भारत सरकार ने 21 अप्रैल 2025 से प्रभावी एक महत्वपूर्ण नीति निर्णय के तहत कुछ विशिष्ट श्रेणियों के इस्पात उत्पादों पर 12% की अस्थायी सेफगार्ड ड्यूटी लगाने की घोषणा की है। इस कदम का उद्देश्य घरेलू इस्पात उद्योग को सस्ते आयातित इस्पात से बचाना और बाज़ार में प्रतिस्पर्धा को संतुलित करना है। यह निर्णय न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि रणनीतिक और राजनयिक दृष्टिकोण से भी इसकी व्यापक पड़ताल आवश्यक है।
पृष्ठभूमि | इस्पात उद्योग पर बढ़ते आयात का दबाव
भारत विश्व के प्रमुख इस्पात उत्पादक देशों में से एक है, लेकिन हाल के वर्षों में इस क्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय बाजारों से सस्ते और भारी मात्रा में आ रहे इस्पात उत्पादों के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ा है। वित्त वर्ष 2024–25 के दौरान, भारत ने लगभग 9.5 मिलियन मीट्रिक टन तैयार इस्पात का आयात किया। यह आंकड़ा पिछले एक दशक में सबसे अधिक है, और भारत लगातार दूसरे वर्ष तैयार इस्पात का शुद्ध आयातक बन गया है।
इस आयात में प्रमुख योगदान चीन, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों से आया, जहां सरकारों द्वारा भारी सब्सिडी और उत्पादन क्षमताओं में अतिरेक के चलते वैश्विक बाजार में इस्पात अत्यंत कम कीमत पर उपलब्ध हो रहा था। इससे भारतीय इस्पात निर्माता कंपनियों के सामने लागत वसूली की भी चुनौती खड़ी हो गई।
टैरिफ लगाने का औचित्य और DGTR की भूमिका
इस निर्णय का आधार दिसंबर 2024 में डायरेक्टरेट जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज़ (DGTR) द्वारा शुरू की गई जांच है। इस जांच में यह पाया गया कि कुछ श्रेणियों के इस्पात उत्पाद घरेलू बाजार दरों से काफी कम कीमत पर आयात किए जा रहे थे। यह स्थिति “डंपिंग” की श्रेणी में आती है, जो कि विश्व व्यापार संगठन (WTO) के दिशानिर्देशों के अनुसार अनुचित व्यापार व्यवहार माना जाता है।
DGTR की रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकला कि यदि तत्काल उपाय नहीं किए गए, तो घरेलू उत्पादक कंपनियों को दीर्घकालिक क्षति पहुंच सकती है। इसके आधार पर वित्त मंत्रालय ने एक अस्थायी उपाय के रूप में 12% सेफगार्ड ड्यूटी लगाने की सिफारिश को मंज़ूरी दी।
12% सेफगार्ड ड्यूटी का दायरा
यह टैरिफ विशेष रूप से नॉन-अलॉय और अलॉय इस्पात फ्लैट उत्पादों की कुछ श्रेणियों पर लागू किया गया है। इनमें निम्नलिखित उत्पाद शामिल हैं:
- हॉट-रोल्ड कॉइल्स, शीट्स और प्लेट्स
- हॉट-रोल्ड प्लेट मिल प्लेट्स
- कोल्ड-रोल्ड कॉइल्स और शीट्स
- मेटालिक-कोटेड इस्पात कॉइल्स और शीट्स
- कलर-कोटेड इस्पात उत्पाद
इन श्रेणियों को घरेलू उद्योग के लिए सर्वाधिक संवेदनशील माना गया है, क्योंकि इन पर डंपिंग की तीव्रता सबसे अधिक रही है।
यह ड्यूटी 200 दिनों के लिए लागू की गई है और इसके दौरान सरकार बाजार की स्थिति का गहन मूल्यांकन करेगी।
घरेलू उद्योग की प्रतिक्रिया
देश की प्रमुख इस्पात निर्माता कंपनियों — जैसे टाटा स्टील, JSW स्टील, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL), और आर्सेलर मित्तल निप्पॉन स्टील इंडिया — ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। इन कंपनियों का मानना है कि यह निर्णय घरेलू उत्पादन को प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रखने में सहायक होगा और निवेशकों को भी सकारात्मक संकेत देगा।
केंद्रीय इस्पात मंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने इसे “इस्पात बाजार में निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा बहाल करने के लिए समय पर हस्तक्षेप” बताया है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार दीर्घकालिक समाधान की दिशा में काम कर रही है ताकि वैश्विक उतार-चढ़ाव का देश के इस्पात उद्योग पर कम से कम प्रभाव पड़े।
हालांकि, कुछ उद्योग संघों और विश्लेषकों ने 12% टैरिफ को अपर्याप्त बताया है और 20% या उससे अधिक टैरिफ की मांग की है, जिससे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कीमतों के बीच का अंतर पूरी तरह समाप्त किया जा सके।
संभावित बाज़ार और आर्थिक प्रभाव
इस टैरिफ के लागू होने से कुछ तत्काल और दीर्घकालिक प्रभाव सामने आ सकते हैं:
i. घरेलू उत्पादकों को राहत:
विदेशी इस्पात की सस्ते दरों पर बिक्री पर रोक लगने से घरेलू कंपनियों को प्रतिस्पर्धा से राहत मिलेगी। इससे उनकी आय और उत्पादन स्तर में सुधार की संभावना है।
ii. कीमतों में स्थिरता:
बाजार में अत्यधिक आपूर्ति से उत्पन्न मूल्य अस्थिरता में कमी आने की उम्मीद है, जिससे इस्पात की कीमतें स्थिर रह सकती हैं।
iii. निर्माण क्षेत्र पर प्रभाव:
इस्पात की कीमतों में संभावित बढ़ोतरी के कारण निर्माण और अवसंरचना क्षेत्र की लागत में थोड़ी वृद्धि हो सकती है। इससे परियोजनाओं की लागत में बदलाव आ सकता है।
iv. अंतरराष्ट्रीय व्यापार संबंधों पर असर:
यह निर्णय चीन, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों के साथ व्यापारिक और कूटनीतिक संबंधों में थोड़ी तनातनी ला सकता है। विशेषकर चीन पहले भी भारत के इस प्रकार के कदमों पर WTO में आपत्ति जता चुका है।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव और तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य
यह पहली बार नहीं है जब कोई देश इस्पात उत्पादों पर इस तरह की टैरिफ ड्यूटी लगा रहा हो। अमेरिका ने 2018 में राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए इस्पात और एल्यूमीनियम पर भारी टैरिफ लगाए थे। यूरोपीय संघ ने भी अपने इस्पात उद्योग को बचाने के लिए कोटा और ड्यूटी जैसी नीतियाँ अपनाई थीं।
भारत का यह कदम भी वैश्विक रुझानों की ही एक कड़ी है, जिसमें घरेलू रणनीतिक उद्योगों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाती है।
भविष्य की रूपरेखा और सरकार की रणनीति
सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि यह टैरिफ केवल अस्थायी उपाय है और इसका उद्देश्य दीर्घकालिक व्यापार प्रतिबंध नहीं है। आगामी महीनों में DGTR इस टैरिफ के प्रभाव का मूल्यांकन करेगा और आवश्यकता पड़ने पर निम्नलिखित विकल्पों पर विचार किया जा सकता है:
- 200 दिनों की अवधि को बढ़ाया जा सकता है।
- टैरिफ दर में संशोधन किया जा सकता है।
- एंटी-डंपिंग ड्यूटी या काउंटरवेलिंग ड्यूटी जैसे स्थायी उपाय लागू किए जा सकते हैं।
- प्रभावित देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ताएं की जा सकती हैं।
इसके साथ ही सरकार इस्पात उद्योग में निवेश और तकनीकी नवाचार को भी प्रोत्साहित कर रही है, ताकि वह वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना रह सके।
भारत द्वारा चुनिंदा इस्पात श्रेणियों पर 12% सेफगार्ड ड्यूटी लगाना एक साहसिक और रणनीतिक कदम है। यह निर्णय न केवल घरेलू उद्योग की रक्षा करता है, बल्कि देश की आर्थिक स्वायत्तता को भी बल देता है। हालांकि यह उपाय अस्थायी है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप दीर्घकालिक नीतिगत बदलावों की नींव पड़ सकती है।
वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में, जहां उत्पादन की अधिकता और डंपिंग जैसे व्यवहार व्यापार संतुलन को प्रभावित कर रहे हैं, भारत जैसे विकासशील देशों के लिए अपने रणनीतिक उद्योगों की रक्षा अत्यंत आवश्यक हो जाती है। इस निर्णय से यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि भारत सरकार अपने औद्योगिक हितों की रक्षा के लिए सजग और सक्रिय है।
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