क्रिप्स मिशन | असफलता के कारण, प्रभाव और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

क्रिप्स मिशन, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत को संवैधानिक सुधारों का प्रस्ताव देने के लिए उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम था। यह मिशन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की सरकार द्वारा भारत को आज़ादी देने की मंशा को स्पष्ट करने के लिए भेजा गया था। इस मिशन का नेतृत्व सर स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स ने किया था और इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीतिक दलों का समर्थन हासिल कर उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन की सहायता के लिए तैयार करना था। यह मिशन मार्च 1942 में भारत आया और इसे क्रिप्स मिशन के नाम से जाना गया।

क्रिप्स मिशन की पृष्ठभूमि

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन की स्थिति कमजोर हो रही थी, और जापान ने दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी। 1941 में जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला किया और ब्रिटेन के सहयोगी अमेरिका को युद्ध में घसीट लिया। जापान की सेना बर्मा तक पहुँच चुकी थी और भारत पर भी उसके आक्रमण का खतरा मंडरा रहा था। इन परिस्थितियों में, ब्रिटिश सरकार को एहसास हुआ कि यदि भारतीयों का समर्थन नहीं मिला, तो वे भारत को सुरक्षित नहीं रख पाएंगे।

इसके अलावा, अमेरिका और अन्य मित्र राष्ट्रों ने भी ब्रिटेन पर दबाव डाला कि वह भारत को आज़ादी देने की दिशा में कदम उठाए। तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने ब्रिटेन से कहा कि वह भारत को स्वतंत्रता देने पर विचार करे। इसी दबाव और युद्ध की परिस्थितियों को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने सर स्टैफ़ोर्ड क्रिप्स को भारत भेजने का फैसला किया।

भारत में क्रिप्स

भारत पहुंचने पर क्रिप्स ने भारतीय नेताओं से बातचीत की और अपने प्रस्तावों के जरिए सभी समुदायों को संतुष्ट करने का प्रयास किया। वह नेहरू के मित्र थे और उन्होंने एक समझौता कराने की पूरी कोशिश की। हालांकि, अविश्वास बहुत अधिक था और कई प्रभावशाली लोग नहीं चाहते थे कि कोई समझौता हो।

क्रिप्स को चर्चिल और भारत के राज्य सचिव लियो अमेरी ने भारत के राष्ट्रवादी राजनेताओं को क्या पेशकश करने के लिए अधिकृत किया था, इसको लेकर कुछ भ्रम था। क्रिप्स को वायसराय लिनलिथगो से भी शत्रुता का सामना करना पड़ा।

क्रिप्स ने युद्ध की समाप्ति पर भारत को पूर्ण प्रभुत्व का दर्जा देने की पेशकश की, जिसमें राष्ट्रमंडल से अलग होने और पूर्ण स्वतंत्रता का मौका भी शामिल था। हालांकि, सार्वजनिक रूप से, क्रिप्स अल्पावधि में अधिक स्वशासन के लिए कोई ठोस प्रस्ताव पेश करने में विफल रहे, सिवाय वायसराय की कार्यकारी परिषद के भारतीय सदस्यों की संख्या बढ़ाने की एक अस्पष्ट प्रतिबद्धता के।

क्रिप्स ने अपना अधिकांश समय कांग्रेस नेताओं और जिन्ना को युद्ध और सरकार के समर्थन में एक आम, सार्वजनिक व्यवस्था पर आने के लिए प्रोत्साहित करने में बिताया।

क्रिप्स प्रस्ताव के मुख्य बिंदु

क्रिप्स मिशन ने भारतीय नेताओं के सामने एक प्रस्ताव रखा, जिसे क्रिप्स प्रस्ताव कहा गया। इसके मुख्य प्रावधान निम्नलिखित थे –

  1. डोमिनियन स्टेटस की पेशकश: युद्ध समाप्त होने के बाद, भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर एक ‘डोमिनियन’ राज्य का दर्जा मिलेगा, जिसका अर्थ होगा कि भारत को स्वतंत्र रूप से शासन करने का अधिकार होगा, लेकिन वह ब्रिटिश राष्ट्रमंडल (कॉमनवेल्थ) का हिस्सा बना रहेगा।
  2. संविधान निर्माण की स्वतंत्रता: युद्ध खत्म होने के बाद भारत में एक संविधान निर्मात्री सभा (Constituent Assembly) गठित की जाएगी, जो भारत का नया संविधान बनाएगी। यह सभा आंशिक रूप से प्रांतीय विधानसभाओं से चुने गए सदस्यों और आंशिक रूप से रियासतों द्वारा नामांकित सदस्यों से बनेगी।
  3. संघ में शामिल होने की स्वतंत्रता: किसी भी प्रांत या रियासत को यह स्वतंत्रता होगी कि वह भारतीय संघ में शामिल हो या न हो। यदि कोई प्रांत या रियासत संघ में शामिल नहीं होना चाहे, तो उसे अपना अलग संविधान बनाने की स्वतंत्रता दी जाएगी।
  4. नस्लीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा: भारत में धार्मिक और नस्लीय अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त संवैधानिक प्रावधान किए जाएंगे, ताकि किसी भी समुदाय के अधिकारों का हनन न हो।
  5. राष्ट्रमंडल से अलग होने की स्वतंत्रता: भारत को यह स्वतंत्रता होगी कि वह चाहे तो ब्रिटिश राष्ट्रमंडल (Commonwealth) में बना रहे या उससे अलग हो जाए।

क्रिप्स मिशन प्रस्ताव पर भारतीय नेताओं की प्रतिक्रिया

क्रिप्स मिशन के प्रस्ताव को भारतीय नेताओं द्वारा व्यापक रूप से अस्वीकार कर दिया गया। कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने इस प्रस्ताव को नकार दिया, लेकिन उनके नकारने के कारण अलग-अलग थे।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रतिक्रिया

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस प्रस्ताव को यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि इसमें तत्काल स्वतंत्रता की कोई गारंटी नहीं थी। कांग्रेस का मानना था कि भारत को युद्ध समाप्त होने के बाद नहीं, बल्कि तुरंत स्वतंत्रता दी जानी चाहिए। इसके अलावा, गांधीजी ने इसे “एक मरीचिका” (Post-dated cheque) कहा, जो भविष्य में भुनाया नहीं जा सकता।

मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया

मुस्लिम लीग ने इस प्रस्ताव को इसलिए अस्वीकार कर दिया क्योंकि इसमें स्पष्ट रूप से पाकिस्तान की माँग को मान्यता नहीं दी गई थी। मुस्लिम लीग चाहती थी कि भारत को विभाजित कर एक अलग मुस्लिम राष्ट्र, पाकिस्तान का निर्माण किया जाए। लेकिन क्रिप्स प्रस्ताव में इस पर कोई स्पष्ट सहमति नहीं थी, इसलिए जिन्ना और मुस्लिम लीग ने इसे खारिज कर दिया।

राष्ट्रवादी नेता और अन्य दल

कुछ नेता जैसे कि चक्रवर्ती राजगोपालाचारी इस प्रस्ताव को एक समझौते के रूप में देख रहे थे, लेकिन कांग्रेस और मुस्लिम लीग की अस्वीकृति के कारण यह आगे नहीं बढ़ सका।

क्रिप्स मिशन | ब्रिटिश अधिकारियों का दृष्टिकोण

वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो और ब्रिटिश सरकार के अन्य अधिकारी इस प्रस्ताव को लेकर अधिक गंभीर नहीं थे। चर्चिल और अन्य ब्रिटिश नेता भारत को तत्काल स्वतंत्रता देने के पक्ष में नहीं थे।

क्रिप्स मिशन के असफलता के कारण

यद्यपि क्रिप्स मिशन असफल हो गया, फिर भी इसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव डाला। क्रिप्स मिशन की असफलता के पीछे निम्न मुख्य कारण थे –

  1. वादों की विश्वसनीयता की कमी: सभी वादे युद्ध के बाद पूरे किए जाने की बात कही गई थी, जिससे भारतीय नेताओं को ब्रिटिश सरकार की नीयत पर संदेह था।
  2. ब्रिटिश अधिकारियों की पर्दे के पीछे की साजिश: मिशन को विफल करने के लिए भारत के वायसराय लिनलिथगो और ब्रिटिश सरकार में भारत के राज्य सचिव लियो अमेरी ने पर्दे के पीछे से प्रयास किए। 1970 में जारी किए गए दस्तावेजों से स्पष्ट होता है कि लिनलिथगो और अमेरी दोनों ने क्रिप्स मिशन का विरोध किया और जानबूझकर क्रिप्स को कमतर आंका।
  3. युद्ध समाप्ति के बाद स्वतंत्रता देने का वादा किया गया था, तत्काल नहीं।
  4. ब्रिटिश सरकार के भीतर विरोध – लॉर्ड लिनलिथगो और अन्य वरिष्ठ अधिकारी नहीं चाहते थे कि भारत को स्वतंत्रता दी जाए।
  5. भारतीय नेताओं का अविश्वास – गांधीजी सहित अन्य नेताओं को ब्रिटिश सरकार की मंशा पर भरोसा नहीं था।
  6. मुस्लिम लीग और कांग्रेस के मतभेद – मुस्लिम लीग अलग राष्ट्र चाहती थी, जबकि कांग्रेस एक एकीकृत भारत के पक्ष में थी।
  7. कोई ठोस कार्य योजना न होना – क्रिप्स मिशन में स्वशासन की कोई ठोस रूपरेखा नहीं दी गई थी।

ब्रिटिश सरकार ने क्रिप्स मिशन को अपनी उदार औपनिवेशिक नीति के सबूत के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन व्यक्तिगत और निजी पत्राचार से मिशन के प्रति अवमानना और इसकी विफलता पर खुशी का पता चलता है।

क्रिप्स मिशन | दीर्घकालिक प्रभाव

  1. भारत छोड़ो आंदोलन (1942) – क्रिप्स मिशन की असफलता के बाद, कांग्रेस ने अगस्त 1942 में “भारत छोड़ो आंदोलन” शुरू किया।
  2. ब्रिटिश सरकार की स्थिति कमजोर हुई। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक ब्रिटेन की शक्ति कमजोर हो गई और भारत की स्वतंत्रता की माँग और तेज हो गई।
  3. माउंटबेटन योजना और स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त हुआ। 1947 में भारत की स्वतंत्रता का आधार क्रिप्स मिशन के कुछ तत्वों पर ही रखा गया।
  4. भारतीय राजनीति में मुस्लिम लीग की स्थिति मजबूत हुई। 1946 के चुनावों में मुस्लिम लीग ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली और पाकिस्तान की माँग को और अधिक बल मिला।

क्रिप्स मिशन का दीर्घकालिक महत्व वास्तव में युद्ध के बाद ही स्पष्ट हुआ। चर्चिल ने भी माना कि क्रिप्स द्वारा की गई स्वतंत्रता की पेशकश को वापस नहीं लिया जा सकता। युद्ध के अंत तक, चर्चिल सत्ता से बाहर हो गए और क्लेमेंट एटली के नेतृत्व वाली नई लेबर सरकार को भारत को स्वतंत्रता देते हुए देखने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे।

यह विश्वास कि ब्रिटिश जल्द ही चले जाएंगे, उस तत्परता में परिलक्षित हुआ जिसके साथ कांग्रेस के राजनेता 1945-1946 के चुनावों में खड़े हुए और प्रांतीय सरकारें बनाईं।

क्रिप्स मिशन ब्रिटिश सरकार का भारत को संवैधानिक सुधारों का प्रस्ताव देने का एक प्रयास था, लेकिन यह भारतीय राजनीतिक दलों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सका। इसका असफल होना यह दर्शाता है कि भारतीय जनता अब स्वतंत्रता के लिए कोई समझौता करने को तैयार नहीं थी। इसके बाद, भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ और अंततः 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। इस प्रकार, क्रिप्स मिशन भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण लेकिन असफल अध्याय बन गया।

History – KnowledgeSthali


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