आईएनएस विक्रांत | भारत का स्वदेशी विमानवाहक पोत

आईएनएस विक्रांत पर आधारित यह लेख भारत के पहले स्वदेशी विमानवाहक पोत के निर्माण, डिज़ाइन, तकनीकी विशेषताओं और सामरिक महत्त्व की गहराई से पड़ताल करता है। यह पोत “आत्मनिर्भर भारत” की सैन्य क्षमताओं का सशक्त उदाहरण है, जिसे भारतीय नौसेना के वॉरशिप डिज़ाइन ब्यूरो द्वारा डिज़ाइन और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा निर्मित किया गया है। लेख में INS विक्रांत की लंबाई, चौड़ाई, गति, विस्थापन, उड़ान डेक, विमान संचालन क्षमता, आंतरिक ढाँचे जैसे 2,300 कक्ष और मेडिकल सुविधाओं से लेकर युद्ध प्रबंधन प्रणाली तक की विस्तृत जानकारी दी गई है।

यह पोत 1,600 से अधिक नौसैनिकों को समायोजित कर सकता है, जिसमें महिला अधिकारी भी शामिल हैं। साथ ही, लेख INS विक्रांत (R11) की ऐतिहासिक भूमिका, विशेष रूप से 1971 भारत-पाक युद्ध में इसके योगदान और बाद में संग्रहालय पोत के रूप में उसके जीवन की भी चर्चा करता है। इसमें INS विक्रांत की लागत, परियोजना देरी, स्वदेशी योगदान के आँकड़े और इसके कमीशनिंग की प्रक्रिया को भी वर्णित किया गया है। यह लेख भारत की समुद्री सुरक्षा, सामरिक प्रभुत्व, नौसैनिक कूटनीति और तकनीकी आत्मनिर्भरता को समझने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। यह न केवल रक्षा क्षेत्र से जुड़े छात्रों और शोधकर्ताओं, बल्कि आम पाठकों के लिए भी अत्यंत उपयोगी है।

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परिचय: समुद्री शक्ति का नया युग

विमानवाहक पोतों को अक्सर “तैरता हुआ हवाई अड्डा” कहा जाता है — और सही भी है, क्योंकि ये युद्धपोत किसी देश की समुद्री शक्ति, सामरिक प्रभुत्व और कूटनीतिक क्षमताओं का प्रतीक होते हैं। ऐसे पोत, जो समुद्र की लहरों पर चलते हुए लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों को उड़ान भरने और वापसी की सुविधा देते हैं, आधुनिक युद्ध प्रणाली में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

भारत के लिए यह गौरव का विषय है कि उसने न केवल एक विमानवाहक पोत का निर्माण किया, बल्कि उसे पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से तैयार किया। “आईएनएस विक्रांत (IAC-1)” भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत है और यह “आत्मनिर्भर भारत” की अवधारणा को साकार करता है। यह पोत सिर्फ एक जहाज नहीं, बल्कि देश के समुद्री भविष्य की दिशा में बढ़ाया गया एक ऐतिहासिक कदम है।

विमानवाहक पोत क्या होता है?

विमानवाहक पोत (Aircraft Carrier) अत्याधुनिक युद्धपोत होता है जिसमें एक लंबा उड़ान डेक, एयर ट्रैफिक कंट्रोल प्रणाली, और विमानों के टेकऑफ एवं लैंडिंग की व्यवस्था होती है। यह समुद्र के मध्य स्थित एक पूर्ण हवाई अड्डा होता है, जहां से विमान उड़ सकते हैं, मिशन पूरा कर सकते हैं और फिर सुरक्षित लौट सकते हैं।

इन पोतों का प्रयोग केवल युद्ध तक सीमित नहीं होता, बल्कि ये समुद्री कूटनीति, शक्ति प्रदर्शन, आपदा प्रबंधन, मानवीय सहायता और आपातकालीन निकासी अभियानों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

INS विक्रांत (IAC-1): स्वदेशी सैन्य तकनीक का चमत्कार

डिज़ाइन और निर्माण की विशेषताएँ

आईएनएस विक्रांत को भारतीय नौसेना के वॉरशिप डिज़ाइन ब्यूरो (WDB) द्वारा डिज़ाइन किया गया और कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (CSL), कोच्चि में निर्मित किया गया। यह पोत “विक्रांत-क्लास” का पहला जहाज है और इसके निर्माण में अत्याधुनिक इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी और तकनीकी विशेषज्ञता का उपयोग किया गया।

  • डेक क्षेत्रफल: 12,500 वर्ग मीटर
  • स्वदेशी योगदान: लगभग 75%
    • हुल: 90%
    • प्रणोदन प्रणाली: 50%
    • हथियार प्रणाली: 30%

प्रणोदन और युद्ध प्रबंधन प्रणाली

इस पोत में कुल 4 जनरल इलेक्ट्रिक LM2500+ गैस टर्बाइनों के माध्यम से 1,10,000 हॉर्सपावर (लगभग 88 मेगावॉट) की शक्ति मिलती है, जो इसे 28 नॉट की अधिकतम गति प्रदान करती है।

इसका कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम (CMS) टाटा पावर स्ट्रैटेजिक इंजीनियरिंग डिवीजन और एक रूसी कंपनी के सहयोग से विकसित किया गया है, जिससे यह पोत अत्यंत प्रभावी, विश्वसनीय और बहुस्तरीय रक्षा क्षमताओं से युक्त है।

INS विक्रांत के प्रमुख तकनीकी आँकड़े

मापदंडविवरण
लंबाई262 मीटर (865 फीट)
चौड़ाई62 मीटर (203 फीट)
विस्थापनलगभग 43,000 टन
गति28 नॉट (~52 किमी/घंटा)
दूरी क्षमता7,500 नॉटिकल मील (भारत से ब्राज़ील तक)
क्रू क्षमतालगभग 1,600 लोग (महिला अधिकारियों सहित)

आधारभूत संरचना और सुविधाएँ

INS विक्रांत की आंतरिक संरचना अत्यंत विकसित और संगठित है, जो इसे एक संपूर्ण युद्ध पोत और मानवीय सहायता मंच दोनों बनाती है।

  • डेक्स और मंज़िलें: कुल 18 मंज़िलें, जिनमें 14 डेक शामिल
  • कक्षों की संख्या: लगभग 2,300
  • चिकित्सा सेवाएँ:
    • 16-बेड अस्पताल
    • 2 ऑपरेशन थिएटर
    • ICU और आइसोलेशन वार्ड
  • खानपान सेवाएँ:
    • 3 आधुनिक पैंट्री
    • एक समय में 600 नौसैनिकों को भोजन परोसने की क्षमता

आधिकारिक कमीशनिंग और लागत विवरण

  • भारतीय नौसेना को सौंपा गया: 28 जुलाई 2022
  • औपचारिक कमीशनिंग: 2 सितंबर 2022, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा, कोच्चि
  • परियोजना लागत: ₹20,000 करोड़ (अनुमानित)
  • परियोजना में देरी: लगभग 12 वर्ष; लागत में 13 गुना वृद्धि
  • फ्लाइट ट्रायल: मध्य 2023 तक पूरा करने की योजना

INS विक्रांत (R11): ऐतिहासिक विरासत

प्रारंभिक परिचय

मूल INS विक्रांत (R11) भारत का पहला विमानवाहक पोत था, जिसे 1961 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया। यह रॉयल नेवी के लिए HMS Hercules के रूप में निर्मित किया गया था, परंतु भारत ने इसे प्राप्त कर अपनी समुद्री शक्ति का विस्तार किया।

युद्धों में भूमिका

  • 1965 भारत-पाक युद्ध: उस समय मरम्मत प्रक्रिया में होने के कारण युद्ध में भाग नहीं ले सका।
  • 1971 भारत-पाक युद्ध: निर्णायक भूमिका निभाई —
    • पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में वायु हमले
    • समुद्री नाकाबंदी
    • बांग्लादेश की स्वतंत्रता में योगदान

सेवामुक्ति और स्मारक

  • आधुनिकीकरण: 1991-94 के बीच
  • सेवामुक्ति: 1997
  • संग्रहालय पोत: 2001 से 2012 तक मुंबई में
  • विसर्जन: 2014 में नीलामी के बाद स्क्रैप कर दिया गया
  • विक्रांत स्मारक: 25 जनवरी 2016 को मुंबई नौसेना डॉकयार्ड में स्थापित

भारत के लिए INS विक्रांत (IAC-1) का महत्त्व

1. समुद्री सुरक्षा और सामरिक लाभ

हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region – IOR) में भारत की शक्ति प्रक्षेपण क्षमताओं को बढ़ाकर यह पोत देश को “ब्लू वॉटर नेवी” की श्रेणी में मजबूती से स्थापित करता है।

  • समुद्री चोक पॉइंट्स जैसे मलक्का जलडमरूमध्य, हॉर्मुज और अदन की खाड़ी में रणनीतिक उपस्थिति
  • भारत की समुद्री सीमाओं और व्यापार मार्गों की रक्षा
  • मिशन-आधारित तैनाती (Mission Based Deployments) के लिए तत्पर

2. समुद्री कूटनीति और सहयोग

  • मित्र देशों के साथ संयुक्त नौसेना अभ्यास
  • मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) अभियानों में उपयोग
  • एशिया-प्रशांत और हिंद महासागर क्षेत्र में नेतृत्व

3. स्वदेशीकरण और “आत्मनिर्भर भारत”

INS विक्रांत भारत के रक्षा उत्पादन क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक मील का पत्थर है। इससे रक्षा क्षेत्र में तकनीकी नवाचार, रोजगार सृजन और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा मिला है।

  • देश की क्षमता: डिज़ाइन, निर्माण, परीक्षण और संचालन
  • निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों की सहभागिता: जैसे BHEL, L&T, टाटा, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड

4. दोहरे उपयोग की क्षमताएँ

सैन्य भूमिका:

  • वायु प्रभुत्व सुनिश्चित करना
  • समुद्री प्रभुत्व स्थापित करना
  • नौसैनिक अभियान संचालन

गैर-सैन्य भूमिका:

  • प्राकृतिक आपदा के समय राहत अभियान
  • विदेशी देशों से भारतीय नागरिकों की निकासी
  • वैश्विक मानवीय मिशनों में भागीदारी

समुद्री शक्ति की दिशा में निर्णायक कदम

आईएनएस विक्रांत (IAC-1) केवल एक युद्धपोत नहीं, बल्कि भारत की सामरिक संप्रभुता, तकनीकी आत्मनिर्भरता और समुद्री नेतृत्व का सशक्त प्रतीक है। यह पोत भारत की उस यात्रा का उदाहरण है जिसमें संकल्प, परिश्रम और नवाचार की त्रयी ने विश्व स्तरीय उपलब्धि को साकार किया।

मूल INS विक्रांत (R11) की विरासत को सम्मानित करते हुए, यह नया विक्रांत आने वाले दशकों तक भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा करेगा और वैश्विक मंच पर देश को गौरवान्वित करेगा।

“जहाँ समुद्र है, वहाँ शक्ति है – और जहाँ INS विक्रांत है, वहाँ भारत की अदम्य शक्ति है।”

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