हिंदी साहित्य का इतिहास अनेक युगों, प्रवृत्तियों और आंदोलनों से समृद्ध रहा है। इन सबके बीच छायावादोत्तर युग अथवा शुक्लोत्तर युग (1936–1947) को एक अत्यंत महत्वपूर्ण परिवर्तनशील कालखंड के रूप में देखा जाता है। यह वह समय था जब हिंदी कविता छायावाद की सीमाओं से बाहर निकलकर नए विमर्शों, विषयों और प्रयोगों की ओर अग्रसर हुई। छायावाद जहाँ मुख्यतः व्यक्तिगत अनुभूतियों, रहस्यात्मकता और प्रकृति चित्रण का युग था, वहीं छायावादोत्तर युग में साहित्य ने सामाजिक, राजनीतिक, राष्ट्रीय और वैयक्तिक चेतना के साथ गहन संबंध स्थापित किया।
यह काल भारतीय इतिहास में भी परिवर्तन का समय था—भारत में स्वतंत्रता संग्राम अपनी अंतिम अवस्था में पहुँच चुका था, समाज में अनेक स्तरों पर उथल-पुथल थी, साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, जातिवाद और शोषण के विरुद्ध आवाजें उठने लगी थीं। यह सब साहित्य को प्रभावित करता है, और यही कारण है कि छायावादोत्तर युग की कविता बहुविध धाराओं में विभक्त हो जाती है।
छायावादोत्तर युग (शुक्लोत्तर युग) की प्रमुख प्रवृत्तियाँ:
- छायावादी कल्पना और आत्मवृत्ति की सीमाओं से बाहर निकलना
- सामाजिक यथार्थ की अभिव्यक्ति
- राष्ट्रीय चेतना और स्वतंत्रता संग्राम की गूंज
- वैयक्तिक प्रेम और मस्ती के गीत
- प्रयोगों और नव्यता की ओर झुकाव
- प्रगतिशील विचारधारा का उद्भव और प्रसार
- छंदमुक्त कविता और नई भाषा-शैली का विकास
- कविता के क्षेत्र में विषयवस्तु का विस्तार – शोषण, स्त्री, किसान, मजदूर, युद्ध, शांति आदि
काव्यधाराओं का वर्गीकरण:
छायावादोत्तर युग की कविता को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है:
- पुरानी काव्यधारा
- नवीन काव्यधारा
1. पुरानी काव्यधारा
यह धारा छायावादी परंपरा से जुड़ी हुई थी, किंतु विषयवस्तु में कुछ परिवर्तन लेकर आई। इसे दो उपधाराओं में विभाजित किया गया है:
(क) राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा
(ख) उत्तर-छायावादी काव्यधारा
(क) राष्ट्रीय सांस्कृतिक काव्यधारा
इस धारा के कवि राष्ट्र प्रेम, सांस्कृतिक गौरव, स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय परंपरा के गौरव को केन्द्र में रखते हुए काव्य रचना करते हैं। इनकी कविता में भारत की पावन भूमि, संस्कृति, इतिहास और सामाजिक चेतना का उद्घोष होता है।
प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ:
- सियाराम शरण गुप्त – यशोधरा, जयभारत, वाक्य और व्यक्ति
- माखनलाल चतुर्वेदी – पुष्प की अभिलाषा, हिमकिरीटिनी, सपनों के से दिन, आहुति
- रामधारी सिंह ‘दिनकर’ – रेणुका, हुंकार, कुरुक्षेत्र, रसवन्ती, रश्मिरथी
- बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ – कविता की छाया, नवजीवन
- सोहनलाल द्विवेदी – जय भारत, भारत के नवयुवक
- श्यामनारायण पाण्डेय – हल्दीघाटी, झांसी की रानी
इन रचनाओं में भावात्मकता के साथ-साथ ओज, देशभक्ति और प्रेरणा की भावना स्पष्ट देखी जा सकती है।
(ख) उत्तर-छायावादी काव्यधारा
यह धारा छायावाद के ही कवियों की नवीन अभिव्यक्ति है। वे छायावादी सौंदर्यबोध और रहस्यवाद से हटकर सामाजिक सरोकारों की ओर उन्मुख हुए। इन कवियों ने यथार्थ, संघर्ष और जीवन के विविध पक्षों को प्रस्तुत किया।
प्रमुख कवि और रचनाएँ:
- सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ – तुलसीदास, राम की शक्ति पूजा, कुकुरमुत्ता, भिक्षुक, वेला, गीतिका
- सुमित्रानंदन पंत – युगांत, ग्राम्या, लोकायतन, स्वर्ण किरण
- महादेवी वर्मा – नीहार, रश्मि, नीरजा, दीप शिखा, संध्यागीत
- जानकी वल्लभ शास्त्री – राधा, मेघगीत, कल्याणी
इनकी काव्य-यात्रा छायावाद के भावलोक से होते हुए सामाजिक यथार्थ की दिशा में बढ़ती है। विशेषकर निराला ने विद्रोह, संघर्ष और शोषित वर्ग की पीड़ा को स्वर दिया।
2. नवीन काव्यधारा
यह धारा छायावाद के बाद साहित्य में आए प्रगतिवादी, प्रयोगवादी और नवकाव्य आंदोलन का प्रतिनिधित्व करती है। इसमें वैयक्तिक अनुभूतियाँ, सामाजिक सरोकार, राजनीतिक चेतना, यथार्थवाद और आधुनिकता की अनेक प्रवृत्तियाँ देखने को मिलती हैं। इसे चार उपधाराओं में बांटा गया है:
(क) वैयक्तिक गीति कविता धारा (प्रेम और मस्ती की काव्य धारा)
(ख) प्रगतिवादी काव्यधारा
(ग) प्रयोगवादी काव्यधारा
(घ) नयी कविता काव्यधारा
(क) वैयक्तिक गीति कविता धारा (प्रेम और मस्ती की काव्य धारा)
इस धारा में कवियों ने अपने निजी अनुभवों, प्रेम, सुख-दुख, मस्ती और मानव मन की भावनाओं को गेय शैली में प्रस्तुत किया।
प्रमुख कवि और रचनाएँ:
- हरिवंश राय बच्चन – मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, दो चट्टानें
- नरेंद्र शर्मा – रूपरस, नीलिमा, संघर्ष
- रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ – अनुरक्ति, ज्योतिर्माला
- भगवती चरण वर्मा – ठुकरा दो यों प्यार करें क्या, बूढ़ी काकी (गद्य में भी प्रसिद्ध)
- नेपाली (रामलाल नेपाली) – उमंग, तरुणाई
- आर.सी. प्रसाद सिंह – कनक चंपा का पेड़, गीत निकुंज
इनकी कविता में आधुनिक बोध के साथ-साथ लोकगीतों की सहजता भी देखी जा सकती है।
(ख) प्रगतिवादी काव्यधारा
प्रगतिशील लेखक संघ (1936) की स्थापना से हिंदी कविता में मार्क्सवादी विचारधारा का प्रवेश हुआ। यह धारा सामाजिक अन्याय, आर्थिक विषमता, श्रम और वर्ग-संघर्ष की आवाज बनकर उभरी।
प्रमुख कवि और रचनाएँ:
- केदारनाथ अग्रवाल – फूल नहीं रंग बोलते हैं, हे मेरी तुम
- रामविलास शर्मा – आलोचना में प्रमुख; भारतीय संस्कृति और हिंदी कविता
- नागार्जुन – यात्री, पाँच पूत भारत माता के, रतिनाथ की चाची
- रांगेय राघव – यशोधरा, मेरे भी राम, गुंडा
- शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ – मिलती है जीवन में सफलता, चलो फिर से मुस्कुराएँ
- त्रिलोचन – दिगंत, धरती, अराधना
इन कवियों की कविता श्रमिकों, किसानों और शोषित वर्ग के संघर्ष की साक्षी है।
(ग) प्रयोगवादी काव्यधारा
यह धारा छायावाद और प्रगतिवाद से भिन्न, भाषा, शिल्प और भावभूमि के स्तर पर नए प्रयोगों की ओर उन्मुख थी। यहां कवि आत्मचिंतन, अस्तित्व, मनोविज्ञान और दार्शनिक जटिलताओं की ओर अग्रसर होते हैं।
प्रमुख कवि और रचनाएँ:
- अज्ञेय (सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन) – इत्यादि, हरी घास पर क्षण भर, शेखर: एक जीवनी
- गिरिजा कुमार माथुर – नदी के द्वीप, कुछ और
- गजानन माधव मुक्तिबोध – भूरी-भूरी खाक धूल, चाँद का मुंह टेढ़ा है
- भवानी प्रसाद मिश्र – कहीं कुछ और, बुंदेली भाषाई कविताएँ
- शमशेर बहादुर सिंह – चुका भी हूँ मैं नहीं, कुछ और कविताएँ
यह धारा बाद में ‘नयी कविता’ का आधार बनी।
(घ) नयी कविता काव्यधारा
‘नयी कविता’ 1950 के दशक में उभरती है लेकिन इसकी जड़ें छायावादोत्तर युग में ही पाई जाती हैं। इसमें शहरी जीवन की जटिलताएँ, अस्तित्व का संकट, अकेलापन, विखंडन और गहन आत्मबोध की प्रस्तुति होती है।
प्रमुख कवि और रचनाएँ:
- धर्मवीर भारती – ठंडा लोहा, गुनाहों का देवता, सूरज का सातवाँ घोड़ा
- रघुवीर सहाय – लोग भूल गए हैं, हँसो हँसो जल्दी हँसो
- कुँवर नारायण – आत्मजयी, कोई दूसरा नहीं
- अराजक और तीव्र बौद्धिक विमर्शों की प्रस्तुति – मुक्तिबोध, केदारनाथ सिंह आदि द्वारा
छायावादोत्तर या शुक्लोत्तर युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ
छायावादोत्तर युग के दौरान हिंदी कविता में अनेक प्रतिभाशाली कवियों ने अपनी लेखनी से साहित्य को समृद्ध किया। इनमें कुछ छायावाद के उत्तराधिकारी थे, तो कुछ नवीन प्रयोगवाद, प्रगतिवाद और नयी कविता के संवाहक बने। इस युग की कविता बहुविध विषयों, शैलियों और दृष्टिकोणों से भरी हुई है। नीचे छायावादोत्तर युग के प्रमुख कवियों और उनकी महत्वपूर्ण काव्य-रचनाओं की सूची प्रस्तुत की जा रही है:
क्रम | कवि / रचनाकार | प्रमुख रचनाएँ |
---|---|---|
1 | रामधारी सिंह ‘दिनकर’ | हुंकार, रेणुका, द्वंद्वगीत, कुरुक्षेत्र, इतिहास के आँसू, रश्मिरथी, धूप और धुआँ, दिल्ली, रसवंती, उर्वशी |
2 | बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ | कुंकुम, उर्मिला, अपलक, रश्मिरेखा, क्वासि, हम विषपायी जनम के |
3 | हरिवंशराय बच्चन | मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, सूत की माला, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, सतरंगिनी, मिलन-यामिनी, आरती और अंगारे, आकुल-अंतर |
4 | सुमित्रानंदन पंत | शिल्पी, अतिमा, कला और बूढ़ा चाँद, लोकायतन, सत्यकाम |
5 | जानकी वल्लभ शास्त्री | मेघगीत, अवंतिका |
6 | नरेंद्र शर्मा | प्रभातफेरी, प्रवासी के गीत, पलाश वन, मिट्टी और फूल, कदलीवन |
7 | रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ | मधूलिका, अपराजिता, किरणबेला, लाल चूनर |
8 | आरसी प्रसाद सिंह | कलापी, पांचजन्य |
9 | केदारनाथ सिंह | नींद के बादल, फूल नहीं रंग बोलते हैं, अपूर्व, युग की गंगा |
10 | नागार्जुन | प्यासी पथराई आँखें, युगधारा, भस्मांकुर, सतरंगे पंखों वाली, रत्नगर्भ, हरिजन गाथा |
11 | रांगेय राघव | राह का दीपक, अजेय खंडहर, पिघलते पत्थर, मेधावी, पांचाली |
12 | गिरिजा कुमार माथुर | मंजीर, कल्पांतर, शिलापंख चमकीले, नाश और निर्माण, मशीन का पुर्जा, धूप के धान, मैं वक्त के हूँ सामने, छाया मत छूना मन |
13 | गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ | भूरी-भूरी खाक धूल, चाँद का मुँह टेढ़ा है |
14 | भवानी प्रसाद मिश्र | सतपुड़ा के जंगल, गीतफरोश, खुशबू के शिलालेख, बुनी हुई रस्सी, कालजयी, गांधी पंचशती, कमल के फूल, इदं न मम, चकित हैं दुःख, वाणी की दीनता |
15 | अज्ञेय (सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन) | भग्नदूत, इत्यलम्, हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, असाध्य वीणा, कितनी नावों में कितनी बार, नदी की बौंक पर छाया, सागर मुद्रा, रूपाम्बरा, प्रिजन डेज एंड अदर पोएम्स (अंग्रेज़ी में) |
16 | धर्मवीर भारती | अंधायुग, कनुप्रिया, ठंडा लोहा, सात गीत वर्ष |
17 | शमशेर बहादुर सिंह | अमन का राग, चूका भी नहीं हूँ मैं, इतने पास अपने |
18 | कुंवर नारायण | परिवेश, हम तुम, चक्रव्यूह, आत्मजयी, आमने-सामने |
19 | नरेश मेहता | संशय की एक रात, वनपाखी सुनो, मेरा समर्पित एकांत, बोलने दो चीड़ को |
20 | त्रिलोचन | मिट्टी की बारात, धरती, गुलाब और बुलबुल, दिगंत, ताप के ताये हुए दिन, सात शब्द, उस जनपद का कवि हूँ |
21 | भारत भूषण अग्रवाल | कागज़ के फूल, जागते रहो, मुक्तिमार्ग, ओ अप्रस्तुत मन, उतना वह सूरज है |
22 | दुष्यंत कुमार | साये में धूप, सूर्य का स्वागत, एक कंठ विषपायी, आवाज के घंटे |
23 | प्रभाकर माचवे | जहाँ शब्द हैं, तेल की पकौड़ियाँ, स्वप्नभंग, अनुक्षण, मेपल |
24 | रघुवीर सहाय | सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, लोग भूल गए हैं, मेरा प्रतिनिधि, हँसो हँसो जल्दी हँसो |
25 | शंभूनाथ सिंह | मन्वंतर, खंडित सेतु |
26 | शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ | हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय-सृजन, विश्वास बढ़ता ही गया |
27 | शकुंतला माथुर | अभी और कुछ इनका, चाँदनी और चूनर, दोपहरी, सुनसान गाड़ी |
28 | सर्वेश्वर दयाल सक्सेना | खूटियों पर टंगे लोग, कुआनो नदी, बाँस के पुल, काठ की घंटियाँ, एक सूनी नाव, गर्म हवाएँ, जंगल का दर्द |
29 | विजयदेव नारायण साही | मछलीघर, संवाद तुम से साखी |
30 | जगदीश गुप्त | नाव के पाँव, शब्दशः, हिमबिद्ध, युग्म |
31 | हरिनारायण व्यास | मृग और तृष्णा, एक नशीला चाँद, उठे बादल झुके बादल, त्रिकोण पर सूर्योदय |
32 | श्रीकांत वर्मा | मायादर्पण, मगध, शब्दों की शताब्दी, दीनारंभ |
33 | राजकमल चौधरी | कंकावती, मुक्तिप्रसंग |
34 | अशोक वाजपेयी | एक पतंग अनंत में, शहर अब भी संभावना है |
35 | बालस्वरूप राही | जो नितांत मेरी है |
36 | धूमिल (सुदामा पाण्डेय) | संसद से सड़क तक, कल सुनना मुझे, सुदामा पाण्डेय का प्रजातंत्र |
37 | अजित कुमार | अंकित होने दो, अकेले कंठ की पुकार |
38 | रामदरश मिश्र | पक गई है धूप, वैरंग बेनाम चिट्ठियाँ |
39 | डॉ० विनय | एक पुरुष और, कई अंतराल, दूसरा राग |
40 | जगदीश चतुर्वेदी | इतिहास हंता |
41 | प्रमोद कौसवाल | अपनी तरह का आदमी |
42 | संजीव मिश्र | कुछ शब्द जैसे मेज |
43 | सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ | कुकुरमुत्ता, गर्म पकौड़ी, प्रेम-संगीत, मास्को डायलाग्स, स्फटिक शिला, सांध्य काकली (प्रकाशन मरणोपरांत) |
44 | उदयप्रकाश | सुनो कारीगर, क से कबूतर |
निष्कर्ष
छायावादोत्तर युग न केवल हिंदी कविता में विविध प्रवृत्तियों और शैलियों के विकास का समय था, बल्कि यह भारतीय समाज के बहुआयामी संघर्षों, बदलावों और चेतना का भी प्रतिबिंब है। इस युग में जहाँ एक ओर छायावादी कवि नए संदर्भों में अपने स्वर को ढाल रहे थे, वहीं दूसरी ओर प्रगतिशील और प्रयोगवादी धारा नई दृष्टि, नई भाषा और नए यथार्थ की खोज में थीं।
यह युग परंपरा और आधुनिकता के बीच एक सेतु का कार्य करता है। हिंदी कविता का यह बहुरंगी युग आज भी साहित्यप्रेमियों के लिए अध्ययन, विमर्श और प्रेरणा का स्रोत है। इसकी समृद्ध विरासत को समझना और संरक्षित करना हमारी सांस्कृतिक जिम्मेदारी है।
छायावादोत्तर युग: महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी
भाग – 1 : वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Questions)
- छायावादोत्तर युग की शुरुआत कब मानी जाती है?
A. 1920 ई०
B. 1936 ई०
C. 1947 ई०
D. 1950 ई०
✅ उत्तर: B. 1936 ई० - छायावादोत्तर युग को किस अन्य नाम से जाना जाता है?
A. आधुनिक युग
B. स्वर्ण युग
C. शुक्लोत्तर युग
D. नवजागरण युग
✅ उत्तर: C. शुक्लोत्तर युग - “रेणुका” किस कवि की रचना है?
A. महादेवी वर्मा
B. हरिवंश राय बच्चन
C. रामधारी सिंह दिनकर
D. सुमित्रानंदन पंत
✅ उत्तर: C. रामधारी सिंह दिनकर - “मधुशाला” का संबंध किस कवि से है?
A. नागार्जुन
B. अज्ञेय
C. हरिवंश राय बच्चन
D. धर्मवीर भारती
✅ उत्तर: C. हरिवंश राय बच्चन - ‘नयी कविता’ आंदोलन से जुड़ा कवि नहीं है –
A. अज्ञेय
B. शमशेर बहादुर सिंह
C. कुंवर नारायण
D. माखनलाल चतुर्वेदी
✅ उत्तर: D. माखनलाल चतुर्वेदी - “संसद से सड़क तक” किस रचनाकार की प्रसिद्ध रचना है?
A. धूमिल
B. धर्मवीर भारती
C. मुक्तिबोध
D. शंभूनाथ सिंह
✅ उत्तर: A. धूमिल - “असाध्य वीणा” किसकी प्रसिद्ध कविता है?
A. शमशेर बहादुर सिंह
B. अज्ञेय
C. धर्मवीर भारती
D. त्रिलोचन
✅ उत्तर: B. अज्ञेय - “सतपुड़ा के जंगल” कविता किसने लिखी?
A. भवानी प्रसाद मिश्र
B. केदारनाथ अग्रवाल
C. नागार्जुन
D. रघुवीर सहाय
✅ उत्तर: A. भवानी प्रसाद मिश्र - “कुकुरमुत्ता” किस कवि की रचना है?
A. नागार्जुन
B. मुक्तिबोध
C. निराला
D. धर्मवीर भारती
✅ उत्तर: C. निराला - “अंधायुग” किस साहित्यकार की काव्य-कृति है?
A. रांगेय राघव
B. धर्मवीर भारती
C. अज्ञेय
D. त्रिलोचन
✅ उत्तर: B. धर्मवीर भारती
भाग – 2 : वर्णात्मक प्रश्नोत्तरी (Descriptive Questions with Answers)
1. छायावादोत्तर युग की प्रमुख प्रवृत्तियाँ क्या हैं? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
छायावादोत्तर युग की प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं:
- सामाजिक यथार्थ का चित्रण
- राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता संग्राम की चेतना
- मार्क्सवादी और प्रगतिशील दृष्टिकोण
- प्रयोगशीलता और नवीनता
- छंदमुक्त कविता की शुरुआत
- दलित, मजदूर, किसान, स्त्री जैसे हाशिए के वर्गों की आवाज़
उदाहरण: - नागार्जुन की “रत्नगर्भ”,
- अज्ञेय की “असाध्य वीणा”,
- दिनकर की “हुंकार” आदि।
2. छायावादोत्तर युग को ‘शुक्लोत्तर युग’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
महावीर प्रसाद द्विवेदी और आचार्य रामचंद्र शुक्ल की आलोचना दृष्टि और सामाजिक विचारधारा ने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी। 1936 ई. में शुक्ल जी के निधन के पश्चात जो साहित्यिक धारा विकसित हुई, उसे ही ‘शुक्लोत्तर युग’ कहा गया। यह युग सामाजिक यथार्थ और नवचेतना का प्रतीक है।
3. प्रगतिवादी काव्यधारा के प्रमुख कवियों एवं उनकी रचनाओं की सूची दीजिए।
उत्तर:
- केदारनाथ अग्रवाल – फूल नहीं, रंग बोलते हैं
- नागार्जुन – रत्नगर्भ, हरिजन गाथा
- त्रिलोचन – मिट्टी की बारात, उस जनपद का कवि हूँ
- शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ – हिल्लोल, विश्वास बढ़ता ही गया
- रामविलास शर्मा – आलोचना के क्षेत्र में योगदान
4. अज्ञेय की काव्य-विशेषताएँ क्या हैं? उनकी दो प्रमुख रचनाओं का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
विशेषताएँ:
- आत्मबोध और दार्शनिकता
- प्रतीकों और बिम्बों का प्रयोग
- आधुनिकता और मनोविश्लेषण
- काव्य में भाषा का सघन प्रयोग
प्रमुख रचनाएँ:
- असाध्य वीणा: संगीत, साधना और असंभव को संभव बनाने का प्रतीक
- हरी घास पर क्षण भर: क्षणिक अनुभूतियों का सौंदर्यबोध
5. ‘नयी कविता’ आंदोलन की विशेषताएँ एवं प्रतिनिधि कवियों का परिचय दीजिए।
उत्तर:
विशेषताएँ:
- छंदमुक्त कविता
- नगरीय जीवन की जटिलताएँ
- अकेलापन, अस्तित्व, विखंडन
- प्रतीकात्मक और सांकेतिक भाषा
प्रमुख कवि:
- धर्मवीर भारती – अंधायुग
- शमशेर बहादुर सिंह – अमन का राग
- कुंवर नारायण – आत्मजयी
- रघुवीर सहाय – लोग भूल गए हैं
6. हरिवंश राय बच्चन की कविता में ‘प्रेम और मस्ती’ की अभिव्यक्ति पर विचार कीजिए।
उत्तर:
हरिवंश राय बच्चन की कविता में प्रेम और मस्ती का अनोखा संगम मिलता है। उनकी कृति मधुशाला आत्मीयता, प्रेम की गहराई और जीवन के रंगों से परिपूर्ण है। उनकी कविताएँ जीवन की पीड़ा में भी उल्लास खोजती हैं। प्रेम, वियोग, मिलन, और आत्मानुभूति उनके गीतों में बिखरी है।
7. छायावादोत्तर युग में ‘निराला’ की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
निराला छायावादी युग के प्रमुख कवि तो थे ही, लेकिन छायावादोत्तर युग में उनका स्वर अधिक सामाजिक, विद्रोही और यथार्थवादी बन गया।
मुख्य रचनाएँ: कुकुरमुत्ता, भिक्षुक, तुलसीदास
वे शोषण, गरीबी, स्त्री की दुर्दशा पर मुखर हुए। उन्होंने कविता को आम आदमी की आवाज़ बना दिया।
8. धर्मवीर भारती की रचना “अंधायुग” की विषयवस्तु और प्रतीकात्मकता पर विचार कीजिए।
उत्तर:
अंधायुग महाभारत के उत्तरकाल पर आधारित नाट्यकाव्य है, जिसमें युद्ध के बाद की निराशा, मूल्यहीनता और अंधकार का चित्रण है। यह रचना तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों का प्रतीक है और अंधे युग में जीते मनुष्यों की त्रासदी को दर्शाती है। यह प्रतीकात्मक शैली में लिखा गया उत्कृष्ट कार्य है।
9. नागार्जुन की कविताओं में सामाजिक यथार्थ का चित्रण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नागार्जुन की कविताएँ आम जनजीवन, किसानों, मजदूरों, स्त्रियों और दलितों के संघर्ष की आवाज़ हैं।
उदाहरण:
- रत्नगर्भ – स्त्री का संघर्ष
- हरिजन गाथा – दलित पीड़ा
- भस्मांकुर – विद्रोह और चेतना
उनकी भाषा सरल, लोकोन्मुख और व्यंग्यात्मक है।
10. भवानी प्रसाद मिश्र की कविता “सतपुड़ा के जंगल” के माध्यम से उनके काव्य दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
“सतपुड़ा के जंगल” कविता में मिश्र जी ने प्रकृति के सौंदर्य और मानवीय संबंधों को सरल शैली में व्यक्त किया है। यह कविता पर्यावरणीय चेतना, ग्रामीण जीवन और सादगी की प्रशंसा करती है। उनका काव्य दृष्टिकोण लोकजीवन से जुड़ा, सरल और नैतिकता आधारित है।
11. छायावाद और छायावादोत्तर युग में क्या अंतर है?
उत्तर:
छायावाद में आत्मचिंतन, सौंदर्य, प्रेम और रहस्यवाद प्रमुख थे, जबकि छायावादोत्तर युग में सामाजिक यथार्थ, जनजीवन, राष्ट्रीयता और प्रगतिशील दृष्टिकोण प्रमुख हुए।
12. ‘मधुशाला’ कविता का केंद्रीय भाव क्या है?
उत्तर:
‘मधुशाला’ जीवन दर्शन, मस्ती और आत्मानुभूति का प्रतीक है। इसमें मधुशाला एक रूपक है, जो जीवन की विविधताओं और द्वंद्वों का संकेत देती है।
13. अज्ञेय की काव्य-भाषा की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
- दार्शनिकता और गूढ़ चिंतन।
- बिम्ब और प्रतीकों का सशक्त प्रयोग।
14. दिनकर की कविता में राष्ट्रभक्ति कैसे अभिव्यक्त होती है?
उत्तर:
दिनकर की कविताएँ ओजस्वी और प्रेरणात्मक हैं। वे स्वतंत्रता संग्राम, राष्ट्र गौरव और भारतीय संस्कृति को स्वर देती हैं, जैसे हुंकार, रेणुका।
15. ‘नयी कविता’ में शहरी जीवन का चित्रण क्यों प्रमुख है?
उत्तर:
‘नयी कविता’ शहरी व्यक्ति की अकेलापन, संघर्ष, अस्मिता और अस्तित्ववादी पीड़ा को स्वर देती है। यह आधुनिक समाज की उलझनों की अभिव्यक्ति है।
इन्हें भी देखें –
- मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय, रचनाएं एवं भाषा शैली
- आकाशदीप कहानी- जयशंकर प्रसाद
- क़लम का सिपाही | प्रेमचन्द जी की जीवनी : अमृत राय
- कबीर दास जी के दोहे एवं उनका अर्थ | साखी, सबद, रमैनी
- कबीर दास जी | जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, रचनाएँ एवं भाषा
- छायावादी युग के कवि और उनकी रचनाएँ
- हिंदी गद्य साहित्य का उद्भव और विकास
- 8वां केंद्रीय वेतन आयोग: सरकारी कर्मचारियों के लिए एक नई उम्मीद की किरण
- हाटी जनजाति: परंपरा, पहचान और कानूनी विमर्श का समावेशी विश्लेषण
- अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC): वैश्विक न्याय प्रणाली में यूक्रेन की नई भागीदारी और भारत की दूरी