भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना, प्रारंभिक दौर और ऐतिहासिक अधिवेशन

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को मुंबई (तत्कालीन बंबई) में ए. ओ. ह्यूम, एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश अधिकारी और स्कॉटलैंड के निवासी, द्वारा की गई थी। प्रारंभ में, इसका नाम भारतीय राष्ट्रीय संघ था, जिसे 1884 में दादा भाई नौरोजी के सुझाव पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के रूप में परिवर्तित किया गया। इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महत्वपूर्ण संगठन के रूप में जाना जाता है, जिसने भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और ब्रिटिश शासन से मुक्ति दिलाई। कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य एक ऐसा मंच प्रदान करना था, जहां भारत के विभिन्न हिस्सों से लोग एकत्र होकर सामूहिक रूप से अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए आवाज उठा सकें।

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का विचार ब्रिटिश अधिकारी एलन ओक्टोवियो ह्यूम (स्कॉटलैंड) के मन में आया। उन्होंने महसूस किया कि भारत में अंग्रेजी शासन की आलोचना करने और देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए एक मंच की आवश्यकता है। ह्यूम ने इसके लिए पहल की और 1885 में कांग्रेस का गठन किया। कांग्रेस का पहला अधिवेशन मुंबई में हुआ, जिसमें कुल 72 प्रतिनिधि शामिल हुए। इस अधिवेशन के अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी थे।

इस समय के वायसराय लॉर्ड डफरिन थे। यह अधिवेशन मूल रूप से पुणे में आयोजित होने वाला था, लेकिन वहां अकाल के कारण इसे मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में आयोजित किया गया। यह महत्वपूर्ण था क्योंकि इसने भारत में एक संगठित राजनीतिक आंदोलन की नींव रखी। इस अधिवेशन में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी शामिल नहीं हो सके थे, क्योंकि वे कलकत्ता में इंडियन एसोसिएशन के दूसरे नेशनल कांफ्रेंस की अध्यक्षता कर रहे थे।

कांग्रेस का प्रारंभिक संगठन और विकास

कांग्रेस के पहले अधिवेशन में कुल 9 प्रस्ताव रखे गए थे, जिनमें से कई सरकार के सामने प्रस्तुत किए गए। इसके बाद, 1886 में, कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन कलकत्ता में आयोजित किया गया, जिसमें दादा भाई नैरोजी अध्यक्ष बने। यह अधिवेशन महत्वपूर्ण था क्योंकि इसमें नेशनल कांफ्रेंस का कांग्रेस में विलय कर दिया गया और कांग्रेस स्टैडिंग कमेटी का गठन किया गया, जिसमें कुल 434 प्रतिनिधि शामिल हुए।

कांग्रेस का तीसरा अधिवेशन 1887 में मद्रास में हुआ, जिसमें बदरूद्दीन तैययब जी (पहले मुस्लिम अध्यक्ष) ने अध्यक्षता की। इस अधिवेशन में “कांग्रेसी बनों” का नारा दिया गया और विषय निर्धारण समिति की नींव रखी गई। इसके अलावा, रानाडे द्वारा सोशल कांफ्रेंस का आयोजन भी किया गया। इस अधिवेशन में आम्र्स एक्ट के खिलाफ प्रस्ताव रखा गया और यह पहला अधिवेशन था जिसमें तमिल भाषा में भाषण दिया गया।

कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन

कांग्रेस का चौथा अधिवेशन 1888 में इलाहाबाद में आयोजित हुआ, जिसमें जार्ज यूले (पहले यूरोपीय अध्यक्ष) बने। इस अधिवेशन में लाला लाजपत राय ने पहली बार भाग लिया और हिंदी में भाषण दिया। इस समय के गवर्नर काल्विन ने इस अधिवेशन का विरोध किया, लेकिन अंततः राजा दरभंगा ने कांग्रेस को इलाहाबाद में लोधर काउंसिल खरीदकर दिया।

1889 में कांग्रेस का पांचवां अधिवेशन बंबई में हुआ, जिसमें विलियम बेडरबर्न ने अध्यक्षता की। इस अधिवेशन में 21 वर्षीय मताधिकार पारित किया गया और कांग्रेस ने लंदन में अपनी एक संस्था ब्रिटिश इंडिया कमेटी का गठन किया। इस समिति का मुख्यपत्र इंडिया था, जिसके संपादक विलियम डिग्बी थे। इसके बाद, 1890 में छठा अधिवेशन कलकत्ता में हुआ, जिसमें फिरोजशाह मेहता अध्यक्ष बने और पहली महिला स्नातक कादम्बिनी गांगुली ने इसमें भाग लिया।

1891 में नागपुर में सातवां अधिवेशन हुआ, जिसमें आनन्द चार्लू अध्यक्ष बने और कांग्रेस का दूसरा नाम “राष्ट्रीयता” रखा गया। 1892 में आठवां अधिवेशन इलाहाबाद में हुआ, जिसमें व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने अध्यक्षता की। इस अधिवेशन में सिविल सेवा परीक्षा भारत में करवाने की मांग की गई।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) का प्रथम अधिवेशन – बम्बई (1885)

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) का प्रथम अधिवेशन 28-31 दिसंबर 1885 के बीच बंबई (मुंबई) के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में हुआ। इस अधिवेशन के अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी थे, और इसमें कुल 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। प्रारंभ में, यह अधिवेशन पुणे में आयोजित होने वाला था, लेकिन वहां के अकाल के कारण इसे बंबई में स्थानांतरित किया गया। लार्ड डफरिन उस समय भारत के वायसराय थे। इस अधिवेशन में कुल 9 प्रस्ताव सरकार के समक्ष प्रस्तुत किए गए थे।

प्रथम अधिवेशन में महत्वपूर्ण घटनाएँ

इस अधिवेशन के दौरान, हिन्दू पत्रिका में 5 दिसंबर 1885 को आईएनसी (Indian National Congress) की स्थापना की घोषणा की गई थी। साथ ही, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी प्रथम अधिवेशन में शामिल नहीं हो सके क्योंकि वे उस समय कलकत्ता में इंडियन एसोसिएशन के दूसरे नेशनल कांफ्रेंस की अध्यक्षता कर रहे थे। इसके अतिरिक्त, दादा भाई नौरोजी के धन बर्हिगमन के सिद्धान्त को भी इस अधिवेशन में स्वीकार किया गया।

  • अध्यक्ष: व्योमेश चन्द्र बनर्जी
  • वायसराय: लार्ड डफरिन
  • महत्वपूर्ण घटनाएँ:
    • दादा भाई नौरोजी के सुझाव पर भारतीय राष्ट्रीय संघ का नाम बदलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस रखा गया।
    • 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
    • यह अधिवेशन मूलतः पूणें में आयोजित होने वाला था, लेकिन वहां अकाल के कारण बम्बई में गोकुलदास तेजपाल संस्कृत विद्यालय में हुआ।
    • सुरेन्द्र नाथ बनर्जी प्रथम अधिवेशन में शामिल नहीं हो सके क्योंकि वे कलकत्ता में इंडियन एसोसिएशन के दूसरे नेशनल कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता कर रहे थे।
    • कुल 9 प्रस्ताव सरकार के सामने रखे गए।
    • हिन्दु पत्रिका में 5 दिसंबर 1885 को इसके स्थापना की घोषणा की गई।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) का दूसरा और तीसरा अधिवेशन

INC (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस Indian National Congress) का दूसरा अधिवेशन 1886 में कलकत्ता में हुआ, जिसके अध्यक्ष दादा भाई नौरोजी थे। इस अधिवेशन में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने भाग लिया और नेशनल कांफ्रेंस का कांग्रेस में विलय किया गया। साथ ही, कांग्रेस स्टैडिंग कमेटी का गठन हुआ और कुल 434 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इसके बाद, तीसरा अधिवेशन 1887 में मद्रास (अब चेन्नई) में आयोजित किया गया, जिसमें बदरूद्दीन तैययब जी पहले मुस्लिम अध्यक्ष बने। इस अधिवेशन में “कांग्रेसी बनों” का नारा भी दिया गया और रानाडे द्वारा सोशल कांफ्रेस का आयोजन हुआ।

दूसरा अधिवेशन – कलकत्ता (1886)

  • अध्यक्ष: दादा भाई नौरोजी
  • महत्वपूर्ण घटनाएँ:
    • सुरेन्द्र नाथ बनर्जी से मिलकर नेशनल कांफ्रेंस का कांग्रेस में विलय किया गया और कांग्रेस स्टैंडिंग कमेटी का गठन हुआ।
    • 434 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
    • डफरिन ने कांग्रेस सदस्यों को गार्डन पार्टी दी।
    • दादा भाई नौरोजी तीन बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने (1886, 1893, 1906)।

तीसरा अधिवेशन – मद्रास (1887)

  • अध्यक्ष: बदरूद्दीन तैयब जी (प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष)
  • महत्वपूर्ण घटनाएँ:
    • “कांग्रेसी बनो” का नारा दिया गया।
    • विषय निर्धारण समिति की नींव रखी गई।
    • रानाडे द्वारा सोशल कॉन्फ्रेंस का आयोजन।
    • आम्र्स एक्ट के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया।
    • तमिल भाषा में पहला भाषण दिया गया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) का चौथा और पांचवां अधिवेशन

चौथा अधिवेशन 1888 में इलाहाबाद में आयोजित हुआ, जिसके अध्यक्ष जार्ज यूले थे। यह अधिवेशन इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि यह पहला अधिवेशन था जिसमें एक यूरोपिय अध्यक्ष बना। लाला लाजपत राय इस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए और हिन्दी में भाषण दिया। गवर्नर काल्विन ने इस अधिवेशन का विरोध किया था, जिसके कारण राजा दरभंगा ने इलाहाबाद में लोधर काउंसिल खरीद कर कांग्रेस को दिया। इस अधिवेशन का सैयद अहमद खां और बनारस के राजा सितारे हिन्द ने विरोध किया था। सैयद अहमद खां ने यूनाइटेड इंडिया पेट्रोयोटिक एसोसिएसन की स्थापना भी की थी।

चौथा अधिवेशन – इलाहाबाद (1888)

  • अध्यक्ष: जार्ज यूले (प्रथम यूरोपियन अध्यक्ष)
  • महत्वपूर्ण घटनाएँ:
    • लाला लाजपत राय ने पहली बार अधिवेशन में भाग लिया और हिंदी में भाषण दिया।
    • गवर्नर काल्विन ने इस अधिवेशन का विरोध किया। राजा दरभंगा ने इलाहाबाद में लोधर काउंसिल खरीद कर कांग्रेस को दी।
    • सैयद अहमद खां और राजा सितारे हिन्द ने इसका विरोध किया और यूनाइटेड इंडिया पेट्रियोटिक एसोसिएशन की स्थापना की।

पाँचवां अधिवेशन – बम्बई (1889)

  • अध्यक्ष: विलियम बेडरबर्न
  • महत्वपूर्ण घटनाएँ:
    • इसमें 21 वर्षीय मताधिकार पारित किया गया।
    • कांग्रेस ने लंदन में ब्रिटिश इंडिया कमेटी का गठन किया। इसके मुख्यपत्र “इंडिया” के सम्पादक विलियम डिग्बी थे।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) का छठा से आठवां अधिवेशन

आईएनसी का छठा अधिवेशन 1890 में कलकत्ता में हुआ, जिसके अध्यक्ष फिरोजशाह मेहता थे। इस अधिवेशन में पहली महिला स्नातक कादम्बिनी गांगुली ने भाग लिया। सातवां अधिवेशन 1891 में नागपुर में हुआ, जिसके अध्यक्ष आनन्द चार्लू थे। इस अधिवेशन में कांग्रेस का दूसरा नाम ‘राष्ट्रीयता’ दिया गया। आठवां अधिवेशन 1892 में इलाहाबाद में आयोजित हुआ, जिसके अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी थे।

छठा अधिवेशन – कलकत्ता (1890)

  • अध्यक्ष: फिरोजशाह मेहता
  • महत्वपूर्ण घटनाएँ:
    • प्रथम महिला स्नातक कादम्बिनी गांगुली ने भाग लिया।

सातवां अधिवेशन – नागपुर (1891)

  • अध्यक्ष: आनन्द चार्लू
  • महत्वपूर्ण घटनाएँ:
    • कांग्रेस का दूसरा नाम “राष्ट्रीयता” रखा गया।

आठवां अधिवेशन – इलाहाबाद (1892)

  • अध्यक्ष: व्योमेश चन्द्र बनर्जी
  • महत्वपूर्ण घटनाएँ:
    • यह अधिवेशन इंग्लैंड में प्रस्तावित था, लेकिन वहां हो नहीं सका।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) का नौवां और दसवां अधिवेशन

नौवां अधिवेशन 1893 में लाहौर में हुआ, जिसके अध्यक्ष दादा भाई नौरोजी थे। इस अधिवेशन में सिविल सेवा परीक्षा भारत में करवाने की मांग की गई। दसवां अधिवेशन 1894 में मद्रास में हुआ, जिसके अध्यक्ष अल्फ्रेंड वेब थे।

नौवां अधिवेशन – लाहौर (1893)

  • अध्यक्ष: दादा भाई नौरोजी
  • महत्वपूर्ण घटनाएँ:
    • सिविल सेवा परीक्षा भारत में कराने की मांग की गई।

दसवां अधिवेशन – मद्रास (1894)

  • अध्यक्ष: अल्फ्रेंड वेब

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) के अन्य महत्वपूर्ण अधिवेशन

ग्यारहवां अधिवेशन – पूना (1895)

  • अध्यक्ष: सुरेन्द्र नाथ बनर्जी
  • महत्वपूर्ण घटनाएँ:
    • तिलक ने एम जी रानाडे द्वारा प्रारंभ सोशल कॉन्फ्रेंस को कांग्रेस मंच से बंद करवा दिया।

बारहवां अधिवेशन – कलकत्ता (1896)

  • अध्यक्ष: रहीमतुल्ला सयानी
  • महत्वपूर्ण घटनाएँ:
    • भारत का राष्ट्रीय गीत “वन्दे मातरम्” पहली बार गाया गया।
    • दादा भाई नौरोजी के धन बर्हिगमन के सिद्धांत को स्वीकार किया गया।

सत्रहवां अधिवेशन – कलकत्ता (1901)

अध्यक्ष – दिनशा ऐडुल्वी वाचा

  • महात्मा गांधी पहली बार इस अधिवेशन का हिस्सा बने।

20 वां अधिवेशन – बम्बई (1904)

अध्यक्ष – सर हेनरी काटन

  • मुहम्मद अली जिन्ना ने पहली बार भाग लिया।

21 वां अधिवेशन – वाराणसी (1905)

अध्यक्ष – गोपाल कृष्ण गोखले

  • स्वदेशी आन्दोलन को समर्थन देने की बात कही – यह बंगाल विभाजन के विरोध में चलाया गया।
  • विपक्ष का नेता की उपाधि – गोखले को

22 वां अधिवेशन – कलकत्ता (1906)

अध्यक्ष – दादा भाई नौरोजी

  • जिन्ना इस अधिवेशन में दादा भाई नौरोजी के सचिव के रूप में शामिल हुये।
  • कांग्रेस के मंच से पहली बार स्वराज का प्रयोग – नौरोजी द्वारा।

23 वां अधिवेशन – सूरत (1907)

अध्यक्ष – रास बिहारी घोष

  • कांग्रेस का नरमदल और गरमदल में विभाजन

26 वां अधिवेशन – कलकत्ता (1911)

अध्यक्ष – विशन नारायण धर

  • रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित राष्ट्रगान – (जनगण मन)
  • पहली बार गाया गया – 27 दिसम्बर 1911
  • सर्वप्रथम – तत्वबोधिनी पत्रिका में 1912 ई. में भारत भाग्य विधाता शीर्षक से प्रकाशित

27 वां अधिवेशन – बाकीपुर (1912)

अध्यक्ष – आर. एन. मुधोलकर

  • ह्यूम को कांग्रेस का पिता कहा गया।

31 वां अधिवेशन – लखनऊ (1916)

अध्यक्ष – अम्बिका चरण मजूमदार

  • कांग्रेस के नरमदल व गरमदल में समझौता, इसमें महत्वपूर्ण भूमिका तिलक और ऐनी बेसेन्ट की रही।
  • तिलक और जिन्ना के सहयोग से कांग्रेस और लीग के बीच समझौता हुआ – लखनऊ समझौता/कांग्रेस – लीग पैक्ट
  • मुस्लिम लीग की पृथक निर्वाचन के मांग को स्वीकार कर लिया गया।
  • मदन मोहन मालवीय ने इसका विरोध किया।
  • स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहुंगा – बाल गंगाधर तिलक ने इस अधिवेशन में कहा।
  • कांग्रेस ने मार्ले – मिंटो सुधार को अपनी स्वीकृति दी।

32 वां अधिवेशन – कलकत्ता(1917)

अध्यक्ष – ऐनी बेसेन्ट (प्रथम विदेशी महिला अध्यक्ष, प्रथम महिला अध्यक्ष)

  • सर्वप्रथम तिरंगे झण्डे को कांग्रेस ने अपनाया।

33 वां अधिवेशन – दिल्ली (1918)

अध्यक्ष – मदन मोहन मालवीय

  • हिन्दी भाषा के प्रयोग पर जोर
  • कांग्रेस का दुसरा विभाजन
  • इस अधिवेशन का अध्यक्ष बाल गंगाधर तिलक को चुना गया था लेकिन वेलेन्टाइल सिराल से सम्बधित मुकदमें के सिलसिले में वे ब्रिटेन चले गये थे।
  • वेलेन्टाइल सिराल ने तिलक को भारतीय अशांति का जनक कहा था।
  • मैक्स मुलर ने तिलक को सजा सुनाये जाने के पश्चात् 17 फरवरी 1898 को प्रिवी कौंसिल के सदस्य सन जान लुब्बाक से एक पत्र में दया की वकालत करते हुए कहा – “ संस्कृत के एक विद्वान के रूप में तिलक में मेरी दिलचस्पी है।”
  • केसरी में प्रकाशित लेखों के आधार पर तिलक पर राजद्रोह का मुकदमा चला कर 1908 में 6 वर्ष के कारावास की सजा हुई।
  • माण्डले जेल(वर्मा) में ही इन्होंने “गीता रहस्य” नामक पुस्तक लिखी थी।
  • महाराष्ट्र में गणपति पर्व का श्रीगणेश – बाल गंगाधर तिलक ने किया।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला विशेष अधिवेशन – 1918 में (बम्बई)

अध्यक्ष – सैयद हसन इमाम

  • मौलिक अधिकारों की मांग की गयी तथा रौलेट एक्ट पर विचार विमर्श के लिए अधिवेशन

34 वां अधिवेशन – अमृतसर (1919)

अध्यक्ष – मोती लाल नेहरू

  • जलियावाला बाग हत्याकांड की निन्दा की गयी।
  • खिलाफत आन्दोलन को सर्मथन देने का निर्णय।

35 वां अधिवेशन – नागपुर (1920 में)

अध्यक्ष – वीर राघवाचारी

  • इस अधिवेशन में चितरंजन दास ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा।
  • पहली बार कांग्रेस ने भाषायी आधार पर प्रांतों में विभाजन की बात कही।
  • कांग्रेस ने रियासतों के लिए अपनी नीति भी प्रथम बार घोषित की।

कलकत्ता का विशेष अधिवेशन – (1920)

अध्यक्ष – लाला लाजपत राय

  • इस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा, जिसका चितरंजन दास, मोतीलाल नेहरू, एनी बेसेन्ट, और मुहम्मद अली जिन्ना ने विरोध किया।
  • लेकिन यह प्रस्ताव बहुमत से पारित हो गया।

36 वां अधिवेशन – अहमदाबाद (1921)

अध्यक्ष – चितरंजन दास (जेल में होने के कारण हकीम अजमल खां ने अध्यक्षता की)

  • चितरंजन दास का भाषण सरोजनी नायडू ने पढ़ा।

37 वां अधिवेशन – गया (1922)

अध्यक्ष – चितरंजन दास

  • इस अधिवेशन में “स्वराज पार्टी” की स्थापना की बात हुई, और 1923 में होने वाले चुनाव में भागीदारी की बात की गई, जिसे कांग्रेस ने खारिज कर दिया।
  • चितरंजन दास ने इस्तीफा दे दिया।

38 वां अधिवेशन – काकीनाड़ा, बंगाल (1923)

अध्यक्ष – मौलाना मुहम्मद अली (कामरेड समाचार पत्र का संपादन किया)

  • विशेष अधिवेशन दिल्ली में हुआ जिसमें अबुल कलाम आजाद सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने।

39 वां अधिवेशन – बेलगांव (1924)

अध्यक्ष – महात्मा गांधी (एकमात्र अधिवेशन के अध्यक्ष)

  • इस अधिवेशन में कांग्रेस और मुस्लिम लीग अलग हो गए।
  • गांधी-दास पैक्ट की स्वीकृति हुई।

40 वां अधिवेशन – कानपुर (1925)

अध्यक्ष – सरोजनी नायडू (प्रथम भारतीय महिला अध्यक्ष)

  • इस अधिवेशन में हिंदी का राष्ट्रभाषा के रूप में प्रयोग प्रस्तावित हुआ।
  • पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा गया, लेकिन पारित नहीं हो सका।

41 वां अधिवेशन – गोहाटी (1926)

अध्यक्ष – एम. श्रीनिवास आयंगर

  • कांग्रेस नेताओं को खादी पहनना अनिवार्य कर दिया गया।

42 वां अधिवेशन – मद्रास (1927)

अध्यक्ष – मुख्तार अहमद अंसारी

  • इस अधिवेशन में साइमन कमीशन का विरोध हुआ।

43 वां अधिवेशन – कलकत्ता (1928)

अध्यक्ष – मोतीलाल नेहरू

  • नेहरू रिपोर्ट को स्वीकारने की बात की गई।
  • स्वीकार न होने पर अहिंसक असहयोग आंदोलन शुरू करने का प्रस्ताव रखा गया।
  • कांग्रेस का एक विदेशी भाग स्थापित किया गया।

44 वां अधिवेशन – लाहौर (1929)

अध्यक्ष – जवाहरलाल नेहरू

  • इस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित हुआ।
  • 31 दिसंबर 1929 को पूर्ण स्वराज का दिवस मनाया गया।
  • 1930 में कांग्रेस का कोई अधिवेशन नहीं हुआ।
  • 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वाधीनता दिवस मनाया गया।

45 वां अधिवेशन – कराची (1931)

अध्यक्ष – सरदार वल्लभ भाई पटेल

  • इस अधिवेशन में मूल अधिकारों की मांग को लेकर प्रस्ताव रखा गया, जिसे जवाहरलाल नेहरू ने बनाया।
  • आर्थिक नीति से संबंधित एक प्रस्ताव भी रखा गया।
  • गांधी जी को प्रतिनिधि के रूप में गोलमेज सम्मेलन के लिए नामित किया गया।
  • गांधी-इरविन समझौता की स्वीकृति हुई।

48 वां अधिवेशन – बम्बई (1934)

अध्यक्ष – राजेन्द्र प्रसाद

  • इस अधिवेशन में कांग्रेस समाजवादी पार्टी की स्थापना की गई।
  • अखिल भारतीय खादी ग्रामोद्योग की स्थापना की गई, जिसके अध्यक्ष महात्मा गांधी बने और मंत्री श्रीकृष्ण दास बने।
  • अखिल भारतीय चरखा संघ की स्थापना हुई, जिसमें अध्यक्ष महात्मा गांधी और मंत्री जवाहरलाल नेहरू बने।
  • यह अधिवेशन कांग्रेस के स्वर्ण जयंती के रूप में मनाया गया।
  • कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ (1934 में, जयप्रकाश नारायण और आचार्य नरेंद्र देव)।

49 वां अधिवेशन – लखनऊ (1936)

अध्यक्ष – जवाहरलाल नेहरू

  • इस अधिवेशन में कांग्रेस पार्लियामेंट बोर्ड की स्थापना की गई।
  • कांग्रेस का लक्ष्य समाजवाद निर्धारित किया गया।

50 वां अधिवेशन – फैजपुर, बंगाल (1937)

अध्यक्ष – जवाहरलाल नेहरू

  • पहली बार कांग्रेस का अधिवेशन एक गांव में हुआ।
  • एक 13 सूत्रीय अस्थाई कृषि कार्यक्रम घोषित हुआ।

51 वां अधिवेशन – हरिपुरा, गुजरात (1938)

अध्यक्ष – सुभाष चंद्र बोस

  • इस अधिवेशन में राष्ट्रीय नियोजन समिति का गठन हुआ, जिसके अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू बने।
  • बोस ने रोमन लिपि लागु करने की वकालत की।
  • भारत की स्वतंत्रता में रजवाड़ों को भी शामिल किया गया।

52 वां अधिवेशन – त्रिपुरी, मध्य प्रदेश, जबलपुर (1939)

अध्यक्ष – सुभाष चंद्र बोस

  • इस अधिवेशन में गांधी जी के प्रतिनिधि पट्टाभि सीतारमैया को हटाया गया।
  • गांधी जी से विवाद होने के बाद बोस ने इस्तीफा देकर फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की।
  • बाद में अध्यक्षता राजेन्द्र प्रसाद ने की।

54 वां अधिवेशन – मेरठ (1946)

अध्यक्ष – जे. बी. कृपलानी

  • इस अधिवेशन में जवाहरलाल नेहरू ने नवंबर में इस्तीफा दे दिया, जिसके बाद कृपलानी अध्यक्ष बने।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति तक कृपलानी ही कांग्रेस अध्यक्ष रहे।
  • नवंबर 1947 में कृपलानी ने इस्तीफा दिया, जिसके बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद अध्यक्ष बने।

विशेष जानकारी

  • अबुल कलाम आजाद सबसे लम्बे समय तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे (1940 से 1945 तक)।
  • वायसराय कर्जन ने कहा था, “कांग्रेस मौत की अंतिम घड़ियां गिन रही है।”
  • लाला लाजपत राय ने कहा था, “कांग्रेस लार्ड डफरिन के दिमाग की उपज है।”
  • बंकिम चंद्र चटर्जी ने कहा था, “कांग्रेस के लोग पदों के भूखें हैं।”
  • तिलक ने कहा था, “वर्ष में एक बार टर्राने से कुछ नहीं मिलेगा।”
  • कांग्रेस की स्थापना के संबंध में “सुरक्षा वाल्व का सिद्धांत” प्रस्तुत किया गया था।

कांग्रेस का विकास और राष्ट्रवाद का उदय

1893 में लाहौर में नौवां अधिवेशन हुआ, जिसमें दादा भाई नौरोजी ने अध्यक्षता की। इस अधिवेशन में सिविल सेवा परीक्षा भारत में करवाने की मांग की गई। 1894 में दसवां अधिवेशन मद्रास में हुआ, जिसमें अल्फ्रेंड वेब अध्यक्ष बने। इसके बाद, 1895 में पूना में ग्यारहवां अधिवेशन हुआ, जिसमें सुरेन्द्र नाथ बनर्जी अध्यक्ष बने।

1896 में बारहवां अधिवेशन कलकत्ता में हुआ, जिसमें रहीमतुल्ला सयानी अध्यक्ष बने। इस अधिवेशन में भारत का राष्ट्रीय गीत वन्देमातरम पहली बार गाया गया। 1901 में सत्रहवां अधिवेशन कलकत्ता में हुआ, जिसमें दिनशा ऐडुल्वी वाचा अध्यक्ष बने और महात्मा गांधी पहली बार इस अधिवेशन का हिस्सा बने।

1904 में बीसवां अधिवेशन बंबई में हुआ, जिसमें सर हेनरी काटन अध्यक्ष बने और मुहम्मद अली जिन्ना ने पहली बार भाग लिया। 1905 में वाराणसी में इक्कीसवां अधिवेशन हुआ, जिसमें गोपाल कृष्ण गोखले ने अध्यक्षता की। इस अधिवेशन में स्वदेशी आंदोलन को समर्थन देने की बात कही गई, जो बंगाल विभाजन के विरोध में चलाया गया था।

पूर्ण स्वराज की मांग और कांग्रेस का विभाजन

1906 में बाइसवां अधिवेशन कलकत्ता में हुआ, जिसमें दादा भाई नौरोजी ने अध्यक्षता की और स्वराज का पहला उल्लेख किया गया। 1907 में सूरत में तेईसवां अधिवेशन हुआ, जिसमें रास बिहारी घोष ने अध्यक्षता की। इस अधिवेशन में कांग्रेस का नरम दल और गरम दल में विभाजन हुआ।

1911 में छब्बीसवां अधिवेशन कलकत्ता में हुआ, जिसमें विशन नारायण धर अध्यक्ष बने और इस अधिवेशन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित राष्ट्रगान जनगण मन पहली बार गाया गया। 1912 में सत्ताईसवां अधिवेशन बाकीपुर में हुआ, जिसमें आर. एन. मुधोलकर ने अध्यक्षता की और ह्यूम को कांग्रेस का पिता कहा गया।

लखनऊ समझौता और असहयोग आंदोलन

1916 में इकत्तीसवां अधिवेशन लखनऊ में हुआ, जिसमें अम्बिका चरण मजूमदार ने अध्यक्षता की। इस अधिवेशन में कांग्रेस के नरम दल और गरम दल में समझौता हुआ, जिसमें तिलक और ऐनी बेसेन्ट की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसके अलावा, कांग्रेस और लीग के बीच लखनऊ समझौता भी हुआ, जिसमें मुस्लिम लीग की पृथक निर्वाचन की मांग को स्वीकार किया गया। इस समय बाल गंगाधर तिलक ने “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा” का नारा दिया।

1917 में बत्तीसवां अधिवेशन कलकत्ता में हुआ, जिसमें ऐनी बेसेन्ट (प्रथम विदेशी महिला अध्यक्ष, प्रथम महिला अध्यक्ष) ने अध्यक्षता की। इस अधिवेशन में सर्वप्रथम तिरंगे झण्डे को कांग्रेस ने अपनाया। इसके बाद, 1918 में तैंतीसवां अधिवेशन दिल्ली में हुआ, जिसमें मदन मोहन मालवीय ने अध्यक्षता की और हिंदी भाषा के प्रयोग पर जोर दिया गया।

1919 में चौतीसवां अधिवेशन अमृतसर में हुआ, जिसमें मोतीलाल नेहरू ने अध्यक्षता की और जलियावाला बाग हत्याकांड की निंदा की गई। इसके अलावा, खिलाफत आंदोलन को समर्थन देने का निर्णय लिया गया। 1920 में पैंतीसवां अधिवेशन नागपुर में हुआ, जिसमें वीर राघवाचारी ने अध्यक्षता की और चित्तरंजन दास ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा।

महात्मा गांधी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

1920 में कलकत्ता में विशेष अधिवेशन हुआ, जिसमें लाला लाजपत राय ने अध्यक्षता की। इस अधिवेशन में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव का चित्तरंजन दास, मोतीलाल नेहरू, ऐनी बेसेन्ट, और मुहम्मद अली जिन्ना ने विरोध किया, लेकिन अंततः यह प्रस्ताव पारित हुआ।

कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन और उनके घटनाक्रम का संक्षिप्त विवरण

कांग्रेस के महत्वपूर्ण अधिवेशन, वर्ष, स्थान, अध्यक्ष और उनके घटनाक्रम का संक्षिप्त विवरण नीचे सारणी में दिया गया है –

अधिवेशन संख्यावर्षस्थानअध्यक्षमहत्वपूर्ण घटनाएँ
पहला अधिवेशन1885बम्बईव्योमेश चन्द्र बनर्जीभारतीय राष्ट्रीय संघ से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नामकरण, 72 प्रतिनिधि, कुल 9 प्रस्ताव, हिन्दु पत्रिका में घोषणा
दूसरा अधिवेशन1886कलकत्तादादा भाई नौरोजीनेशनल कांफ्रेंस का कांग्रेस में विलय, कांग्रेस स्टैडिंग कमेटी का गठन, कुल 434 प्रतिनिधि
तीसरा अधिवेशन1887मद्रासबदरूद्दीन तैययब जीप्रथम मुस्लिम अध्यक्ष, आम्र्स एक्ट के खिलाफ प्रस्ताव, “कांग्रेसी बनों” का नारा, तमिल भाषा में भाषण
चौथा अधिवेशन1888इलाहाबादजार्ज यूलेप्रथम यूरोपिय अध्यक्ष, लाला लाजपत राय का हिन्दी में भाषण, गवर्नर काल्विन का विरोध
पांचवां अधिवेशन1889बम्बईविलियम बेडरबर्न21 वर्षीय मताधिकार पारित, ब्रिटिश इंडिया कमेटी का गठन, इंडिया पत्रिका का सम्पादन
छठा अधिवेशन1890कलकत्ताफिरोजशाह मेहताप्रथम महिला स्नातक कादम्बिनी गांगुली ने भाग लिया
सातवां अधिवेशन1891नागपुरआनन्द चार्लूकांग्रेस का दूसरा नाम – राष्ट्रीयता
आठवां अधिवेशन1892इलाहाबादव्योमेश चन्द्र बनर्जीइंग्लैण्ड में प्रस्तावित अधिवेशन
नौवां अधिवेशन1893लाहौरदादा भाई नौरोजीसिविल सेवा परीक्षा भारत में करवाने की मांग
दसवां अधिवेशन1894मद्रासअल्फ्रेंड वेब
11वां अधिवेशन1895पूनासुरेन्द्र नाथ बनर्जीसोसल कांफ्रेस को कांग्रेस मंच से बंद करवा दिया गया
12वां अधिवेशन1896कलकत्तारहीमतुल्ला सयानीवन्देमातरम पहली बार गाया गया, धन बर्हिगमन सिद्धान्त स्वीकार
17वां अधिवेशन1901कलकत्तादिनशा ऐडुल्वी वाचामहात्मा गांधी पहली बार अधिवेशन का हिस्सा बने
20वां अधिवेशन1904बम्बईसर हेनरी काटनमुहम्मद अली जिन्ना ने पहली बार भाग लिया
21वां अधिवेशन1905वाराणसीगोपाल कृष्ण गोखलेस्वदेशी आन्दोलन को समर्थन, गोखले को विपक्ष का नेता की उपाधि
22वां अधिवेशन1906कलकत्तादादा भाई नौरोजीकांग्रेस के मंच से पहली बार स्वराज का प्रयोग
23वां अधिवेशन1907सूरतरास बिहारी घोषकांग्रेस का नरमदल और गरमदल में विभाजन
26वां अधिवेशन1911कलकत्ताविशन नारायण धररविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित राष्ट्रगान जनगण मन पहली बार गाया गया
27वां अधिवेशन1912बाकीपुरआर. एन. मुधोलकरह्यूम को कांग्रेस का पिता कहा गया
31वां अधिवेशन1916लखनऊअम्बिका चरण मजूमदारनरमदल व गरमदल में समझौता, लखनऊ समझौता, स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है – तिलक
32वां अधिवेशन1917कलकत्ताऐनी बेसेन्टप्रथम महिला अध्यक्ष, तिरंगे झण्डे को कांग्रेस ने अपनाया
33वां अधिवेशन1918दिल्लीमदन मोहन मालवीयहिन्दी भाषा के प्रयोग पर जोर, कांग्रेस का दूसरा विभाजन
34वां अधिवेशन1919अमृतसरमोती लाल नेहरूजलियावाला बाग हत्याकांड की निन्दा, खिलाफत आन्दोलन को समर्थन
35वां अधिवेशन1920नागपुरवीर राघवाचारीचितरजंन दास ने असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव रखा, भाषायी आधार पर प्रान्तों में विभाजन
36वां अधिवेशन1921अहमदाबादहकीम अजमल खां (वास्तविक अध्यक्ष – चितरंजन दास)
37वां अधिवेशन1922गयाचितरंजन दासस्वराज पार्टी की स्थापना, 1923 में चुनाव में भागीदारी
38वां अधिवेशन1923काकीनाड़ा, बंगालमौलाना मुहम्मद अलीविशेष अधिवेशन दिल्ली में, अबुल कलाम आजाद सबसे कम उम्र के अध्यक्ष
39वां अधिवेशन1924बेलगांवमहात्मा गांधीगांधी-दास पैक्ट की स्वीकृति
40वां अधिवेशन1925कानपुरसरोजनी नायडूहिन्दी का राष्ट्रभाषा के रूप में प्रयोग
41वां अधिवेशन1926गोहाटीएम. श्रीनिवास आयंगरकांग्रेस नेताओं को खादी पहनना अनिवार्य
42वां अधिवेशन1927मद्रासमुख्तार अहमद अंसारीसाइमन कमीशन का विरोध
43वां अधिवेशन1928कलकत्तामोतीलाल नेहरूनेहरू रिर्पोट, अहिंसक असहयोग आन्दोलन का प्रस्ताव
44वां अधिवेशन1929लाहौरजवाहर लाल नेहरूपूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित, 1930 में कांग्रेस का कोई अधिवेशन नहीं हुआ
45वां अधिवेशन1931कराचीसरदार वल्लभ भाई पटेलमूल अधिकारों की मांग, गांधी-इरविन समझौता
48वां अधिवेशन1934बम्बईराजेन्द्र प्रसादकांग्रेस समाजवादी पार्टी की स्थापना
49वां अधिवेशन1936लखनऊजवाहरलाल नेहरूकांग्रेस पार्लियामेंट बोर्ड की स्थापना
50वां अधिवेशन1937फैजपुर, बंगालजवाहरलाल नेहरूपहली बार कांग्रेस का अधिवेशन एक गांव में हुआ
51वां अधिवेशन1938हरिपुरा, गुजरातसुभाष चन्द्र बोसराष्ट्रीय नियोजन समिति का गठन, भारत की स्वतंत्रता में रजवाड़ों को शामिल करना
52वां अधिवेशन1939त्रिपुरी, मध्यप्रदेशसुभाष चन्द्र बोसगांधी जी से विवाद, फॉरवर्ड ब्लाक की स्थापना
54वां अधिवेशन1946मेरठजे. बी. कृपलानीजवाहरलाल नेहरू ने इस्तीफा दिया, स्वतंत्रता प्राप्ति तक कृपलानी अध्यक्ष बने रहे

कांग्रेस ने अपने प्रारंभिक दौर से ही भारतीय समाज में जागरूकता और स्वतंत्रता के प्रति जनचेतना फैलाने का कार्य किया। इसके विभिन्न अधिवेशनों में लिए गए निर्णय और प्रस्ताव भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मील का पत्थर साबित हुए। कांग्रेस का इतिहास और इसके महत्वपूर्ण अधिवेशन भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

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