जो रूट: टेस्ट क्रिकेट के दूसरे सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज़ की ऐतिहासिक यात्रा

टेस्ट क्रिकेट, जिसे क्रिकेट का शुद्धतम और सबसे कठिन प्रारूप माना जाता है, उसमें बल्लेबाज़ी की निरंतरता, धैर्य, तकनीकी परिपक्वता और मानसिक दृढ़ता की पराकाष्ठा दिखाई देती है। इस कसौटी पर खरा उतरना ही किसी बल्लेबाज़ को “महान” की श्रेणी में ले जाता है। ऐसे ही एक बल्लेबाज़ हैं इंग्लैंड के जो रूट, जिन्होंने जुलाई 2025 में मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड मैदान पर भारत के खिलाफ नाबाद 120 रनों की पारी खेलते हुए टेस्ट क्रिकेट इतिहास में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की। इस पारी के साथ ही उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाजों की सूची में दूसरा स्थान हासिल कर लिया है। अब वे केवल महान सचिन तेंदुलकर से पीछे हैं।

यह लेख जो रूट की इस शानदार उपलब्धि का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है – उनके करियर की शुरुआत से लेकर इस शिखर तक पहुंचने की प्रेरणादायक यात्रा, तकनीकी दक्षता, आंकड़ों की गहराई, और उनके योगदान का समग्र मूल्यांकन।

जो रूट का प्रारंभिक जीवन और करियर की शुरुआत

जोसेफ एडवर्ड रूट, जिन्हें क्रिकेट जगत में हम ‘जो रूट’ के नाम से जानते हैं, का जन्म 30 दिसंबर 1990 को इंग्लैंड के शेफ़ील्ड में हुआ। एक क्रिकेट परिवार से आने वाले रूट को बचपन से ही खेल के प्रति आकर्षण था। उनके दादा विल्फ़्रेड रूट यॉर्कशायर लीग के अनुभवी खिलाड़ी रहे, और यही विरासत जो रूट को क्रिकेट की ओर खींच लाई।

उनकी तकनीक और संयम को देखते हुए उन्हें 2012 में नागपुर में भारत के खिलाफ टेस्ट पदार्पण का मौका मिला। डेब्यू में ही 73 रनों की पारी ने संकेत दे दिया कि यह खिलाड़ी लंबे समय तक इंग्लैंड की टेस्ट टीम की धुरी बनेगा।

इंग्लैंड क्रिकेट की रीढ़ – जो रूट

2012 के बाद रूट ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने तेज़ी से इंग्लैंड के बल्लेबाज़ी क्रम में अपनी जगह पक्की की। कप्तान बनने के बाद उनके खेल में और भी निखार आया। जहां अधिकतर बल्लेबाज़ कप्तानी के बोझ से जूझते हैं, वहीं जो रूट ने उस दबाव को अपने खेल को और बेहतर बनाने के माध्यम के रूप में लिया।

विशेषतः 2020 के बाद से उनका प्रदर्शन अभूतपूर्व रहा है। उन्होंने श्रीलंका, भारत, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीमों के खिलाफ मैच जिताऊ पारियाँ खेलीं और टीम को कई बार संकट से उबारा।

ऐतिहासिक उपलब्धि – सचिन के बाद दूसरे स्थान पर

जुलाई 2025 में भारत के खिलाफ चौथे टेस्ट में 120* रन की नाबाद पारी खेलते हुए रूट ने टेस्ट क्रिकेट में 13,400 से अधिक रन पूरे किए और राहुल द्रविड़ (13288 रन), रिकी पोंटिंग (13378 रन) और जैक्स कैलिस (13289 रन) जैसे दिग्गजों को पीछे छोड़ते हुए दूसरे स्थान पर पहुंच गए। अब वे केवल सचिन तेंदुलकर (15,921 रन) से पीछे हैं।

यह न केवल आंकड़ों की दृष्टि से एक बड़ा मील का पत्थर है, बल्कि टेस्ट क्रिकेट में तकनीकी दक्षता और धैर्य की पराकाष्ठा का भी प्रतीक है।

रूट की बल्लेबाज़ी की विशेषताएँ

1. तकनीकी परिपक्वता

रूट की तकनीक परंपरागत इंग्लिश स्कूल से प्रभावित है – हाई एल्बो, सीधी पीठ, और ऑफ स्टंप के बाहर गेंदों को छोड़ने की गजब की क्षमता। उन्होंने हर परिस्थिति में खुद को ढालते हुए रन बनाए हैं – भारत की स्पिनिंग पिचों से लेकर ऑस्ट्रेलिया की बाउंसी विकेट्स तक।

2. मानसिक संतुलन और संयम

कई बार इंग्लैंड संकट में रहा, लेकिन रूट का संयम और नेतृत्व क्षमता टीम को स्थिरता देने में सक्षम रही। वे कभी भावनात्मक रूप से विचलित नहीं होते – यही मानसिक दृढ़ता उन्हें सबसे अलग बनाती है।

3. नवाचार और लचीलापन

रूट न केवल रक्षात्मक खेल में माहिर हैं, बल्कि T20 और ODI क्रिकेट के प्रभाव से उन्होंने अपने शॉट चयन में भी विविधता लाई है। रिवर्स स्वीप, रैंप शॉट और स्लॉग स्वीप जैसे शॉट्स अब उनके टेस्ट खेल का हिस्सा बन चुके हैं – और वह भी पूर्ण नियंत्रण के साथ।

आंकड़ों की दृष्टि से रूट का मूल्यांकन

आंकड़ाविवरण
टेस्ट रन13,400+
टेस्ट मैच157
टेस्ट शतक38
टेस्ट अर्धशतक104
दोहरे शतक6
औसत50.25 (2025 तक)

38 टेस्ट शतक

इस आंकड़े के साथ रूट ने कुमार संगकारा की बराबरी की है। वे अब केवल तेंदुलकर (51), पोंटिंग (41) और कावेरी (40) जैसे बल्लेबाज़ों से पीछे हैं।

104 अर्धशतक

टेस्ट क्रिकेट में 104 अर्धशतक बनाकर वे केवल सचिन तेंदुलकर (119) से पीछे हैं। निरंतरता की यह मिसाल आधुनिक क्रिकेट में दुर्लभ है।

ओल्ड ट्रैफर्ड में 1,000+ रन

जो रूट ओल्ड ट्रैफर्ड मैदान पर 1,000 से अधिक रन बनाने वाले पहले बल्लेबाज़ बने हैं – यह घरेलू परिस्थितियों में उनकी महारत को दर्शाता है।

2020 के बाद का पुनर्जागरण काल

रूट के करियर में 2020 के बाद का दौर विशेष उल्लेखनीय रहा है। उस समय इंग्लैंड की टीम पुनर्निर्माण की अवस्था में थी और युवा खिलाड़ियों की भरमार थी। रूट ने न केवल कप्तानी करते हुए टीम को संभाला, बल्कि बल्ले से उदाहरण भी प्रस्तुत किया।

प्रमुख पारियाँ:

  • 228 बनाम श्रीलंका (गॉल, 2021)
  • 186 बनाम भारत (चेन्नई, 2021)
  • 180 बनाम ऑस्ट्रेलिया (लीड्स, 2023)*
  • 153 बनाम पाकिस्तान (रावलपिंडी, 2022)

ये पारियाँ परिस्थितियों के अनुसार ढलने, लंबी साझेदारियाँ निभाने, और टीम को जीत दिलाने की दृष्टि से बेजोड़ रही हैं।

कप्तानी और नेतृत्व में योगदान

जो रूट ने 2017 से 2022 तक इंग्लैंड की कप्तानी की और 64 टेस्ट मैचों में कप्तानी की, जिनमें से 27 में जीत दर्ज की। यद्यपि आलोचना भी हुई, परंतु रूट ने इंग्लैंड क्रिकेट को एक संक्रमण काल से निकाल कर युवा और लचीली टीम में तब्दील किया।

उनके बाद बेन स्टोक्स और ब्रेंडन मैकुलम की आक्रामक शैली आई, जिसे ‘बैज़बॉल’ कहा गया, लेकिन इसकी नींव रूट के संयमी नेतृत्व में ही पड़ी थी।

महानता की कसौटी पर जो रूट

क्या जो रूट अब सर्वकालिक महान बल्लेबाज़ों की श्रेणी में आते हैं?

उत्तर – निःसंदेह।
उनकी उपलब्धियाँ आंकड़ों से कहीं अधिक गहरी हैं। जिस निरंतरता, तकनीक, और संयम के साथ उन्होंने खेला है, वह ब्रैडमैन, द्रविड़, तेंदुलकर, लारा, संगकारा, और कैलिस जैसे दिग्गजों के समकक्ष रखी जा सकती है।

उनकी तुलना किसी एक शैली से नहीं की जा सकती – वह द्रविड़ की रक्षात्मकता, लारा की लय, और पोंटिंग की आक्रामकता – तीनों को समाहित करते हैं।

भविष्य की संभावनाएँ

वर्तमान प्रदर्शन के अनुसार यदि रूट अगले 3 वर्षों तक इसी गति से खेलते रहे, तो वह सचिन तेंदुलकर के 15,921 रनों के रिकॉर्ड को भी चुनौती दे सकते हैं। उन्हें लगभग 2,500 रन और बनाने हैं, जो उनकी वर्तमान औसत को देखते हुए पूरी तरह संभव प्रतीत होता है।

निष्कर्ष

जो रूट की यह उपलब्धि केवल एक व्यक्तिगत मील का पत्थर नहीं है, बल्कि यह क्रिकेट की उस परंपरा का सम्मान है, जिसमें बल्लेबाज़ी को कला, अनुशासन और समर्पण के रूप में देखा जाता है। ओल्ड ट्रैफर्ड की वह पारी और उसके साथ इतिहास में जो दर्ज हुआ, वह क्रिकेट प्रेमियों के लिए प्रेरणा और उत्सव दोनों है।

जो रूट न केवल इंग्लैंड क्रिकेट के इतिहास में अमर हो चुके हैं, बल्कि विश्व क्रिकेट की महानतम हस्तियों की सूची में भी उनका स्थान अब स्थायी हो चुका है।

जो रूट – एक तकनीक, संयम और तप का नाम, जो क्रिकेट की किताबों में अब स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो चुका है।
अब सवाल यह नहीं है कि वे कितने रन बना चुके हैं, बल्कि यह है – क्या वे सचिन को भी पीछे छोड़ पाएँगे?
समय ही उत्तर देगा।


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