पृथ्वी, सौरमण्डल का एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन है। इसीलिए इसे अनोखा ग्रह कहते हैं। पृथ्वी पर भूमि, जल और वायु पाये जाने से यहाँ जीवन का विकास संभव हुआ। पृथ्वी ऊपरी सतह अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। ऊपरी सतह पर हवा पानी और जमीन साथ साथ मिलते हैं, और यहीं पर अधिकांश जीव जंतु तथा पेड़ पौधे हैं। हवा, पानी, जमीन और जीवों से बनी पृथ्वी की ऊपरी सतह को परिमंडल कहते हैं। पृथ्वी के भूमि वाले भाग को स्थल मण्डल, जल वाले भाग को जलमण्डल और वायु के आवरण को वायुमंडल कहते है। पृथ्वी का वह क्षेत्र जहां उपरोक्त तीनों परिमंडल एक-दूसरे से मिलते हैं जैवमंडल कहलाता है।
पृथ्वी के 29 प्रतिशत भाग (एक तिहाई भाग) में भूमि (थल) है तथा 71 प्रतिशत भाग (दो तिहाई भाग) में जल पाया जाता है। इस प्रकार पृथ्वी पर जल भूमि से लगभग तीन गुना से भी अधिक है। पृथ्वी पर स्थल विशाल भूखंडों में विभाजित है जिन्हें महाद्वीप कहते हैं। इन विशाल महाद्वीपों के चारों खारे जल का विस्तार है, जिन्हें महासागर कहते हैं।
पृथ्वी के मुख्य क्षेत्र (परिमंडल) भूगोल में एक मौलिक अवधारणा हैं। यह परिमंडल पृथ्वी के चारों तरफ पृथ्वी के ठोस (स्थलमंडल), गैसीय (वायुमंडल), तरल (जलमंडल) और जीवमंडल भाग अलग-अलग नहीं हैं, बल्कि आपस में जुड़े हुए हैं।
पृथ्वी के चार प्रमुख डोमेन (परिमंडल) कौन से हैं?
पृथ्वी के चार प्रमुख परिमंडल है –
- भूमंडल (Lithosphere)
- वायुमंडल (Atmosphere)
- जलमंडल (Hydrosphere)
- जीवमंडल (Biosphere)
भूमंडल (Lithosphere)
- परिभाषा:
- भूमंडल या स्थलमंडल पृथ्वी का ठोस भाग है जो इसकी बाहरी कवर को छूता है।
- पृथ्वी का वह समस्त भू-भाग जो कठोर और नरम शैलों से बना है, स्थलमंडल कहलाता है।
- संरचना: इसमें मेंटल (पृथ्वी की मानवीय परत) और क्रस्ट (भूपर्पटी) शामिल हैं।
- उत्पत्ति: भूमंडल चट्टानों और मिट्टी की परतों से बनता है।
भूमंडल को स्थलमंडल भी कहते हैं। यह पृथ्वी का ठोस भाग है जिस पर हम लोग रहते हैं। इस भाग में मेंटल और क्रस्ट शामिल है। भूमंडल भूपर्पटी की चट्टानों और मिट्टी की परतो से बना होता है। पृथ्वी के इस भाग पर जीवो के लिए पोषक तत्व और खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। टेक्टोनिक प्लेटें भूमंडल का एक उपखंड हैं।
स्थलमंडल एक चट्टानी ग्रह का कठोर, सबसे बाहरी आवरण है। पृथ्वी पर, स्थलमंडल में पृथ्वी की पपड़ी और मेंटल का सबसे ऊपरी भाग शामिल है। यह कई बड़े और छोटे टुकड़ों में विभाजित है जिन्हें टेक्टोनिक प्लेट्स के रूप में जाना जाता है, जो अपने नीचे स्थित अर्ध-द्रव एस्थेनोस्फीयर पर तैरते रहते हैं। स्थलमंडल पृथ्वी पर विभिन्न भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं और विशेषताओं के लिए महत्वपूर्ण है।
भूमंडल (Lithosphere) में कठोर यांत्रिक गुण होते हैं। भूमंडल (Lithosphere) का सबसे उपरी हिस्सा मृदा मंडल (Pedosphere) है। मृदा मंडल पृथ्वी के अन्य 3 अन्य प्रमुख डोमेन, वायुमंडल, जलमंडल, और जीवमंडल के साथ रासायनिक रूप से प्रतिक्रिया करता है। इसकी मोटाई लगभग 100 किमी है।
भूमंडल (स्थलमंडल) निम्न भागों में विभाजित है –
पर्वत
पर्वत अपने आस पास के क्षेत्र से बहुत ऊँचे भाग होते है और इनके ढाल तीव्र होते है। पहाड़ों मे ऊँची-ऊँची चोटीयाँ और गहरी खाइयां होती है। पर्वतों के समूह को पर्वत श्रेणियां कहते है। ये पर्वत श्रेणिया हजारो किलोमीटर में फैली है। भारत के उत्तर में हिमालय पर्वत श्रेणी फैली हुई है। यह संसार की सबसे ऊंची पर्वत श्रेणी है। मध्यप्रदेश में विध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रेणियां है।
पठार
पठार सामान्य रूप से ऊँचे उठे हुए वे भू-भाग हैं जिनकी ऊपरी सतह लगभग समतल अथवा हल्की ऊँची-नीची होती है। यह आसपास के क्षेत्री से एकदम उठे हुए होते है। पठार के इन तेज ढलान वाले किनारे को कगार कहते हैं। हमारे देश में दक्कन का पठार प्रसिद्ध है।
मैदान
पृथ्वी के निचले भाग जो समतल और सपाट हैं मैदान कहलाते हैं। अधिकतर मैदान नदियों द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी, ककड़, बालू पत्थर आदि से बने हैं। हमारे देश में गंगा-यमुना से बना उत्तर का विशाल मैदान प्रमुख हैं।
स्थलमंडल (भूमंडल) की प्रमुख विशेषताएं
स्थलमंडल (भूमंडल) की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं –
- पृथ्वी की पपड़ी: पृथ्वी की पपड़ी स्थलमंडल की सबसे बाहरी परत है। इसमें महाद्वीपीय परत शामिल है, जो महाद्वीपों का निर्माण करती है, और समुद्री परत, जो महासागरीय घाटियों के नीचे स्थित है।
- टेक्टोनिक प्लेटें: स्थलमंडल कई बड़े और कठोर टुकड़ों में विभाजित होता है जिन्हें टेक्टोनिक प्लेट्स कहा जाता है। ये प्लेटें अपने नीचे अर्ध-द्रव एस्थेनोस्फीयर में संवहन धाराओं के कारण निरंतर गति में हैं। इन प्लेटों के बीच परस्पर क्रिया के परिणामस्वरूप विभिन्न भूवैज्ञानिक घटनाएं होती हैं, जैसे भूकंप, ज्वालामुखी गतिविधि और पर्वत श्रृंखलाओं का निर्माण।
- महाद्वीपीय स्थलमंडल: महाद्वीपीय स्थलमंडल आमतौर पर समुद्री स्थलमंडल की तुलना में अधिक मोटा और कम घना होता है। इसमें महाद्वीपीय परत और महाद्वीपों के नीचे मेंटल का ऊपरी भाग शामिल है।
- महासागरीय स्थलमंडल: महासागरीय स्थलमंडल महाद्वीपीय स्थलमंडल की तुलना में पतला और सघन है। इसमें समुद्री पपड़ी और समुद्री घाटियों के नीचे मेंटल का सबसे ऊपरी हिस्सा शामिल है।
- एस्थेनोस्फीयर: स्थलमंडल के नीचे एस्थेनोस्फीयर है, जो ऊपरी मेंटल में एक अर्ध-तरल या नमनीय परत है। टेक्टोनिक प्लेटों की गति एस्थेनोस्फीयर के ऊपर स्थलमंडल की सापेक्ष गतिशीलता से सुगम होती है।
स्थलमंडल पृथ्वी की सतह और भूवैज्ञानिक विशेषताओं को आकार देने में एक मौलिक भूमिका निभाता है। टेक्टोनिक प्लेटों के बीच परस्पर क्रिया के परिणामस्वरूप ज्वालामुखी का उद्गार तथा भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाएँ होती है। और पर्वत श्रृंखलाओं का निर्माण और परिवर्तन होता है। यह भूवैज्ञानिक समय के पैमाने पर महाद्वीपों और महासागरीय घाटियों के वितरण को भी प्रभावित करता है।
महाद्वीप – बड़े भूभाग
इस धरती की सबसे ऊँची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट है। वर्तमान आधिकारिक ऊंचाई समुद्र तल से 8,848 मीटर ऊपर है। ऊंचाई को 1955 में किए गए एक भारतीय सर्वेक्षण द्वारा मापा और स्थापित किया गया था। नेपाल और चीन के बीच की सीमा इसके शिखर बिंदुओं पर चलती है।
विश्व के महाद्वीप बड़े भूभाग हैं जो पृथ्वी की सतह का निर्माण करते हैं। सात महाद्वीप हैं, और उन्हें आम तौर पर उनकी भौगोलिक स्थिति और उनकी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और भूवैज्ञानिक विशेषताओं दोनों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। क्षेत्रफल की दृष्टि सबसे बड़ा महाद्वीप एशिया महाद्वीप है, तथा सबसे छोटा महाद्वीप आस्ट्रेलिया है। क्षेत्रफल की दृष्टि से घटते क्रम में महाद्वीपों के नाम है – 1. एशिया, 2. अफ्रीका, 3. उत्तरी अमेरिका, 4. दक्षिणी अमेरिका, 5. अंटार्कटिका, 6. यूरोप, 7. आस्ट्रेलिया ।
सात महाद्वीपों के नाम और उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी नीचे दिया गया है –
1. एशिया महाद्वीप
एशिया, पृथ्वी पर सबसे बड़ा महाद्वीप है। यह मुख्य रूप से पूर्वी और उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। यह सबसे अधिक आबादी वाला महाद्वीप भी है। सला 2019 तक दुनिया की लगभग 60% आबादी इस पर रहती थी। एशियाई महाद्वीप पृथ्वी के कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 30% भाग कवर करता है। एशिया महाद्वीप के दक्षिण में हिंद महासागर, उत्तर में आर्कटिक महासागर और पूर्व में प्रशांत महासागर स्थित है। स्वेज नहर एशिया और अफ्रीका को अलग करती है। एशिया और यूरोप को काला सागर और कैस्पियन सागर अलग करते हैं।
2. अफ़्रीका महाद्वीप
अफ्रीका, पृथ्वी का दूसरा सबसे बड़ा महाद्वीप महाद्वीप है, जो अपनी विविध संस्कृतियों, वन्य जीवन और परिदृश्यों के लिए जाना जाता है। अफ्रीका पृथ्वी के कुल भूमि क्षेत्र का 20% भाग कवर करता है। यहां दूसरी सबसे बड़ी आबादी निवास करती है। अफ्रीका का एक बड़ा हिस्सा उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। भूमध्य रेखा, कर्क रेखा और मकर रेखा अफ्रीका से होकर गुजरती है। यह एकमात्र महाद्वीप है जिससे होकर सभी 3 अक्षांश गुजरते हैं।
विश्व की सबसे लंबी नदी नील अफ्रीका में है। इसकी 2 मुख्य सहायक नदियां हैं जो 11 देशों से होकर गुजरती हैं। यह अफ्रीका के दक्षिण में स्थित तंजानिया से बहती है और अफ्रीका के उत्तर में स्थित मिस्र तक जाती है। यह उत्तर की ओर बहने वाली नदी है और लगभग 6650 किमी लंबी है। पृथ्वी का सबसे बड़ा गर्म मरुस्थल सहारा मरुस्थल भी अफ्रीका में स्थित है। यह पश्चिम में अटलांटिक महासागर से पूर्व में स्थित लाल सागर तक फैला हुआ है। सहारा रेगिस्तान अफ्रीकी महाद्वीप के एक बड़े हिस्से को कवर करता है। भूमध्य सागर सहारा रेगिस्तान के उत्तर में स्थित है।
3. उत्तरी अमेरिका महाद्वीप
उत्तरी अमेरिका, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है। इस महाद्वीप में संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और मैक्सिको जैसे देश शामिल हैं। यह पूरी तरह से उत्तरी और पश्चिमी गोलार्ध में स्थित है। पनामा का स्थलडमरूमध्य एक संकीर्ण पट्टी है जो उत्तरी अमेरिका और दक्षिण अमेरिका को जोड़ती है। यह महाद्वीप तीन महासागरों, अटलांटिक महासागर, प्रशांत महासागर और आर्कटिक महासागर से घिरा हुआ है।
4. दक्षिण अमेरिका महाद्वीप
उत्तरी अमेरिका से जुड़ा, यह अपने अमेज़ॅन वर्षावन और एंडीज़ पर्वत के लिए जाना जाता है। दक्षिण अमेरिका में 12 संप्रभु राज्य हैं। यह महाद्वीप दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित है। कुल क्षेत्रफल की दृष्टि से दक्षिण अमेरिका चौथा सबसे बड़ा महाद्वीप है। प्रशांत महासागर दक्षिण अमेरिका के पश्चिम में स्थित है। दक्षिण अमेरिका के पूर्व में अटलांटिक महासागर स्थित है। दक्षिण अमेरिका में ब्राजील सबसे अधिक आबादी वाला देश है। एंडीज पर्वत दुनिया की सबसे लंबी जल पर्वत श्रृंखला है और यह दक्षिण अमेरिका में स्थित है। विश्व की सबसे बड़ी नदी अमेजन नदी भी दक्षिण अमेरिका में स्थित है।
5. अंटार्कटिका महाद्वीप
सबसे दक्षिणी महाद्वीप, जो बर्फ से ढका हुआ है और दक्षिणी महासागर से घिरा हुआ है। अंटार्कटिका एक विशाल महाद्वीप है और पूरी तरह से दक्षिणी गोलार्ध में स्थित है। दक्षिणी ध्रुव दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र में लगभग इस महाद्वीप के केंद्र में स्थित है और स्थायी रूप से बर्फ की मोटी चादर से ढका हुआ है। यहां विभिन्न देशों के अनुसंधान केंद्र हैं। भारत ने भी यहां अपना स्थायी अनुसंधान केंद्र स्थापित किया है, जिनके नाम मैत्री, दक्षिण गंगोत्री और भारती है।
6. यूरोप महाद्वीप
पश्चिमी और उत्तरी गोलार्ध में स्थित, अपने समृद्ध इतिहास और विविध संस्कृतियों के लिए जाना जाता है। यूरोप पृथ्वी का छठा सबसे बड़ा महाद्वीप है, जो पृथ्वी की सतह के लगभग 2% हिस्से को कवर करता है। रूस, यूरोपीय महाद्वीप का सबसे बड़ा देश है। पश्चिमी सभ्यता का जन्म यूरोप में ही हुआ था। अटलांटिक धाराओं का यूरोपीय महाद्वीप पर सबसे अधिक प्रभाव है। यूरोप के दक्षिण में अटलांटिक महासागर है, इसके उत्तर में आर्कटिक महासागर है, और पश्चिम में अटलांटिक महासागर है।
7. ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप
ऑस्ट्रेलिया, सबसे छोटा महाद्वीप है। अक्सर इसे एक देश और एक महाद्वीप के रूप में जाना जाता है, यह पूरी तरह से दक्षिणी गोलार्ध में स्थित है। यह चारों ओर से महासागरों और समुद्रों से घिरा हुआ है। इसे द्वीपीय महाद्वीप कहते हैं। ये महाद्वीप आकार, जनसंख्या, जलवायु और सांस्कृतिक विशेषताओं में बहुत भिन्न हैं। प्रत्येक पृथ्वी के समग्र भूगोल और पारिस्थितिक तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
महासागर घाटियां – विशाल जल निकाय
मारियाना ट्रेंच पृथ्वी पर सबसे गहरी महासागरीय खाई है। सबसे गहरा हिस्सा 11,034 मीटर पर है। मारियाना ट्रेंच प्रशांत महासागर में स्थित है। मारियाना ट्रेंच की चौड़ाई 69 किमी और लंबाई 2550 किमी है। मारियाना ट्रेंच का नाम पास के मारियाना द्वीप समूह से लिया गया है जो प्रशांत महासागर में मारियाना ट्रेंच से लगभग 200 किमी की दूरी पर स्थित है।
वायुमंडल (Atmosphere)
पृथ्वी के चारों ओर वायु का आवरण जो विभिन्न गैसों के मिश्रण से बना है, वायुमंडल कहलाता है।
हमारे चारों और वायु का आवरण है। यह आवरण धरातल से लगभग 1600 किलोमीटर की ऊँचाई तक फैला हुआ है। वायुमंडल में वायु की मात्रा धरातल के निकट अधिक तथा ऊँचाई बढ़ने पर धीरे-धीरे कम होती जाती है। यही कारण है कि पहाड़ों पर सांस लेने में कठिनाई होती है, और पर्वतारोही अपने साथ ऑक्सीजन गैस के सिलेण्डर ले जाते हैं। इस प्रकार वायुमंडल पृथ्वी के लिए एक कंबल का कार्य करता है और हमें सूर्य की तेज किरणों से बचाता है। वायुमंडल में अनेक गैसे जैसे ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन डाइआक्साइड आदि पाई जाती है।
वायुमंडल गैसों की एक परत है जो किसी ग्रह या चंद्रमा जैसे खगोलीय पिंड को चारों ओर से घेरे रहती है। पृथ्वी के संदर्भ में, वायुमंडल एक महत्वपूर्ण घटक है जो जीवन को बनाए रखता है और मौसम के पैटर्न को प्रभावित करता है। इसमें नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, जल वाष्प और अन्य तत्वों की थोड़ी मात्रा सहित गैसों का मिश्रण होता है।
वायुमंडल में नाइट्रोजन गैस सबसे अधिक मात्रा में अर्थात 78. 1 प्रतिशत पाई जाती हैं। आक्सीजन गैस सभी जीवधारियो के जीवन के विकास के लिए प्राणवायु के रूप में कार्य करती है। यह वायुमंडल में 21 प्रतिशत पाई जाती है। इसी प्रकार कार्बन डाईआक्साइड पेड़-पौधों की वृद्धि में सहायक है।
पृथ्वी के वायुमंडल के प्रमुख घटक
- नाइट्रोजन (N2): नाइट्रोजन पृथ्वी के वायुमंडल का लगभग 78% हिस्सा है और प्रोटीन और अन्य जैविक अणुओं का एक आवश्यक घटक है।
- ऑक्सीजन (O2): ऑक्सीजन वायुमंडल का लगभग 21% हिस्सा है और कई जीवों में श्वसन के लिए महत्वपूर्ण है।
- आर्गन: आर्गन एक उत्कृष्ट गैस है और वायुमंडल का लगभग 0.93% हिस्सा बनाती है।
- कार्बन डाइऑक्साइड (CO2): कार्बन डाइऑक्साइड सूक्ष्म मात्रा (लगभग 0.04%) में मौजूद है, लेकिन यह पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह एक ग्रीनहाउस गैस है।
- जलवाष्प: वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा अलग-अलग होती है, लेकिन बादलों के निर्माण और वर्षा के लिए यह आवश्यक है।
- ट्रेस गैसें: अन्य गैसें, जैसे नियॉन, हीलियम, मीथेन, क्रिप्टन, क्सीनन और ओजोन, बहुत कम मात्रा में मौजूद हैं।
वायुमंडल को तापमान भिन्नता के आधार पर विभिन्न परतों में विभाजित किया गया है, और ये परतें, पृथ्वी की सतह से बाहर की ओर, क्षोभमंडल, समतापमंडल, मेसोस्फीयर, थर्मोस्फीयर और एक्सोस्फीयर हैं।
वातावरण कई महत्वपूर्ण कार्य करता है, जिनमें शामिल हैं:
- ऑक्सीजन प्रदान करना: इसमें जीवित जीवों के श्वसन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन होती है।
- सौर विकिरण से सुरक्षा: वायुमंडल सौर विकिरण को अवशोषित और प्रकीर्णित करता है, जिससे पृथ्वी पर जीवन को अत्यधिक गर्मी और हानिकारक विकिरण से बचाया जाता है।
- तापमान को नियंत्रित करना: वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसें बाहर जाने वाली कुछ गर्मी को रोककर पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित करने में मदद करती हैं।
- सहायक मौसम प्रणालियाँ: वायुमंडल एक गतिशील प्रणाली है जो मौसम के पैटर्न को प्रभावित करती है, जिससे हवाएँ, तूफान और वर्षा जैसी घटनाएँ पैदा होती हैं।
जलवायु, मौसम के पैटर्न और ग्रह की समग्र कार्यप्रणाली का अध्ययन करने के लिए पृथ्वी के वायुमंडल की संरचना और व्यवहार को समझना आवश्यक है।
पृथ्वी का वायुमंडल ऊंचाई के साथ तापमान भिन्नता के आधार पर कई परतों में विभाजित है। पृथ्वी की सतह से बाहर की ओर बढ़ने पर, ये परतें हैं –
क्षोभ मंडल
- ऊँचाई: पृथ्वी की सतह से लगभग 8 से 15 किलोमीटर (5 से 9 मील) तक फैली हुई है।
- तापमान: इस परत में ऊंचाई के साथ तापमान घटता जाता है।
- विशेषताएं: क्षोभमंडल में पृथ्वी की अधिकांश मौसमी घटनाएं शामिल हैं और यहीं पर बादल, वर्षा और अधिकांश वायुमंडलीय प्रक्रियाएं होती हैं। यह वह परत भी है जहां पृथ्वी की सतह स्थित है।
समतापमंडल
- ऊंचाई: क्षोभमंडल के शीर्ष से लगभग 50 किलोमीटर (31 मील) तक फैली हुई है।
- तापमान: क्षोभमंडल के विपरीत, समतापमंडल में तापमान ऊंचाई के साथ बढ़ता है, मुख्य रूप से ओजोन परत की उपस्थिति के कारण।
- विशेषताएं: समताप मंडल वह जगह है जहां ओजोन परत स्थित है, जो पराबैंगनी सौर विकिरण को अवशोषित और बिखेरती है। वाणिज्यिक जेट विमान आमतौर पर निचले समताप मंडल में उड़ान भरते हैं।
मध्यमंडल
- ऊंचाई: लगभग 50 किलोमीटर से 85 किलोमीटर (31 से 53 मील) तक फैली हुई है।
- तापमान: मध्यमंडल में ऊंचाई के साथ तापमान घटता जाता है।
- विशेषताएं: मेसोस्फीयर वह जगह है जहां अधिकांश उल्कापिंड पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते ही जल जाते हैं। इस परत की विशेषता निम्न तापमान भी है।
बाह्य वायुमंडल
- ऊंचाई: बाह्यमंडल सीमा तक लगभग 85 किलोमीटर तक फैली हुई है (सौर गतिविधि के आधार पर व्यापक रूप से भिन्न)।
- तापमान: उच्च-ऊर्जा सौर विकिरण के अवशोषण के कारण थर्मोस्फीयर में ऊंचाई के साथ तापमान काफी बढ़ जाता है।
- विशेषताएं: थर्मोस्फीयर वह जगह है जहां उत्तरी और दक्षिणी रोशनी (औरोरा) होती हैं। उच्च तापमान के बावजूद, कणों के कम घनत्व का मतलब है कि मनुष्य को बहुत ठंड महसूस होगी।
बहिर्मंडल
- ऊंचाई: थर्मोस्फीयर से परे, पृथ्वी के वायुमंडल की बाहरी सीमा तक फैली हुई।
- तापमान: बाह्यमंडल में कणों का घनत्व बेहद कम होता है और तापमान को परिभाषित करना मुश्किल होता है क्योंकि मौजूद कुछ कणों में उच्च गतिज ऊर्जा होती है।
- विशेषताएं: बहिर्मंडल धीरे-धीरे बाहरी अंतरिक्ष में परिवर्तित हो जाता है, और यहीं पर कुछ उपग्रह पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं।
इन वायुमंडलीय परतों की विशिष्ट विशेषताएं हैं और ये विभिन्न वायुमंडलीय प्रक्रियाओं में आवश्यक भूमिका निभाती हैं। प्रत्येक परत में तापमान परिवर्तन सौर ऊर्जा के अवशोषण और पुनः विकिरण और मौजूद गैसों की संरचना से प्रभावित होता है।
जलमंडल (Hydrosphere)
पृथ्वी का वह समस्त भाग जो जल से ढका है, जलमंडल कहलाता है।
जलमंडल पृथ्वी की सतह पर पानी की कुल मात्रा को संदर्भित करता है, जिसमें महासागरों, समुद्रों, झीलों, नदियों, भूजल, ग्लेशियरों और यहां तक कि वायुमंडल में जल वाष्प का पानी भी शामिल है। यह हमारे ग्रह पर जीवन को बनाए रखने और विभिन्न पृथ्वी प्रक्रियाओं को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
जलमंडल के प्रमुख घटक
- महासागर: महासागर जलमंडल का सबसे बड़ा हिस्सा बनाते हैं, जो पृथ्वी के लगभग 97.5% पानी को कवर करते हैं। प्रमुख महासागरों में प्रशांत, अटलांटिक, भारतीय, दक्षिणी और आर्कटिक महासागर शामिल हैं।
- समुद्र: समुद्र आंशिक रूप से भूमि से घिरे हुए खारे पानी के छोटे पिंड हैं। वे अक्सर महासागरों से जुड़े होते हैं।
- झीलें: झीलें भूमि से घिरी मीठे पानी की संरचनाएं हैं। इनका आकार छोटे तालाबों से लेकर उत्तरी अमेरिका की ग्रेट झीलों जैसी बड़ी झीलों तक भिन्न-भिन्न होता है।
- नदियाँ: नदियाँ बहते पानी के भंडार हैं जो अधिक ऊंचाई से निचली ऊंचाई की ओर बढ़ते हैं, अंततः महासागरों, समुद्रों या झीलों में बह जाते हैं।
- भूजल: भूजल पृथ्वी की सतह के नीचे मिट्टी और चट्टान की परतों में पाया जाने वाला पानी है। यह कुओं और झरनों के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
- ग्लेशियर: ग्लेशियर बर्फ के बड़े समूह हैं जो भूमि पर धीरे-धीरे बहते हैं। वे महत्वपूर्ण मात्रा में मीठे पानी का भंडारण करते हैं और समुद्र स्तर के नियमन में योगदान करते हैं।
- जल वाष्प: गैसीय अवस्था में पानी, जिसे जल वाष्प के रूप में जाना जाता है, को भी जलमंडल का हिस्सा माना जाता है। यह जल चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बादलों के निर्माण और वर्षा में योगदान देता है।
जलमंडल पृथ्वी के अन्य क्षेत्रों जैसे वायुमंडल, स्थलमंडल और जीवमंडल से जुड़ा हुआ है। इन क्षेत्रों के बीच पानी की आवाजाही जल चक्र का हिस्सा है, जिसमें वाष्पीकरण, संघनन, वर्षा, अपवाह और घुसपैठ जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं।
जलमंडल के कार्य एवं महत्व
- जीवन को कायम रखना: पृथ्वी पर सभी प्रकार के जीवन के लिए पानी आवश्यक है। पौधे, जानवर और मनुष्य जीवित रहने के लिए पानी पर निर्भर हैं।
- जलवायु विनियमन: महासागर और बड़े जल निकाय गर्मी को अवशोषित और मुक्त करके पृथ्वी की जलवायु को नियंत्रित करते हैं। वे मौसम के मिजाज को भी प्रभावित करते हैं।
- परिवहन: महासागर और समुद्र प्रमुख परिवहन मार्गों के रूप में कार्य करते हैं, जो वैश्विक व्यापार को सुविधाजनक बनाते हैं।
- कटाव और जमाव: पानी कटाव और जमाव प्रक्रियाओं के माध्यम से पृथ्वी की सतह को आकार देता है, जिससे घाटियाँ, घाटी और डेल्टा जैसे परिदृश्य बनते हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: जल निकायों का उपयोग जलविद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है, जो ऊर्जा का एक नवीकरणीय स्रोत है।
पृथ्वी पर पाँच प्रमुख महासागर हैं, जो खारे पानी के विशाल, परस्पर जुड़े हुए पिंड हैं जो ग्रह की सतह का लगभग 71% भाग कवर करते हैं। सबसे बड़ा और गहरा महासागर प्रशांत महासागर है, इसके बाद अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, दक्षिणी (या अंटार्कटिक) महासागर और आर्कटिक महासागर हैं। यहां प्रत्येक का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
1. प्रशांत महासागर
- आकार: प्रशांत महासागर सबसे बड़ा और गहरा महासागर है, जो पृथ्वी के सभी महाद्वीपों के क्षेत्रफल से भी बड़ा है।
- स्थान: यह उत्तर में आर्कटिक महासागर से लेकर दक्षिण में दक्षिणी महासागर तक फैला हुआ है, इसकी सीमा पश्चिम में एशिया और ऑस्ट्रेलिया और पूर्व में अमेरिका से लगती है।
- विशेषताएं: प्रशांत महासागर अपने विशाल विस्तार, असंख्य द्वीपों और मारियाना ट्रेंच के लिए जाना जाता है, जो पृथ्वी पर सबसे गहरा बिंदु है।
2. अटलांटिक महासागर
- आकार: अटलांटिक महासागर दूसरा सबसे बड़ा महासागर है, जो पृथ्वी की सतह का लगभग 20% भाग कवर करता है।
- स्थान: यह पश्चिम में अमेरिका और पूर्व में यूरोप और अफ्रीका के बीच स्थित है।
- विशेषताएं: अटलांटिक महासागर मध्य-अटलांटिक रिज, इसके केंद्र से नीचे बहने वाली एक पर्वत श्रृंखला और गल्फ स्ट्रीम, एक शक्तिशाली गर्म महासागरीय धारा के लिए जाना जाता है।
3. हिंद महासागर
- आकार: हिंद महासागर तीसरा सबसे बड़ा महासागर है, जो पृथ्वी की सतह का लगभग 14% भाग कवर करता है।
- स्थान: यह अफ्रीका, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच स्थित है।
- विशेषताएं: हिंद महासागर की विशेषता मानसूनी हवाएं, भूमध्यरेखीय काउंटर करंट और अंडमान सागर और अरब सागर जैसी प्रमुख पानी के नीचे की विशेषताओं की उपस्थिति है।
4. दक्षिणी (अंटार्कटिक) महासागर
- आकार: दक्षिणी महासागर अंटार्कटिका को घेरे हुए पांच महासागरों में सबसे छोटा और सबसे छोटा है।
- स्थान: यह अंटार्कटिका महाद्वीप को घेरता है और इसे अंटार्कटिक सर्कम्पोलर धारा द्वारा परिभाषित किया गया है।
- विशेषताएं: दक्षिणी महासागर अपनी कठोर जलवायु, अत्यधिक ठंड और तैरती बर्फ की अलमारियों की उपस्थिति के लिए जाना जाता है।
5. आर्कटिक महासागर
- आकार: आर्कटिक महासागर उत्तरी ध्रुव के आसपास स्थित पांच महासागरों में सबसे छोटा और उथला है।
- स्थान: यह उत्तरी अमेरिका, एशिया, यूरोप और ग्रीनलैंड के भूभाग से घिरा हुआ है।
- विशेषताएं: आर्कटिक महासागर, विशेष रूप से सर्दियों के महीनों के दौरान, समुद्री बर्फ से ढका रहता है, और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अनुभव कर रहा है, जिसमें बर्फ का आवरण सिकुड़ना भी शामिल है।
ये महासागर पृथ्वी की जलवायु को विनियमित करने, समुद्री जीवन का समर्थन करने और वैश्विक मौसम पैटर्न को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जीवमंडल (Biosphere)
जीवों का वह मंडल जो स्थल, जल और वायु मंडल में पाया जाता है, जैवमंडल कहलाता है।
पृथ्वी के तीनों परिमंडल स्थल मंडल, वायुमंडल, और जलमंडल मिलकर इस प्रकार का वातावरण तैयार करते हैं जिसे प्राकृतिक वातावरण या पर्यावरण कह सकते हैं इसी प्राकृतिक पर्यावरण में समस्त जीव-जंतु एवं पेड़-पौधों में जीवित रहते हैं। जैवमंडल के जीवो को दो श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं-
- प्राणी जगत / जंतु-जगत (Animal kingdom)
- वनस्पति जगत / पादप-जगत (Plant-world)
प्राणी जगत में अति सूक्ष्म जीवाणु से कर विशालकाय हाथी एवं व्हेल मछली तक सम्मिलित है। प्राणी जगत में जीव जन्तु एक स्थान से दूसरे स्थान को भ्रमण करते हैं। जबकि वनस्पति जगत में अति सूक्ष्म फफूंदी लेकर विशालकाय पेड़ तक सम्मिलित है। वनस्पति जगत के जीव एक ही स्थान पर विकसित होते हैं।
जैवमंडल अंग्रेजी के बायोस्फीयर शब्द से बना है। बायो का अर्थ जीवन है, इसलिए इसे जैवमंडल या जीवन क्षेत्र कहते हैं। यहाँ भूमि, वायु और जल एक दूसरे के संपर्क में आते हैं। पृथ्वी का सम्पूर्ण जीवन इसी में सीमित है। यह समुद्र तल से केवल कुछ ही किलोमीटर नीचे तथा ऊपर तक होता है। इस परिमंडल मे जीव-जंतु, पेड़-पौधे और सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं। यानी जैवमंडल में जीवों का आकार सूक्ष्म जीवाणु से लेकर विशालकाय हाथी तक है।
पृथ्वों के सभी परिमंडल एक दूसरे पर निर्भर है इसलिए प्रत्येक परिमंडल एक-दूसरे को प्रभावित करते है। मानव विभिन्न परिमंडलों को प्रभावित करने वाला महत्वपूर्ण सदस्य है। जैसे बढती हुई जनसंख्या को अधिक स्थान चाहिए, जो वनों को काट करके स्थान प्राप्त किया जाता है। परन्तु पेड़ों के काटने से प्रकति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा इससे मृदा अपरदन बढ़ेगा। इसके साथ ही जिस आक्सीजन को हम पेड़ों से प्राप्त करते हैं उसमें भी कमी आएगी। इस प्रकार प्राकृतिक पर्यावरण से जैवमंडल का गहरा संबंध है। उनमें आपसी निर्भरता है। इस निर्भरता को निरन्तर बनाए रखने की जो व्यवस्था है उसे पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं।
जीवमंडल पृथ्वी की वह परत है जिसमें जीवन समाहित है और उसका समर्थन करता है। इसमें सभी जीवित जीव, एक-दूसरे के साथ उनकी बातचीत और पृथ्वी के निर्जीव घटकों, जैसे वायुमंडल, जलमंडल और स्थलमंडल के साथ उनकी बातचीत शामिल है। संक्षेप में, जीवमंडल पृथ्वी पर सभी पारिस्थितिक तंत्रों का कुल योग है।
जीवमंडल के प्रमुख घटक और विशेषताएं
- पारिस्थितिकी तंत्र: पारिस्थितिकी तंत्र जीवित जीवों (पौधे, जानवर, सूक्ष्मजीव) का समुदाय है जो अपने निर्जीव पर्यावरण के साथ बातचीत करते हैं। उदाहरणों में जंगल, घास के मैदान, रेगिस्तान और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र शामिल हैं।
- जैव विविधता: जीवमंडल की विशेषता प्रजातियों की समृद्ध विविधता है। जैव विविधता से तात्पर्य वर्तमान जीवन रूपों की विविधता से है, जिसमें प्रजातियों के भीतर आनुवंशिक विविधता, प्रजातियों के बीच विविधता और पारिस्थितिक तंत्र की विविधता शामिल है।
- खाद्य श्रृंखलाएं और जाल: पारिस्थितिक तंत्र में जीवों के बीच परस्पर क्रिया से खाद्य श्रृंखलाएं और खाद्य जाल बनते हैं। ये विभिन्न पोषी स्तरों के माध्यम से ऊर्जा के प्रवाह और पोषक तत्वों के हस्तांतरण का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- जैव-भू-रासायनिक चक्र: जीवमंडल आवश्यक जैव-भू-रासायनिक चक्रों, जैसे कार्बन चक्र, नाइट्रोजन चक्र और जल चक्र में शामिल होता है। ये चक्र जीवित जीवों के लिए आवश्यक तत्वों के पुनर्चक्रण और उपलब्धता को सुनिश्चित करते हैं।
- अनुकूलन और विकास: जीवमंडल में जीवित जीव अपने पर्यावरण के अनुकूल होते हैं, और लंबी अवधि में, वे विकास से गुजरते हैं। विकासवादी प्रक्रियाएँ जीवन की विविधता और जटिलता में योगदान करती हैं।
- पर्यावास: विभिन्न जीव जीवमंडल के भीतर विशिष्ट वातावरण या आवास में निवास करते हैं जो उनके अस्तित्व के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ प्रदान करते हैं। ये आवास गहरे समुद्र से लेकर पर्वत चोटियों तक हो सकते हैं।
- मानव प्रभाव: मानवीय गतिविधियाँ जीवमंडल पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं। वनों की कटाई, प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और निवास स्थान का विनाश पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को प्रभावित करने वाले मानव-प्रेरित परिवर्तनों के उदाहरण हैं।
जीवमंडल को तीन मुख्य घटकों में विभाजित किया गया है:
- वायुमंडल: पृथ्वी के चारों ओर गैसों की पतली परत जहां जीवन मौजूद है।
- जलमंडल: जल घटक, जिसमें महासागर, नदियाँ, झीलें और भूजल शामिल हैं।
- स्थलमंडल: ठोस पृथ्वी, जो जीवन के लिए भौतिक सब्सट्रेट प्रदान करती है और इसमें पृथ्वी की पपड़ी और ऊपरी मेंटल शामिल है।
जीवमंडल गतिशील और परस्पर जुड़ा हुआ है, एक नाजुक संतुलन के साथ जो जीवन को पनपने की अनुमति देता है। पारिस्थितिक संरक्षण, टिकाऊ संसाधन प्रबंधन और वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान करने के लिए जीवमंडल के भीतर बातचीत को समझना महत्वपूर्ण है।
पृथ्वी के अन्य डोमेन (परिमंडल)
- मैग्नेटोस्फीयर (Magnetosphere)
- क्रायोस्फ़ेयर (Cryosphere)
- टेक्नोस्फीयर (Technosphere)
मैग्नेटोस्फीयर (Magnetosphere)
मैग्नेटोस्फीयर किसी ग्रह जैसे खगोलीय पिंड के आसपास का क्षेत्र है, जिस पर उसका चुंबकीय क्षेत्र हावी होता है। पृथ्वी का मैग्नेटोस्फीयर एक सुरक्षा कवच है जो सौर हवा के साथ ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र की सम्मिलित होने से बना है। यह सूर्य द्वारा उत्सर्जित आवेशित कणों (ज्यादातर इलेक्ट्रॉनों और प्रोटॉन) की एक धारा है।
पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर की मुख्य विशेषताएं
- चुंबकीय क्षेत्र: पृथ्वी का एक द्विध्रुवीय चुंबकीय क्षेत्र है, जो मोटे तौर पर इसके घूर्णन अक्ष के अनुरूप है। चुंबकीय क्षेत्र में एक उत्तरी ध्रुव और एक दक्षिणी ध्रुव होता है।
- सौर पवन अंतःक्रिया: आवेशित कणों से युक्त सौर वायु, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ क्रिया करती है। जैसे ही सौर हवा सूर्य से बाहर की ओर बहती है, यह पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र का सामना करती है और एक चलती नाव के सामने धनुष तरंग के समान एक धनुष झटका पैदा करती है।
- मैग्नेटोपॉज़: वह सीमा जहां सौर हवा का दबाव पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा संतुलित होता है, मैग्नेटोपॉज़ कहलाती है। यह मैग्नेटोस्फीयर के बाहरी किनारे को चिह्नित करता है।
- चुंबकीय पूंछ: सौर हवा पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को सूर्य के विपरीत दिशा में एक लंबी, धूमकेतु जैसी पूंछ में खींचती है, जिसे मैग्नेटोटेल के रूप में जाना जाता है।
- वैन एलन विकिरण बेल्ट: मैग्नेटोस्फीयर के भीतर, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र द्वारा फंसे आवेशित कण विकिरण बेल्ट बनाते हैं। आंतरिक बेल्ट और बाहरी बेल्ट, जिन्हें सामूहिक रूप से वैन एलन बेल्ट के रूप में जाना जाता है, में उच्च-ऊर्जा कण होते हैं।
- ऑरोरास: पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर के साथ सौर हवा से आवेशित कणों की परस्पर क्रिया ध्रुवीय क्षेत्रों के पास ऑरोरा (उत्तरी और दक्षिणी रोशनी) जैसी घटनाएं पैदा करती है।
क्रायोस्फ़ेयर (Cryosphere)
क्रायोस्फीयर पृथ्वी की सतह के उस हिस्से को संदर्भित करता है जहां बर्फ और बर्फ सहित पानी ठोस रूप में मौजूद है। इसमें विभिन्न घटक शामिल हैं, और यह पृथ्वी की जलवायु को विनियमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
क्रायोस्फीयर के प्रमुख तत्व
- ग्लेशियर: बर्फ का बड़ा समूह जो भूमि पर धीरे-धीरे चलता है। ग्लेशियर पर्वतीय क्षेत्रों और ध्रुवीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
- बर्फ की चादरें: 50,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र को कवर करने वाली बर्फ की अत्यधिक विशाल परतें। पृथ्वी पर दो मुख्य बर्फ की चादरें अंटार्कटिक बर्फ की चादर और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर हैं।
- बर्फ की टोपियां: 50,000 वर्ग किलोमीटर से कम क्षेत्र को कवर करने वाली छोटी बर्फ की परतें। बर्फ की टोपियां अक्सर पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती हैं और ये ज़मीन या पानी से घिरी हो सकती हैं।
- समुद्री बर्फ: जमे हुए समुद्री जल जो समुद्र की सतह पर बनता है और तैरता है। यह समुद्र और वायुमंडल के बीच ताप विनिमय को विनियमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- बर्फ का आवरण: जमीन पर बर्फ का मौसमी संचय, जो विभिन्न क्षेत्रों में हो सकता है और पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन के लिए महत्वपूर्ण है।
- पर्माफ्रॉस्ट: वह भूमि जो लगातार कम से कम दो वर्षों तक जमी रहती है। यह ध्रुवीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में व्यापक है और इसमें काफी मात्रा में कार्बन होता है।
टेक्नोस्फीयर (Technosphere)
शब्द “टेक्नोस्फीयर” एक अवधारणा है जिसका उपयोग मानव निर्मित संरचनाओं, प्रणालियों और कलाकृतियों के वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र का वर्णन करने के लिए किया जाता है। पृथ्वी के प्राकृतिक क्षेत्रों, जैसे कि जीवमंडल, स्थलमंडल, जलमंडल और वायुमंडल के समानांतर गढ़ा गया, टेक्नोस्फीयर मानव-निर्मित वातावरण और प्रौद्योगिकियों के कुल योग का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें परस्पर जुड़ी तकनीकी प्रणालियों और कलाकृतियों का विशाल नेटवर्क शामिल है जो आधुनिक दुनिया को आकार देते हैं।
टेक्नोस्फीयर के प्रमुख पहलू
- बुनियादी ढाँचा: भौतिक और संगठनात्मक संरचनाएँ जो मानवीय गतिविधियों का समर्थन करती हैं, जिनमें इमारतें, सड़कें, पुल, बांध, पावर ग्रिड और संचार नेटवर्क शामिल हैं।
- प्रौद्योगिकी: विभिन्न आवश्यकताओं और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मनुष्यों द्वारा बनाए गए उपकरण, मशीनें, उपकरण और प्रणालियाँ। इसमें सूचना प्रौद्योगिकी, परिवहन प्रौद्योगिकी, विनिर्माण प्रौद्योगिकी और बहुत कुछ शामिल हैं।
- औद्योगिक प्रणालियाँ: वस्तुओं और सेवाओं के निष्कर्षण, प्रसंस्करण, विनिर्माण और वितरण में शामिल उद्योगों का जटिल नेटवर्क।
- शहरीकरण: शहरी क्षेत्रों में रहने वाली मानव आबादी में वृद्धि की प्रक्रिया, जिससे शहरों और महानगरीय क्षेत्रों का विकास होता है।
- अपशिष्ट और प्रदूषण: मानव गतिविधियों के उपोत्पाद, जिनमें अपशिष्ट पदार्थ, प्रदूषक और उत्सर्जन शामिल हैं, जिनके महत्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं।
- सांस्कृतिक कलाकृतियाँ: वस्तुएँ, प्रतीक और रचनाएँ जो मानव संस्कृति, इतिहास और पहचान को दर्शाती हैं। इसमें कला, साहित्य, संगीत और अभिव्यक्ति के अन्य रूप शामिल हैं।
- आर्थिक प्रणालियाँ: विभिन्न आर्थिक संरचनाएँ, संस्थाएँ और प्रणालियाँ जो वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण और उपभोग को नियंत्रित करती हैं।
टेक्नोस्फीयर की अवधारणा पृथ्वी के पर्यावरण और पारिस्थितिक तंत्र पर मानव गतिविधियों के परिवर्तनकारी प्रभाव पर प्रकाश डालती है। यह इस विचार को रेखांकित करता है कि, प्राकृतिक प्रणालियों के अलावा, एक मानव निर्मित परत है जो ग्रह की गतिशीलता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है। टेक्नोस्फीयर के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव हैं – सकारात्मक प्रभाव में प्रौद्योगिकी, संचार और जीवन की गुणवत्ता में प्रगति को सक्षम करना आदि है। लेकिन पर्यावरणीय गिरावट, संसाधन की कमी और स्थिरता से संबंधित चुनौतियाँ भी हैं जो इसके नकारात्मक प्रभाव को दर्शाती हैं।
इन्हें भी देखें –
- भारत में ऊर्जा के स्रोत | Sources of Energy in India
- भारत की चट्टानें: संरचना, वर्गीकरण, विशेषताएं| Rocks of India
- भारत की प्राकृतिक वनस्पति | प्रकार एवं विशेषताएँ
- Alphabet: Definition, Vowels, and Consonants
- Future Tense: Definition, Types, and 100+ Examples
- Present Tense: Definition, Types, and 100+ Examples
- Past Tense: Definition, Types, and 100+ Examples
- MEAN vs MERN vs MEVN vs LAMP Stacks