भारत में पंचायती राज व्यवस्था प्रणाली | संरचना एवं विशेषताएं

भारत में पंचायती राज एक त्रि-स्तरीय प्रणाली है जिसमें ग्राम, खंड (ब्लॉक), और जिला स्तर पर स्थानीय स्वशासन को लागू किया जाता है। इस प्रणाली का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई संस्थाओं के माध्यम से विकास और प्रशासन को सुगम बनाना है। यह प्रणाली निम्नलिखित प्रमुख तत्वों पर आधारित है –

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त्रिस्तरीय संरचना

  1. ग्राम पंचायत (Village Panchayat):
    • यह ग्राम स्तर पर होती है और इसमें ग्राम के चुने हुए प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
    • ग्राम सभा, जो सभी वयस्क ग्रामवासियों से मिलकर बनती है, ग्राम पंचायत का सर्वोच्च निकाय होती है।
  2. पंचायत समिति (Panchayat Samiti):
    • यह खंड या ब्लॉक स्तर पर होती है।
    • इसमें कई ग्राम पंचायतों का समूह होता है और इसके सदस्य संबंधित ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधि होते हैं।
  3. जिला परिषद (Zila Parishad):
    • यह जिला स्तर पर होती है।
    • इसमें जिले की सभी पंचायत समितियों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।

प्रमुख समितियाँ और सिफारिशें

  • बलवंत राय मेहता समिति (1957): इसने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की।
  • अशोक मेहता समिति (1978): इसने द्विस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की सिफारिश की।
  • एल. एम. सिंघवी समिति (1986): इसने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश की।

संवैधानिक प्रावधान

  • 73वां संविधान संशोधन (1992): इस संशोधन ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया और इसे 24 अप्रैल 1993 को सम्पूर्ण भारत में लागू किया गया।
  • अनुच्छेद 243 (A-K): इसमें पंचायती राज संस्थाओं के गठन, उनकी शक्तियों, कार्यों और चुनावों का प्रावधान किया गया है।

कार्य और उद्देश्य

  • स्थानीय विकास: ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के विकास के कार्य।
  • लोकतांत्रिक भागीदारी: ग्रामीण निवासियों को स्थानीय शासन में भाग लेने का अवसर प्रदान करना।
  • सामाजिक न्याय: महिलाओं, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण और उनके विकास के लिए कार्य।

पंचायती राज दिवस

  • 24 अप्रैल: इस दिन 73वां संविधान संशोधन लागू हुआ और इसे पंचायती राज दिवस के रूप में मनाया जाता है।

भारत में पंचायती राज का इतिहास, संरचना और संवैधानिक प्रावधान

भारत में पंचायती राज प्रणाली का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में स्वशासन को बढ़ावा देना, स्थानीय विकास को सुनिश्चित करना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में नागरिकों की भागीदारी को सशक्त बनाना है। भारत में प्राचीन काल, मध्यकाल और वर्तमान काल में किसी न किसी व्यवस्था में पंचायती राज के अवशेष मिलते हैं।

ब्रिटिश काल में पंचायती राज

1880 से 1884 के मध्य लार्ड रिपन का कार्यकाल पंचायती राज का स्वर्ण काल माना जाता है। इसने स्थाई निकायों को बढ़ाने का प्रावधान किया। स्वतंत्रता के बाद भारतीय संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद 40 में ग्राम पंचायतों के गठन और उन्हें शक्तियां प्रदान करने की बात की गई, लेकिन संवैधानिक दर्जा नहीं मिला।

संवैधानिक दर्जा

संवैधानिक दर्जा 73वें संविधान संशोधन 1992 से दिया गया। ग्यारहवीं अनुसूची, भाग-9 और अनुच्छेद 243 में 16 कानून और 29 कार्यों को वर्णित किया गया।

पंचायती राज समितियाँ

  1. 1957 – बलवंत राय मेहता समिति: त्रिस्तरीय पंचायती राज की सिफारिश की।
    • ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत
    • खंड स्तर पर पंचायत समिति
    • जिला स्तर पर जिला परिषद
    2 अक्टूबर 1959 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसका शुभारंभ राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गांव से किया। हालांकि, पंचायती राज अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर पाया।
  2. 1978 – अशोक मेहता समिति: द्विस्तरीय पंचायती राज की सिफारिश की।
    • मंडल पंचायत
    • जिला परिषद

राजीव गांधी का प्रयास

तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा पंचायती राज के विकास हेतु 64वां और 65वां संविधान संशोधन लाया गया, लेकिन संसद से पास नहीं हो पाया। राजीव गांधी के काल को आधुनिक पंचायती राज का स्वर्णकाल कहा जाता है।

अन्य समितियाँ

  1. 1986 – एल. एम. सिंघवी समिति: इसने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा देने की सिफारिश की।
  2. 1989 – पी. के. थूगन समिति: इसने भी पंचायती राज के विकास के लिए सिफारिश की।

73वां संविधान संशोधन

1992 के 73वें संशोधन अधिनियम के साथ ही पंचायती राज प्रणाली को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ और यह ग्रामीण शासन के लिए एक औपचारिक संरचना बन गई। हालांकि यह भारतीय उपमहाद्वीप की ऐतिहासिक पंचायत प्रणाली पर आधारित है। एलएम सिंघवी समिति (1986) की सिफारिश स्वीकार कर ली गई।

73वें संविधान संशोधन जी की 1993 में लागु हुआ के द्वारा 24 अप्रैल 1993 को इस संवैधानिक पंचायती राज दर्जे को सम्पूर्ण भारत में लागू किया गया। प्रत्येक 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। 23 अप्रैल 1993 को इसे राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई, जिसके बाद यह अधिनियम 24 अप्रैल 1993 को प्रभावी हुआ। उस समय, भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 24 अप्रैल 2010 को पहला राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस घोषित किया।

संवैधानिक प्रावधान

  1. राजस्थान पंचायती राज अधिनियम – 1994
    • राज्य सूची के अंतर्गत
    • अनुच्छेद 243 पंचायती राज का प्रावधान
    • अनुच्छेद 243(A) ग्राम सभा का प्रावधान (राजस्थान में सन 2000 में स्थापना)
  2. लोकतंत्र की सबसे छोटी संवैधानिक इकाई
    • एक वर्ष में दो बार आवश्यक
    • राजस्थान में 6 बैठकें: 26 जनवरी, 8 मार्च, 1 मई, 15 अगस्त, 20 अक्टूबर, 14 नवंबर
  3. अनुच्छेद 243(B) त्रिस्तरीय पंचायती राज
  4. अनुच्छेद 243(D) आरक्षण का प्रावधान
    • महिलाओं को 1/3 व अनुसूचित जाति/जनजाति को जनसंख्या के अनुपात में
  5. अनुच्छेद 243(K) राज्य निर्वाचन आयोग का प्रावधान
    • स्थापना: 1994
    • नियुक्ति: राज्यपाल द्वारा
    • कार्यकाल: 65/5 वर्ष जो भी पहले हो
    • त्यागपत्र: राज्यपाल को
    • कार्यकाल से पूर्व हटाने का अधिकार: राष्ट्रपति को
    • प्रथम नियुक्त अधिकारी: अमर सिंह राठौड़
  6. अनुच्छेद 243(I) राज्य वित्त आयोग का प्रावधान
    • नियुक्ति: राज्यपाल द्वारा
    • कार्यकाल: 5 वर्ष
    • त्यागपत्र: राज्यपाल को
    • कार्यकाल से पूर्व हटाने का अधिकार: राष्ट्रपति को
    • प्रथम नियुक्त अधिकारी: के. के. गोयल (कृष्ण कुमार)

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस | इतिहास, महत्व और लक्ष्य

प्रतिवर्ष 24 अप्रैल को ‘राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिवस उस ऐतिहासिक घटना की याद में मनाया जाता है जब 1993 में 73वां संविधान संशोधन अधिनियम लागू हुआ था। भारत में पंचायती राज मंत्रालय द्वारा इस दिवस का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है।

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस का इतिहास

पंचायती राज व्यवस्था की जड़ें प्राचीन भारतीय परंपरा में विद्यमान थीं, जहां ग्राम परिषदें या पंचायतें, स्थानीय प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं। 1957 में, लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया का अध्ययन करने और पंचायती राज प्रणाली को पुनर्जीवित करने के उपायों की सिफारिश करने के लिए बलवंतराय मेहता समिति का गठन किया गया था। मेहता समिति की सिफारिशों के कारण ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तर पर पंचायतों की त्रि-स्तरीय प्रणाली की स्थापना हुई।

73वें संविधान संशोधन अधिनियम

73वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा भारत में पंचायती राज संस्थानों (पीआरआई) के साथ-साथ स्थानीय शासन की त्रि-स्तरीय प्रणाली आरंभ की गई। ये त्रि-स्तरीय प्रणाली ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तर पर लागू होती है।

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस का इतिहास

पंचायती राज व्यवस्था की जड़ें प्राचीन भारतीय परंपरा में विद्यमान थीं, जहां ग्राम परिषदें या पंचायतें, स्थानीय प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं। 1957 में, लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया का अध्ययन करने और पंचायती राज प्रणाली को पुनर्जीवित करने के उपायों की सिफारिश करने के लिए बलवंतराय मेहता समिति का गठन किया गया था। मेहता समिति की सिफारिशों के कारण ग्राम, ब्लॉक और जिला स्तर पर पंचायतों की त्रि-स्तरीय प्रणाली की स्थापना हुई।

73वें संविधान संशोधन अधिनियम का महत्व

1992 में 73वें संविधान संशोधन अधिनियम का पारित होना एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम था। इस संशोधन के द्वारा स्पष्ट भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के साथ ग्राम, मध्यवर्ती (ब्लॉक) और जिला पंचायतों की त्रि-स्तरीय प्रणाली की स्थापना की गई। इस प्रकार, पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई। 24 अप्रैल, 1993 को 73वें संशोधन अधिनियम के लागू होने के उपलक्ष्य में सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के रूप में घोषित किया।

पंचायती राज दिवस के लक्ष्य

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के लक्ष्यों को निम्न बिन्दुओं में देखा जा सकता है –

  1. भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में पंचायती राज की ऐतिहासिक मान्यता को लोगों तक पहुँचाना।
  2. ग्रामीण विकास में पंचायती राज संस्थाओं के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
  3. पंचायती राज संस्थाओं के उत्कृष्ट प्रदर्शन को मान्यता देना और उन्हें आगे के कार्यों के लिए प्रेरित करना।

पंचायती राज सिस्टम में स्थानीय प्रशासनिक पद

पंचायती राज सिस्टम में स्थानीय प्रशासनिक कार्यों को सही ढंग से चलाने के लिए कई महत्वपूर्ण पद होते हैं, जो लोगों को विभिन्न स्तरों पर निर्णय लेने की सुविधा प्रदान करते हैं। इनमें मुखिया, प्रधान और सरपंच के पद शामिल हैं। इन तीनों पदों का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में नेतृत्व करके स्थानीय समस्याओं का समाधान करना है। ये सभी अलग-अलग स्तर पर अपनी जिम्मेदारियों को सँभालते हैं और स्थानीय प्रशासनिक व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

मुखिया

मुखिया आम भाषा में सबसे बड़ा व्यक्ति होता है जिसका काम किसी गाँव या पंचायत को संभालना होता है। मुखिया, ग्राम सभा और ग्राम पंचायत की मीटिंग आयोजित करता है और उनकी अध्यक्षता करता है। वह गाँव के लोगों की समस्याओं को हल करने में समर्थ होता है और पंचायती राज सिस्टम के अंतर्गत काम करता है।

प्रधान

ग्राम पंचायत में सबसे ऊँचा पद प्रधान का होता है। हर ग्राम पंचायत को एक इलेक्टेड व्यक्ति चलाता है, जिसे हम ग्राम प्रधान कहते हैं। ग्राम प्रधान का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है और उसे गाँव के लोग चुनते हैं। प्रधान का कार्य पंचायत के सभी विकास कार्यों को सुनिश्चित करना, बजट तैयार करना और पंचायती राज के नियमों के अनुसार कार्य करना होता है। एक ग्राम पंचायत आमतौर पर एक हजार की आबादी पर होती है। जिन ग्राम पंचायतों की आबादी 1000 से कम होती है, उनके आसपास के छोटे गांवों को मिलाकर एक पंचायत बनाई जाती है।

सरपंच

सरपंच पंचायत के सदस्यों में से एक होता है और प्रधान के सहायक के रूप में कार्य करता है। सरपंच का कार्य पंचायत के विकास के क्षेत्र में नेतृत्व करना, निर्णय लेना और प्रधान को समर्थन प्रदान करना होता है। वह अन्य पंचों के साथ मिलकर ग्राम पंचायत का गठन करता है। सरपंच का कार्यकाल 5 साल का होता है और उसे गाँव के लोग चुनते हैं।

पंचायत राज संस्थाओं की संरचना और कार्यप्रणाली

संस्था का नामग्राम पंचायतपंचायत समितिजिला परिषद
पदाधिकारीसरपंच, उपसरपंच, वार्ड पंचप्रधान, उपप्रधान, प. समिति सदस्यजिला प्रमुख, उपजिला प्रमुख, जिला परिषद सदस्य
जनसंख्या3000 पर न्यूनतम 9 वार्ड व प्रति 1000 बढ़ने पर 2 वार्ड अतिरिक्त सदस्य।1 लाख की जनसंख्या पर 15 सदस्य व प्रति 15 हजार बढ़ने पर 2 अतिरिक्त सदस्य।4 लाख की जनसंख्या पर 17 सदस्य व प्रति 1 लाख बढ़ने पर 2 अतिरिक्त सदस्य।
निर्वाचनसरपंच व वार्ड पंच का व्यस्क मताधिकार द्वारा तथा उपसरपंच बहुमत से चुना जाता है।प्रधान व प. समिति सदस्यों का चुनाव व्यस्क मताधिकार द्वारा तथा उपप्रधान बहुमत से चुना जाता है।जिला परिषद के सदस्यों का चुनाव व्यस्क मताधिकार द्वारा तथा प्रमुख व उपप्रमुख बहुमत से चुना जाता है।
शपथपीठासीन अधिकारी द्वाराबी. डी. ओ. द्वारासी. ई. ओ. द्वारा
कार्यकालप्रथम बैठक से 5 वर्ष तक।प्रथम बैठक से 5 वर्ष तक।प्रथम बैठक से 5 वर्ष तक।
त्याग पत्रतीनों (सरपंच, उपसरपंच, वार्ड पंच) अपना त्यागपत्र बी. डी. ओ. को देंगे।सदस्य व उपप्रधान – प्रधान को अपना त्यागपत्र देंगे।
प्रधान – जिला प्रमुख को अपना त्यागपत्र देंगे।
उपजिला प्रमुख व जिला परिषद के सदस्य – जिला प्रमुख को अपना त्यागपत्र देंगे।
जिला प्रमुख – संभागीय आयुक्त को अपना त्यागपत्र देंगे।
निर्वाचित होने की आयु21 वर्ष21 वर्ष21 वर्ष
बैठक1 माह में 2 बार, वर्ष में 24 बार।1 माह में 1 बार, वर्ष में 12 बार।3 माह में 1 बार, वर्ष में 4 बैठकें।
अविश्वास प्रस्ताव1/3 सदस्यों द्वारा लाया जाता है।
3/4 बहुमत से पारित होना आवश्यक।
प्रथम 2 वर्ष तक नहीं लाया जाता।
अंतिम 6 माह में भी नहीं लाया जाता।
चुनाव – शेष समय के लिए होते हैं।
1/3 सदस्यों द्वारा लाया जाता है।
3/4 बहुमत से पारित होना आवश्यक।
प्रथम 2 वर्ष तक नहीं लाया जाता।
अंतिम 6 माह में भी नहीं लाया जाता।
चुनाव – शेष समय के लिए होते हैं।
1/3 सदस्यों द्वारा लाया जाता है।
3/4 बहुमत से पारित होना आवश्यक।
प्रथम 2 वर्ष तक नहीं लाया जाता।
अंतिम 6 माह में भी नहीं लाया जाता।
चुनाव – शेष समय के लिए होते हैं।

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