दक्षिण-पूर्वी ईरान में स्थित चाबहार पोर्ट (Chabahar Port) पिछले दो दशकों से भारत की क्षेत्रीय रणनीति और कनेक्टिविटी योजनाओं का अहम हिस्सा रहा है। यह बंदरगाह न केवल ईरान के लिए, बल्कि भारत, अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के लिए भी व्यापार और संपर्क का महत्वपूर्ण द्वार माना जाता है। लेकिन हाल ही में अमेरिका द्वारा इस बंदरगाह से जुड़े प्रतिबंधों में दी गई छूट (sanctions waiver) को वापस लेने के फैसले ने भारत की योजनाओं को चुनौतीपूर्ण स्थिति में ला खड़ा किया है।
29 सितंबर से प्रभावी रूप से लागू हुए इस कदम का असर भारत की अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) और अफगानिस्तान-केंद्रित नीति पर गहरा पड़ सकता है। यह केवल एक बंदरगाह की कहानी नहीं है, बल्कि एशिया में बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों की गाथा भी है।
चाबहार पोर्ट का परिचय
चाबहार बंदरगाह, ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत के मक़रान तट पर स्थित है। यह ईरान का एकमात्र महासागरीय गहरे पानी वाला बंदरगाह है, जो सीधे हिंद महासागर तक पहुंच प्रदान करता है।
- स्थान: ओमान की खाड़ी के किनारे
- संरचना: दो प्रमुख हिस्सों से मिलकर बना – शाहिद कलंतरी और शाहिद बेहेश्ती बंदरगाह
- भौगोलिक निकटता: पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से लगभग 170 किलोमीटर पश्चिम में
- रणनीतिक महत्व: मध्य एशियाई भूमि-रुद्ध देशों जैसे अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के लिए यह “गोल्डन गेट” कहलाता है।
यह बंदरगाह न केवल ईरान के व्यापार को वैश्विक बाजारों से जोड़ता है, बल्कि भारत के लिए भी पाकिस्तान को दरकिनार करके मध्य एशिया और यूरोप तक पहुँचने का वैकल्पिक मार्ग है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
चाबहार पोर्ट का विकास नई योजना नहीं है, बल्कि इसकी नींव 1970 के दशक में रखी गई थी।
- 1973: ईरान के अंतिम शाह ने चाबहार को एक बड़े बंदरगाह के रूप में विकसित करने का प्रस्ताव रखा।
- 1979: ईरानी क्रांति के कारण यह परियोजना अधर में लटक गई।
- 1983: ईरान-इराक युद्ध के दौरान पहला चरण खोला गया। ईरान ने तब अपने समुद्री व्यापार का बड़ा हिस्सा फारस की खाड़ी से हटाकर चाबहार की ओर मोड़ा, ताकि इराकी वायुसेना के हमलों के जोखिम को कम किया जा सके।
- 1990 का दशक: भारत और ईरान के बीच चाबहार पर सहयोग की शुरुआती चर्चा शुरू हुई।
- 2016: भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच चाबहार समझौते पर हस्ताक्षर हुए।
इस प्रकार, यह पोर्ट केवल एक समुद्री व्यापार केंद्र नहीं, बल्कि ईरान और भारत की साझा रणनीतिक दृष्टि का परिणाम है।
अमेरिका की छूट और उसका हटाया जाना
2018 में छूट
अमेरिका ने 2018 में, ईरान पर व्यापक आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद, चाबहार पोर्ट के लिए विशेष छूट दी थी। इसका प्रमुख कारण था:
- अफगानिस्तान की मदद – तब वहां निर्वाचित सरकार थी और चाबहार पोर्ट का इस्तेमाल खाद्य और पुनर्निर्माण सामग्री पहुँचाने के लिए होता था।
- क्षेत्रीय स्थिरता – अमेरिका भी चाहता था कि अफगानिस्तान पाकिस्तान पर निर्भर न रहे।
2021 के बाद परिदृश्य बदलना
- अगस्त 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता वापसी हो गई।
- भारत ने चाबहार को INSTC (International North-South Transport Corridor) से जोड़ने की घोषणा की।
- अमेरिका को आशंका हुई कि यह बंदरगाह ईरान को नए वाणिज्यिक मार्ग उपलब्ध कराएगा, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति बेहतर हो सकती है।
2024 में छूट की वापसी
29 सितंबर 2024 से अमेरिका ने औपचारिक रूप से छूट वापस ले ली। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि अब परिस्थितियाँ वैसी नहीं रहीं जैसी 2018 में थीं।
भारत के लिए चाबहार का महत्व
भारत के लिए चाबहार बंदरगाह सिर्फ एक आर्थिक परियोजना नहीं है, बल्कि यह उसकी भू-राजनीतिक रणनीति का स्तंभ है।
- पाकिस्तान से स्वतंत्रता
भारत के पास अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुँचने का सीधा जमीनी रास्ता पाकिस्तान से होकर जाता है। लेकिन भारत-पाक संबंध तनावपूर्ण होने के कारण यह मार्ग लगभग बंद है।- चाबहार भारत को इस निर्भरता से मुक्ति दिलाता है।
- INSTC का हिस्सा
चाबहार बंदरगाह को भारत अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे से जोड़ रहा है। यह मार्ग भारत से ईरान होते हुए रूस और यूरोप तक जाएगा।- दूरी और समय में बड़ी कटौती
- समुद्री मार्ग की तुलना में लगभग 30% तक लागत कम
- मध्य एशिया में उपस्थिति
मध्य एशियाई देश ऊर्जा संसाधनों (गैस, तेल, यूरेनियम) से संपन्न हैं। चाबहार भारत के लिए इन देशों तक पहुँचने का सबसे उपयुक्त मार्ग है। - रणनीतिक संतुलन
पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को चीन विकसित कर रहा है।- चाबहार ग्वादर से केवल 170 किमी दूर है।
- इस तरह चाबहार भारत के लिए चीन-पाक गठजोड़ का जवाब भी है।
ईरान के लिए महत्व
- चाबहार, ईरान का एकमात्र गहरे पानी वाला महासागरीय बंदरगाह है।
- यह ईरान को फारस की खाड़ी पर निर्भरता से मुक्त करता है।
- INSTC से जुड़कर ईरान एशिया और यूरोप का प्रमुख ट्रांजिट हब बन सकता है।
अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए महत्व
- अफगानिस्तान: समुद्र से सीधी पहुँच नहीं होने के कारण अफगानिस्तान के लिए चाबहार एक जीवनरेखा की तरह है।
- मध्य एशिया: उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान जैसे देश अपने उत्पादों को वैश्विक बाजारों तक पहुँचाने के लिए चाबहार का उपयोग कर सकते हैं।
वर्तमान चुनौतियाँ
- अमेरिकी प्रतिबंध
- भारत की कंपनियों और निवेश पर असर
- वित्तीय लेन-देन मुश्किल
- भू-राजनीतिक अस्थिरता
- अफगानिस्तान में तालिबान शासन
- ईरान पर पश्चिमी देशों का दबाव
- चीन-पाकिस्तान कारक
- ग्वादर पोर्ट को चीन का बड़ा निवेश
- चाबहार और ग्वादर की प्रतिस्पर्धा
- परियोजना में देरी
- लंबे समय से काम धीमी गति से चल रहा है
- भारत-ईरान संबंधों में भी उतार-चढ़ाव
संभावित समाधान और आगे की राह
- कूटनीतिक संतुलन
भारत को अमेरिका और ईरान दोनों के साथ संतुलन साधना होगा। - मल्टीलेटरल सहयोग
INSTC में रूस, मध्य एशियाई देशों और यूरोप की भागीदारी बढ़ाकर भारत दबाव कम कर सकता है। - वैकल्पिक वित्तीय व्यवस्था
अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता घटाकर रुपया-रियाल व्यापार जैसे विकल्प खोजे जा सकते हैं। - क्षेत्रीय साझेदारी
भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों को सक्रिय रूप से चाबहार परियोजना से जोड़ना चाहिए।
निष्कर्ष
चाबहार पोर्ट केवल ईरान का एक बंदरगाह नहीं, बल्कि भारत की भू-राजनीतिक और आर्थिक रणनीति का महत्वपूर्ण केंद्र है। अमेरिका द्वारा दी गई छूट की वापसी से निश्चित रूप से भारत की योजनाओं को धक्का पहुँचेगा, लेकिन यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती।
भारत के सामने चुनौती है कि वह बदलते वैश्विक समीकरणों में अपने हितों को साधे और चाबहार को एशियाई कनेक्टिविटी का धड़कता हुआ केंद्र बनाए।
भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत, ईरान और अन्य साझेदार देश कितनी दूरदर्शिता और तत्परता से इस परियोजना को आगे बढ़ाते हैं।
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