 फरवरी 1879
जन्म स्थानहैदराबाद
मृत्यु2 मार्च 1949

बिरसा मूंडे 

बिरसा मूंडे का जन्म 1875 को रांची में हुआ था। बिरसा मूंडे ने बहुत से कार्य किये, आज भी बिहार व झारखण्ड के लोग इन्हें भगवान की तरह पूजते है और उन्हें “धरती बाबा” कहते है। वे सामाजिक कार्यकर्त्ता थे जो समाज को सुधारने के लिए हमेशा कुछ ना कुछ करते रहते थे। 1894 में अकाल के दौरान बिरसा मूंडे ने अंगेजों से लगान माफ़ करने को कहा जब वो नहीं माने तो बिरसा मूंडे ने आन्दोलन छेड़ दिया। 9 जून 1900 महज 25 साल की उम्र में बिरसा मूंडे ने अंतिम साँसे ली।

जन्म15 नवम्बर 1875
जन्म स्थानरांची
मृत्यु9 जून 1900 रांची जेल

अशफाक़उल्ला खान

भारत देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अशफाक़उल्ला खान एक निर्भय, साहसी और प्रमुख स्वतंत्रता संग्रामी थे. वे उर्दू भाषा के कवी थे। काकोरी कांड में अशफाक़उल्ला खान का मुख्य चेहरा था। इनका जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश में हुआ था।

क्रन्तिकारी विचारधारा के अशफाक़उल्ला खान महात्मा गाँधी की सोच के बिल्कुल विपरीत कार्य करते थे। उनकी सोच थी की अंग्रेज से शांति से बात करना बेकार है उन्हें सिर्फ गोली और विस्फोट की आवाजें सुनाई देती है। तब राम प्रसाद बिस्मिल के साथ मिल कर इन्होंने काकोरी में ट्रेन लुटने की योजना बनाई। राम प्रसाद के साथ इनकी गहरी दोस्ती थी। 9 अगस्त 1925 को राम प्रसाद के साथ अशफाक़उल्ला खान और उनके 8 अन्य साथियों ने मिलकर ट्रेन में अंग्रेजो का खजाना लुटा था।

जन्म22 अक्टूबर 1900
जन्म स्थानउत्तर प्रदेश
मृत्यु19 दिसम्बर 1927 फरीदाबाद जेल

बहादुर शाह जफ़र

मुग़ल साम्राज्य का आखिरी शासक बहादुर शाह जफ़र का नाम भी स्वतंत्रता संग्रामी की सूचि में शामिल है. 1857 की लड़ाई में इन्होने मुख्य भूमिका निभाई थी। ब्रिटिशों की सेना ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ शाह जफ़र ने अपनी विशाल सेना खादी कर दी थी, और खुद अपनी सेना के सेनापति थे। उनके इस काम के लिए उन्हें विद्रोही कहा जाने लगा, तथा उन्हें बंगलादेश के रंगून में निर्वासित कर दिया गया था।

जन्म24 अक्टूबर 1775
जन्म स्थानदिल्ली
मृत्यु7 नवम्बर 1862 म्यांमार

डॉ राजेन्द्र प्रसाद

हम डॉ राजेन्द्र प्रसाद को देश के पहले राष्ट्रपति के रूप में जानते है, लेकिन देश को आजाद कराने के लिए वे हमेशा सभी देश वासियों के साथ खड़े रहे, स्वतंत्रता की लड़ाई में राजेंद्र प्रसाद का नाम भी सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ था। इन्हें हमारे देश के सविधान का वास्तुकार कहा जाता है। महात्मा गाँधी को अपना आदर्श मानने वाले राजेन्द्र प्रसाद कांग्रेस ज्वाइन कर बिहार से एक प्रमुख नेता बन गए। नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आन्दोलन में इन्होने मुख्य भूमिका निभाई थी, इसके लिए उन्हें कई बार जेल यातनाएं भी सहनी पड़ी थी।

जन्म3 दिसम्बर 1884
जन्म स्थानजिरादेई
मृत्यु28 फ़रवरी 1963 पटना

राम प्रसाद बिस्मिल

राम प्रसाद बिस्मिल स्वतंत्रता सेनानी थे, उनका नाम मैनपुरी व् काकोरी कांड में सबसे ज्यादा प्रख्यात है। ब्रिटिश शासन के वे सख्त खिलाफ थे, वे बहुत बड़े कवी भी थे, जो अपने मन की बात कविताओं के जरिये सब तक पहुंचाते थे। ये हिंदी उर्दू भाषा में लिखा करते थे। ‘सरफरोशी की तम्मना’ जैसी महान यादगार कविता इन्ही ने लिखी थी।

जन्म11 जून 1897
जन्म स्थानशाहजनापुर
मृत्यु19 दिसम्बर 1927 गोरखपुर जेल

सुखदेव थापर

सुखदेव देश के स्वतंत्रता संग्रामी में से एक थे, उन्होंने भगत सिंह व् राजगुरु के साथ दिल्ली की असेंबली में बम फोड़ा था, और अपने आप को गिरफ्तार करा दिया था. इसके पहले उनका नाम ब्रिटिश अफसर को गोली मारने के लिए भी सामने आया था. सुखदेव भगत सिंह के अच्छे मित्र भी थे, इन्हें भगत सिंह के साथ ही 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी. युवाओं के लिए ये आज भी एक प्रेरणा का स्त्रोत्र है.

जन्म15 मई 1907
जन्म स्थानलुधियाना
मृत्यु23 मार्च 1931 लाहौर जेल

शिवराम राजगुरु

शिवराम राजगुरु भगत सिंह के ही साथी थे, जिन्हें मुख्यतः ब्रिटिश राज के पुलिस अधिकारी को मारने के लिए जाना जाता है. ये हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में कार्यरत थे, जो भारत देश की आजादी के लिए अपने प्राण भी देने को तैयार थे. राजगुरु गाँधी जी की अहिंसावादी बातों के बिलकुल विरोश में थे, उनके हिसाब से अंग्रजो को मार मारकर अपने देश से निकलना चाहिए.

जन्म24 अगस्त 1908
जन्म स्थानपुणे
मृत्यु23 मार्च 1931 लाहौर जेल

दुर्गावती देवी (दुर्गा भाभी)

ब्रिटिश राज के खिलाफ ये महिला उस समय खड़ी रही जब देश में महिलाओं को घर से बाहर तक निकलने की इजाज़त नहीं थी. भगत सिंह जब ब्रिटिश ऑफिसर को मार कर भागते है, तब वे दुर्गावती के पास मदद के लिए जाते है. दुर्गावती भगत सिंह व् राजगुरु के साथ ही ट्रेन में सफ़र करती है, जहाँ दुर्गावती इन्हें ब्रिटिश पुलिस से बचाती है. दुर्गावती भगत सिंह की पत्नी बन जाती है, जिससे किसी को शक ना हो. इनके पति का नाम भगवतीचरण बोहरा था, जो भगत सिंह के साथ ही आजादी के लड़ाई में खड़े हुए थे. उनकी पार्टी के सभी लोग इन्हें दुर्गा भाभी कहा करते थे. दुर्गावती नौजवान भारत सभा की मेम्बर भी थी.

जन्म7 अक्टूबर 1907
जन्म स्थानबंगाल
मृत्यु15 अक्टूबर 1999 गाज़ियाबाद

गोपाल कृष्ण गोखले

भारत के स्वतंत्रता सैनानी की सूची में शामिल नाम की बात करें तो उनमें गोपाल कृष्ण गोखले का नाम कभी नहीं भूला जा सकता है. गोपाल कृष्ण गोखले पेशे से एक शिक्षक थे, जो बाद में कॉलेज के प्रिंसिपल भी बने. गोपाल कृष्ण जी अपनी बुद्धिमता के कारण जाने जाते थे. भारत को आजाद कराने में इन्होने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था. इसलिए इन्हें स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता है. इन्हें महात्मा गांधी जी अपना राजनितिक गुरु भी मानते थे वे उनके काफी स्नेह एवं उनका सम्मान करते थे. उनकी भारत के देश के प्रति कर्त्तव्य एवं देश भक्ति के कारण वे काफी प्रचलित हुए, और अल्पायु में ही उनकी मृत्यु हो गई.

जन्म9 मई, 1866
जन्मस्थानकोल्हापुर, मुंबई
मृत्यु19 फरवरी, 1915

मदन मोहन मालवीय

मदन मोहन मालवीय जी का नाम कौन नहीं जानता, ये भारत के पहले और आखिरी ऐसे व्यक्ति थे जिन्हेंमहामना की सम्मानजनक उपाधि मिली थी. पेशे से मदनमोहन मालवीय जी एक पत्रकार एवं वकील दोनों थे. ये अपनी मातृभूमि से बहुत प्रेम करते थे. मदनमोहन मालवीय जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 4 बार अध्यक्ष चुने गए थे. इन्होने ने ही बनारस में स्थित बनारस हिन्दू विश्वविध्यालय औपनिवेशक की स्थापना की. और यह भारत में शिक्षा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण केंद्र बन गया. भारत के स्वतंत्र होने में इनका भी बहुत बड़ा योगदान रहा था.

जन्म25 दिसंबर, 1861
जन्मस्थानइलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज)
मृत्यु12 नवंबर 1946

शहीद उधम सिंह

आपने सन 1919 में हुए जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के बारे में तो सुना ही होगा, उस हत्याकांड के चश्मदीद गवाह कम उम्र के वीर बहादुर शहीद उधम सिंह जी थे. जिन्होंने अपनी आँखों से उस हत्याकांड को देखा जिसमें हजारों लोगों की मृत्यु हुई थी. इस हत्याकांड का जिम्मेदार डायर ने जिस क्रूरता से यह हत्याकांड कराया था, उसे इन्होने अपनी आँखों से देखा और फिर उन्होंने संकल्प लिया कि ‘आज से उनके जीवन का केवल एक ही संकल्प है डायर की मृत्यु’. इसके बाद वे क्रांतिकारी दलों के साथ शामिल हुए और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी नेताओं की पद चिन्हों पर चलते हुए इन्होने अपना योगदान दिया और फिर अल्पायु में ही उनकी मृत्यु हो गई.  

जन्म26 दिसंबर, 1899
जन्मस्थानसुनम गांव, जिला संगरूर, पंजाब
मृत्यु31 जुलाई, 1940

मंगल पांडे

34वीं बंगाल नेटिव इंफैंट्री का हिस्सा रहे मंगल पांडे को 29 मार्च 1857 को बैरकपुर में एक वरिष्ठ अंग्रेज अधिकारी पर हमला करने के लिए जाना जाता है। इस घटना को ही भारत की स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत माना जाता है।

नाना साहिब 

निर्वासित मराठा पेशवा बाजी राव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहिब ने कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व किया था।

भीमराव अम्बेडकर

दलित परिवार में पैदा हुए भीमराव अम्बेडकर जी ने भारत से जाति सिस्टम ख़त्म करने के लिए बहुत कार्य किये. नीची जाति के होने की वजह से उनकी बुधिमियता को कोई नहीं मानता था. लेकिन इन्होंने फिर बुद्ध जाति अपना ली और दूसरी नीची जाती वालों को भी ऐसा करने को कहा, भीमराव अम्बेडकर जी ने हमेशा सबको समझाया की जाति धर्म मानवता से बढ़ कर नहीं होता है. हमें सबके साथ सामान व्यव्हार करना चाहिए. अपनी बुध्दी के बदौलत वे भारत सविधान कमिटी के चेयरमैन बन गए. जनतांत्रिक भारत के संविधान को डॉ भीमराव अम्बेडकर ने ही लिखा था.

जन्म14 अप्रैल 1891
जन्म स्थानमहू, मध्यप्रदेश
मृत्यु6 दिसम्बर 1956

लाल बहादुर शास्त्री

आजाद भारत के दुसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे. शास्त्री जी ने देश की आजादी के लिए भारत छोड़ो आन्दोलन,नामक सत्याग्रह आन्दोलन और असहयोग आन्दोलन में हिस्सा लिया था. ये देश के भारत के स्वतंत्रता सेनानी  थे. आजादी के समय उन्होंने 9 साल जेल में भी बिताये. आजादी के बाद वे home मिनिस्टर बन गए और फिर 1964 में दुसरे प्रधानमंत्री. 1965 में हुई भारत पाकिस्तान की लड़ाई में उन्होंने मोर्चा संभाला था. “जय जवान जय किसान” का नारा इन्होंने ही दिया था. 1966 में जब वे विदेश दौरे पर थे तब अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनकी म्रत्यु हो गई.

जन्म2 अक्टूबर 1904
जन्म स्थानउत्तर प्रदेश
मृत्यु1966

जवाहरलाल नेहरु

जवाहर लाल नेहरू

पंडित जवाहरलाल नेहरु को आज बच्चा बच्चा जनता है. ये भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे. इनके पिता मोती लाल नेहरु एक बैरिस्टर और नेता थे. 1912 में नेहरु जी विदेश से अपनी पढाई पूरी करने के बाद भारत में बैरिस्टर की तरह काम करने लगे. महात्मा गाँधी के संपर्क में आने के बाद वे आजादी की लड़ाई में कूद पड़े, और भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए.

आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरु देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने. आजादी की लड़ाई में वे महात्मा गाँधी के साथ मिल कर अंग्रेजों के खिलाफ खड़े रहे. बच्चों से उन्हें विशेष प्रेम था इसलिए आज भी हम उनके जन्म दिन को बाल दिवस के रूप में मनाते है. दिल्ली में उनका निधन हो गया.

जन्म14 नवम्बर 1889
जन्म स्थानइलाहाबाद
मृत्यु27 मई 1964

बाल गंगाधर तिलक

“स्वराज हमारा जन्म सिध्य अधिकार है और हम इसे लेकर ही रहेंगे.” पहली बार यह नारा बाल गंगाधर तिलक जी ने ही बोला था. बाल गंगाधर तिलक को “भारतीय अशांति के पिता” कहा जाता था. डेकन एजुकेशन सोसाइटी की इन्होंने स्थापना की थी, जहाँ भारतीय संस्कृति के बारे में पढ़ाया जाता था, साथ ही ये स्वदेशी काम से जुड़े रहे. बाल गंगाधर तिलक पुरे भारत में घूम घूम कर लोगों को आजादी की लड़ाई में साथ देने के लिए प्रेरित करते थे. इनकी अंतिम यात्रा में महात्मा गाँधी के साथ लगभग 20 हजार लोग शामिल हुए थे.

जन्म23 जुलाई 1856
जन्म स्थानमहाराष्ट्र के रत्नागिरी
मृत्यु1 अगस्त 1920

लाला लाजपत राय 

लाला लाजपत राय जी पंजाब केसरी नाम से प्रसिद्ध थे. भारतीय नेशनल कांग्रेस के लाला लाजपत राय बहुत प्रसिद्ध नेता और भारत के स्वतंत्रता सेनानी थे. लाला लाजपत राय लाल बाल पाल की तिकड़ी में शामिल थे. ये तीनों कांग्रेस के मुख्य और प्रसिद्ध नेता थे. 1914 में वे ब्रिटेन भारत की स्थिति बताने गए थे, लेकिन विश्व युद्ध होने की वजह से वे वहां से लौट ना सके. 1920 में जब वे भारत आये, तब जलियाँवाला हत्याकांड हुआ था, इसके विरुद्ध में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया था. एक आन्दोलन के दौरान अंगेजों के लाठी चार्ज से वे बुरी तरह घायल हुए जिसके पश्चात् उनकी म्रत्यु हो गई.

जन्म28 जनवरी 1865
जन्म स्थानपंजाब
मृत्यु17 नवम्बर 1928

चंद्रशेखर आजाद

चंद्रशेखर आजाद नाम की ही तरह आजाद थे, उन्होंने स्वतंत्रता की आग में घी डालने का काम किया था. उनका परिचय इस प्रकार था, चंद्रशेखर आजाद स्वतंत्रता की लड़ाई में युवाओं को आगे आने के लिए प्रेरित करते थे, उन्होंने युवा क्रांतिकारीयों की एक फ़ौज खड़ी कर दी थी. उनकी सोच थी की स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए हिंसा जरुरी है, इसलिए वे महात्मा गाँधी से अलग कार्य करते थे.

चंद्रशेखर आजाद का खौफ अंगेजों में बहुत था. इन्होंने काकोरी ट्रेन लूटने की योजना बनाई थी और इसे लुटा था. किसी ने इनकी खबर अंग्रेजों को दे दी, जिससे अंग्रेज इन्हें पकड़ने के लिए इनके पीछे पड़ गए. चंद्रशेखर आजाद किसी अंग्रेज के हाथों नहीं मरना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपने आप को गोली मार ली और शहीद हो गए.

नामआजाद
पिता का नामस्वाधीनता
पताजेल
मृत्यु27 फ़रवरी 1931

रानी लक्ष्मीबाई

रानी लक्ष्मीबाई तात्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेज सैनिकों के खिलाफ बहादुरी से लड़ीं। 17 जून 1858 को ग्वालियर के फूल बाग इलाके के पास अंग्रेजों से लड़ते हुए उन्होंने अपना जीवन न्यौछावर कर दिया।

खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी” -अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली लक्ष्मीबाई का जन्म एक महाराष्ट्रियन परिवार में 19 नवंबर 1828 में काशी (वाराणसी) उत्तर प्रदेश  में हुआ था।हुआ था तथा इनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ 1842 में हुआ था। भारतीय विद्रोह के समय उनके अमूल्य योगदान के लिए रानी बाई को याद किया जाता है दौरान उनकी वीरता के लिए याद किया जाता है. झांसी के किले की घेराबंदी के दौरान उन्होंने विरोधियों का सामना किया और आख़री सांस तक लड़ीं।

नामरानी लक्ष्मी बाई
पूरा नामझांसी की रानी लक्ष्मीबाई
अन्य नाममनु, मणिकर्णिका
जन्म19 नवम्बर 1828
जन्म स्थानकाशी (वाराणसी) उत्तर प्रदेश
पितामोरोपन्त ताम्बे
माताभागीरथी सापरे
विवाह1842
पति का नामगंगाधरराव नेवालकर (झाँसी के राजा)
लक्ष्मीबाई की मृत्यु17 -18 जून 1858 (आयु 29 वर्ष)
संतानआनद राव ,दामोदर राव

लक्ष्मीबाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था उन्हें मनु नाम से पुकारा जाता था। इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे तथ इनकी माता का नाम भागीरथी सापरे था। इनका पालन पोषण महाराष्ट्रियन परिवार में हुआ था। माँ की मिर्त्यु के बाद रानी लक्ष्मीबाई को उनके पिता अपने साथ उनकी देखभाल के लिए अपने साथ जहाँ वह काम करते थे बाजीराव द्वितीय के दरबार में ले जाने लगे थे वह रानी लक्ष्मीबाई को प्यार से लोग उनके चंचल स्वाभाव के करण “छबीली” नाम से पुकारा करते थे।

लक्ष्मीबाई ने बचपन से ही शास्त्रों के साथ साथ शस्त्र की भी शिक्षा ली थी जिसमे वह निपूर्ण थी। 1842 में रानी लक्ष्मीबाई का विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर के साथ हुआ कर इस प्रकार से और वे झाँसी की रानी बनीं।

मनु का नाम उनके विवाहउपरांत लक्ष्मीबाई रखा गया। विवाह के बाद लक्ष्मीबाई को एक संतान प्राप्ति हुयी परन्तु कुछ महीने बाद ही उस संतान की मृत्यु हो गयी थी। पति गंगाधर राव का स्वस्थ भी कुछ ठीक नहीं था जिस वजह से उन्होंने दत्तक पुत्र लेने की सोची और उसका नाम दामोदर राव रखा गया। गंगाधर राव की मिर्त्यु हो गयी और झाँसी की साडी जिम्मेदारियां रानी लक्ष्मीबाई के कन्धों पर आ गयी। उस समय भारत का गवर्नर डलहौजी हुआ करता था झाँसी पर डलहौजी की नजर थी।

रानी के पास 1 गोद लिया हुआ बेटा था. रानी लक्मीबाई ने राज्य हड़प नीति के तहत अंग्रेजो के सामने घुटने टेकने स्वीकार नहीं किया और झाँसी की रक्षा के लिए अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध जंग छेड़ दी 1858 में हुए विद्रोह में अंत में रानी लक्ष्मीबाई हार गई 1857 की क्रांति में रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी वीरता और साहस का परिचय दिया।

तात्या टोपे

नाना साहिब के करीबी सहयोगी और सेनापति तात्या टोपे ने रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी।

वीर कुंवर सिंह

वर्तमान में बिहार के भोजपुर जिले का हिस्सा रहे जगदीशपुर के राजा ने अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र सेना का नेतृत्व किया।

खुदीराम बोस

इनका जन्म बंगाल के मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में 3 दिसंबर, 1889 को हुआ था। इनकी माता का नाम लक्ष्मीप्रिया तथा पिता त्रैलोक्यनाथ बोस था। इनकी अल्पायु में ही इनके सर से इनके माता-पिता का शाया जा चुका था। खुदीराम अपनी अल्पायु से ही देश की आजादी के लिए आंदलनों में कूद पड़े। अपनी पढ़ाई छोड़ कर स्वदेशी आंदोलन में भाग लेने लगे। स्कूल छोड़ने के उपरान्त खुदीराम बॉस रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बने ।सन्न 1905 में बंगाल के विभाजन के विरोध में हुए आंदोलन में इनके द्वारा बढ़-चढ़कर भाग लिया गया।

नामखुदीराम बोस
जन्म3 दिसंबर 1889
जन्म स्थानमिदनापुर ,बंगाल
माता का नामलक्ष्मीप्रिया देवी
पितात्रैलोक्यनाथ
मिर्त्यु का कारणफांसी
मृत्यु11 अगस्त 1908
मृत्यु स्थानमुजफ्फरपुर बंगाल प्रेजिडेंसी (वर्तमान बिहार)

खुदी राम बॉस को छोटी सी आयु में ही फांसी की सजा दी गयी थी। खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी उम्र मात्र 18 साल 8 महीने थी। 11 अगस्त 1908 को उन्हें मुजफ्फरपुर जेल में फांसी की सजा मिली थी ,ये उन सभी भारतीय क्रांतिकारियों में स्वतंत्रता आंदोलन के समय सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी थे। खुदीराम बॉस के शहीद होने के उपरांत विद्यार्थियों और अन्य लोगों द्वारा शोक मनाया गया। उनकी याद में कई दिन तक स्कूल, कॉलेज बन्द रखे गए।

भगत सिंह

भगत सिंह को कौन नहीं जनता स्वतंत्रता सेनानियों में से एक स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह भी थे। भारत से अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए कई क्रन्तिकारी संगठनो के साथ जुड़े रहे और अपनी पूरी भागीदारी दी भारत में स्वतंत्रता के बीज बोन में इनका भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है विभिन्ग संगठनो में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले भगत सिंह जी को मात्र 23 वर्ष की आयु में फांसी की सजा सुना दी गयी थी।

नामभगत सिंह
जन्म 28 सितम्बर 1907 सिख परिवार में
जन्म स्थानबंगा, जिला लायलपुर, पंजाब (वर्तमान  पाकिस्तान)
माता का नाम विद्यावती कौर
पिता का नामसरदार किशन सिंह
आंदोलनभारतीय स्वतंत्रता संग्राम
संगठननौजवान भारत सभा ,हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन
फांसी23 मार्च 1931

भगत सिंह का जन्म पंजाब के लायलपुर ज़िले के बंगा गांव जो की वर्तमान में पकिस्तान में है 27 सितंबर, 1907 को किसान परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम विद्यावती था तथा पिता का नाम किशन सिंह था। भगत सिंह एक आर्य-समाजी सिख परिवार से थे और इनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां ( पंजाब, भारत )में है जब भगत सिंह का जन्म हुआ ही था उसी समय 1906 में लागू औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने के जुर्म में उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजित स्वरण सिंह को जेल की सजा हुयी थी। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्याधिक प्रभावित रहे।

भगत सिंह के मन में क्रांति की ज्वाला तब और तेज भड़की जब 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में नरसंहार हुआ था इस जलियावाला हत्याकांड का भगत सिंह के जीवन में गहरा प्रभाव पड़ा। बालक भगत सिंह ने इस घटना के बाद से मन ही मन अंग्रेजी हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए रणनीति बनानी शुरू की।

लाहौर के नेशनल कॉलेज़ से अपनी पढ़ाई को अधूरा छोड़कर भगत सिंह ने भारत को आजादी दिलाने के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की। 23 मार्च 1931 की वह काली शाम जब भगत सिंह को फांसी पर लटकाया गया था शायद ही कोई भुला होगा। लाहौर षड़यंत्र में दोषी पाए जाने वाले भगत सिंह, सुखदेव ,राजगुरू को फांसी की सज़ा दे दी गयी।

छोटी सी आयु में देश के लिए इतना समर्पण वाले युवा विरले ही मिलते हैं 23 मार्च 1931 की शाम जब तीनो को फांसी के फंदे पर लटकाया गया तो तीनो ने हंसते-हँसते अपने प्राण भारत माता की आज़ादी के लिए त्याग दिए।

“मरकर भी मेरे दिल से वतन की उल्फत नहीं निकलेगी, मेरी मिट्टी से भी वतन की ही खुशबू आएगी।” -”आज जो मै आगाज लिख रहा हूं, उसका अंजाम कल आएगा। मेरे खून का एक-एक कतरा कभी तो इंकलाब लाएगा।”- भगत सिंह

नेताजी सुभाष चंद्र बोस

“तुम मुझे खून दो में तुम आज़ादी दूंगा “इस नारे से सभी देश वासियों के मन में अपने देश की आजादी के लिए अलख जगाने का काम करने वाले सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सबसे जाने माने नेता थे उनका व्यक्तित्व अन्य सभी नेताओं से अधिक प्रभावित था। अंग्रेज़ों के खिलाफ सुभास चंद्र बोस ने आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया गया था।

नामनेताजी सुभाष चंद्र बोस
जन्म23 जनवरी 1897 बंगाली परिवार में
जन्म स्थानओडिशा कटक
माता का नामप्रभावती
पिता का नामजानकीनाथ बोस

भारत की आजादी के लिए सुभाष चंद्र द्वारा अपने स्तर पर विदेश में रहते हुए कई प्रयास किये गए। एक सेनापति के रूप में आज़ाद हिंद फौज में सुभाष बोस ने स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार थी जिसे विदेशी सरकारों द्वारा मान्यता भी प्राप्त हुयी थी। जर्मनी, इटली, जापान, चीन, सहित 11 देशो ने आजाद हिन्द फौज को मान्यता दी थी।

भारत के स्वतंत्रता सेनानी: वीरता और समर्पण नेताजी सुभाष चन्द्र बोस

नेता जी सुभाष चंद्र बोस का जन्म उड़ीसा में 23 जनवरी 1897 को हुआ। सन्न 1919 को अपनी आगे की शिक्षा के लिए सुभाष चंद्र बोस भारत से बाहर गए। उसी दौरान भारत में कुप्रख्यात घटना 1919 के जलियांवाला बाग़ हत्याकांड हुआ जिसका भारत ही नहीं विदेशों में रहने वाले क्रांतिकारियों के मन में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ ज्वाला भड़का दी। देश में इस घटना की घटित होने की सूचना पाकर सुभाष चंद्र बोस सन्न 1921 में भारत के लिए रवाना हुए भारत में आकर सुभाष जी ने भारतीय कांग्रेस को ज्वाइन किया।

सुभाष जी और महात्मा गाँधी जी के विचारों में कभी एकरूपता नहीं दिखी। महात्मा गाँधी जी अहिंसावादी थे हिंसा का मार्ग अनुचित समझते थे। सुभाष जी द्वारा जर्मनी में INA इंडियन नेशनल आर्मी (INA) संगठित की गयी थी। किन्तु दूसरे विश्व युद्ध (1939 -1945) के समय जापान द्वारा समर्पण कर लेने की वजह से नेताजी को वहां से भागना पड़ा जापान इंडियन नेशनल आर्मी (INA) की सहायता कर रहा था। सुभाष चंद्र बोस 17 अगस्त 1945 को प्लेन क्रेश में मारे गए किन्तु अभी तक यह घटना जिसमे सुभाष चंद्र जी की मृत्यु हुयी एक रहस्य बनी हुयी है।

लाला लाजपत राय 

भारतीय नेशनल कांग्रेस के जाने माने नेता लाला लाजपत राय जिन्हे पंजाब केसरी नाम से भी सम्बोधित किया जाता है एक सुलझे हुए नेता थे भारत की स्वतंत्रता के लिए हर संभव प्रयास इनके द्वारा किये गए। ये भारतीय कांग्रेस के प्रसिद्ध नेताओं में से एक थे। इनके द्वारा PNB बैंक जिसे पंजाब नेशनल बैंक कहा जाता है तथा लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना की गयी थी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गर्म दल के नेताओं में एक लाला लाजपत गए थे गर्म दल के नेताओं की बात की जाये तो इनमे इनके अलावा बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल हैं। तीनो ही नेताओं को सम्मिलित रूप से लाल-बाल-पाल से जाना जाता है।

जन्म28 जनवरी 1865
जन्म स्थानपंजाब
मृत्यु17 नवम्बर 1928
मृत्यु स्थानलाहौर (वर्तमान पाकिस्तान)

लाला लाजपत राय जी का जन्म पंजाब के मोगा में 28 जनवरी 1865 में हुआ था पंजाब केसरी नाम से जाने जाने वाले लाला लाजपत राय ने समय इनके द्वारा हरियाणा के हिसार और रोहतक में वकालत का काम किया। भारत की स्वतंत्रता के लिए लाला लाजपत राय सहित बल गंगाधर और विपिन चंद्र पाल द्वारा सर्वप्रथम भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए मांग उठायी गयी थी।

लाला जी द्वारा 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन कार्यक्रम के विरुद्ध आयोजित एक विशाल प्रदर्शन में हिस्सा लिया गया था इसी प्रदर्शन के दौरान वहां लाठी-चार्ज किया गया इस लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय बुरी तरीके से घायल हो गए इसी लाठी -चार्ज मरे लाला जी द्वारा यह कहा गया था: “मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।”


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