कांस्य युग | Bronze Age | 3300 ई.पू.-500 ई.पू.

कांस्य युग (Bronze Age) एक प्राकृतिक इतिहास का काल है जो प्रथम धातुओं का उपयोग करके उत्पन्न हुआ। इस युग में लोगों द्वारा आपूर्ति की गई प्रमुख धातु कांस्य (bronze) है, जो कुप्रयोगी और धातुरसायनिक गुणों के साथ संयोजन किया जाता है। कांस्य युग का आरंभ सामरिक और प्रौद्योगिकी विकास के साथ जुड़ा हुआ है।

कांस्य युग विभिन्न क्षेत्रों में विभाजित होता है और इसकी अवधि और अवधारणाएं भिन्न-भिन्न संस्कृतियों और साम्राज्यों के अनुसार भिन्न हो सकती हैं। इसे मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है: प्रारंभिक कास्य युग, मध्य कांस्य युग और उच्च कांस्य युग।

कांस्य युग

कांस्य युग का आरंभ सामग्री के उत्पादन और उपयोग के प्रतिष्ठान पर आधारित है। कांस्य युग में, पहले से अधिक शस्त्र, औजार, उपकरण, मूर्तियाँ, आभूषण, और अन्य वस्त्रों का निर्माण किया जा सकता था। यह धातु सामग्री के उपयोग के कारण अन्य प्राकृतिक उपकरणों से अधिक शक्तिशाली और प्रभावी था।

कांस्य युग का काल समय विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न हो सकता है। यह विभाजन समय, संस्कृति, समाज, और प्रौद्योगिकी के प्रगति के आधार पर होता है। कांस्य युग विश्व भर में धार्मिक, सांस्कृतिक और तकनीकी विकास के संकेत के रूप में महत्वपूर्ण है। यह युग मानव सभ्यता के विकास के एक महत्वपूर्ण पड़ाव को प्रतिष्ठित करता है जब मानव ने पहली बार प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करना शुरू किया और उत्पादन, व्यापार, और समाज के संगठन में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ।

कांस्य युग का विभाजन

कांस्य युग को तीन भागों में बाटा गया है :

1. प्रारंभिक कांस्य युग (Early Bronze Age)(3,300 ईसा पूर्व – 1500 ईसा पूर्व)

प्रारंभिक कांस्य युग (Early Bronze Age) कांस्य युग का पहला भाग है और यह धातुओं के प्रयोग के विकास के साथ जुड़ा हुआ है। इस युग में कांस्य (bronze) धातु का व्यापार और उपयोग प्राथमिकता था। प्रारंभिक कांस्य युग भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में विभाजित हो सकता है और यह समयानुसार भी अलग-अलग हो सकता है।

प्रारंभिक कांस्य युग में कांस्य के उपयोग से नए औजार, शस्त्र, गहने और अन्य उपकरणों का निर्माण किया जाता था। इसके अलावा, उपयोग के साथ अन्य प्राकृतिक सामग्री जैसे लकड़ी, पत्थर, और हड्डी का भी प्रयोग होता था। यह युग नए और अधिक प्रगतिशील सामाजिक और आर्थिक संगठन के साथ जुड़ा हुआ था।

प्रारंभिक कांस्य युग का काल समय ब्रोंज एज़ के बाद आता है और मुख्य रूप से उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में स्थित सिन्धु घाटी सभ्यता और विष्णुकुंड सभ्यता के साथ जुड़ा हुआ है। यह युग लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व तक चला था।

  • 3300–3000 EBA I:
    • इस समयावधि में, कास्य युग की प्रारंभिक अवस्था होती है। कांस्य का प्रयोग उपयोगी औजारों, शस्त्रों और आर्थिक गतिविधियों में बढ़ता है।
  • 3000-2700 EBA II:
    • इस युग में कांस्य का उपयोग और व्यापार और अधिक प्रगतिशील होता है। संस्कृति, समाज और आर्थिक संगठन में परिवर्तन देखा जाता है।
  • 2700-2200 EBA III:
    • इस युग में कांस्य युग की उच्चतम अवस्था होती है। व्यापार और विदेशी राष्ट्रों के साथ संबंध विस्तारित होते हैं। सामाजिक और राजनीतिक संगठन के विकास का समय होता है।
  • 2200-2100 EBA IV:
    • यह युग कांस्य युग की अंतिम अवस्था है। कांस्य के उपयोग के साथ अन्य सामग्री जैसे पत्थर, लकड़ी और हड्डी का भी उपयोग होता है।
  • 2100-1500 EBA V :
    • उच्च कांस्य युग का आखिरी भाग होता है। इस युग में कास्य युग का अवशेष और अंत होता है। इस समयावधि में कांस्य का उपयोग औजार, शस्त्र, आर्थिक गतिविधियाँ, युद्धास्त्र, और वस्त्रों के निर्माण में अधिक महत्वपूर्ण होता है। साथ ही, सामाजिक संगठन, राजनीतिक प्रणाली, और आर्थिक प्रगति में विकास देखा जाता है। यह युग अन्त में विभिन्न सभ्यताओं और साम्राज्यों के समय में देखा जा सकता है, जैसे कि हरप्पा सभ्यता, आर्य सभ्यता, और महाजनपदों का समय। इसके पश्चात भारतीय इतिहास में विभिन्न युगों की शुरुआत होती है।

2. मध्य कांस्य युग (Middle Bronze Age, Intermediate Bronze Age) (1,500 ईसा पूर्व – 1,000 ईसा पूर्व)

मध्य कांस्य युग (Middle Bronze Age) कांस्य युग का मध्यावधि भाग है, जो प्रारंभिक और उच्च कांस्य युग के बीच स्थान रखता है। यह युग भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में विभाजित हो सकता है और समयानुसार भी अलग-अलग हो सकता है।

मध्य कांस्य युग में कांस्य धातु का व्यापार और उपयोग अधिक महत्वपूर्ण हुआ। धातु सामग्री के संगठन, प्रोसेसिंग, और उपयोग की तकनीकों में सुधार हुआ। इस युग में आधुनिक औजार, शस्त्र, गहने, मूर्तियाँ, और अन्य वस्त्रों का निर्माण किया जाता था। धातुओं के साथ लकड़ी, पत्थर, हड्डी, और अन्य सामग्री का उपयोग भी जारी रहता था।

मध्य कांस्य युग का काल समय प्रारंभिक कांस्य युग के बाद आता है और उच्च कांस्य युग से पहले आता है। यह युग लगभग 1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसा पूर्व तक चला था। मध्य कांस्य युग के दौरान, विभिन्न संस्कृतियों और समाजों के विकास के साथ, युद्ध और व्यापार के गतिविधियाँ भी बढ़ीं और समाज-आर्थिक संगठन में नई परिवर्तनों की उत्पत्ति हुई।

3. उच्च कांस्य युग (Late Bronze Age) (1000 ईसा पूर्व – 500 ईसा पूर्व)

उच्च कांस्य युग (Late Bronze Age) कास्य युग का अंतिम भाग होता है और मध्य कांस्य युग के बाद आता है। इस युग में कांस्य धातु का व्यापार और उपयोग अधिकतर बढ़ जाता है। यह युग भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों में विभाजित हो सकता है और समयानुसार भी अलग-अलग हो सकता है।

उच्च कास्य युग में कांस्य धातु का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से होता था। इस युग में वाणिज्यिक गतिविधियाँ और व्यापार अधिक विकसित हुए। कांस्य के उत्पादन के साथ-साथ वस्त्र, गहने, युद्धास्त्र, आभूषण, मूर्तियाँ आदि के निर्माण के लिए अधिक उपयोग किया जाता था। इसके साथ ही विभिन्न राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक परिवर्तन भी देखे जा सकते हैं।

उच्च कांस्य युग का काल समय मध्य कांस्य युग के बाद आता है और विष्णुकुंड सभ्यता, शूंग सभ्यता, वकाटक सभ्यता, गुप्त साम्राज्य, और अन्य सम्राटों की साम्राज्यों के समय में देखा जा सकता है। यह युग लगभग 1000 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व तक चला था। उच्च कांस्य युग अन्त में धातुओं के प्रयोग के बजाय लौह से निर्मित वस्त्र और उपकरणों का उपयोग करने की ओर एक परिवर्तन की ओर इशारा करता है।

कांस्य युग में विकसित सभ्यता

मिस्र की सभ्यता

कांस्य युग के दौरान, मिस्र एक महत्वपूर्ण सभ्यता थी जो आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक विकास में मददगार थी। मिस्र सभ्यता नील नदी के तटों पर स्थित थी और यह दक्षिणी एशिया में एक प्रमुख सभ्यता थी।

कांस्य युग के दौरान, मिस्री लोगों ने विभिन्न कृषि पदार्थों की खेती की जैसे अनाज (गेहूं, बाजरा, जौं), फल, सब्जियाँ, और मधु उत्पादन। वे नील नदी के जल स्रोत के उपयोग से इस खेती को संचालित करते थे।

मिस्री सभ्यता में नगर निर्माण का विकास हुआ जहां शहरों की आधारभूत संरचनाएं, मंदिर, राजमहल, और आवास बनाए गए। वे बांधों, कैनालों, और इरिगेशन सिस्टम का उपयोग करके जल संचार का विकास करते थे।

मिस्री सभ्यता में कला, साहित्य, संगीत, और नृत्य का विकास हुआ। मूर्तिकला, चित्रकला, और लेखन कला में उनकी प्रगति हुई। वे प्यारी रत्नों, सुंदर आभूषणों, और मूर्तियों के निर्माण में माहिर थे।

मिस्री सभ्यता में धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों का महत्त्व था। वे अपनी धार्मिक अनुष्ठानों, प्रतिष्ठानों, और यज्ञों को मान्यता देते थे और विभिन्न देवताओं और देवीयों की पूजा की जाती थी।

यहां तक कि मिस्री सभ्यता में ब्रह्मा, विष्णु, और शिव जैसे देवी-देवताओं के एक प्रारूप के रूप में जाने जाने वाले देवता भी मान्यता थे।

मिस्री सभ्यता ब्रह्मणों और क्षत्रियों की वर्गीय संरचना में विभाजन प्राप्त कर चुकी थी। राजा या फिर फिरौन संस्कृति के सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व माने जाते थे और उनके आदेशों का पालन किया जाता था।

इस प्रकार, मिस्री सभ्यता कांस्य युग के दौरान सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थी। इसकी सांस्कृतिक प्रगति और अद्यतन के कारण, इस सभ्यता ने कास्य युग के दौरान महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

ईरानी पठार की सभ्यता

कांस्य युग के समय, ईरानी पठार (Iranian Plateau) में भी महत्त्वपूर्ण सभ्यताएं विकसित हुईं। इस क्षेत्र में विभिन्न सभ्यताओं ने आवास किए और विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक प्रगति की।

कांस्य युग के दौरान, ईरानी पठार पर अनेक सभ्यताएं थीं, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण सभ्यताएं निम्नलिखित थीं:

  1. एलामी सभ्यता: एलामी सभ्यता ईरानी पठार पर विकसित हुई और ईरानी ग्रंथों और पुराणों में उल्लेखित है। इस सभ्यता का मुख्य केंद्र ईलाम (Elam) नगर था जो आज के ईरान के खुजस्तान प्रांत में स्थित था। एलामी सभ्यता ने गृह-युद्ध, शिल्पकला, और वाणिज्यिक गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की थी।
  2. सुमेरी सभ्यता: कास्य युग के दौरान, सुमेरी सभ्यता (Sumerian civilization) ने मेसोपोटामिया क्षेत्र के उत्तरी हिस्से को आक्रामण किया था, जिसमें ईरानी पठार भी शामिल था। सुमेरी सभ्यता के संबंध में उत्तरी ईरानी पठार में अधिक जानकारी नहीं है, लेकिन इसका प्रभाव संभवतः पठार के उत्तरी हिस्से पर पड़ा होगा।
  3. ईलमाइट सभ्यता: ईरानी पठार में ईलमाइट सभ्यता भी उभरी, जो ईलाम और अग्नाख (Anshan) क्षेत्रों में स्थित थी। इस सभ्यता ने कांस्य युग के दौरान ईरानी पठार पर प्रभुत्व स्थापित किया था। ईलमाइट सभ्यता वाणिज्य, शिल्पकला, और वाहनों के निर्माण में माहिर थी।

ईरानी पठार में इन सभ्यताओं ने व्यापार, वाणिज्य, और औद्योगिक गतिविधियों में विशेषज्ञता विकसित की। उन्होंने कांस्य, रत्न, सीसा, तांबा, लोहा, और अन्य सामग्री के उत्पादन और व्यापार में गहराई तक प्रगति की। इसके अलावा, ईरानी पठार में सभ्यताओं ने विभिन्न भाषाओं, धर्मों, और संस्कृतियों का विकास किया।

मेसोपोटामिया की सभ्यता

कांस्य युग के समय मेसोपोटामिया क्षेत्र (जिसे आधुनिक दिनों में इराक के हिस्से के बड़े हिस्से के अंतर्गत गिना जाता है) महत्वपूर्ण सभ्यताओं का गठन कर चुका था। इस क्षेत्र में कई प्रसिद्ध सभ्यताएं उभरीं, जिनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण सभ्यताएं निम्नलिखित हैं:

  1. सुमेरी सभ्यता: सुमेरी सभ्यता मेसोपोटामिया क्षेत्र में सबसे पहली नगरीय सभ्यता मानी जाती है। यह सभ्यता कास्य युग के पूर्वार्ध में विकसित हुई और तीन प्रमुख नगरों, उरुक, लारसा, और निप्पुर, के आसपास स्थित थी। सुमेरी सभ्यता ने कृषि, गणित, विज्ञान, कला, साहित्य, और धर्म के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्रदर्शित की। इसके पश्चात ईशान्य (उत्तर) मेसोपोटामिया में बाबिलोनियाई सभ्यता उभरी।
  2. बाबिलोनियाई सभ्यता: बाबिलोनियाई सभ्यता मेसोपोटामिया क्षेत्र में सुमेरी सभ्यता के पश्चात स्थापित हुई। इसका मुख्य केंद्र बाबिलोन नगर था जो आजकल के इराक के बगदाद के पास स्थित है। बाबिलोनियाई सभ्यता ने विज्ञान, मैथमेटिक्स, धर्म, कला, और संगठन के क्षेत्र में अद्वितीय महत्वपूर्णता प्राप्त की। इस सभ्यता के अंतिम दिनों में नबूचदनेजर द्वितीय (Nebuchadnezzar II) जैसे महान शासकों ने बाबिलोन को महानगर बनाया।
  3. अस्सीरियाई सभ्यता: मेसोपोटामिया क्षेत्र में अस्सीरियाई सभ्यता भी उभरी। इस सभ्यता का मुख्य केंद्र निनवे नगर था, जो आजकल के इराक के मोसुल के पास स्थित है। अस्सीरियाई सभ्यता वाणिज्य, सेना, और शिल्पकला में प्रगति करने के लिए प्रसिद्ध थी। इस सभ्यता ने भूमि के विभिन्न हिस्सों को आक्रमण किया और एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।

कांस्य युग के दौरान, मेसोपोटामिया क्षेत्र में ये सभ्यताएं अद्वितीय कला, संस्कृति, और सामाजिक संगठन के उदाहरण प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध थीं। इन सभ्यताओं ने वाणिज्य, युद्ध, और साहित्य के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्रदर्शित की और अपने काल की अद्वितीय पहचान बनाई। हालांकि, ये सभ्यताएं समय के साथ अपनी प्रभावशीलता खो देती गई और दूसरी सभ्यताओं के आगमन के बाद अपना विलय हो गयीं।

चीन की सभ्यता

चीन

कांस्य युग के दौरान चीन में एक महत्वपूर्ण सभ्यता उभरी थी, जिसे शांग सभ्यता (Shang Dynasty) के नाम से जाना जाता है। शांग सभ्यता चीन के पहले ऐतिहासिक विलय के रूप में मानी जाती है और यह कास्य युग के दौरान लगभग 1600 ईसा पूर्व से 1046 ईसा पूर्व तक शासन करती रही।

शांग सभ्यता ने चीनी इतिहास के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इस सभ्यता की राजधानी हांगजीओंग (Yin) नगर थी, जो आधुनिक दिनों में हुआइयान (Henan) प्रांत, चीन में स्थित था। शांग सभ्यता के दौरान चीन में साम्राज्यी संगठन विकसित हुआ, और यह एक प्रभावशाली राजनीतिक और सांस्कृतिक सेंटर थी।

शांग सभ्यता का लोहार युग के रूप में भी उल्लेख किया जाता है, क्योंकि इसके सदस्यों ने लोहे और कांस्य का उत्पादन करने में माहिरत प्राप्त की थी। शांग सभ्यता ने लोहे के उपयोग से शस्त्रों, युद्धास्त्रों, उपकरणों, और गहनों का निर्माण किया। इसके अलावा, यह सभ्यता विग्रहों, पुरातात्विक आवश्यकताओं, और संगठनिक संरचनाओं में भी महानता प्रदर्शित करती थी।

कांस्य युग के अंत के बाद, शांग सभ्यता को चौंग (Zhou) सभ्यता ने उपनगरीत किया और चीनी इतिहास में नए अध्याय की शुरुआत हुई।

सिंधु घाटी की सभ्यता

सिंधु घाटी

भारतीय उपमहाद्वीप पर कांस्य युग लगभग 3300 ईसा पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता की शुरुआत के साथ शुरू हुआ था । सिंधु घाटी के निवासियों, हड़प्पावासियों ने धातु विज्ञान में नई तकनीकों का विकास किया और तांबा, कांस्य, सीसा और टिन का उत्पादन किया।

स्वर्गीय हड़प्पा संस्कृति, जो 1900-1400 ईसा पूर्व की है, ने कास्य युग से लौह युग में संक्रमण को ओवरलैप किया; इस प्रकार इस संक्रमण को सटीक रूप से तिथि करना मुश्किल है। यह दावा किया गया है कि मेहरगढ़ में स्पोक के आकार में निर्मित 6,000 साल पुराना तांबे का ताबीज दुनिया में खोई हुई मोम की ढलाई का सबसे पहला उदाहरण है ।

आर्य सभ्यता

कांस्य युग के दौरान आर्य सभ्यता उभरी थी, जिसे आर्यों की सभ्यता भी कहा जाता है। आर्य सभ्यता का स्थानांतरण और प्रसार भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ। यह सभ्यता भारतीय इतिहास के विभिन्न युगों में विकसित हुई और भारतीय संस्कृति, धर्म, और भाषा के महत्वपूर्ण अंशों का संस्थापन किया।

आर्य सभ्यता के सदस्य आर्य जनजाति थीं, जो पश्चिमी आर्यावर्त क्षेत्र से प्रारम्भिक रूप से बाहरी क्षेत्रों में विस्थापित हुईं। इस सभ्यता के लोग गायन, यज्ञ, युद्ध, और शस्त्रों में प्रवीण थे। उन्होंने वेदों के रूप में महत्वपूर्ण धार्मिक प्रतिमान बनाए और धार्मिक और आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार प्रसार किया। आर्य सभ्यता ने भारतीय साम्राज्यों की नींव रखी और उन्होंने भारतीय संस्कृति के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

एग्यप्टियन सभ्यता

कांस्य युग के दौरान एग्यप्ट में एक महत्वपूर्ण सभ्यता उभरी थी, जिसे एग्यप्टियन सभ्यता (Egyptian Civilization) के नाम से जाना जाता है। यह सभ्यता कांस्य युग के पूरे दौरान विकसित हुई और एग्यप्ट के आधिकारिक इतिहास के शुरुआत मानी जाती है।

एग्यप्टियन सभ्यता का कास्य युग में विकास हुआ और इसकी विशेषताएं शस्त्रों, गहनों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, और धार्मिक प्रथाओं में प्रकट होती थीं। इस युग में एग्यप्ट में पिरामिड निर्माण, मूमियाओं का तैयारी प्रथा, विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा, और अनुष्ठानिक यात्राओं की प्रथा विकसित हुईं। एग्यप्ट की सभ्यता में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, और धार्मिक संरचना विकसित हुई, और यह एक समृद्ध और प्रभावशाली सभ्यता के रूप में मशहूर हुई।

कांस्य युग के अंत के बाद, एग्यप्टियन सभ्यता की प्रभावशाली सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपरा का समापन हुआ और नए युगों में एग्यप्ट के राजनीतिक मानचित्र में परिवर्तन हुआ।

ग्रीक की सभ्यता

कांस्य युग के दौरान ग्रीक सभ्यता (Greek Civilization) विकसित हुई थी। यह सभ्यता यूरोप में विकसित हुई और प्राचीन ग्रीस के भूमि-भाग में महत्वपूर्ण रूप से विकसित हुई। ग्रीक सभ्यता को भौगोलिक, सांस्कृतिक, और सामाजिक दृष्टि से बहुत प्रभावशाली माना जाता है और इसने पश्चिमी सभ्यताओं, विज्ञान, दर्शन, कला, और राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कास्य युग के दौरान, ग्रीक सभ्यता ने बहुत सारे उत्कृष्ट कार्यक्रमों को जन्म दिया। इस युग में ग्रीक काव्य, नाटक, तत्त्वशास्त्र, गणित, विज्ञान, और दर्शन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई। ग्रीक सभ्यता ने फिलॉसोफी में महत्वपूर्ण योगदान दिया और प्रमुख दार्शनिक स्कूलों जैसे कि प्लेटोनिक और अरिस्टोटेलियन दर्शन का विकास किया। ग्रीक सभ्यता ने समाज, राजनीति, और साहित्य में नई प्रतिमान और विचारों का आविष्कार किया और व्यापार, व्यवसाय, और सैन्य क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कास्य युग के अंत के बाद, ग्रीक सभ्यता ने अपनी स्थानांतरण और प्रसार की प्रक्रिया शुरू की और अलेक्जेंडर द्वितीय के समय से पूरे मध्यएशिया, मध्य पूर्व, और भारतीय उपमहाद्वीप में उनका प्रभाव दिखाई देने लगा। ग्रीक सभ्यता ने एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय और सांस्कृतिक संस्कृति के रूप में विकास किया और पश्चिमी सभ्यताओं के साथ गहन सांस्कृतिक आदान-प्रदान करती रही।

कांस्य युग का अंत कब हुआ और क्यों?

कांस्य युग लगभग 500 ईसा पूर्व से, एक अन्य धातु, लोहे को गर्म करने और बनाने की क्षमता ने कास्य युग को समाप्त कर दिया, और नया युग लौह युग की शुरुआत हुआ।

कांस्य युग का अंत कई कारणों से हुआ है, और यह क्षेत्र और सभ्यता के आधार पर अलग-अलग समयों में हुआ है। निम्नलिखित कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं:

  1. पारंपरिक विद्युत् संचालन की अभावता: कांस्य युग में कांस्य (लोहा) की तापमान संचालित करने के लिए विद्युत् संचालन की अभावता थी। विद्युत् संचालन के विकास के बाद, धातु संयोजन के लिए नए औजारों की आवश्यकता पड़ी, जो पुराने कांस्य औजारों की उपेक्षा के कारण कास्य युग का अंत हुआ।
  2. धातु संयोजन के अलावा नए उपाय: कास्य युग के अंत में, अन्य धातु संयोजन जैसे कि आयरन (लोहा) का उपयोग आरंभ हुआ। आयरन के प्राकृतिक उपस्थिति और इसके संयोजन की सुविधा ने कांस्य के उपयोग को धीमा कर दिया और आयरन युग (Iron Age) की शुरुआत हुई।
  3. साम्राज्यों की विस्तार की आवश्यकता: कास्य युग के दौरान, कुछ साम्राज्यों का विस्तार हो गया था और नए शासनकाल आरंभ हुए थे। ये साम्राज्य आर्थिक और सामाजिक प्रणालियों में परिवर्तन ला सकते थे, जिससे कांस्य का उपयोग कम हुआ और आयरन के उपयोग की आवश्यकता हुई।
  4. तकनीकी प्रगति: कास्य युग के अंत के साथ, औजारों और उपकरणों की तकनीकी विकास हुई और नए औजार और उपकरण उत्पन्न हुए। इससे कास्य युग में उपयोग किए जाने वाले औजारों की मांग कम हुई और आयरन के उपयोग की आवश्यकता हुई।

ये कुछ मुख्य कारण हैं जिनके कारण कास्य युग का अंत हुआ। यह सामान्य रूप से धातु संयोजन की तकनीकी प्रगति और आयरन के उपयोग की विस्तारक विकास के साथ संबंधित है।

कांस्य युग के कुछ महत्तवपूर्ण तथ्य

कांस्य युग (Bronze Age) मानव सभ्यता के विकास के एक महत्वपूर्ण पड़ाव को दर्शाता है। यह युग कांस्य धातु के प्रयोग के लिए प्रसिद्ध है और इसके दौरान मानव समुदायों ने आगे बढ़ते हुए तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक उत्पादन में वृद्धि की। यहां कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य हैं:

  1. धातु का उपयोग: कांस्य युग में कांस्य (लोहा) धातु का व्यापारिक और उपयोगिता उच्चतम स्तर पर होता था। इसे वस्त्र, औजार, शस्त्र, युद्धास्त्र, आभूषण, मूर्तियाँ आदि के निर्माण में उपयोग किया जाता था।
  2. तकनीकी प्रगति: कास्य युग में धातुर्ग में विकास हुआ और विभिन्न धातु संयोजनों के लिए तकनीकी ज्ञान विकसित हुआ। धातु औजारों और उपकरणों की निर्माण प्रक्रियाएं मजबूती से आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग की जाती थी।
  3. व्यापारिक गतिविधियाँ: कास्य युग में व्यापार और व्यापारिक गतिविधियाँ विकसित हुईं। वस्त्र, आभूषण, धातु उपकरण, औजार, और अन्य वस्तुएं व्यापार के लिए बनाई और व्यापार की जाती थीं।
  4. सामाजिक और आर्थिक विकास: कास्य युग में समाजिक संगठन विकसित हुआ और सामाजिक हितों, धार्मिक प्रथाओं और राजनीतिक प्रणालियों का विकास हुआ। धन, संपत्ति और शक्ति के प्रभाव के साथ राजनीतिक प्रणालियाँ प्रभावशाली हुईं।
  5. सांस्कृतिक उत्पादन: कास्य युग में कला, संगीत, नृत्य, मूर्तिकला, और धार्मिक प्रथाएं विकसित हुईं। सांस्कृतिक उत्पादन और कार्यक्रम अवधि में वृद्धि हुई और धार्मिक और सामाजिक आयोजन आयोजित किए गए।
  6. सभ्यता के उदय: कांस्य युग में विभिन्न सभ्यताओं और साम्राज्यों की उत्पत्ति हुई। प्रमुख सभ्यताओं में हरप्पा सभ्यता, मेसोपोटामिया सभ्यता, आर्य सभ्यता, एग्यप्टियन सभ्यता, और ग्रीक सभ्यता शामिल होती हैं।

ये महत्त्वपूर्ण तथ्य कांस्य युग की महत्त्वपूर्णता और उसके सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक विकास को दर्शाते हैं।


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