मानव सभ्यता की सबसे बड़ी जिज्ञासाओं में से एक है — ब्रह्मांड की उत्पत्ति और उसका विकास। हम जिस आकाशगंगा, तारों और ग्रहों को देखते हैं, वे सब कैसे बने? बिग बैंग के बाद अंधकारमय युग (Dark Age) के बाद जब पहली बार तारे और आकाशगंगाएँ जन्मीं, उस काल को वैज्ञानिक “कॉस्मिक डॉन” (Cosmic Dawn) कहते हैं। इस युग के बारे में जानना बेहद कठिन है, क्योंकि इसके संकेत बेहद कमजोर और शोरगुल से भरे होते हैं।
भारत के रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (Raman Research Institute – RRI), बेंगलुरु ने इस रहस्य को सुलझाने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल की है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा उपकरण विकसित किया है जो आकार में केवल क्रेडिट कार्ड जितना छोटा है, लेकिन इसकी क्षमता ब्रह्मांड के शुरुआती दौर के राज खोल सकती है। यह उपकरण प्रतुश (PRATUSH) मिशन का हिस्सा बनेगा, जिसे चंद्रमा पर स्थापित किया जाना प्रस्तावित है।
प्रतुश (PRATUSH) मिशन: परिचय
प्रतुश क्या है?
प्रतुश एक चंद्रमा-आधारित रेडियोमीटर मिशन है, जिसे विशेष रूप से 21 सेंटीमीटर हाइड्रोजन सिग्नल का अध्ययन करने के लिए तैयार किया गया है।
- यह सिग्नल तटस्थ हाइड्रोजन परमाणुओं द्वारा उस समय उत्सर्जित हुआ था जब ब्रह्मांड में पहली बार संरचनाएँ बनने लगी थीं।
- वैज्ञानिक मानते हैं कि इसे पकड़ने से हमें लगभग 13 अरब वर्ष पहले के कॉस्मिक डॉन का प्रत्यक्ष प्रमाण मिलेगा।
- यह जानकारी न केवल ब्रह्मांड की उत्पत्ति बल्कि आधुनिक कॉस्मोलॉजी और भौतिकी के कई सिद्धांतों की पुष्टि या चुनौती भी कर सकती है।
चंद्रमा क्यों?
पृथ्वी पर इस सिग्नल को पकड़ना लगभग असंभव है। इसके मुख्य कारण हैं:
- रेडियो व्यवधान (Radio Interference) – पृथ्वी पर एफएम प्रसारण और मोबाइल नेटवर्क जैसे स्रोत इन संकेतों को दबा देते हैं।
- आयनमंडल की गड़बड़ी (Ionospheric Disturbances) – पृथ्वी का आयनमंडल रेडियो तरंगों को प्रभावित करता है, जिससे शुद्ध डेटा मिलना कठिन हो जाता है।
- चंद्रमा का दूरस्थ भाग (Lunar Far Side) – यह क्षेत्र सौर मंडल का सबसे शांत रेडियो क्षेत्र माना जाता है। यहाँ बाहरी रेडियो व्यवधान लगभग न के बराबर होते हैं।
इसीलिए वैज्ञानिकों ने तय किया है कि इस मिशन को चंद्रमा की कक्षा या उसकी सतह से संचालित किया जाए।
सिंगल-बोर्ड कंप्यूटर (SBC): छोटा लेकिन शक्तिशाली
पारंपरिक प्रणालियों की समस्या
आमतौर पर अंतरिक्ष मिशनों में बड़े और भारी नियंत्रक (controllers) उपयोग किए जाते हैं।
- ये अधिक ऊर्जा खपत करते हैं।
- इनमें जटिलता ज्यादा होती है।
- छोटे पेलोड वाले मिशनों के लिए उपयुक्त नहीं होते।
RRI का अभिनव समाधान
रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग टीम ने एक ऐसा सिंगल-बोर्ड कंप्यूटर (SBC) विकसित किया है जो:
- हल्का, छोटा और ऊर्जा-कुशल है।
- क्रेडिट कार्ड के बराबर आकार का है।
- कम ऊर्जा में उच्च दक्षता प्रदान करता है।
SBC की भूमिका
यह कंप्यूटर पूरे मिशन का “मस्तिष्क” होगा।
- एंटीना, रिसीवर और FPGA चिप का समन्वय करेगा।
- रेडियो डेटा को रिकॉर्ड, स्टोर और प्री-प्रोसेस करेगा।
- सिस्टम कैलिब्रेशन को संभालेगा।
- लंबे समय तक स्थिर प्रदर्शन देगा।
RRI के वैज्ञानिक गिरीश बी.एस. के अनुसार, यह प्रणाली आकार, ऊर्जा और प्रदर्शन का आदर्श संतुलन प्रस्तुत करती है, जो चंद्रमा जैसे जटिल मिशनों के लिए बिल्कुल उपयुक्त है।
तकनीकी परीक्षण और परिणाम
इस प्रणाली को धरती पर प्रयोगशाला और मैदानी स्तर पर लंबे समय तक परखा गया।
- 352 घंटे तक एक संदर्भ सिग्नल पर निरंतर परीक्षण किया गया।
- परिणामस्वरूप शोर (Noise) को मिल्ली-केल्विन स्तर तक कम करने में सफलता मिली।
- बेहद कमजोर सिग्नलों को पकड़ने में इसकी संवेदनशीलता साबित हुई।
- लंबे समय तक संचालन के दौरान यह प्रणाली स्थिर और भरोसेमंद रही।
इन नतीजों से यह स्पष्ट है कि यह प्रणाली अंतरिक्ष-आधारित रेडियोमेट्री के लिए पूरी तरह तैयार है।
ब्रह्मांडीय महत्व: क्यों जरूरी है 21-सेमी हाइड्रोजन सिग्नल?
21 सेंटीमीटर सिग्नल ब्रह्मांड के शुरुआती दौर की “कॉस्मिक फिंगरप्रिंट” जैसा है।
- यह सिग्नल तटस्थ हाइड्रोजन से आता है, जो उस समय सबसे अधिक मात्रा में मौजूद था।
- इसे पकड़कर वैज्ञानिक जान पाएंगे कि कब और कैसे:
- पहली बार तारे जले।
- आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ।
- अंधकारमय युग से प्रकाश युग (Epoch of Reionization) की शुरुआत हुई।
यदि इस सिग्नल को सही तरह से मापा गया, तो यह आज के कॉस्मोलॉजिकल मॉडल्स को परखने और नई भौतिकी (New Physics) के द्वार खोलने में मदद करेगा।
प्रतुश की वैज्ञानिक चुनौतियाँ
- रेडियो व्यवधान से बचाव – भले ही चंद्रमा का दूरस्थ भाग शांत है, फिर भी उपकरणों को बेहद संवेदनशील ढंग से डिज़ाइन करना होगा।
- तापमान नियंत्रण – चंद्र सतह पर दिन और रात के बीच तापमान में भारी अंतर होता है।
- डेटा संचार – इतने बड़े डेटा को धरती तक सुरक्षित पहुँचाना भी एक चुनौती है।
- ऊर्जा आपूर्ति – छोटे आकार के बावजूद उपकरण को लंबे समय तक ऊर्जा-कुशल बने रहना होगा।
भविष्य की योजनाएँ
RRI और भारतीय वैज्ञानिक समुदाय इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
- अब टीम स्पेस-क्वालिफाइड SBCs का उपयोग करेगी।
- AI-सक्षम प्रोसेसिंग के लिए सॉफ्टवेयर अपग्रेड होगा।
- पूरे सिस्टम को एक कॉम्पैक्ट पेलोड के रूप में तैयार कर चंद्रमा पर तैनात किया जाएगा।
यदि यह मिशन सफल रहा, तो यह न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक वैज्ञानिक मील का पत्थर साबित होगा।
संभावित उपलब्धियाँ
- कॉस्मिक स्ट्रक्चर्स की उत्पत्ति – पहली आकाशगंगाओं और तारों के बनने की प्रक्रिया स्पष्ट होगी।
- ब्रह्मांडीय विकास की समझ – शुरुआती समय से लेकर आज तक ब्रह्मांड कैसे बदला, इसकी गहरी जानकारी मिलेगी।
- नए भौतिक सिद्धांत – आधुनिक कॉस्मोलॉजी से परे जाकर नई भौतिकी की झलक मिल सकती है।
- भारत की अंतरिक्ष उपलब्धि – यह मिशन भारत को ब्रह्मांडीय अनुसंधान की अग्रिम पंक्ति में खड़ा करेगा।
भारत के लिए महत्व
भारत पहले ही चंद्रयान-3 और अन्य अंतरिक्ष अभियानों से वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना चुका है।
- प्रतुश मिशन से भारत कॉस्मोलॉजी और एस्ट्रोफिजिक्स में भी अग्रणी भूमिका निभा सकेगा।
- यह भारतीय वैज्ञानिकों की नवाचार क्षमता (Innovation Capacity) और संसाधन कुशलता (Resource Efficiency) का प्रमाण होगा।
- यह मिशन आने वाली पीढ़ियों को विज्ञान और अनुसंधान की ओर प्रेरित करेगा।
निष्कर्ष
प्रतुश मिशन और RRI द्वारा विकसित क्रेडिट कार्ड आकार का सिंगल-बोर्ड कंप्यूटर ब्रह्मांडीय अनुसंधान में क्रांति ला सकता है। यदि यह मिशन सफल होता है, तो हम न केवल कॉस्मिक डॉन की पहली झलक देख पाएंगे, बल्कि यह भी समझ सकेंगे कि ब्रह्मांड का निर्माण किन नियमों और प्रक्रियाओं के तहत हुआ।
भारत का यह प्रयास इस तथ्य को और मजबूत करता है कि वैज्ञानिक कल्पनाशक्ति और तकनीकी नवाचार से बड़े से बड़े रहस्य भी सुलझाए जा सकते हैं। आने वाले वर्षों में प्रतुश मिशन निश्चित रूप से भारत की वैज्ञानिक यात्रा में एक सुनहरा अध्याय जोड़ेगा।
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