नसिरुद्दीन महमूद शाह इल्तुतमिश का कनिष्ठ पुत्र तथा ग़ुलाम वंश का आठवां सुल्तान था। यह 10 जून 1246 ई. को सिंहासन पर बैठा। उसके सिंहासन पर बैठने के बाद अमीर सरदारों एवं सुल्तान के बीच शक्ति के लिए चल रहा संघर्ष लगभग समाप्त हो गया। सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद विद्या प्रेमी और बहुत ही शांत स्वभाव का व्यक्ति था। शासन का सम्पूर्ण भार ग़यासुद्दीन बलबन जिसको ‘उलूग ख़ाँ’ की उपाधि मिली थी, पर छोड़कर वह सादा जीवन व्यतीत करता था। बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नसिरुद्दीन महमूद के साथ किया था।
बलबन ने एक षड़यंत्र के द्वारा 1246 ई. में सुल्तान अल्लाउद्दीन मसूद शाह को गद्दी से हटाकर नसिरुद्दीन महमूद शाह को सुल्तान की गद्दी पर बैठाया। यह एक ऐसा सुल्तान हुआ जो टोपी सिलाई करके तथा कुरान की आयतें लिखकर उन्हें बाज़ार में बेच कर अपनी जीविका निर्वहन करता था।
नसीरुद्दीन महमूद शाह का संक्षिप्त परिचय
शासन | 10 जून 1246 – 18 फरवरी 1266 |
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राज तिलक | 10 जून 1246 दिल्ली में |
पूर्ववर्ती | अलाउद्दीन मसूद शाह |
उत्तराधिकारी | गयासुद्दीन बलबन |
जन्म | 1229 ई. या 1230 ई. , दिल्ली |
मृत्यु | 18 फ़रवरी 1266 ई. (उम्र 35-37), दिल्ली |
जीवनसाथी | मलिका-ए-जहाँ खानी, (गयासुद्दीन बलबन की पुत्री) |
वंश | मामलुक राजवंश (दिल्ली सल्तनत) |
पिता | शम्सुद्दीन इल्तुतमिश (या संभवतः इल्तुतमिश का पुत्र नसीरुद्दीन महमूद) |
माँ | मलिका-ए-जहाँ जलाल-उद-दुनिया-वा-उद्दीन |
धर्म | इस्लाम |
नसिरुद्दीन महमूद शाह का जन्म
सुल्तान इल्तुतमिश के दरबारी इतिहासकार मिन्हाज-ए-सिराज द्वारा लिखित तबकात-ए-नासिरी में नसिरुद्दीन महमूद को इल्तुतमिश का पुत्र (इब्न) कहा गया है। मिन्हाज के विवरण के अनुसार, नसीरुद्दीन महमूद शाह का जन्म 626 हिजरी (1229-1230 ई.) में दिल्ली के कासर-बाग (गार्डन कैसल) में हुआ था। मिन्हाज के अनुसार नसिरुद्दीन महमूद शाह की माँ एक रखैल थी, जिनको बाद में, उनके बेटे के शासनकाल के दौरान, मलिका-ए-जहाँ की उपाधि मिली थी।
नसिरुद्दीन महमूद शाह का जन्म इल्तुतमिश के सबसे बड़े बेटे और उत्तराधिकारी नासिरुद्दीन महमूद शाह की असामयिक मृत्यु के कुछ समय बाद हुआ था। इल्तुतमिश ने उस बच्चे का नाम मृत राजकुमार के नाम पर रखा, और उसे और उसकी माँ को लोनी (या लूनी) गाँव के एक महल में रहने के लिए भेज दिया। कई इतिहासकारों ने नसीरुद्दीन महमूद को इल्तुतमिश के बड़े पुत्र नसीरुद्दीन महमूद का पुत्र होने की संभावना व्यक्त की है।
नसिरुद्दीन महमूद शाह का राज्यारोहण और शासन
10 मई, 1242 को सुल्तान मुइजुद्दीन बहराम शाह को गद्दी से उतार दिया गया। अमीरों और मलिकों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात अमीरों और मालिकों (तुर्कान -ए-चहलगानी के सरदार) ने नसिरुद्दीन महमूद शाह को सर्व सम्मति से दिल्ली का सुल्तान घोषित किया। सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद शाह पूर्व सुल्तान अलाउद्दीन मसूदशाह का चाचा था। पूर्व सुल्तान अलाउद्दीन मसूदशाह ने अपने दोनों चाचा जलालुद्दीन मसूद शाह और नसिरुद्दीन महमूद शाह को तुर्क सरदारों की कैद से आजाद कर दिया था।
पूर्व सुल्तान अलाउद्दीन मसूदशाह के दोनों चाचा जलालुद्दीन महमूद शाह और नसिरुद्दीन महमूद शाह को सरदारों ने सफेद महल की कैद में डाल दिया था। ये दोनों भाई सितंबर 1243 तक कारावास में रहे। सुल्तान अलाउद्दीन मसूदशाह ने उनको रिहा करने के पश्चात जलालुद्दीन महमूद शाह को कन्नौज का और नसीरूद्दीन महमूद शाह को बहराइच का शासक नियुक्त किया। कुछ समय पश्चात नसिरुद्दीन महमूद शाह दिल्ली छोड़कर अपनी माँ के साथ अपनी जागीर में चला गया। जहाँ उसने उस क्षेत्र और निकटवर्ती पहाड़ों में विद्रोहियों के विरुद्ध अभियान चलाया।
तुर्कान-ए-चहलगानी के सरदार गयासुद्दीन बलबन ने नसिरुद्दीन महमूद शाह और उसकी माँ के साथ मिलकर एक षड़यंत्र के तहत सुल्तान अलाउद्दीन मसूदशाह को दिल्ली सल्तनत की गद्दी से हटा दिया और उसके जगह पर 1246 ई. में नसिरुद्दीन महमूद शाह को उस गद्दी पर बैठा दिया। नसिरुद्दीन महमूद शाह जब दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर बैठा, उस समय उसकी उम्र 17 से 18 साल की थी। गयासुद्दीन बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह नसिरुद्दीन महमूद शाह से कर दिया, और सुल्तान का अत्यंत करीबी तथा भरोसेमंद बन कर राज्य संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा। बलबन को सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद शाह ने उलुग खान की उपाधि दी, जो उसके समर्पण और भक्ति से प्रभावित था।
एक शासक के रूप में, नसिरुद्दीन महमूद शाह को बहुत धार्मिक माना जाता था, वह अपना अधिकांश समय प्रार्थना (नमाज़) और कुरान की नकल करने में बिताता था। उसका ससुर और नायब गयासुद्दीन बलबन राज्य के सभी मामलों को देखता था। नसिरुद्दीन महमूद शाह का शासन काल 1246 से 1265 तक रहा। 1266 ई. में महमूद की मृत्यु के बाद, उसका ससुर गयासुद्दीन बलबन (1266-87) सत्ता अपने हाथ में ले लिया, क्योंकि सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद शाह के पास उनका उत्तराधिकारी बनने के लिए कोई जीवित संतान नहीं थी।
तुर्क सरदारों की साजिश
सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद शाह ने 7 अक्टूबर, 1246 ई. में गयासुद्दीन बलबन को ‘उलूग ख़ाँ’ की उपाधि प्रदान की। इसके तुरंत बाद उसने बलबन को ‘अमीर-हाजिब’ का पद भी दे दिया। अगस्त, 1249 ई. में बलबन ने अपनी पुत्री का विवाह सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद के साथ कर दिया। जिससे बलबन सुल्तान के अय्तंत निकट हो गया। बलबन की सुल्तान से निकटता एवं उसके बढ़ते हुए प्रभाव के कारण तुर्कान-ए-चहलगानी के बाकी तुर्क सरदारों का महत्व कम होने लगा।
बाकी तुर्क सरदारों ने बलबल को रास्ते से हटाने के लिए सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद की माँ एवं कुछ भारतीय मुसलमानों के साथ एक दल का गठन किया। इस दल के नेता के रूप में एक भारतीय मुसलमान रायहान को चुना गया, और रायहान को ‘वकीलदर’ के पद पर नियुक्त किया गया। परन्तु यह परिवर्तन बहुत दिन तक नहीं चल सका। तुर्क सरदार भारतीय मुसलमान रायहान को अधिक दिन तक सहन नहीं कर सके। वे पुनः बलबन से जा कर मिल गए।
इसके पश्चात बलबन के कहने पर नसिरुद्दीन महमूद ने रायहान को ‘नाइब’ के पद से मुक्त कर पुनः बलबन को यह पद दे दिया। रायहान को एक धर्मच्युत शक्ति का अपहरणकर्ता, षड़यंत्रकारी आदि बताया गया। कुछ समय पश्चात् रायहान की हत्या कर दी गयी।
बलबन द्वारा शांति स्थापना
नसिरुद्दीन महमूद के राज्य काल में बलबन ने शासन प्रबन्ध में विशेष क्षमता दिखाई। बलबन ने पंजाब तथा दोआब के हिन्दुओं के विद्रोह का दृढ़ता से दमन किया। साथ ही उसने मुग़लों (मंगोलों) के आक्रमणों को भी रोका। सम्भवतः इसी समय बलबन ने सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद शाह से ‘छत्र’ प्रयोग करने की अनुमति माँगी। सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद ने अपना छत्र प्रयोग करने के लिए अनुमति दे दी। 1245 ई. से सुल्तान बनने तक बलबन का अधिकांश समय विद्रोहों को दबानें में बीता। उसने 1259 ई. में मंगोल नेता हलाकू के साथ समझौता कर पंजाब में शांति स्थापित की।
नसिरुद्दीन महमूद शाह की मृत्यु
मिनहाजुद्दीन सिराज ने, जो सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद के शासनकाल में मुख्य क़ाज़ी के पद पर था, अपना ग्रन्थ ‘ताबकात-ए-नासिरी’ उसे समर्पित किया। 1266 ई. में नसिरुद्दीन महमूद शाह की आकस्मिक मृत्यु के बाद गयासुद्दीन बलबन उसका उत्तराधिकारी बना, क्योंकि महमूद के कोई भी पुत्र नहीं था।
नसिरुद्दीन महमूद शाह का व्यक्तिगत जीवन
अपने कई पूर्ववर्तियों और उत्तराधिकारियों के विपरीत, सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद शाह की एक ही पत्नी थी जो गयासुद्दीन बलबन की पुत्री थी। सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद शाह ने इसके अलावा कोई एनी विवाह नहीं किया। उसने अपना अधिकांश समय कुरान की आयतें लिखने में बिताया। तथा कुरान की आयातों की हस्तलिखित प्रतियां बेंच कर उस पैसे का उपयोग अपने निजी खर्चों के लिए किया। इसके अलावा सुल्तान नसिरुद्दीन महमूद शाह ने अपना जीविकोपार्जन करने के लिए टोपियाँ सिल कर उन्हें भी बाज़ार में बेचा। उसके पास निजी कार्यों के लिए कोई नौकर नहीं था। उनकी पत्नी परिवार के लिए खाना बनाती थी।
इन्हें भी देखें –
- अलाउद्दीन मसूदशाह ALAUDDIN MASUD SHAH | 1242-1246
- गयासुद्दीन बलबन GAYASUDDIN BALBAN (1266-1286)
- गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325 ई.)
- बहलोल लोदी (1451-1489 ई.)
- कैकुबाद अथवा कैकोबाद (1287-1290 ई.) और शमसुद्दीन क्युमर्स
- पानीपत का महायुद्ध: अद्भुत लड़ाई का प्रतीक्षित परिणाम (1526,1556,1761 ई.)
- भारत के स्वतंत्रता सेनानी: वीरता और समर्पण
- ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल और वायसराय (1774-1947)
- भारतीय परमाणु परीक्षण (1974,1998)
- पाषाण काल STONE AGE | 2,500,000 ई.पू.- 1,000 ईसा पूर्व
- उत्तर वैदिक काल | 1000-500 | ई.पू. The Post Vedic Age
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