छत्रपति शिवाजी महाराज | 1674 – 1680 ई.

छत्रपति शिवाजी महाराज  को भारतीय गणराज्य का महानायक और मराठा साम्राज्य का गौरव माना जाता है। शिवाजी महाराज अत्यंत बुद्धिमानी, शौर्य, निडर, सर्वाधिक शक्तिशाली, बहादुर और एक बेहद कुशल शासक एवं रणनीतिज्ञ थे। उन्होंने अपने कौशल और योग्यता के बल पर मराठों को संगठित कर मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी।

भारत के महान वीर सपूत और राजमाता जीजाबाई के साहसी पुत्र छत्रपति शिवाजी महाराज की वीरता की कहानी अद्भुत है, उनके जीवन से न सिर्फ लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है बल्कि राष्ट्रप्रेम की भावना भी प्रज्वलित होती है।

शिवाजी महाराज का इतिहास

शिवाजी महाराज पश्चिमी भारत में मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे। उन्हें अपने समय के सबसे महान योद्धाओं में से एक माना जाता है और आज भी लोककथाओं के एक हिस्से के रूप में उनके कारनामों की कहानियां सुनाई जाती हैं। 

अपनी वीरता और महान प्रशासनिक कौशल के साथ, शिवाजी ने बीजापुर के पतनशील आदिलशाही सल्तनत से एक एन्क्लेव बनाया। यह अंततः मराठा साम्राज्य की उत्पत्ति बन गया।

 शिवाजी ने अपना शासन स्थापित करने के बाद एक अनुशासित सैन्य और सुस्थापित प्रशासनिक व्यवस्था की मदद से एक सक्षम और प्रगतिशील प्रशासन लागू किया। 

शिवाजी अपनी सैन्य रणनीति के लिए जाने जाते हैं जो गैर-पारंपरिक तरीकों के इर्द-गिर्द केंद्रित थे, जो अपने अधिक शक्तिशाली दुश्मनों को हराने के लिए भूगोल, गति और आश्चर्य जैसे रणनीतिक कारकों का लाभ उठाते थे।

छत्रपति शिवाजी महाराज का संक्षिप्त परिचय

पूरा नाम (Real Name)शिवाजी राजे भोंसले
निक नेम (Nick Name )छत्रपति शिवाजी, शिवाजी महाराज
अन्य नाम (Other Name )छत्रपति शिवाजी महाराज
जन्म तारीख (Date of Birth) 19 फ़रवरी, 1630 ई.
उम्र (Age)50 वर्ष (मृत्यु के समय)
जन्म स्थान( Birth Place)शिवनेरी दुर्ग, महाराष्ट्र, भारत
मृत्यु की तारीख (Date Of Death )3 अप्रैल, 1680 ई.
मृत्यु स्थल (Palace Of Death )रायगढ़, मराठा साम्राज्य (वर्तमान में महाराष्ट्र), भारत
समाधि स्थल (Grave site )रायगढ़ किला, रायगढ़, मराठा साम्राज्य (वर्तमान में महाराष्ट्र)
राशि (Zodiac Sign)तुला
नागरिकता (Nationality)भारतीय
धर्म (Religion)हिन्दू
गुरु (Teacher)समर्थ रामदास
वंश (Linage)भोंसले
राजघराना (Royal family)मराठा
राज्याभिषेक (Coronation)6 जून, 1674 ई.
गृहनगर/राज्य (Hometown/state)शिवनेरी दुर्ग, महाराष्ट्र, भारत
व्यवसाय(Professions)शासक (राजा)
शासन काल1674 – 1680 ई.
शासन अवधि38 वर्ष
वैवाहिक स्थिति (Marital Status)वैवाहिक
शिवाजी के पत्नियों का नामसइबाई निम्बालकर
सोयराबाई मोहिते
पुतळाबाई पालकर
काशीबाई
सकवरबाई गायकवाड़
लक्ष्मीबाई,
सगुणाबाई,
गुणवंतीबाई

छत्रपति शिवाजी महाराज का शुरुआती जीवन

छत्रपति शिवाजी महाराज जिन्होंने अपना पूरा जीवन मानवता की रक्षा करने और देश में मराठा साम्राज्य की स्थापना करने में समर्पित कर दिया था।

वे एक ऐसे योद्दा थे जिन्होंने भारतीय जनता को मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त करवाया था, उन्होनें मुगल शासकों का साहसीपूर्वक सामना कर मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी। भारत भूमि शिवाजी महाराज जैसे महान योद्दाओं के जन्म से गौरान्वित हुई है।

शिवाजी महाराज का जन्म 19 फ़रवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। इनके पिता का नाम शाहजी भोसलें और माता का नाम जीजाबाई था। शिवनेरी दुर्ग पुणे के पास है। उनकी माता ने उनका नाम भगवान शिवाय के नाम पर शिवाजी रखा। उनकी माता भगवान शिवाय से स्वस्थ सन्तान के लिए प्रार्थना किया करती थी।

शिवाजी के पिताजी शाहजी भोंसले एक मराठा सेनापति थे, जो कि डेक्कन सल्तनत के लिए कार्य किया करते थे। शिवाजी के जन्म के समय डेक्कन की सत्ता तीन इस्लामिक सल्तनतों बीजापुर, अहमदनगर और गोलकोंडा में थी। शिवाजी अपनी माँ जीजाबाई के प्रति बेहद समर्पित थे।

उनकी माँ बहुत ही धार्मिक थी। उनकी माता शिवाजी को बचपन से ही युद्ध की कहानियां तथा उस युग की घटनाओं के बारे में बताती रहती थीं, खासकर उनकी माँ उन्हें रामायण और महाभारत की प्रमुख कहानियाँ सुनाती थीं। जिन्हें सुनकर शिवाजी के ऊपर बहुत ही गहरा असर पड़ा था।

इन दो ग्रंथो की वजह से वो जीवनपर्यन्त हिन्दू महत्वो का बचाव करते रहे। इसी दौरान शाहजी ने दूसरा विवाह किया और अपनी दुसरी पत्नी तुकाबाई के साथ कर्नाटक में आदिलशाह की तरफ से सैन्य अभियानो के लिए चले गए। उन्होंने शिवाजी और जीजाबाई को दादोजी कोंणदेव के पास छोड़ दिया। दादोजी ने शिवाजी को बुनियादी लड़ाई तकनीकों के बारे में जैसे कि- घुड़सवारी, तलवारबाजी और निशानेबाजी सिखाई।

शिवाजी महाराज का परिवार

पिता का नाम (Father’s Name )शाहजी भोंसले
माता का नाम (Mother’s Name )जीजाबाई
भाई का नाम (Brother’s Name )इकोजी 1 (सौतेला भाई)
पत्नीयो का नाम (Wife’s Name )सईबाई,
सोयराबाई,
पुतळाबाई,
काशीबाई,
सकवारबाई,
लक्ष्मीबाई,
सगुणाबाई,
गुणवंतीबाई
बेटे का नाम (Son’s Name )संभाजी (सइबाई से )
राजाराम (सोयराबाई से )
बेटी का नाम (Daughter’s Name )सखुबाई , रूनुबाई एवं अंबिकाबाई (सइबाई से ),
दीपाबाई (सोयराबाई से ),
कमलाबाई (सकवरबाई से )

शिवाजी महाराज का विवाह 14 मई 1640 में सईबाई निम्बलाकर के साथ लाल महल, पूना (पुणे) में हुआ था। सईंबाई ने ही संभाजी को जन्म दिया था।

शिवाजी महाराज का आदिलशाही साम्राज्य पर आक्रमण

शिवाजी महाराज ने वर्ष 1645 में, आदिलशाह सेना को बिना सूचित किए कोंड़ना किला पर हमला कर दिया। इसके बाद आदिलशाह सेना ने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार कर लिया। आदिलशाह सेना ने यह मांग रखी कि वह उनके पिता को तबरिहा करेगा जब वह कोंड़ना का किला छोड़ देंगे। उनके पिता की रिहाई के बाद 1645 में शाहजी की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद शिवाजी ने फिर से आक्रमण करना शुरू कर दिया।

वर्ष 1659 में, आदिलशाह ने अपने सबसे बहादुर सेनापति अफज़ल खान को शिवाजी को मारने के लिए भेजा। शिवाजी और अफज़ल खान 10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ के किले के पास एक झोपड़ी में मिले। दोनों के बीच एक शर्त रखी गई कि वह दोनों अपने साथ केवल एक ही तलवार लाए गए।

शिवाजी को अफज़ल खान पर भरोसा नही था और इसलिए शिवाजी ने अपने कपड़ो के नीचे कवच डाला और अपनी दाई भुजा पर बाघ नख (Tiger’s Claw) रखा और अफज़ल खान से मिलने चले गए। अफज़ल खान ने शिवाजी के ऊपर वार किया लेकिन अपने कवच की वजह से वह बच गए, और फिर शिवाजी ने अपने बाघ नख (Tiger’s Claw) से अफज़ल खान पर हमला कर दिया। हमला इतना घातक था कि अफज़ल खान बुरी तरह से घायल हो गया, और उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद शिवाजी के सैनिकों ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया।

शिवाजी ने 10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ के युद्ध में बीजापुर की सेना को हरा दिया। शिवाजी की सेना ने लगातार आक्रमण करना शुरू कर दिया। शिवाजी की सेना ने बीजापुर के 3000 सैनिक मार दिए, और अफज़ल खान के दो पुत्रों को गिरफ्तार कर लिया। शिवाजी ने बड़ी संख्या में हथियारों ,घोड़ों,और दुसरे सैन्य सामानों को अपने अधीन कर लिया। इससे शिवाजी की सेना और ज्यादा मजबूत हो गई, और मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे मुगल साम्राज्य का सबसे बड़ा खतरा समझा।

शिवाजी महाराज का मुगलों से पहला मुकाबला

मुगलों के शासक औरंगजेब का ध्यान उत्तर भारत के बाद दक्षिण भारत की तरफ गया। उसे शिवाजी के बारे में पहले से ही मालूम था। औरंगजेब ने दक्षिण भारत में अपने मामा शाइस्ता खान को सूबेदार बना दिया था। शाइस्ता खान अपने 150,000 सैनिकों को लेकर पुणे पहुँच गया और उसने वहां लूटपाट शुरू कर दी।

शिवाजी ने अपने 350 मावलो के साथ उनपर हमला कर दिया था, तब शाइस्ता खान अपनी जान बचाकर भाग खड़ा हुआ और शाइस्ता खान को इस हमले में अपनी 3 उँगलियाँ गंवानी पड़ी। इस हमले में शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खान के पुत्र और उनके 40 सैनिकों का वध कर दिया। शाइस्ता खान ने पुणे से बाहर मुगल सेना के पास जा कर शरण ली और औरंगजेब ने शर्मिंदगी के मारे शाइस्ता खान को दक्षिण भारत से हटाकर बंगाल का सूबेदार बना दिया।

सूरत में लूट

इस जीत के बाद शिवाजी की शक्ति और ज्यादा मजबूत हो गई थी। लेकिन कुछ समय बाद शाइस्ता खान ने अपने 15,000 सैनिकों के साथ मिलकर  शिवाजी के कई क्षेत्रो को जला कर तबाह कर दिया, बाद में शिवाजी ने इस तबाही का बदला लेने के लिए मुगलों के क्षेत्रों में जाकर लूटपाट शुरू कर दी। सूरत उस समय हिन्दू मुसलमानों का हज पर जाने का एक प्रवेश द्वार था। शिवाजी ने 4 हजार सैनिकों के साथ सूरत के व्यापारियों को लूटने का आदेश दिया, लेकिन शिवाजी ने किसी भी आम आदमी को अपनी लूट का शिकार नहीं बनाया।

शिवाजी महाराज को आगरा में आमन्त्रित करना और बंदी बनाना

छत्रपति शिवाजी महाराज

सन 1666 की गर्मियों में मुगल सम्राट औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को उनके 50वें जन्मदिन समारोह के अवसर पर आगरा के शाही दरबार में शामिल होने का न्योता भेजा। इस आमंत्रण को स्वीकार करते हुए, शिवाजी महाराज ने अपने बेटे राजकुमार संभाजी के साथ आगरा की यात्रा की और वे 12 मई 1666 को आगरा पहुंचे।

शिवाजी महाराज और उनके बेटे के आगरा आगमन पर भव्य स्वागत की अपेक्षा थी। वे यह सोचकर वहां गए थे कि मुगल सम्राट उनके सम्मान में विशेष आयोजन करेंगे। हालांकि, औरंगजेब के इरादे कुछ और ही थे। दरबार में पहुंचने पर, शिवाजी महाराज को औरंगजेब ने उचित सम्मान नहीं दिया। इस अपमान से आहत शिवाजी ने दरबार में खुलकर अपनी नाराजगी और रोष व्यक्त किया।

औरंगजेब ने इस स्थिति का फायदा उठाते हुए शिवाजी महाराज को बंदी बनाने का निर्णय लिया। उन्हें उनके बेटे संभाजी के साथ नजरबंद कर दिया गया। और शिवाजी पर 500 सैनिकों का पहरा लगा दिया। यह शिवाजी महाराज के लिए एक बड़ा आघात था, क्योंकि उन्होंने एक शाही निमंत्रण को मान देकर आगरा की यात्रा की थी, लेकिन वहां उनके साथ विश्वासघात हुआ।

आगरा में बंदी बनाए जाने के बाद शिवाजी महाराज ने अपनी बुद्धिमत्ता और चतुराई का परिचय देते हुए इस संकट से निकलने की योजना बनाई। उन्होंने बीमार होने का बहाना बनाया। उनके आग्रह करने पर उनकी स्वास्थ्य की दुआ करने वाले आगरा के संत, फकीरों और मन्दिरों में प्रतिदिन मिठाइयाँ और उपहार भेजने की अनुमति दे दी गई थी।

कुछ दिनों तक यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। एक दिन शिवाजी ने अपने अनुयायियों के माध्यम से संभाजी को मिठाइयों की टोकरी में बैठाकर और खुद मिठाई की टोकरी उठाने वाला मजदूर बनकर वहा से भाग गए। इसके बाद शिवाजी ने खुद को और संभाजी को मुगलों से बचाने के लिए संभाजी की मौत की अफवाह फैला दी। इसके बाद संभाजी को मथुरा में एक ब्राह्मण के यहाँ छोड़ कर शिवाजी महाराज बनारस चले गए। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली।

शिवाजी महाराज की यह साहसिक और बुद्धिमत्ता से भरी घटना न केवल उनके धैर्य और साहस को दर्शाती है, बल्कि उनकी नेतृत्व क्षमता और रणनीतिक कौशल का भी प्रमाण है। आगरा से भागने के बाद, शिवाजी महाराज ने पुनः अपने साम्राज्य की रक्षा और विस्तार में जुट गए और मराठा साम्राज्य को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जसवंत सिंह ( शिवाजी का मित्र) के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार सन्धि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र संभाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया, लेकिन, सिंहगढ़ और पुरन्दर पर मुग़लों का अधिपत्य बना रहा। सन् 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लूटा, नगर से 132 लाख की सम्पत्ति शिवाजी के हाथ लगी और लौटते वक्त शिवाजी ने एक बार फिर मुगल सेना को सूरत में हराया।

इस जीत के बाद शिवाजी की शक्ति और ज्यादा मजबूत हो गई थी। लेकिन कुछ समय बाद शाइस्ता खान ने अपने 15,000 सैनिकों के साथ मिलकर  शिवाजी के कई क्षेत्रो को जला कर तबाह कर दिया, बाद में शिवाजी ने इस तबाही का बदला लेने के लिए मुगलों के क्षेत्रों में जाकर लूटपाट शुरू कर दी। सूरत उस समय हिन्दू मुसलमानों का हज पर जाने का एक प्रवेश द्वार था। शिवाजी ने 4 हजार सैनिकों के साथ सूरत के व्यापारियों को लूटने का आदेश दिया, लेकिन शिवाजी ने किसी भी आम आदमी को अपनी लूट का शिकार नहीं बनाया।

शिवाजी महाराज के धार्मिक कार्य

शिवाजी एक कट्टर हिन्दू थे, वह सभी धर्मों का सम्मान करते थे। उनके राज्य में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता थी। शिवाजी ने कई मस्जिदों के निर्माण के लिए दान भी दिए था। हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान सन्तों और फ़कीरों को बराबर का सम्मान प्राप्त था। उनकी सेना में कई मुस्लिम सैनिक भी थे। शिवाजी हिन्दू संकृति का प्रचार किया करते थे। वह अक्सर दशहरा पर अपने अभियानों का आरम्भ किया करते थे।

शिवाजी महाराज की नौसेना

शिवाजी नौसेना

शिवाजी ने काफी कुशलता से अपनी सेना को खड़ा किया था। उनके पास एक विशाल नौसेना (Navy) भी थी। जिसके प्रमुख मयंक भंडारी थे। शिवाजी ने अनुशासित सेना तथा सुस्थापित प्रशासनिक संगठनों की मदद से एक निपुण तथा प्रगतिशील सभ्य शासन स्थापित किया। उन्होंने सैन्य रणनीति में नवीन तरीके अपनाएं जिसमें दुश्मनों पर अचानक आक्रमण करना जैसे तरीके शामिल थे।

शिवाजी महाराज का प्रशासनिक कौशल

शिवाजी को एक सम्राट के रूप में जाना जाता है। उनको बचपन में कुछ खास शिक्षा नहीं मिली थी, लेकिन वह फिर भी भारतीय इतिहास और राजनीति से अच्छी तरह से परिचत थे। शिवाजी ने प्रशासकीय कार्यों में मदद के लिए आठ मंत्रियों का एक मंडल तैयार किया था, जिसे अष्टप्रधान कहा जाता था।

इसमें मंत्रियों प्रधान को पेशवा कहते थे, राजा के बाद सबसे ज्यादा महत्व पेशवा का होता था। अमात्य वित्त मंत्री और राजस्व के कार्यों को देखता था, और मंत्री राजा के दैनिक कार्यों का लेखा जोखा रखता था। सचिव दफ्तरी काम किया करता था। सुमन्त विदेश मंत्री होता था जो सारे बाहर के काम किया करता था। सेनापति सेना का प्रधान होता था। पण्डितराव दान और धार्मिक कार्य किया करता था। न्यायाधीश कानूनी मामलों की देखरेख करता था।

मराठा साम्राज्य उस समय तीन या चार विभागों में बटा हुआ था। प्रत्येक प्रान्त में एक सूबेदार था जिसे प्रान्तपति कहा जाता था। हरेक सूबेदार के पास एक अष्टप्रधान समिति होती थी। न्यायव्यवस्था प्राचीन प्रणाली पर आधारित थी। शुक्राचार्य, कौटिल्य और हिन्दू धर्मशास्त्रों को आधार मानकर निर्णय दिया जाता था। गाँव के पटेल फौजदारी मुकदमों की जाँच करते थे। राज्य की आय का साधन भूमिकर था, सरदेशमुखी से भी राजस्व वसूला जाता था। पड़ोसी राज्यों की सुरक्षा की गारंटी के लिए वसूले जाने वाला सरदेशमुखी कर था। शिवाजी अपने आपको मराठों का सरदेशमुख कहा करते थे और इसी हैसियत से सरदेशमुखी कर वसूला जाता था।

शिवाजी महाराज का चरित्र

शिवाजी महाराज ने अपने पिता से स्वराज की शिक्षा हासिल की, जब बीजापुर के सुल्तान ने उनके पिता को गिरफ्तार कर लिया था तो शिवाजी ने एक आदर्श पुत्र की तरह अपने पिता को बीजापुर के सुल्तान से सन्धि कर के छुड़वा लिया। अपने पिता की मृत्यु के बाद ही शिवाजी ने अपना राज-तिलक करवाया। सभी प्रजा शिवजी का सम्मान करती थी और यही कारण है कि शिवाजी के शासनकाल के दौरान कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी घटना नहीं हुई थी। वह एक महान सेना नायक के साथ-साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे। वह अपने शत्रु को आसानी से मात दे देते थे।

शिवाजी महाराज के बारे में एक पुस्तक “गनिमी कावा” लिखी गई है, जिसमें उनके शत्रु पर अचानक से आक्रमण करने के कई किस्से हैं।

शिवाजी महाराज का सिक्का 

एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। जिसे “शिवराई” कहते थे, और यह सिक्का संस्कृत भाषा में था।

शिवाजी महाराज राजमुद्रा

शिवाजी महाराज की मृत्यु

शिवाजी महाराज

3 अप्रैल, 1680 में लगातार तीन सप्ताह तक बीमार रहने के बाद यह वीर हिन्दू सम्राट सदा के लिए इतिहासों में अमर हो गया, और उस समय उनकी आयु 50 वर्ष थी। शिवाजी महाराज एक वीर पुरुष थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन मराठा, हिन्दू साम्राज्य के लिए समर्पित कर दिया। मराठा इतिहास में सबसे पहला नाम शिवाजी का ही आता है। आज महाराष्ट्र में ही नहीं पूरे देश में वीर शिवाजी महाराज की जयंती बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाई जाती है।


इन्हें भी देखें –

1 thought on “छत्रपति शिवाजी महाराज | 1674 – 1680 ई.”

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