भारत वैश्विक स्तर पर एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में तेजी से आगे बढ़ रहा है। ऊर्जा की बढ़ती मांग, पर्यावरणीय चिंताओं और जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए भारत सरकार अब ऊर्जा उत्पादन के स्रोतों में विविधता लाने के प्रयासों को तेज कर रही है। इसी दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए भारत अब परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी कंपनियों को 49% तक हिस्सेदारी निवेश की अनुमति देने पर विचार कर रहा है। यह निर्णय देश के सबसे संरक्षित और रणनीतिक क्षेत्रों में से एक में एक बड़े नीति परिवर्तन का संकेत है।
यह पहल भारत की स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन क्षमता बढ़ाने, कोयले पर निर्भरता घटाने और देश के महत्वाकांक्षी कार्बन उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों को प्राप्त करने के व्यापक लक्ष्य का हिस्सा है। इस लेख में हम इस प्रस्तावित नीति परिवर्तन की पृष्ठभूमि, संभावनाओं, चुनौतियों और इसके दूरगामी प्रभावों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
पृष्ठभूमि | भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र का विकास
भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम 1950 के दशक में प्रारंभ हुआ था, और तब से यह देश की ऊर्जा रणनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। वर्तमान में, भारत की परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता लगभग 8 गीगावाट (GW) है, जो देश की कुल स्थापित विद्युत क्षमता का मात्र 2% है।
हालाँकि, ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए भारत को आने वाले दशकों में अपनी उत्पादन क्षमता में भारी वृद्धि करनी होगी। वर्ष 2008 में भारत और अमेरिका के बीच हुए ऐतिहासिक नागरिक परमाणु समझौते ने इस क्षेत्र में विदेशी सहयोग और निवेश के लिए दरवाजे खोले थे। लेकिन परमाणु दायित्व से जुड़े जोखिमों के कारण, अब तक कोई भी बड़ा विदेशी निवेश सामने नहीं आया।
भारत की ऊर्जा जरूरतें तेजी से बढ़ रही हैं, और सौर तथा पवन ऊर्जा के बावजूद, रात के समय की मांग को पूरा करने के लिए स्थिर और विश्वसनीय स्रोतों की आवश्यकता बनी हुई है। इस संदर्भ में परमाणु ऊर्जा को एक अनिवार्य विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
प्रस्तावित नीति परिवर्तन | विदेशी निवेश का रास्ता खुला
भारत सरकार अब परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी स्वामित्व को 49% तक बढ़ाने की योजना बना रही है। यह निवेश पूर्व सरकारी स्वीकृति (Government Approval Route) के अंतर्गत आएगा, अर्थात इसे स्वतः स्वीकृति (Automatic Route) के तहत अनुमति नहीं दी जाएगी।
इसके तहत विदेशी कंपनियाँ परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में आंशिक स्वामित्व ले सकेंगी, साथ ही घरेलू निजी कंपनियाँ भी इस क्षेत्र में भागीदारी कर सकेंगी। सरकार इस पहल के तहत दो प्रमुख कानूनों में संशोधन करने की योजना बना रही है:
- नागरिक परमाणु क्षति अधिनियम, 2010
- परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1960
इन संशोधनों का उद्देश्य परमाणु दुर्घटनाओं से जुड़ी देनदारियों के प्रावधानों को यथार्थवादी बनाना और निजी तथा विदेशी कंपनियों को परमाणु संयंत्रों के निर्माण, स्वामित्व, संचालन, ईंधन खनन तथा उपकरण निर्माण में भाग लेने की अनुमति देना है।
समयसीमा और विधायी प्रक्रिया
सरकार जल्द ही इस प्रस्ताव को केंद्रीय कैबिनेट के समक्ष रखेगी। इसके बाद इसे संसद के मानसून सत्र, जुलाई 2025 में पेश किया जाएगा। यदि सब कुछ योजना के अनुसार चलता है, तो भारत का परमाणु ऊर्जा क्षेत्र पहली बार विदेशी निवेश के लिए औपचारिक रूप से खुल जाएगा।
परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में क्षमता विस्तार | भारत के लक्ष्य
भारत ने 2047 तक परमाणु ऊर्जा उत्पादन क्षमता को मौजूदा 8 GW से बढ़ाकर 100 GW करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य देश की स्वच्छ ऊर्जा रणनीति के केंद्र में है।
सौर और पवन ऊर्जा, जबकि महत्वपूर्ण हैं, अपनी स्वभाविक सीमाओं के कारण पूरी ऊर्जा मांग को पूरा नहीं कर सकतीं, खासकर रात के समय। परमाणु ऊर्जा एक स्थिर, विश्वसनीय और अपेक्षाकृत स्वच्छ विकल्प प्रदान करती है। ऐसे में परमाणु ऊर्जा का विस्तार भारत के दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्यों को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
विदेशी और घरेलू कंपनियों की रुचि
इस प्रस्ताव ने वैश्विक और घरेलू कंपनियों के बीच गहरी दिलचस्पी पैदा कर दी है।
विदेशी कंपनियाँ
- वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक (अमेरिका)
- GE-हिटाची न्यूक्लियर एनर्जी (अमेरिका-जापान)
- इलेक्ट्रिसिटी डे फ्रांस (EDF) (फ्रांस)
- रोसाटोम (रूस)
ये कंपनियाँ प्रौद्योगिकी प्रदाता और ठेकेदार के रूप में भारतीय बाजार में प्रवेश करने की उत्सुकता दिखा रही हैं।
घरेलू कंपनियाँ
- रिलायंस इंडस्ट्रीज
- टाटा पावर
- अदानी पावर
- वेदांता लिमिटेड
इन भारतीय दिग्गजों ने भी परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निवेश की गहरी रुचि दिखाई है, और लगभग 26 अरब डॉलर का निवेश प्रस्तावित किया है।
संभावित लाभ
- ऊर्जा आपूर्ति में विविधता: परमाणु ऊर्जा के विकास से भारत अपनी ऊर्जा आपूर्ति को विविध बना सकेगा और कोयले पर निर्भरता घटा सकेगा।
- नवीन प्रौद्योगिकी का प्रवेश: विदेशी कंपनियों के आने से भारत को नवीनतम परमाणु तकनीक और सुरक्षा मानकों तक पहुँच मिलेगी।
- रोजगार सृजन: नए परमाणु संयंत्रों के निर्माण से लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिल सकता है।
- कुशल मानव संसाधन विकास: अत्याधुनिक परियोजनाओं में काम करने से भारतीय इंजीनियरों और वैज्ञानिकों का कौशल भी बढ़ेगा।
- जलवायु लक्ष्यों में सहायता: परमाणु ऊर्जा कार्बन मुक्त होती है, जिससे भारत अपने पेरिस समझौते के जलवायु प्रतिबद्धताओं को पूरा कर सकेगा।
मौजूदा चुनौतियाँ और जोखिम
यद्यपि संभावनाएँ उज्ज्वल हैं, लेकिन कई बड़ी चुनौतियाँ भी मौजूद हैं:
1. परमाणु दायित्व जोखिम
इतिहास गवाह है कि विदेशी कंपनियाँ भारतीय परमाणु दायित्व कानूनों से भयभीत रही हैं। भारतीय कानूनों के तहत संयंत्र आपूर्तिकर्ताओं को भी दुर्घटना की स्थिति में जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जबकि वैश्विक मानक आमतौर पर ऑपरेटर को ही जिम्मेदार मानते हैं। सरकार को इस डर को दूर करने के लिए स्पष्ट और भरोसेमंद कानूनी ढांचा बनाना होगा।
2. सुरक्षा और संरक्षा
परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि विदेशी निवेश के बावजूद संयंत्रों के डिजाइन, निर्माण और संचालन में किसी भी तरह की सुरक्षा में ढील न हो।
3. जनमत और सामाजिक स्वीकृति
परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को लेकर आम जनता के मन में सुरक्षा और रेडियोधर्मी अपशिष्ट प्रबंधन को लेकर चिंताएँ रहती हैं। सरकार को जनमत को तैयार करने के लिए व्यापक संवाद और पारदर्शिता अपनानी होगी।
4. दर निर्धारण वार्ताएँ
परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं में उत्पादन लागत अधिक होती है। अमेरिका के साथ दर निर्धारण पर वार्ताएँ जटिल हो सकती हैं, और यह तय करना चुनौतीपूर्ण रहेगा कि बिजली उपभोक्ताओं के लिए आर्थिक रूप से सस्ती रहे।
भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी निवेश | महत्वपूर्ण तथ्य
भारत में परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी निवेश से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्यों का संक्षिप्त टेबल (सारांश तालिका) नीचे दिया गया है जो इसके मुख्य बिंदुओं को साफ़ और क्रमबद्ध रूप से दिखाता है:
विषय | विवरण |
---|---|
खबर में क्यों? | भारत परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में 49% तक विदेशी निवेश की अनुमति देने की योजना बना रहा है। |
मुख्य उद्देश्य | स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन बढ़ाना, कोयले पर निर्भरता घटाना, कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करना। |
प्रस्तावित नीति | विदेशी कंपनियों को 49% तक स्वामित्व की अनुमति, पूर्व सरकारी स्वीकृति आवश्यक। |
कानूनी संशोधन | – नागरिक परमाणु क्षति अधिनियम, 2010 में संशोधन – परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1960 में संशोधन |
स्वीकृति प्रक्रिया | स्वतः स्वीकृति नहीं; सरकारी मंजूरी अनिवार्य। |
प्रस्ताव समयसीमा | शीघ्र ही केंद्रीय कैबिनेट में प्रस्ताव; संसद मानसून सत्र जुलाई 2025 में पेश। |
लक्ष्य | 2047 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को 8 GW से बढ़ाकर 100 GW करना। |
विदेशी रुचि रखने वाली कंपनियाँ | वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक, GE-हिटाची, EDF, रोसाटोम। |
घरेलू रुचि रखने वाली कंपनियाँ | रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा पावर, अदानी पावर, वेदांता। |
घरेलू निवेश अनुमान | लगभग 26 अरब डॉलर। |
मुख्य लाभ | ऊर्जा विविधता, नवीन तकनीक का प्रवेश, रोजगार सृजन, कार्बन उत्सर्जन में कमी। |
मुख्य चुनौतियाँ | परमाणु दायित्व जोखिम, सुरक्षा आशंकाएँ, सामाजिक स्वीकृति, दर निर्धारण विवाद। |
भविष्य की दिशा | ऊर्जा आत्मनिर्भरता, स्वच्छ ऊर्जा में वैश्विक नेतृत्व। |
परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी निवेश | एक नया युग
भारत द्वारा परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में विदेशी निवेश को अनुमति देने का प्रस्ताव एक साहसिक और दूरदर्शी कदम है। यदि इसे सावधानीपूर्वक और कुशलतापूर्वक कार्यान्वित किया जाता है, तो यह भारत को ऊर्जा आत्मनिर्भरता, आर्थिक विकास और जलवायु प्रतिबद्धताओं की दिशा में तेजी से आगे बढ़ने में मदद कर सकता है।
हालाँकि, इस राह में चुनौतियाँ कम नहीं हैं। सरकार को नीतिगत पारदर्शिता, कानूनी सुधार, सुरक्षा सुनिश्चित करने और सामाजिक स्वीकृति बनाने पर विशेष ध्यान देना होगा। यदि यह संतुलन साधा जाता है, तो भारत विश्व मंच पर एक प्रमुख परमाणु ऊर्जा शक्ति बनकर उभर सकता है।
आने वाले महीनों में संसद के मानसून सत्र के दौरान जो विधायी परिवर्तन होंगे, वे इस परिवर्तन की दिशा और गति तय करेंगे। भारत का ऊर्जा भविष्य अब एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है और परमाणु ऊर्जा इसमें एक केंद्रीय भूमिका निभा सकती है।
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