हिन्दी की जीवनी और जीवनीकार : लेखक और रचनाएँ

हिन्दी की जीवनी और जीवनीकार : एक विस्तृत अध्ययन” लेख हिंदी साहित्य में जीवनी लेखन की दीर्घ, समृद्ध और निरंतर विकसित होती परंपरा का व्यवस्थित और शोधपरक विश्लेषण प्रस्तुत करता है। इसमें 16वीं शताब्दी से लेकर 21वीं सदी तक के प्रमुख जीवनीकारों और उनकी कृतियों की कालक्रमानुसार सूची दी गई है, जिसमें न केवल साहित्यकारों, बल्कि समाज सुधारकों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, राजनेताओं, वैज्ञानिकों और सांस्कृतिक व्यक्तित्वों पर आधारित जीवनियों का भी विस्तृत उल्लेख है।

इस लेख की शुरुआत हिंदी की प्रथम जीवनी ‘भक्तमाल’ (1585 ई.) से होती है, जिसे नाभा दास ने लिखा था, और इसके बाद गोपाल शर्मा शास्त्री, देवी प्रसाद मुंसिफ, कार्तिक प्रसाद खत्री, राधाकृष्ण दास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, बनारसी दास चतुर्वेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी, राहुल सांकृत्यायन, विष्णु प्रभाकर, राम विलास शर्मा, कमला सांकृत्यायन, गायत्री कमलेश्वर जैसे अनेक नाम शामिल हैं। इस संकलन में प्रत्येक जीवनी का प्रकाशन वर्ष, विषय और लेखक का स्पष्ट विवरण है, जिससे पाठकों को हिंदी जीवनी साहित्य के ऐतिहासिक क्रम, विषयगत विविधता और विचारधारात्मक परिवर्तनों की गहन समझ प्राप्त होती है।

यह लेख शोधार्थियों, साहित्य प्रेमियों, विद्यार्थियों और इतिहासकारों के लिए एक विश्वसनीय संदर्भ सामग्री है, जो न केवल साहित्यिक धारा, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक इतिहास की परतों को भी उजागर करता है। यह संग्रह हिंदी जीवनी साहित्य की निरंतरता, विकास, और उसके समाज पर पड़े व्यापक प्रभाव का सजीव प्रमाण है।

जीवनी क्या है?

हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं में जीवनी का विशेष स्थान है। जीवनी किसी विशिष्ट व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन-वृत्तांत को तथ्यों, प्रमाणों और साहित्यिक प्रस्तुति के साथ पाठकों के सामने रखने की विधा है। अंग्रेज़ी में इसे Biography कहा जाता है। यह केवल घटनाओं का विवरण नहीं, बल्कि इतिहास, साहित्य और नायक के जीवन के आदर्शों की त्रिवेणी होती है। जीवनी में लेखक नायक के जीवन के विविध आयामों को प्रामाणिकता और संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करता है, जिससे पाठक उसके व्यक्तित्व और कृतित्व को गहराई से समझ सके।

हिन्दी में जीवनी लेखन की परंपरा बहुत पुरानी है, जिसका आरंभ संत साहित्य से हुआ। समय के साथ, इस विधा में विषय-वस्तु, शैली और प्रस्तुति में विविध परिवर्तन आए।

हिन्दी की प्रथम जीवनी

हिन्दी की पहली जीवनी के रूप में नाभा दास द्वारा रचित भक्तमाल (1585 ई.) को स्वीकार किया जाता है। यह ग्रंथ भक्ति युग के महत्त्वपूर्ण संतों के जीवन और योगदान का परिचय कराता है। यद्यपि इसमें अनेक संतों का चरित चित्रण है, परंतु इसकी संरचना और शैली इसे जीवनी लेखन की प्रारंभिक कड़ी बनाती है।

भक्तमाल को हिंदी की प्रथम जीवनी कहा जाता है, हालांकि यह पारंपरिक अर्थ में एक सामूहिक जीवनी है, जिसमें अनेक संतों और भक्तों के संक्षिप्त जीवन-चरित्र हैं।

वहीं “दयानंद दिग्विजय” (1881 ई.) गोपाल शर्मा शास्त्री द्वारा रचित, 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध की एक व्यक्तिगत जीवनी है, जो स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन पर आधारित है। यह हिंदी की आरंभिक व्यक्तिगत जीवनियों में गिनी जाती है।

इस प्रकार,

  • पहली जीवनी (सामूहिक)भक्तमाल (1585 ई.), लेखक – नाभा दास
  • पहली प्रमुख व्यक्तिगत जीवनीदयानंद दिग्विजय (1881 ई.), लेखक – गोपाल शर्मा शास्त्री

जीवनी लेखन का स्वरूप और विशेषताएँ

जीवनी केवल घटनाओं की श्रृंखला नहीं होती, बल्कि यह लेखक की दृष्टि और व्याख्या के साथ व्यक्तित्व का चित्रण करती है। इसमें कुछ प्रमुख तत्व होते हैं—

  1. व्यक्तित्व का सम्पूर्ण चित्रण – जन्म से लेकर मृत्यु तक का जीवन-वृत्तांत।
  2. प्रामाणिकता – तथ्यों का सटीक और सत्यापन योग्य होना।
  3. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – समय, समाज और परिस्थिति का वर्णन।
  4. साहित्यिक सौंदर्य – भाषा, शैली और भावों की अभिव्यक्ति।
  5. प्रेरणा – पाठक में आदर्श, साहस और प्रेरणा का संचार।

प्रारंभिक काल के जीवनीकार

हिन्दी के प्रारंभिक जीवनीकारों ने धार्मिक और ऐतिहासिक व्यक्तित्वों को केंद्र में रखकर लेखन किया। गोसाई गोकुलनाथ की चौरासी वैष्णवन की वार्ता और दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता (17वीं सदी) इसके उदाहरण हैं।

19वीं सदी के उत्तरार्ध में गोपाल शर्मा शास्त्री की दयानंद दिग्विजय (1881 ई.) आधुनिक युग की पहली जीवनी मानी जाती है, जो स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन पर आधारित है। इसके बाद रमाशंकर व्यास ने नेपोलियन बोनापार्ट का जीवन चरित्र (1883 ई.) लिखा, जो विदेशी व्यक्तित्व पर केन्द्रित प्रारंभिक प्रयास था।

जीवनी लेखन का विकास क्रम

हिन्दी में जीवनी लेखन का इतिहास कई चरणों से गुजरता है। इसे हम तीन प्रमुख कालों में बाँट सकते हैं—

1. आरंभिक काल (16वीं सदी – 19वीं सदी का अंत)

  • नाभा दासभक्तमाल (1585 ई.)
  • गोसाई गोकुलनाथचौरासी वैष्णवन की वार्ता, दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता (17वीं सदी)
  • गोपाल शर्मा शास्त्रीदयानंद दिग्विजय (1881 ई.)
  • रमाशंकर व्यासनेपोलियन बोनापार्ट का जीवन चरित्र (1883 ई.)
  • देवी प्रसाद मुंसिफमहाराजा मान सिंह का जीवन चरित्र (1883 ई.) से लेकर संग्राम सिंह राणा (1904 ई.) तक कई राजाओं के जीवन-वृत्त।
  • कार्तिक प्रसाद खत्रीअहिल्याबाई, छत्रपति शिवाजी, मीराबाई आदि का जीवन चरित्र।

2. विकास काल (20वीं सदी का प्रारंभ – 1947 ई. तक)

इस काल में जीवनी लेखन अधिक व्यवस्थित हुआ और विषय-वस्तु में विविधता आई।

  • राधाकृष्ण दासश्री नागरीदास जी का जीवन चरित्र (1894 ई.) से लेकर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (1904 ई.) तक अनेक साहित्यकारों की जीवनियाँ।
  • बलभद्र मिश्रस्वामी दयानंद महाराज का जीवन चरित्र (1896 ई.)।
  • गौरीशंकर हीराचंद ओझाकर्नल जेम्स टॉड (1902 ई.)।
  • शिवनंदन सहायहरिश्चन्द्र (1905 ई.)।
  • बालमुकुंद गुप्तप्रताप नारायण मिश्र (1907 ई.)।
  • श्याम सुंदर दासहिन्दी कोविद रत्नमाला (1909–1914 ई.), जिसमें 40 साहित्यकारों की जीवनियाँ।
  • आचार्य रामचन्द्र शुक्लबाबू राधाकृष्ण दास (1913 ई.)।
  • संपूर्णानंदधर्मवीर गाँधी (1914 ई.), देशबंधु चित्तरंजन दास (1921 ई.)।
  • आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदीप्राचीन पंडित और कवि (1918 ई.) आदि।
  • राजेन्द्र प्रसादचंपारण में महात्मा गाँधी (1919 ई.)।
  • रामचंद्र वर्मामहात्मा गाँधी (1921 ई.)।
  • गणेश शंकर विद्यार्थीश्री गाँधी (1931 ई.)।
  • इन्द्र वाचस्पतिजवाहरलाल नेहरू (1933 ई.)।
  • ब्रजरत्न दासभारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1934 ई.)।

3. आधुनिक काल (1947 ई. के बाद)

स्वतंत्रता के बाद जीवनी लेखन में राष्ट्रीय नेताओं, साहित्यकारों, स्वतंत्रता सेनानियों और समकालीन व्यक्तित्वों पर अधिक कार्य हुआ।

  • मन्मथनाथ गुप्तचंद्रशेखर आजाद (1938 ई.)।
  • घनश्याम बिड़लाबापू (1940 ई.)।
  • शिवरानी देवीप्रेमचंद घर में (1944 ई.)।
  • रामवृक्ष बेनीपुरीजयप्रकाश नारायण (1951 ई.)।
  • राहुल सांकृत्यायनस्तालिन, कार्ल मार्क्स, लेनिन (1954 ई.)।
  • राम विलास शर्मानिराला की साहित्य साधना (1969 ई.)।
  • विष्णु प्रभाकरआवारा मसीहा (1974 ई.; शरतचंद्र की जीवनी)।
  • विष्णुचंद्र शर्माअग्निसेतु (1976 ई.), समय साम्यवादी (1997 ई.)।
  • राम कमल रायशिखर से सागर तक (1986 ई.)।
  • कमला सांकृत्यायनमहामानव महापंडित (1995 ई.; राहुल सांकृत्यायन पर)।
  • महिमा मेहताउत्सव पुरुष-नरेश मेहता (2003 ई.)।
  • ज्ञान चंद जैनभारतेन्दु हरिश्चन्द्र : एक व्यक्तित्व चित्र (2004 ई.)।
  • गायत्री कमलेश्वरमेरे हमसफर (2005 ई.)।

हिन्दी जीवनी साहित्य में विषय-वस्तु की व्यापकता

हिन्दी में जीवनी लेखन केवल धार्मिक या राजनीतिक व्यक्तित्वों तक सीमित नहीं रहा। इसमें साहित्यकार, वैज्ञानिक, समाज सुधारक, पत्रकार, दार्शनिक और क्रांतिकारी—सभी को स्थान मिला।
उदाहरण के लिए—

  • वैज्ञानिक पर – डॉ. सर जगदीश चन्द्र बसु और उनके आविष्कार (1919 ई.; सुख संपतिराय भंडारी)।
  • पत्रकारिता पर – पराड़करजी और पत्रकारिता (1960 ई.; लक्ष्मी शंकर व्यास)।
  • साहित्यकार पर – बाबूजी (नागार्जुन), वट वृक्ष की छाया में (अमृत लाल नागर), रांगेय राघव : एक अंतरंग परिचय
  • क्रांतिकारी पर – चंद्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाष, जयप्रकाश नारायण

जीवनीकारों का योगदान

हिन्दी के जीवनीकारों ने केवल तथ्यों को नहीं प्रस्तुत किया, बल्कि अपने नायक के आदर्शों और संघर्षों को इस तरह उकेरा कि वह कालजयी बन गया। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने जीवनी लेखन को ऐतिहासिक दृष्टि और आलोचनात्मक विवेक से जोड़ा, जबकि राहुल सांकृत्यायन ने इसे वैचारिक गहराई दी। विष्णु प्रभाकर ने साहित्यिक संवेदना के साथ इसे कथात्मक रूप प्रदान किया।

जीवनी और जीवनीकारों की सूची

यह तालिका हिंदी साहित्य और भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण जीवनी साहित्य का एक व्यापक संकलन है, जिसमें 16वीं शताब्दी से लेकर 21वीं सदी तक के विभिन्न जीवनीकारों और उनकी रचनाओं को क्रमवार प्रस्तुत किया गया है। इसमें भक्तमाल (1585 ई.) के रचयिता नाभा दास से लेकर 2005 ई. तक के समकालीन लेखकों जैसे गायत्री कमलेश्वर तक, सभी को सम्मिलित किया गया है। तालिका में न केवल साहित्यकारों की जीवनी, बल्कि समाज सुधारकों, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, राजनीतिक नेताओं, वैज्ञानिकों और सांस्कृतिक प्रतीकों पर आधारित कृतियों का भी उल्लेख है।

इसमें गोपाल शर्मा शास्त्री, देवी प्रसाद मुंसिफ, राधाकृष्ण दास, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, बनारसी दास चतुर्वेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी, राहुल सांकृत्यायन, विष्णु प्रभाकर, राम विलास शर्मा, कमला सांकृत्यायन जैसे प्रसिद्ध जीवनीकारों की कृतियों को भी स्थान दिया गया है। इस सूची के माध्यम से हिंदी जीवनी साहित्य के विकास, विचारधाराओं के बदलाव और समाज पर पड़े प्रभाव का एक समग्र चित्र प्राप्त किया जा सकता है। यह न केवल हिंदी के साहित्यिक इतिहास का दस्तावेज है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास की धारा को भी रेखांकित करता है।

क्रमजीवनी (प्रकाशन वर्ष)जीवनीकार
1भक्तमाल (1585 ई.)नाभा दास
2चौरासी वैष्णवन की वार्ता, दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता (17वीं सदी ई.)गोसाई गोकुलनाथ
3दयानंद दिग्विजय (1881 ई.)गोपाल शर्मा शास्त्री
4नेपोलियन बोनापार्ट का जीवन चरित्र (1883 ई.)रमाशंकर व्यास
5महाराजा मान सिंह का जीवन चरित्र (1883 ई.), राजा मालदेव (1889 ई.), उदय सिंह महाराजा (1893 ई.), जसवंत सिंह (1896 ई.), प्रताप सिंह महाराणा (1903 ई.), संग्राम सिंह राणा (1904 ई.)देवी प्रसाद मुंसिफ
6अहिल्याबाई का जीवन चरित्र (1887 ई.), छत्रपति शिवाजी का जीवन चरित्र (1890 ई.), मीराबाई का जीवन चरित्र (1893 ई.)कार्तिक प्रसाद खत्री
7श्री नागरीदास जी का जीवन चरित्र (1894 ई.), कविवर बिहारी लाल (1895 ई.), सूरदास (1900 ई.), भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जीवन चरित्र (1904 ई.)राधाकृष्ण दास
8स्वामी दयानंद महाराज का जीवन चरित्र (1896 ई.)बलभद्र मिश्र
9कर्नल जेम्स टॉड (1902 ई.)गौरीशंकर हीराचंद ओझा
10हरिश्चन्द्र (1905 ई.)शिवनंदन सहाय
11प्रताप नारायण मिश्र (1907 ई.)बालमुकुंद गुप्त
12हिन्दी कोविद रत्नमाला (प्रथम भाग-1909 ई., द्वितीय भाग-1914 ई.; हिन्दी के 40 साहित्यकारों की जीवनियाँ)बाबू श्याम सुंदर दास
13बाबू राधाकृष्ण दास (1913 ई.)आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
14कर्मवीर गाँधी (1973 ई.)मुकुंदी लाल वर्मा
15धर्मवीर गाँधी (1914 ई.), देशबंधु चित्तरंजन दास (1921 ई.)संपूर्णानंद
16प्राचीन पंडित और कवि (1918 ई.), सुकवि संकीर्तन (1924 ई.), चरित चर्चा (1929 ई.)आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
17डाक्टर सर जगदीश चन्द्र बसु और उनके आविष्कार (1919 ई.)सुख संपतिराय भंडारी
18दयानंद प्रकाश (1919 ई.)स्वामी सत्यानंद
19चंपारण में महात्मा गाँधी (1919 ई.), बापू के कदमों में (1950 ई.)राजेन्द्र प्रसाद
20महात्मा गाँधी (1921 ई.)रामचंद्र वर्मा
21गाँधी मीमांसा (1921 ई.)रामदयाल तिवारी
22लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (1921 ई.)ईश्वरी प्रसाद वर्मा
23विरत्न सत्यनारायण जी की जीवनी (1926 ई.)बनारसी दास चतुर्वेदी
24श्री गाँधी (1931 ई.)गणेश शंकर विद्यार्थी
25जवाहर लाल नेहरू (1933 ई.)इन्द्र वाचस्पति
26कार्ल माक्र्स (1933 ई.)सत्यभक्त
27भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1934 ई.)ब्रजरत्न दास
28महामना पंडित मदन मोहन मालवीय (1937 ई.)सीताराम चतुर्वेदी
29चंद्रशेखर आजाद (1938 ई.)मन्मथनाथ गुप्त
30महात्मा गाँधी (1939 ई.), हमारे जवाहर लाल नेहरू (1948 ई.)लक्ष्मण प्रसाद भारद्वाज
31बापू (1940 ई.), मेरे जीवन में गाँधीजी (1975 ई.)घनश्याम बिड़ला
32प्रेमचंद घर में (1944 ई.)शिवरानी देवी
33नेताजी सुभाष (1946 ई.)छविनाथ पाण्डेय
34बापू की झाँकियाँ (1948 ई.)काका कालेलकर
35बापू के कारावास की कहानी (1919 ई.)सुशीला नायर
36जयप्रकाश नारायण (1951 ई.)रामवृक्ष बेनीपुरी
37स्तालिन, कार्ल मार्क्स, लेनिन (1954 ई.)राहुल सांकृत्यायन
38माखन लाल चतुर्वेदी (1960 ई.)जैमिनी कौशिक बरूआ
39पराड़करजी और पत्रकारिता (1960 ई.)लक्ष्मी शंकर व्यास
40रामचन्द्र शुक्ल : जीवनी और कृतित्व (1962 ई.)चंद्रशेखर शुक्ल
41कलम का मजदूर (1964 ई.; प्रेमचंद के जीवन पर)मदन गोपाल
42अकाल पुरूष गाँधी (1968 ई.)जैनेन्द्र कुमार
43निराला की साहित्य साधना-प्रथम खंड (1969 ई.)राम विलास शर्मा
44प्रियदर्शिनी इंदिरा गाँधी (1970 ई.)शिव कुमार कौशिक
45सुमित्रानंदन पंतः जीवन और साहित्य (प्रथम खंड-1970 ई.; द्वितीय खंड-1977 ई.)शांति जोशी
46जिन्होंने जीना जाना (1954 ई.; 12 प्रसिद्ध व्यक्तियों के चरित-लेख)जगदीश चंद्र माथुर
47उत्तर योगी : श्री अरविंद (1972 ई.)शिव प्रसाद सिंह
48आवारा मसीहा (1974 ई.; शरतचन्द्र की जीवनी)विष्णु प्रभाकर
49अग्निसेतु (1976 ई.; नजरूल इस्लाम पर), समय साम्यवादी (1997 ई.; राहुल सांकृत्यायन पर)विष्णुचंद्र शर्मा
50शिखर से सागर तक (1986 ई.; अज्ञेय पर)राम कमल राय
51बाबूजी (1991 ई.; नागार्जुन पर)शोभाकांत
52मेरे बड़े भाई शमशेर जी (1995 ई.)तेज बहादुर चौधरी
53महामानव महापंडित (1995 ई.; राहुल सांकृत्यायन पर)कमला सांकृत्यायन
54प्यारे हरिश्चन्द्र जू (1997 ई.)प्रतिभा अग्रवाल
55रांगेय राघव : एक अंतरंग परिचय (1997 ई.)सुलोचना रांगेय राघव
56राजेन्द्र यादव-मार्फत मदन मोहन ठाकौर (1999 ई.)मदन मोहन ठाकौर
57स्मृति के झरोखे में (1999 ई.; भारत भूषण अग्रवाल पर)बिन्दु अग्रवाल
58उत्सव पुरुष-नरेश मेहता (2003 ई.)महिमा मेहता
59वट वृक्ष की छाया में (2004 ई.; अमृत लाल नागर पर)कुमुद नागर
60भारतेन्दु हरिश्चन्द्र : एक व्यक्तित्व चित्र (2004 ई.)ज्ञान चंद जैन
61रामकृष्ण परमहंस : पतरू की उत्सव लीला (2004 ई.)कृष्ण बिहारी मिश्र
62मेरे हमसफर (2005 ई.)गायत्री कमलेश्वर

जीवनीकार और उनकी रचनाएँ (जीवनी) की तालिका

यह तालिका हिंदी साहित्य के प्रमुख जीवनीकारों और उनकी रचित जीवनियों का सुव्यवस्थित संकलन प्रस्तुत करती है। इसमें विभिन्न युगों के साहित्यकारों, समाज सुधारकों, राजनेताओं, वैज्ञानिकों, दार्शनिकों और सांस्कृतिक हस्तियों पर आधारित कृतियों को कालक्रमानुसार शामिल किया गया है, जिससे हिंदी जीवनी साहित्य की विकास यात्रा और विषय-वस्तु की विविधता का स्पष्ट चित्र मिलता है।

क्रमजीवनीकाररचनाएँ (जीवनी)
1गोपाल शर्मा शास्त्रीदयानंद दिग्विजय (1881)
2भारतेंदुबादशाह दर्पण, पंच पवित्रात्मा, चरितावली
3राधाकृष्ण दासश्री नागरीदास जी का जीवन चरित्र (1894), कविवर बिहारी लाल (1895), सूरदास (1900)
4राधाकृष्ण दासभारतेंदु बाबू हरिश्चंद का जीवन चरित (1904)
5शिवनंदन सहायहरिश्चंद (1905)
6बालमुकुंद गुप्तप्रताप नारायण मिश्र (1907)
7श्यामसुंदर दासहिंदी कोविद रत्नमाला (2 भाग, 1909-14)
8रामचन्द्र शुक्लबाबू राधाकृष्णदास (1913)
9घनश्यामदास बिड़लाबापू
10संपूर्णानंदधर्मवीर गाँधी (1914), देशबंधु चित्तरंजन दास (1921)
11राजेन्द्र प्रसादचंपारण में महात्मा गाँधी (1919), बापू के कदमों में (1950)
12महावीर प्रसाद द्विवेदीप्राचीन पंडित और कवि (1918), सुकवि संकीर्तन (1924), चरित चर्चा (1929)
13रामबृक्ष बेनीपुरीजय प्रकाश नारायण (1951)
14राहुल सांकृत्यायनस्तालिन, कार्लमार्क्स, लेनिन, माउत्से तुंग
15शिवरानी देवीप्रेमचंद घर में (1944)
16अमृत रायकलम का सिपाही (प्रेमचंद, 1962)
17मदन गोयलकलम का मजदूर (प्रेमचंद, 1964)
18जैनेन्द्रअकाल पुरुष गाँधी (1968)
19हंस राज रहबरयोद्धा संन्यासी विवेकानंद
20शिव प्रसाद सिंहउत्तर योगी श्री अरविन्द
21अमृत लाल नागरचैतन्य महाप्रभु
22चंद्रशेखर शुक्लरामचन्द्र शुक्ल: जीवन और कृतित्व
23शांति जोशीपन्त की जीवनी
24रामविलास शर्मामार्क्स, त्रोत्स्की और एशियाई समाज, निराला की साहित्य साधना (3 भागों में, 1969)
25कमला सांकृत्यायनमहामानव महापंडित: राहुल सांकृत्यायन
26विष्णु चन्द्र शर्मासमय साम्यवादी (राहुल सांकृत्यायन), अग्निसेतु (1973)
27जगदीश चन्द्र माथुरजिन्होंने जीना जाना (1971)
28विष्णु प्रभाकरआवारा मसीहा (शरतचन्द्र, 1974)
29शोभाकांतबाबूजी (नागार्जुन, 1991)
30सुलोचना रांगेय राघवरांगेय राघव: एक अंतरंग परिचय (1997)
31बिन्दु अग्रवालस्मृति के झरोखे में (भारत भूषण अग्रवाल, 1999)
32मदन मोहन ठाकौरराजेन्द्र यादव (1999)
33महिमा मेहताउत्सव पुरुष- नरेश मेहता (2003)
34कुमुद नागरवट वृक्ष की छाया में (अमृत लाल नागर, 2004)
35गायत्री कमलेश्वरकमलेश्वर मेरे हमसफर (2005)
36राज कमल रायशिखर से सागर तक (अज्ञेय)
37विश्वनाथ त्रिपाठीव्योमकेश दरवेश (हजारी प्रसाद द्विवेदी)
38विष्णु नागररघुवीर सहाय की जीवनी
39पुरुषोत्तम अग्रवालकोलाज: अशोक वाजपेयी (2012)
40ओंकार शरदलोहिया
41अरुण महेश्वरीसिरहाने ग्राम्सी
42अखिलेशमकबूल
43धर्मानंद कोसम्बीभगवान बुध
44रोमाँ रोलाँविवेकानंद (अनु. अज्ञेय, रघुवीर सहाय); महात्मा गाँधी (अनु. प्रफुल्लचन्द्र ओझा); रामकृष्ण परमहंस (अनु. रघुराज गुप्त)

जीवनी से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

हिंदी जीवनी साहित्य में कई ऐसी कृतियाँ हैं, जो न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, बल्कि अपने विषय-वस्तु और संरचना के कारण भी विशेष स्थान रखती हैं। इनमें—

  • नाभा दास ने “भक्तमाल “(1585 ई.) की रचना की, जिसे हिंदी की प्रथम जीवनी कृति माना जाता है।
  • पहली जीवनी (सामूहिक)भक्तमाल (1585 ई.), लेखक – नाभा दास
  • पहली प्रमुख व्यक्तिगत जीवनीदयानंद दिग्विजय (1881 ई.), लेखक – गोपाल शर्मा शास्त्री
  • गोसाई गोकुलनाथ ने 17वीं सदी में “चौरासी वैष्णवन की वार्ता” और दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता की रचना की, जिनमें संत-वैष्णव परंपरा का विस्तृत वर्णन है।
  • जगदीश चन्द्र माथुर की “जिन्होंने जीना जाना” में 7 साहित्यकारों, 2 राजनेताओं, 1 विचारक, 1 अभिनेत्री और 1 कलाकार का चरित्र-लेखन संग्रहित है।
  • विष्णु प्रभाकर की “आवारा मसीहा” बंगला साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की औपन्यासिक जीवनी है, जो हिंदी में एक विशिष्ट साहित्यिक शैली का उदाहरण है।
  • कुमुद नागर की “वट वृक्ष की छाया में ” अमृत लाल नागर के जीवन और साहित्यिक योगदान की स्मृति को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से लिखी गई है।

निष्कर्ष

हिन्दी में जीवनी लेखन की परंपरा लगभग पाँच सदियों पुरानी है, जिसका आरंभ भक्ति काल से हुआ और जो आज भी निरंतर विकसित हो रही है। नाभा दास की भक्तमाल से लेकर आधुनिक समय की आत्मकथात्मक जीवनियों तक, यह विधा न केवल व्यक्तित्व का परिचय कराती है, बल्कि समाज, संस्कृति और इतिहास का दस्तावेज भी बन जाती है।

इसका महत्व केवल साहित्यिक दृष्टि से नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और प्रेरणात्मक दृष्टि से भी है। हिन्दी के जीवनीकारों ने यह सिद्ध किया है कि एक व्यक्ति का जीवन केवल उसका निजी इतिहास नहीं, बल्कि युग का प्रतिबिंब भी होता है।


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