क्लोनिंग, जीन एडिटिंग और विलुप्ति-उन्मूलन

विज्ञान ने 21वीं सदी में जो प्रगति की है, उसने मानव कल्पनाओं को हकीकत का रूप दे दिया है। मानव जीनोम की संरचना से लेकर कृत्रिम अंगों तक, आज हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ जीवन की संरचना को बदला जा सकता है, प्रतिकृति जीव बनाए जा सकते हैं और यहाँ तक कि विलुप्त हो चुकी प्रजातियों को पुनर्जीवित करने के प्रयास भी चल रहे हैं। इस लेख में हम तीन प्रमुख तकनीकी क्षेत्रों पर चर्चा करेंगे – क्लोनिंग, जीन एडिटिंग और विलुप्ति-उन्मूलन।

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क्लोनिंग | जीवन की हूबहू प्रतिकृति

क्लोनिंग क्या है?

क्लोनिंग एक ऐसी जैविक प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत किसी जीव की आनुवंशिक (genetic) संरचना की हूबहू नकल करके एक नया जीव बनाया जाता है। इसे इस तरह समझा जा सकता है जैसे किसी दर्पण में एक छवि हो — वैसी ही एक प्रतिकृति। क्लोन जीवों का डीएनए उसके मूल जीव से पूरी तरह मेल खाता है।

क्लोनिंग का इतिहास और विकास

क्लोनिंग का सबसे बड़ा मील का पत्थर 1996 में तब आया जब ब्रिटेन के वैज्ञानिक इयान विल्मुट (Ian Wilmut) और उनकी टीम ने दुनिया की पहली क्लोन भेड़ – डॉली (Dolly) – को जन्म दिया। डॉली पहली स्तनपायी थी जिसे वयस्क कोशिका से क्लोन किया गया था। इस प्रयोग ने जैवविज्ञान में क्रांति ला दी और दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या इंसानों को भी क्लोन किया जा सकता है?

क्लोनिंग के प्रकार

क्लोनिंग मुख्यतः तीन प्रकार की होती है

1. जीन क्लोनिंग (Gene Cloning)

इस प्रक्रिया में डीएनए के विशिष्ट खंड या जीन की प्रतियाँ बनाई जाती हैं। इसका मुख्य उद्देश्य दवाओं, एंजाइमों और हार्मोनों जैसे चिकित्सकीय उत्पादों का उत्पादन करना होता है। उदाहरणस्वरूप, इंसुलिन के उत्पादन में जीन क्लोनिंग की अहम भूमिका है।

2. प्रजनन क्लोनिंग (Reproductive Cloning)

यह वह प्रक्रिया है जिसमें पूरे जीव की नकल तैयार की जाती है। इस प्रक्रिया में एक कोशिका का नाभिक निकाल कर उसे एक निषेचित अंडाणु में प्रविष्ट किया जाता है और फिर उसे एक मातृ जीव में प्रत्यारोपित किया जाता है। डॉली भेड़ इसी तकनीक से बनी थी।

3. थेरेप्यूटिक क्लोनिंग (Therapeutic Cloning)

इस प्रक्रिया का उद्देश्य संपूर्ण जीव का निर्माण नहीं बल्कि ऊतक (tissue) और अंग (organs) तैयार करना होता है। इसे जैव चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांतिकारी माना जाता है क्योंकि इसके द्वारा क्षतिग्रस्त अंगों की मरम्मत या प्रतिस्थापन संभव हो सकता है।

क्लोनिंग के लाभ

  • जैव चिकित्सा अनुसंधान में सहायता।
  • दुर्लभ या संकटग्रस्त प्रजातियों को संरक्षित करने में मदद।
  • बाँझपन के उपचार में संभावनाएँ।
  • अंग प्रत्यारोपण में नई दिशा।

क्लोनिंग से जुड़ी नैतिक चुनौतियाँ

  • मानव क्लोनिंग को लेकर नैतिक और धार्मिक प्रश्न।
  • जीवों की “प्राकृतिकता” पर खतरा।
  • जैव विविधता में असंतुलन की आशंका।
  • दीर्घकालिक प्रभावों की स्पष्टता का अभाव।

जीन एडिटिंग | डीएनए को फिर से लिखने की कला

जीन एडिटिंग क्या है?

जीन एडिटिंग विज्ञान की वह अत्याधुनिक तकनीक है जिसके माध्यम से जीवों के जीनोम (genome) को संशोधित या संपादित किया जा सकता है। इसका मतलब है कि हम अब डीएनए के कोड में इच्छानुसार परिवर्तन कर सकते हैं – किसी खराब जीन को हटाना, किसी लाभकारी जीन को जोड़ना, या किसी जीन की क्रिया को नियंत्रित करना।

CRISPR-Cas9: जीन एडिटिंग की क्रांति

CRISPR-Cas9 वर्तमान समय की सबसे प्रचलित और प्रभावशाली जीन एडिटिंग तकनीक है। यह एक प्रकार की आणविक कैंची (molecular scissors) की तरह कार्य करती है जो डीएनए को एक विशेष स्थान पर काट सकती है। इसके माध्यम से वैज्ञानिक अब बड़ी सरलता से जीनोम में सटीक परिवर्तन कर सकते हैं।

जीन एडिटिंग के संभावित उपयोग

  • आनुवंशिक बीमारियों जैसे थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया आदि का इलाज।
  • कैंसर, HIV और अन्य जटिल रोगों के उपचार में सहायक।
  • कृषि क्षेत्र में उन्नत बीजों का निर्माण।
  • पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना।
  • मानव भ्रूण में बीमारियों की रोकथाम (हालांकि यह नैतिक बहस का विषय है)।

जीन एडिटिंग से जुड़े खतरे और नैतिक सवाल

  • क्या हमें “डिज़ाइनर बेबी” बनाने का अधिकार होना चाहिए?
  • जीन में छेड़छाड़ से भविष्य की पीढ़ियों पर असर पड़ सकता है।
  • अमीर और गरीब के बीच स्वास्थ्य असमानता और बढ़ सकती है।

विलुप्ति-उन्मूलन (De-extinction) | अतीत को वर्तमान में लाने का प्रयास

विलुप्ति-उन्मूलन क्या है?

विलुप्ति-उन्मूलन, जिसे पुनरुत्थान जीवविज्ञान या स्पीशीज़ रिवाइवलिज़्म (species revivalism) भी कहा जाता है, विज्ञान की वह प्रक्रिया है जिसमें किसी विलुप्त हो चुकी प्रजाति को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जाती है। इस प्रक्रिया में विलुप्त प्रजाति के डीएनए नमूनों, जीवाश्मों या संरक्षित ऊतकों की मदद से जीव का पुनर्निर्माण किया जाता है।

यह कैसे काम करता है?

मुख्यतः तीन तरीके अपनाए जाते हैं:

1. क्लोनिंग द्वारा पुनर्जीवन

अगर विलुप्त प्रजाति के डीएनए के पर्याप्त नमूने मिल जाएँ, तो क्लोनिंग तकनीक से उसे दोबारा जीवित किया जा सकता है।

2. जीन एडिटिंग द्वारा

किसी जीवित प्रजाति के जीन को एडिट कर उसे विलुप्त प्रजाति के समान बनाया जा सकता है। उदाहरण: हाथी के डीएनए में परिवर्तन कर मैमथ (Mammoth) जैसा जीव बनाना।

3. हाइब्रिडाइजेशन

विलुप्त प्रजाति के निकटतम जीवित रिश्तेदार से संकरण (crossbreeding) कर नई संतति उत्पन्न करना।

कुछ चर्चित उदाहरण

  • पासेंजर पिजन: कभी अमेरिका में करोड़ों की संख्या में पाए जाने वाले ये पक्षी 20वीं सदी की शुरुआत में विलुप्त हो गए थे।
  • मैमथ: हिमयुग में रहने वाला विशालकाय हाथी जैसे जीव को पुनर्जीवित करने के प्रयास हो रहे हैं।
  • टस्मानियन टाइगर: ऑस्ट्रेलिया का यह थाइलासीन भी वैज्ञानिकों की रुचि का विषय बना हुआ है।

विलुप्ति-उन्मूलन के लाभ

  • पारिस्थितिक संतुलन को पुनर्स्थापित करना।
  • जैव विविधता को फिर से समृद्ध करना।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान में सहायक।

नैतिक और पर्यावरणीय चिंता

  • क्या कृत्रिम रूप से पुनर्जीवित जीव प्राकृतिक पारिस्थितिकी में जीवित रह पाएंगे?
  • क्या यह प्रक्रिया अन्य जीवों के लिए खतरा बन सकती है?
  • क्या संसाधनों का इतना उपयोग सही दिशा में है?

विज्ञान के चमत्कार और हमारी जिम्मेदारी

क्लोनिंग, जीन एडिटिंग और विलुप्ति-उन्मूलन जैसी तकनीकों ने जैवविज्ञान को विज्ञान-कथा से यथार्थ की दुनिया में ला खड़ा किया है। आज हम न केवल जीवन की संरचना को समझ पा रहे हैं, बल्कि उसे नियंत्रित भी कर सकते हैं।

लेकिन साथ ही, इन तकनीकों के उपयोग को लेकर गहन नैतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय चिंताएँ भी हैं। यह आवश्यक है कि हम इन तकनीकों का उपयोग मानवता की भलाई, पारिस्थितिकी की रक्षा और विज्ञान की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए करें।

विज्ञान शक्तिशाली है, लेकिन उससे भी अधिक जरूरी है – विवेकपूर्ण उपयोग।

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