महान विजेता चन्द्रगुप्त मौर्य का अद्वितीय साम्राज्य | 345-298 ई.पू.

चन्द्रगुप्त मौर्य प्राचीन भारत में मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे। चन्द्रगुप्त मौर्य को देश के छोटे खंडित राज्यों को एक साथ लाने और उन्हें मिलाकर एक बड़े साम्राज्य में बदलने का श्रेय दिया जाता है। चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल के दौरान मौर्य साम्राज्य पूर्व में बंगाल और असम से, पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान से लेकर उत्तर में कश्मीर और नेपाल तक और दक्षिण में दक्कन के पठार तक फैला था।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने गुरु चाणक्य के साथ मिलकर नंद साम्राज्य को समाप्त करके मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य को उनका प्रधानमंत्री भी कहा जाता है। चाणक्य को कौटिल्य और विष्णुगुप्त नाम से भी जाना जाता है। लगभग 23 वर्षों के सफल शासन के बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने सभी सांसारिक सुखों को त्याग दिया और खुद को एक जैन साधु में बदल दिया। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने ‘सललेखना’ किया, जो कि मृत्यु तक उपवास का एक अनुष्ठान था। क्षत्रिय वंश से संबंध रखने वाले चन्द्रगुप्त मौर्य भारत के सबसे महानतम सम्राटों में से एक थे।

चन्द्रगुप्त मौर्य का साथ उनका प्रधानमंत्री आचार्य चाणक्य/कौटिल्य (विष्णुगुप्त) ने दिया था। उन्हीं के सिद्धांतों पर चलकर चन्द्रगुप्त मौर्य ने संपूर्ण भारतवर्ष को एक साम्राज्य के अधीन लाकर खड़ा कर दिया था।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने लगभग 24 वर्षों तक शासन किया। मौर्य साम्राज्य से पहले भारत में नंद वंश का राज था, लेकिन प्रधानमंत्री विष्णुगुप्त के सानिध्य में चंद्रगुप्त मौर्य ने एक विशाल सेना का निर्माण किया और मौर्य साम्राज्य की सीमाओं को लगभग संपूर्ण भारत में विस्तारित कर दिया।

चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास

चन्द्रगुप्त मौर्य (Chandragupta Maurya) भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण राजा थे। उन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी, जो बाद में सबसे बड़े और प्रभावशाली साम्राज्यों में से एक बन गया। चंद्रगुप्त मौर्य के इतिहास को विभिन्न इतिहासकारों द्वारा विविध पुस्तकों और लेखों में विस्तार से वर्णित किया गया है।

चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म पिपलीवन गणराज्य, वर्तमान गोरखपुर क्षेत्र उ.प्र. में हुआ था। इनकी माता का नाम महारानी धर्मा और पिता का नाम महाराज चंद्रवर्धन मौर्य था।

दुनिया चन्द्रगुप्त मौर्य को उनके द्वारा स्थापित किये गए विशाल मौर्य साम्राज्य के लिए जानती है। उन्होंने मौर्य साम्राज्य की शुरुआत 322 ईसा पूर्व में की थी, और भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से को अपने शासनाधीन कर लिया था। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में उन्नत संगठन और शासन प्रणाली थी। उन्होंने अपने साम्राज्य को प्रशासनिक और सैन्यात्मक दृष्टिकोण से मजबूत बनाया। चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा निर्मित शासन पद्धति को आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है।

चन्द्रगुप्त मौर्य की सबसे बड़ी विजय मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (Patliputra, आज का पटना) को जीतने में हुई। उन्होंने नंदनगर (नन्द, बिहार) के सम्राट महापद्मनंद की सेना को परास्त कर मगध साम्राज्य को अपने अधीन कर लिया।

चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य 24 वर्षों तक चला और उसके बाद उनके पुत्र बिंदुसार (Bindusara) ने साम्राज्य के शासन को संभाला, और इसके बाद भी मौर्य साम्राज्य के कई प्रतापी शासकों ने इसका विस्तार किया। चन्द्रगुप्त मौर्य के बाद मौर्य साम्राज्य का अधिकांश क्षेत्र मगध और उसके आसपास फैला हुआ था। इसके अलावा उन्होंने मौर्य साम्राज्य की सीमाएं पश्चिमी और दक्षिणी भारत में भी विस्तारित किया था। उनके शासन के दौरान मौर्य साम्राज्य अपने समय के सबसे प्रभावशाली राज्यों में से एक था। उन्होंने भारतीय इतिहास में अपनी गरिमा बनाया।

चन्द्रगुप्त मौर्य का इतिहास एक महत्वपूर्ण युग के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विकास की कथा है। उनका साम्राज्य एक शक्तिशाली साम्राज्य के रूप में विख्यात हुआ और उनके शासन के पश्चात भारतीय इतिहास में बहुत सारे अंतर्राष्ट्रीय यात्री, विद्वान और धार्मिक धर्मगुरुओं ने मौर्य साम्राज्य की यात्रा की। चन्द्रगुप्त मौर्य की साम्राज्यवादी और सुशासन प्रणाली ने इतिहास में अपनी महत्वपूर्ण जगह बनाई।

चन्द्रगुप्त मौर्य का संक्षिप्त परिचय

चन्द्रगुप्त मौर्य
नामचंद्रगुप्त मौर्य
जन्म345 ई.पू. (कही कही 340 ई.पू.)
जन्म स्थान पिपलीवन गणराज्य, वर्तमान गोरखपुर क्षेत्र उ.प्र.
मृत्यु 298 ई.पू. उम्र 47-48 साल
मृत्युस्थानश्रवणबेलगोला, कर्नाटक
शासन का समय काल322 ईसा पूर्व से 298 ईसा पूर्व तक
पत्नी का नामदुधारा अथवा दुर्धरा (महापदमनंद की पुत्री) और हेलेना (सेल्यूकस निकेटर की पुत्री)
उत्तराधिकारीबिन्दुसार
पिता महाराज चंद्रवर्धन मौर्य
मातामहारानी माधुरा उर्फ मुरा (महारानी धर्मा)
पौत्रअशोक, सुशिम, वीतशोका
दफ़न जगह -श्रवणबेलगोला कर्नाटक मैसूर चन्द्रगिरि पर्वत

चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय

चन्द्रगुप्त मौर्य के परिवार की कही भी बहुत सही जानकारी नहीं मिलती है, कहा जाता है वे राजा नंदा व उनकी पत्नी मुरा के बेटे थे। कुछ लोग कहते है वे मौर्य शासक के परिवार के थे, जो क्षत्रीय थे। कहते है चन्द्रगुप्त मौर्य के दादा की दो पत्नियाँ थी, एक से उन्हें 9 बेटे थे, जिन्हें नवनादास कहते थे, दूसरी पत्नी से उन्हें चन्द्रगुप्त मौर्य के पिता बस थे, जिन्हें नंदा कहते थे। नवनादास अपने सौतले भाई से जलते थे, जिसके चलते वे नंदा को मारने की कोशिश करते थे। नंदा के 100 पुत्र थे, जिनमे से एक चन्द्रगुप्त मौर्य भी थे।

नंदा के सभी पुत्रो को नवनादास मार डालते है बस चन्द्रगुप्त मौर्य किसी तरह बच जाते है और मगध के साम्राज्य में रहने लगते है। यही पर उनकी मुलाकात चाणक्य से हुई। इसके बाद से उनका जीवन बदल गया। चाणक्य ने उनके गुणों को पहचाना और तक्षशिला विद्यालय ले गए, जहाँ वे पढ़ाया करते थे। चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को अपने अनुसार सारी शिक्षा दी, उन्हें ज्ञानी, बुद्धिमानी, समझदार महापुरुष बनाया, उन्हें एक शासक के सारे गुण सिखाये।

मौर्य वंश के उदय के बारे में कई तथ्य सामने आते हैं। उनके वंश के बारे में अधिकांश जानकारी ग्रीक, जैन, बौद्ध और प्राचीन हिंदू ब्राह्मणवाद के प्राचीन ग्रंथों से मिलती है। मौर्य वंश की उत्पत्ति पर कई शोध और अध्ययन किए गए हैं। कुछ इतिहासकारों का मानना ​​है कि चन्द्रगुप्त एक नंद राजकुमार और उनकी नौकरानी ​​मुरा की एक नाजायज संतान थे ।

चन्द्रगुप्त मौर्य

जबकि दूसरों का मानना ​​है कि चंद्रगुप्त मोरिया से संबंधित थे, जो पिपलिवाना के एक प्राचीन गणराज्य के एक क्षत्रिय (योद्धा) थे। इस गणराज्य के महाराज चंद्रवर्धन इनके पिता तथा महारानी धर्मा इनकी माता थी। जो रुम्मिनदेई (नेपाली तराई) और कसया (उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले) के बीच रहा करते थे। दो अन्य विचारों से पता चलता है कि वह या तो मुरास (मोर्स) या इंडो-सीथियन वंश के क्षत्रिय थे। अंतिम दावा यह भी किया जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने माता-पिता को छोड़ दिया था।

किंवदंती के अनुसार उनका पालन पोषण किसी गाँव के रहने वाले एक परिवार द्वारा किया गया था और फिर बाद में उन्हें चाणक्य द्वारा आश्रय लिया गया, जिसने उसे प्रशासन के नियम और बाकी सब कुछ सिखाया जो एक सफल सम्राट बनने के लिए आवश्यक है।

चन्द्रगुप्त मौर्य की पत्नी – दुर्धरा और हेलेना

चन्द्रगुप्त मौर्य की पहली पत्नी दुर्धरा थी, जिनसे उन्हें बिंदुसार नाम का बेटा हुआ। दुर्धरा महापदमनंद की पुत्री थी। इसके अलावा दूसरी पत्नी देवी हेलना थी, जिनसे उन्हें जस्टिन नाम का पुत्र हुआ। हेलेना सेल्यूकस निकटर की पुत्री थी। कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य की दुश्मन से रक्षा करने के लिए आचार्य चाणक्य उन्हें रोज खाने में थोडा थोडा जहर मिलाकर देते थे। (आचार्य चाणक्य को जहर का बहुत अच्छा ज्ञान था) जिससे उनके शरीर मे प्रतिरोधक छमता आ जाये और उनके शत्रु उन्हें यदि किसी तरह का जहर दे तो वह उनपर बेअसर हो जाये।

यह खाना चन्द्रगुप्त अपनी पत्नी दुर्धरा के साथ बाटते थे, लेकिन एक दिन उनके शत्रु ने वही जहर ज्यादा मात्रा मे उनकी पत्नी के खाने मे मिला दिया, उस समय उनकी पत्नी गर्भवती थी, दुर्धरा इसे सहन नहीं कर पाती है, जिसके कारण चन्द्रगुप्त मौर्य की पहली पत्नी दुर्धरा की मृत्यु हो जाती है। लेकिन चाणक्य समय पर पहुँच कर उनके बेटे को बचा लेते है। उनके बेटे का नाम बिन्दुसार रखा गया।

कहते है कि जहर के अत्यधिक प्रभाव से उनके बच्चे के माथे पर एक काला निशान पढ़ गया था, जिस कारण से उनके बेटे का नाम बिन्दुसार पड़ा। बिंदुसार को आज भी उनके बेटे अशोका के लिए याद किया जाता है, जो एक महान राजा थे।

चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी हेलेना की कहानी

चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध के सम्राट के रूप में अपनी प्रभुता स्थापित की। उन्होंने भारत के पूर्वोत्तर भाग से लेकर दक्षिणी भाग में मैसूर और तमिलनाडु तक जीत हासिल की। उन्होंने कश्मीर और पंजाब जैसे उत्तरी क्षेत्रों तक भी अपना शासन स्थापित किया। उन्होंने वर्तमान नेपाल और भूटान क्षेत्र पर भी विजय प्राप्त की। 305 ईसा पूर्व में सेल्यूकस निकेटर ने बाबुल और फारस जैसे स्थानों पर विजय प्राप्त करने के बाद उन्होंने पंजाब में आक्रमण किया। जहाँ उनका मुकाबला सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य से हुआ।

परन्तु चंद्रगुप्त मौर्य की विशाल सेना और पराक्रम के सामने सेल्यूकस निकेटर टिक नहीं पाया। और अपनी हार सामने देखकर उसे अंततः चंद्रगुप्त मौर्य के साथ सन्धि करनी पड़ी, तथा सन्धि के हिस्से के रूप में उन्होंने चंद्रगुप्त मौर्य को यूनानियों के अधीन रहने वाले फारस के चार प्रांत दिए। इनमें हेरात, कंधार, बलूचिस्तान, और काबुल प्रांत शामिल थे। सेल्यूकस ने अपनी बड़ी बेटी हेलेना का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से कर दिया। चंद्रगुप्त मौर्य के विवाह के समय उनकी आयु 40 वर्ष थी और हेलेना की आयु 15-17 वर्ष थी। सेल्यूकस ने चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में एक ग्रीक दूत मेगस्थनीज को भेजा।

उपर्युक्त विवरणों के बदले में, चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकस निकेटर को 500 हाथी और सोने, हीरे, और कीमती आभूषणों का भार दिया। इस तरह, ग्रीक और मौर्य साम्राज्य के बीच एक मजबूत संबंध स्थापित हुआ, जो बिन्दुसार के समय तक जारी रहा। चंद्रगुप्त और हेलेना के मिलान से एक पुत्र पैदा हुआ था। कुछ कथाएं यह कहती हैं कि चंद्रगुप्त मौर्य को हेलेना की सुंदरता से प्यार हो गया था और उन्होंने युद्ध छोड़ दिया जबकि कुछ का कहना है कि उन्होंने सेल्यूकस निकेटर को परास्त करके उनकी पुत्री हेलेना शादी कर ली। हालांकि, किसी ग्रंथ में इसका प्रमाण नहीं मिलता है।

हेलेना, जो चंद्रगुप्त मौर्य से विवाह करने वाली युवा किशोरी थी और भारतीय संस्कृति और परंपराओं के लिए नई थी। इसलिए शुरूआत में, उसके माता-पिता और छोटे भाई को उसके साथ रहने के लिए आना पड़ा। इस दौरान, हेलेना ने भारतीय संस्कृति, धर्म, और जीवनशैली को अध्ययन किया। यह उसके बाद के जीवन को गहरा प्रभावित करने वाला अनुभव साबित हुआ।

ग्रीक साहित्य में चंद्रगुप्त मौर्य के नाम से जानी जाने वाली ऐतिहासिक पुस्तक “सैंड्राकुट्टोस” के अनुसार, राजकुमारी हेलेना की सुन्दरता से चंद्रगुप्त मौर्य को प्यार हो गया था और उन्होंने उसका समर्थन किया। हेलेना से उनको एक पुत्र भी प्राप्त हुआ जिसका नाम जस्टिन रखा गया। परन्तु चाणक्य, विदेशी राजकुमारी को दरबार में प्रमुख भूमिका देने की पक्ष में नहीं थे। चंद्रगुप्त मौर्य ने 289 ईसा पूर्व में 56 वर्ष की आयु में जैन धर्म को अपनाया था। हेलेना शुरुआती 30 के दशक में थी जब चंद्रगुप्त मौर्य ने श्रवणबेलगोला के लिए यात्रा की और 2 साल बाद मृत्यु का उपवास किया।

हेलेना अपने पति के जाने के बाद उनके पुत्र बिंदुसार के साथ रही और बाद के वर्षों में ग्रीस चली गई और अपना शेष जीवन वहीं बिताया। जब चंद्रगुप्त जंगल में गए थे, तब उनके बेटे जस्टिन एक छोटा बच्चा होने की संभावना है। बिंदुसार 31 वर्ष के थे जब चंद्रगुप्त वन में गए। हालांकि, चंद्रगुप्त के कई पत्नियां और अनेक बेटे थे। परन्तु उस समय सिंहासन का एकमात्र उत्तराधिकारी के रूप में बिंदुसार ही था, और उसका कोई दावेदार नहीं था। बिन्दुसार की ताजपोशी मगध के सम्राट के रूप में शांतिपूर्ण थी और उनके किसी भी भाई-बहन या सौतेली माता ने इसका विरोध नहीं किया।

बिन्दुसार के भी उसकी सौतेली माँ के साथ अच्छे संबंध थे। बिन्दुसार हेलेना से कुछ ही साल छोटे रहे होंगे। सम्राट बनने के बाद बिन्दुसार ने हेलेना के भाई और यूनानियों के साथ भी अच्छे संबंध बनाए रखे। कहा जाता है कि हेलेना ने मगध आकर संस्कृत और भारतीय नृत्य सीखा था।

हेलेना की मृत्यु

चन्द्रगुप्त मौर्य की पत्नी हेलेना की मृत्यु के बारे में कोई ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। हेलेना एक यूनानी महिला थी और चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में उनकी पत्नी के बारे में काफी कम जानकारी है। हेलेना की मृत्यु के बारे में कोई ऐतिहासिक विवरण नहीं मिलते हैं, इसलिए उसकी मृत्यु के बारे में कोई निश्चित जानकारी उपलब्ध नहीं है।

ऐसा कहा जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य की पत्नी हेलेना अपने पति के वन में जाने के बाद उनके पुत्र बिंदुसार के साथ ही कुछ वर्षों तक रही, और उसके बाद के वर्षों में वह ग्रीस चली गई। हेलेना ने अपना शेष जीवन वहीं बिताया। जहाँ उसकी एक सामान्य तरीके से मृत्यु हो जाती है।

चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा मौर्य साम्राज्य का उदय

चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा साम्राज्य संभालने से पहले उत्तर पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप पर सिकंदर ने आक्रमण किया था, लेकिन 324 ईसा पूर्व में सिकंदर की सेना में विद्रोह पैदा हो गया। इस वजह से सिकंदर ने भारत पर और आक्रमण करने का ख्वाब छोड़ दिया और पुनः लौट गया।

सिकंदर के आक्रमण से पूर्व और चन्द्रगुप्त मौर्य के सम्राट बनने से पहले नंद वंश के धनानंद का लगभग समस्त उत्तर भारत पर अधिकार था।
कहते हैं कि एक बार किसी बात को लेकर नंद वंश के राजा धनानंद और आचार्य चाणक्य के बीच में झगड़ा हो गया। इसी बात के चलते आचार्य चाणक्य ने ठान लिया कि कैसे भी करके नंद वंश का विनाश किया जाए और मौर्य साम्राज्य भारत में स्थापित किया जाए।

चन्द्रगुप्त मौर्य

मगध पर राज करने वाले नंद वंश के शासक के यहां पर आचार्य चाणक्य उच्च पद पर आसीन थे, लेकिन किसी बात को लेकर राजा ने उन्हें अपमानित किया और इसी अपमान का बदला लेने के लिए आचार्य चाणक्य ने पद त्याग दिया।

उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वह नंद वंश को समाप्त करेंगे, तक्षशिला के रहने वाले आचार्य चाणक्य बचपन से ही चंद्रगुप्त मौर्य के संपर्क में थे और उन दोनों का मिलना जुलना होता रहता था।

जबकि कुछ इतिहासकारों के अनुसार चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य से वादा किया था, कि वे उसे उसका हक दिला कर रहेंगें, उसे नवदास की राजगद्दी पर बैठाएंगे। चाणक्य जब तक्षशिला में आचार्य थे, तब अलेक्सेंडर (सिकन्दर) भारत में हमला करने की तैयारी में था। तब तक्षशिला के राजा, व गन्धारा दोनों ने अलेक्सेंडर (सिकन्दर) के सामने घुटने टेक दिए।

चाणक्य ने देश के अलग अलग राजाओं से मदद मांगी। पंजाब के राजा पर्वेतेश्वर ने सिकंदर (अलेक्सेंडर) को युद्ध के लिए ललकारा, परन्तु पंजाब के राजा को हार का सामना करना पड़ा, जिसके बाद चाणक्य ने नंद साम्राज्य के शासक, धनानंद से मदद मांगी। लेकिन धनानन्द अपनी शक्ति और अपने साम्राज्य के नशे में चूर था, और उस समय भोग विलास में लिप्त था।

धनानन्द को इस बात का अभिमान था की उसकी शक्ति और विशाल सेना के आगे कोई टिक नहीं पायेगा। और कोई उससे युद्ध करने का दुह्हसाहस भी नहीं करेगा। अपने इसी अभिमान में चूर होकर उसने चाणक्य का साथ देने से मन कर दिया और चाणक्य के बार बार समझाने पर धनानन्द चाणक्य को अपमानित करके अपने सैनिको से उसकी शिखा (चोटी) पकड़वा कर घसीटते हुए अपने राज्य से बहार फिकवा देता है।

इस घटना के बाद चाणक्य ने तय किया कि वे एक अपना नया साम्राज्य खड़ा करेंगे जो बाहरी हमलावरों से देश की रक्षा करे, और साम्राज्य उनके अनुसार नीति से चलेगा। और वह नन्द साम्राज्य का सर्वनाश कर देंगे। जिसके लिए उन्होंने चन्द्रगुप्त मौर्य को चुना। चाणक्य मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री कहे जाते थे।

चन्द्रगुप्त मौर्य एक साधारण जीवन यापन कर रहे थे लेकिन जैसे ही आचार्य चाणक्य उनके संपर्क में आए उन्होंने अपनी नीतियों और विधियों के आधार पर चंद्रगुप्त मौर्य को एक आम आदमी से मौर्य साम्राज्य का राजा बना दिया और अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार नंद वंश को समूल नष्ट कर दिया।

आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों से चन्द्रगुप्त मौर्य के साथ मिलकर सिकन्दर की सेना में अफवाह फैला दिया कि व्यास नदी के उस पर की भूमि देवभूमि है और अगर सिकन्दर अपनी सेना के साथ व्यास नदी को पार करता है तो देव प्रकोप का सामना करना पड़ेगा और पूरी सेना को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। जिससे सिकन्दर की विशाल सेना पहली बार अपने राजा को व्यास नदी को पार कर के भारत में घुसने से मन कर दी। और अंततः सिकन्दर व्यास नदी के तट से ही वापस लौट जाता है।

आचार्य चाणक्य अथवा कौटिल्य जिसे विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, अस्त्र और शस्त्र विद्या में पूर्ण रूप से निपुण थे।चंद्रगुप्त मौर्य कौटिल्य द्वारा बताए गए रास्ते पर चलते गए, और चाणक्य निति के द्वारा सिकन्दर को वापस भेजने के बाद सबसे पहले मगध के राजा धनानन्द को पराजित कर मगध पर अधिकार कर लिया।

उन्होंने हिमालय के राजा पर्वत्का के साथ मिल कर धनानंद पर आक्रमण किया। 321 ईसा पूर्व में कुसुमपुर में ये लड़ाई हुई जो कई दिनों तक चली। अंत में चन्द्रगुप्त मौर्य को विजय प्राप्त हुई और उत्तर का ये सबसे मजबूत मौर्या साम्राज्य बन गया। और इस प्रकार चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य के साथ मिलकर नन्द वंश को समाप्त करके एक नए वंश की स्थापना किया जिसे मौर्य वंश के रूप में जाना गया। इसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य एक ताकतवर शासक के रूप में सामने आ गए थे।

इसके बाद चन्द्रगुप्त मौर्य ने उत्तर से दक्षिण की ओर अपना रुख किया और बंगाल की खाड़ी से अरब सागर तक राज्य फ़ैलाने में लगे रहे। विन्ध्य को डेक्कन से जोड़ने का सपना चन्द्रगुप्त मौर्य ने सच कर दिखाया, दक्षिण का अधिकतर भाग मौर्य साम्राज्य के अन्तर्गत आ गया था। मगध पर अधिकार करने के पश्चात जो विदेशी यूनानी लोग यहां पर रहते थे उन्हें भारतवर्ष से बाहर निकाल दिया गया। 

चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा मौर्य साम्राज्य का विस्तार

चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियां  पंजाब प्रान्त से प्रारंभ होती हैं। चंद्रगुप्त मौर्य से पहले पंजाब और सिंध के क्षेत्र में यूनानी शासकों का राज था, जिनका मुखिया सिकंदर था। लेकिन 323 ईसा पूर्व में सिकंदर की मृत्यु के पश्चात ये लोग आपस में लड़ने झगड़ने लगे, जिससे यूनानीयों की शक्ति कमजोर पड़ गई, इसी का फायदा उठाकर चंद्रगुप्त मौर्य ने 317 ईसा पूर्व तक पंजाब को अपने कब्जे में ले लिया।

एक यूनानी इतिहासकार जस्टिन लिखते है, कि सिकंदर की मृत्यु के बाद बचे हुए यूनानी शासकों को मौत के घाट उतार दिया गया और यूनानीयों पर आक्रमण करने वालों में मुख्य रूप से चंद्रगुप्त मौर्य ही थे।

सेल्यूकस और एंटीगोनस नामक सिकंदर के 2 सेनापतियों के मध्य युद्ध आरंभ हो गया। यह युद्ध सिकंदर की मृत्यु के पश्चात उसके राज्य पर एकाधिकार स्थापित करने के लिए था, इस युद्ध में सेल्यूकस की जीत हुई। 306 ईसा पूर्व सेल्यूकस का राज्याभिषेक हुआ था।

महत्वकांक्षी सेल्यूकस अपने साम्राज्य विस्तार हेतु भारत पर आक्रमण करने की योजना बनाई और चंद्रगुप्त मौर्य के साथ युद्ध किया, जिसमें आचार्य चाणक्य की कूटनीतिज्ञ और चंद्रगुप्त मौर्य के युद्ध कौशल ने सेल्यूकस को पराजित कर दिया। इस युद्ध में हार के साथ सेल्यूकस और मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त के मध्य में एक संधि हुई जिसके अनुसार हेरात, कंधार, काबुल और बलूचिस्तान आदि राज्य सेल्यूकस ने मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य को दिए।

चन्द्रगुप्त मौर्य

चंद्रगुप्त मौर्य के साथ अपने रिश्तो को और अधिक मजबूत बनाने के लिए सेल्यूकस ने अपनी बेटी हेलेना का विवाह भी चंद्रगुप्त मौर्य के साथ कर दिया जो चंद्रगुप्त मौर्य की दूसरी पत्नी थी। इसके बदले चन्द्रगुप्त मौर्य ने 500 हाथियों की विशाल सेना सेल्यूकस को भेंट किया, तथा सेल्यूकस के राजदूत मेगास्थनीज को अपने दरबार में जगह दिया।

मेगास्थनीज ने मौर्य साम्राज्य में रहकर अपनी एक किताब लिखी जिसका नाम इन्डिका था। जिसमे मौर्य साम्राज्य और चन्द्रगुप्त मौर्य के बारे में काफी जानकारियां मिलती है। चन्द्रगुप्त मौर्य ने चारों तरफ मौर्य साम्राज्य खड़ा कर दिया था, बस कलिंगा (अब उड़ीसा) और तमिल इस साम्राज्य का हिस्सा नहीं था। इन हिस्सों को बाद में उनके पोते अशोका ने अपने साम्राज्य में जोड़ दिया था।

धीरे-धीरे चंद्रगुप्त मौर्य के अधिकार में संपूर्ण पश्चिमी भारत भी आ गया। रुद्रदामन शिलालेख के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य के शासक पुष्यगुप्त ने सौराष्ट्र में “सुदर्शन झील” का निर्माण करवाया था। सम्राट अशोक महान के प्राप्त शिलालेखों से ज्ञात होता है कि सोपारा भी चंद्रगुप्त मौर्य के क्षेत्राधिकार में था।

चंद्रगुप्त मौर्य ना कभी रुके, ना किसी के सामने कभी झुके। मौर्य साम्राज्य के विस्तार में उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया। लगभग 6 लाख सैनिकों के साथ चंद्रगुप्त मौर्य ने संपूर्ण भारत को एक छत्र राज्य के अंदर लाकर खड़ा कर दिया था। इन सभी कार्यों को चन्द्रगुप्त मौर्य की उपलब्धियां के तौर पर देखा जा सकता हैं।

चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का युद्ध

चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर महान के बीच कोई सीधा युद्ध नहीं हुआ है। चंद्रगुप्त मौर्य के समय में (4वीं से 3वीं शताब्दी ईसा पूर्व), सिकंदर महान यूनानी साम्राज्य का सबसे महान विजेता था और वे भारत के उत्तरी सीमा तक अपने आक्रमणों की योजना बना रहा था। हालांकि, यह ज्ञात नहीं है कि उन्होंने युद्ध करने का कोई यत्न किया था या चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य से मुकाबला करने की कोई कोशिश की थी।

इतिहासकारों के अनुसार, सिकंदर महान और चंद्रगुप्त मौर्य के बीच संपर्क स्थापित हुआ हो सकता है, और चंद्रगुप्त मौर्य की खुदाई में मिले नाना घाटी अभिलेखों में इसका उल्लेख भी किया गया है। हालांकि, इन अभिलेखों में चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर महान के बीच के संबंधों का विस्तृत वर्णन नहीं है।

ऐतिहासिक प्रमाणों और अभिलेखों की कमी के कारण, चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर महान के बीच के संबंधों पर निश्चितता से कुछ कहना मुश्किल है। इसलिए, विद्वानों और इतिहासकारों के बीच भी इस विषय पर विभाजित मत हैं।

इसी क्रम में कुछ इतिहासकारों का कहना है कि चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर का युद्ध हुआ था, जिसे इतिहासकारों ने “चंद्रगुप्त-सिकंदर युद्ध” के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध के बारे में कुछ विस्तृत विवरण नहीं हैं, लेकिन कुछ ऐतिहासिक पुस्तकों और पुरातत्व विद्वानों के अनुसार, इस युद्ध के समय सिकंदर मकदूनिया के राजा थे और उनका बहुत बड़ा साम्राज्य था।

चंद्रगुप्त मौर्य और सिकंदर के बीच युद्ध का मुख्य कारण सिकंदर का विस्तारवादी राजनीतिक उद्देश्य था। सिकंदर को दक्षिण एशिया में शक्तिशाली देशों पर आक्रमण करना था और उन्हें भारत में भी अपना साम्राज्य स्थापित करना था। चंद्रगुप्त मौर्य ने इस आक्रमण का सामना किया और उनकी सेना का सिकंदर की सेना से टकराव हुआ था।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार, यह युद्ध सिकंदर की असफलता के बाद हुआ था जब उन्हें अपनी सेना को वापस बुलाना पड़ा। दूसरे इतिहासकारों के अनुसार, यह युद्ध सिकंदर की मौत के बाद हुआ था, जब उनके वंशजों ने उनकी संपत्ति को बचाने के लिए भारत में संघर्ष किया।

इस युद्ध को चंद्रगुप्त मौर्य के उस विजय के रूप में जाना गया, जिसने उन्हें मौर्य साम्राज्य की स्थापना करने की अनुमति दी और उनके शासन की शुरुआत की। इस युद्ध के बाद से चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य विस्तारित हुआ और उन्होंने अपने शासनकाल में बहुत सारे क्षेत्रों को जीता।

चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था

यूनानी राजदूत मेगास्थनीज द्वारा लिखित “इंडिका” नामक पुस्तक से मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था का पता चलता है। अधिकतर शक्तियां चंद्रगुप्त मौर्य के हाथ में थी, लेकिन शासन व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए उन्होंने मंत्री परिषद का गठन किया।
18 मंत्रियों वाली इस परिषद को 27 भागों में बांटा गया था, प्रत्येक भाग/विभाग का अलग विभाग अध्यक्ष था, जिनकी नियुक्ति चंद्रगुप्त मौर्य करता था। 4 सदस्यों की एक सलाहकार समिति भी थी, जिन्हें मंत्रिणः नाम से जाना जाता था, प्रत्येक का वेतन 48 हजार पण था।

न्यायिक व्यवस्था को ग्राम पंचायत स्तर पर विभाजित कर रखा था। फौजदारी और दीवानी नामक दो प्रकार के न्यायालय उस समय प्रचलन में थे। आर्थिक से लेकर कठोर दंड तक के प्रावधान की व्यवस्था थी, जिससे अपराधों में कमी हो सके। इसका न्यायाधीश खुद चंद्रगुप्त मौर्य था।
चंद्रगुप्त मौर्य के पास लगभग 6 लाख की विशाल सेना थी। जिसमे 30,000 घुड़सवार, 9000 हाथी, 8000 रथ शामिल थे।

शासन व्यवस्था और राज्य की संपूर्ण व्यवस्था को व्यवस्थित करने के लिए चंद्रगुप्त मौर्य के समय गुप्तचर थे, जिसमें पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों को भी शामिल किया गया। यह गुप्तचर आम जनता और अधिकारियों के बीच में रहते थे जो महत्वपूर्ण जानकारी सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य तक पहुंचाते थे। जो गुप्तचर संपूर्ण राज्य में भ्रमण करते रहते थे उन्हें संथारण के नाम से जाना जाता था जबकि वह गुप्तचर जो एक ही स्थान पर रहकर कार्य करते थे उन्हें संस्थिल नाम से जाना जाता था।

कई इतिहासकारों और पुस्तकों के विवरण से ज्ञात होता है कि चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में आय का मुख्य स्त्रोत कृषि आयकर था।
सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के साम्राज्य में विद्यालय, चिकित्सालय, अनाथालय, किसानों के लिए भवन निर्माण, सेना और अन्य विभागों के लिए अलग-अलग भवन बने हुए थे। सुशासन की स्थापना करने के लिए सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने संपूर्ण मौर्य साम्राज्य को 6 भागों में विभाजित कर रखा था। जिसमें उत्तरापथ, सेल्यूकस से प्राप्त प्रदेश (काबुल ,बलूचिस्तान आदि ), सौराष्ट्र, दक्षिणापथ, अवंती और मगध मुख्य थे।

चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु

24 वर्षों तक सफलतापूर्वक शासन करने के पश्चात चन्द्रगुप्त मौर्य जब 50 (कही कही 48 साल भी कहा जाता है ) साल के थे, तब उनका झुकाव जैन धर्म की तरफ हुआ। उनके गुरु भी जैन धर्म के थे जिनका नाम भद्रबाहु था। 297 ईसा पूर्व में में उन्होंने अपना साम्राज्य बेटे बिंदुसरा को देकर श्रवणबेलगोला, कर्नाटक नामक स्थान पर चले गए।

जहाँ उन्होंने 5 हफ़्तों तक बिना खाए पिए ध्यान किया, जिसे संथारा कहते है। ये तब तक करते है जब तक शारीर से प्राण न निकल जाये। यही चन्द्रगुप्त मौर्य ने संथारा उपवास करते हुए अपने प्राणों का त्याग कर दिया था। आज, एक छोटा सा मंदिर उस जगह पर है।

मृत्यु के समय चंद्रगुप्त मौर्य की आयु 50 (कही कही 48 साल भी कहा जाता है ) वर्ष थी। इस तरह भारतीय इतिहास में एक ऐसे महान राजा का इस तरह चले जाना ना सिर्फ मौर्य साम्राज्य के लिए क्षति था बल्कि संपूर्ण भारतवर्ष के लिए यह बहुत बड़ी क्षति थी। सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र बिंदुसार मौर्य साम्राज्य का द्वितीय शासक बना। चन्द्रगुप्त मौर्य को इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा।

चन्द्रगुप्त मौर्य

चंद्रगुप्त मौर्य का शासन काल

चंद्रगुप्त मौर्य का शासन काल प्राचीन भारतीय इतिहास के लिए एक महत्वपूर्ण अध्याय था। चंद्रगुप्त मौर्य का शासन काल लगभग 321 ईसा पूर्व से 297 ईसा पूर्व तक रहा था। इस अवधि में, चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध साम्राज्य को अपने अधीन किया और मौर्य साम्राज्य की मूल राजधानी पाटलिपुत्र (Patliputra) को स्थापित किया। इसका अधिकांश समय इंडस नदी के उत्तरी क्षेत्र में विस्तृत हुआ था।

चंद्रगुप्त मौर्य का शासनकाल के दौरान मौर्य साम्राज्य ने बहुत विस्तार किया और प्रभावशाली बना। इसके बाद, उनके पुत्र बिंदुसार ने साम्राज्य को आगे बढ़ाया। चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में वह अपने समय के सबसे शक्तिशाली राजा में से एक था और उनके शासनकाल में मौर्य साम्राज्य भारत के अधिकांश हिस्सों को विजयी किया था। चंद्रगुप्त मौर्य ने सम्राट अशोक के बाद भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखा।

चंद्रगुप्त मौर्य का शासन काल 321 ईसा पूर्व से लेकर 297 ईसा पूर्व तक रहा। यह उनके साम्राज्य की स्थापना के बाद से लेकर उनकी छोटे पुत्र बिंदुसार के शासन की अवधि तक है।

चंद्रगुप्त मौर्य और चाणक्य से जुडी कहानियाँ

 एक ग्रीक पाठ में चंद्रगुप्त मौर्य को एक रहस्यवादी के रूप में वर्णित किया गया है जो शेर और हाथी जैसे आक्रामक जंगली जानवरों के व्यवहार को नियंत्रित कर सकता है। ऐसा ही एक वृत्तांत बताता है कि जब चंद्रगुप्त मौर्य अपने ग्रीक विरोधियों के साथ युद्ध के बाद आराम कर रहे थे, तब उनके सामने एक विशाल शेर आया। जब यूनानी सैनिकों ने सोचा कि शेर हमला करेगा और शायद महान सम्राट को मार देगा। ऐसा कहा जाता है कि जंगली जानवर ने चंद्रगुप्त मौर्य के पसीने को चाटा, ताकि पसीने से उसका चेहरा साफ हो जाए। जिसके बाद वह विपरीत दिशा में चला गया।

चन्द्रगुप्त मौर्य

जब चाणक्य की बात की जाती है, तो रहस्यमय किंवदंतियों की कोई कमी नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि चाणक्य एक रसायनशास्त्री थे और वे सोने के सिक्के के एक टुकड़े को आठ अलग-अलग सोने के सिक्कों में बदल सकते थे।

वास्तव में यह दावा किया जाता है कि चाणक्य ने रसायन विद्या का इस्तेमाल अपने खजाने की एक छोटी सी संपत्ति को चालू करने के लिए किया था, जिसे बाद में एक बड़ी सेना खरीदने के लिए इस्तेमाल किया।

इस प्रकार उन्होंने बहुत बड़ी सेना का निर्माण किया। जिस पर मौर्य साम्राज्य बनाया गया था। यह भी कहा जाता है कि चाणक्य का जन्म दांतों की एक पूर्ण पंक्ति के साथ हुआ था, जो उनके भाग्य के संकेत थे कि वह एक महान राजा बनेगे। चाणक्य के पिता ने हालांकि यह नहीं चाहा कि उनका बेटा राजा बने और इसलिए उन्होंने उनके एक दांत तोड़ दिया। जिसके बाद पिता ने कहा कि वह एक साम्राज्य की स्थापना के पीछे कारण बनेंगे।

चन्द्रगुप्त मौर्य-एक महान विजेता एवं एक महान प्रशासक

चन्द्रगुप्त मौर्य को सिर्फ एक महान विजेता के रूप में नहीं, बल्कि एक महान प्रशासक के रूप में भी माना जाता है। वह अपनी शक्ति को सिर्फ साम्राज्य का विस्तार करने के लिए नहीं इस्तेमाल करते थे, बल्कि उन्होंने अपनी सरकारी प्रणाली को सुशासित बनाने और साम्राज्य का उच्चतम हित आराम्भ करने के लिए विशेष मानवाधिकार, न्याय, और अन्य प्रशासनिक मामलों पर ध्यान दिया।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य (भारतीय इतिहासकार और अर्थशास्त्री) के संगठनात्मक और व्यवस्थापन के सिद्धांतों का उपयोग किया। उन्होंने अपने साम्राज्य को सुशासित बनाने के लिए विभिन्न प्रशासनिक और न्यायिक नीतियों को अमल में लाया। उनके शासन काल में मौर्य साम्राज्य एक शक्तिशाली और आर्थिक रूप से समृद्ध राष्ट्र बना।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक शक्तिशाली प्रशासनिक और सुरक्षा प्रणाली स्थापित की। उन्होंने शक्तिशाली सेना बनाई, सैन्य और नौसेना को सुदृढ़ किया, और अपने साम्राज्य में सुरक्षा का उच्चतम महत्व दिया। उन्होंने भूमि सुधार, नागरिक सुविधाएं, व्यापार और वाणिज्यिक नीतियां, सार्वजनिक रोजगार कार्यक्रम, और कृषि विकास के लिए प्रशासनिक उपायों को अपनाया।

चन्द्रगुप्त मौर्य ने न्यायिक नीतियों को भी महत्व दिया। उन्होंने व्यापारिक विवादों, न्यायिक मामलों, और अन्य सामाजिक मुद्दों के लिए न्यायालयों की स्थापना की। वे न्याय के लिए न्यायाधीशों का चयन करते थे और विवादों को न्यायिक मार्गदर्शन द्वारा हल कराते थे। इसके अलावा, उन्होंने समग्र साम्राज्य में न्याय के लिए सामाजिक और आधारभूत नीतियां अपनाईं।

इस प्रकार, चन्द्रगुप्त मौर्य सिर्फ एक महान विजेता ही नहीं वरन् एक महान प्रशासक भी थे। जिन्होंने साम्राज्य को न केवल विस्तारित करके एक अखंड भारत का निर्माण किया बल्कि उसे सुशासित भी बनाया। उनकी प्रशासनिक नीतियां, व्यवस्थापन कौशल, और न्यायाधीशों के मार्गदर्शन के माध्यम से उन्होंने मौर्य साम्राज्य को एक महत्वपूर्ण एवं समृद्ध राष्ट्र का स्थान प्रदान किया।


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