पृथ्वी का घूर्णन (Rotation of Earth) एक अत्यंत जटिल, लेकिन हमारे दैनिक जीवन का स्वाभाविक हिस्सा बन चुकी खगोलीय प्रक्रिया है। पृथ्वी निरंतर एक काल्पनिक अक्ष (Axis) पर घूमती रहती है, जो उत्तरी ध्रुव, पृथ्वी के केंद्र और दक्षिणी ध्रुव से होकर गुजरती है। इसी घूर्णन के कारण पृथ्वी पर दिन और रात का चक्र उत्पन्न होता है। सौर मंडल के अन्य ग्रहों की तरह पृथ्वी का भी यह घूर्णन एक मौलिक भौतिकीय गतिविधि है, जो ब्रह्मांडीय समय-मान और खगोलीय गतिकी को प्रभावित करती है।
पृथ्वी का यह घूर्णन सदैव एक समान नहीं रहता। हाल के वर्षों में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के घूर्णन में सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण बदलावों को दर्ज किया है, जो दिन की लंबाई (Length of Day) को मिलीसेकंड (Milliseconds) के स्तर पर प्रभावित करते हैं। 9 जुलाई, 22 जुलाई और 5 अगस्त 2025 को पृथ्वी के अपेक्षाकृत थोड़ा तेज घूमने की उम्मीद जताई गई है, जिसके चलते प्रतिदिन की लंबाई लगभग 1.3 से 1.51 मिलीसेकंड तक कम हो सकती है।
यह स्थिति केवल खगोलीय विज्ञानियों के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक समय प्रबंधन प्रणालियों और नेविगेशन प्रणाली (Navigation System) के लिए भी गहन वैज्ञानिक रुचि का विषय बन गई है। इस लेख में पृथ्वी के घूर्णन से जुड़े वैज्ञानिक तथ्यों, घूर्णन गति में हुए परिवर्तनों, उनके कारणों और संभावित प्रभावों का विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जा रहा है।
पृथ्वी के घूर्णन का वैज्ञानिक आधार
पृथ्वी का घूर्णन पश्चिम से पूर्व दिशा में होता है, जिसे प्रतिगामी घूर्णन (Prograde Rotation) कहा जाता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर एक चक्कर लगभग 23 घंटे 56 मिनट में पूरा करती है, जिसे सौर दिवस (Sidereal Day) कहा जाता है। हालांकि, सामान्यतः हम 24 घंटे का दिन मानते हैं, जो सूर्य के सापेक्ष एक दिन का मापन है।
पृथ्वी के भूमध्य रेखा (Equator) पर घूर्णन की औसत गति लगभग 1670 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। जबकि ध्रुवीय क्षेत्रों की ओर यह गति घटती जाती है। यह अद्भुत गति पृथ्वी की विशालता और द्रव्यमान को देखते हुए एक अद्भुत भौतिकीय घटना है। पृथ्वी का यह घूर्णन इतना सुचारु है कि हमें इसकी अनुभूति तक नहीं होती।
ध्रुवीय गति और ‘पोलर मोशन’ (Polar Motion)
भले ही पृथ्वी का घूर्णन सतत और नियमित प्रतीत होता हो, लेकिन वास्तविकता यह है कि पृथ्वी का घूर्णन अक्ष (Axis of Rotation) पूरी तरह स्थिर नहीं है। यह धुरी समय के साथ सूक्ष्म रूप से हिलती-डुलती रहती है। इस हलचल को ‘पोलर मोशन’ कहा जाता है। इस ध्रुवीय गति का मुख्य कारण पृथ्वी पर द्रव्यमान (Mass) का पुनर्वितरण है।
बर्फ की चादरों (Ice Sheets) का पिघलना, समुद्रों के जलस्तर में वृद्धि, बड़े पैमाने पर होने वाली भूकंपीय गतिविधियाँ और अन्य भूगर्भीय परिवर्तन पृथ्वी के द्रव्यमान वितरण में बदलाव लाते हैं। परिणामस्वरूप पृथ्वी की धुरी पर हल्का-सा झुकाव और गति में बदलाव आता है। पोलर मोशन एक दीर्घकालिक भौतिकीय प्रक्रिया है, लेकिन इसके अल्पकालिक प्रभाव भी हमारे समय मापन प्रणाली (Time Measurement Systems) पर असर डाल सकते हैं।
पृथ्वी के घूर्णन में हालिया बदलाव और वैज्ञानिक शोध
पृथ्वी के घूर्णन में आने वाले परिवर्तनों का अध्ययन आधुनिक विज्ञान का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन चुका है। 1970 के दशक के बाद पहली बार वर्ष 2020 में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के घूर्णन में उल्लेखनीय तेजी दर्ज की थी। उस वर्ष पृथ्वी ने 28 बार सामान्य से तेज चक्कर लगाए थे।
वहीं, 5 जुलाई 2024 को पृथ्वी का अब तक का सबसे छोटा दिन रिकॉर्ड किया गया। उस दिन पृथ्वी ने सामान्य 24 घंटे की अपेक्षा मिलीसेकंड के स्तर पर कम समय में एक घूर्णन पूरा कर लिया था। यह परिवर्तन बहुत सूक्ष्म था, लेकिन वैज्ञानिकों के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण घटना रही।
इन घटनाओं ने पृथ्वी के अंदर चल रही गूढ़ भौगोलिक प्रक्रियाओं और अंतरिक्षीय प्रभावों की ओर वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया है। बर्फ के तेजी से पिघलने, महासागरों के जलस्तर में बदलाव, वायुमंडलीय दाब परिवर्तनों और चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव जैसे अनेक कारक इस बदलाव के पीछे जिम्मेदार माने जा रहे हैं।
समय मापन प्रणाली और लीप सेकंड का प्रबंधन
पृथ्वी के घूर्णन की इन सूक्ष्म असमानताओं के कारण दिन की लंबाई में मिलीसेकंड स्तर पर बदलाव आता है। यह बदलाव भले ही दैनिक जीवन में अप्रभावित प्रतीत हो, लेकिन वैश्विक समय प्रणाली, उपग्रह संचार, अंतरराष्ट्रीय नेविगेशन प्रणाली (GPS), और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पृथ्वी के घूर्णन की निगरानी और समय प्रणाली का प्रबंधन ‘अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी घूर्णन एवं संदर्भ प्रणाली सेवा’ (IERS – International Earth Rotation and Reference Systems Service) द्वारा किया जाता है।
IERS घूर्णन समय में हुए संचयी अंतर का मूल्यांकन करता है। जब यह संचयी अंतर लगभग 900 मिलीसेकंड (0.9 सेकंड) तक पहुँच जाता है, तब ‘लीप सेकंड’ (Leap Second) जोड़ने या घटाने की आवश्यकता होती है। यह लीप सेकंड मुख्य रूप से वैश्विक समय मानक ‘अंतरराष्ट्रीय परमाणु समय’ (International Atomic Time – TAI) और ‘यूनिवर्सल टाइम’ (UT1) के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए लागू किया जाता है। इससे वैश्विक घड़ियों को पृथ्वी के वास्तविक घूर्णन से तालमेल बनाए रखने में सहायता मिलती है।
भविष्य की घटनाएँ: जुलाई और अगस्त 2025 की भविष्यवाणियाँ
वैज्ञानिकों ने हाल के विश्लेषणों के आधार पर अनुमान लगाया है कि 9 जुलाई, 22 जुलाई और 5 अगस्त 2025 को पृथ्वी सामान्य की तुलना में थोड़ा अधिक तेजी से घूमेगी। अनुमान है कि इन दिनों पृथ्वी के प्रत्येक दिन की लंबाई लगभग 1.3 से 1.51 मिलीसेकंड तक कम हो सकती है।
यह परिवर्तन अत्यंत सूक्ष्म है, किंतु दीर्घकालिक वैज्ञानिक रिकॉर्डिंग और समय मापन प्रणाली के लिए यह उल्लेखनीय घटना होगी। इन परिवर्तनों का गहन अध्ययन पृथ्वी की आंतरिक प्रक्रियाओं को बेहतर समझने और भविष्य के मौसम तथा समुद्री प्रवृत्तियों के अनुमान के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
पृथ्वी के घूर्णन परिवर्तन के संभावित कारण
पृथ्वी के घूर्णन में होने वाले इन बदलावों के पीछे विभिन्न भौतिक और खगोलीय कारण हैं:
- बर्फ की चादरों का पिघलना – ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक और अंटार्कटिक बर्फ की चादरें तेजी से पिघल रही हैं। यह पृथ्वी के द्रव्यमान के वितरण को प्रभावित करता है, जिससे पोलर मोशन और घूर्णन गति प्रभावित होती है।
- महासागरीय जलस्तर में बदलाव – समुद्रों में पानी का पुनर्वितरण पृथ्वी की घूर्णन गति में सूक्ष्म बदलाव उत्पन्न करता है।
- भूगर्भीय घटनाएँ – बड़े भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट आदि घटनाएँ पृथ्वी के आंतरिक द्रव्यमान को पुनः वितरित कर सकती हैं।
- वायुमंडलीय प्रभाव – पृथ्वी के चारों ओर वायुमंडलीय दाब में होने वाले परिवर्तनों और उच्च-स्तरीय हवाओं की गतिविधि भी घूर्णन पर सूक्ष्म प्रभाव डालती हैं।
- चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव – चंद्रमा द्वारा उत्पन्न ज्वारीय बल भी पृथ्वी के घूर्णन पर प्रभाव डालता है, हालाँकि यह प्रभाव अपेक्षाकृत दीर्घकालिक होता है।
वैज्ञानिक और तकनीकी महत्व
पृथ्वी के घूर्णन में आने वाले सूक्ष्म बदलाव वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। इससे न केवल भूगर्भीय और वायुमंडलीय परिवर्तनों को समझने में सहायता मिलती है, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान, मौसम पूर्वानुमान, समुद्री अध्ययन और वैश्विक संचार प्रणालियों के सटीक संचालन के लिए भी आवश्यक डेटा प्राप्त होता है।
उपग्रह आधारित नेविगेशन, परमाणु घड़ियाँ, अंतरराष्ट्रीय संचार नेटवर्क और इंटरनेट सर्वर समय-समन्वयन, सभी पृथ्वी के सटीक घूर्णन डेटा पर निर्भर करते हैं। अतः इन परिवर्तनों का सतत् अध्ययन और समायोजन समय-प्रबंधन प्रणालियों की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
निष्कर्ष
पृथ्वी का घूर्णन एक अत्यंत सामान्य प्रतीत होने वाली, किंतु वैज्ञानिक दृष्टि से जटिल प्रक्रिया है। यह न केवल दिन और रात का चक्र निर्धारित करता है, बल्कि वैश्विक समय मानकों और संचार प्रणालियों के संचालन का आधार भी है। पृथ्वी के घूर्णन में हो रहे सूक्ष्म लेकिन लगातार परिवर्तनों का अध्ययन आधुनिक विज्ञान के लिए एक चुनौती और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है।
आने वाले वर्षों में पृथ्वी की घूर्णन गति में संभावित बदलावों को देखते हुए, वैज्ञानिक संस्थाएँ लगातार इन घटनाओं की निगरानी कर रही हैं। 2025 में जुलाई और अगस्त में संभावित दिनों की अल्पकालिक कमी इस प्रक्रिया की निरंतरता और वैज्ञानिक महत्व को पुनः स्थापित करती है।
वास्तव में, पृथ्वी का यह ‘मौन नृत्य’ एक ऐसा गूढ़ रहस्य है, जिसे विज्ञान प्रत्येक क्षण नए दृष्टिकोण से समझने की कोशिश कर रहा है। समय का बहाव और पृथ्वी की घूर्णन गति के बीच का यह अनूठा संबंध ब्रह्मांडीय भौतिकी और मानव सभ्यता के लिए चिरस्थायी शोध का विषय बना रहेगा।
इन्हें भी देखें –
- भारत और उसके पड़ोसी राज्य Neighboring Countries of India
- भारत का भौतिक विभाजन | Physical divisions of India
- भारत के द्वीप समूह | Islands of India
- भारत के महान मरुस्थल | The Great Indian Desert
- भारत के प्रायद्वीपीय पठार | The Great Indian Peninsular Plateau
- भारत के तटीय मैदान | The Costal Plains of India
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