हिंदी वर्णमाला में आयोगवाह : अनुस्वार, अनुनासिक, विसर्ग और हलन्त | परिभाषा, प्रयोग एवं महत्व

हिंदी वर्णमाला विश्व की सबसे वैज्ञानिक लिपि व्यवस्था देवनागरी लिपि पर आधारित है। इसमें प्रत्येक ध्वनि का स्पष्ट और स्वतंत्र चिन्ह मौजूद है। स्वर, व्यंजन, संयुक्ताक्षर और विदेशी ध्वनियों के अतिरिक्त हिंदी भाषा में कुछ ऐसे चिह्न भी प्रयुक्त होते हैं जो स्वर या व्यंजन के साथ मिलकर उनकी ध्वन्यात्मकता (phonetics) को बदल देते हैं। इन्हीं विशेष चिह्नों में से एक महत्वपूर्ण श्रेणी है – आयोगवाह

आयोगवाह अपने आप में स्वतंत्र वर्ण नहीं है, बल्कि यह स्वर या व्यंजन के साथ जुड़कर विशेष ध्वनि का निर्माण करता है। हिंदी वर्णमाला में आयोगवाह के दो रूप प्रमुख माने जाते हैं –

  1. अनुस्वार (ं)
  2. विसर्ग (ः)

इन दोनों के अतिरिक्त हिंदी में अनुनासिक (ँ) और हलन्त (्) को भी प्रयोग की दृष्टि से समझना आवश्यक है।

आयोगवाह की परिभाषा और स्वरूप

‘आयोगवाह’ शब्द संस्कृत मूल का है, जिसका अर्थ है – “साथ चलने वाला”। इसका व्युत्पत्तिगत विश्लेषण है – आयोग + वाह। यहाँ ‘आयोग’ का तात्पर्य है “सहयोग या साथ” और ‘वाह’ का अर्थ है “ले जाने वाला”।

इस दृष्टि से आयोगवाह ध्वनियाँ स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त नहीं होतीं, बल्कि केवल सहायक चिह्न के रूप में ही प्रयोग की जाती हैं। इन्हें ‘आयोग्य’ भी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ये स्वयं पूर्ण स्वर या व्यंजन नहीं हैं, बल्कि ध्वनि को विशेष रूप देने का कार्य करती हैं।

आयोगवाह की परिभाषा:

“हिंदी वर्णमाला में वे चिह्न जो स्वतंत्र रूप से प्रयुक्त नहीं होते, बल्कि स्वर अथवा व्यंजन के साथ मिलकर उनकी ध्वनि को विशेषता प्रदान करते हैं, उन्हें आयोगवाह कहते हैं।”

👉 सरल शब्दों में,
आयोगवाह अपने आप में पूर्ण स्वर या व्यंजन नहीं होते, बल्कि सहायक चिह्न होते हैं। ये ध्वनि को नासिक्य या हकारात्मक बना देते हैं।

हिंदी में आयोगवाह के प्रमुख रूप हैं –

  1. अनुस्वार (ं)
  2. अनुनासिक (ँ)
  3. विसर्ग (ः)
  4. हलन्त (्)

आयोगवाह के प्रकार

हिंदी वर्णमाला में आयोगवाह दो मुख्य रूपों में पाए जाते हैं –

  1. अनुस्वार (ं)
  2. विसर्ग (ः)

इसके साथ ही अनुनासिक (ँ) और हलन्त (्) को भी वर्ण-विज्ञान में आयोगवाह के अंतर्गत गिना जाता है।

आइए इन्हें विस्तार से समझें –

1. अनुस्वार (Anusvāra)

परिभाषा

अनुस्वार का प्रतीक चिन्ह (ं) है। हिंदी वर्णमाला में इसकी संख्या केवल एक है – अं। यह मूलतः व्यंजनात्मक चिह्न है। अनुस्वार का उच्चारण करते समय नासिका से हल्की ध्वनि निकलती है, जो आधे न् के समान होती है।

प्रयोग और उदाहरण

अनुस्वार का प्रयोग सामान्यतः पंचमाक्षर (पंचम वर्ण) के स्थान पर किया जाता है। पंचमाक्षर से अभिप्राय है –

  • क वर्ग का पंचम : ङ
  • च वर्ग का पंचम : ञ
  • ट वर्ग का पंचम : ण
  • त वर्ग का पंचम : न
  • प वर्ग का पंचम : म

नियम:
जब किसी शब्द में इन पंचम वर्णों का प्रयोग होता है, तो प्रायः सुविधा हेतु उनकी जगह अनुस्वार का चिन्ह लगा दिया जाता है।
उदाहरण –

  • गड़्गा → गंगा
  • चञ्चल → चंचल
  • झण्डा → झंडा
  • गन्दा → गंदा
  • कम्पन → कंपन

अनुस्वार के प्रयोग से संबंधित नियम

  1. भिन्न वर्ग का वर्ण आने पर परिवर्तन नहीं
    यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आ जाए, तो पंचमाक्षर अनुस्वार में परिवर्तित नहीं होता।
  • उदाहरण: वाङ्मय, अन्य, चिन्मय, उन्मुख।
    (ये रूप वांमय, अंय, चिंमय, उंमुख नहीं होंगे।)
  1. द्वित्व रूप में आने पर परिवर्तन नहीं
    यदि पंचम वर्ण लगातार (द्वित्व रूप में) आए, तो उसे अनुस्वार में नहीं बदला जाता।
  • उदाहरण: प्रसन्न, अन्न, सम्मेलन।
    (ये प्रसंन, अंन, संमेलन नहीं लिखे जाते।)
  1. अंतस्थ और ऊष्म व्यंजन से पहले परिवर्तन नहीं
    यदि अनुस्वार के बाद य, र, ल, व (अंतस्थ) या श, ष, स, ह (ऊष्म) आएँ, तो अनुस्वार अपने मूल रूप (बिंदु) में ही रहता है।
  • उदाहरण: अन्य, कन्हैया, संशय, संयम।

2. अनुनासिक (Anunāsika – Chandrabindu)

परिभाषा

अनुनासिक का प्रतीक (ँ) है, जिसे चंद्रबिंदु कहते हैं। जब किसी स्वर का उच्चारण मुख और नासिका दोनों मार्गों से किया जाता है, तो उस स्वर के ऊपर चंद्रबिंदु लगाया जाता है।

उदाहरण

  • हँसना
  • आँख
  • माँ

अनुनासिक के स्थान पर बिंदु का प्रयोग

जब स्वर की मात्रा (जैसे – ए, ऐ, ओ, औ आदि) पहले से शिरोरेखा के ऊपर लगी हो, तो सुविधा के लिए चंद्रबिंदु की जगह अनुस्वार का बिंदु (ं) लिख दिया जाता है।

  • उदाहरण: मैं, बिंदु, गोंद।

अनुस्वार और अनुनासिक में अंतर

  • अनुस्वार : यह मूलतः व्यंजन है।
  • अनुनासिक : यह स्वर है।

इनके प्रयोग से कई बार शब्द का अर्थ भी बदल जाता है।

  • हंस (एक पक्षी)
  • हँस (हँसने की क्रिया)

3. विसर्ग (Visarga)

परिभाषा

विसर्ग का चिन्ह (ः) है। इसकी संख्या भी हिंदी में केवल एक है – अः। यह हमेशा स्वर के बाद आता है और इसके उच्चारण में ‘ह’ अथवा ‘हकार’ जैसी ध्वनि निकलती है।

प्रयोग

  • रामः
  • प्रातः
  • अतः
  • सम्भवतः

ध्वन्यात्मक विशेषताएँ

विसर्ग अपने आप में स्वतंत्र ध्वनि नहीं है, बल्कि स्वराश्रित है। इसका उच्चारण ह् या हा के समान होता है।

उच्चारण के नियम

  1. यदि विसर्ग से पहले हृस्व स्वर हो → ‘ह’ जैसा उच्चारण।
    • उदाहरण: केशवः = केशव (ह)
  2. यदि विसर्ग से पहले दीर्घ स्वर हो → ‘हा’ जैसा उच्चारण।
    • उदाहरण: बालाः = बाला (हा)
  3. विशेष स्वर-स्थितियाँ –
    • ‘ओ’ + विसर्ग → ‘हो’
    • ‘इ’ + विसर्ग → ‘हि’
    • ‘उ’ + विसर्ग → ‘हु’
    • ‘ऐ’ + विसर्ग → ‘हि’
    • ‘ए’ + विसर्ग → ‘हे’

उदाहरण:

  • भोः = भो (हो)
  • मतिः = मति (हि)
  • चक्षुः = चक्षु (हु)
  • देवैः = देवै (हि)
  • भूमेः = भूमे (हे)

4. हलन्त (Halanta)

परिभाषा

हलन्त का चिन्ह (्) है। जब किसी व्यंजन का प्रयोग बिना स्वर के किया जाता है, तब उसके नीचे एक तिरछी रेखा (्) लगा दी जाती है। इस रेखा को हल कहते हैं और इस रूप को हलन्त व्यंजन

उदाहरण

  • विद्या + अं = विद्यां
  • क्, ख्, ग्, म् इत्यादि।

भाषावैज्ञानिक दृष्टि

देवनागरी के अलावा ब्राह्मी से निकली लगभग सभी लिपियों में इसका प्रयोग होता है। अलग-अलग भाषाओं में इसके अलग नाम हैं –

  • देवनागरी : हलन्त
  • मलयालम : चन्द्रकला

प्रयोग

यह व्यंजन में छिपे हुए ‘अ’ को समाप्त कर देता है। सामान्यतः प्रत्येक व्यंजन के साथ ‘अ’ निहित रहता है।

  • क = ‘क + अ’
  • क् = केवल ‘क’ (स्वरहीन)

आयोगवाह का भाषिक महत्व

  1. ध्वनि की शुद्धता
    अनुस्वार, अनुनासिक और विसर्ग हिंदी उच्चारण की शुद्धता बनाए रखते हैं।
  2. अर्थभेद
    कई शब्द केवल इनके प्रयोग से भिन्न अर्थ देने लगते हैं।
  • हंस (पक्षी) / हँस (क्रिया)।
  1. लिप्यात्मक सौंदर्य
    चंद्रबिंदु, बिंदु और विसर्ग जैसे चिह्न देवनागरी लिपि की वैज्ञानिकता और सौंदर्य को बढ़ाते हैं।
  2. व्याकरणिक आवश्यकता
    संस्कृत और हिंदी के संयुक्त शब्दों में, विशेषतः संधि-विच्छेद और समास के प्रयोग में, आयोगवाह का महत्त्व अत्यधिक है।

Quick Revision Table : आयोगवाह

क्रमआयोगवाह का प्रकारचिन्हसंख्यापरिभाषाउदाहरण
1.अनुस्वार (Anusvāra)1 (अं)यह पंचमाक्षरों (ङ, ञ, ण, न, म) के स्थान पर प्रयुक्त होने वाला व्यंजनात्मक चिह्न है। नासिक्य ध्वनि के रूप में आधा “न्” व्यक्त करता है।गंगा, संजय, कंपन
2.अनुनासिक (Anunāsika / Chandrabindu)1जब स्वर का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से होता है तब स्वर के ऊपर चंद्रबिंदु लगाया जाता है। यह स्वर की नासिक्य ध्वनि को प्रकट करता है।माँ, हँसना, आँख
3.विसर्ग (Visarga)1 (अः)यह स्वर के बाद आने वाला चिह्न है। इसका उच्चारण ‘ह’ अथवा ‘हा’ की तरह होता है। यह स्वतंत्र वर्ण नहीं है, स्वराश्रित है।रामः, प्रातः, अतः
4.हलन्त (Halanta)यह व्यंजन में निहित ‘अ’ को समाप्त कर देता है। स्वर रहित व्यंजन को दिखाने के लिए प्रयोग होता है।क्, म्, विद्यां

निष्कर्ष

आयोगवाह हिंदी वर्णमाला का वह अंश है जो अपने आप में स्वतंत्र न होते हुए भी भाषा को सशक्त और शुद्ध बनाने में अनिवार्य भूमिका निभाता है। अनुस्वार, अनुनासिक, विसर्ग और हलन्त के प्रयोग से न केवल ध्वनि-सौंदर्य में वृद्धि होती है, बल्कि शब्दों के सही अर्थ और उच्चारण की भी रक्षा होती है।

संस्कृत और हिंदी दोनों ही भाषाओं में आयोगवाह का महत्व समान रूप से स्वीकार किया गया है। यह कहा जा सकता है कि आयोगवाह हिंदी की ध्वन्यात्मक संरचना की रीढ़ है, जो लिपि की वैज्ञानिकता और ध्वन्यात्मक परिपूर्णता को सुनिश्चित करता है।


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