एडॉल्फ हिटलर |1889-1945 | एक पॉवरफुल नेता की यात्रा

1921 में, एडॉल्फ हिटलर नेशनल सोशलिस्ट जर्मन वर्कर्स पार्टी, जिसे नाज़िस के नाम से जाना जाता है, के निर्विवाद नेता बने। 1923 में, उन्होंने जर्मन सरकार का तख्ता पलटने की कोशिश की, लेकिन इस कोशिश में विफल रहे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें कैद कर लिया गया। इसके बावजूद, उनकी योग्यता और भाषण कौशल ने उन्हें अपने प्रशंसकों का समर्थक दिलाया।

उन्होंने जेल के दौरान अपने राजनीतिक विचारों को अपनी पुस्तक “Mein Kampf” यानी “मेरा संघर्ष” में निर्देशित किया, जिसमें उन्होंने अपने विचार, योजनाएँ, और विचारधारा को व्यक्त किया।

हिटलर (Adolf Hitler) के विचारों के मुख्य लक्ष्यों में क्षेत्रीय विस्तार, नस्लीय रूप से शुद्ध राज्य का समर्थन, और यूरोपीय यहूदियों और जर्मनी के अन्य विशेषज्ञ दुश्मनों को बाहर निकालना शामिल था। उनके इन विचारों ने जर्मनी को नाजी पार्टी के नेतृत्व में ले जाने का मार्ग प्रशस्त किया और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उन्हें जर्मनी के राष्ट्रपति के रूप में सत्ता प्राप्त करने में सफलता मिली।

एडॉल्फ हिटलर का संक्षिप्त विवरण

जन्म तिथि20 अप्रैल 1889
जन्म स्थानब्राउनाऊ एम इन ( Braunau am Inn),
ऑस्ट्रिया-हंगरी (वर्तमान दिन की ऑस्ट्रिया)
मृत्यु तिथि30 अप्रैल 1945
मृत्यु स्थानबर्लिन, जर्मनी
मृत्यु कारणबंदूक द्वारा आत्महत्या
प्रारंभिक जीवनवियना में कला की पढ़ाई
पिताएलोइस हिटलर
माताक्लारा पोल्जल
नागरिकताऑस्ट्रिया (1925 तक)
जर्मनी (1932 से)
नागरिकता नहीं (1925–1932)
राजनीतिक पार्टीनाजी पार्टी (1920 से)
अन्य राजनीतिकनाजी कार्यकर्ता पार्टी (1919–1920)
मंत्रिमंडलहिटलर कैबिनेट
प्रमुख कार्यनाजी पार्टी के नेता और जर्मन के चांसलर
उपनामफ्यूहरर (Führer)
प्रमुख कार्यक्षेत्रनाजी जर्मनी के शासन में नाजीकरण
महत्वपूर्ण घटनाएंद्वितीय विश्व युद्ध, यूरोप का अधिग्रहण, होलोकॉस्ट
जर्मनी के फ्यूहरर2 अगस्त 1934 – 30 अप्रैल 1945
जर्मनी के चांसलर30 जनवरी 1933 – 30 अप्रैल 1945
नाजी पार्टी के फ्यूहरर29 जुलाई 1921 – 30 अप्रैल 1945
संलग्नतावेमार गणराज्य
जर्मन साम्राज्य
शाखाकेसरी जर्मन आर्मी
बावेरियन आर्मी
राइच्सवेहर
दर्जागेफ्राइटर
इकाई16 वीं बावेरियन रिजर्व रेजिमेंट

एडॉल्फ हिटलर का जन्म और प्रारंभिक जीवन

एडोल्फ हिटलर का जन्म 20 अप्रैल 1889 को ऊपरी ऑस्ट्रियाई सीमावर्ती शहर ब्राउनाऊ एम इन में हुआ था। इनके जन्म के लगभग 9 साल बाद 1898 में, हिटलर का परिवार ऊपरी ऑस्ट्रिया की राजधानी, लिंज़, में चला गया। हिटलर ने दृश्य कला में करियर की तलाश में अपने पिता के साथ कठिनाइयों का सामना किया, क्योंकि उनके पिता चाहते थे कि वह हैब्सबर्ग सिविल सेवा में प्रवेश करें।

हिटलर फरवरी 1908 और मई 1913 के बीच वियना में रहे, लेकिन फिर म्यूनिख के लिए निकले। वहां, उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अपने कला कौशल को परिपूर्ण किया, जिसमें पानी रंगों और स्केचेस के माध्यम से अपनी कल्पना को दिखाने का काम था, और उन्होंने खुद को आगे बढ़ाया और समर्थन प्राप्त किया। वह फिर सेना में शामिल हो गए। युद्ध के दौरान वह दो बार (1916 और 1918 में) घायल होते हुए भी अपनी ताकत और सामर्थ्य का प्रमाण दिया, जिसके कारन इनको कई पदकों से सम्मानित किया गया।

अक्टूबर 1918 में, हिटलर ने बेल्जियम के यप्रेस क्षेत्र में सरसों गैस के हमले में हिस्सा लिया इस हमले में उनके आँखों में चोट लगने के कारण वे आंशिक रूप से (एक आँख से) अंधे हो गए। इसके बाद, उन्हें पासवॉक के एक सैन्य अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया गया। 11 नवंबर 1918 को, जब वे स्वस्थ होकर अस्पताल से बहार आये, उस समय तक युद्धविराम हो चुका था युद्ध विराम की खबर सुनने के बाद वे नवंबर 1918 में म्यूनिख लौट गए।

1919 में, वह बवेरियन सैन्य प्रशासन के सूचना कार्यालय में शामिल हुए, जहां वे नागरिक राजनीतिक दलों पर खुफिया जानकारी एकत्र करने और सैनिकों को कम्युनिस्ट विरोधी “राजनीतिक शिक्षा” प्रदान करने में जुटे। अगस्त 1919 में, उन्होंने एक प्रशिक्षक के रूप में काम किया और उन्होंने अपना पहला उग्र एवं विरोधी भाषण दिया। एक महीने बाद, उन्होंने जर्मनी से यहूदियों को हटाने की मांग की, तथा पहली बार एक यहूदी विरोधी, नस्लवादी विचारधारा को लिखित रूप में व्यक्त किया।

हिटलर की नाज़ी पार्टी में प्रमुखता और वृद्धि

अक्टूबर 1919 में, हिटलर ने नाज़ी पार्टी में शामिल हो जाते हैं। उन्होंने 1920 में पार्टी के राजनीतिक कार्यक्रम के तैयारी में मदद की, जिसका कार्यक्रम नस्लवादी विरोधीवाद, विस्तारवादी राष्ट्रवाद और अप्रवासी विरोधी शत्रुता पर आधारित था। 1921 तक, वे नाज़ी पार्टी के पूर्ण Führer (नेता) बन गए। इसके अलावा, अर्धसैनिक SA (Sturmabteilung; स्टॉर्म ट्रूपर्स) में 4,000 से अधिक पुरुषों द्वारा समर्थित नाज़ी पार्टी की सदस्यता दो वर्षों में बढ़कर 55,000 हो गई। यह पार्टी की वृद्धि और उनके नेतृत्व की महत्वपूर्ण मील की पटक थी, जो बाद में उन्हें जर्मनी के नेता के रूप में अधिक शक्तिशाली बनाने में मदद की।

बीयर हॉल पुट्स की घटना और हिटलर की लोकप्रियता

बीयर हॉल पुट्स (Beer Hall Putsch) जर्मनी में 9 नवंबर, 1923 को एक महत्वपूर्ण घटना थी। इसे जर्मन इतिहास में “बीयर हॉल पुट्स” के नाम से भी जाना जाता है। इस घटना में एडोल्फ हिटलर और नाजी पार्टी के सदस्य नाजी पार्टी के नेतृत्व में जर्मन राज्य बावेरिया की सरकार को पलटने की कोशिश की थी।

वे बीयर हॉल (बीयर हॉल) में एक जनसभा बुलाए और वहां से सरकार को धमकिया दिया, लेकिन इस पुट्स का प्रयास असफल रहा और हिटलर गिरफ्तार हो गए। इस घटना के बाद, हिटलर को एक वर्ष की सजा सुनाई गई, लेकिन यह उनकी पॉपुलैरिटी को बढ़ाने में मदद की और उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत की।

बीयर हॉल पुट्स 9 नवंबर, 1923 को हुआ, जब हिटलर और नाज़ी पार्टी के नेतृत्व ने वाईमर गणराज्य के बवेरिया राज्य की सरकार का तख्ता पलटने की मांग की। इस कोशिश के दौरान, नाज़ी पार्टी के सदस्य बीयर हॉल में एक जनसभा बुला कर संयुक्त राज्यों की सरकार को धमकिया दिए। परन्तु यह प्रयास असफल रहा और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, हालाँकि हिटलर को एक वर्ष की ही सजा सुनाई गयी। लेकिन इसने हिटलर को राष्ट्रीय मंच पर आने का मौका दिया और उनकी पॉपुलैरिटी में वृद्धि की और उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत की।

1926 में, जेल में अपने समय का इस्तेमाल करते हुए, एडॉल्फ हिटलर ने अपनी आत्मकथा “Mein Kampf” (मेरी संघर्ष) लिखना शुरू किया। इस पुस्तक में, उन्होंने अपने नाजी विचारों, जैसे कि जातिवादी और सामाजिक डार्विनवादी दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से प्रकट किया। उन्होंने अपने इरादों का विवरण भी दिया, जिसमें उनकी तानाशाही, सैन्य विस्तार, और जर्मनी में जेनोफोबिक राष्ट्रवाद को प्रमोट करने की योजना शामिल थी। इस पुस्तक का प्रकाशन ने बाद में हिटलर की पॉलिटिकल करियर को बढ़ावा दिया और नाजी पार्टी के विचारधारा को प्रसारित किया।

1924 में, हिटलर ने जेल से रिहा होने के बाद अपने राजनीतिक सत्ता की तलाश शुरू की और वह चुनाव जैसे कानूनी साधनों के जरिए राजनीतिक सत्ता की तलाश में निकले। उन्होंने मॉस्कौ के प्रकाशित आदर्शों का समर्थन किया और अपनी प्रचार तकनीकों का उपयोग करके अपनी पॉपुलैरिटी बढ़ाई। 1929 की विश्व महामंदी पूरे विश्व को आर्थिक मंदी की तरफ ढकेल दिया।

इस आर्थिक महामंदी से जर्मनी भी अछूता नहीं रहा और जर्मनी भी आर्थिक संकट में फंस चुका था। ऐसे समय में हिटलर ने लोगों को एक नयी उम्मीद दी। उसने इस आर्थिक संकट से निकलने, जर्मनी का खोया हुआ वर्चस्व वापस दिलाने तथा दुबारा से जर्मनी को एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने का वादा किया। हिटलर के इस वादे ने उसके के प्रति लोगों का विश्वास बढाया। अब वे हिटलर को एक उम्मीद के तौर पर देखने लगे, जिससे उनकी पार्टी को वोट मिलने लगे।

एडॉल्फ हिटलर की राजनीतिक रणनीति

नाजी पार्टी के जेल से रिहा होने के बाद, एडॉल्फ हिटलर ने पार्टी को पुनः व्यवस्थित और पुनर्गठित किया। उन्होंने चुनावी राजनीति में शामिल होने के लिए नई रणनीतियों का अध्ययन किया और पार्टी के आकर्षकता को बढ़ाने के लिए कई उपायों का सुझाव दिया।

  1. राष्ट्रीय रक्षा क्षमता का नवीनीकरण: हिटलर ने जर्मनी की रक्षा क्षमता के नवीनीकरण को प्रमोट किया और यहां तक कि उन्होंने नामी यूनिफॉर्म के लिए अपील की, जिसका उपयोग नाज़ी पार्टी के सदस्यों के रूप में किया जा सकता था।
  2. राष्ट्रीय संप्रभुता को बहाल करना: हिटलर ने जर्मन राष्ट्रीय अभिमान को प्रोत्साहित किया और यह संदेश दिया कि जर्मनी को फिर से महत्वपूर्ण भूमिका मिलनी चाहिए।
  3. साम्यवाद का विनाश: हिटलर ने साम्यवाद को विरोध किया और नाजी पार्टी को यह संदेश दिया कि उन्हें अपने आप को सबसे मजबूत दिखाना होगा।
  4. वर्साय संधि को उलटाना: हिटलर ने वर्साय संधि का विरोध किया और जर्मनी के राष्ट्रीय गरिमा को पुनः स्थापित करने की दिशा में कदम बढ़ाया।
  5. जर्मनी में विदेशी और यहूदी राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रभाव को खत्म करना: हिटलर ने विदेशी तथा यहूदी घुसपैठियों के खिलाफ बड़े प्रचार किया और उन्हें जर्मनी से बाहर करने का आलम्ब लिया।
  6. आर्थिक समृद्धि पैदा करना और रोजगार पैदा करना: हिटलर ने आर्थिक सुधार के लिए योजनाएं बनाई और रोजगार की समस्या का समाधान ढूंढने का प्रयास किया।

1928 के चुनावों में, नाजी पार्टी को मात्र 2.6% मत मिले, लेकिन हिटलर ने इसका आलम्ब नहीं दिया और अपनी राजनीतिक रणनीति को और भी मजबूत किया।

1930 में महामंदी की शुरुआत के साथ, नाज़ी आंदोलन का जर्मन आबादी पर प्रभाव बढ़ने लगा। महामंदी ने जर्मनी की आर्थिक स्थिति को अधिक खराब किया, और इससे लोगों का आत्मविश्वास और संतोष कम हो गए। इस परिस्थिति में, नाज़ी आंदोलन ने अपने आक्रमक प्रचार और वाद-विवाद से लोगों को प्रभावित किया।

मार्च में, बहुसंख्यक गठबंधन सरकार की गिरावट ने तीन मध्यवर्गीय दलों को एक संसदीय चुनाव कराने का अवसर प्रदान किया, और उन्होंने असाधारण संसदीय चुनाव को आयोजित किया। इसका उद्देश्य था एक शासी बहुमत का निर्माण करना, जिससे सोशल डेमोक्रेट्स और राजनीतिक वामपंथियों को स्थायी रूप से बाहर किया जा सकता।

पैंथरेबाज़ी के इस प्रयास की विफलता के बाद, 1930 से 1932 तक, जर्मन सरकारों ने संसदीय सहमति के बजाय राष्ट्रपति के आदेश के तहत शासन करने का सहारा लिया। इससे जर्मनी में राजनीतिक स्थिरता में अस्थिरता और अविश्वास बढ़ा, जिसने नाजी पार्टी के आगमन के लिए मार्ग खोल दिया।

चुनावी सफलता और नाजी पार्टी की बढ़ती शक्ति

नाजियों ने 1930 में अपनी चुनावी सफलता को आधुनिक तकनीक, आधुनिक राजनीतिक बाजार अनुसंधान, और हिंसा के जरिए डराने और धमकाने के संयोजन से हासिल किया। नाजी पार्टी ने इस प्रक्रिया के माध्यम से लोगों के मानसिकता में परिवर्तन और अपनी समर्थन बढ़ाया। वे आधुनिक टूल्स का उपयोग करके अपने संदेश को व्यापकतर करने में सक्षम थे और लोगों को अपने विचारों के प्रति प्रेरित किया।

नाजी पार्टी के युवा सदस्यों ने भी बड़ी भूमिका निभाई, और उनकी ऊर्जा और प्रेरणा ने पार्टी को जीतने में मदद की। वे लोगों को अपने विचारों के प्रति उत्साहित किया और बेरोजगार और युवा वर्ग को आकर्षित किया।

नाजियों ने लोकप्रिय मुद्दों को बड़े ध्यान से देखा, और उन्होंने लोगों की आसपास की समस्याओं का समाधान पेश किया, जैसे कि आर्थिक समृद्धि, रोजगार, और राष्ट्रीय रक्षा क्षमता का नवीनीकरण। इसके परिणामस्वरूप, वे लोगों को लगभग पांचवें हिस्से पर अपनी पार्टी के साथ खड़ा कर लिया, जो कि 1930 में की गई चुनावों में उनके लिए सफल रहा।

हिटलर और नाज़ी पार्टी की अपील 1930 और 1932 में बढ़ी और वे जर्मनी के बड़े राजनीतिक खिलाड़ी बन गए। उन्होंने अपनी अग्रसर अपील और वक्तव्यों के माध्यम से बेताब जर्मनों को अपनी पक्ष में खींचा और उन्हें उनके परिवर्तन की आवश्यकता के बारे में प्रेरित किया।

1931 में हिटलर ने गणराज्य के राष्ट्रपति के लिए प्रतिस्पर्धी रूप से चुनाव लड़े, और इससे उनकी चुनौती और भी महत्वपूर्ण बन गई। उन्होंने जुलाई 1932 के चुनावों में 37.3% मत हासिल किए, जिससे नाज़ी पार्टी जर्मनी की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई।

1930 के बाद, वे लगातार चुनाव प्रचार करते रहे, जिसमें सड़क हिंसा और राजनीतिक गतिरोध भी शामिल थे। इसके परिणामस्वरूप, नाजी पार्टी की सदस्यता में वृद्धि हुई और SA (Sturmabteilung) की संख्या भी बढ़ गई, जो नाजी पार्टी की सड़क संगठन थी। SA की सदस्यता 1932 में 400,000 से अधिक हो गई, और यह इनकी बढ़ती शक्ति का प्रतीक था।

जर्मनी के चांसलर के रूप में हिटलर का राजनीतिक सफ़र

नवंबर 1932 के संसदीय चुनावों में नाज़ी पार्टी का मत घटकर 33.1% हो गया, जिससे हिटलर की अपील में कमी हुई। इसके परिणामस्वरूप, नाज़ी पार्टी में एक राजनीतिक और वित्तीय संकट पैदा हुआ।

हिटलर के साथ चांसलर बनने का समझौता (जनवरी 1933)

हिटलर के साथ चांसलर के रूप में, वॉन पापेन ने जनवरी 1933 की शुरुआत में हिटलर और जर्मन राष्ट्रवादियों के साथ समझौता किया। इस समझौते के बाद, वॉन पापेन ने राष्ट्रपति पॉल वॉन हिंडनबर्ग को मना लिया कि जर्मनी के पास अन्य कोई विकल्प नहीं है, और इस परिणामस्वरूप, वॉन हिंडनबर्ग ने हिटलर को 30 जनवरी 1933 को चांसलर नियुक्त किया।

हिटलर के चांसलर बनने के बाद कदम

जब हिटलर चांसलर के रूप में नियुक्त हुए, तो उन्होंने जर्मनी को एकदलीय तानाशाही में बदलने के लिए जीरो (शुरू) से बढ़ता हुआ कदम रखा। वे नाजी पार्टी के सदस्यों को सरकार की सभी महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया और सिविल सेवा और सेना में वफादार सदस्यों की नियुक्तियाँ की। इसके परिणामस्वरूप, जर्मनी में नाज़ी शासन का आरंभ हुआ, जिसने विश्व इतिहास को एक अद्वितीय दिशा में बदल दिया।

हिटलर की तानाशाही और जर्मन राष्ट्रपति पद का समापन (अगस्त 1934)

अगस्त 1934 में, जर्मन राष्ट्रपति पॉल वॉन हिंडनबर्ग का निधन हो गया और इस समय का महत्वपूर्ण अवसर हिटलर ने बेहद सावधानीपूर्वक उठाया। उन्होंने राष्ट्रपति पद को समाप्त कर दिया और अपने आप को “फ्यूरर” (जर्मन लोगों के नेता) के रूप में घोषित किया।

इस मौके पर, हिटलर ने एक बड़ा निर्णय लिया और अपनी व्यक्तिगत सत्ता को मजबूत किया। सभी सैन्य कर्मियों और सिविल सेवकों ने फ्यूरर के प्रति व्यक्तिगत वफादारी की नई शपथ ली, जिससे हिटलर की व्यक्तिगत सत्ता को और भी प्रतिष्ठित बनाया गया।

हिटलर ने राष्ट्रपति पद के अलावा रीच चांसलर (सरकार के प्रमुख) के पद को भी संभालते रहे और अपने नेतृत्व में नाज़ी पार्टी का राज्य के सभी पहलुओं पर नियंत्रण जमा दिया। इस समय, हिटलर की तानाशाही और नाज़ी शासन की शुरुआत हुई, जिसने जर्मनी को एक एकदलीय और निरंतर संवाद के अवसर में बदल दिया, और इसका परिणाम दुनिया इतिहास में एक अद्वितीय चरण का आरंभ हुआ।


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