भारत सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (GST) को और सरल तथा जन-अनुकूल बनाने की दिशा में एक बड़े सुधार का संकेत दिया है। केंद्र सरकार ने दो मुख्य कर स्लैब (5% और 18%) की नई संरचना का प्रस्ताव रखा है। इसके साथ ही तंबाकू और पान मसाला जैसे चुनिंदा विलासिता व हानिकारक उत्पादों पर 40% का विशेष कर लगाने का सुझाव दिया गया है। यह कदम “नेक्स्ट-जनरेशन जीएसटी सुधार” का हिस्सा है, जिस पर सितंबर या अक्टूबर 2025 में होने वाली जीएसटी परिषद की बैठकों में विचार किया जा सकता है।
यदि इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है, तो इसे वित्त वर्ष 2025–26 की तीसरी तिमाही से लागू किया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2025 को लाल किले से स्वतंत्रता दिवस संबोधन के दौरान ही इस प्रकार के व्यापक सुधारों की रूपरेखा प्रस्तुत कर दी थी और वादा किया था कि दीपावली 2025 तक इन्हें लागू कर दिया जाएगा।
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि यह प्रस्ताव क्या है, इसमें कौन-कौन से बदलाव शामिल हैं, इसका उपभोक्ताओं, व्यवसायों और सरकार की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा, और किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
जीएसटी सुधार की प्रस्तावित दर संरचना
सरकार ने जीएसटी को तीन श्रेणियों में सरल करने का सुझाव दिया है—
1. दो मुख्य स्लैब
- 5% स्लैब – दैनिक उपयोग और सामान्य उपभोक्ता वस्तुएं।
- अभी तक 12% पर आने वाली 99% वस्तुएं इस स्लैब में शिफ्ट हो जाएंगी।
- इसका उद्देश्य आम आदमी के खर्च को कम करना और खपत को बढ़ावा देना है।
- 18% स्लैब – टीवी, फ्रिज जैसी व्हाइट गुड्स और आकांक्षी वस्तुएं।
- वर्तमान में इन पर 28% जीएसटी लगता है, जिसे घटाकर 18% किया जाएगा।
- इससे मध्यम वर्ग के लिए उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स व टिकाऊ वस्तुएं अधिक सुलभ हो जाएंगी।
2. विशेष 40% दर
- विलासिता की वस्तुएं और तंबाकू, पान मसाला जैसे हानिकारक सामान।
- इन्हें “sin goods” की श्रेणी में रखकर 40% कर लगाया जाएगा।
- सरकार का उद्देश्य स्वास्थ्य और सामाजिक दृष्टि से हानिकारक उत्पादों की खपत को नियंत्रित करना है।
3. शून्य कर वाले आवश्यक खाद्य पदार्थ
- आवश्यक खाद्य वस्तुएं जैसे अनाज, दाल, दूध आदि पर पहले की तरह शून्य कर रहेगा।
- इससे महंगाई पर नियंत्रण और गरीब वर्ग की राहत सुनिश्चित होगी।
प्रमुख बदलाव और उनके उद्देश्य
- मध्यम वर्ग को राहत –
पहले जिन आकांक्षी वस्तुओं पर 28% जीएसटी था, अब वे 18% स्लैब में आएंगी। टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन जैसी वस्तुएं अब और सस्ती होंगी। - आम उपभोक्ताओं के लिए वहनीयता –
12% स्लैब को लगभग खत्म कर दिया जाएगा और उसकी अधिकांश वस्तुएं 5% स्लैब में लाई जाएंगी। इससे दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाले प्रोडक्ट्स सस्ते होंगे। - खपत को प्रोत्साहन –
कम कर दरों से उपभोग बढ़ेगा। सरकार का मानना है कि खपत में वृद्धि से जीडीपी की वृद्धि दर को बल मिलेगा और उत्पादन करने वाले उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा।
आर्थिक प्रभाव का विश्लेषण
राजस्व पर प्रभाव
वर्तमान में सरकार का राजस्व वितरण इस प्रकार है:
- 18% स्लैब से – 67%
- 12% स्लैब से – 5%
- 5% स्लैब से – 7%
स्पष्ट है कि 18% स्लैब राजस्व का सबसे बड़ा स्रोत है। अब 12% स्लैब को लगभग समाप्त कर उसकी वस्तुओं को 5% में डालने से अल्पकालिक रूप से सरकार की आय में गिरावट आ सकती है।
हालांकि, सरकार का तर्क है कि अधिक खपत और उत्पादन में बढ़ोतरी इस कमी की भरपाई कर देगी। यह सिद्धांत ‘बड़ा आधार, कम दर’ (Broad Base, Low Rate) पर आधारित है।
उद्योगों पर असर
- कृषि, वस्त्र, उर्वरक और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों को सीधा लाभ मिलेगा।
- ऑटोमोबाइल, स्वास्थ्य और बीमा जैसे सेक्टरों में मांग बढ़ने की उम्मीद है।
- व्हाइट गुड्स सेक्टर में बिक्री तेज होगी, जिससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।
संरचनात्मक और प्रक्रियात्मक सुधार
केवल दरों में बदलाव ही नहीं, बल्कि कई प्रक्रियात्मक सुधार भी प्रस्तावित किए गए हैं—
- इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर का समाधान
- वस्त्र और उर्वरक जैसे क्षेत्रों में अक्सर कच्चे माल पर कर की दर तैयार माल से अधिक होती है।
- इस असंतुलन को समाप्त किया जाएगा ताकि व्यापारियों और निर्माताओं को नुकसान न हो।
- वर्गीकरण को सरल बनाना
- समान वस्तुओं को एक ही स्लैब में रखा जाएगा।
- उदाहरण: नमकीन और स्नैक्स, जिन पर अलग-अलग दरों से विवाद और मुकदमेबाज़ी होती थी, अब एक ही दर पर आएंगे।
- तेज़ पंजीकरण और रिफंड प्रणाली
- 95% व्यवसायिक पंजीकरण को 3 दिन में पूरा करने का लक्ष्य।
- निर्यातकों और इनवर्टेड ड्यूटी वाले व्यवसायों के लिए स्वचालित रिफंड।
- प्री-फिल्ड रिटर्न्स
- जीएसटी रिटर्न्स में ग़लतियों और भ्रम को कम करने के लिए बिलों के आधार पर पहले से भरे हुए फॉर्म दिए जाएंगे।
- इससे अनुपालन बोझ घटेगा।
राजनीतिक और नीतिगत संदर्भ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया है कि “अगली पीढ़ी का जीएसटी” आम आदमी के लिए अधिक अनुकूल, सरल और व्यापार-हितैषी होगा।
इन सुधारों के पीछे सरकार के तीन बड़े उद्देश्य हैं:
- उपभोक्ताओं को राहत देना – दैनिक जीवन की वस्तुओं को सस्ता बनाकर।
- उद्योगों को प्रोत्साहन – उत्पादन व निवेश बढ़ाकर रोजगार को गति देना।
- कर प्रणाली को पारदर्शी बनाना – विवादों और मुकदमों को कम करना।
इसके अलावा, राजनीतिक दृष्टि से यह सुधार मोदी सरकार के लिए एक प्रमुख उपलब्धि साबित हो सकता है, विशेषकर तब जब 2026 के आम चुनावों का माहौल बनने लगेगा।
कार्यान्वयन समयरेखा
- चर्चा चरण – सितंबर–अक्टूबर 2025 में जीएसटी परिषद की बैठकें।
- मंजूरी – परिषद की सहमति से।
- क्रियान्वयन – FY 2025-26 की तीसरी तिमाही (संभवतः दीपावली 2025 के आसपास)।
- कानूनी प्रक्रिया – चूँकि दरों में बदलाव अधिसूचना के माध्यम से किया जा सकता है, संसद में नए कानून की आवश्यकता नहीं होगी। इससे तेजी से कार्यान्वयन संभव होगा।
संभावित चुनौतियाँ
- राजस्व घाटा –
अल्पकालिक रूप से सरकार को टैक्स संग्रह में कमी का सामना करना पड़ सकता है। - राज्यों की सहमति –
जीएसटी परिषद में राज्यों की भी भागीदारी है। कई राज्य अपने राजस्व हितों की रक्षा के लिए इस प्रस्ताव पर सवाल उठा सकते हैं। - विलासिता कर पर विवाद –
40% विशेष कर उद्योग जगत, खासकर लक्ज़री ब्रांड्स और तंबाकू लॉबी, से कड़ा विरोध झेल सकता है। - प्रशासनिक क्षमता –
पंजीकरण और रिफंड को तेज़ करने के लिए तकनीकी और मानव संसाधन क्षमता बढ़ानी होगी।
निष्कर्ष
भारत में जीएसटी को लागू हुए आठ वर्ष पूरे हो चुके हैं। प्रारंभिक दौर में इसकी जटिलता और अनुपालन बोझ को लेकर आलोचना होती रही। अब सरकार इसे एक सरल, पारदर्शी और उपभोक्ता-अनुकूल कर प्रणाली बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठा रही है।
प्रस्तावित दो स्लैब प्रणाली (5% और 18%) तथा 40% विशेष कर न केवल आम उपभोक्ता को राहत देगा, बल्कि उद्योगों को नई ऊर्जा भी प्रदान करेगा। हालांकि, अल्पकालिक राजस्व घाटा और राज्यों की सहमति जैसी चुनौतियाँ बनी रहेंगी।
यदि यह सुधार समय पर और सही ढंग से लागू हो जाता है, तो यह भारत की कर प्रणाली को विश्व स्तर पर और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाएगा तथा “नया भारत” के आर्थिक ढांचे को मजबूत आधार देगा।
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