जरवा जनजाति: अंडमान की विलक्षण आदिवासी पहचान और संरक्षण की चुनौती

भारत की बहुसांस्कृतिक विविधता में आदिवासी समुदायों की भूमिका विशेष और अद्वितीय रही है। देश के अनेक भूभागों में फैले हुए ये समुदाय आज भी अपनी परंपरागत जीवनशैली और सांस्कृतिक पहचान को संजोए हुए हैं। इन्हीं में से एक है जरवा जनजाति (Jarawa Tribe), जो अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह की एक प्राचीन और विशेष जनजाति है। यह जनजाति आज भी जंगलों में शिकारी-संग्राहक जीवन पद्धति के साथ रहती है और बाहरी दुनिया से संपर्क न्यूनतम रखने में विश्वास करती है।
भारत सरकार द्वारा 2027 की जनगणना में अंडमान की छह प्रमुख जनजातियों की अलग से गणना करने की योजना बनाई गई है, जिससे उनके संरक्षण और कल्याण के लिए सटीक योजनाएं बनाई जा सकें।

जरवा जनजाति का परिचय

जरवा जनजाति अंडमान द्वीपसमूह की उन चंद जनजातियों में से एक है जिन्हें ‘विश्व की सबसे प्राचीन जीवित जनजातियों’ में गिना जाता है। यह जनजाति मुख्यतः मध्य और दक्षिण अंडमान के घने जंगलों में पाई जाती है और इनकी जीवनशैली आज भी पारंपरिक ‘घुमंतू शिकारी-संग्राहक’ (Nomadic hunter-gatherer) जीवन पद्धति पर आधारित है।

जरवा समुदाय का इतिहास अत्यंत रोचक और रहस्यमय है। वैज्ञानिकों का मानना है कि ये जनजातियाँ लगभग 60,000 साल पूर्व अफ्रीका से एशिया की ओर आए मानव प्रवासियों की वंशज हैं, जो अंडमान में आकर बस गईं। यह जनजाति आज भी कई मायनों में सभ्यता के आधुनिक प्रवाह से अलग-थलग है।

संरचना और जनसंख्या: ऐतिहासिक से वर्तमान तक

जरवा जनजाति की आबादी लंबे समय तक सीमित और अस्थिर रही है। 1990 के दशक तक यह जनजाति किसी भी बाहरी व्यक्ति से संपर्क से कतराती थी और अक्सर शत्रुतापूर्ण व्यवहार करती थी।

2011 की जनगणना के अनुसार, जरवा जनसंख्या मात्र 380 थी। यह संख्या अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की कुल 28,530 अनुसूचित जनजातीय आबादी का एक छोटा सा भाग थी।

लेकिन 2025 के आधिकारिक अनुमान दर्शाते हैं कि जरवा जनसंख्या अब 647 तक पहुँच चुकी है। यह वृद्धि भारत सरकार द्वारा की गई स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, पोषण पर ध्यान, और बच्चों की मृत्यु दर में गिरावट का परिणाम है।

अंडमान की अन्य प्रमुख जनजातिया

जरवा जनजाति अंडमान की उन छह विशिष्ट जनजातियों में शामिल है जिनमें शामिल हैं:

  1. ग्रेट अंडमानीज़ (Great Andamanese)
  2. ओंगे (Onges)
  3. शोम्पेन (Shompens)
  4. सेंटिनलीज़ (Sentinelese)
  5. निकॉबारीज़ (Nicobarese)
  6. जरवा (Jarawa)

इनमें से केवल निकोबारीज़ को छोड़कर शेष सभी जनजातियाँ PVTG – Particularly Vulnerable Tribal Groups (अत्यंत संवेदनशील जनजातीय समूह) में शामिल की गई हैं। यह वर्गीकरण उनकी सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन, संख्या में गिरावट, तकनीकी विकास से दूरी, और पारंपरिक जीवन शैली के संरक्षण की आवश्यकता के आधार पर किया गया है।

जरवा जनजाति की जीवनशैली और संस्कृति

जरवा समुदाय अब भी आधुनिकता की दौड़ से कोसों दूर, जंगलों में घुमंतू शिकारी-संग्राहक के रूप में जीवन व्यतीत करता है।

1. आवास और समूह संगठन

ये लोग सामान्यतः 40-50 व्यक्तियों के छोटे कबीलाई समूहों में रहते हैं। जंगलों में बने अस्थायी आश्रय और समुद्र के पास बनाए गए झोपड़ीनुमा घर इनके ठहरने का प्रमुख स्थान हैं।

2. भोजन और संसाधन

इनका प्रमुख आहार है –

  • जंगल से एकत्रित फल, शहद, जड़ें और कंद।
  • मछलियाँ, केकड़े, सूअर, जंगली पक्षी और कछुए।
  • तीर-धनुष के माध्यम से शिकार करना आज भी प्रमुख तकनीक है।

3. भाषा और संप्रेषण

जरवा जनजाति की भाषा बेहद सीमित और अज्ञात है। बाहरी दुनिया के लिए यह अब भी लगभग विलुप्तप्राय भाषा है। सरकार और समाजशास्त्रियों ने इस भाषा के अध्ययन हेतु कुछ प्रयास किए हैं लेकिन यह अभी भी बहुजन संप्रेषण के बाहर है।

4. पारंपरिक ज्ञान

जरवा समुदाय में औषधीय पौधों का ज्ञान, मौसम की पहचान, वन्यजीवों का आचरण, और पारंपरिक शारीरिक चिकित्सा पद्धतियाँ अत्यंत विकसित हैं।

बाहरी हस्तक्षेप और सांस्कृतिक खतरे

जरवा जनजाति को बाहरी संपर्क से होने वाले खतरों की सूची लंबी है। इनके जीवन पर सबसे बड़ा खतरा है अंडमान ट्रंक रोड (Andaman Trunk Road), जो इनकी पारंपरिक भूमि से होकर गुजरती है।

1. अंडमान ट्रंक रोड और टूरिज्म

यह सड़क जरवा क्षेत्र के मध्य से होकर गुजरती है, जिससे इनके निवास में बार-बार बाहरी लोगों की आवाजाही होती है।

  • कुछ वर्षों पूर्व तक इस मार्ग से गुजरने वाले सैलानियों द्वारा जरवा जनजाति को “ह्यूमन सफारी” की तरह देखने की प्रवृत्ति सामने आई थी।
  • यह आदिवासी अधिकारों के बड़े उल्लंघन और उनके आत्म-सम्मान के विरुद्ध था।

2. रोगों का संक्रमण

बाहरी लोगों से संपर्क के कारण इन जनजातियों में कई संक्रामक रोगों का प्रवेश हुआ है। आधुनिक प्रतिरक्षा प्रणाली से अनभिज्ञ होने के कारण इनमें रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम होती है, जिससे जनहानि का खतरा बना रहता है।

3. सांस्कृतिक क्षरण

बाहरी संस्कृति और उपभोक्तावादी जीवनशैली के प्रभाव से इनका पारंपरिक ज्ञान, मूल्य-व्यवस्था, और जीवन शैली नष्ट होने की आशंका लगातार बनी हुई है।

संरक्षण के लिए सरकार की नीतियाँ और पहल

भारत सरकार और अंडमान प्रशासन ने जरवा जनजाति की सुरक्षा के लिए कुछ विशेष कानून और सीमाएं लागू की हैं।

1. सीमित संपर्क नीति (Restricted Contact Policy)

  • यह नीति जरवा जनजाति को बाहरी प्रभावों से बचाने हेतु बनाई गई है।
  • इसके अंतर्गत इनके क्षेत्रों में बाहरी व्यक्तियों की सीमित या शून्य पहुँच सुनिश्चित की जाती है।

2. ‘अंडमान आदिवासी संरक्षण अधिनियम – 1956’

  • यह अधिनियम इन जनजातियों की भूमि, संस्कृति और अधिकारों की रक्षा करता है।
  • किसी भी गैर-जनजातीय व्यक्ति का इनके क्षेत्रों में प्रवेश अवैध माना जाता है।

3. PM-JANMAN योजना के अंतर्गत प्रयास

प्रधानमंत्री जनजातीय न्याय महा अभियान (PM-JANMAN) के तहत सरकार ने जरवा जैसे PVTG समुदायों की पहचान, कल्याण और समावेशन के लिए कई प्रयास किए हैं।
2025 तक इस योजना के अंतर्गत 191 PVTG व्यक्तियों की पहचान अंडमान में की गई है।

वर्तमान चुनौतियाँ

हालाँकि जरवा जनजाति की जनसंख्या में आंशिक वृद्धि हुई है, परंतु इसके समक्ष कई चुनौतीपूर्ण स्थितियाँ बनी हुई हैं:

  1. जनसंख्या स्थायित्व: जनसंख्या अभी भी 1,000 से कम है, जो किसी भी समुदाय के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए खतरा दर्शाता है।
  2. भोजन और पारिस्थितिकी परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन और जंगलों की जैव विविधता में कमी से इनके आहार और पारंपरिक जीवन प्रणाली प्रभावित हो रही है।
  3. नैतिक दुविधा: सरकार के लिए यह तय करना कठिन है कि क्या इस जनजाति को आधुनिक दुनिया से पूरी तरह अलग रखा जाए या धीरे-धीरे समावेशन की नीति अपनाई जाए।

नैतिक और नीतिगत बहस

जरवा समुदाय को लेकर एक बड़ा प्रश्न यह है कि क्या उन्हें आधुनिक जीवन में समाहित किया जाए या उनकी पारंपरिक जीवनशैली को जस का तस बनाए रखा जाए?

  • कुछ मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि जरवा जैसे समुदायों को आधुनिक सुविधाओं से दूर रखना “स्वतंत्रता का हनन” है।
  • दूसरी ओर, कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि बिना स्वैच्छिक इच्छा के आधुनिकता का आरोपण, उनके अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा हो सकता है।

निष्कर्ष

जरवा जनजाति भारतीय आदिवासी संस्कृति की एक दुर्लभ और विलक्षण धरोहर है। यह जनजाति न केवल पुरातन मानव सभ्यता की जीवित कड़ी है, बल्कि पारंपरिक जीवनशैली, प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व और आत्मनिर्भरता की प्रतीक भी है।

2027 की जनगणना में जरवा सहित अन्य जनजातियों की विशेष गणना एक महत्वपूर्ण सकारात्मक पहल है, जिससे नीतियों को जनसंख्या, स्वास्थ्य, शिक्षा, और सांस्कृतिक संरक्षण के आधार पर सटीक दिशा दी जा सकेगी।

जरूरत है एक संवेदनशील, सम्मानजनक और सहभागी दृष्टिकोण की, जिससे जरवा जनजाति जैसे समुदायों की विशिष्टता को संरक्षित करते हुए उनके अधिकार और जीवन भी सुरक्षित किए जा सकें।


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