भारत और श्रीलंका के बीच फैले पाल्क स्ट्रेट (Palk Strait) के समुद्री विस्तार में स्थित कच्चाथीवु द्वीप एक छोटा लेकिन अत्यंत रणनीतिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व रखने वाला द्वीप है। यह द्वीप, जो मात्र 285 एकड़ में फैला है, हाल ही में तब सुर्खियों में आया जब तमिलनाडु विधानसभा ने केंद्र सरकार से इसे वापस भारत में शामिल करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया।
कच्चाथीवु द्वीप न केवल ऐतिहासिक रूप से भारत से जुड़ा रहा है, बल्कि आज भी यह भारत और श्रीलंका के बीच कई कूटनीतिक और सामुद्रिक विवादों का केंद्र बना हुआ है। इस लेख में हम कच्चाथीवु द्वीप के इतिहास, कानूनी स्थिति, भारत-श्रीलंका संधियों, पारिस्थितिक एवं धार्मिक महत्व, और वर्तमान विवादों की विस्तार से चर्चा करेंगे।
कच्चाथीवु द्वीप | भौगोलिक स्थिति और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भौगोलिक स्थिति
कच्चाथीवु द्वीप पाल्क स्ट्रेट में स्थित है, जो भारत के तमिलनाडु राज्य और श्रीलंका के उत्तरी भाग के बीच स्थित एक समुद्री जलमार्ग है। यह द्वीप भारत के रामनाथपुरम जिले के तट से लगभग 33 किलोमीटर और श्रीलंका के जाफना तट से करीब 62 किलोमीटर दूर है।
ऐतिहासिक स्वामित्व
इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि कच्चाथीवु द्वीप रामनाड साम्राज्य (Ramanad Kingdom) का हिस्सा था, जो वर्तमान में तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित था। यह क्षेत्र लंबे समय तक भारत के राजाओं के अधीन रहा और ब्रिटिश काल के दौरान भारत और श्रीलंका दोनों के मछुआरे इसे साझा रूप से उपयोग करते थे।
ब्रिटिश शासनकाल में यह द्वीप साझा प्रशासकीय क्षेत्र की तरह कार्य करता था और कोई स्पष्ट अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा निर्धारित नहीं की गई थी। यहीं से शुरू होती है इस द्वीप की संप्रभुता को लेकर चल रही जटिल कहानी।
धार्मिक और पारिस्थितिक महत्व
सेंट एंथोनी चर्च
कच्चाथीवु द्वीप पर स्थित सेंट एंथोनी चर्च एक प्राचीन कैथोलिक तीर्थ स्थल है, जिसे दोनों देशों – भारत और श्रीलंका के ईसाई श्रद्धालु अत्यंत श्रद्धा के साथ पूजते हैं। हर वर्ष आयोजित होने वाला सेंट एंथोनी महोत्सव दोनों देशों के बीच एक सांस्कृतिक सेतु का कार्य करता है। यह धार्मिक आयोजन इस द्वीप के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को दर्शाता है।
पारिस्थितिक तंत्र
कच्चाथीवु द्वीप एक समृद्ध समुद्री पारिस्थितिक तंत्र का हिस्सा है, जो विभिन्न समुद्री प्रजातियों, कोरल रीफ्स, समुद्री कछुओं और प्रवाल भित्तियों का घर है। यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप के प्रति अत्यंत संवेदनशील है, इसलिए इसका संरक्षण पारिस्थितिक दृष्टिकोण से अत्यंत आवश्यक है।
भारत-श्रीलंका संधियाँ और कच्चाथीवु द्वीप का हस्तांतरण
1974 की संधि
भारत और श्रीलंका के बीच 1974 में एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसे “भारत-श्रीलंका समुद्री सीमा संधि” (India-Sri Lanka Maritime Boundary Agreement) कहा जाता है। इस समझौते के तहत भारत ने कच्चाथीवु द्वीप को श्रीलंका की संप्रभुता में सौंपने पर सहमति जताई। इस निर्णय का आधार यह बताया गया कि कच्चाथीवु द्वीप श्रीलंका की भौगोलिक सीमा के निकट है।
हालांकि, यह हस्तांतरण संसद में बहस के बिना और व्यापक जनसहमति के अभाव में किया गया, जो आज तक एक राजनीतिक और कानूनी बहस का विषय बना हुआ है।
1976 की संधि
1976 में भारत और श्रीलंका के बीच एक और समझौता हुआ, जिसमें भारत ने इस क्षेत्र में मछली पकड़ने के अपने पारंपरिक अधिकार भी त्याग दिए। इससे भारतीय मछुआरों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा, क्योंकि वे सदियों से इन जल क्षेत्रों में मछली पकड़ते आए थे।
अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL) और विवाद
IMBL की अवधारणा
अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (International Maritime Boundary Line – IMBL) को 1974 की संधि के आधार पर स्थापित किया गया। यह रेखा संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून (United Nations Convention on the Law of the Sea – UNCLOS) के अनुसार दोनों देशों के क्षेत्रीय जल, विशेष आर्थिक क्षेत्र (Exclusive Economic Zone – EEZ), और अन्य अधिकार-क्षेत्रों को निर्धारित करती है।
सामान्यतः समुद्री सीमाएँ “समान दूरी सिद्धांत (Equidistance Principle)” पर आधारित होती हैं, लेकिन 1974 की संधि में कुछ समायोजन करके कच्चाथीवु द्वीप को श्रीलंका के अधिकार क्षेत्र में शामिल किया गया।
व्यवहारिक समस्याएँ
हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रेखा तय हो चुकी है, परंतु समुद्र में कोई भौतिक दीवार नहीं होती। मछुआरे सीमाओं की स्पष्टता से अनभिज्ञ होते हैं, और पारंपरिक रूप से प्रयोग किए गए जल क्षेत्रों में मछली पकड़ना जारी रखते हैं। इसके चलते श्रीलंकाई नौसेना द्वारा भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी, नावों की जब्ती और कभी-कभी गोलीबारी की घटनाएँ सामने आती रहती हैं। ये घटनाएँ दोनों देशों के बीच राजनयिक तनाव उत्पन्न करती हैं।
कानूनी और राजनीतिक पहलू
भारत में याचिकाएँ और जनभावनाएँ
तमिलनाडु में विभिन्न राजनीतिक दलों और मछुआरों के संघों ने समय-समय पर केंद्र सरकार से कच्चाथीवु द्वीप को वापस लेने की माँग की है। सुप्रीम कोर्ट में भी इस विषय पर कई याचिकाएँ दायर की गईं, जिनमें यह कहा गया कि संसद की अनुमति के बिना भारत सरकार किसी भी भारतीय क्षेत्र को हस्तांतरित नहीं कर सकती।
तमिलनाडु विधानसभा का प्रस्ताव
2024 में तमिलनाडु विधानसभा ने एकमत से प्रस्ताव पारित किया जिसमें केंद्र सरकार से कच्चाथीवु द्वीप को वापस लेने का आग्रह किया गया। यह प्रस्ताव मछुआरों की सुरक्षा, धार्मिक भावनाओं, और ऐतिहासिक अधिकारों के आधार पर रखा गया।
श्रीलंका की स्थिति
श्रीलंका सरकार कच्चाथीवु द्वीप पर अपने अधिकार को स्पष्ट रूप से स्थापित मानती है और 1974 की संधि को वैध आधार मानती है। वहाँ की नौसेना भारत की समुद्री सीमा में अवैध घुसपैठ को लेकर कठोर कार्रवाई करती है, जिससे भारतीय मछुआरे अक्सर संकट में पड़ते हैं।
श्रीलंका का यह भी तर्क है कि यदि भारत को कच्चाथीवु द्वीप वापस दिया गया, तो इससे द्विपक्षीय संधियों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा और समुद्री सीमा विवाद और अधिक जटिल हो सकता है।
मछुआरों की समस्याएँ और मानवीय दृष्टिकोण
कच्चाथीवु द्वीप के आसपास के जल क्षेत्र भारत के दक्षिणी तटीय मछुआरों के लिए आजीविका का मुख्य स्रोत रहे हैं। लेकिन श्रीलंकाई नौसेना की कड़ी निगरानी और बार-बार की गिरफ्तारियों ने उन्हें भय और आर्थिक संकट में डाल दिया है।
अनेक बार ऐसे मामले सामने आए हैं, जहाँ भारतीय मछुआरे महीनों तक श्रीलंका की जेलों में बंद रहे। यह न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि एक गंभीर मानवीय समस्या भी है।
समाधान की संभावनाएँ
1. द्विपक्षीय संवाद
भारत और श्रीलंका को एक साझा मंच पर बैठकर इस समस्या का समाधान निकालना चाहिए, जिसमें मछुआरों के पारंपरिक अधिकारों, धार्मिक आयोजनों और पारिस्थितिक संतुलन का ध्यान रखा जाए।
2. संयुक्त मछली पकड़ने के क्षेत्र
दोनों देशों के मछुआरों के लिए एक साझा मछली पकड़ने का क्षेत्र निर्धारित किया जा सकता है, जहाँ निर्धारित नियमों और समयसीमा के अंतर्गत मछली पकड़ी जा सके।
3. मछुआरों के लिए प्रशिक्षण और वैकल्पिक आजीविका
सरकारों को मछुआरों को वैकल्पिक आजीविका, गहरे समुद्र में मछली पकड़ने का प्रशिक्षण, और आर्थिक सहायता उपलब्ध करानी चाहिए, ताकि वे सीमित समुद्री क्षेत्र पर निर्भर न रहें।
कच्चाथीवु द्वीप का मामला सिर्फ एक द्वीप के स्वामित्व का नहीं है, बल्कि यह इतिहास, भू-राजनीति, समुद्री कानून, मानवाधिकार, धार्मिक भावनाओं और आजीविका से जुड़ा एक जटिल मुद्दा है। इसका समाधान किसी एकपक्षीय निर्णय से नहीं, बल्कि भारत और श्रीलंका के बीच आपसी संवाद, सहयोग और मानवीय दृष्टिकोण से ही संभव है।
तमिलनाडु की जनता, विशेषकर मछुआरा समुदाय, इस मुद्दे को लेकर जागरूक और मुखर हैं। ऐसे में भारत सरकार को इस विषय पर सक्रिय और रणनीतिक भूमिका निभाने की आवश्यकता है, ताकि कच्चाथीवु द्वीप से जुड़ी समस्याओं का स्थायी समाधान निकल सके।
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