जिस शब्द के द्वारा किसी कार्य के करने या होने का बोध होता है उसे क्रिया कहते है।
जैसे- पढ़ना, खाना, पीना, जाना इत्यादि।
‘क्रिया’ का अर्थ होता है- करना। प्रत्येक भाषा के वाक्य में Kriya का बहुत महत्त्व होता है। प्रत्येक वाक्य क्रिया से ही पूरा होता है। क्रिया किसी कार्य के करने या होने को दर्शाती है। Kriya को करने वाला ‘कर्ता’ कहलाता है।
- अली पुस्तक पढ़ रहा है।
- बच्चा जमीन पर गिर गया।
- इन वाक्यों में अली और बच्चा कर्ता हैं। और उनके द्वारा जो कार्य किया जा रहा है या किया गया, वह Kriya है। जैसे- पढ़ रहा है, गिर गया।
- बाजार में बम फटा।
- बाहर बारिश हो रही है।
- इन दोनों वाक्यों में Kriya को किसी के द्वारा किया नहीं गया है, बल्कि स्वतः हुई है। अतः इसमें कोई कर्ता प्रधान नहीं है।
वाक्य में Kriya का इतना अधिक महत्त्व होता है कि कर्ता अथवा अन्य योजकों का प्रयोग न होने पर भी केवल क्रिया से ही वाक्य का अर्थ स्पष्ट हो जाता है। जैसे-
- पानी लाओ।
- चुपचाप बैठ जाओ।
- रुको।
- जाओ।
अतः कहा जा सकता है कि, जिन शब्दों से किसी काम के करने या होने का पता चले, उन्हें Kriya कहते है।
Kriya की उत्पत्ति धातु शब्दों से होती है। मूल धातु शब्द में ‘ना’ प्रत्यय लगाने से Kriya बनती है। किसी वाक्य में लिंग, वचन, काल आदि के आधार पर Kriya का रूप परिवर्तित होने के साथ-साथ संज्ञा एवं सर्वनाम के आधार पर भी Kriya का रूप परिवर्तित होता है। क्रिया करने वाले को कर्ता कहते हैं
क्रिया की परिभाषा
क्रिया उन शब्दों को कहते हैं जो किसी कार्य के होने या करने अथवा किसी व्यक्ति या वस्तु की स्थिति का बोध कराते हैं।
क्रिया की विशेषता
क्रिया की निम्न विशेषताएं होती है-
- क्रिया के बिना वाक्य पूर्ण नहीं हो सकते।
- कुछ क्रियाएँ स्वघटित होते हैं और कुछ की जाती हैं।
- क्रियाएँ एक या अधिक शब्दों से मिलकर हो सकते हैं।
- क्रिया के रूप लिंग, वचन, कारक तथा काल से प्रभावित होकर परिवर्तित हो सकते हैं। इसलिए वह विकारी शब्द होते हैं।
क्रिया के उदाहरण
Kriya के कुछ उदाहरण नीचे दिए गए हैं-
- अजित पढ़ रहा है।
- शास्त्री जी भारत के प्रधानमंत्री थे।
- मिचेल क्रिकेट खेल रहा है।
- भावेश खेल रहा है।
- जॉन एडम्स पुस्तक पढ़ रहा है।
- बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं।
- लड़कियाँ गाना गा रही हैं।
- राजा राम पुस्तक पढ़ रहा है।
- बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं।
- लड़कियाँ गाना गा रही हैं।
- गीता चाय बना रही है।
- महेश पत्र लिखता है।
- उसी ने बोला था।
- राम ही सदा लिखता है।
- अध्यापक छात्रों को पाठ पढ़ा रहा था।
- राम ने कृष्ण को पत्र लिखा।
- आज सभी पतंग उड़ा रहे हैं।
- अंकिता चाय बना रही है।
- सुमित पत्र लिखता है।
- उसी ने बोला था।
- शादाब ही सदा लिखता है।
- अध्यापक छात्रों को पाठ पढ़ा रहा था।
- हर्ष ने ललित को पत्र लिखा।
- आज सभी पतंग उड़ा रहे हैं।
- मुकुल दूध पी रहा है।
धातु की परिभाषा
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं।
मूल धातु में ‘ना’ प्रत्यय लगाने से Kriya का सामान्य रूप बनता है।
उदहारण-
- धातु रूप- बोल, पढ़, घूम, लिख, गा, हँस, देख आदि।
- सामान्य रूप – बोलना, पढ़ना, घूमना, लिखना, गाना, हँसना, देखना आदि।
धातु के चार भेद होते हैं:-
- सामान्य धातु: क्रिया के धातु में ‘ना’ प्रत्यय लगाकर बनती है। जैसे– लिख + ना = लिखना
- व्युत्पन्न धातु: सामान्य धातु में प्रत्यय लगाकर बनती है। जैसे- लिखना, लिखवाना, लिखाया
- नाम धातु: संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों में प्रत्यय लगाकर बनती है।
- मिश्र धातु: संज्ञा, विशेषण तथा क्रियाविशेषण शब्दों के बाद करना, लेना, लगना, होना, आना आदि लगाकर बनती है।
क्रिया शब्द
वे शब्द जिनसे किसी कार्य या काम के होने का बोध होता हो उन्ही शब्दों को क्रिया शब्द कहते हैं। दुसरे शब्दों में, किसी वाक्य में कर्ता जिस कार्य को कर रहा होता है उस कार्य का बोध करवाने वाले शब्दों को Kriya शब्द कहा जाता है। जैसे-
- खेलना
- आना
- जाना
- कूदना
- नाचना
- पीना
- चलना
- नहाना
क्रिया के भेद
Kriya के भेद अलग-अलग आधार पर तय किय जाते हैं। अतः Kriya के भेद जानने के लिए पहले Kriya का वर्गीकरण जानना आवश्यक है। Kriya का वर्गीकरण निम्न तीन आधार पर किया गया है-
- कर्म के आधार पर Kriya के भेद
- प्रयोग एवं संरचना के आधार पर Kriya के भेद
- काल के आधार पर Kriya के भेद
1.कर्म के आधार पर क्रिया के भेद
कर्म के आधार पर Kriya के निम्न दो भेद होते हैं –
- सकर्मक क्रिया (Transitive Verb)
- अकर्मक क्रिया (Intransitive Verb)
सकर्मक क्रिया किसे कहते है ?
ऐसी क्रियाएँ जिनका प्रभाव वाक्य में प्रयुक्त कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़ता हो उन्हें सकर्मक Kriya कहते हैं। सकर्मक Kriya का अर्थ कर्म के साथ में होता है, अर्थात सकर्मक Kriya में कर्म पाया जाता है।
दुसरे शब्दों में वे क्रियाएं, जिनके साथ कर्म का होना आवश्यक होता है अर्थात बिना कर्म के वाक्य का संपूर्ण भाव प्रकट नहीं होता है सकर्मक Kriya होती हैं।
सकर्मक शब्द ‘स’ और ‘कर्मक’ से मिलकर बना है, जहाँ ‘स’ उपसर्ग का अर्थ ‘साथ में’ तथा ‘कर्मक’ का अर्थ ‘कर्म के’ होता है। इस प्रकार सकर्मक का अर्थ होता है कर्म के साथ।
उदहारण –
- राधा खाना बनाती है।
- रमेश सामान लाता है।
- रवि ने आम ख़रीदे।
- हम सब से शरबत पीया।
- राम साईकिल चलाता है।
- विजय पान खाता है।
- गीता चाय बना रही है।
- महेश पत्र लिखता है।
- हमने एक नया मकान बनाया।
- वह मुझे अपना भाई मानती है।
सकर्मक क्रिया को कैसे पहचाने?
सकर्मक क्रियाओं को पहचानने के लिए वाक्य में Kriya पद से पहले “क्या” लगाकर वाक्य को सवाल की तरह पढ़ना होगा। यदि वाक्य में सकर्मक Kriya होती है, तो वाक्य में प्रयुक्त “कर्म” के रूप में जवाब मिलेगा। यदि जवाब नहीं मिलता है, तो यकीनन वह वाक्य सकर्मक Kriya का उदाहरण नहीं है।
उदाहरण के तौर पर, “रमेश खाना बना रहा है।” इस वाक्य में हम Kriya पद “बना रहा है” से पहले “क्या” लगाकर वाक्य को पढ़ते हैं – “रमेश क्या बना रहा है?” इस सवाल का जवाब होगा – “खाना” बना रहा है। इसलिए, इस वाक्य में “बना रहा है” सकर्मक Kriya है।
सकर्मक क्रिया के भेद
सकर्मक Kriya निम्न दो प्रकार की होती है –
- पूर्ण सकर्मक Kriya
- अपूर्ण सकर्मक Kriya
पूर्ण सकर्मक क्रिया किसे कहते है?
सकर्मक Kriya का वह रूप जिसमें Kriya के साथ ‘कर्म’ के अतिरिक्त किसी अन्य पूरक शब्द (संज्ञा या विशेषण) की आवश्यकता नहीं होती है, उस Kriya को पूर्ण सकर्मक Kriya कहते हैं। अर्थात पूर्ण सकर्मक Kriya में कर्म को पूरा करने के लिए किसी संज्ञा अथवा विशेषण की आवश्यकता नहीं होती है। जैसे-
- महेश ने घर बनाया।
- बच्चा पी रहा है।
- कुछ छात्र पढ़ रहे थे।
- उसी ने बोला था।
- राम ही सदा लिखता है।
- राम एक नया मकान बनाया।
उपरोक्त सभी उदाहरणों में कर्म के साथ किसी भी तरह का पूरक शब्द इस्तेमाल नहीं किया गया है। अतः यहाँ पूर्ण सकर्मक Kriya है।
पूर्ण सकर्मक क्रिया के भेद
पूर्ण सकर्मक Kriya के भी दो भेद होते हैं-
- एक कर्मक Kriya
- द्विकर्मक Kriya
एक कर्मक क्रिया किसे कहते हैं?
यदि किसी वाक्य में पूर्ण सकर्मक Kriya के साथ सिर्फ़ एक कर्म प्रयुक्त हुआ हो तो उसे एक कर्मक Kriya कहते हैं। जैसे-
- विजय भोजन कर रहा है।
- अध्यापक पाठ पढ़ा रहा है।
- बच्चों ने चित्र बनाए।
- शंकर ने केले ख़रीदे।
- श्याम ने एक फ़ोन ख़रीदा।
- मैंने कपड़े धोए।
द्विकर्मक क्रिया किसे कहते हैं ?
यदि किसी वाक्य में पूर्ण सकर्मक Kriya के साथ दो कर्म (प्रधान कर्म एवं गौण कर्म) प्रयुक्त हुए हों तो, उसे द्विकर्मक Kriya कहते हैं। जैसे-
- मां बच्चों को भोजन खिला रही है।
- मैं आपको हिंदी पढ़ा रहा हूँ।
- अध्यापक छात्रों को पाठ पढ़ा रहा था।
- राम ने कृष्ण को पत्र लिखा।
- मैंने साबुन से कपड़े धोए।
- शंकर ने बाज़ार से केले ख़रीदे।
इन सभी उदाहरणों में दो कर्मों का प्रयोग किया गया है। अतः यहाँ द्विकर्मक Kriya होगा।
अपूर्ण सकर्मक क्रिया किसे कहते है?
सकर्मक Kriya का वह रूप जिसमें Kriya के साथ ‘कर्म’ के अतिरिक्त भी किसी न किसी पूरक शब्द (संज्ञा या विशेषण) की आवश्यकता रहती हो, उस Kriya को अपूर्ण सकर्मक Kriya कहते हैं।
चार क्रियाएँ – मानना, समझना, चुनना (चयन) एवं बनाना (चयन के अर्थ में) सदैव अपूर्ण सकर्मक Kriya होती हैं।
आसान शब्दों में कहें तो अपूर्ण सकर्मक Kriya में पूरक शब्दों के बिना काम का पूर्ण होना नहीं पाया जाता। जैसे-
- नवीन सचिन को चतुर समझता है।
- वह मुझे अपना भाई मानता है।
- हमने सुमेर को समिति का अध्यक्ष बनाया।
- वह अपने आपको हिटलर समझता है।
- रमेश महेश को अपना दुश्मन समझता है।
- देश ने मोदी को प्रधानमंत्री चुना था।
दिए गए सभी उदाहरणों में चतुर, भाई, अध्यक्ष, हिटलर, दुश्मन एवं प्रधानमंत्री पूरक शब्द हैं। अतः यहाँ अपूर्ण सकर्मक Kriya होगी। क्योकि इन शब्दों के बिना सकर्मक Kriya अपूर्ण रहेगी।
अकर्मक क्रिया किसे कहते हैं?
वे क्रियाएँ जिनका प्रभाव वाक्य में प्रयुक्त कर्ता पर पड़ता है उन्हें अकर्मक Kriya कहते हैं। अकर्मक Kriya का अर्थ कर्म के बिना होता है, अर्थात अकर्मक Kriya के साथ कर्म प्रयुक्त नहीं होता है।
वें क्रियाएं जिनके साथ कर्म ना प्रयुक्त होता हो तथा Kriya का प्रभाव कर्ता पर पड़ता हो, उसे अकर्मक Kriya कहते हैं। जैसे- रीता रोती है, सीता खाती है, राम बैठा है आदि।
अकर्मक शब्द अ और कर्मक से मिलकर बना है, जहाँ अ उपसर्ग का अर्थ बिना तथा कर्मक का अर्थ कर्म के होता है।
उदहारण –
- वह जा रहा है।
- रमेश दौड़ रहा है।
- मैं रात भर नहीं सोया।
- मुकेश बैठा है।
- मैं एक अध्यापक था।
- वह मेरा मित्र है।
- बच्चा रो रहा है।
- पिताजी आ रहे हैं।
उपरोक्त सभी उदाहरणों में कर्म कारक उपस्थित नहीं है। अतः यहाँ अकर्मक Kriya है।
हिंदी व्याकरण के अनुसार कुछ क्रियाएँ ऐसी भी होती हैं जो प्रयोग की दृष्टि से सकर्मक एवं अकर्मक दोनों ही होती हैं। जैसे:-
- खुजलाना, भरना, लजाना, भूलना, बदलना, ललचाना, घबराना इत्यादि।
अकर्मक क्रिया के भेद
अकर्मक Kriya के दो भेद होते हैं-
- अपूर्ण अकर्मक Kriya
- पूर्ण अकर्मक Kriya
अपूर्ण अकर्मक क्रिया किसे कहते है?
अकर्मक Kriya का वह रूप जिसमें कर्ता के विषय में पूर्ण विधान करने के लिए Kriya के साथ किसी संज्ञा या विशेषण शब्द की आवश्यकता रहती हो उसे अपूर्ण अकर्मक Kriya कहते हैं। अर्थात अपूर्ण अकर्मक Kriya में संज्ञा या विशेषण के बिना Kriya अपूर्ण रहती है।
अपूर्ण अकर्मक Kriya में जो संज्ञा या विशेषण शब्द कर्ता का पूर्ण आशय पूरा करने के लिए प्रयुक्त होते हैं उन्हें पूर्ति कहते हैं। हिंदी व्याकरण के अनुसार दिखाना, निकलना, ठहरना, बनना, रहना, होता जैसी क्रियाएँ अपूर्ण अकर्मक क्रियाएँ होती है। जैसे-
- साधु चोर निकला।
- वह बीमार रहा।
- आप मेरे मित्र ठहरे।
- वह व्यक्ति विदेशी दिखता है।
- रमेश चतुर है।
- विजय बेईमान निकला।
उपरोक्त दिए गए उदाहरणों में चोर, बीमार, मित्र, चतुर आदि शब्द पूर्ति शब्द हैं। तथा ये सभी उदहारण अपूर्ण अकर्मक Kriya के उदहारण है।
पूर्ण अकर्मक क्रिया किसे कहते है?
अकर्मक Kriya का वह रूप जिसमें Kriya के साथ न तो कर्म और न ही किसी पूर्ति शब्द या पूरक शब्द की आवश्यकता होती हो उसे पूर्ण अकर्मक Kriya कहते हैं। वास्तव में अकर्मक Kriya ही पूर्ण अकर्मक Kriya होती है, अर्थात अकर्मक Kriya का वास्तविक रूप ही पूर्ण अकर्मक Kriya होती है। जैसे-
- बच्चा रो रहा है।
- कुछ बालक हँस रहे थे।
- वह रात भर नहीं सोया।
- चिड़िया आकाश में उड़ती है।
इन सभी उदाहरणों में कर्म नहीं है अतः और न ही किसी पूर्ति शब्द अथवा पूरक शब्द की आवश्यकता पड़ रही है अतः ये सभी पूर्ण अकर्मक Kriya के उदहारण है।
सकर्मक और अकर्मक क्रिया को कैसे पहचाने?
यदि किसी वाक्य में कर्म उपस्थित नहीं होता है, तो वह वाक्य में प्रयुक्त Kriya अकर्मक Kriya होगी। अन्यथा, वह सकर्मक Kriya होगी। सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं को पहचानने के लिए आपको वाक्य में प्रयुक्त Kriya से पहले “क्या” लगाकर वाक्य को सवाल की तरह पढ़ना होगा। यदि उस वाक्य में सकर्मक Kriya होती है, तो वाक्य में प्रयुक्त “कर्म” के रूप में जवाब मिलेगा। और यदि कर्म के रूप में जवाब नहीं मिलता है, तो उस वाक्य में अकर्मक Kriya होती है।
उदाहरण के तौर पर, “राहुल पढ़ रहा है।” इस वाक्य में हम Kriya पद “पढ़ रहा है” से पहले “क्या” लगाकर वाक्य को पढ़ते हैं – “राहुल क्या पढ़ रहा है?” इस सवाल का जवाब होगा – “नहीं मिला”। इसलिए, इस वाक्य में “पढ़ रहा है” सकर्मक Kriya नहीं है, यह अकर्मक Kriya है।
सकर्मक क्रिया और अकर्मक क्रिया में अंतर
सकर्मक Kriya और अकर्मक Kriya दो प्रमुख Kriya के प्रकार हैं जो Kriya के परिणाम को व्यक्त करते हैं।
सकर्मक क्रिया: सकर्मक Kriya में, Kriya का कर्म (वस्तु या प्रभुत्व) प्रकट होता है या Kriya का प्रभाव किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान पर होता है। इसके द्वारा क्रियाकलाप के कर्मकारक को क्रियापद से पहले संकेतित किया जाता है। यह Kriya व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य या क्रियाकलाप का वर्णन करती है। जैसे-
उदाहरण:
- राम गीता पढ़ रहा है। (यहां “गीता” सकर्मक Kriya का कर्म है।)
- मैंने एक पत्र लिखा। (यहां “पत्र” सकर्मक Kriya का कर्म है।)
अकर्मक क्रिया: अकर्मक Kriya में, Kriya का कर्म प्रकट नहीं होता है या Kriya का प्रभाव किसी व्यक्ति, वस्तु या स्थान पर नहीं होता है। इसके द्वारा क्रियाकलाप के कर्मकारक को क्रियापद से पहले संकेतित नहीं किया जाता है। यह Kriya की निष्प्रभावता या क्रियाकलाप के बारे में साधारण बातें बयान करती है। जैसे-
उदाहरण:
- राम पढ़ता है। (यहां कोई सकर्मक कर्म नहीं है, इसलिए यह अकर्मक Kriya है।)
- बच्चे खेल रहे हैं। (यहां कोई सकर्मक कर्म नहीं है, इसलिए यह अकर्मक Kriya है।)
इस तरह, सकर्मक Kriya व्यक्ति या वस्तु के साथ संबंधित होती है, जबकि अकर्मक Kriya सिर्फ क्रियाकलाप को व्यक्त करती है।
सकर्मक Kriya | अकर्मक Kriya |
---|---|
सकर्मक Kriya में कर्ता, Kriya और कर्म तीनों उपस्थित होते हैं। | अकर्मक Kriya में कर्ता और Kriya तो होते हैं, लेकिन कर्म नहीं होता। |
सकर्मक Kriya में कर्ता द्वारा किए गए कार्य का प्रभाव दूसरी चीजों पर पड़ता है। | अकर्मक Kriya में कर्ता द्वारा किए गए कार्य से किसी और चीज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। |
सीता घर जाती है, बच्चे गणित पढ़ते हैं इत्यादि सकर्मक Kriya के उदाहरण है | बच्चे रोते हैं, सीता हंसती है इत्यादि अकर्मक Kriya के उदाहरण है। |
2.प्रयोग तथा संरचना के आधार पर क्रिया के भेद
संरचना या प्रयोग के आधार पर Kriya के 11 भेद होते है, जो निम्न प्रकार हैं-
- सामान्य Kriya
- सहायक Kriya
- संयुक्त Kriya
- प्रेरणार्थक Kriya
- पूर्वकालिक Kriya
- सजातीय Kriya
- नामधातु Kriya
- मूल Kriya
- नामिक Kriya
- समस्त Kriya
- विधि Kriya
सामान्य क्रिया किसे कहते हैं?
यह Kriya का सामान्य रूप होता है, जिसमें एक कार्य एवं एक ही Kriya पद होता है। जब किसी वाक्य में एक ही Kriya पद प्रयुक्त किया गया हो तो, उसे सामान्य Kriya कहते हैं। जैसे-
सामान्य क्रिया के उदाहरण
- रवि पुस्तक पढ़ता है।
- श्याम आम खाता है।
- श्याम जाता है।
- राधा आई।
- विजय गया।
सहायक क्रिया किसे कहते हैं?
किसी वाक्य में मुख्य Kriya की सहायता करने वाले पद को सहायक Kriya कहते हैं, अर्थात किसी वाक्य में वह पद जो मुख्य Kriya के साथ लगकर वाक्य को पूर्ण करता है, उसे सहायक Kriya कहते हैं। सहायक Kriya वाक्य के काल का परिचायक होती है। जैसे-
सहायक क्रिया के उदाहरण
- रवि पढ़ता है।
- मैंने पुस्तक पढ़ ली है।
- विजय ने अपना खाना मेज़ पर रख दिया है।
प्रथम वाक्य में ‘पढ़ता’ मुख्य Kriya है। ‘है’ इस मुख्य Kriya की सहायता करने वाला पद है। इसी प्रकार द्वितीय वाक्य में ‘पढ़’ मुख्य Kriya है तथा ‘ली है’ सहायक Kriya पद है, जो मुख्य Kriya के साथ जुड़कर वाक्य को पूरा कर रहा है।
संयुक्त क्रिया किसे कहते हैं ?
वह Kriya जो दो अलग-अलग क्रियाओं के योग से बनती है, उसे संयुक्त Kriya कहते हैं। अथवा दो या दो से अधिक क्रियाएँ मिलकर जब किसी एक पूर्ण Kriya का बोध कराती हैं, तो उन्हें संयुक्त Kriya कहते हैं। जैसे-
- बच्चा विद्यालय से लौट आया।
- किशोर रोने लगा।
- वह घर पहुँच गया।
उपर्युक्त वाक्यों में एक से अधिक क्रियाएँ हैं, जैसे- लौट, आया; रोने, लगा; पहुँच, गया। यहाँ ये सभी क्रियाएँ मिलकर एक ही कार्य पूर्ण कर रही हैं। अतः ये संयुक्त क्रियाएँ हैं।
संयुक्त क्रिया के उदाहरण
- रजनी ने खाना खा लिया।
- मैंने पुस्तक पढ़ डाली है।
- शंकर ने खाना बना लिया।
प्रथम वाक्य में ‘खाना’ एवं ‘खा’ मिलकर एक Kriya बना रहे हैं। अतः ‘खाना खा’ संयुक्त Kriya होगी। इसी प्रकार द्वितीय वाक्य में ‘पढ़’ एवं ‘डाली’ मिलकर एक Kriya बना रहे हैं। अतः पर ‘पढ़ डाली’ संयुक्त Kriya होगी।
संयुक्त Kriya में पहली Kriya मुख्य Kriya होती है तथा दूसरी Kriya रंजक Kriya । रंजक Kriya मुख्य Kriya के साथ जुड़कर अर्थ में विशेषता लाती है। जैसे-
- माता जी बाजार से आ गई।
- इस वाक्य में ‘आ’ मुख्य Kriya है तथा ‘गई’ रंजक Kriya । दोनों क्रियाएँ मिलकर संयुक्त Kriya ‘आना’ का अर्थ दर्शा रही हैं।
विधि और आज्ञा को छोड़कर सभी क्रियापद दो या अधिक क्रियाओं के योग से बनते हैं, किन्तु संयुक्त क्रियाएँ इनसे भित्र है, क्योंकि जहाँ एक ओर साधारण क्रियापद ‘हो’, ‘रो’, ‘सो’, ‘खा’ इत्यादि धातुओं से बनते है, वहाँ दूसरी ओर संयुक्त क्रियाएँ ‘होना’, ‘आना’, ‘जाना’, ‘रहना’, ‘रखना’, ‘उठाना’, ‘लेना’, ‘पाना’, ‘पड़ना’, ‘डालना’, ‘सकना’, ‘चुकना’, ‘लगना’, ‘करना’, ‘भेजना’, ‘चाहना’ इत्यादि क्रियाओं के योग से बनती हैं।
इसके अतिरिक्त, सकर्मक तथा अकर्मक दोनों प्रकार की संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं। जैसे-
- अकर्मक क्रिया से- लेट जाना, गिर पड़ना।
- सकर्मक क्रिया से- बेच लेना, काम करना, बुला लेना, मार देना।
संयुक्त Kriya की एक विशेषता यह है कि उसकी पहली Kriya प्रायः प्रधान होती है और दूसरी उसके अर्थ में विशेषता उत्पत्र करती है। जैसे-
- मैं पढ़ सकता हूँ।
- इसमें ‘सकना’ Kriya ‘पढ़ना’ Kriya के अर्थ में विशेषता उत्पत्र करती है। हिन्दी में संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग अधिक होता है।
संयुक्त क्रिया के भेद
अर्थ के अनुसार संयुक्त Kriya के 11 मुख्य भेद मने गए है जो निम्नलिखित हैं-
- आरम्भबोधक संयुक्त Kriya
- समाप्तिबोधक संयुक्त Kriya
- अवकाशबोधक संयुक्त Kriya
- अनुमतिबोधक संयुक्त Kriya
- नित्यताबोधक संयुक्त Kriya
- आवश्यकताबोधक संयुक्त Kriya
- निश्चयबोधक संयुक्त Kriya
- इच्छाबोधक संयुक्त Kriya
- अभ्यासबोधक संयुक्त Kriya
- शक्तिबोधक संयुक्त Kriya
- पुनरुक्त संयुक्त Kriya
आरम्भबोधक संयुक्त क्रिया
जिस संयुक्त Kriya से Kriya के आरम्भ होने का बोध होता है, उसे ‘आरम्भबोधक संयुक्त Kriya‘ कहते हैं। जैसे-
- वह पढ़ने लगा
- पानी बरसने लगा
- राम खेलने लगा।
समाप्तिबोधक संयुक्त क्रिया
जिस संयुक्त Kriya से मुख्य Kriya की पूर्णता, व्यापार की समाप्ति का बोध हो, वह ‘समाप्तिबोधक संयुक्त Kriya ‘ है। जैसे-
- वह खा चुका है
- वह पढ़ चुका है।
- धातु के आगे ‘चुकना’ जोड़ने से समाप्तिबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया
जिससे Kriya को निष्पत्र करने के लिए अवकाश का बोध हो, वह ‘अवकाशबोधक संयुक्त Kriya‘ है। जैसे-
- वह मुश्किल से सोने पाया
- जाने न पाया।
अनुमतिबोधक संयुक्त क्रिया
जिससे कार्य करने की अनुमति दिए जाने का बोध हो, वह ‘अनुमतिबोधक संयुक्त Kriya‘ है। जैसे-
- मुझे जाने दो
- मुझे बोलने दो।
- यह Kriya ‘देना’ धातु के योग से बनती है।
नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया
जिससे कार्य की नित्यता, उसके बन्द न होने का भाव प्रकट हो, वह ‘नित्यताबोधक संयुक्त Kriya‘ है। जैसे-
- हवा चल रही है
- पेड़ बढ़ता गया
- तोता पढ़ता रहा।
- मुख्य Kriya के आगे ‘जाना’ या ‘रहना’ जोड़ने से नित्यताबोधक संयुक्त Kriya बनती है।
आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रिया
जिससे कार्य की आवश्यकता या कर्तव्य का बोध हो, वह ‘आवश्यकताबोधक संयुक्त Kriya‘ है। जैसे-
- यह काम मुझे करना पड़ता है
- तुम्हें यह काम करना चाहिए।
- साधारण Kriya के साथ ‘पड़ना’ ‘होना’ या ‘चाहिए’ क्रियाओं को जोड़ने से आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
निश्चयबोधक संयुक्त क्रिया संयुक्त क्रिया
जिस संयुक्त Kriya से मुख्य Kriya के व्यापार की निश्र्चयता का बोध हो, उसे ‘निश्र्चयबोधक संयुक्त Kriya‘ कहते हैं। जैसे-
- वह बीच ही में बोल उठा
- उसने कहा- मैं मार बैठूँगा
- वह गिर पड़ा
- अब दे ही डालो।
- इस प्रकार की क्रियाओं में पूर्णता और नित्यता का भाव वर्तमान है।
इच्छाबोधक संयुक्त क्रिया
इससे Kriya के करने की इच्छा प्रकट होती है। जैसे-
- वह घर आना चाहता है
- मैं खाना चाहता हूँ।
- Kriya के साधारण रूप में ‘चाहना’ Kriya जोड़ने से इच्छाबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
अभ्यासबोधक संयुक्त क्रिया
इससे Kriya के करने के अभ्यास का बोध होता है। सामान्य भूतकाल की Kriya में ‘करना’ Kriya लगाने से अभ्यासबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं। जैसे-
- यह पढ़ा करता है
- तुम लिखा करते हो
- मैं खेला करता हूँ।
शक्तिबोधक संयुक्त क्रिया
इससे कार्य करने की शक्ति का बोध होता है। जैसे-
- मैं चल सकता हूँ
- वह बोल सकता है।
- इसमें ‘सकना’ Kriya जोड़ी जाती है।
पुनरुक्त संयुक्त क्रिया
जब दो समानार्थक अथवा समान ध्वनिवाली क्रियाओं का संयोग होता है, तब उन्हें ‘पुनरुक्त संयुक्त Kriya ‘ कहते हैं। जैसे–
- वह पढ़ा-लिखा करता है
- वह यहाँ प्रायः आया-जाया करता है
- पड़ोसियों से बराबर मिलते-जुलते रहो।
प्रेरणार्थक क्रिया किसे कहते हैं?
वे क्रियाएँ जिन्हें कर्ता स्वयं करने के बजाय किसी दूसरे को Kriya करने के लिए प्रेरित करता है, उन्हें प्रेरणार्थक Kriya कहते हैं। प्रेरणार्थक Kriya की रचना सकर्मक एवं अकर्मक दोनों प्रकार की क्रियाओं से हो सकती है, लेकिन प्रेरणार्थक Kriya बन जाने के पश्चात वह सदैव सकर्मक ही होती है। जैसे-
प्रेरणार्थक क्रिया के उदाहरण
- रतन महेश से पत्र लिखवाता है।
- सविता कविता से कपड़े धुलवाती है।
- अध्यापक बच्चों से पाठ पढ़वाता है।
- रवि माँ से खाना बनवाता है।
- शंकर विजय से साईकिल चलवाता है।
इस वाक्य में कर्ता रतन महेश से पत्र लिखवाता है। अतः इस वाक्य में ‘लिखवाता है’ प्रेरणार्थक Kriya है। द्वितीय वाक्य में कर्ता सविता कविता से कपड़े धुलवाती है। अतः इस वाक्य में ‘ धुलवाती है ‘ प्रेरणार्थक Kriya है। इसी तरह शेष तीनों उदाहरणों में भी प्रेरणार्थक Kriya है।
प्रेरणार्थक क्रिया में कितने कर्ता होते हैं?
प्रेरणार्थक Kriya में दो कर्ता होते हैं।-
- प्रेरक कर्ता –
- वह कर्ता जो Kriya करने के लिए प्रेरणा देता है।
- प्रेरित कर्ता –
- वह कर्ता जो Kriya करने के लिए प्रेरणा देता है।
प्रेरणार्थक क्रिया के भेद
प्रेरणार्थक Kriya दो प्रकार की होती है-
- प्रथम प्रेरणार्थक Kriya या प्रत्यक्ष प्रेरणार्थक Kriya
- द्वितीय प्रेरणार्थक रूप या अप्रत्यक्ष प्रेरणार्थक Kriya
प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया या प्रत्यक्ष प्रेरणार्थक क्रिया
Kriya का वह रूप जिसमें कर्ता स्वयं भी कार्य में सम्मिलित होता हुआ कार्य करने की प्रेरणा देता है तो Kriya के उस रूप को प्रथम प्रेरणार्थक Kriya कहते हैं। जैसे-
- मोहन सबको भजन सुनाता है।
- दिए गए वाक्य में मोहन द्वारा भजन गाए जाने पर सुनने का कार्य किसी अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा किया गया है।
इसी प्रकार इसके अन्य उदहारण है-
- गीता बच्चों को हिंदी पढ़ाती है।
- वह सबको भजन सुनाता है।
- राम श्याम से कपड़े धुलवाता है।
- शीला मीना से चाय बनवाती है।
- पिता पुत्र से पत्र लिखवाता है।
- माँ बच्चे को खाना खिलाती है।
- महेश बच्चों को रुलाता है।
द्वितीय प्रेरणार्थक रूप या अप्रत्यक्ष प्रेरणार्थक क्रिया
Kriya का वह रूप जिसमें कर्ता स्वयं कार्य न करके दूसरों को कार्य करने की प्रेरणा देता है उसे द्वितीय प्रेरणार्थक Kriya कहते हैं। जैसे–
- श्याम अध्यापक से बच्चों को पाठ पढ़वाता है।
- दिए गए वाक्य में श्याम अध्यापक को प्रेरणा दे रहा है की वह बच्चों को पाठ पढ़ाए, इसलिए इस वाक्य में प्रेरणार्थक Kriya का द्वितीय प्रेरणार्थक रूप होगा।
इसी प्रकार इसके अन्य उदहारण है-
- वह अध्यापक से बच्चों को हिंदी सिखवाता है
- वह महेश से बच्चोँ को हँसवाता है.
- सुरेश आज नौकर से गाड़ी धुलवाना।
- आज तुम विजय से चाय बनवाना।
- माँ आज खाने में दाल बनवाना।
प्रेरणार्थक क्रिया बनाने के नियम
- मूल धातु के अन्त में आना जोड़ने से प्रथम प्रेरणार्थक रूप एवं मूल धातु के अन्त में वाना जोड़ने से द्वितीय प्रेरणार्थक रूप बनता है।
मूल धातु | प्रथम प्रेरणार्थक रूप | द्वितीय प्रेरणार्थक रूप |
---|---|---|
उठ | उठाना | उठवाना |
गिर | गिराना | गिरवाना |
कट | काटना | कटवाना |
पढ़ | पढ़ाना | पढ़वाना |
सुन | सुनाना | सुनवाना |
चल | चलाना | चलवाना |
- दो अक्षरों वाली मूल धातु में ऐ और औ को छोड़कर सभी स्वर मात्राओं के लघु रूप का दीर्घ रूप हो जाता है।
मूल धातु | प्रथम प्रेरणार्थक रूप | द्वितीय प्रेरणार्थक रूप |
---|---|---|
ओढ़णा | उढ़ाणा | उढ़वाणा |
जागना | जगाना | जगवाना |
जीतना | जिताना | जितवाना |
डूबना | डुबाना | डुबवाना |
बोलना | बुलाना | बुलवाना |
- एक अक्षर वाली घातु के अन्त में ला और लवा जोड़कर दीर्घ स्वर मात्रा को लघु मात्रा कर दिया जाता है।
मूल धातु | प्रथम प्रेरणार्थक रूप | द्वितीय प्रेरणार्थक रूप |
---|---|---|
खाना | खिलाना | खिलवाना |
देना | दिलाना | दिलवाना |
पीना | पिलाना | पिलवाना |
सीना | सिलाना | सिलवाना |
सोना | सुलाना | सुलवाना |
प्रेरणार्थक क्रियाओं के कुछ अन्य उदाहरण
मूल क्रिया | प्रथम प्रेरणार्थक | द्वितीय प्रेरणार्थक |
उठना | उठाना | उठवाना |
उड़ना | उड़ाना | उड़वाना |
चलना | चलाना | चलवाना |
देना | दिलाना | दिलवाना |
जीना | जिलाना | जिलवाना |
लिखना | लिखाना | लिखवाना |
जगना | जगाना | जगवाना |
सोना | सुलाना | सुलवाना |
पीना | पिलाना | पिलवाना |
देना | दिलाना | दिलवाना |
धोना | धुलाना | धुलवाना |
रोना | रुलाना | रुलवाना |
घूमना | घुमाना | घुमवाना |
पढ़ना | पढ़ाना | पढ़वाना |
देखना | दिखाना | दिखवाना |
खाना | खिलाना | खिलवाना |
पूर्वकालिक क्रिया किसे कहते हैं?
यदि किसी वाक्य में दो क्रियाएँ एक साथ आई हों तथा उनमें से एक Kriya पहले संपन्न हुई हो तो, पहले संपन्न हुई Kriya को पूर्वकालिक Kriya कहते हैं। मूल धातु के साथ ‘कर’ प्रत्यय लगाने से पूर्वकालिक Kriya बनती है। जैसे–
पूर्वकालिक क्रिया के उदाहरण
- विकास पढ़कर सो गया।
- विजय ने खाना खाकर चाय पी।
- श्याम खेलकर नहाने जाएगा।
- सीता नहाकर मंदिर जाएगी।
- वह नहाकर चला गया।
प्रथम वाक्य में ‘पढ़कर’ एवं ‘सो गया’ दो क्रियाएं एक साथ प्रयुक्त हुई, जिसमें से पढ़कर पहले संपन्न हुई है। अतः इस वाक्य में ‘पढ़कर’ पूर्वकालिक Kriya है।
तात्कालिक क्रिया किसे कहते हैं ?
पूर्वकालिक Kriya का एक रुप तात्कालिक Kriya भी होता है, जिसमें किसी एक Kriya के समाप्त होने पर तत्काल दूसरी Kriya आरंभ होती है। मूल धातु शब्द के साथ ‘ते’ जोड़कर एक तात्कालिक क्रियापद बनता है। जैसे:-
- पुलिस के आते ही चोर भाग गया।
- दिए गए उदाहरण में एक Kriya के समाप्त होते ही दूसरी Kriya तत्काल प्रभाव से प्रारंभ हुई है। अतः उपरोक्त उदाहरण में ‘आते ही’ तात्कालिक Kriya है।
तात्कालिक क्रिया के उदाहरण
- मेरे नहाते ही सोनू आ गया।
- राधा के जाते ही सीता चली गई।
- वह खाना खाते ही भाग गया।
- श्याम के उठते ही राम बैठ गया।
- कमलेश के आते ही राधा चली गई।
दिए गए सभी उदाहरणों में प्रत्येक वाक्य में दो क्रियाएँ एक साथ प्रयुक्त हुई है। प्रत्येक वाक्य में एक Kriya के समाप्त होते ही दूसरी Kriya तत्काल प्रभाव से घटित हो रही है। अतः उपरोक्त सभी उदाहरण तात्कालिक Kriya के उदाहरण होंगे।
सजातीय क्रिया किसे कहते हैं?
Kriya का वह रूप जिसमें कर्म तथा Kriya दोनों एक ही धातु से बने हों तथा एक साथ प्रयुक्त हुए हों तो, उन्हें सजातीय Kriya कहते हैं। जैसे-
सजातीय क्रिया के उदाहरण
- भारत ने लड़ाई लड़ी।
- इसमें कर्म लड़ाई है तथा Kriya लड़ी है। स्पष्ट है की दोनों एक ही धातु लड़ से बने है। अतः यहाँ सजातीय Kriya होगी।
कृदंत क्रिया किसे कहते हैं?
वे क्रियाएं, जो Kriya पदों के साथ प्रत्यय लगाने से बनती है, उन्हें कृदंत Kriya कहते हैं। जैसे-
कृदंत क्रिया के उदाहरण
- चल धातु से = चलना, चलता, चलकर
- लिख धातु से = लिखना, लिखता, लिखकर
नामधातु क्रिया किसे कहते हैं?
आमतौर पर सभी क्रियाओं की रचना किसी न किसी धातु से होती है, लेकिन जब किसी Kriya की रचना धातु से ना होकर संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण से होती है तो, उस Kriya को नामधातु Kriya कहते हैं। जैसे-
नामधातु क्रिया के उदाहरण
- अपना (सर्वनाम) + ना = अपनाना
- चमक (संज्ञा) + ना = चमकना, चमकाना
मूल क्रिया किसे कहते हैं?
जो Kriya मूल धान से ही बनती है, उसे मूल Kriya या रूढ़ Kriya कहते है। जैसे –
- पढ़ना, रोना, हँसना, लिखना आदि, ये सभी क्रियाएँ पढ़, रो, हँस, लिख के मूल धातु से बनी है।
नामिक क्रिया किसे कहते हैं?
Kriya के साथ यदि संज्ञा और विशेषण जैसे शब्दों को भी साथ लगाया जाए तो उन्हें नामिक Kriya कहा जाता है। जैसे-
- दिखाई देना, दाखिल होना, सुनाई पड़ना, साथ चलना आदि । कभी-कभी इन्हे मिश्र Kriya भी कहा जाता है।
समस्त क्रिया किसे कहते हैं?
ऐसे शब्द जो दो क्रियाओं से मिलकर बने हुए होते हैं उन्हें समस्त Kriya कहा जाता है । यह शब्द तो एक ही होते हैं लेकिन इनमें दो क्रियाओं का उपयोग किया जाता है। जैसे-
- खेलकूद, उठबैठ, चलफिर, मारपीट, कहसुन यह सभी ऐसे शब्द है जो दो क्रियाओं से मिलकर के बने हुए हैं। अतः इन्हें समस्त Kriya कहते हैं।
विधि क्रिया किसे कहते हैं?
ऐसे वाक्य जिनमें आज्ञा वाचक शब्द का प्रयोग किया जा रहा है तो ऐसे वाक्यों में पाए जाने वाले क्रियाओं को विधि Kriya कहा जाता है। जैसे-
- मोहन यहाँ चले जाओ ।
- तुम अपना काम करते रहो ।
काल के आधार पर क्रिया के भेद
काल के आधार पर Kriya के तीन भेद होते हैं। जो इस प्रकार है –
- भूतकालिक Kriya
- वर्तमानकालिक Kriya
- भविष्यतकालिक Kriya
भूतकालिक क्रिया किसे कहते हैं?
वे क्रियाएँ, जिनके द्वारा भूतकाल में कार्य के संपन्न होने का बोध होता है, उन्हें भूतकालिक क्रियाएँ कहते हैं। जैसे-
- विकास ने पुस्तक पढ़ ली थी।
- रमेश सुबह ही चला गया था।
भूतकालिक क्रिया के भेद
भूतकालिक क्रिया के 6 भेद होते हैं। जो निम्न हैं –
- सामान्य भूतकालिक Kriya
- आसन्न भूतकालिक Kriya
- पूर्ण भूतकालिक Kriya
- संदिग्ध भूतकालिक Kriya
- अपूर्ण भूतकालिक Kriya
- हेतुहेतुमद् भूतकालिक Kriya
सामान्य भूतकालिक क्रिया
Kriya के जिस रूप से कार्य के बीते हुए समय में होने का बोध होता हो, लेकिन कार्य के पूर्ण होने का निश्चित समय का पता नहीं चलता हो, Kriya के उस रूप को सामान्य भूतकालिक Kriya कहते हैं।
यदि किसी वाक्य के अंत में या, यी, ये अथवा आ, ए, ई आया हो तो, उस वाक्य में प्रयुक्त Kriya सामान्य भूतकालिक Kriya होगी। जैसे-
- नवीन ने खाना खाया।
- रमेश ने पानी पिया।
- महेश ने चारपाई बनायी।
- विक्की ने शराब पी। (ई)
आसन्न भूतकालिक क्रिया
Kriya के जिस रूप से कार्य के कुछ समय पूर्व ही समाप्त होने का बोध होता हो, उसे आसन्न भूतकालिक Kriya कहते हैं।
यदि किसी वाक्य के अंत में चुका है, चुकी है, चुके हैं, चुका हूँ, चुकी हूँ अथवा या, ये, यी, आ, ए, ई के साथ में हैं, है प्रयुक्त किया गया हो तो, उस वाक्य में प्रयुक्त Kriya आसन्न भूतकालिक Kriya होगी। जैसे-
- नवीन खाना खा चुका है।
- रमेश ने पानी पिया है।
- महेश ने चारपाई बना ली है।
- बच्चे स्कूल गए हैं।
- मैं नहा चुका हूँ।
- उसने फल तोड़ा है।
पूर्ण भूतकालिक क्रिया
Kriya के जिस रूप से कार्य के बहुत समय पूर्व समाप्त होने का बोध होता हो, उसे पूर्ण भूतकालिक Kriya कहते हैं।
यदि किसी वाक्य के अंत में चुका था, चुकी थी, चुके थे अथवा या, ये, यी, आ, ए, ई के साथ था, थे, थी लगा हो तो, उस वाक्य में प्रयुक्त Kriya पूर्ण भूतकालिक Kriya होगी। जैसे-
- नवीन खाना खा चुका था।
- रमेश ने पानी पी लिया था।
- महेश ने चारपाई बना ली थी।
- बच्चे स्कूल गए थे।
- मैं नहा चुका था।
- उसने फल तोड़ा था।
संदिग्ध भूतकालिक क्रिया
Kriya के जिस रूप से कार्य के बीते हुए समय में होने पर संशय का बोध हो तो, Kriya के उस रूप को संदिग्ध भूतकालिक Kriya कहते हैं।
यदि किसी वाक्य के अंत में चुका होगा, चुकी होगी, चुके होंगे अथवा या, ये, यी, आ, ए, ई के साथ होगा, होगी, होंगे प्रयुक्त हुआ हो तो, उस वाक्य में प्रयुक्त Kriya संदिग्ध भूतकालिक Kriya होगी। जैसे-
- नवीन खाना खा चुका होगा।
- रमेश ने पानी पी लिया होगा।
- महेश ने चारपाई बना ली होगी।
- बच्चे स्कूल गए होंगे।
- उसने फल तोड़ा होगा।
- सीता सो चुकी होगी।
- वह जा चुके होंगे।
अपूर्ण भूतकालिक क्रिया
Kriya के जिस रूप से कार्य का बीते हुए समय में जारी रहने का बोध होता हो, उसे अपूर्ण भूतकालिक Kriya कहते हैं।
यदि किसी वाक्य के अंत में रहा था, रही थी, रहे थे करता था, करती थी, करते थे आ रहा हो तो, उस वाक्य में प्रयुक्त Kriya अपूर्ण भूतकालिक Kriya होगी। जैसे-
- नवीन खाना खा रहा था।
- सीता सो रही थी।
- वह बचपन में बहुत शरारत करता था।
- हम खेत में जाया करते थे।
हेतुहेतुमद् भूतकालिक क्रिया
भूतकालिक Kriya का वह रूप जिसमें बीते हुए समय के साथ कोई शर्त प्रयुक्त हुई हो तो, Kriya के उस रूप को हेतुहेतुमद् भूतकालिक Kriya कहते हैं।
इस तरह के वाक्यों में भुतकाल में होने वाली कोई Kriya किसी अन्य Kriya पर निर्भर होती है। जैसे-
- यदि हम पढ़ते तो सफल हो जाते।
- अगर मैं वहां होता तो ऐसा कभी ना होता।
वर्तमानकालिक क्रिया किसे कहते हैं?
वे क्रियाएँ, जिनके द्वारा वर्तमान में काम के संपन्न होने का बोध होता है, उन्हें वर्तमानकालिक क्रियाएँ कहते हैं।
वर्तमानकालिक क्रिया के भेद
वर्तमानकालिक Kriya के 5 भेद होते हैं। जो निम्न हैं –
- सामान्य वर्तमानकालिक Kriya
- अपूर्ण वर्तमानकालिक Kriya
- संदिग्ध वर्तमानकालिक Kriya
- आज्ञार्थक वर्तमानकालिक Kriya
- सम्भाव्य वर्तमानकालिक Kriya
सामान्य वर्तमानकालिक क्रिया
वर्तमानकालिक Kriya का वह रूप जिससे कार्य का सामान्य रूप से वर्तमान समय में होने का बोध हो, Kriya के उस रूप को सामान्य वर्तमानकालिक Kriya कहते हैं।
यदि किसी वाक्य के अंत में ता है, ती है, ते हैं, ता हूँ, ती हूँ आया हो तो, उस वाक्य में प्रयुक्त Kriya सामान्य वर्तमानकालिक Kriya होगी। जैसे-
- रमेश खाना खाता है।
- रवि चाय बनाता है।
- हम स्कूल जाते हैं।
- मैं प्रतिदिन व्यायाम करता हूँ।
अपूर्ण वर्तमानकालिक क्रिया
वर्तमानकालिक Kriya का वह रूप जिससे कार्य का वर्तमान समय में जारी रहने का बोध हो, Kriya के उस रूप को अपूर्ण वर्तमानकालिक Kriya कहते हैं।
यदि किसी वाक्य के अंत में रहा है, रही है, रहे हैं, रही हूँ, रहा हूँ में से कोई सहायक Kriya प्रयुक्त हुई हो तो, उस वाक्य में प्रयुक्त Kriya अपूर्ण वर्तमानकालिक Kriya होगी। जैसे-
- रमेश खाना खा रहा है।
- सीता चाय बना रही है।
- वह सभी स्कूल जा रहे हैं।
- मैं कपड़े धो रहा हूँ।
संदिग्ध वर्तमानकालिक क्रिया
वर्तमानकालिक Kriya का वह रूप जिससे कार्य के वर्तमान समय में होने पर संशय का बोध हो, Kriya के उस रूप को संदिग्ध वर्तमानकालिक Kriya कहते हैं।
सामान्य वर्तमानकालिक Kriya में संशय की स्थिति जोड़ने पर संदिग्ध वर्तमानकालिक Kriya बन जाती है। यदि किसी वाक्य के अंत में रहा होगा, रही होगी, रहे होंगे में से कोई एक सहायक Kriya के रूप में प्रयुक्त हुआ हो तो, उस वाक्य में प्रयुक्त Kriya संदिग्ध वर्तमानकालिक Kriya होगी। जैसे-
- रमेश खाना खा रहा होगा।
- सीता चाय बना रही होगी।
- सभी सो रहे होंगे।
आज्ञार्थक वर्तमानकालिक क्रिया
वर्तमानकालिक Kriya का वह रूप जिससे वर्तमान काल में आज्ञा या आदेश देने का बोध हो तो, Kriya के उस रूप को आज्ञार्थक वर्तमानकालिक Kriya कहते हैं। जैसे-
- बैठ जाओ।
- सीता अब तुम चाय बनाओ।
- पत्र लिखो।
सम्भाव्य वर्तमानकालिक क्रिया
वर्तमानकालिक Kriya का वह रूप जिससे वर्तमान समय में अपूर्ण Kriya की संभावना या संशय होने का बोध होता हो तो, Kriya के उस रूप को सम्भाव्य वर्तमानकालिक Kriya कहते हैं।
अपूर्ण वर्तमानकालिक Kriya में संशय की स्थिति जोड़ देने पर वर्तमानकालिक Kriya बनती है। यदि किसी वाक्य के अंत में सहायक Kriya के रूप में रहा होगा, रही होगी, रहे होंगे, रहा हो, रही हो, रहे हो आदि में से किसी एक का प्रयोग किया गया हो तो, उस वाक्य में प्रयुक्त Kriya सम्भाव्य वर्तमानकालिक Kriya होगी। जैसे-
- शायद रवि आया हो।
भविष्यतकालिक क्रिया किसे कहते हैं?
वे क्रियाएं, जिनके द्वारा भविष्य में होने वाले काम का बोध होता हो, उन्हें भविष्यतकालिक Kriya कहते हैं। जैसे–
- वह कल जयपुर जाएगा।
- रमेश अगले सप्ताह घर आएगा।
भविष्यतकालिक क्रिया के भेद
भविष्यतकालिक Kriya के तीन भेद होते हैं। जो इस प्रकार हैं-
- सामान्य भविष्यतकालिक Kriya
- आज्ञार्थक भविष्यतकालिक Kriya
- संभाव्य भविष्यतकालिक Kriya
सामान्य भविष्यतकालिक क्रिया
Kriya का वह रूप जिससे कार्य का सामान्य रूप से आने वाले समय में होने का बोध होता हो, Kriya के उस रूप को सामान्य भविष्यकालिक Kriya कहते हैं।
यदि किसी वाक्य के अंत में एगा, एगी, एंगे, उँगा, उँगी आदि सहायक क्रियाओं में से कोई एक Kriya आई हो तो, उस वाक्य में प्रयुक्त Kriya सामान्य भविष्यकालिक Kriya होगी। जैसे–
- वह पुस्तक पड़ेगा।
- मैं घर जाऊंगा।
- हम हॉकी खेलेंगे।
आज्ञार्थक भविष्यतकालिक क्रिया
भविष्यकालिक Kriya का वह रूप जिससे भविष्य काल में आज्ञा या आदेश देने का बोध प्रकट होता हो, Kriya के उस रूप को आज्ञार्थक भविष्यकालिक Kriya कहते हैं।
यदि किसी वाक्य के अंत में ‘इएगा’ सहायता Kriya के रूप में प्रयुक्त किया गया हो तो, उस वाक्य में प्रयुक्त Kriya आज्ञार्थक भविष्यतकालिक Kriya होगी। जैसे–
- आप अपनी पढ़ाई कीजिएगा।
- आप कल अवश्य आइएगा।
संभाव्य भविष्यतकालिक क्रिया
भविष्यकालिक Kriya के जिस रूप से कार्य के भविष्य काल में होने की संभावना या संशय होने का बोध होता हो, Kriya के उस रूप को संभाव्य भविष्यकालिक Kriya कहते हैं।
यदि किसी वाक्य के अंत में सकता है, सकती है, सकते हैं, सकता हूँ, सकती हूँ, चाहिए आदि आया हो तो, उस वाक्य में प्रयुक्त Kriya संभाव्य भविष्यतकालिक Kriya होगी। जैसे–
- दो दिन बाद रमेश आ सकता है।
- अब मुझे क्या करना चाहिए।