चंद्रयान कार्यक्रम | Chandrayaan programme

चंद्रयान कार्यक्रम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा संचालित भारत का चंद्र अन्वेषण मिशन है। इसका उद्देश्य चंद्रमा का अध्ययन करना, भारत की तकनीकी क्षमताओं को बढ़ाना और ग्रहों के विज्ञान में योगदान देना है। इस कार्यक्रम के तहत भारत ने चंद्रमा की सतह, वातावरण और जल संसाधनों की जांच की है।

श्रेणीविवरण
देश इंडिया
लागतलगभग ₹1980 करोड़ (US$240 million)
मिशनों की संख्या3 मिशन (चंद्रयान-1, चंद्रयान-2, चंद्रयान-3)
पहला मिशनचंद्रयान-1, लॉन्च: 22 अक्टूबर 2008
आखिरी मिशनचंद्रयान-3, लॉन्च: 14 जुलाई 2023 (सफल लैंडिंग)
सफल मिशनचंद्रयान-1 (आंशिक सफलता), चंद्रयान-3
चालू मिशनचंद्रयान-3 (संचालन में)
आगामी मिशनचंद्रयान-4 (संभावित)
स्थितिसक्रिय

प्रमुख मिशन

  1. चंद्रयान-1 (2008)
    • लॉन्च तिथि: 22 अक्टूबर 2008
    • मिशन प्रकार: ऑर्बिटर और इम्पैक्टर
    • उद्देश्य:
      • चंद्रमा की उच्च-रिज़ॉल्यूशन में मैपिंग
      • चंद्र सतह की खनिज संरचना का अध्ययन
      • चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में जल की खोज
    • उपलब्धियां:
      • चंद्रयान-1 भारत का पहला चंद्र मिशन था।
      • इस मिशन ने चंद्रमा की सतह पर जल/हाइड्रॉक्सिल अणुओं की उपस्थिति की पुष्टि की, जो चंद्र विज्ञान में एक महत्वपूर्ण खोज थी।
      • मून इम्पैक्ट प्रोब (MIP) ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास क्रैश-लैंडिंग की और अवतरण के दौरान डेटा एकत्र किया।
      • इसने चंद्र भूविज्ञान, स्थलाकृतिक और एक्सोस्फीयर (चंद्र वातावरण) के अध्ययन में योगदान दिया।
    • मिशन परिणाम: 312 दिनों तक सफलतापूर्वक कार्य करने के बाद, चंद्रयान-1 से संपर्क टूट गया।
  2. चंद्रयान-2 (2019)
    • लॉन्च तिथि: 22 जुलाई 2019
    • मिशन प्रकार: ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम), और रोवर (प्रज्ञान)
    • उद्देश्य:
      • चंद्र सतह और वातावरण का विस्तृत अध्ययन।
      • चंद्र ध्रुवों पर जल-बर्फ का वितरण जांचना।
      • चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास एक रोवर तैनात करना।
    • मिशन सारांश:
      • चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अभी भी काम कर रहा है और उच्च-रिज़ॉल्यूशन की इमेजरी और वैज्ञानिक डेटा भेज रहा है।
      • विक्रम लैंडर ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास एक सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास किया, लेकिन अवतरण से पहले संपर्क टूट गया, और यह दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
      • प्रज्ञान रोवर, जो विक्रम के अंदर था, दुर्घटना के कारण तैनात नहीं हो सका।
    • उपलब्धियां:
      • ऑर्बिटर अभी भी उपयोगी डेटा भेज रहा है और चंद्रमा के सतह और एक्सोस्फीयर का अध्ययन कर रहा है।
      • विक्रम लैंडर की असफलता के बावजूद, चंद्रयान-2 मिशन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहा।
  3. चंद्रयान-3 (2023)
    • लॉन्च तिथि: 14 जुलाई 2023
    • मिशन प्रकार: लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान)
    • उद्देश्य:
      • चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक उतरना।
      • प्रज्ञान रोवर को तैनात कर चंद्र सतह की खनिज और रासायनिक संरचना का अध्ययन करना।
    • मिशन सारांश:
      • चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर 23 अगस्त 2023 को चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतरा, जिससे भारत चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश और चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरने वाला पहला देश बना।
      • प्रज्ञान रोवर को विक्रम से तैनात किया गया और उसने सतह पर वैज्ञानिक प्रयोग किए और चंद्रमा के रेगोलिथ (मृदा) की संरचना का अध्ययन किया।
    • उपलब्धियां:
      • चंद्रयान-3 मिशन को एक बड़ी सफलता माना जा रहा है, जिसने भारत की अंतरिक्ष अन्वेषण क्षमताओं को और मजबूत किया।
      • इस मिशन ने चंद्र सतह की संरचना, तापमान और भूकंपीय गतिविधियों पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।

मिशन का नामतारीखलागतपरिणामप्रकारउद्देश्य
चंद्रयान-122 अक्टूबर 2008₹386 करोड़ (approx. $60 million USD)सफल, लेकिन संपर्क 312 दिनों बाद टूट गया।ऑर्बिटर और इम्पैक्टरचंद्रमा का उच्च-रिज़ॉल्यूशन में मैपिंग, जल की खोज, खनिज अध्ययन।
चंद्रयान-222 जुलाई 2019₹978 करोड़ (approx. $140 million USD)ऑर्बिटर सफल, लैंडर संपर्क खो गया।ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम), रोवर (प्रज्ञान)चंद्रमा की सतह और वातावरण का अध्ययन, जल-बर्फ की खोज।
चंद्रयान-314 जुलाई 2023₹615 करोड़ (approx. $75 million USD)सफल, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग।लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान)चंद्रमा पर उतरना, सतह का अध्ययन, जल के भंडार की जांच।

नोट्स

  • चंद्रयान-1 ने चंद्रमा पर जल की उपस्थिति की पुष्टि की।
  • चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर अभी भी कार्यशील है और डेटा भेज रहा है।
  • चंद्रयान-3 ने भारत को चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने वाला पहला देश बना दिया, जो दक्षिणी ध्रुव पर है।

चंद्रयान मिशन में रूसी सहयोग और वापस लेना

रूसी सहयोग:
शुरुआत में, भारत के चंद्रयान-2 मिशन में रूस की महत्वपूर्ण भूमिका होनी थी। यह सहयोग भारत और रूस के बीच एक प्रमुख साझेदारी का हिस्सा था, जिसमें रूस के अंतरिक्ष अन्वेषण अनुभव का लाभ उठाया जाना था। रूस की रोसकॉस्मोस एजेंसी को चंद्रयान-2 के लिए एक लूना-ग्लोब लैंडर प्रदान करना था, जो इसे भारत और रूस का संयुक्त मिशन बनाता। योजना के अनुसार, ISRO को ऑर्बिटर और रोवर बनाना था, जबकि रूस सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर और आवश्यक तकनीक प्रदान करता।

वापसी:
हालांकि, यह सहयोग कई देरी का सामना कर रहा था। रोसकॉस्मोस को तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ा, और रूस की खुद की लूना मिशनों की असफलताओं के कारण लैंडर का विकास स्थगित हो गया। अंततः, 2015 में रूस ने आधिकारिक तौर पर चंद्रयान-2 मिशन से अपना नाम वापस ले लिया, यह कहते हुए कि वह निर्धारित समय सीमा को पूरा नहीं कर सकता और तकनीकी समस्याओं का सामना कर रहा है।

रूस के बाहर होने के बाद, ISRO ने एक साहसिक निर्णय लिया और लैंडर और रोवर का विकास स्वयं करने का निश्चय किया। यह भारत के चंद्र कार्यक्रम के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था, क्योंकि ISRO को मिशन के सभी पहलुओं को स्वदेशी रूप से संभालना पड़ा। यह आत्मनिर्भरता चंद्रयान-2 (2019) में दिखाई दी, जहां भारत ने ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम), और रोवर (प्रज्ञान) सभी को स्वदेश में विकसित किया।

मिशन पर प्रभाव:
रूस के बाहर होने से चंद्रयान-2 मिशन में देरी हुई, और इसका लॉन्च 2019 तक टाल दिया गया। हालांकि, ISRO ने मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया और कुछ उद्देश्यों को पूरा किया, भले ही विक्रम लैंडर की लैंडिंग के दौरान संपर्क टूट गया था। इसके बावजूद, मिशन का ऑर्बिटर अभी भी सक्रिय है और मूल्यवान डेटा भेज रहा है, जो भारत की जटिल अंतरिक्ष मिशनों को स्वतंत्र रूप से अंजाम देने की बढ़ती क्षमता को दर्शाता है।

पहलूविवरण
रूस के साथ सहयोगरूस की रोसकॉस्मोस एजेंसी को चंद्रयान-2 के लिए लैंडर प्रदान करना था।
वापसी का कारणलूना-ग्लोब लैंडर के विकास में देरी और तकनीकी कठिनाइयाँ।
वापसी का वर्ष2015
ISRO पर प्रभावISRO ने चंद्रयान-2 के लिए लैंडर और रोवर को स्वदेशी रूप से विकसित किया।
परिणामचंद्रयान-2 लॉन्च में देरी, लेकिन भारत की आत्मनिर्भरता को स्थापित किया।

रूस के वापस लेने के बाद भारत ने अपने अंतरिक्ष तकनीक की सीमाओं को आगे बढ़ाने का काम किया, जिससे भारत का आत्मविश्वास और क्षमता बढ़ी।

भविष्य के चंद्रयान मिशन

भविष्य में और भी चंद्रयान मिशनों की चर्चा है, जिनमें मानव अंतरिक्ष यान मिशन, चंद्रमा पर जल संसाधनों का गहन अध्ययन, और ध्रुवीय क्षेत्रों की और अधिक जाँच शामिल हो सकती है।

तकनीकी और वैज्ञानिक प्रभाव

  • तकनीकी प्रगति:
    • स्वायत्त लैंडिंग में सटीकता।
    • अंतरिक्ष यान डिजाइन, प्रणोदन और संचार के लिए स्वदेशी तकनीकों का उपयोग।
  • वैज्ञानिक योगदान:
    • चंद्रमा पर जल अणुओं की खोज, जिसने चंद्रमा के विकास के सिद्धांतों को बदल दिया और भविष्य में मानव अन्वेषण के लिए संभावनाएं बढ़ाईं।
    • खनिज और स्थलाकृतिक मानचित्रण।
    • चंद्र एक्सोस्फीयर और ध्रुवीय क्षेत्रों का अध्ययन, जो भविष्य के मिशनों के लिए महत्वपूर्ण है।

चंद्रयान कार्यक्रम ISRO की बढ़ती ग्रहों की अन्वेषण महत्वाकांक्षाओं और वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका का प्रतीक है।

भविष्य के चंद्रयान मिशन ISRO की बढ़ती अंतरिक्ष अन्वेषण महत्वाकांक्षाओं का हिस्सा हैं। चंद्रयान कार्यक्रम के सफल मिशनों के बाद, ISRO चंद्रमा पर और अधिक जटिल और विस्तृत मिशन करने की योजना बना रहा है। यहां कुछ संभावित भविष्य के मिशन और योजनाएं दी गई हैं:

  • चंद्रयान-4
    • लॉन्च तिथि: 2027
    • मिशन प्रकार: चन्द्रमा नमूना वापसी
    • उद्देश्य: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान ( इसरो ) ने अपने अगले मून मिशन चंद्रयान-4 पर काम करना शुरू कर दिया है। पिछले मिशन से मुख्य अंतर यह होगा कि इस बार लैंडर को पुनः चंद्रमा से धरती पर वापस लाया जाएगा और इसके साथ ही चंद्रमा से सैंपल (मिट्टी) भी लाया जाएगा।
  • चंद्रयान-5 (संभावित मानवयुक्त मिशन)
    • लॉन्च तिथि: इस मिशन के लिए समय सीमा अभी तय नहीं है, लेकिन भविष्य में, ISRO अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजने की दिशा में काम कर सकता है। इसमें अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों, जैसे NASA या ESA, के साथ सहयोग हो सकता है।
    • मिशन प्रकार: उन्नत ऑर्बिटर या लैंडर मिशन, संभवतः सैंपल रिटर्न
    • उद्देश्य:
      • चंद्रमा के रेगोलिथ का संग्रहण और उसे पृथ्वी पर लौटाना, ताकि गहन विश्लेषण किया जा सके।
      • चंद्रमा के संसाधनों, विशेष रूप से जल बर्फ के भंडार की गहन जांच।
  • चंद्रयान-6
    • काल्पनिक मिशन: दीर्घकालिक अन्वेषण पर ध्यान केंद्रित कर सकता है, जिसमें उन्नत रोवर्स या चंद्रमा की सतह के नीचे अध्ययन के लिए ड्रिलिंग शामिल हो सकती है।
    • तकनीकी नवाचार: अधिक स्वायत्त प्रणाली, विस्तारित मिशन अवधि, और अधिक चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में सटीक लैंडिंग का एकीकरण।

ये मिशन संभवतः चंद्रयान-3 की सफलता पर आधारित होंगे, और चंद्रमा के विज्ञान और अन्वेषण क्षमताओं में और प्रगति करेंगे।


इन्हें भी देखें –

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