चागोस द्वीपसमूह की संप्रभुता पर ब्रिटेन-मॉरीशस समझौता

चागोस द्वीपसमूह (Chagos Archipelago) को लेकर दशकों से चल रहा विवाद अब निर्णायक मोड़ पर पहुँच चुका है। ब्रिटेन द्वारा मॉरीशस को इस द्वीपसमूह की संप्रभुता सौंपने के हालिया समझौते को उपनिवेशवाद से जुड़े एक ऐतिहासिक अन्याय को सुधारने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह न केवल सामरिक और कूटनीतिक दृष्टि से अहम है, बल्कि यह मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानून की जीत भी है।

Table of Contents

चागोस द्वीपसमूह: भौगोलिक स्थिति और सामरिक महत्त्व

स्थान:
चागोस द्वीपसमूह हिंद महासागर के मध्य भाग में स्थित है। यह भारत के दक्षिणी छोर (केरल या कन्याकुमारी) से लगभग 1,600 किलोमीटर दक्षिण में पड़ता है। यह भूभाग सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बीच समुद्री मार्गों के मध्य में स्थित है।

चागोस द्वीपसमूह के प्रमुख द्वीप:

इस द्वीपसमूह में 60 से अधिक छोटे-बड़े द्वीप शामिल हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

  • डिएगो गार्सिया (Diego Garcia): सबसे बड़ा और सामरिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण द्वीप, जो वर्तमान में अमेरिकी सैन्य अड्डे के रूप में प्रयुक्त होता है।
  • पेरोस बानोस (Peros Banhos)
  • डेंजर द्वीप (Danger Island)

चागोस द्वीपसमूह की जलवायु:

चागोस की जलवायु उष्णकटिबंधीय समुद्री होती है, जो दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनों से प्रभावित रहती है। यहाँ वर्षभर उच्च तापमान, भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता रहती है, जिससे यह क्षेत्र जैवविविधता से भरपूर है।

चागोस विवाद: उपनिवेशवाद, सैन्य रणनीति और मानवाधिकारों की त्रिकोणीय लड़ाई

औपनिवेशिक पृष्ठभूमि

  • 1814 में पेरिस संधि के अंतर्गत ब्रिटेन ने मॉरीशस और चागोस द्वीपसमूह दोनों पर अधिकार कर लिया था।
  • 1965 में, मॉरीशस को स्वतंत्रता देने से पहले, ब्रिटेन ने इस द्वीपसमूह को मॉरीशस से अलग कर दिया और एक नया प्रशासनिक क्षेत्र बनाया जिसे “ब्रिटिश इंडियन ओशियन टेरिटरी” (BIOT) कहा गया।
  • यह कदम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपनिवेशवाद विरोधी भावना के बावजूद उठाया गया था, जिसने आगे चलकर कानूनी और नैतिक विवादों को जन्म दिया।

सैन्य रणनीति और अमेरिका की भागीदारी

  • 1966 में ब्रिटेन और अमेरिका के बीच एक समझौते के तहत डिएगो गार्सिया द्वीप को 50 वर्षों के लिए अमेरिका को लीज़ पर दे दिया गया।
  • अमेरिका ने यहाँ एक विशाल नौसैनिक और वायुसेना अड्डा बनाया, जो आज भी अफगानिस्तान, मध्य-पूर्व और अफ्रीका में संचालन के लिए उपयोग किया जाता है।
  • इस सैन्य अड्डे के निर्माण के लिए चागोस के लगभग 1,500–2,000 स्थानीय निवासियों को जबरन निष्कासित किया गया। इन्हें सेशेल्स, मॉरीशस और ब्रिटेन में पुनर्वासित किया गया – बिना मुआवज़े, बिना विकल्प के।

विस्थापन और मानवाधिकारों का उल्लंघन

चागोसी समुदाय की पीड़ा

  • स्थानीय चागोसी लोग—जिनमें अफ्रीकी, भारतीय और मलागासी मूल के लोग शामिल हैं—वर्षों से द्वीपों पर रह रहे थे।
  • 1967 से 1973 के बीच, इन लोगों को मजबूरन उनके पैतृक घरों से निकाला गया।
  • आज भी यह समुदाय भौगोलिक रूप से विखंडित है और अनेक मानवाधिकार संगठनों द्वारा इसे “जातीय सफ़ाया” कहा गया है।

कानूनी लड़ाई

  • चागोसी समुदाय ने ब्रिटेन में और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने अधिकारों की पुनःस्थापना के लिए अनेक मुकदमे दायर किए।
  • इन कानूनी लड़ाइयों का केंद्र रहा है – अपने पूर्वजों की भूमि पर वापसी का अधिकार, मुआवज़ा, और मूलभूत मानवाधिकार।

मॉरीशस का दावा और अंतरराष्ट्रीय समर्थन

मॉरीशस का ऐतिहासिक दावा

  • मॉरीशस ने 1968 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के तुरंत बाद से ही चागोस द्वीपसमूह पर अपनी संप्रभुता का दावा करना शुरू कर दिया था।
  • मॉरीशस का कहना था कि द्वीपसमूह को अलग करना अंतरराष्ट्रीय कानून और स्वतंत्रता की प्रक्रिया का उल्लंघन था।

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) का फैसला – 2019

  • 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच विवाद को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के पास भेजा।
  • 2019 में ICJ ने ब्रिटेन के प्रशासन को “अवैध” करार दिया और कहा कि चागोस द्वीपसमूह को “जितनी जल्दी हो सके” मॉरीशस को वापस किया जाए।
  • यह फैसला बाध्यकारी न होते हुए भी नैतिक और कूटनीतिक रूप से भारी दबाव उत्पन्न करने वाला था।

संयुक्त राष्ट्र महासभा की प्रतिक्रिया

  • ICJ के निर्णय के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान हुआ, जिसमें 116 देशों ने मॉरीशस के पक्ष में मतदान किया।
  • केवल 6 देशों ने ब्रिटेन का समर्थन किया।
  • इसने स्पष्ट संकेत दिया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय उपनिवेशवाद के अंत और न्याय की बहाली के पक्ष में है।

ब्रिटेन-मॉरीशस समझौता

हालिया घटनाक्रम

  • वर्ष 2024 के अंत में ब्रिटेन ने मॉरीशस के साथ एक ऐतिहासिक समझौता किया, जिसमें वह चागोस द्वीपसमूह की संप्रभुता मॉरीशस को सौंपने पर सहमत हुआ।
  • इस प्रक्रिया में अमेरिका के साथ डिएगो गार्सिया के सैन्य अड्डे की सुरक्षा और उपयोग को लेकर एक त्रिपक्षीय समझौते की भी संभावना बनी रही।

समझौते के प्रमुख बिंदु

  • द्वीपसमूह की संप्रभुता मॉरीशस को स्थानांतरित की जाएगी, लेकिन डिएगो गार्सिया में अमेरिका की उपस्थिति जारी रहेगी।
  • विस्थापित चागोसी लोगों को उनकी मातृभूमि पर लौटने की अनुमति मिलेगी।
  • द्वीपसमूह का पर्यावरणीय और सामुद्रिक संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए एक संयुक्त प्रबंधन तंत्र की स्थापना की जाएगी।

रणनीतिक और भू-राजनीतिक प्रभाव

सामरिक संतुलन

  • डिएगो गार्सिया अमेरिकी नौसेना के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण अड्डा है।
  • चीन की बढ़ती उपस्थिति और हिंद महासागर में भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के दृष्टिकोण से यह क्षेत्र और अधिक संवेदनशील बन गया है।
  • इस समझौते के बाद भी अमेरिका की उपस्थिति को संरक्षित रखा गया है ताकि सामरिक स्थायित्व बना रहे।

भारत का दृष्टिकोण

  • भारत ने लंबे समय से उपनिवेशवाद के विरुद्ध मुखर होकर मॉरीशस का समर्थन किया है।
  • भारत और मॉरीशस के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक संबंध हैं।
  • यह घटनाक्रम हिंद महासागर में भारत की “सागर” नीति (Security and Growth for All in the Region) को भी बल देता है।

मानवाधिकार और न्यायिक पुनर्स्थापना

  • चागोसी समुदाय के पुनर्वास और उनकी मातृभूमि पर वापसी के प्रावधान इस समझौते की सबसे मानवीय उपलब्धि मानी जा रही है।
  • मॉरीशस सरकार ने इस बात की पुष्टि की है कि वह चागोसी लोगों के लिए विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा और आजीविका के अवसर सुनिश्चित करेगी।

पर्यावरणीय महत्त्व

  • चागोस द्वीपसमूह समुद्री जैवविविधता के लिए अत्यंत समृद्ध क्षेत्र है।
  • ब्रिटेन ने इसे “मरीन प्रोटेक्टेड एरिया” घोषित किया था, लेकिन आलोचकों का मानना था कि यह फैसला चागोसी लोगों की वापसी को रोकने के लिए लिया गया था।
  • मॉरीशस ने पारदर्शी और समावेशी पर्यावरणीय नीति का आश्वासन दिया है।

चागोस द्वीपसमूह पर ब्रिटेन द्वारा संप्रभुता मॉरीशस को सौंपना एक ऐतिहासिक मोड़ है, जो औपनिवेशिक अन्याय को सुधारने की दिशा में वैश्विक प्रयासों की जीत को दर्शाता है। यह घटना न केवल अंतरराष्ट्रीय कानून की शक्ति को रेखांकित करती है, बल्कि यह यह भी दर्शाती है कि यदि वैश्विक समुदाय संगठित होकर आवाज उठाए तो न्याय संभव है।

चागोस विवाद की समाप्ति, विस्थापितों की वापसी, सामरिक स्थिरता और पर्यावरणीय संरक्षण – ये सभी तत्व इस निर्णय को एक स्थायी और व्यापक समाधान की दिशा में ले जाते हैं। आने वाले वर्षों में यह समझौता एक मिसाल बनेगा कि किस प्रकार वैश्विक नैतिकता, कानूनी तंत्र और राजनीतिक इच्छाशक्ति मिलकर न्याय की स्थापना कर सकते हैं।

Geography – KnowledgeSthali
Current Affairs – KnowledgeSthali


इन्हें भी देखें –

Leave a Comment

Table of Contents

Contents
सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.