जहाँगीर | 1569 ई.-1627 ई.

जहाँगीर महान मुग़ल बादशाह अकबर का पुत्र था। अकबर के तीन पुत्र थे, जिनका नाम था सलीम (जहाँगीर), मुराद और दानियाल। मुराद और दानियाल की अत्यधिक शराब पीने कि वजह से उनके पिता अकबर के जीवन काल में ही मृत्यु हो चुकी थी। और फिर बाद में अकबर कि मृत्यु होने के बाद, सलीम अकबर की मृत्यु पर ‘नूरुद्दीन मोहम्मद जहाँगीर’ के उपनाम से तख्त पर बैठा।

हालाँकि जहांगीर एक रंगीन मिजाज का बेहद शौकीन मुगल बादशाह था, जिसके शान-ओ-शौकत के चर्चे काफी मशहूर थे। परन्तु, मुगल सिंहासन पर बैठने के बाद उसने अपनी कई बुरी आदतों को छोड़ दिया था। जहांगीर का वास्तविक नाम सलीम था, जिसे बाद में जहांगीर की उपाधि दी गई थी। जहाँगीर का मतलब था- दुनिया को जीतने वाला।

जहांगीर प्रख्यात मुगल शासकों में से एक था, जिसने कई सालों तक मुगल साम्राज्य को न सिर्फ संभाला था, बल्कि एक अच्छे मुगल सम्राट की तरह मुगल साम्राज्य का विस्तार भी किया था। जहांगीर ने किश्वर और कांगड़ा के अलावा बंगाल तक अपने साम्राज्य का जमकर विस्तार किया, हालांकि जहांगीर के शासनकाल के दौरान कोई बड़ी लड़ाई या कोई बड़ी उपलब्धि शामिल नहीं है। जहांगीर को आगरा में बनी “न्याय की जंजीर” के लिए भी जाना जाता है।

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जहाँगीर का संक्षिप्त परिचय

जहाँगीर 1605 में अपने पिता अकबर की मृत्यु के बाद शासक बनता है और 1627 तक शासन करता है, इसके शासनकाल को दो भागों में बांटा जाता है पहला है 1605 से लेकर 1611 तक, जिसमें वह स्वतंत्र होकर शासन करता है और दूसरा है 1611 से लेकर 1627 तक, जिसमें वह नूरजहाँ के प्रभाव में आ जाता है और शासन के क्षेत्र में भी नूरजहाँ का प्रभाव दिखाई देने लगता है।

पूरा नाममिर्ज़ा नूर-उद्दीन बेग़ मोहम्मद ख़ान सलीम जहाँगीर
अन्य नामशेख़ू
जन्म30 अगस्त, सन् 1569
जन्म भूमिफ़तेहपुर सीकरी
मृत्यु तिथि8 नवम्बर सन् 1627 (उम्र 58 वर्ष)
मृत्यु स्थानलाहौर
पिता/मातापिता- अकबर, माता- मरियम उज़-ज़मानी
पति/पत्नीनूरजहाँ, मानभवती, मानमती
संतानख़ुसरो मिर्ज़ा, ख़ुर्रम (शाहजहाँ), परवेज़, शहरयार, जहाँदारशाह, निसार बेगम, बहार बेगम बानू
राज्य सीमाउत्तर और मध्य भारत
शासन कालसन 15 अक्टूबर, 1605 ई. – 8 नवंबर, 1627 ई.
शा. अवधि22 वर्ष
राज्याभिषेक24 अक्टूबर 1605 आगरा
धार्मिक मान्यतासुन्नी, मुस्लिम
राजधानीआगरा, दिल्ली
पूर्वाधिकारीअकबर
उत्तराधिकारीशाहजहाँ
राजघरानामुग़ल
मक़बराशहादरा लाहौर, पाकिस्तान
संबंधित लेखमुग़ल काल
प्रसिद्धिजहाँगीर का न्याय
सम्बंधित लेखमुग़ल वंश, मुग़ल काल, मुग़ल साम्राज्य, इंसाफ़ की ज़ंजीर
अन्य जानकारी‘सलीम’ और ‘अनारकली’ की बेहद मशहूर और काल्पनिक प्रेम कहानी पर बनी फ़िल्म ‘मुग़ल-ए-आज़म’ भारत की महान् फ़िल्मों में गिनी जाती है।

जहाँगीर का जन्म एवं प्रारंभिक जीवन

मुगल सम्राट जहांगीर 31 अगस्त, 1569 को मुगल सम्राट अकबर के बेटे के रुप में फतेहपुर सीकरी में स्थित शेख सलीम चिश्ती की कुटिया में जन्में थे। जहांगीर की माता का नाम मरियम उज्जमानी था। सलीम से पहले अकबर की कोई भी संतानें जीवित नहीं बचती थी, जिसके चलते सम्राट अकबर ने काफी मिन्नतें कीं और फिर बाद सलीम का जन्म हुआ था। जहांगीर को बचपन में सब उन्हें सब सुल्तान मुहम्मद सलीम कहकर पुकारते थे।

आपको बता दें कि मुगल सम्राट अकबर ने अपने पुत्र का नाम फतेहपुर सीकरी के शेख सलीम चिश्ती के नाम पर उनका नाम रखा था। मुगल सम्राट अकबर ने, अपने बेटे जहांगीर को बेहद कम उम्र से ही सैन्य और साहित्य में निपुण बनाने के प्रयास शुरु कर दिए थे। जब वे महज 4 साल के थे, तब सम्राट अकबर ने उनके लिए बैरम खां के पुत्र अब्दुल रहीम खान-ए-खाना जैसे विद्धान शिक्षक नियुक्त किया।

जिससे जहांगीर ने इतिहास, अंकगणित, भूगोल, अरबी, फारसी, और विज्ञान की शिक्षा ग्रहण की थी, जिसकी वजह से जहांगीर अरबी और फारसी में विद्धान हो गया था। इतिहासकारों के मुताबिक सम्राट अकबर के साथ जहांगीर के रिश्ते अच्छे नहीं थे।

जहांगीर ने सत्ता समेत कई कारणों के चलते कई बार अपने पिता अकबर के खिलाफ षणयंत्र भी रचा और विद्रोह करने की कोशिश की लेकिन फिर बाद में दोनों पिता-पुत्र में आपस में समझौता कर लिया था। हालांकि अकबर की मृत्यु के बाद जहांगीर को मुगल सिंहासन का राजपाठ सौंपा गया था।

जहाँगीर की शिक्षा

सलीम का मुख्य शिक्षक अब्दुर्रहीम खानखाना’ था। इससे जहांगीर ने अरबी, फारसी, विज्ञान की शिक्षा ग्रहण की। जहांगीर अरबी और फारसी भाषा का अच्छा विद्वान था।

अकबर का वास्तविक उत्तराधिकारी जहाँगीर

अकबर के अंतिम दिनों में उसका पुत्र सलीम जो जहाँगीर के नाम से प्रसिद्ध होता है, उसने विद्रोह कर दिया था और विद्रोह करके सत्ता प्राप्त करने का प्रयास किया, परंतु उसने अपना विद्रोह रोक लिया था और जब अकबर की मृत्यु हो जाती है, उससे पहले वह जहाँगीर को सत्ता देकर अपने प्राण त्याग देता है, ऐसे में जहाँगीर ही अकबर का वास्तविक उत्तराधिकारी बनकर सामने आता है। 

हालांकि अकबर के दो और पुत्र भी थे दानियाल और मुराद, जिनकी मृत्यु पहले ही हो चुकी थी, जिसके बाद जहाँगीर ही इकलौता वारिस बचा था जो अकबर का उत्तराधिकारी बन सकता था। 

जहाँगीर का विवाह

जहांगीर ने 20 शादियाँ की थी। उसकी सबसे पसंदीदा बेगम नूरजहां थी। इसकी शादियां कई राजनीतिक कारणों से भी हुई थी।

  • जहाँगीर का पहला विवाह 1885 ई. को आमेर के राजा भगवानदास की पुत्री मानबाई से हुआ था। मानबाई के गर्भ से खुसरो का जन्म हुआ था। खुसरो के जन्म के बाद ’मानबाई शाहबेगम’ के नाम से प्रसिद्ध हुई थी।
  • सलीम का दूसरा विवाह 1586 ई. में मारवाङ के शासक उदयसिंह की पुत्री जोधाबाई के साथ हुआ। जोधाबाई के गर्भ से खुर्रम या शाहजहाँ का जन्म हुआ था।
  • जहाँगीर का तीसरा विवाह साहिब-ए-जमाल से हुआ था, जिसकी गर्भ से परवेज का जन्म हुआ था।
  • जहाँगीर के चौथे पुत्र शहरयार का जन्म एक रखेल से हुआ था। 1611 ई. में जहाँगीर ने शेर खाँ की विधवा पत्नी ’मेहरून्निसा’ से विवाह किया था, जिससे बाद में ’नूरजहाँ’ की उपाधि प्रदान की थी।

नूरजहां से विवाह (1611)

नूरजहां का वास्तविक नाम मेहरूनिसा था, मेहरूनिसा पहले से ही विवाहित थी और एक विधवा थी जब उसका विवाह जहाँगीर के साथ हुआ। उसका पहला विवाह 1594 में अलीकुली बेग से हुआ था, जो मुगलों के अधीन ही था, और उसकी एक पुत्री भी थी जिसका नाम लाड़ली बेगम था। 

अलीकुली बेग ने एक बार एक शेर की हत्या कर दी थी, इस क्रम में खुश होकर जहाँगीर ने उसे “शेर अफगान” की उपाधि दी थी और जहाँगीर को उस समय तक पता भी नहीं था की अलीकुली बेग की पत्नी का नाम मेहरूनिसा है और वह काफी सुंदर भी है। कुछ समय पश्चात् अलीकुली बेग की मृत्यु हो जाती है और उसकी पत्नी मेहरुनशा विधवा हो जाती है।

वह एक बार नवरोज़ के त्योहार के क्रम में विधवा मेहरूनिसा ( नूरजहां ) दरबार में आती है, जहाँ जहाँगीर उसको देखता है, उसे देख कर वह उस पर आसक्त हो जाता है और विवाह की इच्छा जाहिर करता है, इस प्रकार विधवा मेहरूनिसा का 1611 ई. में जहाँगीर के साथ विवाह हो जाता है।  जब विवाह हुआ तब जहाँगीर ने उसे पहले नूरमहल की उपाधि दी अर्थात महल की रौशनी, और फिर बाद में नाम दिया नूरजहां अर्थात पूरे जहाँ की रौशनी यानी जहाँ में सबसे सुंदर। 

विवाह के पश्चात् जितने भी नूरजहां से संबंधित लोग थे उनको दरबार में उच्च पद मिलने शुरू हो जाते हैं और इस प्रकार दरबार में दो गुट बन जाते हैं, एक नूरजहां का गुट था जिसमे उससे संबंधित लोग थे और दूसरा गुट वह था जो जहाँगीर से संबंधित थे या अलग गुट बना कर रहते थे।   

जहाँगीर | 1569 ई.-1627 ई.

नूरजहां के गुट में उसके पिता मिर्ज़ा गियास बेग थे, उसके पिता को एक अच्छा पद मिला, उसकी माता असमत बेगम जिनके बारे में आपने पढ़ा होगा की गुलाब से इत्र बनाने का अविष्कार इन्होंने किया था, उसका भाई आसफ खां और जहाँगीर का पुत्र खुर्रम ( शाहजहाँ ) भी नूरजहां के गुट में शामिल था, खुर्रम के नूरजहां के गुट में शामिल होने का कारण यह था की नूरजहां के भाई आसफ खां ने अपनी पुत्री का विवाह खुर्रम से कराया था। 

नूरजहां का भाई आसफ खां यह चाहता था की उसका दामाद खुर्रम ( शाहजहाँ ) शासक बने, और वास्तव में खुसरो के बाद वही सबसे योग्य था, इसलिए वह शासक बनने की श्रेणी में भी था, लेकिन बाद में चल कर आसफ खां और नूरजहां के बीच भी विवाद शुरू हो जाता है। 

आसफ खां और नूरजहां के बीच विवाद इसलिए शुरू होता है क्यूंकि नूरजहां ने अपनी पुत्री लाड़ली बेगम का विवाह जहाँगीर के पुत्र शहरयार से करवाया और शहरयार से जैसे ही उसकी पुत्री का विवाह होता है तब नूरजहां चाहती है की शहरयार शासक बने। इस क्रम में बाद में इस गुट में फूट पड़ जाती है और खुर्रम इस गुट से अलग हो जाता है और आसफ खां भी अपनी बहन का पक्ष लेना छोड़ देता है। 

जहाँगीर के बच्चे

अकबर का इकलौता वारिस होने के कारण और वैभव-विलास में पालन-पोषण की वजह से जहांगीर एक बेहद शौकीन और रंगीन मिजाज का शासक था, जिसने करीब 20 शादियां की थी, हालांकि उनकी सबसे चहेती और पसंदीदा बेगम नूर जहां थीं। वहीं उनकी कई शादियां राजनीतिक कारणों से भी हुईं थी।

16 साल की उम्र में जहांगीर की पहली शादी आमेर के राजा भगवान राज की राजकुमारी मानबाई से हुई थी। जिनसे उन्हें दो बेटों की प्राप्ति हुई थी।

वहीं जहांगीर के बड़े बेटे खुसरो मिर्जा के जन्म के समय मुगल सम्राट जहांगीर ने अपनी पत्नी मानबाई को शाही बेगम की उपाधि प्रदान की थी।

इसके बाद जहांगीर कई अलग-अलग राजकुमारियों से उनकी सुंदरता पर मोहित होकर शादी की। साल 1586 में जहांगीर ने उदय सिंह की पुत्री जगत गोसन की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे विवाह किया। जिनसे उन्हें दो पुत्र और दो पुत्रियां पैदा हुईं।

जहाँगीर | 1569 ई.-1627 ई.

हालांकि, इनमें से सिर्फ एक ही पुत्र खुर्रम जीवित रह सका, अन्य संतान की बचपन में ही मौत हो गई। बाद में उनका यही पुत्र सम्राट शाहजहां के रुप में मुगल सिंहासन पर बैठा और मुगल साम्राज्य का जमकर विस्तार किया, वहीं शाहजहां को लोग आज भी सात आश्चर्यों में से एक ताजमहल के निर्माण के लिए याद करते हैं।

जहांगीर के अपनी सभी पत्नियों से पांच बेटे खुसरो मिर्जा, खुर्रम मिर्जा (शाहजहां), परविज मिर्जा, शाहरियर मिर्जा, जहांदर मिर्जा और इफत बानू बेगम, बहार बानू बेगम, बेगम सुल्तान बेगम, सुल्तान-अन-निसा बेगम,दौलत-अन-निसा बेगम नाम की पुत्रियां थी।

न्याय की जंजीर

शाहजहाँ ने अपने राज्य में लोगों को न्याय देने के लिए न्याय की जंजीर का निर्माण कराया था। इसमें एक बहुत बड़ा घंटा को एक बड़ी से जंजीर से बांध दिया गया था। और वह जंजीर निचे तक लटकता रहता था। जब किसी को भी शहंशाह से न्याय कि गुहार लगानी होती थी, तो वह उस जंजीर को पकड़ कर बजाने लगता था जिससे उसमे लगा घंटा जोर-जोर से बजने लगता था। और शहंशाह उस घंटे कि आवाज सुनकर आते थे और न्याय करते थे।

जहाँगीर ने न्याय व्यवस्था ठीक रखने की ओर विशेष ध्यान दिया था। न्यायाधीशों के अतिरिक्त वह स्वयं भी जनता के दु:ख-दर्द को सुनता था। उसके लिए उसने अपने निवास−स्थान से लेकर नदी के किनारे तक एक जंजीर बंधवाई थी और उसमें बहुत सी घंटियाँ लटकवा दी थीं। यदि किसी को कुछ फरियाद करनी हो, तो वह उस जंजीर को पकड़ कर खींच सकता था, ताकि उसमें बंधी हुई घंटियों की आवाज़ सुनकर बादशाह उस फरियादी को अपने पास बुला सके।

जहाँगीर के आत्मचरित से ज्ञात होता है, वह जंजीर सोने की थी और उसके बनवाने में बड़ी लागत आई थी। उसकी लंबाई 40 गज़ की थी और उसमें 60 घंटियाँ बँधी हुई थीं। उन सबका वज़न 10 मन के लगभग था।

उससे जहाँ बादशाह के वैभव का प्रदर्शन होता था, वहाँ उसके न्याय का भी ढ़िंढोरा पिट गया था। किंतु इस बात का कोई उल्लेख नहीं मिलता है कि, किसी व्यक्ति ने उस जंजीर को हिलाकर बादशाह को कभी न्याय करने का कष्ट दिया हो। उस काल में मुस्लिम शासकों का ऐसा आंतक था कि, उस जंजीर में बँधी हुई घंटियों को बजा कर बादशाह के ऐशो−आराम में विघ्न डालने का साहस करना बड़ा कठिन था।

इति‍हासकारों द्वारा किया गया है सोने के घंटे का जिक्र

  • इस घंटे की वजह से जहांगीर ने अपने न्‍याय के लिए इतिहास में स्‍थान बनाया। बादशाह अकबर के न्‍याय की चर्चा अक्‍सर होती है, लेकिन जहांगीरी घंटा जरूर चर्चा में आ जाता है।
  • इतिहासकार राजकिशोर राजे ने पुस्‍तक ‘तवारीख-ए-आगरा’ में लिखा है- जहांगीर ने मंगलवार का दिन जनता की शिकायतें सुनने के लिए तय किया था।
  • अमीर खुसरो ने पुस्‍तक नुह-सिपहर में‍ सोने के घंटा जिक्र किया है।
  • इसके मुताबिक ‘जनता की पुकार सुनने के लिए उसने (जहांगीर) 60 घंटियों वाली छह मन सोने की एक जंजीर आगरा किला में लगवाया था। यह शाह बुर्ज से नीचे यमुना की ओर लटकवाकर रखी गई थी। ऐसी ही व्‍यवस्‍था दिल्‍ली सम्राट अनंगपाल ने भी की थी।’
  • जहांगीरी घंटा उसी जगह लगाया गया था, जहां बाद में बादशाह शाहजहां ने मुसम्‍मन बुर्ज बनवा दिया था। यहीं से शाहजहां अंतिम दिनों में ताजमहल देखा करते थे।
  • जहांगीर के समय इसके नीचे विशाल घंटा रखा हुआ था। जनता यमुना किनारे की ओर से जंजीर खींचकर घंटा बजाती थी।
  • इतिहासकार राजकिशोर शर्मा राजे का कहना है कि जहांगीर को काफी ज्‍यादा पैत्रिक खजाना मिला था।
  • इसी खजाने की वजह से वह घंटे में ढ़ाई सौ किलोग्राम सोने की जंजीर लगा सका था।
  • जहांगीर को अपने पिता अकबर से मिले खजाने में दो बहुमूल्‍य लाल की मालाएं भी थीं। उस वक्‍त प्रत्‍येक माला की कीमत दस लाख रुपया थी। बगैर तराशे 60 किलोग्राम हीरे, 480 किलोग्राम मोती, 40 किलोग्राम लाल, 200 किलोग्राम पन्‍ना, 200 किलोग्राम हरितमणि प्राप्‍त हुए थे।
  • इसके साथ-साथ भारी मात्रा में सोना भी था। इससे बने घंटे की वजह से इतिहास में जहांगीर को न्‍याय के लिए प्रसिद्धि‍ मिली थी।

जहाँगीर के समय का विद्रोह

जहाँगीर के पुत्र खुसरो ने शासक बनने के लिए जहाँगीर के खिलाफ विद्रोह किया, इसके बाद में खुर्रम ने भी शासक बनने के लिए जहाँगीर के खिलाफ 1623 ई. में विद्रोह कर दिया और अपनी शासक बनने की इच्छा ज़ाहिर की, कहा जाता है कि ये विद्रोह भी आसफ खां के चढ़ाने पे हुआ था। खुर्रम के विद्रोह को महाबत खां जो की एक सेनापति था उसने दबा दिया था। जहाँगीर के शासन काल के प्रमुख विद्रोह इस प्रकार है –

खुसरो का विद्रोह (1606)

जहांगीर के सिंहासन पर बैठने के कुछ महीनों बाद ही अप्रैल 1606 में उसके सबसे बङे पुत्र खुसरो ने विद्रोह कर दिया। लेकिन खुसरो के मामा मानसिंह के अनुरोध पर क्षमा कर दिया। लेकिन मानसिंह के बंगाल प्रस्थान करते ही खुसरो को बंदी बनाकर आगरा के किले के एक भाग में बद कर दिया गया। लेकिन 6 अप्रैल 1606 में अपने कुछ अश्वारोहियों को साथ लेकर ’सिकन्दरा’ जहाँ अकबर का मकबरा है। अकबर के मकबरे को देखने के बहाने निकल भागा। वह सिकन्दरा से दिल्ली होते हुए लाहौर की ओर प्रस्थान किया।

लाहौर पहुँचकर सिखों के गुरु अर्जुनदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया। सम्राट को जब भागने का पता चला तो उसे पकङने के लिए फरीद के नेतृत्व में एक सैनिक टुकङी भेजी। खुसरो पराजित हुआ। कुछ दिनों बाद उसे पकङ लिया गया।

1 मई 1607 ई. को बंदी बनाकर जहाँगीर के सम्मुख लाया गया। खुसरो के दायीं ओर हुसैन बेग और बायीं ओर अब्दुल्ला रहमान था। जिन्होंने खुसरो की मदद की थी। खुसरो को बंदी बनाने का आदेश दिया गया। हुसैन बेग व अब्दुल रहमान को गधे व बैल की ताजी खाल में सिल दिया गया। फिर गंधे पर बैठाकर लाहौर की सङकों पर घुमवाया गया।

जिससे अन्य कोई विद्रोह करने की हिम्मत न कर सके। इसके बाद जहाँगीर ने गुरु अर्जुनदेव की ओर प्रस्थान किया। जहाँगीर ने अर्जुनदेव को 2 लाख का आर्थिक दण्ड दिया। जिसे गुरु अर्जुनदेव ने देने से मना कर देने के कारण उनकी हत्या कर दी गयी। जिससे सम्पूर्ण सिख धर्म मुसलमानों का विरोधी जिससे सम्पूर्ण सिख धर्म मुसलमानों का विरोधी हो गया। जो औरंगजेब के शासनकाल तक चलता रहा और मुस्लिम को परेशान किया।

ग्रामीणों का विद्रोह

जहाँगीर के शासन−काल में एक बार ब्रज में यमुना पार के किसानों और ग्रामीणों ने विद्रोह करते हुए कर देना बंद कर दिया था। जहाँगीर ने ख़ुर्रम (शाहजहाँ) को उसे दबाने के लिए भेजा। विद्रोहियों ने बड़े साहस और दृढ़ता से युद्ध किया; किंतु शाही सेना से वे पराजित हो गये थे। उनमें से बहुत से मार दिये गये और स्त्रियों तथा बच्चों को क़ैद कर लिया गया। उस अवसर पर सेना ने ख़ूब लूट की थी, जिसमें उसे बहुत धन मिला था। उक्त घटना का उल्लेख स्वयं जहाँगीर ने अपने आत्म-चरित्र में किया है, किंतु उसके कारण पर प्रकाश नहीं डाला। संभव है, वह विद्रोह हुसैनबेग बख्शी की लूटमार के प्रतिरोध में किया गया हो।

मेवाड से युद्ध व सन्धि (1615)

अकबर के कई प्रयासों के बाद भी यह मेवाड को जीतकर अधीन नहीं कर सका। जहाँगीर ने अपने पिता के समान साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण कर मेवाड पर अधिकार करना चाहता था।

1608 में जहांगीर के अपने दूसरे पुत्र परवेज को मेवाङ के शासक अमरसिंह को पराजित करने के लिए भेजा। परवेज की सहायता के लिए महाबत खाँ को भेजा गया। अमरसिंह ने अपने राज्य की रक्षा की। अब परवेज को वापस बुला लिया गया। 1609 में अब्दुला खाँ के नेतृत्व में मुस्लिम सेना ने अरावली पर्वत में जगह-जगह छापे मारे। लेकिन अमरसिंह को पकङने में असमर्थ रहे। बाद में मिर्जा अजीज कोका को भेजा गया। लेकिन उसे भी विशेष सफलता नहीं मिली।

अब जहाँगीर ने अजमेर स्वयं आकर शाहजादा खुर्रम को (शाहजहाँ) 1614 ई. में भेजा। लेकिन महाराणा अमरसिंह की छापामार सैनिक कार्यवाहियों और रसद सामग्री के रास्ते को काट देने के कारण मुगल सेना हताश हो गयी।
आखिरकार दोनों ओर से परेशान होने के कारण संधि वार्ता पर जोर दिया गया। तब अमरसिंह ने वार्ता चलाई जहाँगीर प्रसन्न हुआ।

जहाँगीर | 1569 ई.-1627 ई.

इस युद्ध में 1615 में संधि हो गयी। इस संधि की शर्तें निम्नलिखित थीं-

  • महाराणा अमरसिंह ने सम्राट जहाँगीर की अधीनता स्वीकार कर ली।
  • सम्राट ने महाराणा अमरसिंह को चित्तौङ समेत सारा प्रदेश लौटा दिया। जो अकबर के काल में मुगलों के आधिपत्य में था।
  • चित्तौङ की मरम्मत करना निषेध कर दिया गया।
  • राणा को सम्राट के दरबार में उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
  • अन्य राजपूतों के समान राणा से वैवाहिक संबंध स्थापित करने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।

खुर्रम ( शाहजहाँ ) का विद्रोह ( 1623 )

सबसे पहले जहाँगीर के पुत्र खुसरो ने शासक बनने के लिए उसके खिलाफ विद्रोह किया, बाद में खुर्रम ने भी शासक बनने के लिए जहाँगीर के खिलाफ 1623 में विद्रोह किया और शासक बनने की इच्छा ज़ाहिर की, ये विद्रोह भी आसफ खां के चढ़ाने पे हुआ था। 

खुर्रम के विद्रोह को महाबत खां जो की एक सेनापति था उसने दबा दिया था। 

महाबत खां का विद्रोह ( 1626 )

महावत खाँ द्वारा शाहजहाँ के विद्रोह को दबाने के कारण उसके मान-सम्मान में वृद्धि हो गयी। अब वह शाहजहाँ के अलावा किसी के आदेश नहीं मानता था। नूरजहाँ द्वारा सम्राट की शक्तियों को लेने के बाद महावत खाँ ईर्ष्यालु हो गया। क्योंकि नूरजहाँ, जहाँगीर से विवाह करने से पहले एक साधारण रमणी थी। महावत खाँ ने राज सिंहासन पर पररवेज का समर्थन किया। वह को कतही सहन नहीं कराना चाहता था। अब महावत खाँ को आगरा से दूर बंगाल जाने का आदेश दिया।

महावत खाँ ने बंगाल पहुँचकर विद्रोह कर दिया और राजपूतों का सहयोग लेकर आगरा की ओर चला आया। उसने राजसत्ता का हिलाकर रख दिया लेकिन जहाँगीर के कहने पर उसके सम्मुख आ गया और अपने दोषों की सजा मांगने लगा। उधर नूरजहाँ तथा आसफ खाँ, महावत खाँ को समाप्त करना चाहते थे। लेकिन उनके प्रयासों को विफल कर दिया गया और जहाँगीर से मिलकर एक बार फिर शासन व्यवस्था में सहयोग देना उसने प्रारम्भ कर दिया।

बाद में सेनापति महाबत खां की भी इच्छाएं बढ़ने लगती है क्यूंकि वो देखता है की नूरजहां के गुट का प्रभाव राजा पे ज्यादा है, इसलिए उसने 1626 में विद्रोह किया, लेकिन इसके विद्रोह को भी दबा दिया जाता है।

बाद में जहाँगीर की 1627 में मृत्यु होने के बाद खुर्रम ( शाहजहाँ ) शासक बन जाता है। 

इस प्रकार हम यह देख सकते है की खुसरो, खुर्रम, महाबत खां ने जहाँगीर के खिलाफ विद्रोह किया, परंतु किसी का विद्रोह सफल नहीं हो पाया था, अंत में जहाँगीर की मृत्यु के बाद ही किसी को सत्ता मिल पाती है। 

शराबबंदी का निर्देश

जहाँगीर को शराब पीने की लत थी, जो अंतिम काल तक रही थी। वह उसके दुष्परिणाम को जानता था, किंतु उसे छोड़ने में असमर्थ था। किंतु जनता को शराब से बचाने के लिए उसने गद्दी पर बैठते ही उसे बनाने और बेचने पर पाबंदी लगा दी थी। उसने शासन सँभालते ही एक शाही फ़रमान निकाला था, जिसमें 12 आज्ञाओं को साम्राज्य भर में मानने का आदेश दिया गया था।

इन आज्ञाओं में से एक शराबबंदी से संबंधित थी। उस प्रकार की आज्ञा होने पर भी वह स्वयं शराब पीता था और उसके प्राय: सभी सरदार सामंत, हाकिम और कर्मचारी भी शराब पीने के आदी थे। ऐसी स्थिति में शराबबंदी की शाही आज्ञा का शायद ही कोई प्रभावकारी परिणाम निकला हो।

प्लेग का प्रकोप

जहाँगीर के शासन−काल में प्लेग नामक भंयकर बीमारी का कई बार प्रकोप हुआ था। सन् 1618 में जब वह बीमारी दोबारा आगरा में फैली थी, तब उससे बड़ी बर्बादी हुई थी। उसके संबंध में जहाँगीर ने लिखा है− ‘आगरा में पुन: महामारी का प्रकोप हुआ, जिससे लगभग एक सौ मनुष्य प्रति दिन मर रहे हैं।

बगल, पट्टे या गले में गिल्टियाँ उभर आती हैं और लोग मर जाते हैं। यह तीसरा वर्ष है कि, रोग जाड़े में ज़ोर पकड़ता है और गर्मी के आरंभ में समाप्त हो जाता है। इन तीन वर्षों में इसकी छूत आगरा के आस−पास के ग्रामों तथा बस्तियों में फैल गई है। जिस आदमी को यह रोग होता था, उसे ज़ोर का बुख़ार आता था और उसका रंग पीलापन लिये हुए स्याह हो जाता था, और दस्त होते थे तथा दूसरे दिन ही वह मर जाता था। जिस घर में एक आदमी बीमार होता, उससे सभी को उस रोग की छूत लग जाती और घर का घर बर्बाद हो जाता था।’

अपने बेटे खुसरों के खिलाफ विद्रोह और पांचवे सिख गुरु की हत्या

मुगल सम्राट जहांगीर जब मुगल सिंहासन की बागडोर संभाल रहे थे, तभी उनके सबसे बड़े बेटे खुसरो ने सत्ता पाने के लालच में अपने पिता जहांगीर पर 1606 ईसवी में षणयंत्र रच आक्रमण करने का फैसला लिया था। जिसके बाद जहांगीर की सेना और खुसरो मिर्जा के बीच जलांधर के पास युद्ध हुआ और जहांगीर की सेना खुसरो को हराने में सफल रही और इसके बाद उन्हें जेल में डाल दिया गया।

इसके कुछ समय बाद ही खुसरो की मृत्यु हो गई थी। वहीं जहांगीर को जब पता चला कि खुसरो द्धारा उनके खिलाफ विद्रोह में सिक्खों के 5वें गुरु अर्जुन देव ने मद्द की है, तो उन्होंने अर्जुन देव की हत्या करवा दी।

जहाँगीर की दक्षिण विजय

अकबर की अधूरे कामों को पूरा करने के लिए जहाँगीर के बाकी राज्यों को जीतने की योजना बनाई। 1608 में अब्दुर्रहीम खानखाना के नेतृत्व में मुगल सेना को दक्षिण विजय के लिए भेजा। अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगा देेने पर भी खानखाना अहमदनगर या महाराष्ट्र को नहीं जीत सका। इस कार्य में बाधक बना अहमदनगर प्रधानमंत्री व युद्ध कला का प्रकाण्ड विद्वान ’मलिक अम्बर’ ने गुरिल्ला पद्धति के जरिये मुगलों को भयभीत कर दिया। तब जहाँगीर ने परवेज के नेतृत्व में आक्रमण किया।

लेकिन अब्दुर्रहीम खानखाना के समान वह भी अहमदनगर को जीत न सका। 1611 ई. में अब्दुल्ला खान ने गुजरात की ओर आक्रमण किया।

लेकिन मलिक अम्बर के गुरिल्ला सैनिक मुगलों पर टूट पङे तथा भारी क्षति पहुंचाई। इस पर जहाँगीर को अत्यधिक गुस्सा आया। उसने शाहजादा खुर्रम की अध्यक्षता में दक्षिण की ओर अभियान किया। खुर्रम तेज गति से मार्च 1617 ई. में गुरहानपुर पहुँच गया। इस विशाल सेना को देखकर मलिक अम्बर भयभीत हो गया और सभी शर्तें मानकर अधीनता स्वीकार कर ली। यह खुर्रम की एक महान् विजय थी इसलिए इस उपलक्ष्य में जहाँगीर ने खुश होकर उसे ’शाहजहाँ’ की उपाधि प्रदान की। परन्तु मुगल मलिक को अन्तिम रूप से हार नहीं सका।

वह एक बार फिर युद्ध करने को आक्रामक हो गय और खानखाना की नाक में दम कर दिया। परन्तु अंततः दक्षिण के राज्य इस विशाल साम्राज्य के सामने नतमस्तक हो गये और मुगलों को राजस्व देना स्वीकार कर लिया। शाहजहाँ ने दक्षिण अभियान से बहुत मान-सम्मान पाया और सिंहासन के करीब पहुँचा दिया। उसने अपने भाई खुसरो की हत्या 1621 ई. में कर दी।

चित्रकला का गूढ़ प्रेमी था जहांगीर

मुगल सम्राट जहांगीर चित्रकला का बेहद शौकीन था, वे अपने महल में कई अलग-अलग तरह के चित्र इकट्ठे करते रहते थे उसने अपने शासनकाल में चित्रकला को काफी बढ़ावा भी दिया था। यही नहीं जहांगीर खुद के एक बेहतरीन आर्टिस्ट थे। मनोहर और मंसूर बिशनदास जहांगीर के शासनकाल के समय के मशहूर चित्रकार थे।

जहांगीर के शासनकाल को चित्रकला का स्वर्णकाल भी कहा जाता है। वहीं मुगल सम्राट ने जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा में भी लिखा है कि “कोई भी चित्र चाहे वह किसी मृतक व्यक्ति या फिर जीवित व्यक्ति द्वारा बनाया गया हो, मैं देखते ही तुरंत बता सकता हुँ कि यह किस चित्रकार की कृति है।”

कला ( चित्रकला, स्थापत्य, साहित्य )

जहाँगीर के काल में चित्रकला, स्थापत्य और साहित्य के क्षेत्र में भी काफी उन्नति होती है, आइये देखे:

चित्रकला 

जहाँगीर के काल को चित्रकला का स्वर्णयुग कहा जाता है, और उसने अपनी आत्मकथा तुजुक-ऐ-जहाँगीरी में भी लिखा है की अगर वह किसी चित्र को देखे जिसे बहुत सारे चित्रकारों ने बनाया हो, तो वह यह तक बता सकता है की चित्र का कौनसा भाग किस चित्रकार ने बनाया है और वह अपने आप को चित्रकला का बहुत बड़ा पारखी मानता था। 

इस प्रकार वह चित्रकला के क्षेत्र में खुद रुचि लेता था और चित्रकला को काफी प्रोत्साहन देता था। 

जहाँगीर के समय में महत्वपूर्ण चित्रकार थे मंसूर, जिसको उसने “नादिर-उल-अस्त्र” नामक उपाधि दी थी, मंसूर एक पक्षी विशेषज्ञ था और पक्षियों के चित्र बनाने के लिए वह बहुत ज्यादा लोकप्रिय था। 

इसके अलावा अबुल हसन यह भी एक महत्वपूर्ण चित्रकार थे जो जहाँगीर के दरबार में रहते थे, और इसको जहाँगीर ने “नादिर-उल-जमा” की उपाधि दी थी और वह किसी व्यक्ति विशेष के चित्र बनाने के लिए लोकप्रिय था। 

स्थापत्य 

नूरजहां ने अपने पिता मिर्ज़ा गियास बेग, जिनको जहाँगीर ने “इत्माद-उद-दौलाह” की उपाधि दी थी, उनकी मृत्यु के बाद नूरजहां ने आगरा में एक मकबरे का निर्माण करवाया जिसे “इत्माद-उद-दौलाह का मकबरा” कहा जाता है। 

यह मकबरा पूर्णतः सफ़ेद संगमरमर से निर्मित है और यह भारत में बनने वाला पहला पूर्णतः सफ़ेद संगमरमर से बनने वाला मकबरा है, बाद में चल कर शाहजहाँ ने विशाल पूर्णतः सफेद संगमरमर से बना मकबरा जिसे ताजमहल कहते है, वह बनवाया था अन्यथा पहले यही इत्माद-उद-दौलाह का मकबरा पूर्णतः सफ़ेद संगमरमर से बना था जो की नूरजहां ने बनवाया था। 

इस मकबरे में पित्रादुरा का काम किया गया था, पित्रादुरा एक नकाशीगिरी होती है जिसमे छोटे-छोटे ज़री के काम दीवारों में होते है और इसे पित्रादुरा पद्ति कहा जाता है, इस पद्ति का भी सबसे पहला प्रयोग इत्माद-उद-दौलाह के मकबरे में ही हुआ था। 

इसके अलावा जब जहाँगीर की 1627 में मृत्यु होती है, तब उसका मकबरा शाहदरा, लाहौर में बनवाया जाता है जो की पाकिस्तान में स्थित है। 

साहित्य 

जहाँगीर एक उच्च कोटि का लेखक था, और अपने पिता के समान नहीं था जैसा की हमने पढ़ा था की अकबर पढ़ा-लिखा नहीं था। 

उसने अपनी आत्मकथा लिखी जिसका नाम “तुजुक-ऐ-जहाँगीरी” था और यह आत्मकथा उसने फ़ारसी भाषा में लिखी थी। 

जहाँगीर की आत्मकथा में मूल रूप से तीन अध्याय हैं, प्रथम में उसके प्रारंभिक जीवन के बारे में, दूसरा जो सबसे महत्वपूर्ण भाग है वह जहाँगीर ने खुद लिखा है और अपने बारे में काफी विस्तृत जानकारी दी है, परंतु जब उसकी मृत्यु हो जाती है तब उसमे तीसरा अध्याय जोड़ा जाता है जिसमे उसकी मृत्यु के बाद की घटनाओं को लिखा जाता है जिसे मुहम्मद हादी के द्वारा पूरा किया जाता है।

इसके अलावा जहाँगीर ने एक सैन्य सुधार किया था, उसने दो अस्पा एवं सिंह अस्पा नामक प्रथा चलाई थी।

जैसे की हमने पढ़ा था की अकबर द्वारा मनसबदारी व्यवस्था चलाई जाती है, जिसमे पद होते थे और उस पद के अनुसार उसको सेना या घोड़े रखने की अनुमति होती थी और उसकी सीमा निर्धारित की गयी थी। 

जहाँगीर उसी मनसबदारी व्यवस्था में थोड़ा बदलाव लाया और उसका नाम रखा दो अस्पा एवं सिंह अस्पा।

जैसे कोई सवार का पद है और उसे 1000 घोड़े रखने की अनुमति दी गयी है लेकिन उसे दो गुना कर दिया जाए और पद वही रहे और उसे दो गुने घोड़े रखने होंगे तो उसे दो अस्पा कहा जाता था और इसी में अगर इसे तीन गुना कर दिया जाए तो उसे सिंह अस्पा कहा जाता था। 

जहांगीर की मृत्यु

साल 1627 में जब मुगल सम्राट जहांगीर कश्मीर से वापस लौट रहा था, तभी रास्ते में लाहौर (पाकिस्तान) में तबीयत बिगड़ने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद, जहांगीर के मृत शरीर को अस्थायी रूप से लाहौर में रावी नदी के किनारे बने बागसर के किले में दफनाया गया था।

फिर बाद में वहां जहांगीर की बेगम नूरजहां द्धारा जहांगीर का भव्य मकबरा बनवाया गया, जो आज भी लाहौर में पर्यटकों के आर्कषण का मुख्य केन्द्र है। वहीं जहांगीर की मौत के बाद उसका बेटा खुर्रम (शाहजहां) मुगल सिंहासन का उत्तराधिकारी बना।

जहाँगीर ने ऐसा ना किया होता तो भारत अंग्रेजों का गुलाम कभी ना बनता

1615 ई. में जहांगीर के दरबार (मुगल सम्राट) में सर थॉमस रो की भारत यात्रा ने अंग्रेजों के लिए भारत में व्यापार के दरवाज़े खोल दिए।

उस समय भारत पर मुगल बादशाह ज़हाँगीर का शासन था। हॉकिंस अपने साथ इंग्लैण्ड के बादशाह जेम्स प्रथम का एक पत्र ज़हाँगीर के नाम लाया था।  उसने सन 1608-09 के दौरान ज़हाँगीर के राज-दरबार में स्वयं को राजदूत के रूप में पेश किया तथा घुटनों के बल झुककर उसने बादशाह ज़हाँगीर को सलाम किया। चूंकि वह इंग्लैण्ड के सम्राट का राजदूत बनकर आया था, इसलिए ज़हाँगीर ने भारतीय परम्परा के अनुरूप अतिथि का विशेष स्वागत किया तथा उसे सम्मान दिया। जब अंग्रेजों का दूत कैप्टेन हाकिंस मुग़ल सम्राट जहाँगीर के दरबार में भारत से व्यापार करने की अनुमति लेने गया तो जहाँगीर ने अनुमति नही दी।

लेकिन 1615 ई. तक ऐसा क्या हुआ कि जब टोमस रो जहाँगीर के दरबार में व्यापार की अनुमति लेने गया तो जहाँगीर ने उसे ना सिर्फ व्यापार की अनुमति दे दी बल्कि उसे काफी सम्मान भी दिया। आखिर जहाँगीर ने ऐसा क्यों किया जिस अनुमति ने पूरे भारत को गुलामी में धकेल दिया।

घटना तब की है जब जहांगीर की बेटी जहाँआरा अपने 30वें जन्मदिन के जश्न की तैयारी के दौरान गंभीर रूप से जल गई जिससे सम्राट परेशान  हो गया और डर गया। सम्राट ने उसके अच्छा होने के लिए, हाकिमो और वैद्यों की पूरी सेना लगा दी और साथ-साथ प्रार्थना करने के लिए पवित्र स्थानों की यात्रा भी की परन्तु उसकी बेटी की हालत वैसी ही रही। जबकि भारत एक ऐसे देशों में से था जहा की आयुर्वेदिक प्रणाली बहुत विकसित थी लेकिन दुर्भाग्य से ये चिकित्सा भी विफल रही।

जहांगीर के दरबार में सर थॉमस रो अपनी भारत यात्रा के दौरान पाया कि जहांगीर परेशान था और इसलिए उसने कारण पूछा। तब जहांगीर ने उसे अपनी बेटी की जली चोटों की हालत के बारे में और भारतीय हकीम / वैद्य के असफल प्रयास के बारे में बताया । फिर थॉमस रो ने ब्रिटिश डॉक्टर की मदद से और ब्रिटिश मेडिकल सिस्टम (आधुनिक समय का एलोपैथिक) के माध्यम से उसकी बेटी का इलाज करने के लिए उसकी अनुमति मांगी।

जहाँगीर | 1569 ई.-1627 ई.

सर थॉमस रो  (जो एक अंग्रेजी चिकित्सक था) को जहांगीर की बीमार बेटी के इलाज के लिए मुगल अन्त:पुर (Harem) (मुगल अन्त:पुर में प्रवेश करने वाला पहला यूरोपीय था) में प्रवेश करने की अनुमति मिल गई । एक सप्ताह के भीतर जहांगीर की बेटी की जली हुई त्वचा ठीक होने लगी और अन्य कुछ हफ्तों में वह अपने पैरों पर चलने लगी । मुगल सम्राट जहांगीर सर थॉमस रो का बहुत आभारी था और उसने अपनी बेटी की जान बचाने के लिए बदले में कुछ भी देने के लिए उससे वादा कर दिया था।

फिर सर थॉमस रो ने ब्रिटिश देशवासियों को मुगल दायरे के प्रशासन  में व्यापार के लिए अनुमति देने के लिए कहा । जहांगीर अनुमति देना कभी नहीं चाहता था क्योंकि पुर्तगाली भारतीयों को पहले से ही परेशान कर रहें थे लेकिन अपने वादे की खातिर उसने  रॉयल आदेश (अर्थात् फरमान) जारी करके अंग्रेजों को व्यापार के लिए अनुमति दे दी थी।

इस तरह से जहांगीर की बेटी की जान बचाने के लिए ब्रिटिश लोगो को भारत में मुक्त व्यापार करने की अनुमति मिल गई थी और फिर यही ब्रिटिशों ने 250 वर्षों तक भारत पर शासन किया। जहाँगीर ने ये बिलकुल नहीं सोचा था की बेटी की जान को बचाने के लिए जो वादा किया था वो उसके परिवार के वंश की मौत पर मुगलों का व्यय बन जायेगा।

जहांगीर से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • जहांगीर की मुख्य सफलता मेवाड पर विजय थी
  • नूरजहाँ की माता अस्मत बेगम नूरजहाँ की मुख्य परामर्शदात्री थी तथा इत्र की आविष्कारक मानी जाती है
  • जहांगीर के काल में सबसे पहले पुर्तगाली आये थे
  • जहांगीर मध्ययुगीन शासकों में अपनी न्यायप्रियता के लिए प्रसिध्द था
  • जहाँगीर का जन्म 30 अगस्त, 1569 को हुआ था।
  • अकबर द्वारा जहाँगीर का नाम सूफी संत शेख सलीम चिश्ती से प्रेरित होकर रखा।
  • जहाँगीर की माता मारियम जमानी अम्बर के राजा. भारमल की पुत्री थी।
  • सलीम (जहाँगीर) की 18 फरवरी, 1585 ई० में अम्बर के राजा भगवान दास की पुत्री मानबाई से शादी हुई।
  • सलीम ने मानबाई को शाह बेगम की उपाधि प्रदान की।
  • 1586 ई० में सलीम ने उदय सिंह की पुत्री जगत गोसाईं से विवाह किया जिससे शहजादा खुर्रम का जन्म हुआ।
  • सलीम ने 1599 ई० से 1603 ई० तक अपने पिता सम्राट अकबर के विरुद्ध विद्रोह किया।
  • आगरा के किले के शाहबुर्ज एवं यमुना तट पर एक खंभे में सोने की जंजीर लगी हुई थी जो जहाँगीर की न्याय की जंजीर कहलाती थी।
  • जहाँगीर ने 1606 ई० में अपने सबसे बड़े पुत्र खुसरो के विद्रोह को दबा दिया एवं उसे कैद में डाल दिया।
  • जहाँगीर द्वारा सिखों के ‘5वें’ गुरु अर्जुनदेव को विद्रोही राजकुमार खुसरो को सहायता देने के कारण मृत्युदंड दिया गया,
  • शाहजादा खुर्रम द्वारा अहमदनगर के वजीर मलिक अंबर का दमन करने के कारण जहाँगीर ने उसे शाहजहाँ की उपाधि से नवाजा।
  • 1611 ई० में जहाँगीर ने ईरान निवासी मिर्जा ग्यासबेग की पुत्री मेहरुनिस्सा से विवाह किया।
  • विवाह के पश्चात जहाँगीर ने मेहरूनिस्सा को नूरजहाँ (Light of the world) एवं उसके पिता ग्यासबेग को एतमाद-उद्-दौला की उपाधि से नवाजा।
  • जहाँगीर ने 1613 ई० में नूरजहाँ को बादशाह बेगम के पद पर नियुक्त किया।
  • जहाँगीर ने मिर्जा ग्यास बेग को शाही दीवान के पद पर नियुक्त किया।
  • 1622 ई० में शाह अब्बास (ईरान का शासक) ने कंधार मुगलों से छीनकर अपने अधिकार में कर लिया।
  • नूरजहाँ ने 1611 ई० से 1627 ई० तक के जहाँगीर के प्रशासन को एक हद तक अपने हाथों में ले लिया था। जहाँगीर के खुर्रम, खुसरो, परवेज, शहरयार एवं जहाँदार नामक 5 पुत्र थे।
  • जहाँगीर के शासनकाल में अस्मत बेगम (नूरजहाँ की माता) ने गुलाब से इत्र बनाने की कला विकसित की।
  • जहाँगीर के काल का प्रमुख निर्माण 1626 ई० में नूरजहाँ द्वारा बनवाया गया एतमाद-उद्-दौला का मकबरा है।
  • एतमाद-उद्-दौला का मकबरा ऐसी प्रथम इमारत है जो पूर्णतः श्वेत संगमरमर से निर्मित है।
  • भीमवार नामक स्थान पर जहाँगीर की मृत्यु 7 नवंबर 1627 ई० को हुई।
  • जहाँगीर का शासनकाल मुगल चित्रकारी का स्वर्णकाल माना जाता है।
  • जहाँगीर के दरबार में आगारजा, अबुल हसन, मुहम्मद नासिर, मुहम्मद मुराद, उस्ताद मंसूर, विशनदास, मनोहर एवं गोवर्धन, फारूख बेग एवं दौलत आदि चित्रकार थे।
  • जहाँगीर ने आगरा में एक चित्रशाला स्थापित की।
  • नूरजहाँ ने ही जहाँगीर के मकबरे (शाहदरा-लाहौर) का निर्माण करवाया।
  • नूरजहाँ द्वारा जहाँगीर के एक अन्य पुत्र शहश्यार को जहाँगीर के उत्तराधिकारी के रूप में समर्थन देने के कारण खुर्रम ने सम्राट के खिलाफ 1622-25 ई० की अवधि में विद्रोह कर दिया।
  • खुर्रम के विद्रोह को महावत खाँ ने दबाया।
  • जहाँगीर के शासनकाल में महावत खाँ ने 1626 ई० में विद्रोह कर दिया।
  • जहाँगीर कालीन निर्मित फारसी भाषा के ऐतिहासिक ग्रंथों में तुजूक-ए-जहाँगीरी (जहाँगीर), इकबालनामा-ए-जहाँगीरी (मौतमिद् खाँ), मुहासिर-ए-जहाँगीरि (ख्वाजा कामगार), मजखान-ए-अफगाना (नियामतुल्ला) एवं तारीख-ए-फरिश्ता (मुहम्मद कासिम फरिश्ता) आदि प्रमुख हैं।
  •  जहाँगीर के दरबार में 1615 ई० से 1618 ई० तक व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त करने के उद्देश्य से विलियम हॉकिंस, पालिकेनि, सर टॉमस रो एवं टेरी इंगलैंड के राजा के दूत के रूप में भारत आये। जहाँगीर विलियम हॉकिंस को इंगलिश खान कहता था।
  • सिकंदरा में अकबर के मकबरे का निर्माण उसी की योजना के अनुसार जहाँगीर ने 1612 में करवाया।
  • जहाँगीर की मृत्यु के पश्चात 4 फरवरी, 1628 ई० को शाहजादा खुर्रम (शाहजहाँ) का राज्याभिषेक आगरा में हुआ।

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