भारतीय संविधान का अनुच्छेद 67(ए): उपराष्ट्रपति का इस्तीफा – संवैधानिक प्रक्रिया, महत्व और प्रभाव

भारतीय गणराज्य की लोकतांत्रिक व्यवस्था में संवैधानिक पदों की स्थायित्व, गरिमा और निष्पक्षता को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश जैसे उच्च पदाधिकारी न केवल प्रशासनिक व्यवस्था के स्तंभ होते हैं, बल्कि संविधान की आत्मा का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। ऐसे में यदि इन पदों में से कोई पदाधिकारी स्वेच्छा से त्यागपत्र देता है, तो इसके लिए स्पष्ट, पारदर्शी और सुसंगत संवैधानिक प्रक्रिया का होना अनिवार्य है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 67(a) इस आवश्यकता की पूर्ति करता है – यह भारत के उपराष्ट्रपति के इस्तीफे की वैधानिक प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से निर्धारित करता है।

यह प्रावधान विशेष रूप से तब चर्चा में आया जब उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 को अपने तीन वर्षों का कार्यकाल पूर्ण करने के पश्चात स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया। उनका यह निर्णय भारतीय संवैधानिक इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण अध्याय जोड़ता है, जिससे अनुच्छेद 67(a) के व्यवहारिक प्रयोग की सटीक मिसाल प्रस्तुत होती है।

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संविधान में उपराष्ट्रपति का पद: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारतीय संविधान के भाग V के अनुच्छेद 63 के अंतर्गत उपराष्ट्रपति के पद का प्रावधान किया गया है। यह भारत के दूसरे सर्वोच्च संवैधानिक पद के रूप में जाना जाता है।

प्रमुख विशेषताएं:

  • उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति की अनुपस्थिति या असमर्थता की स्थिति में उनके कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं।
  • वे राज्यसभा के पदेन सभापति (Ex-officio Chairman) भी होते हैं और उच्च सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं।
  • उनका कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है, परंतु वे उत्तराधिकारी के कार्यभार संभालने तक पद पर बने रहते हैं।

उपराष्ट्रपति का चुनाव एक गंभीर संवैधानिक प्रक्रिया के अंतर्गत होता है, जिसमें दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा – के निर्वाचित एवं मनोनीत सदस्य भाग लेते हैं।

अनुच्छेद 67 और उसका उपखंड (a): विस्तृत विश्लेषण

अनुच्छेद 67 भारतीय संविधान के तहत उपराष्ट्रपति के पद पर बने रहने की शर्तों और पद से हटाने या इस्तीफे की प्रक्रिया को परिभाषित करता है। इसके तीन मुख्य उपखंड हैं – 67(a), 67(b), और 67(c)।

अनुच्छेद 67(a): इस्तीफे की संवैधानिक व्यवस्था

यह प्रावधान कहता है कि –

उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को संबोधित लिखित पत्र द्वारा अपने पद से त्यागपत्र दे सकते हैं।

इस व्यवस्था में निम्नलिखित बिंदु उल्लेखनीय हैं:

  • इस्तीफा स्वैच्छिक होता है।
  • राष्ट्रपति को संबोधित एक लिखित पत्र के माध्यम से ही यह मान्य होता है।
  • राष्ट्रपति द्वारा इसे स्वीकार किए जाने के साथ ही इस्तीफा तत्काल प्रभाव में आ जाता है।
  • इसमें कोई समयसीमा या पुनर्विचार की आवश्यकता नहीं होती।

अनुच्छेद 67(b): पद से हटाने की प्रक्रिया

यदि उपराष्ट्रपति को पद से हटाया जाना हो तो संविधान में स्पष्ट व्यवस्था है:

  • राज्यसभा में एक विशेष प्रस्ताव लाया जाता है।
  • प्रस्ताव के लिए कम-से-कम 14 दिन पहले का लिखित नोटिस आवश्यक होता है।
  • राज्यसभा में बहुमत से यह पारित होना चाहिए और फिर इसे लोकसभा की स्वीकृति भी प्राप्त होनी चाहिए।

यह प्रक्रिया जटिल, औपचारिक और एक प्रकार की महाभियोग प्रक्रिया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उपराष्ट्रपति को मनमाने ढंग से पद से नहीं हटाया जा सकता।

अनुच्छेद 67(c): कार्यकाल की समाप्ति

यह उपबंध कहता है कि उपराष्ट्रपति:

  • पाँच वर्ष का कार्यकाल पूरा करने के बावजूद,
  • तब तक पद पर बने रहते हैं जब तक कि उत्तराधिकारी पदभार ग्रहण न कर ले

यह व्यवस्था संवैधानिक निरंतरता सुनिश्चित करती है, ताकि कार्यकारी रिक्तता के कारण संवैधानिक संकट उत्पन्न न हो।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा: अनुच्छेद 67(a) का व्यावहारिक उदाहरण

21 जुलाई 2025 को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को संबोधित इस्तीफा पत्र सौंपा, जिसमें उन्होंने व्यक्तिगत कारणों का उल्लेख किया। राष्ट्रपति द्वारा स्वीकार किए जाने के साथ ही इस्तीफा प्रभावी हो गया

उनके इस्तीफे के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 67(a) की प्रभावशीलता, प्रक्रियात्मक स्पष्टता और संवैधानिक मर्यादा की वास्तविकता सामने आई।

इस इस्तीफे के बाद राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह को कार्यवाहक सभापति नियुक्त किया गया, जब तक कि नए उपराष्ट्रपति का चुनाव संपन्न न हो जाए।

उत्तराधिकारी चयन: अनुच्छेद 68(2) की व्यवस्था

धनखड़ के इस्तीफे के बाद अनुच्छेद 68(2) के तहत रिक्ति की तिथि से 60 दिनों के भीतर नए उपराष्ट्रपति का चुनाव आवश्यक हो गया।

चुनाव प्रक्रिया:

  • निर्वाचन की प्रक्रिया का संचालन भारत निर्वाचन आयोग करता है।
  • लोकसभा और राज्यसभा दोनों के निर्वाचित एवं मनोनीत सदस्य मतदाता होते हैं।
  • मतदान एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote) के माध्यम से होता है,
  • और आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation) को अपनाया जाता है।

यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि चुनाव निष्पक्ष, प्रतिनिधित्वपूर्ण, और संवैधानिक भावना के अनुरूप हो।

संवैधानिक प्रभाव और महत्व

धनखड़ के इस्तीफे से जो प्रक्रिया शुरू हुई, उससे संविधान की निम्न विशेषताओं की पुष्टि होती है:

1. संवैधानिक पारदर्शिता:

इस्तीफा देने की सीधी और स्पष्ट प्रक्रिया बिना किसी जटिलता के सम्पन्न होती है।

2. पदों की गरिमा बनाए रखने की व्यवस्था:

उपराष्ट्रपति के स्वैच्छिक इस्तीफे की अनुमति देना लोकतंत्र की परिपक्वता और संवैधानिक गरिमा का प्रतीक है।

3. संस्थागत निरंतरता:

राज्यसभा की कार्यवाही उपसभापति द्वारा संचालित होती रही, जिससे कार्य में कोई अवरोध नहीं आया।

4. समयबद्ध उत्तराधिकार:

60 दिन की समयसीमा के भीतर चुनाव कराने की बाध्यता संवैधानिक रिक्तता को रोकती है।

अनुच्छेद 67(a) का तुलनात्मक दृष्टिकोण

यदि इसे राष्ट्रपति, राज्यपाल या लोकसभा अध्यक्ष के इस्तीफे से तुलना करें:

संवैधानिक पदइस्तीफे का प्रावधानसंबोधित अधिकारी
राष्ट्रपतिअनुच्छेद 56(1)(a)उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपतिअनुच्छेद 67(a)राष्ट्रपति
राज्यपालअनुच्छेद 156(2)राष्ट्रपति
लोकसभा अध्यक्षनियमों के अंतर्गतउपराष्ट्रपति

इससे स्पष्ट होता है कि प्रत्येक उच्च संवैधानिक पद के लिए भिन्न व्यवस्था है, परंतु सभी का उद्देश्य समान है – स्थायित्व और उत्तरदायित्व

वर्तमान घटनाक्रम और राजनीतिक परिदृश्य

धनखड़ का इस्तीफा उस समय आया जब:

  • संसद का मानसून सत्र प्रारंभ होने को था।
  • कई संवेदनशील विधेयकों पर चर्चा अपेक्षित थी।
  • अगले वर्ष लोकसभा चुनाव 2026 प्रस्तावित हैं।

ऐसे में यह कदम राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बन जाता है, जिससे अटकलें तेज हो गईं कि क्या वे सक्रिय राजनीति में लौटने की योजना बना रहे हैं?

निष्कर्ष

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 67(a) केवल एक तकनीकी कानूनी प्रावधान नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा को जीवंत बनाए रखने वाला महत्वपूर्ण स्तंभ है।

उपराष्ट्रपति का इस्तीफा, विशेषकर जब स्वेच्छा और संविधान की मर्यादा के अनुरूप दिया जाए, लोकतंत्र की परिपक्वता, संवैधानिकता की मजबूती, और संस्थागत गरिमा का परिचायक बनता है।

धनखड़ के इस्तीफे ने संविधान की इस व्यवस्था को व्यावहारिक रूप में स्थापित किया, और भारत के लोकतंत्र को एक बार फिर सशक्त और पारदर्शी सिद्ध किया।


प्रश्नोत्तरी (Quick Recap):

Q1. अनुच्छेद 67(a) क्या कहता है?
→ उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को लिखित पत्र द्वारा इस्तीफा दे सकते हैं।

Q2. इस्तीफा प्रभाव में कब आता है?
→ जैसे ही राष्ट्रपति उसे स्वीकार कर लेते हैं।

Q3. इस्तीफे के बाद कौन राज्यसभा चलाता है?
→ उपसभापति कार्यवाहक सभापति के रूप में कार्य करते हैं।

Q4. नए उपराष्ट्रपति का चुनाव कितने दिनों में होना चाहिए?
→ इस्तीफे की तिथि से 60 दिनों के भीतर।

Q5. यह चुनाव किस प्रणाली से होता है?
→ एकल संक्रमणीय मत प्रणाली के साथ आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली द्वारा।


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