इसरो | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन | 1969 – Present

भारतीय विज्ञान की सबसे बड़ी जीत इसरो, जिसका संक्षिप्त रूप में अर्थ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन है। इसरो भारत की सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी है जो राष्ट्रीय अंतरिक्ष संसाधनों की देखरेख और उनके रखरखाव का ध्यान रखती हैं, साथ ही नई-नई और बड़ी खोज से भारत का नाम देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी रोशन करती आई है। यदि बात करें इसरो के मुख्य कार्यालय की तो वह बेंगलुरु में स्थित है जिसका पूरा विभाग भारतीय सरकार के निर्देशानुसार काम करता है और स्पेस सेंटर में होने वाले प्रत्येक कार्य की रिपोर्ट सीधे प्रधानमंत्री को पहुँचाती है।

भारत का सबसे बड़ा स्पेस सेंटर जोकि कर्नाटक राज्य की राजधानी बेंगलुरु में स्थित है यह एक ऐसा स्थान है, जिसने भारत को गर्व महसूस कराने में अपनी पूरी मेहनत लगा दी है। इसका निर्माण 15 अगस्त 1959 में किया गया था। इसरो की स्थापना करने वाले व्यक्ति जिन्हें इसरो के पिता के रूप में माना जाता है उनका नाम विक्रम अंबालाल साराभाई है। इस अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की नींव रखने वाले मुख्य व्यक्ति विक्रम साराभाई ही थे।

आज के समय में यदि अनुमान लगाया जाए तो लगभग 17000 व्यक्ति इस अंतरिक्ष अनुसंधान में कार्यरत हैं। सबसे अचंभित कर देने वाली बात तो यह है कि वे सभी वैज्ञानिक अपने परिवार से दूर रहते हैं और उन्होंने अपना अमूल्य जीवन इसरो को समर्पित कर दिया है।

इस अनुसंधान द्वारा कई सारे भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम किए गए, जिनकी शुरुआत सन 1962 में हुई थी। भारतीय अनुसंधान ने पूरे देश में अपनी एक ऐसी छाप छोड़ी है कि यदि उनके द्वारा किए गए खर्चों का आंकलन किया जाए तो वह इसरो द्वारा खर्चे जाने वाले आंकड़ों से काफी हद तक कम है। यहां तक कि सबसे अधिक सैटेलाइट भारत के इस अनुसंधान द्वारा ही छोड़े गए हैं ऐसा रिकॉर्ड ऐतिहासिक तौर पर दर्ज किया जा चुका है।

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इसरो का इतिहास

इसरो | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन | 1969 - Present

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान आज जिस मुकाम पर है इसके पीछे एक गहरा इतिहास छुपा हुआ है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान की इस सफलता का राज इसके पीछे छुपी हुई कड़ी मेहनत और देश के प्रति समर्पित होने वाले व्यक्ति हैं जिन्होंने आज इसरो का नाम पूरे विश्व में सबसे ऊपर लाकर खड़ा कर दिया है।

इसरो एक ऐसा नाम है जिसकी शुरुआत 1920 के दशक में ही हो गई थी, जब वैज्ञानिक एस.के. मित्रा ने कोलकाता शहर में भूमि आधारित रेडियो प्रणाली को लागू करने के लिए और आयन मंडल की ध्वनि के लिए कई सारे प्रयोग किए थे। बाद में देश के कुछ और जाने-माने वैज्ञानिक भी वैज्ञानिक सिद्धांतों के निर्माण के लिए आगे आए, जिनमें से सीवी रमन और मेघनाद सहाय मुख्य थे। इन दोनों का भी वैज्ञानिक सिद्धांतों को पूर्ण करने में महत्वपूर्ण योगदान था।

कुछ समय पश्चात लगभग सन् 1945 के बाद एक ऐसा समय आया जब भारत धीरे-धीरे विकास करने लगा, ठीक इसी प्रकार अंतरिक्ष अनुसंधानों को लेकर भी कई सारे महत्वपूर्ण विकास किए जाने लगे। सन 1945 के दशक में 2 महान वैज्ञानिक जिन्होंने सबसे पहले अपनी सोच और समझ से इसरो के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

उन दोनों वैज्ञानिको का नाम होमी भाभा और विक्रम साराभाई था। उन्होंने कई सारे प्रयोग करके अंतरिक्ष अनुसंधानों का निर्माण किया जिसमें सबसे पहले उन्होंने कॉस्मिक किरणों का अध्ययन किया। बाद में उन्होंने वायु परीक्षण, कोलार खानो में गहरे भूमिगत प्रयोग और ऊपरी वायुमंडल का संपूर्ण अध्ययन करके एक मुख्य अध्ययन अनुसंधान प्रयोगशाला और कुछ विद्यालयों एवं स्वतंत्र स्थानों का निर्माण किया।

1960-1970

भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम डॉ विक्रम साराभाई की संकल्पना है, जिन्हें भारतीय अन्तरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा गया है। वे वैज्ञानिक कल्पना एवं राष्ट्र-नायक के रूप में जाने गए। 1957 में स्पूतनिक के प्रक्षेपण के बाद, उन्होंने कृत्रिम उपग्रहों की उपयोगिता को भांपा। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू, जिन्होंने भारत के भविष्य में वैज्ञानिक विकास को अहम् भाग माना, 1961 में अंतरिक्ष अनुसंधान को परमाणु ऊर्जा विभाग की देखरेख में रखा।

परमाणु उर्जा विभाग के निदेशक होमी भाभा, जो कि भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक माने जाते हैं, 1962 में ‘अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति’ (इनकोस्पार) का गठन किया, जिसमें डॉ॰ साराभाई को सभापति के रूप में नियुक्त किया

जापान और यूरोप को छोड़कर, हर मुख्य अंतरिक्ष कार्यक्रम कि तरह, भारत ने अपने विदित सैनिक प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम को सक्षम कराने में लगाने के बजाय, कृत्रिम उपग्रहों को प्रक्षेपण में समर्थ बनाने के उद्धेश्य हेतु किया। 1962 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की स्थापना के साथ ही, इसने अनुसंधित रॉकेट का प्रक्षेपण शुरू कर दिया, जिसमें भूमध्य रेखा की समीपता वरदान साबित हुई।

ये सभी नव-स्थापित थुंबा भू-मध्यीय रॉकेट अनुसंधान केन्द्र से प्रक्षेपित किए गए, जो कि दक्षिण केरल में तिरुवंतपुरम के समीप स्थित है। शुरुआत में, अमेरिका एवं फ्रांस के अनुसंधित रॉकेट क्रमश: नाइक अपाचे एवं केंटोर की तरह, उपरी दबाव का अध्ययन करने के लिए प्रक्षेपित किए गए, जब तक कि प्रशांत महासागर में पोत-आधारित अनुसंधित रॉकेट से अध्ययन शुरू न हुआ।

ये इंग्लैंड और रूस की तर्ज पर बनाये गये। फिर भी पहले दिन से ही, अंतरिक्ष कार्यक्रम की विकासशील देशी तकनीक की उच्च महत्वाकांक्षा थी और इसके चलते भारत ने ठोस इंधन का प्रयोग करके अपने अनुसंधित रॉकेट का निर्माण शुरू कर दिया, जिसे रोहिणी की संज्ञा दी गई।

भारत अंतरिक्ष कार्यक्रम ने देशी तकनीक की आवश्यकता, एवं कच्चे माल एवं तकनीक आपूर्ति में भावी अस्थिरता की संभावना को भांपते हुए, प्रत्येक माल आपूर्ति मार्ग, प्रक्रिया एवं तकनीक को अपने अधिकार में लाने का प्रयत्न किया। जैसे जैसे भारतीय रोहिणी कार्यक्रम ने और अधिक संकुल एवं वृहताकार रोकेट का प्रक्षेपण जारी रखा, अंतरिक्ष कार्यक्रम बढ़ता चला गया और इसे परमाणु उर्जा विभाग से विभाजित कर, अपना अलग ही सरकारी विभाग दे दिया गया। परमाणु उर्जा विभाग के अंतर्गत इन्कोस्पार कार्यक्रम से 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का गठन किया गया, जो कि प्रारम्भ में अंतरिक्ष मिशन के अंतर्गत कार्यरत था और परिणामस्वरूप जून, 1972 में, अंतरिक्ष विभाग की स्थापना की गई।

1970-2000

2003 के दशक में डॉ॰ साराभाई ने टेलीविजन के सीधे प्रसारण के जैसे बहुल अनुप्रयोगों के लिए प्रयोग में लाये जाने वाले कृत्रिम उपग्रहों की सम्भव्यता के सन्दर्भ में नासा के साथ प्रारंभिक अध्ययन में हिस्सा लिया और अध्ययन से यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि, प्रसारण के लिए यही सबसे सस्ता और सरल साधन है।

शुरुआत से ही, उपग्रहों को भारत में लाने के फायदों को ध्यान में रखकर, साराभाई और इसरो ने मिलकर एक स्वतंत्र प्रक्षेपण वाहन का निर्माण किया, जो कि कृत्रिम उपग्रहों को कक्ष में स्थापित करने, एवं भविष्य में वृहत प्रक्षेपण वाहनों में निर्माण के लिए आवश्यक अभ्यास उपलब्ध कराने में सक्षम था। रोहिणी श्रेणी के साथ ठोस मोटर बनाने में भारत की क्षमता को परखते हुए, अन्य देशो ने भी समांतर कार्यक्रमों के लिए ठोस रॉकेट का उपयोग बेहतर समझा और इसरो ने कृत्रिम उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (एस.एल.वी.) की आधारभूत संरचना एवं तकनीक का निर्माण प्रारम्भ कर दिया। अमेरिका के स्काउट रॉकेट से प्रभावित होकर, वाहन को चतुर्स्तरीय ठोस वाहन का रूप दिया गया।

इस दौरान, भारत ने भविष्य में संचार की आवश्यकता एवं दूरसंचार का पूर्वानुमान लगते हुए, उपग्रह के लिए तकनीक का विकास प्रारम्भ कर दिया। भारत की अंतरिक्ष में प्रथम यात्रा 1975 में रूस के सहयोग से इसके कृत्रिम उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण से शुरू हुयी। 1979 तक, नव-स्थापित द्वितीय प्रक्षेपण स्थल सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से एस.एल.वी. प्रक्षेपण के लिए तैयार हो चुका था। द्वितीय स्तरीय असफलता की वजह से इसका 1979 में प्रथम प्रक्षेपण सफल नहीं हो पाया था। 1980 तक इस समस्या का निवारण कर लिया गया। भारत का देश में प्रथम निर्मित कृत्रिम उपग्रह रोहिणी-प्रथम प्रक्षेपित किया गया।

अमरीकी प्रतिबंध

सोवियत संघ के साथ भारत के बूस्टर तकनीक के क्षेत्र में सहयोग का अमरीका द्वारा परमाणु अप्रसार नीति की आड़ में काफी प्रतिरोध किया गया। 1992 में भारतीय संस्था इसरो और सोवियत संस्था ग्लावकास्मोस पर प्रतिबंध की धमकी दी गयी। इन धमकियों की वजह से सोवियत संघ ने इस सहयोग से अपना हाथ पीछे खींच लिया। सोवियत संघ क्रायोजेनिक लिक्वीड राकेट इंजन तो भारत को देने के लिये तैयार था लेकिन इसके निर्माण से जुड़ी तकनीक देने को तैयार नही हुआ जो भारत सोवियत संघ से खरीदना चाहता था।

इस असहयोग का परिणाम यह हुआ कि भारत अमरीकी प्रतिबंधों का सामना करते हुये भी सोवियत संघ से बेहतर स्वदेशी तकनीक दो सालो के अथक शोध के बाद विकसित कर ली। 5 जनवरी 2014 को, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का सफल परीक्षण भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान की डी5 उड़ान में किया।

इसरो के प्रमुख कार्य

इसरो के बहुत से मुख्य कार्य हैं जो निम्नलिखित हैं-

  • इसरो का सर्वप्रथम मुख्य कार्य अंतरिक्ष में लांच होने वाले व्हीकल सिस्टम और साउंडिंग रॉकेट के संपूर्ण डिज़ाइन बनाने का और उसके विकास की प्राप्ति करने का और उन्हें ठीक तरह से अंतरिक्ष में लॉन्च करने का है।
  • उनका दूसरा प्रमुख कार्य यह है कि वह भारतीय जनता के लिए दूरसंचार टेलीविजन प्रसारण सुरक्षा आवश्यकताओं और सामाजिक अनु प्रयोगों के लिए समय-समय पर संचार उपग्रहों को डिजाइन करते रहे और उन्हें अंतरिक्ष में भेजते रहें। ताकि हम ठीक तरह से सभी प्रकार के टेलीविजन इंटरनेट और रेडियो आदि का इस्तेमाल कर सकें।
  • बड़ी-बड़ी नाव के संचालन हेतु वे उपग्रहों और अंतरिक्ष आधारित प्रणालियों के उचित डिज़ाइन बनाते हैं तथा उनके विकास और प्राप्ति की देखरेख पूरी तरह से करते हैं।
  • प्रकृति द्वारा प्राप्त सभी प्रकार के संसाधनों के मानचित्रण पर पूरी तरह से निगरानी करने के लिए इसरो उपग्रहों के डिजाइन बनाता हैं, जोकि पृथ्वी पर होने वाली सभी आपदाओं का पहले से ही अनुमान लगाने में सक्षम होते हैं।
  • कई सारे प्रबंधन की ज़िम्मेदारी भी इसरो पर ही होती है जैसे प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन, आपदा प्रबंधन, सहायता और कई सामाजिक अनुप्रयोगों में योगदान आदि।
  • अंतरिक्ष से जुड़ी जितनी भी वस्तुएँ रॉकेट या फिर कोई भी प्रकार का उपकरण बनाया गया है तो उनकी पूरी जांच परख करना और उनकी अच्छे से देखरेख करना भी इसरो का मुख्य कार्य है।
  • इसरो के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक देश के लिए कुछ ऐसे हथियार बनाना, जिनकी सहायता से किसी भी प्रकार के युद्ध या फिर कोई भी सीक्रेट मिशन के लिए भारत देश की जनता व सरकार सदैव तत्पर रहे।

प्रक्षेपण यान

1960 और 1970 के दशक के दौरान, भारत ने अपने राजनीतिक और आर्थिक आधार के कारण से स्वयं के प्रक्षेपण यान कार्यक्रम की शुरूआत की। 1960-1970 के दशक में, देश में सफलतापूर्वक साउंडिंग रॉकेट कार्यक्रम विकसित किया गया। और 1980 के दशक से उपग्रह प्रक्षेपण यान-3 पर अनुसंधान का कार्य किया गया। इसके बाद ने पीएसएलवी जीएसएलवी आदि रॉकेट को विकसित किया। हिंदुस्तान से जुड़ी कुछ अनसुनी और रोचक बातें एक भारतीय होने के नाते आपको भारत से जुड़ी यह बातें जरूर जान लेनी चाहिए वैसे तो भारत कि हर बात खास और रोमांचक होती है। चाहे वह बात भारत के इतिहास के बारे में हो या फिर संस्कृति के बारे में।

उपग्रह प्रक्षेपण यान

उपग्रह प्रक्षेपण यान या एसएलवी (SLV) परियोजना भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा 1970 के दशक में शुरू हुई परियोजना है जो उपग्रहों को प्रक्षेपित करने के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए की गयी थी। उपग्रह प्रक्षेपण यान परियोजना एपीजे अब्दुल कलाम की अध्यक्षता में की गयी थी। उपग्रह प्रक्षेपण यान का उद्देश्य 400 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचना और 40 किलो के पेलोड को कक्षा में स्थापित करना था। अगस्त 1979 में एसएलवी-3 की पहली प्रायोगिक उड़ान हुई, परन्तु यह विफल रही।

संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान

संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (Augmented Satellite Launch Vehicle) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित एक पांच चरण ठोस ईंधन रॉकेट था। यह पृथ्वी की निचली कक्ष में 150 किलो के उपग्रहों स्थापित करने में सक्षम था। इस परियोजना को भू-स्थिर कक्षा में पेलोड के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए 1980 के दशक के दौरान भारत द्वारा शुरू किया गया था। इसका डिजाइन उपग्रह प्रक्षेपण यान पर आधारित था 

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान या पी.एस.एल.वी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा संचालित एक उपभोजित प्रक्षेपण प्रणाली है। भारत ने इसे अपने सुदूर संवेदी उपग्रह को सूर्य समकालिक कक्षा में प्रक्षेपित करने के लिये विकसित किया है। पीएसएलवी के विकास से पूर्व यह सुविधा केवल रूस के पास थी। पीएसएलवी छोटे आकार के उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में भी भेजने में सक्षम है। अब तक पीएसएलवी की सहायता से 70 अन्तरिक्षयान (30 भारतीय + 40 अन्तरराष्ट्रीय) विभिन्न कक्षाओं में प्रक्षेपित किये जा चुके हैं। इससे इस की विश्वसनीयता एवं विविध कार्य करने की क्षमता सिद्ध हो चुकी है।

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान है। जीएसएलवी का इस्तेमाल अब तक बारह लॉन्च में किया गया है, 2001 में पहली बार लॉन्च होने के बाद से 29 मार्च 2018 को जीएसएटी -6 ए संचार उपग्रह ले जाया गया था। ये यान उपग्रह को पृथ्वी की भूस्थिर कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है।

जीएसएलवी ऐसा बहुचरण रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36000 कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा की सीध में होता है। ये रॉकेट अपना कार्य तीन चरण में पूरा करते हैं। इनके तीसरे यानी अंतिम चरण में सबसे अधिक बल की आवश्यकता होती है। रॉकेट की यह आवश्यकता केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकते हैं।इसलिए बिना क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट का निर्माण मुश्किल होता है।

अधिकतर काम के उपग्रह दो टन से अधिक के ही होते हैं। इसलिए विश्व भर में छोड़े जाने वाले 50 प्रतिशत उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं।जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर निश्चित कि॰मी॰ की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है। यही इसकी की प्रमुख विशेषता है। हालांकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 (जीएसएलवी मार्क 3) नाम साझा करता है, यह एक पूरी तरह से अलग लॉन्चर है।

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क 3

भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3स्थिति: सेवा मेभूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान संस्करण 3 : Geosynchronous Satellite Launch Vehicle mark 3, or GSLV Mk3, जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लाँच वहीकल मार्क 3, या जीएसएलवी मार्क 3), जिसे लॉन्च वाहन मार्क 3 (LVM 3) भी कहा जाता है, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित एक प्रक्षेपण वाहन (लॉन्च व्हीकल) है।

इसरो द्वारा लांच की गई सैटेलाइट्स की सूची

यदि आज के समय तक इसरो की कामयाबी के बारे में गिनती की जाए तो एक अनुमानित आंकड़ा कहता है कि आज की वर्तमान स्थिति में इसरो द्वारा लगभग 105 सैटेलाइट अंतरिक्ष की ओर लांच किए जा चुके हैं। इसरो ने केवल भारत के लिए ही यान लांच नहीं किए हैं बल्कि इनमें से अधिकतर यान विदेशों के लिए लांच किए गए हैं। साल 2019 में ही अब तक इसरो द्वारा चार अंतरिक्ष यान लांच किए जा चुके हैं जिनके नाम हैं –

इसरो द्वारा अब तक 106 सैटेलाइट्स लांच की जा चुकी हैं जिसमें से कुछ प्रसिद्ध सैटेलाइट्स की सूची इस प्रकार है –

क्र.म.सैटेलाइट का नामलांच का सालविशेषतायें
1.आर्यभट्ट19 अप्रैल, 1975पहली भारतीय सैटेलाइट
2.भास्करा – 17 जून, 1979पहली एक्सपेरीमेंटल रिमोट सेंसिंग अर्थ ऑब्सरवेशन सैटेलाइट
3.रोहिणी आरएस – 118 जुलाई, 1980स्वदेशी लांच व्हीकल एसएलवी द्वारा पहली भारतीय सैटेलाइट सफलतापूर्वक लांच की गई।
4.एरीयन पैसेंजर पेलोड एक्सपेरीमेंट (एप्पल)19 जून, 1981पहला भारतीय 3 – एक्सिस स्टाबिलाइज्ड एक्सपेरीमेंटल जियोस्टेशनरी कम्युनिकेशन सैटेलाइट
5.भास्करा – 220 नवम्बर, 1981ऑर्बिट से अर्थ ऑब्जरवेशन के लिए पहला भारतीय सैटेलाइट
6.इनसैट – 1ए (भारतीय नेशनल सैटेलाइट)10 अप्रैल, 1982पहला ऑपरेशनल मल्टीपर्पस संचार एवं मौसम विज्ञान सैटेलाइट
7.आईआरएस – 1ए (भारतीय रिमोट सेंसिंग – 1ए)17 मार्च, 1988पहला रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट
8.इनसैट – 2ए (भारतीय नेशनल सैटेलाइट)10 जुलाई 1992पहला भारतीय मल्टीपर्पस सैटेलाइट
9.ओसियनसैट – 1 (आईआरएस – पी4)26 मई, 1999पहला भारतीय सैटेलाइट जो विशेष रूप से ओसियन एप्लीकेशन्स के लिए बनाया गया था।
10.कल्पना – 1 (मेटसैट)12 सितम्बर, 2002पहला भारतीय डेडिकेटेड मीटरोलॉजी सैटेलाइट
11.जीसैट – 3 (ग्रामसैट – 3) (इदुसैट)20 सितम्बर, 2004पहला भारतीय सैटेलाइट जो विशेष रूप से एजुकेशनल सेक्टर की सेवा के लिए बनाया गया था।
12.आईएमएस – 1 (तीसरा विश्व सैटेलाइट – टीडब्ल्यूसैट)28 अप्रैल, 2008पहला भारतीय सैटेलाइट जिसमें इसरो के भारतीय मिनी सैटेलाइट का उपयोग किया गया था।
13.आईआरएनएसएस – 1ए (भारतीय रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम)1 जुलाई, 2013आईआरएनएसएस सीरीज में पहला नेविगेशनल सैटेलाइट
14.मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) स्पेसक्राफ्ट5 नवंबर, 2013भारत का पहला मंगल ऑर्बिटर, जिसे मंगलयान भी कहा जाता है।
15.एस्ट्रोसैट28 सितम्बर, 2015मल्टी – वेवलेंथ स्पेस ऑब्जर्वेटरी के साथ पहला भारतीय सैटेलाइट
16.जीसैट – 15 (ग्रामसैट – 15)11 नवंबर, 2015कम्युनिकेशन के लिए उपयोग होने वाली भारतीय सैटेलाइट
17.स्वयं – 122 जून, 2016पहला भारतीय सैटेलाइट जोकि पैसिव एटीट्यूड कण्ट्रोल को प्रदर्शित करने के लिए लांच किया गया था।
18.माइक्रोसैट – टीडी (माइक्रोसैटेलाइट)10 जनवरी, 2018यह स्पेस में भारत का 100 वां सैटेलाइट था, जोकि अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट था।
19.जीसैट – 316 फरवरी, 2019यह एक हाई थ्रूआउट टेलीकम्यूनिकेशन सैटेलाइट था।
20.ईएमआईसैट1 अप्रैल, 2019यह सैटेलाइट इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम मेज़रमेंट के लिए था, जोकि एक भारतीय रिकोनाइसंस सैटेलाइट है।
21.चंद्रयान – 222 जुलाई, 2019यह चंद्रयान – 1 के बाद भारत का दूसरा लूनर एक्सप्लोरेशन मिशन था।

उपग्रह कार्यक्रम

इसरो

भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट सोवियत संघ द्वारा कॉसमॉस-3एम प्रक्षेपण यान से 19 अप्रैल 1975 को कपूस्टिन यार से लांच किया गया था। इसके बाद स्वदेश में बने प्रयोगात्मक रोहिणी उपग्रहों की श्रृंखला को भारत ने स्वदेशी प्रक्षेपण यान उपग्रह प्रक्षेपण यान से लांच किया। वर्तमान में, इसरो पृथ्वी अवलोकन उपग्रह की एक बड़ी संख्या चल रहा है।

इन्सैट शृंखला

इन्सैट (भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली) इसरो द्वारा लांच एक बहुउद्देशीय भूस्थिर उपग्रहों की श्रृंखला है। जो भारत के दूरसंचार, प्रसारण, मौसम विज्ञान और खोज और बचाव की जरूरत को पूरा करने के लिए है। इसे 1983 में शुरू किया गया था। इन्सैट एशिया-प्रशांत क्षेत्र में सबसे बड़ी घरेलू संचार प्रणाली है। यह अंतरिक्ष विभाग, दूरसंचार विभाग, भारत मौसम विज्ञान विभाग, ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन का एक संयुक्त उद्यम है। संपूर्ण समन्वय और इनसैट प्रणाली का प्रबंधन, इनसैट समन्वय समिति के सचिव स्तर के अधिकारी पर टिकी हुई है।

भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह शृंखला

भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आईआरएस) पृथ्वी अवलोकन उपग्रह की एक श्रृंखला है। इसे इसरो द्वारा बनाया, लांच और रखरखाव किया जाता है। आईआरएस श्रृंखला देश के लिए रिमोट सेंसिंग सेवाएं उपलब्ध कराता है। भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली आज दुनिया में चल रही नागरिक उपयोग के लिए दूरसंवेदी उपग्रहों का सबसे बड़ा समूह है। सभी उपग्रहों को ध्रुवीय सूर्य समकालिक कक्षा में रखा जाता है। प्रारंभिक संस्करणों 1(ए, बी, सी, डी) नामकरण से बना रहे थे। लेकिन बाद के संस्करण अपने क्षेत्र के आधार पर ओशनसैट, कार्टोसैट, रिसोर्ससैट नाम से नामित किये गए।

राडार इमेजिंग सैटेलाइट

इसरो वर्तमान में दो राडार इमेजिंग सैटेलाइट संचालित कर रहा है। रीसैट-1 को 26 अप्रैल 2012 को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान(PSLV) से सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र,श्रीहरिकोटा से लांच किया गया था। रीसैट-1 एक सी-बैंड सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) पेलोड ले के गया। जिसकी सहायता से दिन और रात दोनों में किसी भी तरह के ऑब्जेक्ट पर राडार किरणों से उसकी आकृति और प्रवत्ति का पता लगाया जा सकता था। तथा भारत ने रीसैट-2 जो 2009 में लांच हुआ था। इसराइल से 11 करोड़ अमेरिकी डॉलर में खरीद लिया था।11 दिसंबर 2019 को इसरो ने पीएसएलवी सी-48 रॉकेट के साथ रीसैट-2बीआर1 लॉन्च किया।

अन्य उपग्रह

इसरो ने भूस्थिर प्रायोगिक उपग्रह की श्रृंखला जिसे जीसैट श्रृंखला के रूप में जाना जाता को भी लांच किया। इसरो का पहला मौसम समर्पित उपग्रह कल्पना-1 को 12 सितंबर 2002 को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान द्वारा लांच किया गया था। इस उपग्रह को मेटसैट-1 के रूप में भी जाना जाता था। लेकिन फरवरी 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने स्पेस शटल कोलंबिया में मारी गयी भारतीय मूल की नासा अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला की याद में इस उपग्रह का नाम कल्पना-1 रखा।

इसरो ने 25 फरवरी, 2013 12:31 यूटीसी पर सफलतापूर्वक भारत-फ्रांसीसी उपग्रह सरल लांच किया। सरल एक सहकारी प्रौद्योगिकी मिशन है। यह समुद्र की सतह और समुद्र के स्तर की निगरानी के लिए इस्तेमाल की जाती है।

जून 2014 में, इसरो ने पीएसएलवी-सी23 प्रक्षेपण यान के माध्यम से फ्रेंच पृथ्वी अवलोकन उपग्रह स्पॉट-7 (714 किलो) के साथ सिंगापुर का पहला नैनो उपग्रह VELOX-I, कनाडा का उपग्रह CAN-X5, जर्मनी का उपग्रह AISAT लांच किये। यह इसरो का चौथा वाणिज्यिक प्रक्षेपण था।

गगन उपग्रह नेविगेशन प्रणाली

गगन अर्थात् जीपीएस ऐडेड जियो ऑगमेंटिड नैविगेशन को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और इसरो ने 750 करोड़ रुपये की लागत से मिलकर तैयार किया है। गगन के नाम से जाना जाने वाला यह भारत का उपग्रह आधारित हवाई यातायात संचालन तंत्र है। अमेरिका, रूस और यूरोप के बाद 10 अगस्त 2010 को इस सुविधा को प्राप्त करने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन गया।

पहला गगन नेविगेशन पेलोड अप्रैल 2010 में जीसैट-4 के साथ भेजा गया था। हालाँकि जीसैट-4 कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका। क्योंकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान डी3 मिशन पूरा नहीं हो सका। दो और गगन पेलोड बाद में जीसैट-8 और जीसैट-10 भेजे गए।

आईआरएनएसएस उपग्रह नेविगेशन प्रणाली

इसरो | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन | 1969 - Present

आईआरएनएसएस भारत द्वारा विकसित एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका नाम भारत के मछुवारों को समर्पित करते हुए नाविक रखा है। इसका उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना है। आईआरएनएसएस दो प्रकार की सेवाओं प्रदान करेगा। (1)मानक पोजिशनिंग सेवा और (2)प्रतिबंधित या सीमित सेवा। प्रतिबंधित या सीमित सेवा मुख्यत: भारतीय सेना, भारतीय सरकार के उच्चाधिकारियों व अतिविशिष्ट लोगों व सुरक्षा संस्थानों के लिये होगी। आईआरएनएसएस के संचालन व रख रखाव के लिये भारत में लगभग 16 केन्द्र बनाये गये हैं।

सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आईआरएनएसएस-1ए उपग्रह ने 1 जुलाई 2013 रात 11:41 बजे उड़ान भरी। प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद रॉकेट ने आईआरएनएसएस-1ए को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। वर्तमान में सभी 7 उपग्रह को उनकी कक्षा में स्थापित किया जा चुका है। और 4 उपग्रह बैकअप के तौर पर भेजे जाने की योजना है।

दक्षिण एशिया उपग्रह

5 मई 2017 को दक्षिण एशिया उपग्रह को श्रीहरिकोटा उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र से प्रक्षेपित कर दिया गया। यह उपग्रह पाकिस्तान को छोड़कर अन्य सभी सार्क (SAARC) देशों के लिए एक उपहार के समान था। इस उपग्रह के द्वारा पडोसी देशों के हॉटलाइन से जल्दी संपर्क बनाने, टी.वी. प्रसारण,भारतीय सीमा पर हलचल को रोकना आदि कार्य किए जा सकते हैं।

अंतरिक्ष में भारत का 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण रिकॉर्ड

अंतरिक्ष में भारत की सबसे बड़ी कामयाबी, ISRO ने एक साथ रिकॉर्ड 104 सैटेलाइट का प्रक्षेपण कर रचा इतिहास। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रक्षेपण यान पीएसएलवी ने 15/02/2017 श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केन्द्र से एक एकल मिशन में रिकार्ड 104 उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। यहां से करीब 125 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा से एक ही प्रक्षेपास्त्र के जरिये रिकॉर्ड 104 उपग्रहों का प्रक्षेपण सफलतापूर्वक किया गया। जानकारी के अनुसार, इन 104 उपग्रहों में भारत के तीन और विदेशों के 101 सैटेलाइट शामिल है। भारत ने एक रॉकेट से 104 उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजकर इस तरह का इतिहास रचने वाला पहला देश बन गया है।

प्रक्षेपण के कुछ देर बाद पीएसएलवी-सी37 ने भारत के काटरेसैट-2 श्रृंखला के पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह और दो अन्य उपग्रहों तथा 103 नैनो उपग्रहों को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित कर दिया। वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सफल अभियान को लेकर इसरो को बधाई दी है। इसरो के अनुसार, पीएसएलवी-सी37-काटरेसेट 2 श्रृंखला के सेटेलाइट मिशन के प्रक्षेपण के लिए उलटी गिनती बुधवार सुबह 5:28 बजे शुरू हुई। मिशन रेडीनेस रिव्यू कमेटी एंड लांच ऑथोराइजेशन बोर्ड ने प्रक्षेपण की मंजूरी दी थी।

अंतरिक्ष एजेंसी का विश्वस्त ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (पीएसएलवी-सी 37) अपने 39वें मिशन पर अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ताओं से जुड़े रिकॉर्ड 104 उपग्रहों को प्रक्षेपित किया। प्रक्षेपण के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या में रॉकेट से उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। भारत ने इससे पहले जून 2015 में एक बार में 57 उपग्रहों को प्रक्षेपण किया था।

यह उसका दूसरा सफल प्रयास है। इसरो के वैज्ञानिकों ने एक्सएल वैरियंट का इस्तेमाल किया है जो सबसे शक्तिशाली रॉकेट है और इसका इस्तेमाल महत्वाकांक्षी चंद्रयान में और मंगल मिशन में किया जा चुका है।दोनों भारतीय नैनो-सेटेलाइट आईएनएस-1ए और आईएनएस-1बी को पीएसएलवी पर बड़े उपग्रहों का साथ देने के लिए विकसित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों की नैनो-सेटेलाइटों का प्रक्षेपण इसरो की व्यावसायिक शाखा एंट्रिक्स कॉपरेरेशन लिमिटेड की व्यवस्था के तहत किया जा रहा है।

मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन अपने मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए 124 अरब के बजट का प्रस्ताव किया। अंतरिक्ष आयोग के अनुसार जो बजट की सिफारिश की है। उसकी अंतिम मंजूरी के 7 साल के बाद ही एक मानव रहित उड़ान लांच की जाएगी। अगर घोषित समय-सीमा में बजट जारी किया गया। तो भारत सोवियत संघ, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद चौथा देश बन जाएगा। जो स्वदेश में ही सफलतापूर्वक मानव मिशन कर चुके है। भारत सरकार ने अक्टूबर 2016 तक मिशन को मंजूरी नहीं दी है।

इसरो ने मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम के लिए क्रांतिक प्रौद्योगिकियों पर विकास क्रियाकलाप शुरू किए हैं। मार्च 2012 के आँकड़ों के अनुसार इस दिशा में आवंटित निधि 145 करोड़ हैं। विभिन्‍न तकनीकी क्रियाकलापों लिए आवंटित निधि मुख्‍य शीर्षों के तहत है- क्रू माड्यूल प्रणाली (61 करोड़), मानव अनुकूल और प्रमोचक राकेट (27 करोड़), राष्‍ट्रीय एवं अंतर्राष्‍ट्रीय संस्‍थानों के साथ अध्‍ययन (36 करोड़) और वायु गतिकी विशिष्‍टीकरण एवं मिशन अध्‍ययन जैसे अन्‍य क्रियाकलाप के लिये (21 करोड़)।

प्रौद्योगिकी प्रदर्शन

स्पेस कैप्सूल रिकवरी एक्सपेरीमेंट (एसआरई या सामान्यतः एसआरई-1) एक प्रयोगात्मक भारतीय अंतरिक्ष यान है। जो पीएसएलवी सी7 रॉकेट का उपयोग कर तीन अन्य उपग्रहों के साथ लांच किया गया था। यह पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश करने से पहले 12 दिनों के लिए कक्षा में रहा और 22 जनवरी को 4:16 जी.एम.टी. पर बंगाल की खाड़ी में नीचे उतरा।

स्पेस कैप्सूल रिकवरी एक्सपेरीमेंट-1 का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे उपग्रह को पृथ्वी पर बापस उतरने की क्षमता का प्रदर्शन करना था। इसका यह भी उद्देश्य था। कि थर्मल सुरक्षा, नेविगेशन, मार्गदर्शन, नियंत्रण, गिरावट और तैरने की क्रिया प्रणाली, हाइपरसोनिक एयरो-ऊष्मा का अच्छी तरह से अध्ययन, संचार ब्लैकआउट का प्रबंधन और बापसी के संचालन का परीक्षण करना था। इसरो निकट भविष्य में एसआरई-2 और एसआरई-3 लांच करने की योजना बना रहा है। जो भविष्य के मानव मिशन के लिए उन्नत पुनः प्रवेश प्रौद्योगिकी के परीक्षण करेंगे।

अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण और अन्य सुविधाएं

इसरो मानवयुक्त वाहन पर उड़ान के लिए दल को तैयार करने के लिए बंगलौर में एक अंतरिक्ष यात्री प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना करेगी। केंद्र में चयनित अंतरिक्ष यात्रियों को शून्य गुरुत्वाकर्षण में अस्तित्व, बचाव और वापिस के संचालन में प्रशिक्षित करने के लिए सिमुलेशन सुविधाओं का उपयोग किया जायेगा।

भविष्य में आने वाली परियोजनाएं

इसरो | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन | 1969 - Present

इसरो ने निकट भविष्य में कई नई पीढ़ी के पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों को लॉन्च करने की योजना बनाई है। इसरो नए लॉन्च वाहनों और अंतरिक्ष यान के विकास भी करेगा। इसरो ने कहा है कि वह मंगल और निकट के पृथ्वी ऑब्जेक्ट्स पर मानव रहित मिशन भेजेगा। इसरो ने 2012-17 के दौरान 58 मिशनों की योजना बनाई है।


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