21 जुलाई 2025 को भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों के चलते अपने पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे दिया। यह इस्तीफा उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के तहत राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपा। अपने त्यागपत्र में उन्होंने कहा कि यह निर्णय चिकित्सकों की सलाह के अनुसार लिया गया है। उन्होंने राष्ट्रपति को उनके सहयोग, मार्गदर्शन और सौहार्दपूर्ण कार्य संबंधों के लिए धन्यवाद दिया और अपने उपराष्ट्रपति कार्यकाल को “सार्थक और गरिमामयी” बताया।
इस इस्तीफे के बाद न केवल देश में एक संवैधानिक रिक्ति उत्पन्न हुई, बल्कि इसने भारत के उपराष्ट्रपति पद की संवैधानिक स्थिति, चुनाव प्रक्रिया, कर्तव्यों, अधिकारों, पात्रता और आपातकालीन भूमिकाओं की ओर भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया।
इस लेख में हम उपराष्ट्रपति पद से संबंधित सभी पहलुओं को व्यवस्थित, विश्लेषणात्मक और तथ्यपरक रूप से प्रस्तुत करेंगे।
भारत के उपराष्ट्रपति की संवैधानिक स्थिति
भारतीय संविधान में उपराष्ट्रपति का उल्लेख भाग V, अध्याय I में किया गया है। यह पद राष्ट्रपति के बाद दूसरा सर्वोच्च संवैधानिक पद है।
महत्वपूर्ण संवैधानिक स्थिति:
- संविधान के अनुच्छेद 63 के अनुसार, “भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।”
- उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के उत्तराधिकारी माने जाते हैं और उनकी अनुपस्थिति, मृत्यु, त्यागपत्र या अयोग्यता की स्थिति में कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं।
- उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति (Ex-officio Chairman) होते हैं, जो उन्हें उच्च सदन की कार्यवाही का संचालन करने की जिम्मेदारी देता है।
भारत सरकार में स्थान:
- भारत के सरकारी प्रोटोकॉल क्रम (Order of Precedence) में उपराष्ट्रपति द्वितीय स्थान पर आते हैं – राष्ट्रपति के ठीक बाद और प्रधानमंत्री से पहले।
उपराष्ट्रपति की भूमिका और अधिकार
क. राज्यसभा के सभापति के रूप में:
- उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं, जैसे लोकसभा का अध्यक्ष होता है।
- राज्यसभा की कार्यवाही की अध्यक्षता करते हैं।
- उच्च सदन में शिष्टाचार, अनुशासन और प्रक्रिया बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी होती है।
- मतदान में केवल निर्णायक मत (Casting Vote) देने का अधिकार होता है, जब मत बराबर हों।
ख. कार्यवाहक राष्ट्रपति की भूमिका:
- संविधान के अनुच्छेद 65 के तहत, जब राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाता है, उपराष्ट्रपति तब तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करते हैं, जब तक नया राष्ट्रपति निर्वाचित नहीं हो जाता (अधिकतम 6 महीने की अवधि)।
- इस दौरान, उपराष्ट्रपति को राज्यसभा की अध्यक्षता छोड़नी होती है, क्योंकि कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में वे कार्यपालिका का हिस्सा बन जाते हैं।
चुनाव प्रक्रिया: उपराष्ट्रपति कैसे चुना जाता है?
क. निर्वाचन मंडल (Electoral College):
- उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के निर्वाचित और मनोनीत सदस्य मिलकर करते हैं।
- इसमें राज्य विधानसभाएं शामिल नहीं होतीं, जबकि राष्ट्रपति चुनाव में होती हैं।
ख. मतदान की प्रणाली:
- चुनाव एकल संक्रमणीय मत प्रणाली (Single Transferable Vote) द्वारा गुप्त मतदान से होता है।
- यह प्रणाली आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Proportional Representation) के सिद्धांत पर आधारित होती है।
ग. कार्यकाल:
- उपराष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, लेकिन वे अपने उत्तराधिकारी के कार्यभार संभालने तक पद पर बने रह सकते हैं।
- वे पुनर्निर्वाचन के लिए अर्ह होते हैं।
इस्तीफा और पदत्याग की प्रक्रिया (अनुच्छेद 67(ए))
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(ए) के अनुसार:
“उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को लिखित रूप में त्यागपत्र देकर पद से इस्तीफा दे सकते हैं।”
- यह त्यागपत्र राष्ट्रपति को संबोधित किया जाता है।
- इस्तीफे की कोई समय-सीमा नहीं होती, लेकिन यह “तत्काल प्रभाव से स्वीकार्य” होता है, जब तक राष्ट्रपति उसे अस्वीकार न करें।
अन्य पदत्याग या हटाने के प्रावधान:
- उपराष्ट्रपति को लोकसभा और राज्यसभा दोनों द्वारा विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव के माध्यम से हटाया जा सकता है।
- अनुच्छेद 67(बी) इस प्रक्रिया को दर्शाता है, लेकिन यह अत्यंत दुर्लभ है और कभी लागू नहीं हुआ।
पात्रता की शर्तें (Eligibility Criteria)
उपराष्ट्रपति बनने के लिए निम्नलिखित संवैधानिक योग्यताएं आवश्यक हैं:
- भारत का नागरिक होना चाहिए।
- न्यूनतम आयु 35 वर्ष होनी चाहिए।
- राज्यसभा का सदस्य चुने जाने की योग्यता होनी चाहिए।
- कोई लाभ का पद (Office of Profit) केंद्र या राज्य सरकार, स्थानीय निकाय या सार्वजनिक निकाय के अंतर्गत नहीं धारण करना चाहिए।
घोषणापत्र और नामांकन:
- प्रत्येक उम्मीदवार को कम-से-कम 20 प्रस्तावकों और 20 अनुमोदकों की आवश्यकता होती है।
- एक नामांकन शुल्क (वर्तमान में ₹15,000) निर्वाचन आयोग के पास जमा करना होता है।
उपराष्ट्रपति के अधिकार और कर्तव्य: गहराई से विश्लेषण
क. विधायी कार्यक्षेत्र में:
- राज्यसभा की कार्यवाही में तटस्थ भूमिका।
- संसदीय बहस और विधेयकों की प्रक्रिया को नियमों के तहत संचालित करना।
- अनुशासन बनाए रखना और सदन में मर्यादा सुनिश्चित करना।
ख. कार्यपालिका में भूमिका (केवल कार्यवाहक राष्ट्रपति बनने पर):
- राष्ट्रपति के स्थान पर संविधान के अनुच्छेद 65 के अंतर्गत सभी कार्यकारी अधिकार प्राप्त करते हैं।
- आपातकाल की घोषणा, अध्यादेश जारी करना, विधेयकों को स्वीकृति देना जैसे कार्य।
ग. विशेष स्थितियों में भूमिका:
- राष्ट्रपति चुनाव के समय, यदि कोई विवाद या रिक्तता होती है, तो उपराष्ट्रपति की भूमिका संवैधानिक संतुलन बनाए रखने में अहम होती है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और उल्लेखनीय उपराष्ट्रपति
भारत के पहले उपराष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे, जो बाद में राष्ट्रपति बने। उनके बाद अनेक प्रसिद्ध व्यक्तित्वों ने इस पद को गरिमा प्रदान की:
- जाकिर हुसैन – जो बाद में राष्ट्रपति भी बने।
- वी. वी. गिरी – उपराष्ट्रपति से राष्ट्रपति बने और इंदिरा गांधी काल के महत्वपूर्ण सहयोगी रहे।
- हामिद अंसारी – दो कार्यकाल तक उपराष्ट्रपति रहे।
- एम. वेंकैया नायडू – वाजपेयी सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री, जिन्होंने भाषा और संसदीय मर्यादा को सशक्त किया।
- जगदीप धनखड़ – न्यायिक, संवैधानिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले उपराष्ट्रपति, जिन्होंने 2022-2025 तक यह पद संभाला।
उपराष्ट्रपति के इस्तीफे का प्रभाव और आगे की राह
जगदीप धनखड़ का त्यागपत्र भारत की राजनीति में एक अस्थायी शून्यता का निर्माण करता है, विशेष रूप से संसद के मानसून सत्र की पृष्ठभूमि में। उपराष्ट्रपति की गैर-मौजूदगी में राज्यसभा की कार्यवाही को उपसभापति या वरिष्ठ सदस्य द्वारा संचालित किया जाएगा।
राष्ट्रपति को अब 6 महीने के भीतर नया उपराष्ट्रपति नियुक्त करने के लिए चुनाव अधिसूचना जारी करनी होगी। इस प्रक्रिया का संचालन भारत का चुनाव आयोग करेगा।
संभावित चुनौतियाँ:
- राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की राजनीतिक संगति के बावजूद, राज्यसभा की संचालन में निष्पक्षता सुनिश्चित करना एक चुनौती होगा।
- विपक्ष को नई नियुक्ति में भूमिका न मिलने से संसदीय टकराव की संभावना।
निष्कर्ष: संविधानिक संतुलन का प्रतीक पद
भारत का उपराष्ट्रपति न केवल राज्यसभा के सभापति के रूप में विधायी कार्यवाही का संचालन करता है, बल्कि संकट की घड़ी में राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में कार्यपालिका का नेतृत्व भी करता है।
जगदीप धनखड़ का इस्तीफा हमें इस संवैधानिक पद की वास्तविक भूमिका, शक्ति और सीमाओं की पुनः स्मृति कराता है। यह पद विशुद्ध रूप से सम्मानजनक और गरिमामयी है, जिसका उद्देश्य संविधानिक स्थिरता, संसद की मर्यादा और राजनीतिक संतुलन सुनिश्चित करना है।
मुख्य तथ्य संक्षेप में
विषय | विवरण |
---|---|
संवैधानिक आधार | अनुच्छेद 63 से 71 |
इस्तीफा | अनुच्छेद 67(ए) |
चुनाव प्रक्रिया | संसद के दोनों सदनों के सदस्य, एकल संक्रमणीय मत |
कार्यकाल | 5 वर्ष |
कार्य | राज्यसभा सभापति, कार्यवाहक राष्ट्रपति |
पात्रता | भारतीय नागरिक, आयु 35+, राज्यसभा सदस्यता की योग्यता |
हालिया इस्तीफा | जगदीप धनखड़ (21 जुलाई 2025) |
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