जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए बर्बर आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हमले में एक विदेशी नागरिक समेत 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई। इस नृशंस वारदात के तुरंत बाद भारत सरकार ने अपनी ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को क्रियान्वित करते हुए पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाने का फैसला किया। सरकार ने न केवल कड़े शब्दों में हमले की निंदा की, बल्कि पांच-सूत्रीय रणनीतिक कार्ययोजना को भी लागू किया जिसका उद्देश्य पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करना, उसकी गतिविधियों पर अंकुश लगाना और सीमा पार आतंकवाद का मुँहतोड़ जवाब देना है।
कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की आपात बैठक
हमले के तुरंत बाद भारत की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा इकाई, कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) की एक आपात बैठक बुलाई गई। इस महत्वपूर्ण बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की, जिसमें गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल शामिल थे। इस बैठक में एक निर्णायक कार्ययोजना पर सहमति बनी जो न केवल कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को झटका देगी, बल्कि देश की सुरक्षा संरचना को भी और मजबूत करेगी।
भारत की पाँच-सूत्रीय कार्ययोजना | पाकिस्तान पर रणनीतिक प्रहार
1. सिंधु जल संधि का निलंबन – पानी की राजनीति के जरिए दबाव
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) को भारत ने निलंबित कर दिया है। यह संधि सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों के जल बंटवारे को लेकर बनी थी, जिसमें भारत पूर्वी नदियों का और पाकिस्तान पश्चिमी नदियों का उपयोग करता रहा है। हालांकि इस संधि से एकतरफा बाहर निकलने का कानूनी प्रावधान नहीं है, फिर भी भारत ने इसके तहत सभी सहयोगी गतिविधियों—जैसे तकनीकी बैठकें, निगरानी यात्राएं और सूचना साझा करना—को तत्काल प्रभाव से रोक दिया है।
यह कदम पाकिस्तान पर प्रतीकात्मक और रणनीतिक दोनों स्तरों पर दबाव बनाने की दिशा में एक बड़ा संकेत है। पाकिस्तान की कृषि और जल आपूर्ति काफी हद तक पश्चिमी नदियों पर निर्भर करती है, और भारत के इस कदम से उसकी आंतरिक स्थिरता पर असर पड़ सकता है। भारत का यह फैसला तब तक प्रभावी रहेगा जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देना बंद नहीं करता।
2. अटारी-वाघा सीमा का बंद होना – जमीनी संपर्क समाप्त
भारत ने अटारी-वाघा सीमा को पूर्ण रूप से बंद कर दिया है। यह भारत-पाकिस्तान के बीच यात्री और व्यापारिक गतिविधियों का एकमात्र ज़मीनी मार्ग था। इसके बंद होने से दोनों देशों के बीच न केवल व्यापार रुका है बल्कि सीमापार आवाजाही भी पूरी तरह ठप हो गई है। जिन पाकिस्तानी नागरिकों ने वैध दस्तावेजों के साथ भारत में प्रवेश किया है, उन्हें 1 मई 2025 तक देश छोड़ने का निर्देश दिया गया है।
यह कदम पाकिस्तान से भारत में घुसपैठ और आतंकी नेटवर्कों को किसी भी प्रकार की लॉजिस्टिक सप्लाई से वंचित करने के इरादे से उठाया गया है। यह सीमा न केवल माल के लिए, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक संपर्कों का प्रतीक भी रही है। अब यह पूरी तरह ठंडी हो चुकी है।
3. SAARC वीजा छूट योजना का रद्द होना – क्षेत्रीय एकता को झटका
भारत ने पाकिस्तान के नागरिकों के लिए SAARC वीजा छूट योजना (SAARC Visa Exemption Scheme – SVES) को निलंबित कर दिया है। इस योजना के अंतर्गत पाकिस्तान के पत्रकार, व्यापारिक प्रतिनिधि और सरकारी अधिकारी बिना वीजा यात्रा कर सकते थे। अब तक जारी सभी वीजा को रद्द कर दिया गया है और पाकिस्तानी नागरिकों को 48 घंटे के भीतर भारत छोड़ने के आदेश दिए गए हैं।
यह कदम क्षेत्रीय सहयोग की धारणा को गहरा आघात पहुंचाता है। SAARC पहले ही भारत-पाकिस्तान के तनाव के चलते निष्क्रिय अवस्था में है, और अब यह फैसला शायद इस क्षेत्रीय संगठन की समाप्ति की ओर एक और कदम माना जा सकता है।
4. पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों का निष्कासन – रक्षा संवाद का अंत
भारत सरकार ने नई दिल्ली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग में तैनात सभी सैन्य सलाहकारों को “अवांछनीय व्यक्ति” घोषित कर दिया है। इनमें रक्षा, नौसेना और वायु सेना से जुड़े अधिकारी शामिल हैं। उन्हें एक सप्ताह के भीतर देश छोड़ने का आदेश दिया गया है।
साथ ही भारत ने अपने सैन्य सलाहकारों को भी इस्लामाबाद से वापस बुला लिया है। यह कदम यह दर्शाता है कि अब दोनों देशों के बीच रक्षा स्तर पर किसी भी प्रकार का संवाद संभव नहीं है। इससे पहले भी कई बार दोनों देशों के सैन्य सलाहकारों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान होता रहा है, लेकिन अब यह चैनल भी बंद हो चुका है।
5. राजनयिक उपस्थिति में कटौती – संवाद की सीमाएं
भारत ने इस्लामाबाद स्थित अपने उच्चायोग में स्टाफ की संख्या को 55 से घटाकर 30 करने की घोषणा की है। यह कटौती 1 मई 2025 से लागू होगी। यह संकेत है कि भारत और पाकिस्तान के बीच औपचारिक राजनयिक संवाद अब सीमित हो चुका है।
यह कदम पाकिस्तान के राजनयिक और खुफिया नेटवर्क पर भी प्रभाव डालेगा, क्योंकि भारत का मानना है कि पाकिस्तान अपने राजनयिक मिशनों का इस्तेमाल जासूसी और आतंकी नेटवर्कों को सहयोग देने के लिए करता रहा है। अब भारत इस प्रणाली को भी नियंत्रित करने के लिए आगे बढ़ चुका है।
सरकारी प्रतिक्रिया और जमीनी कार्रवाई
गृह मंत्री अमित शाह ने स्वयं पहलगाम का दौरा किया और घायल नागरिकों से अस्पतालों में मिलकर संवेदना व्यक्त की। यह सरकार की संवेदनशीलता और न्याय सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। सुरक्षा बलों ने हमलावरों के खिलाफ व्यापक तलाशी अभियान शुरू कर दिया है। प्रारंभिक खुफिया रिपोर्टों से पता चलता है कि हमले को सात heavily armed आतंकियों ने अंजाम दिया, जिनमें से कई पाकिस्तानी नागरिक हैं।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की निगरानी में यह ऑपरेशन तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। सुरक्षा एजेंसियों को पूर्ण स्वतंत्रता दी गई है कि वे देश की अखंडता के लिए आवश्यक सभी कदम उठाएं।
निर्णायक मोड़ पर भारत की नीति
भारत की यह पाँच-सूत्रीय कार्ययोजना न केवल एक तत्काल जवाब है, बल्कि एक दीर्घकालिक नीति परिवर्तन की ओर भी संकेत करती है। अब भारत यह स्पष्ट कर चुका है कि वह आतंकवाद के खिलाफ न केवल सैन्य स्तर पर, बल्कि कूटनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक मोर्चे पर भी निर्णायक कार्यवाही करेगा।
इस योजना का प्रभाव निकट भविष्य में क्षेत्रीय संतुलन, भारत-पाक संबंधों और अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक समीकरणों पर भी देखने को मिलेगा। भारत ने यह संदेश स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी सूरत में आतंकी हमलों को बर्दाश्त नहीं करेगा और इसके पीछे खड़े राष्ट्र को भी कीमत चुकानी पड़ेगी।
Polity – KnowledgeSthali
Current Affairs – KnowledgeSthali
इन्हें भी देखें –
- सिंधु जल संधि | निलंबन की घोषणा और इसके संभावित प्रभाव
- संधि से संधि-विच्छेद तक | भारत-पाक संबंधों में निर्णायक मोड़
- भारत-पाकिस्तान संबंधों में ऐतिहासिक बदलाव: सिंधु जल संधि का अंत और राजनयिक टूट
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