आंध्र प्रदेश राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए अनुसूचित जातियों (SCs) के उप-वर्गीकरण को लागू करने के लिए एक मसौदा अध्यादेश को मंजूरी दी है। यह निर्णय राज्य में अनुसूचित जातियों के भीतर विभिन्न उप-जातियों के बीच आरक्षण के लाभों का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। “आरक्षण के भीतर आरक्षण” की अवधारणा पर आधारित यह कदम विभिन्न जातिगत समूहों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण लाभों का वितरण सुनिश्चित करने का प्रयास है। इस निर्णय के पीछे सुप्रीम कोर्ट का वह ऐतिहासिक फैसला है, जिसमें राज्यों को अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण का अधिकार दिया गया था।
एससी उप-वर्गीकरण अध्यादेश का उद्देश्य और महत्व
आंध्र प्रदेश मंत्रिमंडल द्वारा 15 अप्रैल 2025 को मंजूरी दी गई यह अध्यादेश अनुसूचित जातियों (SCs) के भीतर विभिन्न उप-जातियों के बीच आरक्षण लाभों के न्यायसंगत वितरण को सुनिश्चित करने का प्रयास है। राज्य सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया है ताकि आरक्षण के अंतर्गत आने वाली विभिन्न जातियों में से कुछ ऐसे समुदायों को अधिक लाभ मिल सके, जिनका प्रतिनिधित्व अब तक कम रहा है। इसके साथ ही, कुछ प्रमुख समूहों के प्रभुत्व को भी संतुलित किया जा सके, जिससे समाज में समानता और समावेशिता का संवर्धन हो सके।
इस अध्यादेश के लागू होने से, अनुसूचित जातियों के उप-समूहों के बीच आरक्षण का लाभ उनके सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर सही तरीके से वितरित किया जा सकेगा। यह कदम राज्य की सामाजिक और आर्थिक विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश और आयोग की सिफारिशें
आंध्र प्रदेश सरकार ने यह कदम सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक महत्वपूर्ण आदेश के बाद उठाया, जिसमें राज्यों को अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण का अधिकार दिया गया था। इससे पहले, अनुसूचित जातियों के आरक्षण को लेकर कई प्रकार की शिकायतें सामने आती रही थीं, खासकर उन समुदायों के बारे में, जो सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से काफी पिछड़े हुए थे, लेकिन आरक्षण के लाभ में उन्हें उचित हिस्सेदारी नहीं मिल रही थी।
इस दिशा में आंध्र प्रदेश सरकार ने 15 नवंबर 2024 को एक आयोग का गठन किया था, जिसकी अध्यक्षता सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी राजीव रंजन मिश्रा ने की थी। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अनुसूचित जातियों को तीन प्रमुख श्रेणियों में विभाजित करने की सिफारिश की थी। इन श्रेणियों के आधार पर कोटा आवंटन करने से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि प्रत्येक उप-जाति को उनके पिछड़ेपन के स्तर के हिसाब से आरक्षण का लाभ मिल सके।
आयोग द्वारा सुझाए गए तीन समूह
राजीव रंजन मिश्रा आयोग ने अनुसूचित जातियों की 59 जातियों को उनके सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। इन तीन समूहों में कोटा आवंटन की सिफारिश की गई है:
ग्रुप 1: सबसे पिछड़े (रेल्ली उप-समूह)
इस समूह में उन जातियों को रखा गया है, जो सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से सबसे अधिक पिछड़ी हुई हैं। इसमें कुल 13 जातियाँ शामिल हैं, जैसे बावुरी, चाचाटी, चंडाला, डंडासी, डोम, घासी, गोडगली, मेहतर, पाकी, पामिडी, रेल्ली, सप्रु आदि। इन जातियों के लिए 1.0% आरक्षण कोटा आवंटित किया गया है।
ग्रुप 2: पिछड़े (मदिगा उप-समूह)
इस समूह में उन जातियों को रखा गया है, जो पिछड़े तो हैं, लेकिन पहले समूह के मुकाबले थोड़ी अधिक उन्नति कर चुकी हैं। इस समूह में कुल 18 जातियाँ शामिल हैं, जैसे अरुंधतिया, बिंदाला, चमार, चांभार, डक्कल, धोऱ, गोडारी, गोसंगी, जग्गाली, जांबुवुलु, कोलुपुलवंदलु, मदिगा, मदिगा दासु, मंग, मंग गारोड़ी, मातंगी, समागरा, सिंधोलु आदि। इन जातियों को 6.5% आरक्षण आवंटित किया गया है।
ग्रुप 3: कम पिछड़े (माला उप-समूह)
इस समूह में उन जातियों को रखा गया है, जिनका पिछड़ापन अन्य समूहों के मुकाबले कम है। इस समूह में कुल 28 जातियाँ शामिल हैं, जैसे आदि द्रविड़, अनामुक, आर्यमाला, अर्वमाला, बारिकी, ब्यागरा, चलवादी, येल्लमालावर, होलिया, होलिया दासारी, मडासी कुरुवा, महार, माला, माला दासारी, माला दासु, माला हन्नाई, माला जंगम, माला मस्ती, माला साले, माला सन्यासी, मन्ने, मुंडाला, सांबन, यताला, वल्लुवन आदि। इस समूह को 7.5% आरक्षण आवंटित किया गया है।
जन परामर्श और विधानसभा में पारित
आंध्र प्रदेश राज्य सरकार ने इस प्रस्ताव को जन परामर्श के लिए राज्य के सभी 26 जिलों में रखा था। इस परामर्श प्रक्रिया में लोगों से सुझाव और प्रतिक्रियाएँ ली गईं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी समुदायों के हितों का सही प्रतिनिधित्व हो सके। इसके बाद, यह मसौदा अध्यादेश राज्य की विधानमंडल में प्रस्तुत किया गया और वहां सर्वसम्मति से पारित किया गया।
अपेक्षित लाभ
इस अध्यादेश के लागू होने से, अनुसूचित जातियों के विभिन्न उप-जातियों को आरक्षण के लाभों का अधिक न्यायपूर्ण और समान वितरण संभव होगा। विशेष रूप से, जिन समुदायों को अब तक कम प्रतिनिधित्व मिला है, उन्हें अब उनके पिछड़ेपन के स्तर के हिसाब से अधिक अवसर मिलेंगे। इसके परिणामस्वरूप:
- शिक्षा: समाज के हर वर्ग को समान अवसर मिलने से शिक्षा में अधिक समानता आएगी।
- सरकारी नौकरियाँ: सरकारी नौकरियों में भी इस उप-वर्गीकरण से अधिक संतुलित प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होगा।
- स्थानीय निकाय और राजनीति: स्थानीय निकायों में भी इन उप-जातियों का अधिक प्रतिनिधित्व होगा, जिससे उनके अधिकारों की रक्षा और समावेशिता में सुधार होगा।
विरोध और समर्थन
यह कदम कुछ समूहों द्वारा समर्थित है, खासकर मदिगा रिज़र्वेशन पोराटा समिति (MRPS) और अन्य पिछड़ा वर्ग समूहों द्वारा। वे इसे सामाजिक और आर्थिक न्याय की दिशा में एक सही कदम मानते हैं। हालांकि, कुछ समूहों ने इसका विरोध भी किया है, यह दावा करते हुए कि इससे कुछ समूहों को अधिक लाभ मिलेगा, जबकि अन्य पीछे रह जाएंगे।
आंध्र प्रदेश का यह निर्णय एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है, जो न केवल अनुसूचित जातियों के बीच आरक्षण के लाभों का संतुलित वितरण सुनिश्चित करेगा, बल्कि समग्र समाज में समानता और न्याय की भावना को भी बढ़ावा देगा। राज्य सरकार का यह कदम, समाज में व्याप्त असमानताओं को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है और अन्य राज्यों के लिए भी एक आदर्श हो सकता है।
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