नीति निर्देशक तत्व और मौलिक कर्तव्य | अनुच्छेद 36 से 51

भारतीय संविधान में नीति निर्देशक तत्व (अनुच्छेद 36 से 51) और मौलिक कर्तव्य (अनुच्छेद 51 क) का विशेष महत्व है। नीति निर्देशक तत्व राज्य को सामाजिक और आर्थिक कल्याण की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, जिसमें ग्राम पंचायतों को शक्तियाँ प्रदान करना, समान नागरिक संहिता लागू करना, और कृषि व पर्यावरण का संवर्धन शामिल है। यह तत्व आयरलैंड से प्रेरित हैं और लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।

मौलिक कर्तव्य, जो रूस के संविधान से प्रेरित हैं, नागरिकों के लिए 42वें संविधान संशोधन 1976 के तहत शामिल किए गए थे। इन कर्तव्यों में संविधान का पालन, राष्ट्रीय एकता की रक्षा, प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास और सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा शामिल हैं।

ये तत्व और कर्तव्य भारतीय समाज को न्यायपूर्ण, समरस और समृद्ध बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। वे न केवल राज्य को लोक कल्याणकारी नीतियाँ लागू करने के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि नागरिकों को उनके सामाजिक और नैतिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए भी प्रेरित करते हैं।

नीति निर्देशक तत्व | अनुच्छेद 36 से 51 (आयरलैंड के संविधान से लिया गया)

भारतीय संविधान में नीति निर्देशक तत्वों का महत्व और उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। नीति निर्देशक तत्व (अनुच्छेद 36 से 51) आयरलैंड के संविधान से प्रेरित हैं और वे सरकार को एक मार्गदर्शन प्रदान करते हैं जिससे वे लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना कर सकें। ये तत्व राज्य को समाज के प्रत्येक क्षेत्र में सुधार और कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने का निर्देश देते हैं।

अनुच्छेद 36 राज्य की परिभाषा का वर्णन करता है।

अनुच्छेद 37 के अनुसार, नीति निर्देशक तत्वों का हनन होने पर न्यायालय की शरण लेना संभव नहीं है।

अनुच्छेद 38 लोक कल्याणकारी राज्य और उसकी नीतियों का वर्णन करता है। इसमें यह उल्लेख है कि राज्य सामाजिक और आर्थिक कल्याण के लिए उचित कदम उठाएगा।

अनुच्छेद 39 के अंतर्गत, राज्य भौतिक और अभौतिक साधनों के संकेंद्रण को रोकेगा और महिलाओं, बालकों और पुरुषों की सभी अवस्थाओं का ध्यान रखेगा। समान कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था की गई है।

अनुच्छेद 39(क) निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करता है।

अनुच्छेद 40 राज्य को ग्राम पंचायतों को बढ़ावा देने और उन्हें शक्तियां प्रदान करने का निर्देश देता है।

अनुच्छेद 41 राज्य को आर्थिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों का विशेष ध्यान रखने का निर्देश देता है।

अनुच्छेद 42 कार्य की न्यायोचित दशाओं को बनाने और महिलाओं को निःशुल्क प्रसुति सहायता उपलब्ध कराने का निर्देश देता है।

अनुच्छेद 43 उद्योगों के प्रबंधन में मजदूरों या श्रमिकों के भाग लेने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।

अनुच्छेद 43(क) 97वें संविधान संशोधन, 2011 के तहत सहकारी समितियों की स्थापना को बढ़ावा देता है।

अनुच्छेद 44 राज्य को समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास करने का निर्देश देता है।

अनुच्छेद 45 राज्य को 6 से 14 वर्ष के बालकों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने की व्यवस्था करने का निर्देश देता है। 86वें संविधान संशोधन, 2002 के तहत यह अधिकार प्रदान किया गया है।

अनुच्छेद 46 राज्य को अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और दुर्बल वर्गों के हितों का ध्यान रखने का निर्देश देता है।

अनुच्छेद 48 राज्य को कृषि और पशुपालन को वैज्ञानिक तरीके से बढ़ावा देने का निर्देश देता है।

अनुच्छेद 48(क) राज्य को पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन का प्रयास करने का निर्देश देता है।

अनुच्छेद 50 राज्य को कार्यपालिका और न्यायपालिका के पृथक्करण का निर्देश देता है।

अनुच्छेद 51 भारत की विदेश नीति का वर्णन करता है, जो शांति पूर्ण सहअस्तित्व और अंतर्राष्ट्रीय पंच निर्णयों पर आधारित है।

मौलिक कर्तव्य | भाग 4(क) (रूस के संविधान से लिया गया)

भाग 4(क) में मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है, जो रूस के संविधान से प्रेरित हैं। मूल संविधान में मौलिक कर्तव्य शामिल नहीं थे, लेकिन 42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों के आधार पर इन्हें जोड़ा गया। प्रारंभ में इनकी संख्या 10 थी, जो अब 11 हो गई है।

अनुच्छेद 51(क) के अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह:

  1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे।
  2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्रदय में संजोए रखे और उनका पालन करे।
  3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
  4. देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं।
  6. हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे।
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
  9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
  11. यदि माता-पिता या संरक्षक हैं, तो छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करें। 86वें संविधान संशोधन 2002 से यह जोड़ा गया।

नीति निर्देशक तत्व और मौलिक कर्तव्य भारतीय संविधान के महत्वपूर्ण हिस्से हैं जो सरकार और नागरिकों को उनके कर्तव्यों और अधिकारों की याद दिलाते हैं। ये तत्व और कर्तव्य भारतीय समाज को एक समृद्ध, न्यायपूर्ण और समान समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे न केवल राज्य को लोक कल्याणकारी नीतियों को लागू करने के लिए प्रेरित करते हैं, बल्कि नागरिकों को उनके सामाजिक और नैतिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए भी प्रेरित करते हैं।

Polity – KnowledgeSthali


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