उदायिन | Udayin | 460 ई.पू. से 444 ई.पू.

उदायिन हर्यक वंशी अजातशत्रु का पुत्र था। उसने अपने पिता अजातशत्रु की हत्या करके राजसिंहासन प्राप्त किया था। कथाकोश में उसे कुणिक (अजातशत्रु) और पद्मावती का पुत्र बताया गया है। इसको उदायिभद्र नाम से भी जाना जाता है। परिशिष्टपर्वन और त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित जैसे कुछ अन्य जैन ग्रंथों में यह कहा गया है कि अपने पिता के समय में उदायिभद्र अथवा उदायिन चंपा का राज्यपाल (गवर्नर) रह चुका था। जैन ग्रन्थ के अनुसार इसने अपने पिता की हत्या नहीं की थी और अपने पिता की मृत्यु पर उसे सहज शोक हुआ था। तदुपरांत सामंतों और मंत्रियों ने उससे मगध की राजगद्दी पर बैठने का आग्रह किया और उसे स्वीकार कर वह चंपा छोड़कर राजधानी मगध आ गया।

उदायिन अथवा उदायिभद्र का संक्षिप्त परिचय

उदायिन
शासन काल460 ई.पू. से 444 ई.पू.
नामउदायिन, उदायिभद्र, उदयन, उदायी
पूर्वजअजातशत्रु
उत्तराधिकारीअनिरुद्ध अथवा ‘अनुरुद्ध’
मृत्यु444 ई.पू
राजवंशहर्यंक
पिता अजातशत्रु
मांवजीरा
धर्मजैन धर्म और बौद्ध धर्म

उदायिन का जीवन परिचय

बौद्ध परंपराओं में कहा गया है कि उदयिन अजातशत्रु का पसंदीदा पुत्र था। अपने दादा बिंबिसार के शासनकाल के दौरान इसका जन्म हो चुका था। जब अजातशत्रु गौतम बुद्ध से मिले, उदयिन एक युवा राजकुमार थे। अपने पिता अजातशत्रु की 460 ई. पू. में हत्या के बाद 460 ई. पू. में उदयिन (Udayin) मगध का शासक बना। बौद्ध अनुश्रुति के अनुसार उदायिभद्र अपने पिता अजातशत्रु की भांति स्वयं भी पितृघाती था, जो अपने पिता की हत्या करके गद्दी पर बैठा था। बौद्ध अनुश्रुति में उल्लेख है कि मगध साम्राज्य के अंतर्गत हर्यक वंश में चार पीढ़ियों तक उत्तराधिकारियों द्वारा अपने पूर्ववर्तियों की हत्या की परंपरा चल पड़ी थी। जिस कारण से हर्यक वंश को पितृहन्ता वंश कहा गया गया है।

परंतु जैन अनुश्रुति उदयिन अर्थात उदयभद्र को पितृघाती नहीं मानती। कथाकोश में उसे कुणिक (अजातशत्रु) और पद्मावती का पुत्र बताया गया है। यह सम्राट बनने से पहले चम्पा राज्य का उपराजा था। इसकी माँ का नाम वजीरा था। उदयन ने गंगा और सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र नगर बसाकर मगध की राजधानी को राजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित कर दिया। पाटलिपुत्र को उस समय कुसुमपुर नाम से जाना जाता था। उदायिन जैन धर्म का उपासक था।

460 ई० पू० में अजातशत्रु की मृत्यु हुई। अपने सैनिक पराक्रम से उसने मगध को एक महाजनपद से साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया था। आर्यमंजुश्रीमूलकल्प के अनुसार अजातशत्रु के अधीन मगध के अतिरिक्त अंग, वाराणसी, वैशाली के इलाके भी थे। उसके उत्तराधिकारियों ने उसके कार्य को आगे बढ़ाया।

अजातशत्रु के पश्चात उसका पुत्र उदायिन (Udayin) या उदायिभद्र मगध का शासक बना। पुराणों के अनुसार अजातशत्रु का उत्तराधिकारी दर्शक बना, परंतु बौद्ध और जैन साहित्य उदायिन को ही अजातशत्रु का उत्तराधिकारी मानते हैं। जो चंपा में गवर्नर था। उसके समय की सबसे प्रसिद्ध घटना है नए नगर पाटलिपुत्र/कुसुमपुर की स्थापना और मगध की राजधानी का पाटलिपुत्र स्थानांतरण।

राजधानी अब (457 ई० पू० ) राजगृह से हटाकर पाटलिपुत्र में स्थापित कर दी गयी। इस समय अवन्ती की शक्ति अपनी चरम सीमा पर थी. और वह मगध को अपने प्रभाव में लाने का स्वप्न देख रहा था। संभवतः, मगध और अवन्ती के बीच युद्ध भी हुए, परंतु इस युद्ध का कोई निर्णायक फल उदायिन् के समय में नहीं निकल सका।

पुराणों के अनुसार उदायिन के बाद नन्दिवर्धन और महानंदी राजा बने, लेकिन श्रीलंका के बौद्धग्रंथों के अनुसार अनुरुद्ध, मुण्ड और नागदसक उदायिन् के उत्तराधिकारी थे। इन सभी शासकों ने करीब 32 वर्षों तक राज्य किया। उदायिन के उत्तराधिकारी अनुरुद्ध, मुण्डक एवं नागदसक प्रभावशाली शासक नहीं थे। अतः, इनके समय में मगध के विकास की गति अवरुद्ध हो गई।

उदायिन का शासन

अजातशत्रु के बाद उसका पुत्र उदायिन हर्यक राजवंश (मगध) का शासक बना। उदायिन ने लगभग 460 ईसा पूर्व से शासन शुरू किया था। वह लगभग 444 ईसा पूर्व तक मगध पर शासन करता रहा। इस प्रकार उसने 16 वर्षों तक शासन किया था। पुराणों और जैन ग्रन्थों के अनुसार उदायिन ने गंगा और सोन नदी के संगम तट पर कुसुमपुरा (पाटलिपुत्र) नामक नगर की स्थापना की और उसे अपनी राजधानी बनाया।

उदायिन द्वारा कुसुमपुर (पाटलिपुत्र) नगर की स्थापना

इस बात का प्रमाण वायुपुराण में भी देखने को मिलता है। वायुपुराण में वर्णित है कि उदयभद्र (Udayin) ने अपने शासन के चौथे वर्ष में कुसुमपुर नामक नगर बसाया। कुसुमपुर का ही दूसरा नाम पुष्पपुर था, और यही आगे चलकर पाटलिपुत्र के नाम से विख्यात हो गया। परंतु अनेकों इतिहासकारों का मानना है कि वहाँ के किले (दुर्ग) का विकास कार्य अजातशत्रु के समय में ही प्रारंभ हो चुका था।

उदायिन की मृत्यु

उदायिन जैन धर्म का उपासक था। उदायिन (Udayin) के पिता ने अवंती से संभावित प्रद्योत आक्रमण को दूर करने के लिए यहां एक किले का निर्माण किया था। उदयिन ने अपनी राजधानी को पाटलिपुत्र स्थानांतरित कर दिया, शायद इसलिए कि यह उसके बढ़ते राज्य का केंद्र था। उसने अवंती के पालका को कई बार हराया लेकिन अंततः 444 ईसा पूर्व में उसके द्वारा मारा गया। जबकि जैन ग्रंथों में उल्लेख है कि उदयिन की हत्या प्रतिद्वंद्वी साम्राज्य के एक हत्यारे ने की थी। कई जगहों पर कहा जाता है कि अवन्ती के एक जासूस ने इसकी हत्या कर दी।

उदायिन के उत्तराधिकारी

पुराणों में उदयिन को निःसंतान बताया गया है और उसके उत्तराधिकारी के रूप में नंदीवर्धन (नंदा) का उल्लेख है, जिसको उसके मंत्रियों ने चुना था। जबकि बौद्ध ग्रंथों में उसके तीन पुत्रों के होने का उल्लेख मिलता है। श्रीलंकाई बौद्ध कालक्रम में कहा गया है कि उदायिन द्वारा अपने बड़े पुत्र अनुरुद्ध को अपना उत्तराधिकारी बनाया गया था।

उसके पश्चात उसका दूसरा पुत्र मंडक राजा बना। मंडक के पश्चात उसका तीसरा पुत्र नागदशक राजा बनता है। परन्तु उदायिन के ये तीनो पुत्र प्रभावशाली और योग्य नहीं थे, जिसके कारण वे राज्य ज्यादा समय तक नहीं कर सके। इन बौद्ध कालक्रमों में यह भी कहा गया है कि अजातशत्रु, उदायिन से लेकर नागदशक तक सभी राजाओं ने अपने पिता/ पूर्व राजा को मार कर सिंहासनपर बैठे।

उदायिन (Udayin) के पुत्र

बौद्ध धर्म में उदायिन (Udayin) के तीन पुत्रों के होने का उल्लेख मिलता है। परन्तु ऐसा कहा जाता है कि वे तीनो पुत्र राज्य चलाने में सक्षम नहीं थे और अपनी अयोग्यता के कारण वे राज्य ज्यादा समय तक नहीं कर सके। बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उदायिन के तीन पुत्र थे- ‘अनिरुद्ध’, ‘मंडक’ और ‘नागदशक’।

  • अनिरुद्ध
    • अनिरुद्ध अथवा ‘अनुरुद्ध’ हर्यक वंश के शासक उदायिन का सबसे बड़ा पुत्र था। सिंहली ऐतिहासिक अनुश्रुतियों के अनुसार अनिरुद्ध, उदायिन के तत्काल बाद मगध की गद्दी पर बैठा।
  • मंडक
    • मंडक हर्यक वंश के शासक उदायिन का दूसरा पुत्र था। यह अपने बड़े भाई अनिरुद्ध के बाद परन्तु बहुत कम समय के लिए मगध की गद्दी पर बैठा था
  • नागदशक
    • नागदशक उदायिन का तीसरा पुत्र और हर्यक वंश का अन्तिम राजा था। मंडक के योग्य न होने के कारण इसको मगध की गद्दी पर बैठाया गया। परन्तु यह अत्यन्त विलासी और निर्बल था। शासनतन्त्र में शिथिलता के कारण व्यापक असन्तोष जनता में फैल गया। जिसका फायदा उठाकर उसका सेनापति शिशुनाग राज्य विद्रोह कर स्वयं राजा बन गया, और एक नए वंश शिशुनाग वंश की स्थापना किया। इस प्रकार 412 ई.पू. में हर्यक वंश का अन्त और शिशुनाग वंश की स्थापना हुई। 

हर्यक राजवंश का पतन

बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उदायिन के तीन पुत्र – ‘अनिरुद्ध’, ‘मंडक’ और ‘नागदशक’ थे। उदायिन के इन तीनों पुत्रों ने राज्य किया था। हर्यक वंश का अन्तिम राजा नागदशक था। नागदशक के पुत्र शिशुनाग ने 412 ई. पू. में उन्हें हटा कर ‘शिशुनाग वंश’ की स्थापना की। कुछ इतिहासकारों के अनुसार शिशुनाग अपने राजा नागदशक का सेनापति था।

क्योंकि नागदशक अत्यन्त विलासी और निर्बल सिद्ध हुआ था, इसीलिए शासन तन्त्र में शिथिलता के कारण व्यापक असन्तोष जनता में फैल गया। इसी समय राज्य विद्रोह कर अमात्य शिशुनाग ने सिंहासन पर अधिकार कर लिया और राजा बन गया। इस प्रकार हर्यक वंश का अन्त हुआ और ‘शिशुनाग वंश की स्थापना हुई।

उदायिन से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • अजातशत्रु की हत्या के बाद 460 ई. पू. में उदयन (Udayin) मगध का शासक बना था।
  • बौद्ध परंपराओं में कहा गया है कि उदयिन अजातशत्रु का पसंदीदा पुत्र था।
  • उदायिन ने लगभग 460 ईसा पूर्व से 444 ई.पू. तक 16 वर्षों तक शासन किया था।
  • अजातशत्रु के समय में उदायिन चंपा का राज्यपाल (गवर्नर) रह चुका था और अपने पिता की मृत्यु पर उसे सहज शोक हुआ था।
  • बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार उदायिन के तीन पुत्र थे- ‘अनिरुद्ध’, ‘मंडक’ और ‘नागदशक’।
  • उदायिन का धर्म जैन धर्म और बौद्ध धर्म था।
  • पुराणों और जैन ग्रन्थों के अनुसार उदायिन ने गंगा और सोन नदी के संगम तट पर कुसुमपुरा (पाटलिपुत्र) नामक नगर की स्थापना की और उसे अपनी राजधानी बनाया।
  • उदायिन अवंती के पालका को कई बार हराया लेकिन अंततः 444 ईसा पूर्व में उसके द्वारा मारा गया।
  • जैन ग्रंथों में उल्लेख है कि उदयिन की हत्या प्रतिद्वंद्वी साम्राज्य के एक हत्यारे ने की थी।
  • निःसंतान होने के कारण, उनका उत्तराधिकारी नंदा हुआ, जिसे उनके मंत्रियों ने चुना था।
  • उदायिन जैन धर्म का उपासक था।

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