अलाउद्दीन खिलजी को “सुल्तान-ए-आजम” कहा जाता था, जो उनके अद्वितीय शासन और शक्ति को दर्शाता है। अलाउद्दीन खिलजी ने 1296 से 1316 तक दिल्ली सल्तनत पर शासन किया और अपने समय में सबसे प्रभावशाली सुल्तानों में से एक के रूप में जाना जाता था। उनकी सैन्य शक्ति, प्रशासनिक सुधार और आर्थिक नीतियाँ उनकी प्रमुखता को और भी अधिक बल देती हैं। अलाउद्दीन खिलजी का साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर उत्तर-मध्य भारत तक फैला हुआ था। इतना बड़ा भारतीय साम्राज्य अगले तीन सौ सालों तक कोई भी शासक स्थापित नहीं कर पाया।
अलाउद्दीन खिलजी, खिलजी वंश का दूसरा शासक था। इसके बचपन का नाम अली गुरुश्याप था। अलाउद्दीन खिलजी की देवगिरी विजय से खुश होकर उसके चाचा सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी उससे मिलने कड़ा पहुँचते हैं, जहाँ अलाउद्दीन खिलजी धोखे से अपने चाचा जलालुद्दीन फिरोज शाह ख़िलजी की हत्या करके उनकी राजगद्दी अपने नाम कर लिया। अलाउद्दीन खिलजी सुल्तान बनने के बाद खिलजी वंश की विरासत को आगे बढ़ाते हुए, सम्पूर्ण भारत वर्ष में अपना साम्राज्य फैलाया। वह अपने आप को दूसरा अलेक्जेंडर कहता था। उसे सिकन्दर-ए-सनी का ख़िताब दिया गया था। खिलजी ने अपने राज्य में शराब की खुले आम बिक्री बंद करवा दी थी।
अलाउद्दीन खिलजी दक्षिण भारत में अपना साम्राज्य फ़ैलाने और जीत हासिल करने वाला पहला मुस्लिम शासक था। अलाउद्दीन खिलजी दक्षिण के राज्यों को एक-एक करके जीतता चला गया, जिससे धीरे-धीरे दक्षिण भारत में अलाउद्दीन खिलजी का प्रभाव बढ़ने लगा, और उनके साम्राज्य का विस्तार बढ़ता चला गया। अलाउद्दीन खिलजी की जीत की एक वजह यह भी थी कि उसके पास अत्यंत ही भरोसेमंद और वफादार सिपाही थे। उसके समय में उत्तर पूर्व से मंगोल आक्रमण भी हुए, जिसका उसने डटकर मुकाबला किया।
अलाउद्दीन खिलजी की बढ़ती ताकत के साथ, उसके वफादारों की संख्या भी बढ़ती चली गई। अलाउद्दीन खिलजी के साम्राज्य में उसके सबसे अधिक वफादार उसके तीन सेनापति जफर खान , उलूग खान और गुलाम जनरल मलिक काफूर था। मलिक काफूर को हजार दिनारी भी कहा जाता था, क्योकि अलाउद्दीन खिलजी ने इसे हजार दीनार में ख़रीदा था। दक्षिण भारत में अलाउद्दीन खिलजी का बहुत आतंक था, वहां के राज्यों में ये लूट मचाया करते थे, और वहां के जो शासक इनसे हार जाते थे, उनसे खिलजी वार्षिक कर लिया करता था।
अलाउद्दीन खिलजी का संक्षिप्त परिचय
दिल्ली सल्तनत का 13वाँ सुल्तान- अलाउद्दीन खिलजी | |
---|---|
शासन | 19 जुलाई 1296 ई. – 4 जनवरी 1316 ई. (19 जुलाई 1296 को अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या के बाद खुद को सुल्तान घोषित कर देता है।) |
राज्यारोहण | 21 अक्टूबर 1296 ई. (दिल्ली में) |
बचपन का नाम | अली गुरुश्याप |
अन्य नाम | जुना मुहम्मद खिलजी, जुना खां |
पूर्ववर्ती | जलालुद्दीन फ़िरोज़ खिलजी |
उत्तराधिकारी | शिहाबुद्दीन उमर |
जन्म एवं जन्म स्थान | 1266-67 ई. लक्नौथी (बंगाल) |
मृत्यु | 4 जनवरी 1316 (उम्र 49-50), दिल्ली, भारत |
समाधि | अलाउद्दीन खिलजी का मदरसा और मकबरा, दिल्ली |
जीवन साथी | 1. मलिका-ए-जहाँ (जलालुद्दीन की बेटी) 2. महरू (अल्प खान की बहन) 3. झट्यपाली ( रामचंद्र की पुत्री ) 4. कमला देवी (वाघेला राजपूत कर्ण की पूर्व पत्नी) 5. विमलादेवी (बैसला गुर्जर, रामलाल बैसला की पूर्व पत्नी) |
संतान | 1. ख़िज्र खान 2. शादी खान 3. कुतुबुद्दीन मुबारक शाह 4. शिहाबुद्दीन उमर 5. फरीद खान 6. अबू बक्र खान 7. बहाउद्दीन खान 8. अली खान 9. उस्मान खान |
वंश | खिलजी वंश |
पिता | शिहाबुद्दीन मसूद (जलालुद्दीन खिलजी का भाई) |
धर्म | सुन्नी इस्लाम |
अलाउद्दीन खिलजी का प्रारंभिक जीवन और राज्यारोहण
अलाउद्दीन खिलजी का जन्म 1266-67 ई. में बंगाल के बीरभूम जिले में हुआ था, उसका नाम जुना मोहम्मद खिलजी रखा गया। परन्तु बाद में बदलकर अली गुरुश्याप रख दिया गया। इस प्रकार इसके बचपन का नाम अली गुरुश्याप था।
अलाउद्दीन खिलजी के पिता शाहिबुद्दीन मसूद थे, जो खिलजी राजवंश के पहले सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी के भाई थे। सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने अपने भाई और अलाउद्दीन के पिता शाहिबुद्दीन मसूद खिलजी की अकाल मृत्यु हो जाने के बाद उसके पुत्र अलाउद्दीन को अपने पुत्र की तरह पाला।
अलाउद्दीन खिलजी अपने चाचा जलालुद्दीन फिरोज शाह ख़िलजी की पुत्री से विवाह कर लेता है। इस प्रकार वह उसका दामाद बन जाता है और फिर वह अपने चाचा जलालुद्दीन फिरोज शाह ख़िलजी का भरोसा जीतने में लग जाता है। इसके लिए वह राज्य के सभी कार्यों में अपने अपने चाचा जलालुद्दीन फिरोज शाह ख़िलजी की हर तरह से मदद करने लगा और उसका भरोसा जीतने में कामयाब रहा। इसी भरोसे के तहत जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने अलाउद्दीन को देवगिरी में युद्ध के लिए भेजा।
अलाउद्दीन खिलजी ने भरोसे पर खरा उतरते हुए देवगिरी पर विजय प्राप्त कर लिया। जलालुद्दीन खिलजी के लिए देवगिरी पर विजय प्राप्त कर पाना बहुत मुश्किल साबित हो पा रहा था। परन्तु अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरी पर विजय प्राप्त कर के अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी के बहुत पहले से चले आ रहे सपने को साकार कर दिया। देवगीरि की लूट से अपार सम्पत्ति मिली जिसमें 50 मन सोना, 7 मन हीरे-मोती और अन्य लूट का माल कई हजार घोड़ों और 40 हाथियों पर लाद कर लाया गया।
जब इसकी सूचना उसके चाचा जलालुद्दीन खिलजी को मिली तो वह ख़ुशी से झूम उठा और खुद को अलाउद्दीन खिलजी से मिलने से रोक न सका। सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी को उसके विश्वासपात्रों ने अलाउद्दीन से मिलने के लिए रोका परन्तु जलालुद्दीन को अपने भतीजे पर पूरा भरोसा था, और वह अलाउद्दीन खिलजी को बधाई देने स्वयं कड़ा की ओर निकल पड़ा। कड़ा पहुंचकर और जैसे ही वह अलाउद्दीन खिलजी से गले मिला उसी समय 19 जुलाई 1296 ई. को अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की धोखे से हत्या कर दिया और खुद को सुल्तान घोषित कर दिया।
परन्तु कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है की रास्ते में गंगा नदी के तट पर जब सुल्तान जलालुद्दीन फिरोज शाह खिलजी अलाउद्दीन खिलजी के गले मिल रहा था तो उस समय पूर्व योजना के आधार पर मुहम्मद सलीम ने उसकी हत्या कर दी। इस प्रकार अलाउद्दीन खिलजी 19 जुलाई 1296 ई. को अपने चाचा की हत्या करवा कर सुल्तान बना।
अलाउद्दीन खिलजी ने बाद में जलालुद्दीन के पुत्रों की भी हत्या करा दिया, और दिल्ली आकर 21 अक्टूबर 1296 को अपना राजतिलक कराया।
अलाउद्दीन खिलजी का साम्राज्य विस्तार
अलाउद्दीन महान साम्राज्यवादी था, इतिहासकार मानते है कि इसके साथ भारत में साम्राज्यवाद का प्रारम्भ होता है, जो आधी शताब्दी तक चलता रहा ।उत्तर भारत के राज्यों के प्रति उसकी नीति राज्य विस्तार की थी। जबकि दक्षिण भारत में वह राज्यों से अपनी अधीनता स्वीकार करवाकर और वार्षिक कर लेकर ही संतुष्ट था। प्रथम अभियान में उसने अपने भाई उलूग खां और वजीर नुसरत खां के नेतृत्व मे गुजरात के हिंदू राजा कर्णदेव पर हमला किया। सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया तथा अन्हिलवाड़ा से बड़ी मात्रा में सम्पत्ति लूटकर लाई गई।
अलाउद्दीन की प्रारम्भिक इच्छा नवीन धर्म चलाने की तथा विश्वविजेता बनने की थी। इसी के तहत उसने सिकन्दर द्वितीय की उपाधि धारण की। किन्तु काली अलौल्मुल्क के परामर्श से उसने इन दोनों योजनाओं को त्याग दिया। अलाउद्दीन के उत्तर भारत के विजय अभियान में गुजरात, रणथम्भौर, चित्तोड़, मालवा, धार, चंदेरी, सिवाना, जालौर मुख्य क्षेत्र थे।
अलाउद्दीन दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था, जिसने दक्षिण भारत में विजय पताका फहराई। अलाउद्दीन के दक्षिण भारतीय अभियान का नेतृत्व उसके सेनापति मलिक काफूर ने किया था। उसने 1307 ई में सर्वप्रथम देवगिरी पर आक्रमण कर वहां के शासक रामचन्द्र देव को पराजित किया।
उसके बाद मालिक काफूर ने तेलंगाना क्षेत्र में वहां के शासक प्रताप रुद्रदेव द्वितीय को पराजित किया। रुद्रदेव द्वितीय ने मलिक काफूर को विश्व प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भेंट किया, जिसे मलिक काफूर ने अलाउद्दीन को भेट कर दिया।
मलिक काफूर ने अपने दक्षिण भारत अभियान में देवगिरी, वारंगल, द्वारसमुद्र, मालाबार, मदुरै आदि राज्यों पर विजय प्राप्त किया यह पहला अवसर था जब मुस्लिमों की सेना दक्षिण में मदुरै तक पहुच गई और साथ में मन्दिरों से लुटी गई अकूत सम्पति लेकर लौटी। इस अभियान की सफलता के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने मलिक काफूर को अपने साम्राज्य का मलिक नायब नियुक्त कर दिया।
अलाउद्दीन दिल्ली सल्तनत का प्रथम सम्राट था जिसने धर्म को राजनीति से पृथक किया। उसने धार्मिक वर्ग को शासन में हस्तक्षेप नहीं करने दिया। उसने खलीफा से अपने सुलतान के पद की स्वीकृति लेने की आवश्कता नही समझी। इस प्रकार अपने शासन में न तो इस्लाम के सिद्धांतों का सहारा लिया, न ही उलेमा वर्ग की सलाह ली। वह निरंकुश राजतन्त्र में विश्वास रखता था।
अलाउद्दीन खिलजी का शासन काल मंगोलों के भयानक आक्रमण के लिए विख्यात है, मंगोलो से निपटने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने बलबन की लौह एवं रक्त की नीति अपनाई। अलाउद्दीन खिलजी के समय सन 1306 ई. में रावी नदी दिल्ली सल्तनत एवं मंगोलों के बीच की सीमा थी।
अलाउद्दीन खिलजी के समय के विद्रोह और उसके नियंत्रण
हालाँकि अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा सभी विद्रोहों का दमन कर दिया गया, किन्तु इन विद्रोहों ने अलाउद्दीन को चिंतित कर दिया और उसने निष्कर्ष निकाला कि विद्रोहों को रोकने के लिए साम्राज्य की वास्तविक स्थिति और गतिविधियों पर नजर रखना, अमीरों के धन में कमी करना और उनका परस्पर मेलजोल रोकना आवश्यक हैं।
इसी क्रम में उसने बांटा हुआ धन छीन लिया, मिल्क और वक्फ संपतियां जब्त कर ली, शराब और महफिलों पर रोक लगा दी, तथा अमीरों के परस्पर वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए सुलतान की पूर्व अनुमति लेना आवश्यक कर दिया। यही नही उसने विद्रोहियों के साथ साथ उनके परिवार वालों को भी दण्डित किया। इसी क्रम में नवीन मुसलमानों के परिवार को भी उसने दण्डित किया। उसने एक सशक्त गुप्तचर प्रणाली का गठन किया, इसके अतिरिक्त मुन्ही या मुन्हीयन नामक सूचनादाता भी थे। इन उपायों से विद्रोहों पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित हुआ।
अलाउद्दीन खिलजी की राजस्व कर एवं बाजार व्यवस्था
अलाउद्दीन खिलजी का उद्देश्य सल्तनत का आंतरिक पुनर्गठन था, जिसके अंतर्गत बिचौलियों का दमन करके गाँवों से सीधा सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास किया गया। उसने भूमि की उत्पादकता के आधार पर कर निर्धारित किये तथा भूमि को बिस्वा में मापने की प्रथा शुरू की। राज्य को उत्पादन या बिस्वा का आधा हिस्सा मिलता था। इसे खिराज कहा जाता था।
गृहकर घारी तथा चारागाह पर चरी लागू किये थे। राजस्व एकत्रित करने के लिए मुस्तखराज नामक अधिकारी की नियुक्ति की गई। अलाउद्दीन ने बाजार में सभी आवश्यक वस्तुओं के दाम निर्धारित कर दिए थे। किसी भी प्रकार की बेईमानी करने वालों को कड़ा दंड मिलता था। बाजार सुधारों के तहत अलाउद्दीन ने चार बाजार स्थापित किये थे।
- सामान्य बाजार।
- अनाज मंडी।
- वस्त्र चीनी जडीबुटी सूखे मेवे घी आदि का बाजार जिसे सराय ए अदल भी कहा जाता था।
- दास मवेशियों और घोड़ो का बाजार।
कीमतें स्थिर रखने हेतु आपूर्ति की निरन्तरता पर बल दिया जाता था। सभी व्यापारियों को शहना ए मंडी के दफ्तर में अपने को पंजीकृत करना पड़ता था। केवल पंजीकृत व्यापारी ही किसानों से गल्ला खरीद सकते थे। कोई भी व्यापारी अधिक कीमत न ले पाए इसके लिए गुप्तचर नियुक्त किये थे। इन उपायों से दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों में लम्बे समय तक कीमतें स्थिर रही।
अलाउद्दीन का बाजार नियंत्रण
- विभिन्न आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों को नियंत्रित करने तथा लोगों को बिना किसी असुविधा के इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए अलाउद्दीन ने कई आर्थिक सुधारों की घोषणा की।
- उसने वस्तुओं के मूल्य ‘उत्पादन लागत’ के सिद्धांत पर आधारित किए। अलाउद्दीन एक महत्वाकांक्षी शासक था। उसकी आकांक्षाओं में अपने राज्य का विस्तार और मंगोलो का मुकाबला करना प्रमुख था।
- इन दोनों ही आकांक्षाओं की पूर्ति हेतु एक विशाल स्थायी सेना की आवश्यकता तो थी ही। इनती बड़ी सैनिक शक्ति के बोझ को इस प्रकार कायम रखना कि राज्य के साधनों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े, निश्चय ही एक कठिन कार्य था। यह तभी सम्भव था जब सैनिक व्यय कम किया जाता।
- इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उसने दैनिक जीवन की उपयोगी वस्तुओं का मूल्य इतना कम कर दिया कि निम्न वेतनभोगी सैनिक भी अपना जीवन-यापन आराम से कर सके। अलाउद्दीन ने अनाज, कपड़ा तथा अन्य वस्तुओं का मूल्य साधारण बाजार की दर से बहुत कम निश्चित किया।
- उसने खालसा गांवों से भू-राजस्व वस्तु के रूप में प्राप्त किया तथा अनाजों को सरकारी भंडारगृह में एकत्रित किया। इन भंडारों से संकटकालीन परिस्थितियों में लोगों को निम्न दर पर अनाज की आपूर्ति की जाती थी। किसानों से अनाज खरीदने के लिए सरकारी परमिट की व्यवस्था की गई। कोई आम व्यक्ति किसान से अनाज नहीं खरीद सकता था।
- दिल्ली के सभी व्यापारियों को शहाने-मण्डी नामक पदाधिकारी के दफ्तर में अपने नाम लिखाने पड़ते थे। जिन व्यापारियों के पास अपनी पर्याप्त पूंजी नहीं थी। उन्हें राज्य की ओर से अग्रिम धन दिया जाता था। इन व्यापारियों को निश्चित दर पर क्रय-विक्रय करना होता था तथा नियम से विचलित होने की अनुमति नहीं थी। यदि कोई व्यापारी इन नियमों का उल्लंघन करता था तो जितना सौदा वह तौल में कम देता था उतना मांस उसके शरीर से काट लिया जाता था।
- व्यापारियों को अनाज या अन्य वस्तुएं जमा करके रखने का अधिकार नहीं था, बल्कि मांग के अनुसार उन्हें वे वस्तुएं बेचनी पड़ती थीं। प्रमुख व्यक्तियों, अमीरों, पदाधिकारियों तथा अन्य धनी पदाधिकारियों को बाजार से बहुमूल्य वस्तुएं खरीदने से पहले शहाने-मण्डी के दफ्तर से अनुमति लेनी पड़ती थी।
- इन नियमों का कठोरतापूर्वक पालन करवाने हेतु दीवान-ए-रियासत एवं शहाने-मण्डी के अधीनस्थ कई कर्मचारी होते थे तथा अद्ल नामक एक न्यायाधीश भी होता था।
- अलाउद्दीन खिलजी की मूल्य एवं बाजार नियंत्रण की नीति काफी सफल हुई लेकिन इसका विस्तार दिल्ली एवं इसके निकटवर्ती क्षेत्रों तक ही विशेष रूप से रहा। सम्पूर्ण देश में इन नियमों को लागू करना कठिन था, लेकिन अलाउद्दीन को इस बात का श्रेय मिलता है कि उसने विपरीत परिस्थितियों में समस्या को हल करने का प्रयत्न किया।
- अलाउद्दीन मुद्रास्फीति तथा मूल्य वृद्धि के दुष्चक्र से राज्य की अर्थव्यवस्था की सुरक्षा करने में सफल रहा। उसने मुद्रा-प्रसार को रोकने तथा रहन-सहन के खर्च को कम करने में भी सफलता प्राप्त की।
अलाउद्दीन के बाजार नियंत्रण अधिकारी
- शहना-ए-मण्डी – बाजार अधीक्षक
- दीवान-ए-रियासत – बाजार नियंत्रणक
- सराय अद्ल – न्याय अधिकारी
- बरीद-ए-मंडी – बाजार निरीक्षक
- मन्हैयान – गुप्तचर
अलाउद्दीन खिलजी की सैन्य व्यवस्था
अलाउद्दीन ने एक विशाल शक्तिशाली स्थायी केन्द्रीय सेना रखी। उसने सेना को मंगोल पद्धति से संगठित किया। यही विशाल संगठित सेना उनकी विजयों का आधार बनी।
सर्वप्रथम अलाउद्दीन ने सैनिकों को नकद वेतन दिए जाने की शुरुआत की थी। पहली बार घोड़ो को दागने की प्रथा तथा सैनिकों के लिए हुलिया (सैनिको का ड्रेस कोड) प्रणाली की शुरुआत की।
सैनिक सुधार
- सल्तनत काल में स्थायी सेना रखने वाला पहला सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ही था।
- राजस्व संबंधी सिद्धांतों को कार्यान्वित करने, विजय को सुनिश्चित करने तथा मंगोल आक्रमणों से सुरक्षा के लिए स्थायी सेना का प्रबंधन आवश्यक था। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए उसने सैनिक सुधार की ओर ध्यान दिया।
- उसने स्थायी सेना का प्रबंध किया तथा उसे राजधानी में रखा। इस समय सैनिकों की नियुक्ति प्रत्यक्षतः केंद्रीय सैन्य अधिकारी की निगरानी में में होती थी।
- सैनिकों को नकद वेतन दिया जाता था। सामान्यतः, एक सैनिक का वेतन 234 टंका था, जबकि एक अतिरिक्त घोड़ा रखने वाले सैनिक को 78 टंका अधिक दिया जाता था।
- अलाउद्दीन ने सैनिकों का हुलिया रखने तथा घोड़ों को दागने की प्रथा शुरू की। फरिश्ता के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी की अश्वारोही सेना में 4,75,000 अश्वारोही थे। सेना के संगठन, रूपसज्जा तथा अनुशासन पर अलाउद्दीन स्वयं निगरानी रखता था।
अलाउद्दीन खिलजी का राजनैतिक अभियान
उत्तर भारत की विजय
गुजरात पर आक्रमण (1298-99 ई.)
- गुजरात का राज्य उपजाऊ भूमि एवं व्यापार के कारण समृद्ध था। अलाउद्दीन के समय यहां का शासक रायकर्ण था। इस राज्य पर आक्रमण के लिए अलाउद्दीन ने दो दिशाओं से सेना भेजी। उलूग खां को सिंध की ओर से तथा नुसरत खां को राजपूताना के मार्ग से भेजा।
- गुजरात का शासक रायकर्ण इस आक्रमण का सामना नहीं कर सका और वह दक्षिण की ओर भाग गया। रायकर्ण ने देवगिरि के शासक रामचंद्र देव के यहां शरण ली।
- सुल्तान की सेना ने गुजरात विजय के बाद सूरत सहित कई नगरों व सोमनाथ मंदिर को लूटा। इसी राज्य के खंभात बंदरगाह पर आक्रमण के समय एक हिंदू किन्नर (हिजड़ा) मलिक काफूर को नुसरत खां ने खरीदा जो बाद में अलाउद्दीन के दक्षिण अभियानों का प्रमुख सेनापति बना।
- मलिक काफूर को ‘हजार दीनारी’ भी कहा जाता है।
रणथंभौर पर आक्रमण (1301 ई.)
- रणथंभौर राजपूताना का सबसे शक्तिशाली राज्य माना जाता था। यह पहले दिल्ली राज्य का अंग रहा चुका था।
- अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय यहां का शासक हम्मीरदेव था।
- सुल्तान ने रणथंभौर पर आक्रमण के लिए उलूग खां एवं नुसरत खां को भेजा।
- माना जाता है कि यहां लगभग एक साल तक सुल्तान की सेना को कोई सफलता नहीं मिली।
- अंत में 1301 ई. में हम्मीरदेव का प्रधानमंत्री रणमल सुल्तान से जा मिला। राणा हम्मीरदेव युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ। सुल्तान की तरफ से नुसरल खां इस युद्ध में मारा गया।
- ‘हम्मीर रासो’ के अनुसार, हम्मीर की रानी रंग देवी के साथ अनेक राजपूत महिलाओं ने जौहर (आग में कूदकर आत्मदाह किया) कर लिया।
चित्तौड़ की विजय (1303 ई.)
- रणथंभौर के पश्चात 1303 ई. में अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। ऐसा माना जाता है कि चित्तौड़ की रानी पद्मिनी की सुंदरता से प्रभावित होकर अलाउद्दीन ने चित्तौड़ आक्रमण की योजना बनाई।
- मलिक मुहम्मद जायसी ने अपनी रचना ‘पद्मावत’ में इसका उल्लेख किया।
- इस अभियान में अमीर खुसरो अलाउद्दीन के साथ था।
- इस समय चित्तौड़ का शासक राणा रतन सिंह था।
- इसी अभियान के दौरान मंगोल तारगी बेग ने दिल्ली में सुल्तान की अनुपस्थिति का लाभ उठाकर चढ़ाई कर दी, परंतु अलाउद्दीन ने चित्तौड़ की घेरेबंदी नहीं तोड़ी।
- चित्तौड़ के राणा रतन सिंह ने घेरेबंदी के सात माह बाद आत्मसमर्पण कर दिया। अलाउद्दीन ने अपने बेटे खिज्र खां को चित्तौड़ विजय के बाद यहां का शासक नियुक्त किया और चित्तौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया गया।
- अलाउद्दीन खिलजी की सेना को 1303 में काकतीय शासकों की सेना ने वारंगल में परास्त किया था।
मालवा की विजय (1305 ई.)
- चित्तौड़ की विजय के बाद राजपूतों की रियासतों ने अलाउद्दीन की अधीनता स्वीकार करना प्रारंभ कर दिया। उसमें मालवा के राजा महलकदेव ने अधीनता स्वीकार नहीं की।
- अलाउद्दीन ने प्रतिक्रियास्वरूप मुल्तान के सूबेदार आइन-उल-मुल्क को मालवा पर आक्रमण के लिए 1305 ई. में भेजा, जहां उसे प्रारंभ में कठिन प्रतिरोध झेलना पड़ा, किंतु अंत में आइन-उल-मुल्क का किले पर अधिकार हो गया। तत्पश्चात् उज्जैन, मांडू, धार, चंदेरी तथा जालौर पर भी सुल्तान का अधिकार हो गया।
मारवाड़ की विजय (1308 ई.)
- सुलतान ने 1308 ई. में मारवाड़ को जीतने का प्रयास किया।
- मारवाड़ के परमार राजपूत शासक शीतलदेव ने कड़ा संघर्ष किया, अंततः वह मारा गया। कमालुद्दीन गुर्ग को सेवान (मारवाड़) का शासक नियुक्त किया गया।
जालौर की विजय (1311 ई.)
- जालौर का शासक कर्णदेव परास्त हुआ।
- जालौर की विजय ने अलाउद्दीन खिलजी की राजस्थान की विजय को पूर्ण कर दिया।
दक्षिण भारत की विजय
- उत्तर भारत के विपरीत यहां अप्रत्यक्ष शासन, क्योंकि प्रत्यक्ष साम्राज्य विस्तार से साम्राज्य का स्थायित्व प्रभावित होता।
- मध्य युग का पहला शासक जिसने विंध्य पार किया। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उसका मुख्य उद्देश्य दक्षिण की अथाह संपदा को हासिल करना था।
- दक्षिण भारत के अभियानों का नेतृत्व मलिक काफूर ने किया।
- दक्षिण अभियान की विस्तृत जानकारी बरनी कृत ‘तारीख-ए-फिरोजशाही’ तथा अमीर खुसरो की रचना ‘खजायन-उल-फुतूह’ एवं इसामी की रचना ‘फुतूह-उस-सलातीन’ से मिलती है।
देवगिरी का आक्रमण (1307 से 08 ई.)
- अलाउद्दीन ने सुल्तान बनने से पहले भी 1296 ई. में देवगिरि के राजा रामचंद्र देव को पराजित किया था, बाद में रामचंद्र ने सुल्तान को कर देना बंद कर दिया। साथ ही उसने गुजरात के शासक रायकर्ण को शरण दी थी।प्रतिक्रिया स्वरूप अलाउद्दीन ने 1307-08 ई. में मलिक काफूर को देवगिरि पर आक्रमण के लिए भेजा। मलिक काफूर ने रामचंद्र देव को पराजित कर दिल्ली भेज दिया।
- अलाउद्दीन ने राजा के साथ अच्छा व्यवहार किया और उसे ‘राय रायन’ की उपाधि दी, साथ ही उसका राज्य वापस कर दिया। इस व्यवहार से रामचंद्र इतना प्रभावित हुआ कि उसने फिर कभी भी सुल्तान के विरूद्ध विद्रोह नहीं किया।
तेलंगाना (वारंगल) की विजय (1309-10 ई.)
- 1303 ई. में वारंगल के असफल अभियान के कलंक को धोने के लिए अलाउद्दीन ने 1309-10 ई. के बीच मलिक काफूर ने नेतृत्व में एक सेना भेजी। इस युद्ध अभियान में मलिक काफूर को देवगिरि के राजा रामचंद्र देव की सहायता भी प्राप्त हुई।
- मलिक काफूर और वारंगल के शासक प्रताप रूद्रदेव के बीच लड़े गए युद्ध में जल्द ही प्रताप रूद्रदेव ने समर्पण कर दिया। सुल्तान की अधीनता स्वीकार कर उसने भी वार्षिक कर देना स्वीकार किया।
- तेलंगाना के काकतीय वंश के शासक प्रताप रूद्रदेव ने अपनी सोने की मूर्ति बनवाकर ओर उसके गले में सोने की जंजीर डालकर आत्मसमर्पण हेतु मलिक काफूर के पास भेजा। इसी अवसर पर प्रताप रूद्रदेव ने मलिक काफूर को प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा दिया था।
पांड्य राज्य की विजय (1311 ई.)
- पांड्य राज्य दक्षिण भारत के अंतिम छोर पर था। वहां सुंदर पांड्य और वीर पांड्य, दोनों भाइयों के बीच सिंहासन को लेकर गृहयुद्ध चल रहा था।
- सुन्दरद पांड्य ने अपने भाई के विरूद्ध सुल्तान अलाउद्दीन से सहायता मांगी। सुल्तान ने अवसर का लाभ उठाकर 1311 ई. में मलिक काफूर को आक्रमण के लिए भेजा।
- काफूर ने जल्द ही पांड्य राज्य की राजधानी मदुरै पर अधिकार कर लिया, वीर पांड्य वहां से भाग खड़ा हुआ। मलिक काफूर ने नगर में लूटपाट की, अनेक मंदिर नष्ट किये। अपने साथ वह लूट की अपार धन-संपत्ति लाया, जो इसके पूर्व कभी नहीं लाया था।
देवगिरि पर पुनः आक्रमण (1313 ई.)
- राजा रामचंद्र देव की मृत्यु के बाद उसका पुत्र शंकरदेव या सिंहनदेव गद्दी पर बैठा। उसने अपने को दिल्ली शासन से स्वतंत्र कर लिया और ‘कर’ देना बंद कर दिया।
- प्रतिक्रिया स्वरूप 1313 ई. में सुल्तान ने मलिक काफूर को पुनः देवगिरि पर आक्रमण के लिए भेजा, इस युद्ध में शंकरदेव मारा गया। यहां भी काफूर ने विभिन्न नगरों को लूटा।
अलाउद्दीन का प्रशासनिक सुधार
- अलाउद्दीन खिलजी ने प्रशासन को मजबूत बनाया तथा अनुशासनहीनता, भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी आदि पर पाबंदी लगाने का उल्लेखनीय कार्य किया।
- उसने सार्वजनिक सेवाओं में भर्ती के मामले में राज्य की नीति को उदार बनाया। मामलुक सुल्तानों ने सभी उच्च पदों को विदेशी आप्रवासियों के लिए आरक्षित कर दिया था।
- अलाउद्दीन खिलजी ने प्रजातीय विभेदीकरण की दस नीति को पृथक कर दिया तथा सार्वजनिक सेवाओं को विशेषाधिकार प्राप्त मुस्लिम आप्रवासियों सहित, जनसाधारण तथा इस्लाम धर्म अपनाए हिंदुओं तक के लिए खुला छोड़ दिया गया। इस कदम से अलाउद्दीन खिलजी को काफी ख्याति प्राप्त हुई।
- उसकी वित्तीय नीतियां काफी प्रभावी साबित हुईं और देश में कम से कम दो शताब्दियों तक आर्थिक स्थिरता कायम रहीं। उसके द्वारा किए गए आर्थिक सुधारों में मूल्यों का निर्धारण उपभोक्ता वस्तुओं की राशनिंग, बाजार नियंत्रण आदि प्रमुख थे।
- सही पद के लिए उचित व्यक्ति की नियुक्ति करने में वह माहिर था। सभी दक्ष एवं कुशल व्यक्तियों को राज्य के लिए सेवाएं अर्पित करने का अवसर दिया गया तथा उन पर गुप्त नियंत्रण रखने के लिए गुप्तचर तंत्र की भी व्यवस्था की गई।
अलाउद्दीन की मंत्रिपरिषद
- दीवाने वजारत – वजीर (मुख्यमंत्री)
- दीवाने इंशा – शाही आदेश का पालन
- दीवाने आरिज – सैन्य मंत्री
- दीवाने रसातल – विदेश विभाग
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु
अलाउद्दीन खिलजी के बारे में कहा जाता है कि अपने आखिरी समय में वह जलोदर रोग से ग्रस्त हो गया था, जो ठीक नहीं हो पाया और 5 जनवरी 1316 ई. को इस रोग के कारण अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गई। यह भी कहा जाता है कि अंतिम समय में अलाउद्दीन खिलजी को एक त्वचा रोग (कोढ़) भी हो गया था जिसके कारण अलाउद्दीन खिलजी बहुत परेशान रहने लगा और अपना अंतिम समय अत्यन्त कठिनाईयों में व्यतीत किया। अलाउद्दीन का मकबरा क़ुतुब मीनार के परिसर में ही स्थित है।
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बारे में कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि कि 5 जनवरी 1316 को अलाउद्दीन खिलजी का निधन हो गया। अलाउद्दीन खिलजी की मौत की वजह उसका वफादार मलिक काफूर ही था। मलिक काफूर को लगा कि वो सत्ता पर कब्ज़ा कर लेगा इसलिए उसने अलाउद्दीन खिलजी को धीमा जहर देना शुरू कर दिया। जिसके कारण उसको जलोदर रोग और त्वचा रोग (कोढ़) हो गया जो उसकी मृत्यु की वजह बनी। अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद उसने खिलजी के के 3 साल के बेटे शिहाबुद्दीन उमर को सिंहासन पर बैठा दिया।
अलाउद्दीन खिलजी से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य:
- अलाउद्दीन खिलजी का शासन काल 1296-1316 ई. तक बीस साल रहा।
- अलाउद्दीन खिलजी के बचपन का नाम अली गुरुश्याप था।
- अलाउद्दीन खिलजी की राजधानी देवगिरी (दौलताबाद) थी।
- अलाउद्दीन खिलजी का जन्म 1266-67 ई. में हुआ था, उसके पिता का नाम शिहाबुद्दीन खिलजी था, जो कि जलालुद्दीन फिरोज खिलजी का भाई था। पिता की अकाल मृत्यु हो जाने के उपरान्त उसके चाचा जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ही उसके संरक्षक थे।
- अलाउद्दीन 1296 से 1316 ई. तक दिल्ली का सुल्तान रहा। वह जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा था। 1296 ई. में उसने जलालुद्दीन की हत्या कर दी और सुल्तान बन गया। उसने जलालुद्दीन के पुत्रों की भी हत्या कर दी।
- अलाउद्दीन ने कई दमनकारी नीतियां अपनाई और अपने विद्रोहियों का निर्ममतापूर्वक सफाया कर दिया।
- अलाउद्दीन खिलजी को इतिहास का दूसरा सिकंदर भी कहा जाता था इसे सिकंदर-ए -सानी की उपाधि ग्रहण की थी।
- इसके दिल्ली सल्तनत पर आसीन होने के बाद सल्तनत का विस्तार हुआ। उसने एक बड़ी सेना का गठन किया और दिल्ली सल्तनत के विस्तार के लिए कई अभियान शुरू किए।
- इसके तीन सेनापति थे मलिक काफूर, खिज्र खां और जफ़र खां।
- प्रथम अभियान में उसने अपने भाई उलूग खां और वजीर नुसरत खां के नेतृत्व मे गुजरात के हिंदू राजा कर्णदेव पर हमला किया। सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया, तथा अन्हिलवाड़ा से बड़ी मात्रा में सम्पत्ति लूटकर लाई गई।
- लूट में खिलजी सेना द्वारा बहुत से गुलामों को कैद कर के दिल्ली लाया गया जिसमे एक गुलाम का नाम काफूर था, जो एक किन्नर था।
- काफूर को अलाउद्दीन खिलजी ने एक हजार दीनार में खरीद लिया। जिससे काफूर को हजार दिनारी भी कहा जाता था।
- काफूर को अलाउद्दीन ने मलिक नायब का पद दिया।
- मालिक काफूर के साथ अलाउद्दीन खिलजी का समलैंगिक सम्बन्ध भी था।
- गुजरात विजय के बाद भी अलाउद्दीन ने अपने अभियान को जारी रखा तथा अनेक राज्यों पर विजय प्राप्त की।
- 1301 ई. में उसने रणथम्भौर को, 1303 ई. में चित्तौड़ को, 1309 ई. में सिवाना तथा जालौर को भी अपने अधीन कर लिया।
- उसने उज्जैन, धार, मांडू और चंदेरी को भी जीत लिया।
- मालिक काफूर को अलाउद्दीन द्वारा सेनापति का पद दिया जाता है।
- अलाउद्दीन की सेना ने इसके बाद मलिक काफूर के नेतृत्व में दक्षिणी अभियान की शुरूआत की।
- मालिक काफूर दक्षिण भारत को जीत कर वहा से कोहिनूर हीरा लाता है।
- 1307 ई. में देवगिरि को पुनः जीता तथा 1310 ई. में ओरंगल के काकतीय राज्य को ध्वस्त कर डाला।
- 1310 ई. में ही द्वारसमुद्र अभियान की शुरूआत की।
- 1311 ई. में द्वारसमुद्र की घेराबंदी के दौरान बल्लालदेव ने आत्मसमर्पण कर दिया।
- इस प्रकार से दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत खिलजी वंश का विस्तार हिमालय से कन्याकुमारी तक हो गया।
- अलाउद्दीन की सेना 1311 ई. में अपार सम्पत्ति के साथ दिल्ली लौटी।
- अलाउद्दीन के राज्य में कवियों को आश्रय प्राप्त था। अमीर खुसरो और अमीर हसन को आश्रय मिला था। अलाउद्दीन इमारतें बनवाने का शौकीन था। उसने कई मस्जिदें भी बनवाई।
- अपने शासन के आरंभकाल में हुए विद्रोहों पर विचार करने के बाद अलाउद्दीन ने चार कारण निकाले-
- (1) सुल्तान का अक्षम होना।
- (2) मद्यपान।
- (3) अमीरों का आपसी तालमेल।
- (4) बेशुमार सम्पत्ति।
- इन सभी कारणों को ध्यान में रखते हुए उसने कई कदम उठाए। शराब पीने और बेचने पर पाबंदी लगा दी गई।
- गुप्तचर संगठन बनाया गया, और सुल्तान की इजाजत के बिना अमीरों के रिश्ते कायम होने पर पाबंदी लगा दिए गए। सभी नीजी सम्पत्ति को राज्य के अधिकार में कर लिया गया। लोगों पर भारी कर लगाए गए और कर वसूली के सख्त कानून बनाए गए।
- अलाउद्दीन सैन्य व्यवस्था पर विशेष ध्यान रखता था। इसकी पैदल सेना को 234 रूपए वार्षिक वेतन मिलता था।
- सरकार की ओर से निश्चित मूल्य पर सामानों के विक्रय का प्रबंध था। यद्यपि उसने अपने शासनकाल में तलवार और युद्ध के बल पर अपना शौर्य बनाए रखा, लेकिन 1312 ई. के बाद उसे कोई बड़ी सफलता प्राप्त नहीं हुई।
- इसका सेनापति मलिक काफूर एक किन्नर था जो दक्षिण भारत को जीत कर वहा से कोहिनूर हीरा लेता है।
- मलिक काफूर को हजार दिनरी भी कहा जाता था क्योकि इसे अलाउद्दीन खिलजी ने एक हजार दीनार में ख़रीदा था।
- इसके दरवार में अमिर खुसरो नाम का एक दरबारी कवि था जो की एक सूफी संत था।
- अलाउद्दीन खिलजी ने अमिर खुसरो को तोता-ए-हिन्द की उपाधि दी थी।
- अमिर खुसरो ने तबला व सितार का अविष्कार किया था।
- अलाउद्दीन खिलजी के समय में चित्तौड़ अभियान हुआ था जो सन 1303 ई. में हुआ था।
- चित्तौड़ अभियान में राजा रतन सिंह और अलाउद्दीन खिलजी के बीच युद्ध होता है जिसमे अलाउद्दीन खिलजी विजई होता है।
- अलाउद्दीन खिलजी राजा रतन सिंह की पत्नी महारानी पद्मावती की सुन्दरता से काफी प्रभावित था, और उनको पाने के लिए राजा रतन सिंह को हराकर जब उनके राज महल में जाता है तो रानी पद्मावती राजमहल में अग्नि कुण्ड बना कर उसमे कूद जाती है जिसे जौहर कर लेना कहा गया।
- इस प्रकार से रानी पद्मावती द्वारा जौहर प्रथा की शुरुआत होती है।
- चित्तौड़ अभियान में अलाउद्दीन खिलजी के साथ अमिर खुसरो भी था। कहा जाता है कि अमिर खुसरो पहले राजा रतन सिंह का दरबारी कवि था। रतन सिंह ने उसको किसी बात से नाराज होकर दरबार से निकाल दिया था। दरबार से निकले जाने के बाद वह अलाउद्दीन खिलजी से आ कर मिल गया, अलाउद्दीन को रानी पद्मावती के बारे में बताया था।
- अलाउद्दीन खिलजी और महारानी पद्मावती का वर्णन पद्मावत ग्रन्थ में मिलता है जिसकी रचना मलिक मुहम्मद जायसी ने सन 1540 ई. में किया था।
- अमीर खुसरो का मूल नाम मुहम्मद हसन था। अमीर खुसरो प्रसिद्ध सूफी संत शेख निजामुद्दीन औलिया के शिष्य थे।
- अमीर खुसरो बलबन से लेकर मुहम्मद तुगलक तक दिल्ली सुल्तानों के दरबार में रहे।
- अलाउद्दीन ने अपने एक सेनापति खिज्र खां को चित्तौड़ विजय के बाद यहां का शासक नियुक्त किया और चित्तौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया गया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली में अलाई दरवाजा का निर्माण कराया था।
- अलाउद्दीन खिलजी ने खम्स, गरी, चरी कर लगाया था।
- इसने शासन करने के लिए चार प्रमुख नीतिया लागू की जो निम्न है-
- बाजार नियंत्रण (स्थिर मूल्य)।
- घोड़े दागने की प्रथा (घोड़े पर पहचान चिन्ह लगाना)।
- माप तौल की व्यवस्था (जो जितना कम देता था उसका उतना मांस निकाल लिया जाता था)।
- सैनिको का हुलिया (उनका ड्रेस कोड)।
- अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु 5 जनवरी, 1316 ई. को जलोदर रोग से ग्रसित होने के कारण हो गयी।
इन्हें भी देखें –
- खिलजी वंश | Khilji Dynasty | 1290ई. – 1320 ई.
- जलालुद्दीन फिरोज खिलजी | JALALUDDIN FIROJ KHILJI |1290-1296 ई.
- गयासुद्दीन बलबन | GAYASUDDIN BALBAN |1266-1286
- कैकुबाद अथवा कैकोबाद (1287-1290 ई.) और शमसुद्दीन क्युमर्स
- Bimbisara बिम्बिसार (546 – 494 ईसा पूर्व)
- पाषाण काल STONE AGE | 2,500,000 ई.पू.- 1,000 ईसा पूर्व
- धार्मिक आन्दोलन Religious Movements(600 ईसा पूर्व)
- जनपद एवं महाजनपद Janpadas and Mahajanapadas (600-325 ईसा पूर्व)
- मगध महाजनपद Magadha Mahajanpadas 544-322BC