जेनोट्रांसप्लांटेशन (Xenotransplantation) | मानव में सूअर के लीवर का प्रत्यारोपण

चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि! चीनी डॉक्टरों ने पहली बार आनुवंशिक रूप से संशोधित सूअर के लीवर को मानव शरीर में सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित किया है। यह अंग 10 दिनों तक बिना प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया या सूजन के सामान्य रूप से कार्य करता रहा, जो जेनोट्रांसप्लांटेशन (प्रजातियों के बीच अंग प्रत्यारोपण) की दिशा में एक बड़ी छलांग है। इस सफलता से वैश्विक अंग संकट के समाधान की उम्मीदें बढ़ी हैं, जहां हर साल लाखों लोग अंग प्रत्यारोपण के इंतजार में मर जाते हैं।

जेनोट्रांसप्लांटेशन क्या है? यह तकनीक कैसे काम करती है? इस लेख में विस्तार से जानें कि कैसे CRISPR-Cas9 जैसी जीन-एडिटिंग टेक्नोलॉजी के माध्यम से सूअर के अंगों को मानव शरीर के लिए अनुकूल बनाया गया। साथ ही, समझें प्रतिरक्षा अस्वीकृति, ज़ूनोटिक संक्रमण के जोखिम, और नैतिक दुविधाओं जैसी चुनौतियों के बारे में।

इतिहास से लेकर वर्तमान तक: 1960 के दशक में चिम्पांजी के गुर्दे से शुरू हुए प्रयासों से लेकर 2022 में सूअर के हृदय प्रत्यारोपण तक की यात्रा। चीनी शोधकर्ताओं की इस सफलता ने कैसे अंग प्रत्यारोपण के भविष्य को नई दिशा दी है? जानें आनुवंशिक संशोधन के तीन प्रमुख चरणों, बायोरिएक्टर तकनीक, और भविष्य में मल्टी-ऑर्गन फार्मिंग की संभावनाओं के बारे में।

क्या यह तकनीक नैतिक है? पशु अधिकार, धार्मिक मान्यताओं, और लागत जैसे सामाजिक पहलुओं पर गहन विश्लेषण। साथ ही, वैश्विक अंग संकट के आंकड़े और समाधान के रूप में जेनोट्रांसप्लांटेशन की भूमिका।

यदि आप चिकित्सा विज्ञान की इस क्रांति, उसके चमत्कारों और चुनौतियों को समझना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए है। जानें कि कैसे मनुष्य और प्रकृति के सहयोग से असंभव को संभव बनाया जा रहा है।

अंग प्रत्यारोपण की नई क्रांति

दुनिया भर में हर साल लाखों लोग अंग प्रत्यारोपण के इंतजार में मौत के मुंह में चले जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर केवल 10% अंग प्रत्यारोपण की मांग पूरी हो पाती है। ऐसे में, जेनोट्रांसप्लांटेशन (Xenotransplantation) – यानी एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में अंगों का स्थानांतरण – चिकित्सा जगत की एक नई उम्मीद बनकर उभरा है।

हाल ही में चीनी चिकित्सा वैज्ञानिकों ने आनुवंशिक रूप से संशोधित सूअर के लीवर को मानव शरीर में सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित करके इतिहास रच दिया है। यह अंग 10 दिनों तक बिना प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया या सूजन के कार्य करता रहा, जो इस दिशा में एक बड़ी सफलता है।

चीनी डॉक्टरों की ऐतिहासिक उपलब्धि

चीन के शोधकर्ताओं ने एक 50 वर्षीय मरीज में जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा संशोधित सूअर के लीवर का प्रत्यारोपण किया। यह प्रयोग “एक्सटर्नल लीवर सपोर्ट” के रूप में किया गया, जहां अंग को शरीर के बाहर रखकर रक्त शोधन का कार्य सौंपा गया। 10 दिनों तक इस लीवर ने बिना किसी प्रतिरोधक प्रतिक्रिया के सामान्य रूप से कार्य किया। यह सफलता इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पहले के प्रयासों में प्रतिरक्षा तंत्र तेजी से अंग को अस्वीकार कर देता था। इस प्रयोग ने यह साबित किया कि आनुवंशिक संशोधन के जरिए प्रजाति-अंतराल की बाधाओं को पार किया जा सकता है।

जेनोट्रांसप्लांटेशन क्या है?

जेनोट्रांसप्लांटेशन (Xenotransplantation) दो शब्दों के मेल से बना है: “Xenos” (ग्रीक भाषा में “विदेशी”) और “Transplantation” (प्रत्यारोपण)। इसमें एक प्रजाति के अंग, ऊतक, या कोशिकाओं को दूसरी प्रजाति में प्रत्यारोपित किया जाता है। उदाहरण के लिए, सूअर का हृदय मनुष्य में लगाना। यह तकनीक उन रोगियों के लिए वरदान है, जिन्हें मानव अंग दाता नहीं मिल पाते।

इतिहास के पन्नों से

  • 17वीं सदी: पशुओं के रक्त का मनुष्यों में प्रयोग शुरू हुआ, पर संक्रमण के कारण असफलता मिली।
  • 1960 के दशक: चिम्पांजी के गुर्दे मनुष्यों में प्रत्यारोपित किए गए, लेकिन प्रतिरक्षा अस्वीकृति के चलते रोगियों की मृत्यु हो गई।
  • 1984: “बेबी फे” नामक शिशु को बबून (एक प्रकार का बंदर) का हृदय प्रत्यारोपित किया गया, जो महज 20 दिनों तक जीवित रहा।
  • 2022: अमेरिका में सूअर के हृदय का पहला सफल प्रत्यारोपण हुआ, पर रोगी दो महीने बाद संक्रमण से मर गया।

आनुवंशिक संशोधन: सफलता की कुंजी

चीनी शोधकर्ताओं ने सूअर के लीवर में CRISPR-Cas9 तकनीक से तीन प्रमुख आनुवंशिक परिवर्तन किए:

  1. अल्फा-गैल एपिटोप को हटाना: यह अणु मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को अंग को “विदेशी” मानने के लिए उत्तेजित करता है।
  2. ह्यूमन ट्रांसजेन जोड़ना: यह प्रोटीन मानव रक्त के साथ संगतता बढ़ाता है।
  3. रेट्रोवायरस जीन निष्क्रिय करना: सूअरों में मौजूद PERVs (Porcine Endogenous Retroviruses) को निष्क्रिय किया गया, जो मनुष्यों में संक्रमण फैला सकते हैं।

इस संशोधन के बाद, अंग को शरीर के बाहर एक बायोरिएक्टर में रखा गया और रोगी के रक्त से जोड़ा गया। यह प्रक्रिया लीवर के कार्यों का परीक्षण करने और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को मापने के लिए की गई।

चुनौतियाँ: विज्ञान और समाज के सामने दुविधाएँ

जेनोट्रांसप्लांटेशन की राह आसान नहीं है। निम्नलिखित कारणों से यह तकनीक अब तक सीमित रही है:

1. प्रतिरक्षा अस्वीकृति (Immune Rejection)

मानव शरीर किसी भी “गैर-स्व” अंग को हानिकारक मानकर उस पर हमला कर देता है। यह प्रतिक्रिया तीन चरणों में होती है:

  • हाइपरएक्यूट रिजेक्शन: प्रत्यारोपण के कुछ मिनटों में ही एंटीबॉडीज़ अंग को नष्ट कर देती हैं।
  • एक्यूट रिजेक्शन: कुछ दिनों में T-कोशिकाएँ अंग पर आक्रमण करती हैं।
  • क्रॉनिक रिजेक्शन: लंबे समय में अंग धीरे-धीरे कार्य करना बंद कर देता है।

समाधान: आनुवंशिक संशोधन और इम्यूनोसप्रेसेंट दवाओं का संयोजन।

2. संक्रमण का जोखिम (Zoonotic Risks)

सूअरों में मौजूद वायरस (जैसे PERVs) मनुष्यों में फैल सकते हैं। 1990 के दशक में इस खतरे के कारण कई देशों ने जेनोट्रांसप्लांटेशन पर रोक लगा दी थी।

समाधान: जीन एडिटिंग द्वारा वायरल जीन्स को निष्क्रिय करना और सख्त बायोसेफ्टी प्रोटोकॉल।

3. नैतिक और सामाजिक प्रश्न

  • पशु अधिकार: क्या मनुष्यों के लिए पशुओं का उपयोग नैतिक है?
  • धार्मिक विचार: कुछ धर्मों में सूअर को अशुद्ध माना जाता है, जिससे अंग स्वीकार्यता पर प्रश्न उठते हैं।
  • लागत: यह तकनीक अत्यधिक महंगी है, जिससे यह विकासशील देशों की पहुंच से दूर हो सकती है।

वैश्विक अंग संकट: क्यों जरूरी है जेनोट्रांसप्लांटेशन?

  • आंकड़े: भारत में हर साल लगभग 2 लाख लोगों को किडनी प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, लेकिन केवल 10,000 प्रत्यारोपण ही हो पाते हैं।
  • मृत्यु दर: अमेरिका में प्रतिदिन 17 लोग अंग न मिलने के कारण मर जाते हैं।
  • डोनर कमी: मानव अंग दान संस्कृति की कमी और जागरूकता के अभाव ने संकट को गहरा किया है।

जेनोट्रांसप्लांटेशन इस समस्या का एक संभावित समाधान है, क्योंकि सूअरों के अंग आकार और कार्य में मनुष्यों के समान होते हैं। इसके अलावा, उन्हें बड़े पैमाने पर प्रयोगशालाओं में उगाया जा सकता है।

भविष्य की दिशा: क्या संभव है?

  1. मल्टी-ऑर्गन फार्मिंग: जीन-एडिटेड सूअरों से लीवर, हृदय, और किडनी का निर्माण।
  2. 3D बायोप्रिंटिंग: सूअर की कोशिकाओं का उपयोग करके प्रयोगशाला में अंग विकसित करना।
  3. इम्यूनोलॉजिकल टॉलरेंस: ऐसी दवाएं विकसित करना जो शरीर को अंग स्वीकार करने के लिए “प्रशिक्षित” करें।

जेनोट्रांसप्लांटेशन (Xenotransplantation) | एक नई सुबह की ओर

चीनी वैज्ञानिकों की सफलता ने जेनोट्रांसप्लांटेशन को कल्पना से वास्तविकता की ओर बढ़ाया है। हालांकि, इस तकनीक के व्यापक उपयोग से पहले दीर्घकालिक सुरक्षा, नैतिक मानकों, और वहनीयता सुनिश्चित करनी होगी। यदि यह प्रयास सफल रहा, तो न केवल अंग संकट का समाधान होगा, बल्कि चिकित्सा विज्ञान मनुष्य और प्रकृति के बीच सहयोग की नई परिभाषा गढ़ेगा।

स्रोत: WHO रिपोर्ट्स, नेचर जर्नल, और हाल के शोध पत्र।

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