पुनर्जागरण युग, जो अंग्रेजी में “Renaissance” के रूप में जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक, आर्थिक, और वैज्ञानिक परिवर्तनों का एक काल होता है। पुनर्जागरण का शाब्दिक अर्थ होता है, “फिर से जागना”। यह एक ऐसा समय होता है जब संस्कृति, कला, साहित्य, विज्ञान, और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विशेषतः यूरोप में महत्वपूर्ण बदलाव घटते हैं।
पुनर्जागरण युग (Renaissance) का मूल आरंभ 14वीं सदी के बाद हुआ और 17वीं और 18वीं सदी में अपने उच्चतम शिखर पर पहुंचा। यह एक विशेषतः यूरोपीय वस्त्रांतरण, नए विज्ञानिक अविष्कारों, मानवतावादी विचारधारा, साहित्यिक और कला में नए प्रारंभिकों की उत्पत्ति, और धार्मिक स्वतंत्रता की अभिवृद्धि के साथ जुड़ा हुआ था।
यह एक महत्वपूर्ण काल था जब मानव सोच और ज्ञान में एक बड़े स्तर की प्रगति हुई। यह वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नए अविष्कारों की उत्पत्ति की अवधारणा, विज्ञान में आधुनिक विचारधारा के विकास, गणित, खगोल शास्त्र, नवीन चित्रकला, और नवीन संगीत की प्रगति के साथ जुड़ा था।
साहित्य और कला के क्षेत्र में भी पुनर्जागरण युग ने महत्वपूर्ण परिवर्तनों को देखा। नए लेखकों और कवियों की उत्पत्ति हुई, जिन्होंने नये विचारों, रचनात्मकता, और मानवीयता की प्रतिष्ठा को आगे बढ़ाया। कला के क्षेत्र में भी उत्कृष्टता के नए मानदंड स्थापित किए गए और रचनात्मक नवीनता को प्रोत्साहित किया गया।
इस प्रकार, पुनर्जागरण युग एक सांस्कृतिक प्रक्रिया थी जिसने मानव समाज को आधुनिक युग में ले जाने का मार्ग प्रशस्त किया। यह एक महत्वपूर्ण युग रहा है जो संस्कृति, कला, विज्ञान, और धार्मिकता के क्षेत्र में विश्वासों और परंपराओं को मजबूत करता है।
पुनर्जागरण का अर्थ (Meaning of Renaissance)
पुनर्जागरण (Renaissance) शब्द इतालवी शब्द “Rinascita” से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “फिर से जागना”, “पुनः जन्म” या “पुनर्जीवन”। पुनर्जागरण का अर्थ होता है एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया जिसके द्वारा एक समाज या संस्कृति नए जीवन, प्रगति, और उत्थान की ओर मुख लेता है। यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक काल है जहां संस्कृति, कला, विज्ञान, साहित्य, और धार्मिकता में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे गए।
पुनर्जागरण का अर्थ सामान्य रूप से विविध कार्यक्रमों और परिवर्तनों के समूह को दर्शाने के लिए उपयोग किया जाता है, जिनसे समाज और संस्कृति के विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति होती है। पुनर्जागरण के समय, नए विचारों, आदर्शों, और नये तत्वों का अविष्कार हुआ, जो सामाजिक, सांस्कृतिक, और वैज्ञानिक प्रगति को प्रेरित करते थे।
इसके अलावा, पुनर्जागरण युग में चिंतन, तत्त्वज्ञान, मानवीयता, और विवेक के मामले में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखा गया। इससे उदय हुआ सामाजिक, राष्ट्रीय, और अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों की नई प्रकृति जिसने एक नये युग की शुरुआत की।
पुनर्जागरण किस लिए जाना जाता है?
पुनर्जागरण को दो प्रमुख कारणों के लिए जाना जाता है। पहला कारण सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्थान का होता है, जिसमें विज्ञान, कला, साहित्य, धर्म और दार्शनिक विचार में प्रगति होती है। द्वितीय कारण सामाजिक और राजनीतिक बदलाव का होता है, जिसमें सामाजिक व्यवस्था, संघर्ष और शक्ति के संघर्षों में परिवर्तन होता है।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्थान के माध्यम से, पुनर्जागरण साहित्य, कला, विज्ञान और दार्शनिक विचार में प्रगति लाने का कार्य करता है। यह एक संस्कृतिक राष्ट्रीयता और बाहरी प्रभावों से मुक्त होकर स्वतंत्र और स्वयंपूर्ण विचारधारा का उद्भव है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, अद्वैतवादी विचारधारा, मानवीय महत्वाकांक्षा और स्वावलंबी चिन्तन की प्रोत्साहना करता है।
सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के माध्यम से, पुनर्जागरण सामाजिक व्यवस्था, शक्ति संरचना, शिक्षा, स्त्री सशक्तिकरण, मानव अधिकारों की पहचान और समानता को प्रोत्साहित करता है। यह सामाजिक बदलावों के माध्यम से समाज को नये और समर्थ आधार पर निर्माण करता है, जिसमें विभिन्न समाजी वर्गों के लोग अपने अधिकारों को स्थापित करते हैं।
सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्थान के माध्यम से, पुनर्जागरण मानव समाज को एक नये और प्रगतिशील दृष्टिकोण की ओर आगे बढ़ाने का प्रयास करता है। इससे मानवीय समृद्धि, विज्ञानिक प्रगति, भारतीय संस्कृति और सभ्यता के पुनः स्थापना की ओर एक प्रगतिशील यात्रा शुरू होती है।
मानवतावाद (Humanism)
14वीं शताब्दी में, एक सांस्कृतिक आंदोलन जिसे मानवतावाद कहा जाता है, इटली में प्रगट होने लगा। इसके बहुत सारे सिद्धांतों में, मानवतावाद ने यह समर्थन किया कि मनुष्य अपनी ही ब्रह्मांड का केंद्र है, और लोगों को शिक्षा, पुरातन कला, साहित्य और विज्ञान में मानवीय उपलब्धियों को ग्रहण करना चाहिए।
1450 में, गुटेनबर्ग मुद्रण प्रेस की खोज के कारण यूरोप में संचार में सुधार हुआ और विचारों को तेजी से फैलाने की अनुमति मिली।
संचार में इस आगे बढ़ने के परिणामस्वरूप, फ्रांसिस्को पेट्रार्क और जोवान्नी बोकाच्चियो जैसे प्राचीन मानववादी लेखकों के अनजाने लेखों को मुद्रित किया और जनता को वितरित किया गया, जो परंपरागत ग्रीक और रोमन संस्कृति और मान्यताओं की नवीनीकरण का प्रचार करते थे।
संचार में इस आगे बढ़ने के परिणामस्वरूप, फ्रांसिस्को पेट्रार्क और जोवान्नी बोकाच्चियो जैसे प्राचीन मानववादी लेखकों के अनजाने लेखों को मुद्रित किया और जनता को वितरित किया गया, जो परंपरागत ग्रीक और रोमन संस्कृति और मान्यताओं की नवीनीकरण का प्रचार करते थे।
इसके अलावा, कई विद्वानों को मान्यता है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय और व्यापार की उन्नति ने यूरोप में संस्कृति पर प्रभाव डाला और पुनर्जागरण के लिए मंच स्थापित किया।
यूरोप का पुनर्जागरण (Renaissance in Europe)
यूरोप का पुनर्जागरण (Renaissance in Europe) 14वीं से 17वीं सदी के बीच में हुआ एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और ऐतिहासिक काल है। यह एक क्रांतिकारी धारणा और आधुनिकता की पुनर्स्थापना का समय था, जब विज्ञान, फिलॉसफी, कला, साहित्य और सामाजिक विचारधाराओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन आये। यह उच्च मध्यकालीन संस्कृति से निकलकर एक नई और पुनर्जागृत संस्कृति की उत्पत्ति का समय था।
यूरोप के पुनर्जागरण का मूल उद्गम इटली में हुआ, और विशेषतः इतालियन नगरों जैसे फ़्लोरेंस, रोम और वेनिस में इसका अधिक प्रभाव देखा गया। पुनर्जागरण के कारणवश, इस काल में इतालवी विशेषताएँ जैसे रचनात्मकता, मानवीयता, प्राकृतिकता, और अभिव्यक्ति की महत्वाकांक्षा में वृद्धि हुई।
पुनर्जागरण के काल में, कला में विशेषतः चित्रकला, स्कल्प्चर, संगीत, और वास्तुकला में अद्वितीय योगदान दिया गया। विद्वान और कलाकारों ने ग्रीक और रोमन आदर्शों से प्रेरित होकर नए रूपों, विचारों, और तकनीकों का अविष्कार किया। दाविन्ची, माइकलेंजेलो, राफेल, और टाइटियन जैसे महान कलाकार इस काल के प्रमुख नाम हैं।
विज्ञान और फिलॉसफी में भी पुनर्जागरण युग ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। नए गणितीय और खगोलीय नियमों का अविष्कार हुआ और प्राकृतिक विज्ञान में वैज्ञानिक प्रगति हुई। गैलीलियो गैलीली, जोहन्नेस केपलर, निकोलस कोपर्निकस, और फ्रांसिस बेकन जैसे वैज्ञानिक महापुरुष इस काल के प्रमुख नाम हैं।
इसके अलावा, पुनर्जागरण के काल में मानव सोच, सामाजिक विचारधारा, धर्म, और शिक्षा में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन आये। नए धार्मिक और चिंतन मंच उत्पन्न हुए और मानवीय अधिकारों, स्वतंत्रता के मामले, और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर विचार हुआ। इस प्रकार, पुनर्जागरण युग ने यूरोपीय समाज को नई और आधुनिक दिशा दी और मानव सोच और संस्कृति की मजबूती को प्रमुखता दी।
यूरोप में पुनर्जागरण के कारण (Causes of Renaissance in Europe)
यूरोप में पुनर्जागरण के कारण विभिन्न तत्वों और प्रभावों का संयोग था। निम्नलिखित कुछ मुख्य कारण हैं:
1. व्यापार तथा नगरों का विकास
पुनर्जागरण का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण वाणिज्य-व्यापार का विकास था. नए-नए देशों के साथ लोगों का व्यापारिक सम्बन्ध कायम हुआ और उन्हें वहाँ की सभ्यता-संस्कृति को जानने का अवसर मिला. व्यापार के विकास ने एक नए व्यापारी वर्ग को जन्म दिया। व्यापारी वर्ग का कटु आलोचक और कट्टर विरोधी था। व्यापारी वर्ग ने चिंतकों, विचारकों, साहित्यकारों और वैज्ञानिकों को प्रश्रय दिया। इस प्रकार व्यापारी वर्ग की छत्रछाया में ज्ञान-विज्ञान की प्रगति हुई. व्यापार के विकास से नए-नए शहर बसे. इन शेरोन में व्यापार के सिलसिले में अनेक देशों के व्यापारी आते थे। उनके बीच विचारों का आदान-प्रदान होता था. विचारों के आदान-प्रदान से जनसाधारण का बौद्धिक विकास हुआ।
2. पूरब से संपर्क
जिस समय यूरोप के निवासी बौद्धिक दृष्टि से पिछड़े हुए थे, अरब वाले एक नयी सभ्यता-संस्कृति को जन्म दे चुके थे। अरबों का साम्राज्य स्पेन और उत्तरी अफ्रीका तक फैला हुआ था। वे अपने साम्राज्य-विस्तार के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान को भी फैला रखे थे। अरबों से सम्पर्क के कारण पश्चिम वालों को भी लाभ हुआ।
3. मध्यकालीन पंडितपंथ की परम्परा
अरबों से प्राप्त ज्ञान को आधार मानकर यूरोप के विद्वानों ने अरस्तू के अध्ययन पर जोर दिया। उन्होंने पंडितपंथ परम्परा चलाई. इसमें प्राचीनता तथा प्रामाणिकतावाद की प्रधानता थी। प्राचीन साहित्य को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया. विभिन्न भाषाओं में प्राचीन साहित्य का अनुवाद किया गया. इस विचार-पद्धति में अरस्तू के दर्शन की प्रधानता थी।
4. कागज़ तथा मुद्रण कला का आविष्कार
पुनर्जागरण (Renaissance in Europe) को आगे बढ़ाने में कागज़ और मुद्रणकला का योगदान महत्त्वपूर्ण था. कागज़ और मुद्रणकला के आविष्कार से पुस्तकों की छपाई बड़े पैमाने पर होने लगी। अब साधारण व्यक्ति भी सस्ती दर पर पुस्तकें खरीदकर पढ़ सकता था। पुस्तकें जनसाधारण की भाषा में लिखी जाती थी जिससे ज्ञान-विज्ञान का लाभ साधारण लोगों तक पहुँचने लगा। लोग विभिन्न विचारकों और दार्शनिकों के कृतित्व से अवगत होने लगे। उनमें बौद्धिक जागरूकता आई।
5. मंगोल साम्राज्य का सांस्कृतिक महत्त्व
मंगोल सम्राट कुबलाई खाँ का दरबार पूरब और पश्चिम के विद्वानों का मिलन-स्थल था। उसका दरबार देश-विदेश के विद्वानों, धर्मप्रचारकों और व्यापारियों से भरा रहता था। इन विद्वानों के बीच पारस्परिक विचार-विनमय से ज्ञान-विज्ञान की प्रगति में सहायता मिली. यूरोप के यात्रियों ने गनपाउडर, कागज़ और जहाजी कम्पास की निर्माण-विधि सीखकर अपने देश में इनके प्रयोग का प्रयत्न किया। इस प्रकार मंगोल साम्राज्य ने पुनर्जागरण (Renaissance in Europe) को आगे बढ़ाने में वाहन का काम किया।
6. कुस्तुनतुनिया का पतन
1453 ई. में उस्मानी तुर्कों ने कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया. कुस्तुनतुनिया ज्ञान-विज्ञान का केंद्र था। तुर्कों की विजय के बाद कुस्तुनतुनिया के विद्वान् भागकर यूरोप के देशों में शरण लिए. उन्होंने लोगों का ध्यान प्राचीन साहित्य और ज्ञान की ओर आकृष्ट किया। इससे लोगों में प्राचीन ज्ञान के प्रति श्रद्धा के साथ-साथ नवीन जिज्ञासा उत्पन्न हुई। यही जिज्ञासा पुनर्जागरण (Renaissance in Europe) की आत्मा थी। कुस्तुनतुनिया के पतन का एक और महत्त्वपूर्ण प्रभाव हुआ। यूरोप और पूर्वी देशों के बीच व्यापार का स्थल मार्ग बंद हो गया। अब जलमार्ग से पूर्वी देशों में पहुँचने का प्रयास होने लगा. इसी कर्म में कोलंबस, वास्कोडिगामा और मैगलन ने अनेक देशों का पता लगाया।
7. प्राचीन साहित्य की खोज
तेरहवीं तथा चौदहवीं शताब्दी में विद्वानों ने प्राचीन साहित्य को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया. इनमें पेट्रार्क (Petrarch), दांते (Dante Alighieri), और बेकन के नाम उल्लेखनीय है। विद्वानों ने प्राचीन ग्रन्थों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया और लोगों को गूढ़ विषयों से परिचित कराने का प्रयास किया।
8. मानववादी विचारधारा का प्रभाव
यूरोप की मध्यकालीन सभ्यता कत्रिमता और कोरे आदर्श पर आधारित थी। सांसारिक जीवन को मिथ्या बतलाया जाता था। यूरोप के विश्वविद्यालयों में यूनानी दर्शन का अध्ययन-अध्यापन होता था। रोजर बेकन (Roger Bacon) ने अरस्तू की प्रधानता का विरोध किया और तर्कवाद के सिद्धांत (the principle of rationalism) का प्रतिपादन किया. इससे मानववाद का विकास हुआ। मानववादियों ने चर्च और पादरियों के कट्टरपण की आलोचना की।
9. धर्मयुद्ध का प्रभाव
लगभग दो सौ वर्षों तक पूरब और पश्चिम के बीच धर्मयुद्ध चला. धर्मयुद्ध के योद्धा पूर्वी सभ्यता से प्रभावित हुए। आगे चलकर इन्हीं योद्धाओं ने यूरोप में पुनर्जागरण (Renaissance in Europe) की नींव मजबूत की।
10. सामंतवाद का ह्रास
सामंती प्रथा के कारण किसानों, व्यापारियों, कलाकारों और साधारण जनता को स्वतंत्र चिंतन का अवसर नहीं मिलता था। सामंती युद्धों के कारण वातावरण हमेशा विषाक्त रहता था। किन्तु सामंती प्रथा के पतन से जन-जीवन संतुलित हो गया। शान्ति तथा व्यवस्था कायम हुई. शांतिपूर्ण वातावरण में लोग साहित्य, कला एवं व्यापार की प्रगति की और ध्यान देने लगे. शान्तिपूर्ण वातावरण में लोग साहित्य, कला और व्यापार की प्रगति की ओर ध्यान देने लगे। सामंतवाद का ह्रास का महत्त्वपूर्ण परिणाम राष्ट्रीय राज्यों का विकास था। लोगों में राष्ट्रीय भावना का जन्म हुआ।
पुनर्जागरण के प्रतिभाएँ
कुछ सबसे प्रसिद्ध और ज़बरदस्त पुनर्जागरण बुद्धिजीवियों, कलाकारों, वैज्ञानिकों और लेखकों में शामिल हैं:
- लियोनार्डो दा विंची (1452-1519): इतालवी चित्रकार, वास्तुकार, आविष्कारक और “पुनर्जागरण आदमी” “द मोना लिसा” और “द लास्ट सपर” पेंटिंग के लिए जिम्मेदार हैं।
- डेसिडेरियस इरास्मस (1466-1536): हॉलैंड के विद्वान जिन्होंने उत्तरी यूरोप में मानवतावादी आंदोलन को परिभाषित किया। ग्रीक में नए नियम का अनुवादक।
- रेने डेसकार्टेस (1596-1650): फ्रांसीसी दार्शनिक और गणितज्ञ को आधुनिक दर्शन का जनक माना जाता है। कहने के लिए प्रसिद्ध, “मुझे लगता है; इसलिए मैं कर रहा हूँ।”
- गैलीलियो (1564-1642): इतालवी खगोलशास्त्री, भौतिक विज्ञानी और इंजीनियर जिनके दूरबीन के साथ अग्रणी काम ने उन्हें बृहस्पति के चंद्रमाओं और शनि के छल्लों का वर्णन करने में सक्षम बनाया। एक सूर्यकेंद्रित ब्रह्मांड के अपने विचारों के लिए घर में नजरबंद रखा गया।
- निकोलस कोपरनिकस (1473-1543): गणितज्ञ और खगोलशास्त्री जिन्होंने सूर्यकेंद्रित सौर प्रणाली की अवधारणा के लिए पहला आधुनिक वैज्ञानिक तर्क दिया।
- थॉमस हॉब्स (1588-1679): अंग्रेजी दार्शनिक और “लेविथान” के लेखक।
- जेफ्री चौसर (1343-1400): अंग्रेजी कवि और “द कैंटरबरी टेल्स” के लेखक।
- Giotto (1266-1337): इतालवी चित्रकार और वास्तुकार जिनके मानवीय भावनाओं के अधिक यथार्थवादी चित्रण ने कलाकारों की पीढ़ियों को प्रभावित किया। पडुआ में स्क्रूवेग्नी चैपल में अपने भित्तिचित्रों के लिए जाना जाता है।
- दांते (1265-1321): इतालवी दार्शनिक, कवि, लेखक और राजनीतिक विचारक जिन्होंने “द डिवाइन कॉमेडी” लिखी।
- निकोलो मैकियावेली (1469-1527): इतालवी राजनयिक और दार्शनिक “द प्रिंस” और “द डिस्कोर्स ऑन लिवी” लिखने के लिए प्रसिद्ध हैं।
- टिटियन (1488-1576): इतालवी चित्रकार ने पोप पॉल III और चार्ल्स I और उसके बाद के धार्मिक और पौराणिक चित्रों जैसे “वीनस और एडोनिस” और “मेटामोर्फोसॉज़” के अपने चित्रों के लिए मनाया।
- विलियम टिंडेल (1494-1536): अंग्रेजी बाइबिल के अनुवादक, मानवतावादी और विद्वान ने बाइबिल का अंग्रेजी में अनुवाद करने के लिए दांव पर लगा दिया।
- विलियम बर्ड (1539/40-1623): अंग्रेजी संगीतकार जो अंग्रेजी मेड्रिगल और अपने धार्मिक अंग संगीत के विकास के लिए जाने जाते हैं।
- जॉन मिल्टन (1608-1674): अंग्रेजी कवि और इतिहासकार जिन्होंने महाकाव्य “पैराडाइज लॉस्ट” लिखा था।
- विलियम शेक्सपियर (1564-1616): इंग्लैंड के “राष्ट्रीय कवि” और अब तक के सबसे प्रसिद्ध नाटककार, अपने सोंनेट्स और “रोमियो एंड जूलियट” जैसे नाटकों के लिए जाने जाते हैं।
- डोनाटेल्लो (1386-1466): इतालवी मूर्तिकार ने “डेविड” जैसी सजीव मूर्तियों के लिए मनाया, जिसे मेडिसी परिवार द्वारा कमीशन किया गया था।
- Sandro Botticelli (1445-1510): “शुक्र के जन्म” के इतालवी चित्रकार।
- राफेल (1483-1520): इतालवी चित्रकार जिन्होंने दा विंची और माइकलएंजेलो से सीखा। मैडोना और “एथेंस के स्कूल” के अपने चित्रों के लिए सबसे प्रसिद्ध।
- माइकलएंजेलो (1475-1564): इतालवी मूर्तिकार, चित्रकार और वास्तुकार जिन्होंने “डेविड” को उकेरा और रोम में सिस्टिन चैपल को चित्रित किया।
पुनर्जागरण कला, वास्तुकला और विज्ञान
पुनर्जागरण के दौरान कला, वास्तुकला और विज्ञान निकट से जुड़े हुए थे। वास्तव में, यह एक अनूठा समय था जब अध्ययन के ये क्षेत्र एक साथ सहज रूप से जुड़े हुए थे।
उदाहरण के लिए, दा विंची जैसे कलाकारों ने अपने काम में शरीर रचना विज्ञान जैसे वैज्ञानिक सिद्धांतों को शामिल किया, ताकि वे असाधारण सटीकता के साथ मानव शरीर को फिर से बना सकें।
फ़िलिप्पो ब्रुनेलेस्ची जैसे वास्तुकारों ने विशाल गुंबदों वाली विशाल इमारतों को सटीक रूप से इंजीनियर और डिज़ाइन करने के लिए गणित का अध्ययन किया।
वैज्ञानिक खोजों ने सोच में बड़े बदलाव लाए: गैलीलियो और डेसकार्टेस ने खगोल विज्ञान और गणित का एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया, जबकि कोपरनिकस ने प्रस्तावित किया कि सूर्य, पृथ्वी नहीं, सौर मंडल का केंद्र था।
पुनर्जागरण कला की विशेषता यथार्थवाद और प्रकृतिवाद थी। कलाकारों ने लोगों और वस्तुओं को वास्तविक रूप से चित्रित करने का प्रयास किया।
उन्होंने अपने काम में गहराई जोड़ने के लिए परिप्रेक्ष्य, छाया और प्रकाश जैसी तकनीकों का इस्तेमाल किया। भावना एक और गुण था जिसे कलाकारों ने अपने टुकड़ों में डालने की कोशिश की।
पुनर्जागरण के दौरान निर्मित कुछ सबसे प्रसिद्ध कलात्मक कार्यों में शामिल हैं:
- मोना लिसा (दा विंची)
- द लास्ट सपर (दा विंची)
- डेविड की मूर्ति (माइकलएंजेलो)
- शुक्र का जन्म (बॉटलिकली)
- आदम की रचना (माइकल एंजेलो)
पुनर्जागरण अन्वेषण
जबकि कई कलाकारों और विचारकों ने नए विचारों को व्यक्त करने के लिए अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल किया, कुछ यूरोपीय अपने आसपास की दुनिया के बारे में अधिक जानने के लिए समुद्र में गए। डिस्कवरी के युग के रूप में ज्ञात अवधि में, कई महत्वपूर्ण अन्वेषण किए गए थे।
मल्लाहों ने पूरे विश्व की यात्रा करने के लिए अभियान शुरू किया। उन्होंने अमेरिका, भारत और सुदूर पूर्व के लिए नए शिपिंग मार्गों की खोज की और खोजकर्ताओं ने उन क्षेत्रों में ट्रेकिंग की जो पूरी तरह से मैप नहीं किए गए थे।
फर्डिनेंड मैगलन, क्रिस्टोफर कोलंबस, अमेरिगो वेस्पुसी (जिनके नाम पर अमेरिका का नाम रखा गया है), मार्को पोलो, पोंस डी लियोन, वास्को नुनेज़ डी बाल्बोआ, हर्नांडो डी सोटो और अन्य खोजकर्ताओं द्वारा प्रसिद्ध यात्राएँ की गईं।
पुनर्जागरण धर्म
मानवतावाद ने पुनर्जागरण के दौरान रोमन कैथोलिक चर्च की भूमिका पर सवाल उठाने के लिए यूरोपीय लोगों को प्रोत्साहित किया।
जैसे-जैसे अधिक लोगों ने पढ़ना, लिखना और विचारों की व्याख्या करना सीखा, उन्होंने धर्म को बारीकी से जांचना और आलोचना करना शुरू कर दिया क्योंकि वे इसे जानते थे। इसके अलावा, प्रिंटिंग प्रेस ने बाइबिल सहित ग्रंथों को आसानी से पुन: प्रस्तुत करने और लोगों द्वारा स्वयं, पहली बार व्यापक रूप से पढ़ने की अनुमति दी।
16 वीं शताब्दी में, एक जर्मन भिक्षु मार्टिन लूथर ने प्रोटेस्टेंट रिफॉर्मेशन का नेतृत्व किया – एक क्रांतिकारी आंदोलन जिसने कैथोलिक चर्च में विभाजन का कारण बना। लूथर ने चर्च की कई प्रथाओं पर सवाल उठाया और क्या वे बाइबल की शिक्षाओं के अनुरूप हैं।
परिणामस्वरूप, ईसाई धर्म का एक नया रूप, जिसे प्रोटेस्टेंटवाद के रूप में जाना जाता है, बनाया गया।
पुनर्जागरण का अंत
विद्वानों का मानना है कि पुनर्जागरण का अंत कई जटिल कारकों का परिणाम था।
15वीं शताब्दी के अंत तक, कई युद्धों ने इतालवी प्रायद्वीप को त्रस्त कर दिया था। इतालवी क्षेत्रों के लिए लड़ रहे स्पेनिश, फ्रांसीसी और जर्मन आक्रमणकारियों ने इस क्षेत्र में व्यवधान और अस्थिरता पैदा कर दी।
इसके अलावा, बदलते व्यापार मार्गों ने आर्थिक गिरावट की अवधि को जन्म दिया और उस धन की मात्रा को सीमित कर दिया जो धनी योगदानकर्ता कलाओं पर खर्च कर सकते थे।
बाद में, काउंटर-रिफॉर्मेशन नामक एक आंदोलन में, कैथोलिक चर्च ने प्रोटेस्टेंट सुधार के जवाब में कलाकारों और लेखकों को सेंसर कर दिया। कई पुनर्जागरण विचारकों को बहुत अधिक साहसिक होने का डर था, जिसने रचनात्मकता को दबा दिया।
इसके अलावा, 1545 में, ट्रेंट की परिषद ने रोमन न्यायाधिकरण की स्थापना की, जिसने मानवतावाद और कैथोलिक चर्च को चुनौती देने वाले किसी भी विचार को मौत की सजा का दंड दिया।
17 वीं शताब्दी की शुरुआत में, पुनर्जागरण आंदोलन समाप्त हो गया था, जिससे प्रबुद्धता के युग का मार्ग प्रशस्त हुआ।
इतिहासकारों का मानना है कि पुनर्जागरण के पतन के कई कारण थे, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
- इतालवी प्रायद्वीप स्पेनिश और फ्रांसीसी जैसे यूरोपीय गुटों से युद्ध करके कई विजय और युद्धों का केंद्र बिंदु था। इसने अस्थिरता पैदा की और नए विचारों के प्रसार को सीमित करते हुए इस क्षेत्र को बाधित कर दिया।
- व्यापार मार्गों में परिवर्तन ने कला और वास्तुकला में खर्च किए जा सकने वाले धन की मात्रा को सीमित कर दिया, अधिकांश धन को नए अन्वेषण बेड़े के वित्तपोषण के लिए मोड़ दिया गया।
- सुधार के जवाब में, काउंटर-रिफॉर्मेशन था जिसने कलाकारों और लेखकों को सेंसर किया, जिससे रचनात्मकता का दम घुट गया। 1545 में ट्रेंट की परिषद ने मानवतावाद या कैथोलिक चर्च की शिक्षाओं का खंडन करने वाले किसी भी अन्य विचार को पाषंड के रूप में मृत्युदंड के रूप में घोषित किया। परिणामस्वरूप, कई सुधारवादी और विचारक इटली से उत्तर की ओर अधिक मेहमाननवाज देशों में भाग गए
पुनर्जागरण पर बहस
जबकि कई विद्वान पुनर्जागरण को यूरोपीय इतिहास में एक अद्वितीय और रोमांचक समय के रूप में देखते हैं, दूसरों का तर्क है कि यह अवधि मध्य युग से बहुत अलग नहीं थी और यह कि दोनों युग पारंपरिक खातों की तुलना में अधिक ओवरलैप किए गए थे।
साथ ही, कुछ आधुनिक इतिहासकारों का मानना है कि मध्य युग की एक सांस्कृतिक पहचान थी जिसे पूरे इतिहास में कम करके आंका गया और पुनर्जागरण युग ने इसे छाया कर दिया।
जबकि पुनर्जागरण के सटीक समय और समग्र प्रभाव पर कभी-कभी बहस होती है, इस बात पर थोड़ा विवाद है कि इस अवधि की घटनाओं ने अंततः उन प्रगति को जन्म दिया जिसने लोगों को उनके आसपास की दुनिया को समझने और व्याख्या करने के तरीके को बदल दिया।
इन्हें भी देखें-
- ब्रिटिश साम्राज्य 16वीं–20वीं सदी- एक समय की महाशक्ति और विचारों का परिवर्तन
- मराठा साम्राज्य MARATHA EMPIRE (1674 – 1818)
- मराठा साम्राज्य के शासक और पेशवा
- ब्रिटिश राज
- उपनिवेशवाद (Colonialism) (ल.15वीं – 20वीं शताब्दी ई.)
- अमेरिका की खोज (1492 ई.)
- क्रिस्टोफर कोलंबस (Christopher Columbus)(1451-1506)
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिनियम (1773-1945)
- भारत में खनिज संसाधन | Minerals in India
- 250+ पुस्तकें एवं उनके लेखक | Books and their Authors
- भारत की मिट्टी | मृदा | वर्गीकरण और विशेषताएं
- भारत की प्राकृतिक वनस्पति | प्रकार एवं विशेषताएँ
- कोपेन के अनुसार भारत के जलवायु प्रदेश | Climate regions of India according to Koppen