भारत ने जिस आर्थिक परिवर्तन-यात्रा को अपनाया, उसकी नींव कई व्यक्तियों के अथक प्रयासों पर टिकी है। उनमें से डॉ. मनमोहन सिंह एक ऐसे अर्थशास्त्री और राजनेता थे जिनके फैसले सिर्फ तत्काल संकटों से निपटने के लिए नहीं थे, बल्कि उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था की दिशा, रूप और क्षमता को दीर्घकालीन दृष्टि से पुनः स्थापित किया। उनके योगदानों की मान्यता-एक नवीनतम उदाहरण है कि उन्हें मरणोपरांत पी. वी. नरसिम्हा राव स्मृति पुरस्कार (अर्थशास्त्र) से सम्मानित किया गया है। इस पुरस्कार से यह स्पष्ट होता है कि भारत में अर्थशास्त्र और नीति निर्माण में उनके योगदान को कैसे देखा और बहुमूल्य समझा जाता है।
पुरस्कार और समारोह की जानकारी
- नाम और प्रकार: पी. वी. नरसिम्हा राव स्मृति पुरस्कार (अर्थशास्त्र), जिसे P. V. Narasimha Rao Memorial Award for Economics कहा जाता है।
- संस्था: यह पुरस्कार पी. वी. नरसिम्हा राव स्मृति फाउंडेशन (PVNMF), हैदराबाद-आधारित संगठन द्वारा स्थापित है, जिसका उद्देश्य अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उन व्यक्तियों को सम्मानित करना है जिन्होंने भारत की आर्थिक विकास यात्रा में परिवर्तनकारी योगदान दिया है।
- समय और स्थान: यह पुरस्कार दिल्ली में प्रस्तुत किया गया।
- स्वीकारकर्ता: पुरस्कार की प्राप्ति डॉ. सिंह की पत्नी गुरशरण कौर ने उनके मरणोपरांत स्वीकार की।
- प्रस्तुतकर्ता: इस पुरस्कार को प्रस्तुत किया गया मोंटेक सिंह अहलूवालिया द्वारा, जो पूर्व योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे।
- उपस्थितगण: PVNMF के अध्यक्ष (K. Ramchandra Murthy) और महासचिव (Madhamchetty Anil Kumar) भी समारोह में उपस्थित थे।
जीवन परिचय और करियर की संक्षिप्त झलक
डॉ. मनमोहन सिंह का जीवन और करियर उनके आर्थिक दृष्टिकोण, नीति-निर्माण की समझ और सार्वजनिक जीवन में नैतिकता की मिसाल के कारण हमेशा विशेष रहा।
- जन्म और शिक्षा: उन्होंने उत्तरी भारत के विभाजन-पूर्व पंजाब क्षेत्र में जन्म लिया, उच्च शिक्षा प्राप्त की, और अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से प्राप्त की।
- प्रारंभिक भूमिकाएँ: आरंभ में उन्होंने विभिन्न सरकारी तथा आर्थिक पदों पर कार्य किया — मुख्य अर्थशास्त्र सलाहकार (Chief Economic Adviser), भारत सरकार की विभिन्न आर्थिक एवं वित्तीय समितियों में सदस्य, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर आदि।
- वित्त मंत्री (1991-1996): जब P. V. नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने, डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया गया। इस दौरान उन्होंने 1991 के आर्थिक सुधारों का नेतृत्व किया जो भारत को वित्तीय संकट से उबारने वाले सिद्ध हुए।
- प्रधान मंत्री (2004-2014): बाद में, डॉ. सिंह प्रधानमंत्री बने और दो कार्यकालों में कई सामाजिक व विकास-उन्मुख नीतियाँ लागू हुईं जैसे गरीबी उन्मूलन, सूचना विज्ञापन, ग्रामीण रोजगार योजनाएँ आदि।
1991 के आर्थिक सुधार: संकट से उदारीकरण की दिशा
1991 भारत के लिए एक मोड़ था। आर्थिक, वित्तीय और अंतरराष्ट्रीय दबावों ने उस समय देश को एक ऐसी स्थिति में ला दिया था जहाँ तत्काल सुधार अनिवार्य हो गए थे।
पृष्ठभूमि
- वित्तीय संकट: विदेशी मुद्रा भंडार घट गए थे, आयात के लिए आवश्यक संसाधन नहीं बच रहे थे, भुगतान संतुलन (balance of payments) संकट गहरा गया था।
- औद्योगिक नियंत्रण और लाइसेंस राज: पहले अत्यंत नियामक तथा केंद्रीकृत नियंत्रण प्रणाली थी जिसमें उद्योगों और कारोबारी गतिविधियों को सरकार की स्वीकृति (लाइसेंस), करों, आयात-निर्यात प्रतिबंधों आदि द्वारा नियंत्रित किया जाता था।
प्रमुख सुधार कदम
डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में निम्नलिखित महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव किये:
- उदारीकरण (Liberalization)
• उद्योगों के लाइसेंस-राज (Licence Raj) को समाप्त करना, जहाँ अधिकांश उद्योगों के लिए विस्तृत सरकारी अनुमतियाँ आवश्यक थीं।
• आयात शुल्कों (tariffs) और करों (duties) में कटौती करना। - निजीकरण (Privatization)
• सार्वजनिक क्षेत्र की उद्यमियों एवं उपक्रमों में निजी भागीदारी बढ़ाना, कुछ उपक्रमों को लाभ-क्षमता के अनुसार पुनर्गठन करना। - वैश्वीकरण (Globalization)
• विदेशी निवेश को बढ़ावा देना; विश्व बाजारों से जुड़ने की दिशा में कदम उठाना।
• व्यापार नीति में खुलापन और निर्यात प्रोत्साहन। - वित्तीय और मौद्रिक सुधार
• बाजार-आधारित विनिमय दर प्रणाली को बढ़ावा देना।
• बैंकिंग, पूँजी बाजार, और वित्तीय नियमन के क्षेत्र में पारदर्शिता, प्रौद्योगिकी और दक्षता बढ़ाना।
परिणाम और प्रभाव
- आर्थिक वृद्धि (GDP growth) में सुधार हुआ; भारत की अर्थव्यवस्था विश्व स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्धी बनी।
- गरीबी में कमी आई; लोगों की जीवन स्थिति में सुधार हुआ। जीवन स्तर, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में सुधार की शुरुआत हुई।
- भारत के वैश्विक संबंध मजबूत हुए; विदेशी पूँजी, व्यापार अवसर, तकनीकी साझेदारी बढ़ीं।
प्रधानमंत्री के रूप में नीति-उन्मुख योगदान
1991 के आर्थिक सुधारों के बाद, जब डॉ. सिंह प्रधानमंत्री बने, उन्होंने न सिर्फ आर्थिक वृद्धि पर बल दिया बल्कि सामाजिक न्याय, पारदर्शिता और अवसरों की समानता को भी महत्व दिया।
- राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MNREGA / NREGS) – ग्रामीण भारत में रोजगार सुनिश्चित करने की नीति।
- सूचना का अधिकार (Right to Information Act, 2005) – सार्वजनिक कार्यों और सरकार की जवाबदेही में सुधार।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (Food Security Act, 2013) – अनाज के सब्सिडी लाभार्थियों की संख्या को बढ़ाने का कदम।
- शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा – मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार, पिछड़े व वंचित वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करना आदि उपाय।
पुरस्कार का महत्व और संदेश
यह सम्मान निम्नलिखित मायनों में विशेष है:
- ऐतिहासिक पुनर्स्मरण की भूमिका
यह पुरस्कार बताता है कि 1990-91 के आर्थिक सुधारों के शिल्पकारों की भूमिका न सिर्फ तत्काल आर्थिक संकट से निपटने की थी, बल्कि उन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था का रूप ही बदल दिया। इस तरह की स्मृति-संस्था यह सुनिश्चित करती है कि भविष्य की पीढ़ियाँ इस तरह के निर्णयों और उनकी दूरगामी प्रभावों को समझें। - नीति-निर्माता व्यक्तित्वों की Anerkennung (मान्यता)
डॉ. सिंह की विशुद्ध व्यावसायिक और आर्थिक नीति-निर्माण काबिलियत को यह पुरस्कार दर्शाता है। यह केवल राजनीतिक उपलब्धियों का नहीं, बल्कि आर्थिक विवेक और दूरदर्शिता का सम्मान है। - राष्ट्र निर्माण में अर्थशास्त्र की भूमिका की पुष्टि
यह पुरस्कार यह संदेश देता है कि आर्थिक नीति निर्माण, समावेशी विकास, वैश्वीकरण, सामाजिक न्याय—सभी मिलकर राष्ट्र निर्माण की नींव होते हैं। - प्रेरणा स्रोत
वर्तमान और भविष्य की नीति-निर्माताओं के लिए यह प्रेरणा है कि संकटों से कैसे साहसपूर्वक, लेकिन बुद्धिमत्ता से बाहर निकलना है; कैसे आर्थिक नीति में राजनैतिक और सामाजिक संतुलन बनाये रखना है।
डॉ. मनमोहन सिंह की विरासत और चुनौतियाँ
हर महान योगदान की तरह, उनके सुधारों के साथ कुछ चुनौतियाँ भी आईं, और उनकी विरासत भी मिश्रित-स्वरूप की है:
- वृद्धि की असमानता: आर्थिक वृद्धि के बावजूद सामाजिक और क्षेत्रीय असमानताएँ बनी रहीं। कुछ जिलों, राज्यों, ग्रामीण इलाकों को ऐसी वृद्धि का लाभ कम मिला।
- सामाजिक सुरक्षा की सीमाएँ: हालांकि कई योजनाएँ आयीं, लेकिन उनके कार्यान्वयन में अनेक बाधाएँ आईं—भ्रष्टाचार, बुनियादी ढाँचे की कमी, संसाधनों की असमयता आदि।
- राजनीतिक चुनौतियाँ: नीति-निर्माण के बीच राजनीतिक संतुलन, गठबंधन सरकारों की सीमाएँ, सामूहिक निर्णय लेने में देरी आदि।
फिर भी, अधिकांश विश्लेषण यह मानते हैं कि डॉ. सिंह ने अपनी सीमाओं के भीतर जो किया, वह उल्लेखनीय था और भारत को एक ऐसी स्थिति में पहुँचाया जहाँ आगे बढ़ना आसान हुआ।
महत्वपूर्ण तथ्य (Quick Notes)
- नाम एवं सम्मान: डॉ. मनमोहन सिंह को P. V. Narasimha Rao Memorial Award for Economics मरणोपरांत।
- संस्था: PV Narasimha Rao Memorial Foundation (PVNMF)।
- स्वीकारकर्ता: उनके पक्ष से पत्नी गुरशरण कौर ने पुरस्कार स्वीकार किया।
- प्रस्तुतकर्ता: मोंटेक सिंह अहलूवालिया।
- मुख्य योगदान: 1991 के आर्थिक सुधार (लिबरलाइजेशन, प्राइवेटाइजेशन, ग्लोबलाइजेशन), सार्वजनिक क्षेत्र के पुनर्गठन, एफडीआई को बढ़ावा, लाइसेंस राज में कमी आदि।
- प्रधानमंत्री के रूप में सामाजिक एवं विकास नीतियाँ: MNREGA, सूचना का अधिकार, शिक्षा एवं खाद्य सुरक्षा अधिनियम आदि।
- परिणाम: आर्थिक वृद्धि, गरीबी में कमी, भारत की वैश्विक आर्थिक स्थिति की मजबूती।
- चुनौतियाँ: असमानता, कार्यान्वयन की सीमाएँ, राजनीतिक व प्रशासनिक बाधाएँ।
- इस पुरस्कार का संदेश: नीति-निर्माण, आर्थिक सोच और राष्ट्र निर्माण की समर्पित भूमिका की मान्यता।
निष्कर्ष
डॉ. मनमोहन सिंह की जीवन यात्रा यह दिखाती है कि एक बुद्धिमान, दूरदर्शी अर्थशास्त्री और नीतिकार संकट के समय कैसे सही निर्णय लेकर एक राष्ट्र की दिशा बदल सकता है। 1991 की आर्थिक सुधारों से भारत दोनों—आर्थिक स्तर पर और सामाजिक स्तर पर—एक नई दिशा में बढ़ा।
पी. वी. नरसिम्हा राव स्मृति पुरस्कार (अर्थशास्त्र) उन्हें मरणोपरांत देने का यह संदेश है कि न केवल तत्काल उपलब्धियाँ, बल्कि नीति-निर्माण की दूरगामी सोच और राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण स्थायी महत्व रखते हैं। परीक्षा के दृष्टिकोण से यह जरूर याद रखा जाना चाहिए कि इस मामले में, व्यक्ति-विशेष की प्रशंसा ही नहीं, आर्थिक तर्क, नीति-प्रभाव, सामाजिक आयाम और नेतृत्व की जटिलताओं को देखते हुए निर्णय लिया गया है।
इन्हें भी देखें –
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