पल्लास की बिल्ली: पूर्वी हिमालय में खोजी गई एक दुर्लभ जंगली प्रजाति

प्रकृति का संसार अनेक रहस्यमयी जीवों और वनस्पतियों से भरा हुआ है। इनमें से कई प्रजातियाँ इतनी दुर्लभ और छिपी हुई होती हैं कि वैज्ञानिक और संरक्षणकर्ता दशकों तक उन्हें ढूँढ़ नहीं पाते। हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में एक वन्यजीव सर्वेक्षण के दौरान ऐसी ही एक दुर्लभ प्रजाति के अस्तित्व का नया सबूत मिला है—पल्लास की बिल्ली (Pallas’s Cat / Otocolobus manul)। यह खोज भारत की जैवविविधता के मानचित्र को और अधिक समृद्ध बनाती है, साथ ही इस बिल्ली की रहस्यमयी जीवनशैली को समझने का अवसर भी देती है।

पल्लास की बिल्ली (Pallas’s Cat) का परिचय

पल्लास की बिल्ली, जिसे मैनुल (Manul) भी कहा जाता है, आकार में पालतू बिल्ली जैसी दिखती है लेकिन इसकी बनावट और व्यवहार इसे पूरी तरह अलग बनाते हैं।

  • इसका वैज्ञानिक नाम Otocolobus manul है।
  • यह प्रजाति लगभग 5.2 मिलियन वर्ष पहले अन्य बिल्लियों से अलग हुई थी।
  • इसे दुनिया की सबसे पुरानी जीवित बिल्लियों में से एक माना जाता है।

वैज्ञानिक वर्गीकरण

  • कुल (Family): Felidae
  • वंश (Genus): Otocolobus
  • प्रजाति (Species): manul

भौगोलिक वितरण और मूल निवास

पल्लास की बिल्ली का मूल स्थान मध्य एशिया माना जाता है। यह मुख्यतः निम्नलिखित देशों में पाई जाती है:

  • मंगोलिया (इसके लिए सबसे बड़ा आवास क्षेत्र)
  • चीन (विशेषकर तिब्बती पठार)
  • रूस (साइबेरिया के कुछ हिस्से)
  • इसके अलावा कज़ाख़िस्तान, ईरान, किर्गिस्तान, नेपाल और भूटान में भी इसके होने के प्रमाण मिलते हैं।

हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में पहली बार कैमरे में कैद होने से यह स्पष्ट हुआ है कि इस बिल्ली का क्षेत्र अब पूर्वी हिमालय तक फैल चुका है।

अरुणाचल प्रदेश में खोज का महत्व

भारत में पल्लास की बिल्ली को पहले केवल लद्दाख और जम्मू–कश्मीर में दर्ज किया गया था। लेकिन 2025 में किए गए नवीनतम सर्वेक्षण ने यह साबित कर दिया कि यह प्रजाति पूर्वी हिमालय तक भी पहुँच चुकी है।

  • यह खोज भारत की जैवविविधता को लेकर नई संभावनाएँ खोलती है।
  • इससे यह भी संकेत मिलता है कि हिमालयी क्षेत्र में अभी भी कई अज्ञात प्रजातियाँ छिपी हो सकती हैं।
  • अरुणाचल प्रदेश जैसे संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्र में इसका पाया जाना संरक्षण की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है।

प्राकृतिक आवास (Habitat)

पल्लास की बिल्ली उन जगहों पर रहती है जहाँ अन्य बिल्लियों के लिए जीवन कठिन होता है।

  • ऊँचाई वाले घास के मैदान
  • चट्टानी स्तेपी (Steppes)
  • ठंडे रेगिस्तान
  • पूर्वी हिमालय में इसे लगभग 5,000 मीटर ऊँचाई तक दर्ज किया गया है।

यह बिल्ली अपने वातावरण के अनुसार ढल चुकी है और अपने घने फर तथा चुपके शिकार करने की क्षमता के कारण आसानी से शिकारियों और इंसानों की नजरों से बची रहती है।

शारीरिक विशेषताएँ (Physical Features)

पल्लास की बिल्ली दिखने में साधारण लग सकती है, लेकिन इसकी शारीरिक संरचना अद्वितीय है।

  • पैर: छोटे और ठोस, जिससे यह चट्टानी जगहों पर आसानी से चल सकती है।
  • कान: गोल और नीचे की ओर लगे होते हैं, जिससे यह छिपकर शिकार कर पाती है।
  • फर: बेहद घना और मुलायम, जो मौसम के अनुसार बदलता है। सर्दियों में यह और भी घना हो जाता है और शरीर को ठंड से बचाता है।
  • आँखें: पुतलियाँ गोल होती हैं (सामान्य बिल्लियों की तरह vertical slit नहीं)।
  • चेहरा: चौड़ा और गोल, जिससे यह और भी अलग दिखती है।

आहार और शिकार की रणनीति

पल्लास की बिल्ली (Pallas’s Cat) एक मांसाहारी (Carnivore) प्रजाति है। इसका भोजन मुख्यतः छोटे जीव होते हैं।

  • चूहे और पिका
  • छिपकलियाँ
  • छोटे पक्षी
  • कभी–कभी यह कीड़े–मकोड़े भी खाती है।

शिकार करने की इसकी शैली बहुत अनोखी है। यह झाड़ियों और पत्थरों के बीच छिपकर बैठती है और अचानक छलांग लगाकर शिकार को पकड़ लेती है।

व्यवहार और जीवनशैली (Lifestyle)

  • यह बिल्ली पूरी तरह एकाकी (Solitary) होती है।
  • स्वभाव से बेहद गुप्त (Secretive) और शर्मीली।
  • अधिकतर समय यह रात (Nocturnal) या सूर्योदय–सूर्यास्त (Crepuscular) के समय सक्रिय रहती है।
  • जंगली जीवन में इसकी आयु लगभग 8–9 वर्ष मानी जाती है।

एक और खास बात यह है कि पल्लास की बिल्ली (Pallas’s Cat) की आवाज सामान्य बिल्लियों से अलग होती है। इसकी आवाज किसी चिल्लाहट या कराह जैसी लगती है।

संरक्षण स्थिति (Conservation Status)

पल्लास की बिल्ली (Pallas’s Cat) को IUCN Red List में Near Threatened (निकट संकटग्रस्त) श्रेणी में रखा गया है।

प्रमुख खतरे

  • आवास का नष्ट होना (मानवीय गतिविधियाँ, सड़क निर्माण, चरागाहों पर दबाव)
  • शिकार और अवैध व्यापार (फर की वजह से)
  • जलवायु परिवर्तन (ऊँचाई वाले क्षेत्रों में तापमान वृद्धि)

संरक्षण उपाय

  • इसके आवास क्षेत्रों को संरक्षित क्षेत्र (Protected Areas) घोषित करना।
  • कैमरा ट्रैपिंग और शोध के ज़रिए आबादी की निगरानी।
  • स्थानीय समुदायों में जागरूकता अभियान चलाना।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वन्यजीव संरक्षण संगठनों के सहयोग से योजनाएँ बनाना।

सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व

पल्लास की बिल्ली (Pallas’s Cat) केवल एक दुर्लभ प्रजाति ही नहीं है, बल्कि यह पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।

  • यह छोटे स्तनधारियों की संख्या को नियंत्रित करती है और इस तरह प्राकृतिक संतुलन बनाए रखती है।
  • कई क्षेत्रों में इसे रहस्यमयी जीव माना जाता है और स्थानीय लोककथाओं में इसका उल्लेख मिलता है।
  • वैज्ञानिक दृष्टि से यह फेलिड परिवार के विकास और अनुकूलन को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

भारत में पल्लास की बिल्ली (Pallas’s Cat) का भविष्य

अरुणाचल प्रदेश में इसका पाया जाना यह साबित करता है कि भारत में अब इसके संरक्षण की आवश्यकता और अधिक बढ़ गई है।

  • पूर्वी हिमालय में बढ़ते पर्यटन और अवसंरचनात्मक परियोजनाएँ इसके लिए खतरा बन सकती हैं।
  • लेकिन यदि समय रहते संरक्षण रणनीतियाँ अपनाई जाएँ, तो यह दुर्लभ प्रजाति सुरक्षित रह सकती है।
  • यह खोज भारत को अंतरराष्ट्रीय संरक्षण प्रयासों में और अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का अवसर देती है।

निष्कर्ष

पल्लास की बिल्ली (Pallas’s Cat) का अरुणाचल प्रदेश में कैमरे में आना केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि यह इस बात का संकेत है कि हमारी धरती पर अभी भी कई ऐसे जीव हैं जिनके बारे में हम बहुत कम जानते हैं।

यह खोज हमें प्रकृति की विविधता के महत्व और उसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी की याद दिलाती है। यदि हम समय रहते इस दिशा में कदम उठाएँ, तो यह रहस्यमयी और दुर्लभ बिल्ली आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जीवित रह पाएगी।


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