भारत की ऐतिहासिक धरोहरें न केवल उसकी गौरवशाली संस्कृति की पहचान हैं, बल्कि वे प्राचीन विज्ञान, वास्तुकला और प्रबंधन प्रणाली की मिसाल भी पेश करती हैं। दक्षिण भारत के इतिहास में चोल वंश का योगदान अत्यंत गौरवशाली रहा है, जिन्होंने न केवल राजनीतिक दृष्टि से साम्राज्य विस्तार किया, बल्कि जल संसाधनों, मंदिरों और नगर नियोजन में भी अद्भुत प्रगति की। इसी क्रम में राजेन्द्र चोल प्रथम द्वारा निर्मित चोल गंगम झील (Chola Gangam Lake), जिसे पोंनेरी झील के नाम से भी जाना जाता है, जलविज्ञान और शहरी विकास की चोल दृष्टि का सशक्त उदाहरण है।
हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने इस ऐतिहासिक झील के संरक्षण, पुनरुद्धार और पर्यटन विकास के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना की घोषणा की है। यह न केवल एक पारिस्थितिकीय पहल है, बल्कि चोल काल की विरासत को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक सांस्कृतिक क्रांति भी मानी जा रही है।
चोल गंगम झील का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
राजेन्द्र चोल और उत्तर भारत विजय
चोल गंगम झील का निर्माण राजेन्द्र चोल प्रथम (1014–1044 ई.) द्वारा उनके उत्तर भारत विजय अभियान के उपरांत किया गया था। यह वही युग था जब दक्षिण भारत की चोल शक्ति बंगाल तक फैल चुकी थी और गंगा नदी तक पहुँचकर उन्होंने वहाँ से पवित्र जल मंगवाया था।
राजेन्द्र चोल ने उस गंगा जल को अपनी नई राजधानी गंगईकोंडा चोलपुरम में प्रतिष्ठित किया और इसी गंगा जल के सम्मान में इस विशाल झील का निर्माण कराया गया। इसलिए इसे “चोल गंगम” कहा गया — अर्थात चोलों द्वारा स्थापित गंगा।
राजधानी गंगईकोंडा चोलपुरम का जल स्रोत
गंगईकोंडा चोलपुरम को चोल साम्राज्य की नई राजधानी के रूप में विकसित किया गया था, जो न केवल प्रशासनिक और धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बनी, बल्कि जल प्रबंधन और नगर नियोजन की दृष्टि से भी अत्यंत उन्नत रही। चोल गंगम झील इस योजना का केंद्रीय अंग थी। इसका निर्माण न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक था, बल्कि नगर की जल आवश्यकताओं, कृषि सिंचाई और आर्थिक समृद्धि का आधार भी था।
चोल जल प्रबंधन प्रणाली: विज्ञान और कला का संगम
नहरों और जल निकासी व्यवस्था का विकास
चोल गंगम झील को कई सहायक नहरों से जोड़ा गया था, जिससे आसपास के गांवों और खेतों तक जल की निर्बाध आपूर्ति संभव हो पाती थी। यह प्रणाली ‘एकीकृत जल संचयन और वितरण व्यवस्था’ की अवधारणा पर आधारित थी, जिसे आज की भाषा में ‘वाटर हार्वेस्टिंग’ और ‘रिज़र्व वॉटर मैनेजमेंट’ कहा जा सकता है।
सतत कृषि और ग्रामीण विकास
झील और उसकी सहायक नहरें उस समय के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए जीवनरेखा सिद्ध हुईं। वर्षा जल संचयन और नदी से लाकर भराव की तकनीक ने न केवल सूखा प्रतिरोधी कृषि प्रणाली को मजबूत किया, बल्कि क्षेत्र में बहु फसली खेती को भी संभव बनाया।
धार्मिक–राजनीतिक दृष्टिकोण का परिचायक
झील की स्थापना का उद्देश्य केवल व्यावहारिक नहीं था, बल्कि यह एक धार्मिक प्रतीक के रूप में भी कार्य करती थी। गंगा जल का समावेश एक राजनीतिक संदेश था — कि चोल सम्राटों की सत्ता अब गंगा तक विस्तारित हो चुकी है। यह एक धर्म और सत्ता का मिलन था, जो चोल शासकों की दूरदर्शिता का प्रतीक बना।
आधुनिक पुनरुद्धार परियोजना: उद्देश्य और रणनीति
तमिलनाडु सरकार ने 2025 में एक समग्र पुनरुद्धार योजना की घोषणा की है, जो चोल गंगम झील की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय विरासत को पुनर्जीवित करने के लिए बनाई गई है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
1. संरक्षण और सफाई अभियान
- झील के चारों ओर की भूमि को अतिक्रमण मुक्त बनाया जाएगा।
- झील तल की गाद को हटाकर उसकी मूल गहराई और जलधारण क्षमता को पुनः प्राप्त किया जाएगा।
- नहरों और सहायक जल स्रोतों की मरम्मत और पुनर्स्थापना की जाएगी।
2. पारिस्थितिकीय पुनरुद्धार
- आसपास के जलाशयों और कुओं को झील से जोड़ा जाएगा, जिससे वर्षा जल संचयन बढ़ेगा।
- जैव विविधता को बहाल करने हेतु स्थानीय पौधों और जलीय जीवों का पुनर्वास किया जाएगा।
- झील क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित करने की प्रक्रिया पर भी विचार हो रहा है।
3. पर्यटन और विरासत विकास
- झील के किनारे विरासत संग्रहालय, व्याख्यान केंद्र और गाइडेड टूर रूट्स की स्थापना की जाएगी।
- गंगईकोंडा चोलपुरम से झील तक एक विरासत गलियारा (Heritage Corridor) विकसित किया जाएगा।
- युवाओं और छात्रों को चोल विज्ञान, स्थापत्य और जल प्रबंधन की जानकारी देने हेतु शैक्षणिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
4. स्थानीय रोजगार और सामाजिक समावेशन
- परियोजना के दौरान स्थानीय कारीगरों, मजदूरों और महिलाओं को प्राथमिकता दी जाएगी।
- पर्यटन के विस्तार से स्थानीय हस्तशिल्प, खानपान और सांस्कृतिक उत्पादों को नया बाज़ार मिलेगा।
- इस पहल से सैकड़ों लोगों के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे।
चोल इंजीनियरिंग की आज की प्रासंगिकता
आज जब भारत जल संकट, शहरी बाढ़ और पर्यावरणीय असंतुलन जैसी समस्याओं से जूझ रहा है, तब चोल गंगम झील जैसे ऐतिहासिक जल स्रोतों का पुनरुद्धार न केवल सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि समकालीन समाधान भी प्रस्तुत करता है।
चोलों की तकनीकें स्थायित्व, पारिस्थितिक समरसता और समुदाय-आधारित प्रबंधन की मिसाल थीं, जिन्हें आज भी जल प्रबंधन की शिक्षा में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
विरासत और आत्म-सम्मान का पुनर्निर्माण
चोल गंगम झील की यह परियोजना केवल पर्यावरणीय या तकनीकी दृष्टि से ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक आत्म-सम्मान और ऐतिहासिक स्मृति को पुनर्जीवित करने का भी प्रयास है। यह नई पीढ़ी को यह बताने का अवसर है कि भारत की प्राचीन सभ्यता में भी आधुनिकता, विज्ञान और दीर्घकालीन दृष्टिकोण का समावेश था।
निष्कर्ष
चोल गंगम झील का पुनरुद्धार एक बहुआयामी प्रयास है, जिसमें इतिहास, पारिस्थितिकी, तकनीक, पर्यटन और सांस्कृतिक चेतना का संगम दिखाई देता है। तमिलनाडु सरकार की यह परियोजना एक प्रेरणादायक मॉडल बन सकती है, जिसे देश के अन्य ऐतिहासिक जल स्रोतों और विरासत स्थलों के संरक्षण के लिए भी अपनाया जा सकता है।
इस परियोजना के माध्यम से न केवल एक ऐतिहासिक जल संरचना को जीवनदान मिलेगा, बल्कि राजेन्द्र चोल जैसे दूरदर्शी सम्राट की स्मृति और चोल सभ्यता के योगदान को भी विश्व पटल पर पुनः स्थापित किया जा सकेगा।
इन्हें भी देखें –
- भारत के तटीय मैदान | The Costal Plains of India
- भारत का विशाल उत्तरी मैदान | The Great Northern Plains of India
- भारत के प्रमुख दर्रे | Major Passes of India
- विश्व के 7 महाद्वीप | 195 देश उनकी राजधानी एवं मुद्रा
- उत्तर की महान पर्वत श्रृंखला | The Great Mountains of North
- राजेन्द्र चोल प्रथम आदि तिरुवथिरै महोत्सव (23–27 जुलाई 2025)
- चीनी नागरिकों को फिर से मिलेगा भारत का पर्यटन वीज़ा: भारत-चीन संबंधों में पर्यटन के ज़रिए नया अध्याय
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रचा इतिहास: भारत के दूसरे सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले प्रधानमंत्री बने
- प्रगतिवाद (1936–1943): जन्म, कवि, विशेषताएं, प्रवृत्तियाँ
- छायावादोत्तर युग (शुक्लोत्तर युग: 1936–1947 ई.) | कवि और उनकी रचनाएँ