पुर्तगाली साम्राज्य | 1415 ई. – 1999 ई.

पुर्तगाली साम्राज्य, 1415 ईस्वी से 1999 ईस्वी तक स्थापित रहा एक क्षेत्रीय और ग्लोबल सत्ताधारी था। इस साम्राज्य की शुरुआत 15वीं सदी में हुई, जब पुर्तगाली सम्राट हेनरी दस्त द्वारा नेविगेशन के क्षेत्र में पहले कदम के रूप में मारको आइलैंड (मोरक्को) के तट पर कब्जा किया गया। इससे शुरू हुए संचारी और खोजी अभियानों ने उन्हें अफ्रीका, आशिया, अमेरिका और अंटार्कटिका में व्यापारिक और कार्यकर्ता मौजूद रखने की अनुमति दी। यह उन्हें विश्वव्यापी सम्राटीय शक्ति बनाने की अनुमति देने के साथ ही उन्हें उच्चतम गुणवत्ता के सामाजिक और सांस्कृतिक स्तरों पर भी सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त करने की अनुमति दी।

पुर्तगाली साम्राज्य के शासन काल में वे सम्राटीय उद्योग, व्यापार और खोज क्षेत्र में एक अग्रणी भूमिका निभाएं। इसके अलावा, वे खूबसूरत संरचनाएं और विशाल सम्राटीय प्रशासनिक और धार्मिक स्थानों का निर्माण करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। पुर्तगाली साम्राज्य ने वाणिज्यिक रूप से महत्त्वपूर्ण वस्तुएं और उत्पादों का निर्यात किया, जिसने उन्हें धनी बनाया और उनकी साम्राज्यवादी शक्ति को बढ़ाया।

पुर्तगाली साम्राज्य

हालांकि, 20वीं सदी के आदि में, पुर्तगाली साम्राज्य की घाटी शुरू हो गई, जिसमें उन्हें अपने उपनिवेशों का प्रबंधन करने में असमर्थता का सामना करना पड़ा। उनकी सत्ता कमजोर हो गई और उनके संपत्तियों की बहुत सी खो गई। 1974 में, पुर्तगाल की विदेश नीति के परिणामस्वरूप, उनके सभी संपत्तियों को अदालती संविधान और स्थानीय प्रशासनिक एकाधिकार के माध्यम से वापस लिया गया। इससे पहले, 1951 में, पुर्तगाल की उनकी उपनिवेशों में स्वाधीनता आयोगों की स्थापना हुई थी, जिससे स्थानीय नीति निर्णय ले लिए जा सके।

अंततः, 1974 में उपनिवेशों की स्वाधीनता के पश्चात, 1999 ईस्वी में मैकाओ समझौता के तहत होंगकांग पुर्तगाली साम्राज्य का अंत हुआ। इससे पुर्तगाली साम्राज्य के 500 साल के शासनकाल का अंत हुआ और पुर्तगाल एक गणराज्य बन गया।

पुर्तगाली साम्राज्य का इतिहास

राजधानीलिस्बन
रियो डी जनेरियो
सामान्य भाषाएँपुर्तगाली
धर्मरोमन कैथोलिक धर्म 
सरकारराजशाही (1415-1910)गणराज्य (1910-1999)
सम्राट 
• 1415–1433 (प्रथम)जोआओ आई
• 1908-1910 (अंतिम)मैनुअल द्वितीय
राष्ट्रपतियों 
• 1911-1915 (प्रथम)मैनुअल डी अरियागा
• 1996–1999 (अंतिम)जॉर्ज संपायो
प्रधान मंत्री 
• 1834–1835 (प्रथम)पेड्रो डी सूसा होल्स्टीन
• 1995–1999 (अंतिम)एंटोनियो गुटेरेस
इतिहास
•  सेउटा की विजय1415
•  भारत के लिए समुद्री मार्ग1498
•  औपनिवेशिक ब्राजील1500
•  इबेरियन यूनियन1580-1640
•  डच-पुर्तगाली युद्ध1588-1654
•  पुर्तगाली बहाली युद्ध1640-1668
•  बेसिन पर मराठा आक्रमण1737-1739
•  ब्राजील की स्वतंत्रता1822
•  भारतीय प्रांतों की हानि1961
•  पुर्तगाली औपनिवेशिक युद्ध1961-1974
•  कार्नेशन क्रांति1974-1975
•  मकाऊ को सौंपना1999

पुर्तगाली साम्राज्य, जिसे आमतौर पर पुर्तगाली साम्राज्य के नाम से जाना जाता है, विशाल भूमि-विस्तार को कवर करता हुआ लगभग पांच सदीयों तक अपनी सत्ता बनाये रखा। यह एक यूरोपीय साम्राज्य था जो विश्व भर में आप्रवासी क्षेत्रों और उत्पादन सेतुओं का संचालन करता था।

पुर्तगाली साम्राज्य का इतिहास 15वीं शताब्दी से शुरू होता है, जब हेनरी द्वितीय (Henry the Navigator) नामक पुर्तगाली राजकुमार ने समुद्री खोज की प्रेरणा दी और समुद्री वाणिज्य एवं क्षेत्रों के खोज के लिए प्रेरित किया। उनके योजनाबद्ध अनुसार, पुर्तगाली खोजकर्ताओं ने विशाल समुद्री क्षेत्रों को खोजा, उन्हें शासित किया और उनमें व्यापार की गतिविधियों की शुरुआत की। इसके परिणामस्वरूप, पुर्तगाली द्वारा उत्पन्न विपणन नेटवर्क ने दुनिया भर में व्यापार के द्वार खोले और पुर्तगाली साम्राज्य को धनी बनाया।

16वीं शताब्दी में, पुर्तगाली साम्राज्य ने विश्वास प्रस्ताव (Treaty of Tordesillas) के माध्यम से स्पेन से समुद्री खोज क्षेत्रों के बांटवारे को स्थापित किया। इस समझौते के अनुसार, उन्हें पश्चिमी खोज क्षेत्रों का अधिकार मिला, जबकि स्पेन को पूर्वी खोज क्षेत्रों का अधिकार मिला। इससे पुर्तगाली साम्राज्य को महत्त्वपूर्ण भू-विस्तार मिला और वे विशाल समुद्री क्षेत्रों को शासित करने लगे।

पुर्तगाली साम्राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र कोंकन और गोवा (Goa) था, जहां पुर्तगाली ने दक्षिण एशिया में अपनी अधिकारिता स्थापित की। वे मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और नगरी पोर्त (Nagapattinam) जैसे अन्य शहरों को भी शासित करते थे।

17वीं शताब्दी में, पुर्तगाली साम्राज्य अपनी विस्तृत आदिमांशों को सुरक्षित रखने के लिए नये किलों और उत्पादन सेतुओं की निर्माण कार्यक्रम शुरू कर दिया। यह कार्यक्रम उत्पादन, वाणिज्य और सुरक्षा के प्रतिष्ठानों के रूप में सेतुओं की निर्माण को समर्पित था।

पुर्तगाली साम्राज्य का झंडा

हालांकि, 18वीं शताब्दी में पुर्तगाली साम्राज्य अपनी सत्ता कमजोर करने लगा, और उन्हें विभिन्न युद्धों और आंतरविदेशी हमलों का सामना करना पड़ा। साम्राज्य के अंतिम दशकों में, विप्लवों और स्वतंत्रता संग्रामों ने पुर्तगाली साम्राज्य को दबाया और 1910 ईस्वी में पुर्तगाल गणतंत्र घोषित हो गया। इसके बाद, पुर्तगाली साम्राज्य अपनी क्षेत्रीय सत्ता कमजोर करते रहे और उन्होंने अपने उत्पादन सेतुओं को कम कर दिया। साम्राज्य का अंत 1999 ईस्वी में हुआ, जब मकाओ (Macau) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीन को सौंप दिया गया।

यहां तक कि आज भी, पुर्तगाल गोवा, दमान और दीव (Daman and Diu), और पोंडिचेरी (Pondicherry) जैसे क्षेत्रों को अपने संबंधीय उपनिवेशों के रूप में संघ क्षेत्रों के रूप में संभालता है।

समुद्री एशिया, अफ्रीका और हिंद महासागर के साथ व्यापार

चीन और जापान

पुर्तगाली साम्राज्य ने चीन और जापान पर अपना प्रभाव बढ़ाने का प्रयास किया है। चीन में पुर्तगाली व्यापारियों और खोजकर्ताओं ने उच्चारणीय सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संबंधों का निर्माण किया। 16वीं और 17वीं सदी में पुर्तगाली नेविगेटर्स जैसे वास्को द गामा, फ्रांसिस्को द अलमेदा और फर्नांदो मेंदेस पिंटो ने चीन के तटों पर नगरों की स्थापना की और व्यापार और व्यापारी संबंधों को मजबूत किया।

हालांकि, उनकी राजनीतिक और सांस्कृतिक दखल के कारण वे चीनी सम्राटों के साथ अच्छी संबंध नहीं बना सके और अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए सामरिक संघर्ष का सामना करना पड़ा। विदेशी दखल की वजह से पुर्तगाली स्थायी आधिकार नहीं स्थापित कर सका और बाद में अन्य यूरोपीय देशों ने चीन में अपनी प्रभुता स्थापित की।

जापान में भी पुर्तगाली साम्राज्य ने अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की। 16वीं सदी में पुर्तगाली नेविगेटर्स जैसे फ्रांसिस्को द अलमेदा, आलफ़ॉन्सो द अल्बुकेर्क और त्रिस्ताओ द मेंदोंसा ने जापान के साथ व्यापार और व्यापारी संबंधों की शुरुआत की। उन्होंने नागसाकी नगर में व्यापार केंद्र स्थापित किया और वाणिज्यिक संबंधों को मजबूत किया।

हालांकि, उनकी राजनीतिक और सांस्कृतिक दखल के कारण वे जापानी शासकों के साथ अच्छे संबंध नहीं बना सके और उन्हें अपने प्रभाव को स्थायी आधिकार में बदलने के लिए सामरिक संघर्ष का सामना करना पड़ा। बाद में अन्य यूरोपीय देशों ने जापान में अपनी प्रभुता स्थापित की और पुर्तगाली साम्राज्य का प्रभाव धीमा हो गया।

अमेरिका में औपनिवेशीकरण के प्रयास

कनाडा

टोर्डेसिल्लस की सन्धि के आधार पर, पुर्तगाली शासनकाल के दौरान पुर्तगाली महाराजाओं, जॉन II और मैनुअल I के अधीन, उत्तरी अमेरिका में क्षेत्रीय अधिकार का दावा किया गया। 1497 और 1498 में जॉन कैबोट द्वारा उत्तरी अमेरिका की खोज की गई और उसके बाद 1499 और 1500 में जोआओ फर्नांदीस लावराडोर ने ग्रीनलैंड और कनाडा के उत्तरी अटलांटिक तटों की खोज की। जिम्मेदारी के आधार पर, उन्होंने उन स्थानों के लिए “लैब्राडोर” नामक प्रांत का दावा किया।

इसके बाद, 1500-1501 और 1502 में, गैस्पार और मिगुएल कोर्टे-रियल ने न्यूफ़ाउंडलैंड और लैब्राडोर का स्थान पता किया और ग्रीनलैंड को पुर्तगाल के दावे के तहत शामिल किया। 1506 में, मैनुअल I ने न्यूफ़ाउंडलैंड जल में मछली पालन के लिए करों का निर्माण किया।

1521 के आसपास, जोआओ अल्वारेस फागुंडेस को सेंट लॉरेंस की खाड़ी के आंतरिक द्वीपों के लिए दान के अधिकार मिले और केप ब्रेटन द्वीप पर कॉड मछली पकड़ने के लिए एक समझौता हुआ। हालांकि, मूल निवासी और यूरोपीय मत्स्य पालन के प्रतिस्पर्धी दबाव ने इसे स्थायी आधार नहीं दिया और पांच साल बाद इसे छोड़ दिया गया। आगामी शताब्दी में न्यूफ़ाउंडलैंड में बस्तियाँ स्थापित करने के कई प्रयास विफल रहे।

पोम्बालिन और पोस्ट-पोम्बालिन ब्राजील

पोम्बालिन और पोस्ट-पोम्बालिन ब्राजील के इतिहास में महत्वपूर्ण अवधारणाएं हैं। ये दो अवधारणाएं ब्राजील के कोलोनियल और आधुनिक अवधियों को विभाजित करती हैं।

पोम्बालिन और पोस्ट-पोम्बालिन ब्राजील

पोम्बालिन काल (Portuguese: Período Pombalino) 1750 ईस्वी से 1777 ईस्वी तक चला। इस काल में मारकीज पोम्बल, जोसे इ, डे कारवाल्हो ए सिल्वा के नाम से भी जाने जाते हैं, पुर्तगाली साम्राज्य के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत थे। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में सुधार किए और ब्राजीली समाज को सुधारने के लिए कई प्रयास किए। वे शिक्षा, विज्ञान, आर्थिक विकास, न्यायिक सुधार और प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार करने पर ध्यान केंद्रित करते थे। पोम्बालिन काल ब्राजील के आधुनिकीकरण की शुरुआत मानी जाती है और इसे ब्राजीली इतिहास का एक महत्वपूर्ण चरण माना जाता है।

पोस्ट-पोम्बालिन काल (Portuguese: Período Pós-Pombalino) पोम्बालिन काल के उत्तरार्ध से शुरू होता है और 1777 ईस्वी से 1822 ईस्वी तक चलता है। इस काल में ब्राजील में विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन हुए। इस अवधि में ब्राजीली समाज में आंतरिक सुधार और स्वतंत्रता की आवाजाही की मांग प्रबल हुई। ब्राजीली स्वतंत्रता संग्राम (Brazilian Independence Movement) इसी अवधि में अपने उच्चारण की शुरुआत की और 1822 ईस्वी में ब्राजील ने पुर्तगाल से आधिकारिक रूप से अलगवाद मान्यता प्राप्त की। इससे पोस्ट-पोम्बालिन काल ब्राजील के आधुनिक युग की शुरुआत मानी जाती है।

ये दो अवधियाँ ब्राजील के इतिहास में महत्वपूर्ण रूप से यद्दस्त रखी जाती हैं, जहां पोम्बालिन काल ने आधुनिकीकरण की ओर बढ़ावा दिया और पोस्ट-पोम्बालिन काल ने ब्राजीली स्वतंत्रता की प्रक्रिया की शुरुआत की।

ब्राजील की स्वतंत्रता

ब्राजील की स्वतंत्रता

ब्राजील की स्वतंत्रता की प्रक्रिया 19वीं शताब्दी के अंत में शुरू हुई और 1822 ईस्वी में पूर्ण हुई। यह स्वतंत्रता पुर्तगाली साम्राज्य से आलगवाद की प्रक्रिया थी।

स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा ब्राजील के अंतरंग मामलों में, विदेशी शासन के खिलाफ आवाज बढ़ने में और पुर्तगाली शासन के प्रतिक्रियाओं में मिली। पोस्ट-पोम्बालिन काल के दौरान, जब मार्कीज पोम्बल प्रधानमंत्री थे, ब्राजील में आंतरिक सुधार और स्वतंत्रता की मांगें उभरने लगीं।

1822 ईस्वी में, ब्राजील के शासक पोर्तुगीज राजा जोवाओ वी ने ब्राजील को आधिकारिक रूप से अलगवाद की मान्यता दी। इससे ब्राजील का एक स्वतंत्र राज्य बना और वह स्वतंत्र राजा की याचिका के तहत चलने लगा।

यह स्वतंत्रता संग्राम विशेषतः मुलाधारित होकर ब्राजीली समाज की आवाजाही पर आधारित थी। उसके पश्चात, ब्राजील ने अपना स्वतंत्रता स्थापित करने के लिए अपनी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रणालियों का विकास किया।

इस प्रक्रिया के बाद से ब्राजील ने अपनी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखा है और विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक उन्नति की प्रक्रिया में अग्रसर रहा है।

प्रथम विश्व युद्ध

प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) एक वैश्विक संघर्ष था जो द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व में लगभग 4 वर्षों तक चला। यह युद्ध मुख्य रूप से यूरोप में संपदा का कारण था, लेकिन इसने दुनिया के अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित किया। इस युद्ध में महाशक्तियों के बीच आपसी विरोध, गणराज्य और साम्राज्यवाद की संघर्ष, और विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों का प्रभावमयी युद्ध था।

इस युद्ध की मुख्य पक्षियों में थे यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, रूस संघ, इटली, अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी, औस्ट्रेलिया, कनाडा, भारतीय राज्य, चीन, जापान आदि।

इस युद्ध के परिणामस्वरूप लाखों लोगों की मृत्यु हुई और असंख्य लोगों को घायल हो गए। युद्ध की सबसे महत्वपूर्ण परिणामों में थे नई युद्धपोतों के प्रगटन, विमानों की उड़ान, विद्युत तरंगों के द्वारा संचार की तकनीक, सामरिक और राजनीतिक मानदंडों में परिवर्तन, और विश्व साम्राज्य की अंतिम अवधारणा के चिन्ह।

प्रथम विश्व युद्ध के बाद विश्व में बड़ी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन हुए और एक नई विश्वक्रम की शुरुआत हुई। यह युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के लिए एक महत्वपूर्ण कारण बना और उसकी जड़ों में से एक थी।

औपनिवेशीकरण (1951-1999)

औपनिवेशीकरण (1951-1999) या वाणिज्यिकरण, ब्राजील के इतिहास में एक महत्वपूर्ण कालावधि थी जब देश अपनी आर्थिक नीतियों और व्यापारिक प्रथाओं में परिवर्तन देखा। इस अवधि में ब्राजील ने अपनी अर्थव्यवस्था को औपनिवेशिकृत किया, आर्थिक सुधार किए और विभिन्न क्षेत्रों में नई नीतियां अपनाई।

औपनिवेशीकरण की शुरुआत ब्राजील के राष्ट्रीय विकास की एक प्राथमिकता बन गई। 1950 के दशक में ब्राजील ने आर्थिक नीतियों में परिवर्तन की शुरुआत की, जिसमें वाणिज्यिक नीतियों के अनुकरण का प्रयास किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य था विदेशी निवेशों को आकर्षित करना, विदेशी व्यापार को बढ़ावा देना और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ब्राजील की भूमिका को मजबूत करना।

औपनिवेशीकरण के दौरान ब्राजील ने अपनी उद्योगिकरण प्रक्रिया को तेजी से बढ़ाया, नई औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की और विदेशी निवेशों को बढ़ावा दिया। यह आर्थिक सुधारों के माध्यम से अधिक नौकरियों की उपलब्धता, उत्पादकता में वृद्धि और वित्तीय स्थिरता के साथ ब्राजीली अर्थव्यवस्था को मजबूत करने का लक्ष्य रखता था।

इस समय के दौरान ब्राजील ने विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक निवेश नीतियां और उपकरण स्थापित किए, जिनसे विदेशी पूंजी की वृद्धि हुई और देश के अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि हुई। औपनिवेशीकरण के दौरान ब्राजील ने विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण नीतियों को लागू किया, जैसे कि उद्योग नीति, विदेशी नीति, आर्थिक सुधार नीति, आर्थिक गणना और अनुदान नीति।

औपनिवेशीकरण के परिणामस्वरूप, ब्राजील की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ, विदेशी निवेशों और व्यापार का वृद्धि हुआ और देश की व्यापारिक प्रभुता में वृद्धि हुई। इसके अलावा, औपनिवेशीकरण ने ब्राजील की विदेशी संबंधों को मजबूत बनाया, आर्थिक संबंधों को सुधारा और देश की आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

यह अवधि ब्राजील के विकास की एक महत्वपूर्ण चरण थी और देश को आर्थिक और राजनीतिक माध्यमों में मजबूती प्रदान करने में सहायता की। ब्राजील के औपनिवेशीकरण की प्रक्रिया अभी भी जारी है और देश आर्थिक विकास की दिशा में प्रगति कर रहा है।

पुर्तगाली साम्राज्य का पतन

पुर्तगाली साम्राज्य का पतन सन् 1999 ईस्वी में हुआ। पुर्तगाली साम्राज्य का पतन उसकी उपनिवेशीकरण नीति के परिणामस्वरूप हुआ, जिसका प्रारंभ 1951 ईस्वी में हुआ था। इस अवधि में, पुर्तगाल ने अपने संपत्ति का महत्वाकांक्षी विक्रय किया और अपने साम्राज्यिक स्थान को खो दिया।

1951 ईस्वी में, पुर्तगाल ने अपने संपत्ति के विक्रय के लिए एक विशेष स्थायी समझौता किया, जिसका नाम था Estado Novo की संधि। इस समझौते के अनुसार, पुर्तगाल ने अपने संपत्ति के अधिकांश भागों को देशों को वापस कर दिया, जिसमें अंगोला, मोजाम्बिक, गिनी-बिसाउ, साओ टोमे और प्रिंसिपे, और इस्पानियोल सहायता के तहत टांगियरा (Tangier) भी शामिल था।

साम्राज्य के इस पतन के बाद, पुर्तगाल ने अपना उपनिवेशीकरण कार्यक्रम पूरी तरह से समाप्त कर दिया और एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में स्थापित हो गया। आधिकारिक रूप से, पुर्तगाल का संविधानिक नाम अब गणराज्य पुर्तगाल (Republica Portuguesa) है। इसके बाद से, पुर्तगाल एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बन गया है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।


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