कुंभ मेला भारतीय धर्म, परंपरा और ज्योतिषीय गणना का अद्भुत संगम है। इस मेले का आयोजन हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में एक निर्धारित क्रम और प्रक्रिया के तहत किया जाता है। कुंभ मेला को अलग-अलग समयांतराल पर चार प्रमुख रूपों कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ, और महाकुंभ में आयोजित किया जाता है। यह आयोजन ग्रहों की स्थिति और हिंदू पंचांग के अनुसार तय होता है। उज्जैन में आयोजित होने वाले कुम्भ को सिंहस्थ कुम्भ कहा जाता है।
कुंभ का शाब्दिक अर्थ एवं पौराणिक मान्यता
कुंभ शब्द का अर्थ है ‘कलश’ या ‘घड़ा’। यह पर्व समुद्र मंथन से जुड़े अमृत कलश की कथा पर आधारित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश प्राप्त हुआ। इस कलश को लेकर देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष हुआ, जिसके दौरान अमृत की कुछ बूंदें धरती पर गिर गईं। इन बूंदों के गिरने वाले स्थानों को ही कुंभ मेला के आयोजन स्थलों के रूप में माना जाता है। यह स्थान हैं- हरिद्वार (गंगा नदी), प्रयागराज (गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम), नासिक (गोदावरी नदी) और उज्जैन (शिप्रा नदी)।
कुंभ मेले का वैदिक अर्थ
“कुंभ” शब्द का शाब्दिक अर्थ “घड़ा”, “सुराही” या “बर्तन” होता है। यह वैदिक ग्रंथों में उल्लिखित है और इसका संबंध अक्सर पानी या पौराणिक कथाओं में अमरता (अमृत) से जोड़ा जाता है। “मेला” का अर्थ है किसी एक स्थान पर मिलना, एक साथ चलना, सभा में उपस्थित होना या सामुदायिक उत्सव। ऋग्वेद और अन्य प्राचीन हिंदू ग्रंथों में भी इस शब्द का उल्लेख मिलता है। इस प्रकार, “कुंभ मेला” का अर्थ “अमरत्व का मेला” होता है।
कुंभ मेले का क्रम और आयोजन प्रक्रिया
1. कुंभ मेला (प्रत्येक 3 वर्ष में)
- कुंभ मेला हर 3 साल में बारी-बारी से चार पवित्र स्थलों — हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक में आयोजित किया जाता है।
- उदाहरण के लिए, यदि एक वर्ष उज्जैन में कुंभ मेला आयोजित होता है, तो अगले तीन वर्षों में हरिद्वार, फिर प्रयागराज और फिर नासिक में इसका आयोजन होता है। उसके तीन वर्ष बाद पुनः उज्जैन में इसका आयोजन होता है।
- इस प्रकार यह चारों स्थलों पर क्रमिक रूप से आयोजित होता रहता है।
- उज्जैन में होने वाले कुम्भ को सिंहस्थ कुम्भ कहा जाता है।
2. अर्धकुंभ मेला (प्रत्येक 6 वर्ष में)
- अर्धकुंभ मेला हर 6 वर्ष में केवल हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित होता है।
- इसे पूर्णकुंभ के मध्य के बड़े आयोजन के रूप में देखा जाता है, जहां लाखों श्रद्धालु और संत एकत्रित होकर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।
3. पूर्णकुंभ मेला (प्रत्येक 12 वर्ष में)
- पूर्णकुंभ मेला हर 12 वर्ष में चारों स्थलों में से किसी एक स्थान पर आयोजित होता है।
- यह आयोजन धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, और इसमें करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं।
- हिंदू पंचांग के अनुसार, देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के 12 वर्ष के बराबर माने गए हैं। इसलिए पूर्णकुंभ का आयोजन प्रत्येक 12 वर्षों में होता है।
4. महाकुंभ मेला (प्रत्येक 144 वर्ष में)
- महाकुंभ मेला प्रयागराज में हर 144 वर्षों में आयोजित होता है।
- 144 का महत्व ज्योतिषीय और धार्मिक दृष्टि से है। 12 कुंभों में से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और बाकी आठ कुंभ देवलोक में माने जाते हैं।
- यह आयोजन इसलिए 12 (पृथ्वी के कुंभ) का गुणा 12 (देवलोक के कुंभ) करके 144 वर्षों में होता है।
- महाकुंभ का महत्व अन्य सभी कुंभ मेलों की अपेक्षा अधिक माना गया है।
कुंभ, अर्धकुंभ, पूर्णकुंभ, महाकुंभ एवं सिंहस्थ कुंभ मेला
प्रत्येक 3 साल में हरिद्वार, उज्जैन, प्रयागराज और नासिक में एक बार आयोजित होने वाले मेले को कुंभ मेला के नाम से जानते हैं। वहीं हरिद्वार और प्रयागराज में प्रत्येक 6 वर्ष में आयोजित होने वाले कुंभ को अर्धकुंभ कहा जाता है। जबकि केवल प्रयागराज में प्रत्येक 12 साल में आयोजित होने वाले कुंभ को पूर्ण कुंभ मेला कहलाता है। केवल प्रयागराज में 144 वर्ष के अंतर पर आयोजित होने वाले कुंभ को महाकुंभ मेला कहते हैं। कुंभ का आरंभ मकर संक्रांति से होता है और समापन महाशिवरात्रि के दिन होता है।
अर्धकुंभ मेला | आधा कुंभ, आधी अवधि | आध्यात्मिक यात्रा का मध्य पड़ाव
अर्धकुंभ मेला, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, कुंभ मेले का आधा रूप है। इसका आयोजन हर छह साल में दो प्रमुख स्थानों पर किया जाता है — हरिद्वार और प्रयागराज। यह कुंभ मेला के बीच का एक प्रमुख आयोजन होता है और इसे धार्मिक दृष्टि से उतना ही महत्वपूर्ण माना जाता है।
“अर्ध” का अर्थ “आधा” होता है, और यह आयोजन पूर्णकुंभ मेले के बीच में होने वाले एक प्रमुख धार्मिक आयोजन के रूप में देखा जाता है। लाखों श्रद्धालु और साधु संत इस मेले में शामिल होकर पवित्र नदियों गंगा और संगम में स्नान करते हैं, जिसे पापों से मुक्ति और आध्यात्मिक उन्नति का साधन माना जाता है।
अर्धकुंभ की विशेषताएं
- आयोजन का समय: अर्धकुंभ हर छह साल में आयोजित होता है, जबकि कुंभ मेला हर तीन साल में आयोजित होता है।
- स्थल: यह मेला हरिद्वार और प्रयागराज में आयोजित होता है।
- धार्मिक महत्व: लाखों श्रद्धालु और तपस्वी अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए नदियों में स्नान करते हैं।
- अर्थ: ‘अर्ध’ का मतलब होता है आधा, इसलिए इसे कुंभ का आधा रूप माना जाता है।
पूर्णकुंभ मेला: धार्मिकता का महापर्व | एक महान आयोजन
पूर्णकुंभ मेला, कुंभ मेले का सबसे बड़ा रूप है और यह विशेष रूप से प्रयागराज में आयोजित होता है। इसे 12 साल में एक बार आयोजित किया जाता है, और इसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। यह मेला संगम तट पर आयोजित होता है, जहां गंगा, यमुन और अदृश्य सरस्वती नदियों का मिलन होता है।
पूर्णकुंभ मेला हर 12 साल में चार पवित्र स्थलों में से किसी एक स्थान पर आयोजित होता है। इनमें प्रयागराज का आयोजन विशेष महत्व रखता है, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर यह भव्य मेला लगता है। इस मेले में करोड़ों श्रद्धालु एकत्र होते हैं और संगम में स्नान कर अपने जीवन को पवित्र बनाने का प्रयास करते हैं।
पूर्णकुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और सामाजिक समागम भी है, जिसमें भारत की विविधता और एकता झलकती है। इसे UNESCO द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की सूची में भी शामिल किया गया है।
पूर्णकुंभ की विशेषताएं
- आयोजन का समय: पूर्णकुंभ मेला हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है।
- स्थल: यह मेला केवल प्रयागराज में आयोजित होता है, और यहाँ संगम तट पर स्नान करने का विशेष महत्व होता है।
- धार्मिक महत्व: यह मेला एक अत्यधिक पुण्य अवसर होता है, जहां श्रद्धालु अपने पापों को धोने के लिए संगम में स्नान करते हैं।
- श्रद्धालुओं की संख्या: पूर्णकुंभ में करोड़ों श्रद्धालु भाग लेते हैं, जिससे यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम बनता है।
महाकुंभ मेला | दिव्यता का अद्वितीय पर्व | एक दिव्य अवसर
प्रयागराज में केवल हर 144 वर्ष में एक बार महाकुंभ मेला आयोजित होता है। इसे विशेष रूप से एक असाधारण और दिव्य आयोजन माना जाता है, जो हर किसी को जीवन में एक बार अनुभव करना चाहिए।
महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धर्म का सबसे दुर्लभ और भव्य आयोजन है, जो केवल 144 वर्षों के अंतराल पर प्रयागराज में आयोजित होता है। इसे सभी कुंभ मेलों का सबसे पवित्र और दिव्य रूप माना जाता है। इस मेले में दुनियाभर से श्रद्धालु, योगी और साधु संत शामिल होते हैं, और यह आयोजन अध्यात्म, धर्म और परंपरा का अद्वितीय मिश्रण प्रस्तुत करता है।
महाकुंभ मेले को जीवन में एक बार मिलने वाले अनुभव के रूप में देखा जाता है, जहां हर व्यक्ति आध्यात्मिक ऊर्जा और आशीर्वाद प्राप्त करने की आकांक्षा रखता है।
महाकुंभ की विशेषताएं
- आयोजन का समय: महाकुंभ केवल 144 वर्ष के अंतराल पर आयोजित होता है।
- स्थल: यह मेला केवल प्रयागराज में आयोजित होता है।
- धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व: महाकुंभ मेला विशेष रूप से एक अपूर्व धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होता है।
ज्योतिषीय गणना और कुंभ मेले का स्थान निर्धारण
कुंभ मेले के स्थान और तिथि का निर्धारण हिंदू ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित होता है। ग्रहों की स्थिति इस आयोजन के लिए मुख्य भूमिका निभाती है।
- सिंह राशि में बृहस्पति का प्रवेश
- जब बृहस्पति सिंह राशि में होता है, तो गोदावरी नदी के तट पर नासिक में कुंभ मेला आयोजित होता है।
- मेष राशि में सूर्य का प्रवेश
- जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति सिंह राशि में होता है, तो उज्जैन में कुंभ मेला आयोजित होता है।
- कर्क राशि में बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा का संयोग
- जब ये ग्रह कर्क राशि में होते हैं, तो नासिक में कुंभ मेला आयोजित होता है।
- तुला राशि में बृहस्पति का प्रवेश
- जब बृहस्पति तुला राशि में और सूर्य एवं चंद्रमा कार्तिक अमावस्या के दिन एक साथ होते हैं, तो उज्जैन में कुंभ मेला आयोजित होता है।
कुंभ मेला के आयोजन स्थल और महत्व
1. हरिद्वार में कुंभ
हरिद्वार का कुंभ मेला ज्योतिषीय दृष्टि से तब आयोजित होता है, जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है। यह स्थान गंगा नदी के किनारे स्थित है और हिंदू धर्म में इसे विशेष रूप से पवित्र माना गया है। हरिद्वार में गंगा स्नान को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है। हरिद्वार और प्रयागराज में अर्धकुंभ का आयोजन भी होता है, जो दो कुंभ मेलों के बीच छह वर्ष के अंतराल पर मनाया जाता है।
2. प्रयागराज में कुंभ
प्रयागराज का कुंभ मेला तीन पवित्र नदियों- गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर आयोजित होता है। यह स्थान धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार, जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन होता है। प्रत्येक 6 वर्ष के अंतराल पर हरिद्वार और प्रयागराज में अर्धकुंभ का आयोजन भी होता है।
अन्य मान्यताओं के अनुसार, मकर राशि में सूर्य का और वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर भी प्रयागराज में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। यहाँ पर आयोजित माघ मेला, जो एक वार्षिक आयोजन है, कुंभ मेले की ही एक छोटी छवि प्रस्तुत करता है।
3. नासिक में कुंभ
नासिक का कुंभ मेला गोदावरी नदी के किनारे आयोजित होता है। इसे सिंहस्थ कुंभ के नाम से भी जाना जाता है। जब बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करता है, तब नासिक और त्र्यंबकेश्वर में कुंभ मेले का आयोजन होता है। इसके अतिरिक्त, अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य और चंद्रमा के कर्क राशि में प्रवेश करने पर भी यह पर्व आयोजित किया जाता है।
4. उज्जैन में कुंभ
उज्जैन का कुंभ मेला क्षिप्रा नदी के किनारे आयोजित होता है और इसे सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है। जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, तब उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है। इसके अलावा, कार्तिक अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा के साथ होने पर और बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश करने पर भी यह मेला आयोजित किया जाता है। उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के कारण यह स्थान विशेष रूप से धार्मिक महत्व रखता है।
सिंहस्थ कुम्भ क्या है?
सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से है। सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर कुंभ का आयोजन होता है। सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश करने के कारण ही उज्जैन में आयोजित होने वाले इस कुम्भ को सिंहस्थ कुम्भ कहा जाता है।
अर्धकुंभ और महाकुंभ का महत्व
अर्धकुंभ का आयोजन हरिद्वार और प्रयागराज में कुंभ मेले के बीच छह वर्ष के अंतराल पर होता है। यह पर्व भी कुंभ के समान ही पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। वहीं, महाकुंभ का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार प्रयागराज में होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त, प्रयागराज में ही 144 वर्ष के अंतराल पर महाकुंभ का आयोजन होता है, जिसे अत्यंत पवित्र माना जाता है।
- महाकुंभ का आयोजन 144 वर्षों के बाद होता है। 12 का गुणा 12 करने पर यह संख्या आती है, जो धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है।
- महाकुंभ का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह पृथ्वी और स्वर्ग के कुंभ आयोजनों का प्रतीक माना जाता है।
- 2013 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ था। अगला महाकुंभ अब 138 वर्षों बाद आयोजित होगा।
कुंभ की कथा का सारांश (समुद्र मंथन की कथा)
समुद्र मंथन से उत्पन्न हुए अमृत पर अधिकार को लेकर देवता और दैत्यों के बीच लगातार बारह दिन तक युद्ध हुआ था। देवताओं के 12 दिन मनुष्यों के बारह वर्ष के समान होते हैं। इसलिए कुंभ भी बारह होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर होते हैं और आठ कुंभ देवलोक में होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि अमृत कलश स्वर्ग ले जाते समय उसकी चार बूंदें पृथ्वी के चार विभिन्न स्थानों पर छलक कर गिर गयीं।
अमृत की ये बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों पर प्रवाहित चार नदियों में गिरी थी उनके नाम हैं – प्रयागराज में गंगा नदी, हरिद्वार में गंगा नदी, नासिक में गोदावरी नदी एवं उज्जैन में शिप्रा नदी। सभी नदियों का संबंध गंगा से है। गोदावरी को गोमती गंगा के नाम से पुकारते हैं। शिप्रा नदी को भी उत्तरी गंगा के नाम से जानते हैं, यहां पर गंगा गंगेश्वर की आराधना की जाती है।
अर्थात तीन नदियों गंगा नदी, गोदावरी नदी एवं शिप्रा नदी जो चार स्थानों प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में प्रवाहित हैं, उनमे ये अमृत की बूंदें गिरी थीं। इस कारण से इन चारों स्थानों पर गंगा नदी (प्रयाग, हरिद्वार), गोदावरी नदी (नासिक), शिप्रा नदी (उज्जैन) के तट पर पर कुंभ का आयोजन जिया जाता है
ब्रह्म पुराण एवं स्कंध पुराण के 2 श्लोकों के माध्यम इसे समझा जा सकता है –
‘।।विन्ध्यस्य दक्षिणे गंगा गौतमी सा निगद्यते उत्त्रे सापि विन्ध्यस्य भगीरत्यभिधीयते.’
‘एव मुक्त्वाद गता गंगा कलया वन संस्थिता गंगेश्वेरं तु यः पश्येत स्नात्वा शिप्राम्भासि प्रिये।।’
- समुद्र मंथन की कथा में कहा गया है कि कुंभ पर्व का सीधा सम्बन्ध तारों से है। अमृत कलश को स्वर्गलोक तक ले जाने में जयंत को 12 दिन लगे। देवों का एक दिन मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर है। इसीलिए तारों के क्रम के अनुसार हर बारहवें वर्ष कुंभ पर्व विभिन्न तीर्थ स्थानों पर आयोजित किया जाता है।
- युद्ध के दौरान सूर्य, चंद्र और शनि आदि देवताओं ने कलश की रक्षा की थी, अतः उस समय की वर्तमान राशियों पर रक्षा करने वाले चंद्र-सूर्यादिक ग्रह जब आते हैं, तब कुंभ का योग होता है और चारों पवित्र स्थलों पर प्रत्येक तीन वर्ष के अंतराल पर क्रमानुसार कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
- अमृत की बूंदे छलकने के समय जिन राशियों में सूर्य, चंद्रमा, बृहस्पति की स्थिति के विशिष्ट योग के अवसर रहते हैं, वहां कुंभ पर्व का इन राशियों में गृहों के संयोग पर आयोजन होता है। इस अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चन्द्रमा के विशेष प्रयत्न रहे थे। इसी कारण इन्हीं गृहों की उन विशिष्ट स्थितियों में कुंभ पर्व मनाने की परम्परा है।
कुंभ मेले की विशेषताएं
कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और लोकाचार का जीवंत प्रमाण है।
- धार्मिक स्नान: कुंभ मेले में पवित्र नदियों में स्नान को अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इससे व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- संतों और महात्माओं का जमावड़ा: कुंभ मेला संतों, महात्माओं और साधुओं के मिलन का अद्वितीय अवसर है। नागा साधु, कल्पवासी, और अन्य अखाड़ों के संत यहाँ अपनी परंपराओं का प्रदर्शन करते हैं।
- सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम: मेले में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जो जनमानस को भारतीय संस्कृति और धर्म से जोड़ते हैं।
- भव्यता और व्यवस्था: लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति के बावजूद कुंभ मेला में व्यवस्था अत्यंत सुचारू होती है। सरकार और प्रशासन इसके लिए विशेष प्रबंध करते हैं।
कुंभ मेला और आधुनिक युग
आज के समय में कुंभ मेला न केवल धार्मिक बल्कि आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो गया है। इस मेले में देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु और पर्यटक भाग लेते हैं।
डिजिटल तकनीक का उपयोग: मेले में आधुनिक तकनीक का उपयोग बढ़ा है। मेले की जानकारी, मार्गदर्शन और सुरक्षा के लिए डिजिटल साधनों का सहारा लिया जाता है।
पर्यटन का विकास: कुंभ मेला पर्यटन के क्षेत्र में भी एक महत्वपूर्ण अवसर बन चुका है। सरकार और प्रशासन इसे वैश्विक स्तर पर प्रचारित कर विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
कुंभ मेला भारतीय संस्कृति, धर्म और परंपरा का एक अद्वितीय पर्व है। यह न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय समाज के विविध पहलुओं को भी उजागर करता है। चाहे वह पौराणिक कथाएँ हों, ज्योतिषीय गणनाएँ हों, या संतों-महात्माओं का जमावड़ा, कुंभ मेला हर दृष्टि से एक अद्वितीय आयोजन है। इस महापर्व में भाग लेना न केवल आध्यात्मिक अनुभव है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और समाज की गहरी समझ का माध्यम भी है।
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