असमिया भाषा : असम की भाषा, इतिहास, विकास, लिपि, वर्णमाला और साहित्यिक परंपरा

भारत विविध भाषाओं और संस्कृतियों का देश है। यहाँ की प्रत्येक भाषा अपने भीतर एक समृद्ध सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और साहित्यिक विरासत संजोए हुए है। इन्हीं भाषाओं में से एक है असमिया भाषा, जो न केवल असम राज्य की आत्मा का प्रतीक है बल्कि सम्पूर्ण पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक पहचान भी है। असमिया भाषा भारतीय आर्य भाषाओं की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जिसका साहित्यिक, ऐतिहासिक और भाषावैज्ञानिक महत्व अत्यंत गहरा है।

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असमिया भाषा का परिचय

  • परिवार – इंडो-आर्यन भाषा
  • आधिकारिक भाषा – असम
  • बोली क्षेत्र – असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, बांग्लादेश एवं भूटान के कुछ भाग
  • वक्ता संख्या – लगभग 1.5 करोड़
  • लिपि – असमिया (ब्राह्मी मूल की)

असमिया भाषा को असम के लोगों द्वारा অসমীয়া (Ôxômiya) कहा जाता है। यह एक व्यापक संचार की भाषा है जो न केवल प्रशासनिक कार्यों में प्रयुक्त होती है बल्कि साहित्य, शिक्षा, मीडिया और लोकसंस्कृति में भी इसका महत्वपूर्ण स्थान है।

असमिया भाषा मुख्य रूप से भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में बोली जाती है। यह राज्य की आधिकारिक भाषा है और लगभग 1.5 करोड़ लोग इसे मातृभाषा के रूप में बोलते हैं। असमिया भाषा इंडो-आर्यन भाषा परिवार से संबंधित है और इसका निकट संबंध बांग्ला, उड़िया, मैथिली और नेपाली जैसी भाषाओं से है।

असमिया भाषा केवल असम तक सीमित नहीं है; यह अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, बांग्लादेश, भूटान और विश्व के विभिन्न हिस्सों में बसे असमिया प्रवासी समुदायों द्वारा भी बोली जाती है।

असमिया भाषा की लिपि को असमिया लिपि कहा जाता है, जो मूल रूप से ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है। यह लिपि बाएँ से दाएँ लिखी जाती है और इसमें 12 स्वर तथा 42 व्यंजन पाए जाते हैं।

भाषाई परिवार और वर्गीकरण

असमिया भाषा का संबंध भाषाई दृष्टि से आर्य भाषा परिवार की पूर्वी उपशाखा से है। प्रसिद्ध भाषाविज्ञ गियर्सन के वर्गीकरण के अनुसार, यह बाहरी उपशाखा के पूर्वी समुदाय की भाषा है, जबकि सुनीतिकुमार चटर्जी के वर्गीकरण में इसका स्थान प्राच्य (Eastern Group) समुदाय में रखा गया है।

भाषावैज्ञानिक रूप से असमिया भाषा की उत्पत्ति प्राकृत और अपभ्रंश से हुई मानी जाती है, जैसे उड़िया और बंगला की। असमिया, बांग्ला और उड़िया को अक्सर एक ही भाषिक स्रोत — मागधी अपभ्रंश — की संतति कहा जाता है।

असमिया भाषा की उत्पत्ति और प्रारंभिक स्वरूप

असमिया भाषा की उत्पत्ति को लेकर विभिन्न विद्वानों के अलग-अलग मत हैं।

  • कुछ विद्वान इसकी शुरुआत 7वीं शताब्दी के चर्यापद (बौद्ध सिद्ध साहित्य) से मानते हैं।
  • कुछ इसे 13वीं-14वीं शताब्दी से विकसित रूप में देखते हैं।
  • जबकि औपचारिक और साहित्यिक रूप का आरंभ प्रायः 17वीं शताब्दी से माना जाता है।

असमिया भाषा की जड़ें भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन भाषिक परंपराओं में निहित हैं। यद्यपि असमिया के व्यवस्थित रूप का साक्ष्य 13वीं से 14वीं शताब्दी के बीच मिलता है, परंतु इसके आरंभिक स्वरूप को हम बौद्ध सिद्धों के चर्यापद में देख सकते हैं।

चर्यापद : असमिया भाषा के बीज रूप

चर्यापद” 8वीं से 12वीं शताब्दी के मध्य रचित बौद्ध सिद्ध कवियों की रचनाओं का संग्रह है, जिनमें असमिया, बांग्ला और उड़िया भाषाओं के आद्य रूपों की झलक मिलती है। विद्वानों ने “चर्यापद” का काल 600 ई. से 1000 ई. के बीच माना है। इन पदों में प्रयुक्त भाषा में असमिया की ध्वन्यात्मक और रूपात्मक विशेषताएँ स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। यही कारण है कि इसे असमिया भाषा की प्रारंभिक दस्तावेजी पहचान माना जाता है।

“चर्यापद” के बाद, असमिया में मौखिक साहित्य का एक समृद्ध दौर देखने को मिलता है — जैसे मणिकोंवर-फुलकोंवर गीत, डाकवचन, तांत्रिक मंत्र, और लोककथाएँ। इनसे असमिया भाषा की सामाजिक और धार्मिक चेतना के प्रारंभिक रूप का पता चलता है।

असमिया भाषा के विकास के चरण

असमिया भाषा का विकास एक लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है। भाषागत विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए असमिया भाषा के विकास को तीन प्रमुख कालों में विभाजित किया जा सकता है:

कालसमय अवधिमुख्य विशेषताएँ
प्रारंभिक असमिया14वीं से 16वीं शताब्दीवैष्णव-पूर्व और वैष्णव युग में धार्मिक एवं काव्य साहित्य
मध्य असमिया17वीं से 19वीं शताब्दीअहोम राजाओं के दरबार की गद्यभाषा (बुरंजी साहित्य)
आधुनिक असमिया19वीं शताब्दी से वर्तमान तकमिशनरी अनुवाद, व्याकरण, शब्दकोश, पत्रकारिता एवं आधुनिक साहित्य

1. प्रारंभिक असमिया (14वीं से 16वीं शताब्दी तक)

यह असमिया भाषा के साहित्यिक विकास का आरंभिक युग है। इस काल को दो उपयुगों में बाँटा गया है —

  • (अ) वैष्णव-पूर्व युग
  • (आ) वैष्णव युग

वैष्णव-पूर्व युग में असमिया भाषा में रुद्र कंदलि द्वारा रचित “द्रोण पर्व” (महाभारत का अनुवाद) और माधव कंदलि द्वारा रचित “रामायण” जैसी कृतियाँ सामने आईं। ये असमिया साहित्य की सबसे प्राचीन रचनाएँ मानी जाती हैं।

वैष्णव युग में असम के महान संत और समाज सुधारक शंकरदेव (1449–1568) ने भाषा और साहित्य दोनों को नई दिशा दी। उन्होंने वैष्णव आंदोलन के माध्यम से असमिया भाषा को धार्मिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। उनके रचित कीर्तन, अंकिया नाटक, और भक्ति गीत आज भी असम की लोकसंस्कृति का अभिन्न अंग हैं।

2. मध्य असमिया (17वीं से 19वीं शताब्दी का प्रारंभ)

यह काल असमिया भाषा के गद्य और प्रशासनिक प्रयोग का युग है। इस समय अहोम राजवंश के शासनकाल में असमिया दरबारी भाषा बनी। इसी काल में लिखे गए गद्य ग्रंथों को “बुरंजी साहित्य” कहा जाता है।

“बुरंजी” असमिया में लिखित ऐतिहासिक वृत्तांतों का संकलन है, जिनमें राजाओं, युद्धों, और सामाजिक व्यवस्थाओं का विवरण मिलता है। इन ग्रंथों में न केवल भाषा का गद्यरूप मिलता है, बल्कि यह भी स्पष्ट होता है कि असमिया समाज में लेखन परंपरा कितनी सशक्त थी।

3. आधुनिक असमिया (19वीं शताब्दी से वर्तमान तक)

1819 ई. में अमेरिकी बैपटिस्ट मिशनरियों ने असमिया गद्य में बाइबिल का अनुवाद प्रकाशित किया, जिससे आधुनिक असमिया का युग आरम्भ होता है।

  • 1846 – “अरुणोदय” नामक पहला असमिया मासिक पत्र प्रकाशित हुआ
  • 1848प्रथम असमिया व्याकरण का प्रकाशन
  • 1867प्रथम असमिया-अंग्रेज़ी शब्दकोश

यह काल असमिया भाषा के मानकीकरण और साहित्यिक विकास का स्वर्णिम काल माना जाता है।

असमिया भाषा के आधुनिक काल की शुरुआत 1819 ई. से मानी जाती है, जब अमरीकी बप्तिस्त मिशनरियों ने असमिया में बाइबिल का अनुवाद प्रकाशित किया। इससे असमिया गद्य लेखन की आधुनिक परंपरा आरंभ हुई।

मिशनरियों का केंद्र पूर्वी असम में था, अतः उनकी भाषा में पूर्वी असम की बोली का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। 1846 में असमिया का प्रथम मासिक पत्र “अरुणोदय” प्रकाशित हुआ, जिसने साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में नई चेतना जगाई।

1848 में असमिया का पहला व्याकरण ग्रंथ छपा और 1867 में पहला असमिया-अंग्रेजी शब्दकोश प्रकाशित हुआ। इन प्रयासों ने असमिया को एक संगठित साहित्यिक भाषा के रूप में स्थापित किया।

असमिया लिपि ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है। इसका 610 ई. का भास्करवर्मन का ताम्रपत्र इसका सबसे पुराना साक्ष्य माना जाता है। समय के साथ यह नागरी एवं बंगाली लिपि के प्रभाव से रूपांतरित होती गई।

असमिया लिपि की संरचना

  • 12 स्वर
  • 42 व्यंजन
  • बाएँ से दाएँ लेखन शैली
  • विशिष्ट ध्वनि संकेत, जैसे ‘ৰ’, ‘ৱ’ आदि, जो अन्य भारतीय लिपियों में नहीं मिलते

यह लिपि ध्वन्यात्मक होने के कारण उच्चारण को सटीक रूप से व्यक्त करती है।

असमिया लिपि का विकास

असमिया लिपि ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है। इसका 610 ई. का भास्करवर्मन का ताम्रपत्र इसका सबसे पुराना साक्ष्य माना जाता है। समय के साथ यह नागरी एवं बंगाली लिपि के प्रभाव से रूपांतरित होती गई।

असमिया लिपि का उद्भव ब्राह्मी लिपि से हुआ है, जो भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे प्राचीन लिपियों में से एक है। इसका सबसे पुराना उपलब्ध रूप भास्करवर्मन (610 ई.) के ताम्रपत्रों में पाया जाता है।

असमिया लिपि का विकास क्रम नागरी और सिद्धमात्रा लिपियों से होकर हुआ। समय के साथ यह बंगला लिपि के समानांतर विकसित होती गई, हालांकि इसमें कुछ विशिष्ट ध्वन्यात्मक और वर्णात्मक भिन्नताएँ पाई जाती हैं।

असमिया लिपि में 12 स्वर, 42 व्यंजन और कई संयुक्ताक्षर हैं। यह लिपि ध्वन्यात्मक दृष्टि से अत्यंत परिपूर्ण है और असमिया की सभी ध्वनियों को व्यक्त करने में सक्षम है। लिपि का प्रयोग केवल साहित्यिक ही नहीं, बल्कि धार्मिक और प्रशासनिक लेखन में भी किया जाता रहा है।

असमिया वर्णमाला और लिपिचिह्न

असमिया भाषा की लेखन प्रणाली इसकी लिपिकीय और ध्वन्यात्मक समृद्धि का परिचायक है। इसकी वर्णमाला में 12 स्वर और 42 व्यंजन सम्मिलित हैं, जिनसे मिलकर यह भाषा अपनी विविध ध्वनियों को स्पष्ट रूप से अभिव्यक्त करती है। असमिया लिपि का उपयोग न केवल साहित्यिक और धार्मिक ग्रंथों में, बल्कि दैनिक लेखन और आधुनिक संप्रेषण माध्यमों में भी व्यापक रूप से किया जाता है।

असमिया स्वर (Vowels)

असमिया लिपि में बारह स्वर वर्ण पाए जाते हैं, जो विभिन्न ध्वनियों को सूचित करते हैं। ये स्वर स्वतंत्र रूप में तथा संयुक्ताक्षरों के साथ भी प्रयुक्त होते हैं। असमिया स्वरों की सूची इस प्रकार है —

অ (a), আ (aa), ই (i), ঈ (ii), উ (u), ঊ (uu), ঋ (ri), ৠ (rri), এ (e), ঐ (oi), ও (o), ঔ (ou)

इन स्वरों के उच्चारण में हिंदी और बांग्ला दोनों की समानता झलकती है, किंतु असमिया की ध्वनि-संरचना उन्हें विशिष्ट बनाती है।

स्वर (Vowels / स्वर वर्ण) — মোট 12 (कुल 12)

क्रमांकবাংলা अक्षরउच्चारण (Transliteration)हिन्दी में ध्वनि / अर्थ
1a
2aa
3i
4ii
5u
6uu
7ri
8rri
9e
10oi
11o
12ou

असमिया व्यंजन (Consonants)

असमिया भाषा में 42 व्यंजन वर्ण हैं, जिनमें कई ऐसे ध्वन्यात्मक चिह्न भी सम्मिलित हैं जो अन्य भारतीय भाषाओं में नहीं मिलते। ये वर्ण गले, तालु, दंत और ओष्ठ से उच्चारित ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

ক (ka), খ (kha), গ (ga), ঘ (gha), ঙ (nga), চ (cha), ছ (chha), জ (ja), ঝ (jha), ঞ (ña), ট (tta), ঠ (ttha), ড (dda), ঢ (ddha), ণ (nña), ত (ta), থ (tha), দ (da), ধ (dha), ন (na), প (pa), ফ (pha), ব (ba), ভ (bha), ম (ma), য (ya), ৰ (rra), র (ra), ল (la), শ (sha), ষ (ssa), স (sa), হ (ha), ক্ষ (kṣa), ত্র (tra),জ্ঞ (gya), ঙ্ক (ngka), ঞ্জ (ñja),ণ্ড (ndda), ব্দ (bda), ম্ব (mba), য্য (yya)

व्यंजन (Consonants / व्यंजन वर्ण) — মোট 42 (कुल 42)

क्रमांकবাংলা अक्षরउच्चारण (Transliteration)हिन्दी में ध्वनि / अर्थ
1ka
2kha
3ga
4gha
5nga
6cha
7chha
8ja
9jha
10ña
11ṭa
12ṭha
13ḍa
14ḍha
15ṇa
16ta
17tha
18da
19dha
20na
21pa
22pha
23ba
24bha
25ma
26ya
27rraर (मूल ध्वनि ‘ऱ’ के समान)
28ra
29la
30sha
31ssa
32sa
33ha

संयुक्ताक्षर (Conjunct Consonants / संयुक्त व्यंजन)

क्रमांकবাংলা अक्षरउच्चारण (Transliteration)हिन्दी में ध्वनि / अर्थ
1ক্ষkṣaक्ष
2ত্রtraत्र
3জ্ঞgyaज्ञ
4ঙ্কngkaङ्क
5ঞ্জñjaञ्ज
6ণ্ডnddaण्ड
7ব্দbdaब्द
8ম্বmbaम्ब
9য্যyyaय्य

इन व्यंजनों की सहायता से असमिया लिपि में लगभग सभी आवश्यक ध्वनियाँ स्पष्ट रूप में लिखी जा सकती हैं।

विशेष अक्षर (Special Assamese Letters)

अक्षरउच्चारणटिप्पणी
rraयह केवल असमिया लिपि में पाया जाता है (बांग्ला में नहीं)।
waयह भी असमिया लिपि का विशिष्ट अक्षर है (आपकी सूची में नहीं था)।

असमिया लिपिचिह्न और उनके प्रयोग

असमिया लिपि में केवल स्वर और व्यंजन ही नहीं, बल्कि कुछ विशेष लिपिचिह्न (diacritical marks) भी प्रयोग में लाए जाते हैं, जो ध्वनि, उच्चारण या व्याकरणिक सूक्ष्मताओं को व्यक्त करते हैं। ये चिह्न भाषा की ध्वन्यात्मक परिष्कृति और व्याकरणिक लचीलेपन को बढ़ाते हैं।

निम्नलिखित चिह्न असमिया लेखन में प्रमुख रूप से प्रयुक्त होते हैं —

  1. ং (ṅ) – यह अनुनासिक ध्वनि को प्रकट करता है। शब्दों में इसका प्रयोग “बांग्ला (বাংলা)” जैसे रूपों में देखा जाता है।
  2. ঃ (ḥ) – इसे विसर्ग कहा जाता है। यह उच्चारण में हल्का विराम या श्वास-रूप ध्वनि सूचित करता है।
  3. ৎ (t) – यह एक प्रकार के ग्लोटल स्टॉप या कठोर उच्चारण के संकेत के लिए प्रयुक्त होता है, जो शब्दों के बीच लघु विराम दर्शाता है।
  4. ঁ (̃) – यह चंद्रबिंदु कहलाता है। इसका प्रयोग स्वरों में अनुनासिक ध्वनि को व्यक्त करने के लिए किया जाता है।
  5. ্ (virama) – इसे विराम या हलंत कहा जाता है। यह व्यंजन वर्ण में अंतर्निहित स्वर ध्वनि को रोकने का कार्य करता है।
  6. ্‌ (modified virama) – यह विशेष हलंत रूप है जो कुछ संयुक्ताक्षरों या उच्चारण भिन्नताओं को स्पष्ट करने के लिए प्रयुक्त होता है।

असमिया वर्णमाला (Assamese Alphabet Chart)

श्रेणी (Category)असमिया अक्षरउच्चारण (Transliteration)हिंदी उच्चारण / अर्थ
स्वर (Vowels)a
aa
i
ii
u
uu
ri
rri
e
oi
o
ou
व्यंजन (Consonants)ka
kha
ga
gha
nga
cha
chha
ja
jha
ña
tta
ttha
dda
ddha
nña
ta
tha
da
dha
na
pa
pha
ba
bha
ma
ya
rraर (असमिया विशेष)
ra
la
sha
ssa
sa
ha
संयुक्ताक्षर (Conjunct Consonants)ক্ষkṣaक्ष
ত্রtraत्र
জ্ঞgyaज्ञ
ঙ্কngkaङ्क
ঞ্জñjaञ्ज
ণ্ডnddaण्ड
ব্দbdaब्द
ম্বmbaम्ब
য্যyyaय्य
विशेष अक्षर (Special Assamese Letters)rraकेवल असमिया में प्रयुक्त
waअसमिया का विशिष्ट व्यंजन

इन संकेतों के प्रयोग से असमिया लेखन प्रणाली अत्यंत लचीली, सटीक और वैज्ञानिक बन जाती है। यही कारण है कि असमिया लिपि अपने ध्वन्यात्मक सामंजस्य और संरचनात्मक पूर्णता के लिए भारतीय भाषाओं में विशेष स्थान रखती है।

लिपि की ध्वन्यात्मक विशेषता

असमिया लिपि ध्वन्यात्मक दृष्टि से अत्यंत उन्नत है। प्रत्येक वर्ण एक निश्चित ध्वनि से जुड़ा हुआ है, जिससे उच्चारण में अस्पष्टता की संभावना न्यूनतम हो जाती है। बाएँ से दाएँ लिखी जाने वाली यह लिपि बंगाली लिपि से साम्य रखती है, किंतु ৰ (rra) जैसे विशेष वर्ण और ং (ṅ) जैसी विशिष्ट ध्वनियों के कारण अपनी स्वतंत्र पहचान बनाती है।

असमिया वर्णमाला और उसके लिपिचिह्न न केवल भाषा की ध्वन्यात्मक सुंदरता को बनाए रखते हैं, बल्कि उसके साहित्यिक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति के लिए भी आधार प्रदान करते हैं। इस लिपि के माध्यम से असमिया भाषा अपनी हजारों वर्षों की परंपरा, लोक-संस्कृति और आधुनिक विचारों को सहजता से अभिव्यक्त करती है।

असमिया वर्णमाला की प्रमुख विशेषताएँ और बांग्ला लिपि से इसके अंतर

असमिया वर्णमाला भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त ब्राह्मी लिपि की विकसित शाखा है, जिसका रूप बंगाली (बांग्ला) लिपि से अत्यधिक समान प्रतीत होता है, किंतु ध्वन्यात्मकता (phonetics) और कुछ विशिष्ट अक्षरों की दृष्टि से दोनों में महत्वपूर्ण भेद पाए जाते हैं। असमिया लिपि न केवल ध्वनियों के सटीक प्रतिनिधित्व के लिए जानी जाती है, बल्कि इसकी अपनी विशिष्ट ध्वनि-पद्धति और क्षेत्रीय पहचान भी है।

असमिया वर्णमाला की प्रमुख विशेषताएँ

  1. ध्वन्यात्मक परिपूर्णता (Phonetic Completeness):
    असमिया लिपि में कुल 12 स्वर और 42 व्यंजन हैं, जो भाषा की लगभग सभी ध्वनियों को सटीक रूप से दर्शाते हैं।
    यह लिपि उन ध्वनियों को भी व्यक्त करने में सक्षम है जो अन्य भारतीय भाषाओं में नहीं पाई जातीं।
  2. असमिया के विशिष्ट अक्षर:
    इसमें दो ऐसे व्यंजन हैं जो इसे बांग्ला से भिन्न बनाते हैं —
    ৰ (rra) और ৱ (wa)
    ये अक्षर असमिया भाषा के विशेष ध्वनि-लक्षणों का प्रतिनिधित्व करते हैं और केवल इसी भाषा में पाए जाते हैं।
  3. सरल और स्पष्ट लेखन पद्धति:
    असमिया लिपि बाएँ से दाएँ लिखी जाती है।
    इसके अक्षरों का आकार गोलाकार और प्रवाहपूर्ण होता है, जो इसे देखने में आकर्षक और लिखने में सरल बनाता है।
  4. हलंत (্) और चंद्रबिंदु (ঁ) का प्रयोग:
    हलंत का उपयोग व्यंजन के साथ अंतर्निहित स्वर को समाप्त करने हेतु किया जाता है, जबकि चंद्रबिंदु अनुनासिक ध्वनियों (nasal sounds) को इंगित करता है।
  5. संयुक्ताक्षर की समृद्ध परंपरा:
    असमिया में संयुक्ताक्षर (Conjunct Consonants) का प्रयोग व्यापक रूप से होता है।
    जैसे — ক্ষ (kṣa), ত্র (tra), জ্ঞ (gya), ম্ব (mba) आदि।
    यह लिपि की ध्वन्यात्मक लचीलापन और ऐतिहासिक गहराई को दर्शाता है।
  6. स्वरचिह्नों का व्यवस्थित प्रयोग:
    व्यंजन के साथ प्रयुक्त स्वरचिह्नों (Matras) की व्यवस्था सरल और स्थिर है। इससे पठन और उच्चारण दोनों में स्पष्टता आती है।

बांग्ला लिपि से प्रमुख अंतर

क्रमपहलूअसमिया लिपिबांग्ला लिपि
1विशिष्ट व्यंजनৰ (rra), ৱ (wa)অনুপस्थित (नहीं पाए जाते)
2य के रूपয (ya) स्थिर रूप से प्रयुक्तয (ya) और য় (ya) – दो रूप पाए जाते हैं
3उच्चारणअपेक्षाकृत स्पष्ट, हल्का स्वराघातकुछ ध्वनियाँ अधिक मृदु और नासिकीय
4स्वर संयोगस्वतंत्र रूप से प्रयुक्तस्वरचिह्नों में अधिक विविधता
5लेखन प्रवाहगोलाकार परंतु कम घुमावदारअधिक घुमावदार और कलात्मक
6ध्वनि-पद्धतिप्रादेशिक उच्चारण से प्रभावितशुद्ध शास्त्रीय रूप के निकट

भाषाई दृष्टि से महत्त्व

असमिया लिपि केवल लेखन का माध्यम नहीं, बल्कि असमिया संस्कृति, परंपरा और पहचान का प्रतीक भी है।
इस लिपि के माध्यम से मध्यकालीन संत शंकरदेव, माधवदेव और आधुनिक साहित्यकार लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ जैसे रचनाकारों ने असमिया भाषा को अभूतपूर्व प्रतिष्ठा प्रदान की।
वर्तमान समय में यह लिपि डिजिटल प्रौद्योगिकी, शिक्षा और प्रशासन में पूर्ण रूप से स्थापित है तथा Unicode प्रणाली में भी मानकीकृत रूप से सम्मिलित है।

असमिया भाषा का भौगोलिक प्रसार | बोली क्षेत्र

असमिया भाषा का मुख्य प्रसार क्षेत्र असम राज्य है, परंतु इसकी सीमाएँ इससे परे भी फैली हुई हैं। असम के पड़ोसी राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, और मेघालय के कुछ हिस्सों में भी असमिया बोलने वाले समुदाय हैं।

इसके अतिरिक्त, बांग्लादेश, भूटान, और अन्य देशों में बसे प्रवासी असमिया समुदाय इस भाषा को जीवित रखे हुए हैं। असमिया लोगों की सांस्कृतिक एकता और उनकी सामाजिक परंपराएँ इस भाषा के माध्यम से ही पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती रही हैं।

असमिया की शब्द-संरचना (Word Structure in Assamese)

असमिया भाषा की व्याकरणिक संरचना इसे इंडो-आर्यन भाषाओं की अन्य शाखाओं से जोड़ती है, किंतु इसके वाक्य विन्यास, शब्द-रचना और उच्चारण में स्थानीय विशिष्टता स्पष्ट झलकती है। इस भाषा की वाक्य-संरचना सामान्यतः कर्त्ता–कर्म–क्रिया (Subject–Object–Verb / SOV) क्रम का अनुसरण करती है, जो हिंदी, बंगाली, उड़िया और मराठी जैसी कई भारतीय भाषाओं में भी सामान्य है।

वाक्य क्रम की विशेषता

असमिया वाक्य में पहले कर्त्ता (subject) आता है, फिर कर्म (object) और अंत में क्रिया (verb)
उदाहरण के लिए —
👉 “মৈতৈলে গাছ কেতা” (Maiteile gaach ketaa)
इस वाक्य में —

  • মৈতৈলে (Maiteile) = मित्र (subject)
  • গাছ (Gaach) = पेड़ (object)
  • কেতা (Keta) = काटा (verb)
    अर्थात् — “मित्र ने पेड़ काटा।”

असमिया के सामान्य शब्द (Common Assamese Words)

असमिया शब्दउच्चारण (Transliteration)हिंदी अर्थ
পেয়ারpeyaarप्यार
ঘরghorघर
দুধdudhदूध
বাতbaatबात करना
ছাত্রchhatraविद्यार्थी
কাতkaatकाटना
খাওয়াkhawaखाना
বাড়িbaadiघर / बगीचा
ঘুমghumनींद
পানpaanपीना

असमिया के प्रश्नवाचक शब्द (Interrogative Words in Assamese)

असमिया शब्दउच्चारणहिंदी अर्थ
কেমনkemonकैसे
কেমনেkemoneकिस प्रकार
কেমনেইkemoneiकैसे
কেনkenक्यों
কোথায়kothaaiकहाँ
কখনkakhonकब
কেমনেরেkemonereकैसा रहेगा
কিkiक्या
কেkeकौन
কেনেরkenerक्यों नहीं

इन प्रश्नवाचक शब्दों का प्रयोग असमिया वाक्यों में प्रश्नवाचक भाव लाने के लिए किया जाता है। इनका स्थान प्रायः वाक्य के प्रारंभ में या कर्ता के ठीक बाद होता है।

असमिया के नकारात्मक पद (Negative Forms in Assamese)

असमिया में ‘না’ (na) और ‘নাই’ (nai) प्रमुख नकारात्मक शब्द हैं, जिनका प्रयोग “नहीं” अथवा “मत” के अर्थ में किया जाता है। ये क्रिया के पहले अथवा बाद में लगाकर वाक्य के अर्थ को नकारात्मक बनाते हैं।

असमिया वाक्यांशउच्चारणहिंदी अर्थ
নাnaनहीं
নাইnaiनहीं है
না পাওয়াna paoaनहीं मिल रहा
না জানাna janaनहीं जानता / पता नहीं
না পেলেna peleनहीं मिला
না সম্পাদনna sompaadonसमझ नहीं आया
না করেna koreमत करो
না করছেna korecheनहीं कर रहा
না হয়na hoiऐसा नहीं हुआ
না ব্যবহৃতna bibhratउपयोग नहीं किया
না থাকছেna thakcheनहीं रह रहा
না বলতেna bolteनहीं कह रहा
না করছেনna korechenनहीं कर रहे
না মানেনna maanenसहमत नहीं हैं
না পাওয়া যাবেna paoa jaboपाया नहीं जा सकता

असमिया के सामान्य वाक्य और उनके हिंदी अनुवाद (Common Assamese Sentences)

असमिया वाक्यउच्चारण (Transliteration)हिंदी अर्थ
মেহের ঘৰে আছোmeher ghoré achoमैं घर पर हूँ
মানে বাত করছোmaane baat korchoमैं बात कर रहा हूँ
মেহের ছাত্রmeher chhatraमैं विद्यार्थी हूँ
মেহের কাত করছোmeher kaat korchoमैं काट रहा हूँ
মেহের খাওয়া খাইmeher khawa khaiमैं खा रहा हूँ
মেহের ঘুম লাগছেmeher ghum lagcheमुझे नींद आ रही है
মেহের পান করছোmeher paan korchoमैं पी रहा हूँ
মেহের দুধ পান করছোmeher dudh paan korchoमैं दूध पी रहा हूँ
মেহের বাড়িতে ঘুম লাগছোmeher baadite ghum lagchoमैं बगीचे में सो रहा हूँ
মেহের কেমন ছেmeher kemon cheआप कैसे हैं?
মেহের কোথায় আছোmeher kothaai achoआप कहाँ हैं?
মেহের কি করছোmeher ki korchoआप क्या कर रहे हैं?
মেহের কেন ঘুম না লাগছেmeher ken ghum na lagcheतुम क्यों नहीं सो रहे हो?
মেহের কেন খাওয়া না খাইmeher ken khawa na khaiतुम क्यों नहीं खा रहे हो?

असमिया भाषा में क्रियाओं के रूपांतरण (verb conjugation) का ढाँचा अपेक्षाकृत सरल है और यह व्यक्ति (Person) तथा काल (Tense) के अनुसार रूप बदलता है। इसके वाक्य विन्यास की प्रवाहपूर्णता और लयात्मकता इसे न केवल संवादात्मक रूप में सहज बनाती है, बल्कि साहित्यिक अभिव्यक्ति में भी एक विशिष्ट माधुर्य प्रदान करती है।

असमिया भाषा और साहित्यिक परंपरा

असमिया भाषा का साहित्य अत्यंत समृद्ध और बहुआयामी है। इसकी शुरुआत धार्मिक और भक्ति विषयों से हुई, परंतु कालांतर में इसमें सामाजिक, ऐतिहासिक, और समकालीन विषयों की विविधता दिखाई देने लगी।

(1) वैष्णव साहित्य परंपरा

असमिया साहित्य की सबसे महत्वपूर्ण धारा वैष्णव साहित्य है। शंकरदेव, माधवदेव, और उनके अनुयायियों ने असमिया भाषा में भक्तिमय साहित्य की विशाल परंपरा निर्मित की।
उनकी रचनाएँ — जैसे कीर्तन-घोषा, नामघोषा, और अंकिया नाटक — असमिया समाज में नैतिकता, आध्यात्मिकता और सामाजिक एकता का संदेश देती हैं।

(2) बुरंजी साहित्य

जैसा कि पहले उल्लेख किया गया, “बुरंजी” असमिया भाषा की ऐतिहासिक गद्य परंपरा है। इन ग्रंथों में असम के इतिहास, राजनीति, और राजवंशों का विस्तृत वर्णन मिलता है।

(3) आधुनिक साहित्य

19वीं शताब्दी के बाद असमिया साहित्य में आधुनिकता का प्रवेश हुआ। लखननाथ बेझबरुआ, हेमचंद्र गोस्वामी, और चंद्रकुमार अग्रवाल जैसे रचनाकारों ने असमिया कथा, कविता, नाटक, और निबंध साहित्य को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान असमिया साहित्य ने राष्ट्रवादी चेतना को भी स्वर दिया। आधुनिक युग में बीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य, इंद्रजीत बोरा, और अमिताभ दासगुप्ता जैसे लेखकों ने असमिया साहित्य को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई।

भाषाई विशेषताएँ

असमिया भाषा में ध्वन्यात्मक, रूपात्मक और वाक्यविन्यास संबंधी कुछ विशिष्ट विशेषताएँ हैं —

  • इसमें /x/ (खराशयुक्त ध्वनि) जैसी विशिष्ट ध्वनि पाई जाती है, जो अन्य भारतीय भाषाओं में नहीं मिलती।
  • असमिया में लिंग का भेद सीमित है।
  • इसमें कर्त्ता-कर्म-क्रिया (SOV) क्रम प्रचलित है।
  • शब्दावली में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, तिब्बती-बर्मी और अंग्रेज़ी से लिए गए शब्द पाए जाते हैं।

असमिया भाषा का सांस्कृतिक महत्व

असमिया केवल एक भाषा नहीं, बल्कि असम की संस्कृति, लोककला, संगीत और परंपराओं की वाहक है। इसके माध्यम से असम की लोकनाट्य परंपराएँ जैसे भौना, लोकगीत जैसे बिहू गीत, और नृत्य रूप जैसे सत्रिया नृत्य जीवित हैं।

असमिया भाषा ने पूर्वोत्तर भारत की विविध जनजातीय संस्कृतियों के बीच सेतु का कार्य किया है। इसकी समावेशी प्रकृति के कारण यह क्षेत्रीय एकता और राष्ट्रीय एकीकरण का प्रतीक बनी हुई है।

असमिया साहित्य : परिचय

असमिया साहित्य, असमिया भाषा की सांस्कृतिक और बौद्धिक अभिव्यक्ति का एक अत्यंत समृद्ध और प्राचीन रूप है। इसका आरंभ लगभग 13वीं शताब्दी से माना जाता है, जब असम क्षेत्र में लोककथाओं, धार्मिक आख्यानों और काव्य परंपराओं का विकास होने लगा। समय के साथ यह साहित्यिक परंपरा असम की सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक चेतना का दर्पण बन गई।

ऐतिहासिक विकास

असमिया साहित्य की प्राचीन धारा भक्ति आंदोलन के प्रभाव में विकसित हुई। संत- कवि शंकरदेव और माधवदेव ने ‘नामघोष’ और ‘किर्तन घोषा’ जैसी रचनाओं के माध्यम से असमिया साहित्य को धार्मिक और नैतिक चेतना से समृद्ध किया।
औपनिवेशिक काल में यह साहित्य पुनरुत्थान की दिशा में अग्रसर हुआ। इस काल के प्रमुख साहित्यकारों में लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ, हेमचंद्र बरुआ और ज्योति प्रसाद अग्रवाल जैसे रचनाकार शामिल थे, जिन्होंने आधुनिक असमिया साहित्य की नींव रखी।

आधुनिक काल और स्वतंत्रोत्तर साहित्य

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद असमिया साहित्य ने नई चेतना और विषयवस्तु के साथ एक नया आयाम प्राप्त किया। इस दौर में बीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य, इंदिरा गोस्वामी (मामोनी रैसाम गोस्वामी) और हिरेन भट्टाचार्य जैसे सशक्त लेखकों ने असमिया कथा-साहित्य और कविता को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
इन लेखकों की रचनाओं में सामाजिक यथार्थ, मानवीय संवेदनाएँ और असमिया पहचान के संघर्ष को प्रमुख रूप से अभिव्यक्ति मिली।

साहित्य की विविध विधाएँ

असमिया साहित्य अपने स्वरूप में अत्यंत बहुआयामी है। इसमें —

  • कविता,
  • कथा-साहित्य,
  • गैर-कथा लेखन,
  • इतिहास और जीवनी,
  • धार्मिक साहित्य, तथा
  • लोककथाओं और लोकगीतों का विस्तृत संसार शामिल है।

इन विविध विधाओं के माध्यम से असमिया समाज के जीवन-मूल्य, संघर्ष, और सांस्कृतिक परंपराएँ सशक्त रूप में व्यक्त हुई हैं।

असमिया लिपि और भाषिक स्वरूप

असमिया लिपि की उत्पत्ति ब्राह्मी लिपि से मानी जाती है। वर्तमान असमिया वर्णमाला में लगभग 11 स्वर (Vowels) और 42 व्यंजन (Consonants) पाए जाते हैं। यह लिपि दृश्यरूप से बांग्ला लिपि से मिलती-जुलती है, किंतु ध्वन्यात्मक और व्याकरणिक दृष्टि से कई स्थानों पर भिन्न भी है।

असमिया साहित्य का सांस्कृतिक महत्व

असमिया साहित्य न केवल भाषाई रचनात्मकता का उदाहरण है, बल्कि यह असम की सांस्कृतिक चेतना, ऐतिहासिक विरासत और लोकजीवन का जीवंत दस्तावेज़ भी है। इस साहित्य में असम के समाज, परंपराओं, त्योहारों और लोक-विश्वासों का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है।
आज भी असमिया साहित्य उत्तर-पूर्व भारत की पहचान का एक महत्वपूर्ण आधार बना हुआ है और यह निरंतर विकसित होता जा रहा है।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि असमिया साहित्य का इतिहास न केवल भाषा के विकास का, बल्कि असम की आत्मा के जागरण का भी इतिहास है। इसकी जड़ें लोकजीवन में गहराई से समाई हुई हैं, और इसकी शाखाएँ आधुनिकता की ओर फैल रही हैं। यह साहित्य असम के लोगों की संस्कृति, संवेदना और संघर्ष का सशक्त प्रतीक है — जो आज भी अपनी जीवंतता बनाए हुए है।

निष्कर्ष

असमिया भाषा भारतीय भाषाओं की समृद्ध परंपरा में एक अद्वितीय स्थान रखती है। इसकी ऐतिहासिक जड़ें गहरी हैं, साहित्यिक विकास व्यापक है और सांस्कृतिक योगदान अमूल्य। “चर्यापद” से लेकर “अरुणोदय” तक की यात्रा असमिया भाषा के निरंतर विकास और जीवंतता का प्रमाण है।

आज असमिया न केवल असम राज्य की पहचान है, बल्कि यह भारत की भाषाई विविधता में एक अनमोल रत्न के समान है — जो अपने अतीत की गौरवगाथा, वर्तमान की चेतना और भविष्य की संभावनाओं को एक साथ संजोए हुए है।


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