निपाह वायरस (Nipah Virus) : भारत में स्वदेशी उपचार विकास की दिशा में ऐतिहासिक कदम

भारत के वैज्ञानिक समुदाय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि की ओर कदम बढ़ाया है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research – ICMR) ने निपाह वायरस (Nipah Virus) के विरुद्ध स्वदेशी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (Monoclonal Antibodies – mAbs) के विकास और निर्माण के लिए भारतीय कंपनियों से रुचि अभिव्यक्ति (Expression of Interest – EoI) आमंत्रित की है।
यह पहल भारत की संक्रामक रोगों से निपटने की आत्मनिर्भर क्षमता को सशक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम मानी जा रही है। विशेष रूप से इसलिए भी क्योंकि निपाह वायरस (NiV) एक ऐसा ज़ूनोटिक रोगजनक है जो अत्यधिक घातक और महामारी उत्पन्न करने में सक्षम माना जाता है।

Table of Contents

निपाह वायरस का परिचय

निपाह वायरस (Nipah Virus – NiV) एक पैरामाइक्सोवायरस (Paramyxovirus) परिवार का सदस्य है। इसे सबसे पहले वर्ष 1998 में मलेशिया में पहचाना गया था, जहाँ यह संक्रमण सूअरों से मनुष्यों में फैला था। बाद में, बांग्लादेश और भारत में भी इसके कई प्रकोप दर्ज किए गए।

यह वायरस जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाला (Zoonotic virus) है, और इसकी मृत्यु दर 40% से 75% तक दर्ज की गई है — जो इसे विश्व के सबसे घातक रोगजनकों में से एक बनाती है।

संक्रमण का स्रोत

निपाह वायरस का प्रमुख प्राकृतिक भंडार फल खाने वाले चमगादड़ (Fruit bats) हैं, जिन्हें Pteropus species कहा जाता है।
ये चमगादड़ संक्रमित फलों पर अपना लार या मूत्र छोड़ते हैं, जिसके माध्यम से वायरस अन्य जानवरों (जैसे सूअर, बकरियाँ) और अंततः मनुष्यों तक पहुँच सकता है।

संक्रमण के फैलने के प्रमुख मार्ग इस प्रकार हैं –

  1. जानवर से मनुष्य में संक्रमण:
    • संक्रमित चमगादड़ों द्वारा खाए गए फलों या उनके मूत्र से दूषित वस्तुओं के संपर्क में आने से।
    • संक्रमित सूअरों से सीधे संपर्क से भी संक्रमण संभव है।
  2. मानव-से-मानव संक्रमण:
    • संक्रमित व्यक्ति के शारीरिक तरल पदार्थों (लार, बलगम, खून आदि) के संपर्क में आने से।
    • नजदीकी देखभाल या स्वास्थ्यकर्मियों में भी संक्रमण फैलने की संभावना रहती है।

संक्रमण के लक्षण

निपाह वायरस संक्रमण के लक्षण संक्रमण के 4 से 14 दिनों के भीतर प्रकट होते हैं।

▪️ प्रारंभिक लक्षण:

  • तेज बुखार
  • सिरदर्द और शरीर में दर्द
  • चक्कर आना और भ्रम
  • सांस लेने में कठिनाई
  • उल्टी या मितली
  • गर्दन में अकड़न

▪️ गंभीर लक्षण:

  • एन्सेफलाइटिस (Encephalitis): मस्तिष्क में सूजन
  • दौरे और न्यूरोलॉजिकल गड़बड़ियाँ
  • कोमा और मृत्यु

इस वायरस की भयावहता इस तथ्य से झलकती है कि एक बार संक्रमण गंभीर हो जाने पर मृत्यु दर 70% से अधिक तक पहुँच सकती है।

भारत में निपाह वायरस के प्रकोप

भारत में निपाह वायरस का पहला मामला 2001 में पश्चिम बंगाल के सिलिगुड़ी में दर्ज किया गया था, जहाँ 45 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी। इसके बाद:

  • 2007: नादिया (पश्चिम बंगाल) में पुनः प्रकोप
  • 2018: केरल के कोझिकोड में निपाह संक्रमण ने 17 लोगों की जान ली
  • 2019 और 2021: केरल में सीमित लेकिन नियंत्रित प्रकोप
  • 2023 और 2024: केरल के कोझिकोड और मलप्पुरम जिलों में फिर से निपाह के कुछ मामले सामने आए

इन बार-बार के प्रकोपों ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों को इस निष्कर्ष पर पहुँचाया कि भारत को स्थानीय स्तर पर विकसित, त्वरित और प्रभावी उपचार प्रणाली की आवश्यकता है।

निपाह वायरस की गंभीरता और वैश्विक चिंता

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, निपाह वायरस को “महामारी की संभावना वाले रोगों” की सूची में शामिल किया गया है।
इसकी कुछ मुख्य विशेषताएँ हैं:

  • उच्च मृत्यु दर: 40% से 75% तक
  • मानव-से-मानव संक्रमण की क्षमता
  • लंबा ऊष्मायन काल (Incubation Period): जिससे संक्रमण का पता देर से चलता है
  • कोई लाइसेंस प्राप्त वैक्सीन या उपचार उपलब्ध नहीं

इन कारणों से, निपाह वायरस को “Priority Pathogen” घोषित किया गया है — यानी ऐसा वायरस जिसके विरुद्ध विश्व स्तर पर अनुसंधान और दवा-विकास को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

ICMR की भूमिका और पहल का उद्देश्य

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) देश की सर्वोच्च चिकित्सा अनुसंधान संस्था है, जिसने निपाह वायरस के विरुद्ध अनुसंधान को एक राष्ट्रीय मिशन के रूप में अपनाया है।

▪️ मुख्य उद्देश्य

  • निपाह वायरस के विरुद्ध स्वदेशी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAbs) का विकास।
  • भारत की संक्रामक रोग प्रबंधन क्षमता को सशक्त बनाना।
  • भविष्य में महामारी जैसी परिस्थितियों के लिए तैयार रहना।
  • विदेशी निर्भरता घटाकर स्थानीय उत्पादन प्रणाली स्थापित करना।

▪️ ICMR की प्रमुख संस्थागत भागीदारी

  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV), पुणे
    • यह संस्थान निपाह वायरस पर अनुसंधान का प्रमुख केंद्र है।
    • NIV में BSL-3 और BSL-4 स्तर की अत्याधुनिक प्रयोगशालाएँ मौजूद हैं।
    • इन प्रयोगशालाओं में प्रीक्लिनिकल परीक्षण और वायरस व्यवहार अध्ययन किए गए हैं।

EoI (Expression of Interest) का उद्देश्य

ICMR ने भारतीय कंपनियों से “रुचि अभिव्यक्ति (EoI)” आमंत्रित की है ताकि वे मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAbs) के विकास और निर्माण में भागीदारी कर सकें।

▪️ इस पहल के मुख्य लक्ष्य:

  1. योग्य भारतीय कंपनियों को अनुसंधान और निर्माण के लिए शामिल करना।
  2. उत्पादन क्षमता विकसित कर वाणिज्यिक स्तर पर mAbs की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  3. भविष्य के निपाह प्रकोपों में स्थानीय स्तर पर त्वरित आपूर्ति संभव बनाना।
  4. ICMR द्वारा विकसित प्रोटोटाइप का औद्योगिक अनुवाद (Industrial Translation) करना।

▪️ साझेदारी के लाभ:

  • उद्योगों को ICMR से तकनीकी मार्गदर्शन और अनुसंधान समर्थन मिलेगा।
  • सरकारी और निजी क्षेत्र के बीच साझा नवाचार तंत्र (Public–Private Partnership) को बढ़ावा मिलेगा।
  • mAbs के वाणिज्यिक निर्माण से भारत की जैव-फार्मास्यूटिकल क्षमता को वैश्विक स्तर पर मजबूती मिलेगी।

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (mAbs): उपचार का नया अध्याय

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (Monoclonal Antibodies) प्रयोगशाला में तैयार किए गए विशिष्ट प्रोटीन अणु होते हैं जो मानव शरीर की प्राकृतिक एंटीबॉडी की तरह कार्य करते हैं।

▪️ इनकी कार्यप्रणाली:

  • ये वायरस के सतही प्रोटीन से जुड़कर उसकी कोशिका में प्रवेश की क्षमता को निष्क्रिय करते हैं।
  • संक्रमण के बाद दिए जाने पर वायरल लोड को कम करते हैं।
  • प्रारंभिक चरण में उपयोग किए जाने पर ये रोग की गंभीरता को काफी घटा सकते हैं।

▪️ निपाह वायरस के लिए mAbs की भूमिका:

  • केरल में पहले हुए प्रकोप के दौरान एक प्रयोगात्मक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को मानवीय आधार (compassionate use protocol) पर उपयोग किया गया था।
  • यह mAb वायरस के G प्रोटीन को लक्ष्य बनाकर संक्रमण को रोकता है।
  • इसके परिणाम आशाजनक (Promising) पाए गए, जिसके आधार पर ICMR ने अब स्वदेशी उत्पादन का निर्णय लिया है।

स्वदेशी विकास की आवश्यकता

भारत में निपाह वायरस से संबंधित विदेशी दवा या वैक्सीन की उपलब्धता अत्यंत सीमित है। वैश्विक स्तर पर भी कोई लाइसेंस प्राप्त वैक्सीन या एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है।

▪️ विदेशी निर्भरता की चुनौतियाँ:

  • आपातकालीन समय में आयात कठिन।
  • उच्च लागत और सीमित आपूर्ति।
  • अंतरराष्ट्रीय अनुमति और नैतिक प्रक्रियाएँ समय लेने वाली।

▪️ स्वदेशी mAbs विकास के लाभ:

  • त्वरित उत्पादन और आपूर्ति क्षमता।
  • कम लागत और स्थानीय नियंत्रण।
  • वैज्ञानिक आत्मनिर्भरता (Atmanirbhar Bharat) की दिशा में बड़ा कदम।
  • “One Health” दृष्टिकोण को सशक्त बनाना, जिसमें मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य को एकीकृत रूप से देखा जाता है।

वैश्विक और भारतीय अनुसंधान परिदृश्य

वैश्विक स्तर पर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर जैसे देशों में निपाह वायरस पर वेक्टर-आधारित वैक्सीन, RNA वैक्सीन और mAbs पर अनुसंधान जारी है।
भारत में NIV, पुणे ने इस दिशा में प्रयोगात्मक अध्ययन पूरे किए हैं और पशु परीक्षणों में सफल परिणाम प्राप्त किए हैं।

अब इस शोध को औद्योगिक स्तर पर लाने के लिए EoI के माध्यम से निजी कंपनियों को शामिल किया जा रहा है। इससे भारत इस क्षेत्र में स्वतंत्र अनुसंधान एवं उत्पादन केंद्र के रूप में उभर सकता है।

ICMR–NIV की वैज्ञानिक क्षमता

  • NIV, पुणे के पास एशिया की कुछ चुनिंदा BSL-4 प्रयोगशालाओं में से एक है।
  • यहाँ पर निपाह, इबोला, SARS-CoV-2 जैसे उच्च जोखिम वाले रोगजनकों पर कार्य किया जाता है।
  • प्रयोगशाला में पशु मॉडल परीक्षणों में mAbs ने संक्रमण की गंभीरता को उल्लेखनीय रूप से घटाया है।

भविष्य की रणनीति और संभावनाएँ

ICMR की यह पहल केवल एक चिकित्सा प्रयास नहीं, बल्कि भारत की जैव सुरक्षा (Biosecurity) और स्वास्थ्य कूटनीति (Health Diplomacy) की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

▪️ भविष्य के लक्ष्य:

  1. क्लिनिकल ट्रायल चरणों को शीघ्र शुरू करना।
  2. नियमक संस्थाओं (Regulatory Bodies) से अनुमोदन प्राप्त करना।
  3. वाणिज्यिक निर्माण इकाइयों की स्थापना।
  4. आपातकालीन भंडारण प्रणाली (Strategic Stockpile) विकसित करना।

▪️ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्व:

  • दक्षिण एशियाई देशों के लिए भारत उपचार केंद्र और दवा आपूर्तिकर्ता के रूप में उभर सकता है।
  • वैश्विक “One Health” नेटवर्क में भारत की वैज्ञानिक विश्वसनीयता बढ़ेगी।

निष्कर्ष

निपाह वायरस संक्रमण ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि आधुनिक युग में जूनोटिक रोग केवल एक क्षेत्रीय समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती हैं।
ICMR की यह पहल भारत की वैज्ञानिक दूरदृष्टि का प्रतीक है, जो न केवल एक विशेष वायरस से निपटने की तैयारी है बल्कि राष्ट्रीय जैविक सुरक्षा और आत्मनिर्भर स्वास्थ्य प्रणाली की नींव भी है।

स्वदेशी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का विकास भारत के लिए एक मील का पत्थर (Milestone) साबित हो सकता है। यह न केवल जीवनरक्षक उपचार की दिशा में एक सफलता होगी, बल्कि भविष्य में महामारी नियंत्रण के लिए भी एक प्रेरक उदाहरण बनेगी।

स्रोत:

  • भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR), आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति
  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV), पुणे रिपोर्ट्स
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) – Nipah Virus Fact Sheet (2024)

इन्हें भी देखें –

Leave a Comment

Table of Contents

Contents
सर्वनाम (Pronoun) किसे कहते है? परिभाषा, भेद एवं उदाहरण भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग | नाम, स्थान एवं स्तुति मंत्र प्रथम विश्व युद्ध: विनाशकारी महासंग्राम | 1914 – 1918 ई.