प्रयागराज | तीर्थराज प्रयाग | भारत का प्रमुख तीर्थ और ऐतिहासिक संगम नगर

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, उत्तर प्रदेश राज्य का एक प्रमुख नगर है। यह नगर अपने ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए विश्वभर में विख्यात है। यह नगर न केवल प्रयागराज ज़िले का मुख्यालय है, बल्कि हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए एक मुख्य तीर्थस्थल भी है। इस शहर को इसकी प्राचीन धरोहरों, ऐतिहासिक स्थलों, और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह पवित्र त्रिवेणी संगम के लिए प्रसिद्ध है, जहाँ गंगा, यमुना और गुप्त सरस्वती नदियाँ मिलती हैं। इस स्थान का महत्व हिन्दू धर्मग्रंथों में भी वर्णित है और यह प्राचीन काल से ही आस्था और श्रद्धा का केंद्र रहा है।

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प्रयागराज का नामकरण और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

प्रयागराज का प्राचीन नाम “प्रयाग” था, जो “प्र” और “याग” शब्दों से बना है। हिन्दू मान्यता है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण के बाद यहां प्रथम यज्ञ किया था। इसलिए इस स्थान का नाम “प्रयाग” पड़ा। यह भी माना जाता है कि इस यज्ञ के कारण यहां दिव्य ऊर्जा का संचार हुआ, जो इसे धार्मिक दृष्टि से विशेष बनाता है।

मुगल काल में, 1575 में सम्राट अकबर इस क्षेत्र की सामरिक स्थिति से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने यहां 1584 में एक किले का निर्माण करवाया और इसका नाम “इलाहबास” रखा, जिसका अर्थ है “ईश्वर का निवास”। यह नाम बाद में बदलकर “इलाहाबाद” हो गया। कुछ विचारों के अनुसार, यह नाम “इल्हा” (देवताओं) के नाम पर रखा गया था। वहीं, अन्य विचार यह भी बताते हैं कि यह नाम अकबर ने हिंदू और मुस्लिम शब्दों के सामंजस्य को ध्यान में रखकर दिया था।

19वीं शताब्दी में, ब्रिटिश लेखक जेम्स फोर्ब्स ने दावा किया कि जहांगीर ने अक्षय वट को नष्ट करने में विफल रहने के बाद इस स्थान का नाम बदलकर इलाहाबाद रखा। हालांकि, अकबर के शासनकाल के सिक्कों में “इलाहबास” और “इलाहाबाद” दोनों नामों का उल्लेख मिलता है।

1947 में स्वतंत्रता के बाद, इलाहाबाद का नाम बदलने के कई प्रयास हुए। 1992 और 2001 में उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकारों ने इसका नाम बदलकर “प्रयागराज” करने का प्रयास किया, लेकिन यह 2018 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सफल हुआ। 16 अक्टूबर 2018 को इसका नाम आधिकारिक रूप से प्रयागराज रखा गया।

प्रयागराज का प्राचीन इतिहास

प्राचीन काल में प्रयागराज को “प्रयाग” के नाम से जाना जाता था। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण के बाद सबसे पहला यज्ञ यहीं किया था। इस पवित्र स्थल पर अनगिनत यज्ञों का आयोजन हुआ, जिसके कारण इसे “बहु-यज्ञ स्थल” कहा जाता है। यह क्षेत्र प्राचीन मौर्य, गुप्त और कुशान साम्राज्यों का हिस्सा रहा है। बाद में यह कन्नौज साम्राज्य का भी हिस्सा बना।

1526 में मुगलों के भारत पर पुनः आक्रमण के बाद, प्रयागराज उनके अधीन आ गया। सम्राट अकबर ने संगम के पास एक विशाल दुर्ग का निर्माण करवाया। मराठों ने भी इस क्षेत्र पर आक्रमण किया। इसके बाद यह अंग्रेजों के अधिकार में आ गया। 1775 में अंग्रेजों ने यहाँ थल-सेना के गैरीसन दुर्ग की स्थापना की। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में प्रयागराज ने सक्रिय भूमिका निभाई।

1904 से 1949 तक इलाहाबाद संयुक्त प्रांतों (वर्तमान उत्तर प्रदेश) की राजधानी रहा। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन 1888 और 1892 में दरभंगा किले के मैदान में हुए थे।

प्रयागराज का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रयागराज का महत्वपूर्ण योगदान रहा। राष्ट्रीय नवजागरण का उदय इसी भूमि पर हुआ। यह नगर गाँधी युग में प्रेरणा का केंद्र बना और ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ के संगठन और उन्नयन में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।

1857 के विद्रोह में प्रयागराज का नेतृत्व लियाक़त अली खान ने किया। इस विद्रोह के दौरान यह क्षेत्र क्रांतिकारियों का प्रमुख केंद्र बना। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान नेहरू परिवार के स्वराज भवन और आनंद भवन प्रमुख गतिविधियों के केंद्र थे। इन स्थानों से स्वतंत्रता आंदोलन की अनेक योजनाएँ बनाई गईं।

1931 में अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आज़ाद ने ब्रिटिश पुलिस से घिर जाने पर स्वयं को गोली मारकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। उनका यह बलिदान स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित है।

1919 के रौलेट एक्ट के विरोध में प्रयागराज में एक सर्वदलीय सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में स्कूल, कॉलेज और अदालतों के बहिष्कार का निर्णय लिया गया। 1920 में प्रथम असहयोग आंदोलन और खिलाफत आंदोलन की नींव भी इसी नगर में रखी गई।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन 1888, 1892 और 1910 में क्रमशः जॉर्ज यूल, व्योमेश चंद्र बनर्जी और सर विलियम वेडरबर्न की अध्यक्षता में आयोजित हुए। इन अधिवेशनों ने स्वतंत्रता आंदोलन को नई दिशा दी।

प्रयागराज ने न केवल उदारवादी और समाजवादी नेताओं को जन्म दिया, बल्कि क्रांतिकारियों के लिए भी यह शरणस्थली बना।

प्रयागराज का त्रिवेणी संगम और कुंभ मेला

प्रयागराज का सबसे प्रसिद्ध स्थल त्रिवेणी संगम है, जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का मिलन होता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, यह संगम स्थान अत्यंत पवित्र है और यहां स्नान करने से पापों का नाश होता है। हर बारह वर्ष में यहां विश्व प्रसिद्ध कुंभ मेले का आयोजन होता है। यह मेला विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक सम्मेलन माना जाता है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु देश-विदेश से आकर त्रिवेणी में स्नान करते हैं। इसके अतिरिक्त, हर छह वर्षों में अर्द्धकुंभ और प्रत्येक वर्ष माघ मेले का आयोजन होता है। कुंभ मेले के दौरान यह नगर तंबुओं की नगरी में परिवर्तित हो जाता है, जिस कारण इसे “तंबूनगरी” भी कहा जाता है।

प्रशासनिक पुनर्गठन | इलाहाबाद से प्रयागराज

वर्ष 2000 में इलाहाबाद मंडल और जिले में बड़े प्रशासनिक बदलाव हुए। इलाहाबाद मंडल के इटावा और फर्रुखाबाद जिलों को आगरा मंडल के अधीन कर दिया गया। कानपुर देहात जिले को कानपुर जिले से अलग करके एक नया कानपुर मंडल बनाया गया। इसके अलावा, इलाहाबाद के पश्चिमी भागों को अलग कर नया कौशांबी जिला बनाया गया।

नवंबर 2018 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया। इसके साथ ही इलाहाबाद मंडल का नाम भी प्रयागराज मंडल कर दिया गया। वर्तमान में प्रयागराज मंडल के अंतर्गत चार जिले आते हैं – प्रयागराज, कौशांबी, प्रतापगढ़ और फतेहपुर।

प्रयागराज की भौगोलिक स्थिति और संरचना

प्रयागराज, जिसे प्राचीन काल में इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित है। इसकी भौगोलिक स्थिति 25.45° उत्तरी अक्षांश और 81.84° पूर्वी देशांतर पर है। यह शहर गंगा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित है, जो समुद्र तल से 98 मीटर (322 फीट) की ऊंचाई पर है। प्रयागराज का क्षेत्रफल लगभग 70 वर्ग किलोमीटर (750,000,000 वर्ग फुट) है।

यह क्षेत्र प्राचीन वत्स देश का हिस्सा था। इसके उत्तर और उत्तर-पूर्व में अवध क्षेत्र, दक्षिण-पूर्व में बुंदेलखंड, और पश्चिम में निचला दोआब क्षेत्र है। यह भौगोलिक दृष्टि से न केवल उपजाऊ है बल्कि ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व भी रखता है। गंगा-जमुनी दोआब क्षेत्र, जिसमें प्रयागराज स्थित है, अत्यधिक उपजाऊ भूमि है। यमुना नदी का अंतिम पड़ाव यही है, जहां यह गंगा से मिलती है।

दोआब की भूमि, विशेष रूप से गंगा और यमुना नदियों के बीच, गेहूं की खेती के लिए उपयुक्त है क्योंकि इसमें कम नमी होती है। जिले के दक्षिण और पूर्वी क्षेत्र, जो निकटवर्ती बुंदेलखंड और बघेलखंड की सीमा पर हैं, शुष्क और पथरीले हैं। भारत की नाभि, जबलपुर से निकलने वाली भारतीय अक्षांश रेखा, प्रयागराज से होकर गुजरती है। जबलपुर से यह रेखा 343 किलोमीटर (1,125,000 फीट) उत्तर में स्थित है।

जनसांख्यिकी और समाज

2011 की जनगणना के अनुसार प्रयागराज शहर की जनसंख्या 1,342,229 है, जो इसे भारत में जनसंख्या के आधार पर 32वें स्थान पर रखती है। प्रयागराज जिला उत्तर प्रदेश का सबसे अधिक जनसंख्या वाला जिला है, जिसकी कुल जनसंख्या 2013 की जनगणना के अनुसार 6,010,249 थी।

प्रयागराज में सभी प्रमुख धर्मों के लोग निवास करते हैं। हिंदू जनसंख्या कुल आबादी का 85% है, जबकि मुस्लिम समुदाय 11% है। इनके अलावा सिख, ईसाई और बौद्ध समुदाय के लोग भी यहां निवास करते हैं।

भाषा और संस्कृति

प्रयागराज की प्रमुख बोली अवधी है। यहां की स्थानीय भाषा को “कोसली” या “इलाहाबादी बोली” के नाम से भी जाना जाता है। जिले के पूर्वी गैर-दोआबी क्षेत्रों में बघेली बोली जाती है। इलाहाबादी बोली अपने खास अंदाज और व्यंग्यात्मक शैली के लिए प्रसिद्ध है।

प्रयागराज भारत के गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है, जहां हिंदू और मुस्लिम संस्कृतियों का अनोखा मिश्रण देखा जा सकता है। यह सांस्कृतिक विविधता और समरसता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है।

प्राकृतिक और धार्मिक महत्व

प्रयागराज अपने संगम स्थल के लिए प्रसिद्ध है, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का मिलन होता है। यह संगम स्थल हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है और इसे त्रिवेणी संगम के नाम से जाना जाता है। प्रयागराज में कुंभ मेले का आयोजन होता है, जो विश्व का सबसे बड़ा आध्यात्मिक आयोजन है। हर 12 साल में यहां महाकुंभ और हर 6 साल में अर्धकुंभ का आयोजन किया जाता है।

कृषि और अर्थव्यवस्था

प्रयागराज की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि पर आधारित है। यहां गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा और दलहन की खेती प्रमुखता से होती है। गंगा और यमुना के किनारे की उपजाऊ दोआब भूमि कृषि उत्पादन के लिए आदर्श मानी जाती है। जिले के दक्षिणी और पूर्वी भाग, जो शुष्क और पथरीले हैं, कम उपजाऊ हैं, लेकिन इनमें सीमित मात्रा में जल संसाधन उपलब्ध हैं।

शिक्षा और साहित्य

प्रयागराज शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र है। यहां का इलाहाबाद विश्वविद्यालय, जिसे “पूर्व का ऑक्सफोर्ड” कहा जाता है, भारत के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक है। प्रयागराज कई साहित्यकारों, कवियों और विद्वानों का घर रहा है। यह शहर हिंदी साहित्य और उर्दू शायरी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

संस्कृति और विरासत

प्रयागराज का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व इसके विभिन्न मंदिरों, मस्जिदों और ऐतिहासिक स्थलों में देखा जा सकता है। अक्षयवट और पातालपुरी मंदिर जैसे धार्मिक स्थल, और खुसरो बाग जैसे ऐतिहासिक स्थल, इस शहर की विरासत को समृद्ध बनाते हैं।

जलवायु

प्रयागराज में तीन प्रमुख ऋतुएं पाई जाती हैं: ग्रीष्म ऋतु, शीत ऋतु और वर्षा ऋतु। ग्रीष्मकाल अप्रैल से जून तक रहता है, जिसमें तापमान 40°से. (104° फा.) से 45°से. (113° फा.) तक पहुंचता है। मानसून काल जुलाई से सितंबर के अंत तक चलता है। शीतकाल दिसंबर से फरवरी तक रहता है, जिसमें तापमान कभी-कभी 10°से. (50° फा.) तक गिर जाता है।

जनवरी में घना कोहरा छाया रहता है, जिससे यातायात और यात्रा में विलंब होता है। हालांकि, प्रयागराज में कभी हिमपात नहीं होता। अब तक का न्यूनतम दर्ज तापमान -2°से. (28.4° फा.) और अधिकतम तापमान 48°से. (118° फा.) तक पहुंचा है।

प्रयागराज का प्रशासनिक महत्व

प्रयागराज में कई महत्त्वपूर्ण सरकारी कार्यालय स्थित हैं, जो इसे प्रशासनिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनाते हैं। यहाँ इलाहाबाद उच्च न्यायालय, उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग (पीएससी), उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद, और उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय जैसे प्रतिष्ठित संस्थान स्थित हैं। इसके अलावा, यह नगर जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के तहत एक मिशन शहर के रूप में भी चुना गया है।

प्रयागराज में इलाहाबाद उच्च न्यायालय, उत्तर प्रदेश राज्य लोक सेवा आयोग, और उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय जैसे प्रमुख प्रशासनिक संस्थान स्थित हैं। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और बाद में भी यह नगर भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रहा।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय

यह भारत के सबसे पुराने उच्च न्यायालयों में से एक है। इसका मूल रूप से स्थापना 1866 में आगरा में हुई थी और 1869 में इसे प्रयागराज स्थानांतरित कर दिया गया। इसके पहले मुख्य न्यायाधीश सर वाल्टर मॉर्गन थे। आज यह न्यायालय भारतीय न्याय प्रणाली में एक प्रमुख स्थान रखता है।

नगर प्रशासन

प्रयागराज नगर निगम उत्तर प्रदेश के सबसे पुराने नगर निगमों में से एक है, जो 1864 में अस्तित्व में आया। यह लखनऊ म्युनिसिपल अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था। नगर निगम क्षेत्र को 80 वार्डों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक वार्ड से एक पार्षद (कॉर्पोरेटर) चुना जाता है। पहले महापौर का चुनाव पार्षद करते थे, लेकिन अब नगर निगम क्षेत्र की जनता महापौर और पार्षद दोनों का चुनाव करती है।

नगर प्रशासन के तहत प्रयागराज का आयुक्त (कमिश्नर) नियुक्त किया जाता है, जो राज्य सरकार द्वारा चुना जाता है।

शहर और शहरी क्षेत्र

प्रयागराज गंगा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित है और तीन ओर से नदियों से घिरा एक भू-स्थित प्रायद्वीप के रूप में देखा जा सकता है। इस शहर को तीन प्रमुख क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है:

  1. पुराना शहर: चौक और कटरा क्षेत्र शहर का आर्थिक केंद्र है। यह शहर का सबसे घना इलाका है, जहां भीड़-भाड़ वाली सड़कें और बाजार हैं।
  2. नया शहर: यह सिविल लाइंस क्षेत्र के निकट स्थित है और ब्रिटिश काल में स्थापित किया गया था। यह क्षेत्र ग्रिड-आयरन रोड पैटर्न पर आधारित है, जिसमें वृक्षों की कतारें, उच्च न्यायालय, शैक्षिक संस्थान और आधुनिक शॉपिंग मॉल जैसे पीवीआर, बिग बाजार और विशाल मेगामार्ट शामिल हैं।
  3. बाहरी क्षेत्र: शहर के बाहरी हिस्से में सैटेलाइट टाउन विकसित हो रहे हैं, जैसे नैनी में 1535 एकड़ में हाई-टेक सिटी का निर्माण। गंगा-पार (ट्रांस-गैन्जेस) और यमुना-पार (ट्रांस-यमुना) क्षेत्र भी इसमें शामिल हैं।

तहसीलें

प्रयागराज जिले में आठ तहसीलें हैं –

  1. सदर: शहरी क्षेत्रों का प्रशासनिक केंद्र।
  2. मेजा: यह मिर्जापुर मार्ग पर स्थित है और इसमें मेजा, उरुवा और मांडा ब्लॉक शामिल हैं।
  3. करछना
  4. बारा
  5. सोरांव
  6. फूलपुर
  7. कोरांव
  8. हंडिया

प्रयागराज | ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का शहर

प्रयागराज भारत का ऐसा नगर है, जो अपने धार्मिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक महत्व के कारण विशेष स्थान रखता है। यह नगर न केवल करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, बल्कि यह भारत के समृद्ध इतिहास और संस्कृति का प्रतीक भी है। कुंभ मेला, त्रिवेणी संगम और यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर इस नगर को विश्वपटल पर एक अद्वितीय पहचान दिलाते हैं।

प्रयागराज के ऐतिहासिक, धार्मिक एवं दर्शनीय स्थल | पर्यटन

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वाला शहर है। इस शहर को इसकी प्राचीन धरोहरों, ऐतिहासिक स्थलों, और धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। यहाँ पर विभिन्न युगों और सभ्यताओं के अद्भुत इतिहास की झलक देखने को मिलती है। यह लेख प्रयागराज के प्रमुख दर्शनीय, धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों पर केंद्रित है।

प्रयागराज में पर्यटकों के लिए कई आकर्षण स्थल हैं, जिनमें संगम, आनंद भवन, खुसरो बाग, त्रिवेणी संगम और इलाहाबाद किला शामिल हैं। यह शहर अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण देश-विदेश से लाखों पर्यटकों को आकर्षित करता है।

इलाहाबाद किला | प्रयागराज दुर्ग

प्रयागराज दुर्ग, जिसे इलाहाबाद किला भी कहा जाता है, त्रिवेणी संगम के निकट स्थित है। इसका निर्माण मुग़ल बादशाह अकबर द्वारा कराया गया था इसलिए इसे अकबर का किला भी कहा जाता है। यह अपनी भव्यता और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। किले के भीतर अक्षयवट नामक वृक्ष स्थित है, जिसे मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।

मध्यकालीन इतिहासकार बदायूनी के अनुसार, सम्राट अकबर ने 1575 में प्रयाग की यात्रा के दौरान इस किले का निर्माण शुरू करवाया। हालाँकि किले में पारसी भाषा में एक शिलालेख भी है, जिसमें किले की नींव पड़ने का वर्ष 1583 दिया गया है। यह किला चार प्रमुख भागों में विभाजित है –

  1. पहला हिस्सा: इसमें 12 भवन और कुछ बगीचों का निर्माण हुआ।
  2. दूसरा हिस्सा: बेगमों और शहजादियों के लिए महलों का निर्माण किया गया।
  3. तीसरा हिस्सा: शाही परिवार के दूर के रिश्तेदारों और नौकरों के लिए था।
  4. चौथा हिस्सा: सैनिकों के लिए बनाया गया।

इस किले में 93 महर, 3 झरोखे, 25 दरवाजे, 277 इमारतें, 176 कोठियाँ, 77 तहखाने, 20 अस्तबल और 5 कुएं हैं।

वर्तमान में इस किले का कुछ ही भाग पर्यटकों के लिए खुला रहता है। शेष हिस्से का प्रयोग भारतीय सेना करती है। इस किले में तीन बड़ी गैलरी हैं जहां पर ऊंची मीनारें हैं। पर्यटकों को अशोक स्तंभ, सरस्वती कूप और जोधाबाई महल देखने की इजाजत है। इसके अलावा यहां अक्षय वट के नाम से मशहूर बरगद का एक पुराना पेड़ एवं पातालपुर मंदिर भी है।

रानी महल

अकबर की राजपूत पत्नी जोधाबाई का महल, जिसे रानी महल कहा जाता है, किले के भीतर स्थित है। यह महल मुगलकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

स्वराज भवन | आनंद भवन

स्वराज भवन, जिसे मूल रूप से आनंद भवन के नाम से जाना जाता था, मोतीलाल नेहरू द्वारा निर्मित एक ऐतिहासिक भवन है। मोतीलाल नेहरू ने 1926 में इस भवन का निर्माण कराया था। स्वराज भवन वास्तुकला की दृष्टि से अनोखा है। प्रारंभ में इसका नाम आनंद भवन था। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र रहा। यहाँ कांग्रेस के कई अधिवेशन और राष्ट्रीय नेताओं के सम्मेलन आयोजित किए गए थे। यह भवन दो मंजिला है और अपने समय की कई ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है।

आनंद भवन वास्तुकला की दृष्टि से अनोखा है और स्वतंत्रता संग्राम के कई महत्वपूर्ण क्षणों का साक्षी रहा है। यह भवन पहले नेहरू परिवार का निवास स्थान था। इसी भवन में 19 नवंबर 1917 को इंदिरा गांधी का जन्म हुआ था। 1930 में मोतीलाल नेहरू ने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया और इसके बाद इसे कांग्रेस कमेटी का मुख्यालय बनाया गया।

जवाहरलाल नेहरू ने अपने पिता के निधन के बाद इसे एक ट्रस्ट बनाकर भारतीय जनता के ज्ञान, स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। यहाँ एक बाल भवन की स्थापना भी की गई थी, जहाँ बच्चों को संगीत, विज्ञान और खेल की शिक्षा दी जाती थी। वर्तमान में स्वराज भवन एक संग्रहालय के रूप में परिवर्तित हो चुका है, जो स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को जीवंत करता है।

जवाहर प्लेनेटेरियम

आनंद भवन के बगल में स्थित जवाहर प्लेनेटेरियम खगोल विज्ञान और वैज्ञानिक जानकारी के लिए एक उत्कृष्ट स्थान है। यह 3D प्लेनेटेरियम बच्चों और विज्ञान में रुचि रखने वाले सभी व्यक्तियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहाँ खगोलशास्त्र से संबंधित रोचक और ज्ञानवर्धक प्रस्तुतियाँ आयोजित की जाती हैं।

अल्फ्रेड पार्क | चंद्रशेखर आजाद पार्क

यह स्थान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक चंद्रशेखर आजाद की वीरगाथा का प्रतीक है। इस पार्क में उनकी प्रतिमा स्थापित है और यह भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण स्थल है।

खुसरो बाग

यह एक ऐतिहासिक उद्यान है, जहाँ मुगल काल की वास्तुकला देखने को मिलती है। यह स्थान मुगल शहजादे खुसरो और उनकी माँ के मकबरे के लिए प्रसिद्ध है।

प्रयागराज संग्रहालय

कम्पनी बाग के भीतर 1931 में स्थापित प्रयागराज संग्रहालय प्राचीन इतिहास और कला का अद्भुत खजाना है। इस संग्रहालय में कौशाम्बी से प्राप्त प्राचीन अवशेष, बुद्ध की दुर्लभ मूर्तियाँ, सिक्कों का संग्रह, और मुगलकालीन चित्रकला का संग्रह देखने को मिलता है। यहाँ स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आजाद की पिस्तौल भी संरक्षित है, जिससे उन्होंने ब्रिटिश सिपाहियों का सामना किया था।

चौक घंटाघर

चौक घंटाघर, प्रयागराज का एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है। यह 1913 में बनाया गया था और उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे पुराना घड़ी टॉवर है। इसकी संरचना पर रोमन नक्काशी के उत्कृष्ट नमूने देखे जा सकते हैं।

ऑल सेंट्स कैथेड्रल

सिविल लाइंस में स्थित यह चर्च पत्थर गिरजाघर के नाम से प्रसिद्ध है। इसे 1879 में विलियम इमर्सन द्वारा डिज़ाइन किया गया था। यह चर्च रोमन साम्राज्य की वास्तुकला की याद दिलाता है।

क्रीड़ा परिसर

प्रयागराज में कई प्रमुख क्रीड़ा परिसर हैं, जो व्यावसायिक और अव्यावसायिक खिलाड़ियों के लिए उपयोगी हैं। इनमें मदन मोहन मालवीय क्रिकेट स्टेडियम, मेयो हॉल स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और बॉयज़ हाई स्कूल एवं कॉलेज का जिम्नेज़ियम शामिल हैं। जॉर्जटाउन में स्थित अंतरराष्ट्रीय स्तर का तरणताल परिसर और झलवा (प्रयागराज पश्चिम) में नेशनल स्पोर्ट्स एकेडमी, जो विश्वस्तरीय जिमनास्ट्स के अभ्यास का केंद्र है, इस शहर को खेल गतिविधियों के लिए भी प्रमुख बनाते हैं।

त्रिवेणी महोत्सव

प्रयागराज में हर वर्ष त्रिवेणी महोत्सव का आयोजन होता है, जिसमें कला, संगीत और संस्कृति का संगम देखने को मिलता है। यह महोत्सव स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय कलाकारों को मंच प्रदान करता है।

संगम

प्रयागराज का संगम गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी के मिलन का स्थान है। इसे त्रिवेणी संगम के नाम से भी जाना जाता है। संगम का दृश्य अत्यंत मनोरम है। यहाँ गंगा की स्वेत धारा और यमुना की हरित धारा स्पष्ट रूप से अलग दिखती हैं। प्रत्येक वर्ष यहाँ जनवरी-फरवरी में लगने वाला माघ मेला और कुंभ मेला करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

हनुमान मंदिर

संगम के निकट स्थित यह मंदिर अपनी अनोखी लेटी हुई हनुमान जी की प्रतिमा के लिए प्रसिद्ध है। इसे देखने के लिए श्रद्धालुओं को सीढ़ियों से नीचे उतरना पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि अंग्रेजी शासनकाल में जब इस प्रतिमा को हटाने की कोशिश की गई, तो यह प्रतिमा और गहराई में धंसती चली गई।

शंकर विमान मंडपम्

गंगा के तट पर स्थित यह चार मंजिला आधुनिक मंदिर लगभग 40 मीटर ऊँचा है। इसकी प्रत्येक मंजिल पर अलग-अलग देवताओं के दर्शन होते हैं।

सरस्वती कूप

इलाहबाद किले के भीतर स्थित यह पवित्र कूप अदृश्य सरस्वती नदी का स्रोत माना जाता है।

समुद्र कूप

गंगा पार झूँसी में स्थित यह कूप उल्टा किला के भीतर स्थित है। इसका पानी खारा है और इसे समुद्र का स्रोत माना जाता है।

मनकामेश्वर मंदिर

यमुना तट पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यहाँ प्रतिदिन होने वाली शिव आरती और श्रृंगार विशेष रूप से प्रसिद्ध है।

शिवकुटी

गंगा तट पर स्थित शिवकुटी भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर है। यह स्थान मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के जीवन से भी जुड़ा हुआ है। यहाँ कोटेश्वर महादेव मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है।

भारद्वाज आश्रम

आनंद भवन के सामने स्थित यह स्थान महर्षि भारद्वाज का आश्रम था। यह स्थल भगवान राम के वनगमन के दौरान उनका स्वागत करने के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ ऋषि भारद्वाज द्वारा स्थापित भारद्वाजेश्वर महादेव का शिवलिंग और अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ हैं।

नाग वासुकी मंदिर

यह मंदिर दारागंज में स्थित है और नागराज, गणेश, और पार्वती की प्रतिमाओं के लिए प्रसिद्ध है। नाग पंचमी के दिन यहाँ विशेष मेले का आयोजन होता है।

तुलसीदास और रामकथा

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना के लिए त्रिवेणी संगम के निकट स्थित भारद्वाज मुनि के आश्रम को चुना था। यहाँ उन्होंने भगवान राम के चरणों का वर्णन किया है।

त्रिवेणी पुष्प

त्रिवेणी पुष्प अरैल में यमुना के तट पर स्थित एक भव्य स्थल है। यहाँ पर ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की कई संरचनाएँ हैं, जैसे रामजन्मभूमि, बद्रीनाथ, केदारनाथ, और गौतम बुद्ध की मूर्तियाँ। यहाँ का मुख्य आकर्षण एक विशाल गुम्बद है, जो इसे विशेष बनाता है।

अरैल

अरैल, प्रयागराज के धार्मिक स्थलों में से एक है, जो यमुना नदी के पार स्थित है। इसका प्राचीन नाम अलकापुरी था। यहाँ देखने योग्य स्थलों में त्रिवेणी पुष्प, सोमेश्वर नाथ मंदिर, श्री बाला त्रिपुर सुंदरी मंदिर, चक्रमाधव मंदिर, और कोटिश्वर मंदिर शामिल हैं। यह क्षेत्र धार्मिक और ऐतिहासिक धरोहरों का संगम है।

पातालपुरी मंदिर और अक्षयवट

किले के भीतर स्थित पातालपुरी मंदिर भूगर्भ में स्थित है। यहाँ अक्षयवट का दर्शन किया जा सकता है, जिसे अमर वृक्ष के रूप में पूजा जाता है। यह स्थल भगवान राम से जुड़ी किंवदंतियों का केंद्र है।

प्रयागराज के प्रमुख घाट

सरस्वती घाट

यमुना नदी के तट पर स्थित यह एक नवनिर्मित रमणीय स्थल है। यहाँ की सीढ़ियाँ नदी के हरे-भरे जल तक जाती हैं और ऊपर का पार्क हमेशा हरी घास से ढका रहता है। यह बोटिंग और संगम तक पहुँचने के लिए एक प्रमुख स्थान है।

अरैल घाट

अरैल घाट प्रयागराज का सबसे बड़ा और आधुनिक घाट है। यह स्थान टहलने के लिए आदर्श है और यहाँ बोटिंग की सुविधा भी उपलब्ध है। स्नानार्थियों के लिए सिटिंग प्लाजा भी यहाँ मौजूद है।

संगम घाट

संगम घाट, जहाँ गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती नदियाँ मिलती हैं, प्रयागराज का सबसे पवित्र स्थान है। यहाँ लोग स्नान करते हैं और धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करते हैं। कुंभ मेले के दौरान यह घाट करोड़ों श्रद्धालुओं का स्वागत करता है।

अन्य घाट

प्रयागराज में अन्य प्रमुख घाटों में बलुआ घाट, बोट क्लब घाट, रसूलाबाद घाट, दशाश्वमेघ घाट, गऊ घाट, किला घाट और श्रृंगवेरपुर घाट शामिल हैं। इनमें से हर घाट का अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है।

प्रयागराज का धार्मिक महत्व

प्रयागराज को “संगमनगरी” और “कुंभनगरी” के नामों से भी जाना जाता है। यहाँ द्वादश माधव (भगवान विष्णु के बारह स्वरूप) की उपस्थिति है, जो इस नगर को विशेष आध्यात्मिक महत्व प्रदान करते हैं। ये द्वादश माधव मंदिर विभिन्न स्थानों पर स्थित हैं और श्रद्धालु इनका दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं।

यह नगर केवल कुंभ मेला के लिए ही नहीं, बल्कि धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में वर्णित कई अन्य स्थानों के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां कई प्राचीन मंदिर, आश्रम और धार्मिक स्थल हैं, जो इसे धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनाते हैं।

प्रयागराज के प्रमुख पार्क और उद्यान

चंद्रशेखर आजाद पार्क (कम्पनी बाग)

यह पार्क प्रयागराज के बीचों-बीच स्थित है और शहर का सबसे बड़ा हरा-भरा स्थान है। इस विशाल पार्क में एक स्टेडियम, म्यूजियम, पुस्तकालय, नर्सरी, प्रयाग संगीत समिति और इलाहाबाद विश्वविद्यालय भी स्थित हैं।

खुसरो बाग

प्रयागराज जंक्शन रेलवे स्टेशन के पास स्थित खुसरो बाग मुगलकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह बाग जहाँगीर के पुत्र खुसरो के नाम पर बना था और इसमें तीन प्रमुख मकबरे हैं। यहाँ अमरूद के बगीचे और पौधशाला भी हैं।

नेहरू पार्क

मैक्फरसन झील के आसपास स्थित यह आधुनिक पार्क सौंदर्य और शांति का प्रतीक है। यहाँ बोटिंग की सुविधा उपलब्ध है और यह लोगों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है।

हाथी पार्क

चंद्रशेखर आजाद पार्क के पास स्थित हाथी पार्क बच्चों के लिए एक आकर्षक स्थान है। यहाँ पत्थर का बना एक बड़ा हाथी बच्चों का मुख्य आकर्षण है।

पीडी टंडन पार्क

सिविल लाइंस क्षेत्र में स्थित यह तिकोने आकार का पार्क शांति और हरियाली का स्थान है। इसके पास ही हनुमान मंदिर चौक स्थित है।

शैक्षिक और साहित्यिक योगदान

प्रयागराज शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भी अग्रणी रहा है। यहाँ इलाहाबाद विश्वविद्यालय स्थित है, जिसे “पूर्व का ऑक्सफोर्ड” कहा जाता है। यह विश्वविद्यालय अपने गौरवशाली इतिहास और उच्च शैक्षणिक मानकों के लिए जाना जाता है।

इसके अतिरिक्त, प्रयागराज भारतीय साहित्य के महान कवियों और लेखकों का निवास स्थान भी रहा है। महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, और हरिवंश राय बच्चन जैसे साहित्यकारों ने यहां रहकर हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया।

शिक्षा का केंद्र – प्रयागराज

प्रयागराज प्राचीन काल से ही शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा है। इसे “पूर्व का ऑक्सफोर्ड” कहा जाता है। यहाँ के शिक्षा संस्थान न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रसिद्ध हैं।

प्रमुख विश्वविद्यालय

  1. इलाहाबाद विश्वविद्यालय: भारत का चौथा सबसे पुराना विश्वविद्यालय, जिसे 1887 में स्थापित किया गया था।
  2. उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय: यह विश्वविद्यालय दूरस्थ शिक्षा में विशेष भूमिका निभाता है।
  3. इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट (मानित विश्वविद्यालय): कृषि और पर्यावरण शिक्षा में यह अग्रणी है।
  4. नेहरू ग्राम भारती विश्वविद्यालय: यह ग्रामीण शिक्षा और सामाजिक सुधार के लिए प्रसिद्ध है।
  5. इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय: सिविल लाइंस में स्थित यह एक प्रमुख राज्य विश्वविद्यालय है।

इंजीनियरिंग कॉलेज

  1. मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (MNNIT): देश के प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थानों में से एक।
  2. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IIIT-A): सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी।
  3. हरीशचंद्र अनुसंधान संस्थान (HRI): गणित और भौतिकी में शोध के लिए प्रसिद्ध।

कोचिंग संस्थान

प्रयागराज सरकारी नौकरियों की तैयारी के लिए प्रसिद्ध कोचिंग संस्थानों का भी केंद्र है। यहाँ के प्रमुख कोचिंग संस्थान हैं:

  • सुपर क्लाइमैक्स अकादमी प्राइवेट लिमिटेड
  • चंद्रा इंस्टीट्यूट
  • धेय IAS
  • सन्देश अकादमी

प्रयागराज के महान व्यक्तित्व

प्रयागराज, जिसे पूर्व में इलाहाबाद के नाम से जाना जाता था, केवल एक शहर नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, इतिहास और राजनीति का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यह न केवल अपनी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इस पवित्र भूमि ने अनेक महान विभूतियों को जन्म दिया, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया एवं अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है। साहित्य, राजनीति, कला, खेल संगीत और विज्ञान हर क्षेत्र में प्रयागराज के लोगों का योगदान अविस्मरणीय है। यह शहर अपने गौरवशाली अतीत और समृद्ध विरासत के लिए सदैव सम्मानित रहेगा।

राजनीति और स्वतंत्रता संग्राम में प्रयागराज का योगदान

प्रयागराज भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख केंद्र रहा है। यहाँ से कई महान स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता जुड़े रहे हैं, जिन्होंने देश की राजनीति को नई दिशा दी।

  1. मदन मोहन मालवीय: स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेताओं में से एक, मालवीय जी ने शिक्षा और राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक भी थे।
  2. मोतीलाल नेहरू: प्रसिद्ध वकील और राजनेता, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। इनके पुत्र जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने।
  3. जवाहरलाल नेहरू: स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, जिन्होंने आधुनिक भारत की नींव रखी।
  4. पुरुषोत्तमदास टंडन: स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ, जिन्हें ‘राजर्षि’ की उपाधि दी गई। हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
  5. विश्वनाथ प्रताप सिंह: भारत के सातवें प्रधानमंत्री, जिन्होंने सामाजिक न्याय और आरक्षण नीति को लेकर महत्वपूर्ण कार्य किए।
  6. इंदिरा गांधी: भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री, जिन्होंने अपने कुशल नेतृत्व से भारत की राजनीति में अभूतपूर्व परिवर्तन किए।
  7. लाल बहादुर शास्त्री: भारत के दूसरे प्रधानमंत्री, जिन्होंने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया।
  8. राजीव गांधी: आधुनिक भारत की सूचना क्रांति के जनक माने जाते हैं।
  9. गुलजारीलाल नंदा: कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत रहे।
  10. चंद्रशेखर: 1990 में भारत के प्रधानमंत्री बने।

साहित्य और कला के क्षेत्र में योगदान

प्रयागराज साहित्यिक दृष्टि से भी समृद्ध रहा है। यहाँ कई प्रसिद्ध कवि, लेखक और आलोचक हुए हैं, जिन्होंने हिंदी और उर्दू साहित्य को समृद्ध किया।

  1. महादेवी वर्मा: हिंदी साहित्य की महान कवयित्री, जिन्हें ‘आधुनिक मीरा’ कहा जाता है।
  2. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला: छायावाद युग के प्रमुख कवि, जिन्होंने हिंदी कविता को नई ऊँचाइयाँ दीं।
  3. सुमित्रानंदन पंत: प्रकृति और रोमांटिक काव्यधारा के प्रमुख कवि।
  4. धर्मवीर भारती: प्रसिद्ध उपन्यासकार और नाटककार, जिनका उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ बहुत लोकप्रिय रहा।
  5. फिराक गोरखपुरी: उर्दू साहित्य के महान कवि, जिन्होंने गजल लेखन में विशेष योगदान दिया।
  6. हरिवंश राय बच्चन: हिंदी साहित्य में अपनी ‘मधुशाला’ रचना के लिए प्रसिद्ध।
  7. उपेन्द्रनाथ अश्क: हिंदी कथा साहित्य के महत्वपूर्ण लेखक।
  8. रामकुमार वर्मा: हिंदी कविता और नाटक के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई।
  9. विभूतिनारायण राय: लेखक और साहित्यकार, जिन्होंने कई सामाजिक विषयों पर लेखनी चलाई।
  10. जगदीश गुप्त: प्रसिद्ध कवि और कला इतिहासकार।

खेल और विज्ञान में योगदान

खेल और विज्ञान के क्षेत्र में भी प्रयागराज के लोगों ने अपनी पहचान बनाई है।

  1. ध्यानचंद: हॉकी के जादूगर, जिन्होंने भारतीय हॉकी को विश्व स्तर पर गौरवान्वित किया।
  2. मुहम्मद कैफ: भारतीय क्रिकेटर, जिन्होंने 2002 नेटवेस्ट ट्रॉफी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  3. हरिप्रसाद चौरसिया: विश्व प्रसिद्ध बांसुरी वादक।
  4. मणीन्द्र अग्रवाल: प्रसिद्ध संगणक वैज्ञानिक, जिन्होंने गणित के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किए।
  5. मृगांक सूर: तंत्रिका वैज्ञानिक, जिन्होंने न्यूरोसाइंस के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया।
  6. हरीश चंद्र: भौतिकशास्त्री और गणितज्ञ, जिन्होंने गणितीय भौतिकी में उल्लेखनीय योगदान दिया।

संगीत और फिल्म उद्योग में योगदान

प्रयागराज संगीत और फिल्म उद्योग में भी महत्वपूर्ण योगदान देता आया है।

  1. अमिताभ बच्चन: भारतीय सिनेमा के महानायक, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में एक नया युग स्थापित किया।
  2. शुभा मुद्गल: हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की प्रसिद्ध गायिका।
  3. राजेंद्र कुमार: साहित्यकार, आलोचक और समाजशास्त्री, जिन्होंने भारतीय समाज की विभिन्न समस्याओं पर लेखन किया।

प्रयागराज का उद्योग और व्यापार में योगदान

प्रयागराज का औद्योगिक क्षेत्र भी धीरे-धीरे उन्नति की ओर बढ़ रहा है। यहाँ विभिन्न बड़े और छोटे उद्योग स्थापित हैं। प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र नैनी और फूलपुर हैं, जहाँ कई सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की कंपनियों की इकाइयाँ स्थित हैं।

  1. अरेवा टी एंड डी इंडिया: बहुराष्ट्रीय अरेवा समूह का एक प्रमुख प्रभाग।
  2. भारत पंप्स एंड कंप्रेसर्स लिमिटेड (BPCL): जल्द ही मिनिरत्न घोषित होने वाली कंपनी।
  3. इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज (ITI): दूरसंचार उपकरण निर्माण में अग्रणी।
  4. रिलायंस इंडस्ट्रीज-इलाहाबाद निर्माण प्रखंड
  5. हिंदुस्तान केबल्स, त्रिवेणी स्ट्रक्चरल्स लिमिटेड (TSL)
  6. बैद्यनाथ की नैनी इकाई: आयुर्वेदिक उत्पादों के निर्माण में योगदान।
  7. इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर को-ऑपरेटिव (IFFCO) फूलपुर: विश्व का सबसे बड़ा नैफ्था आधारित खाद निर्माण परिसर।
  8. राहत इंडस्ट्रीज़: नूरानी तेल का उत्पादन करने वाली प्रसिद्ध कंपनी।
  9. तीन विद्युत परियोजनाएँ: मेजा, बारा और करछना में जेपी समूह एवं NTPC द्वारा संचालित।

आधुनिक प्रयागराज और विकास योजनाएँ

वर्तमान में प्रयागराज न केवल एक धार्मिक और ऐतिहासिक नगर है, बल्कि तेजी से विकसित होता हुआ एक शहरी केंद्र भी है। यहाँ आधारभूत संरचना के विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। नये पुल, सड़कों और मेट्रो रेल परियोजनाओं पर काम किया जा रहा है।

जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना के तहत प्रयागराज को स्मार्ट सिटी बनाने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। इसके साथ ही, पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता अभियानों पर भी ध्यान दिया जा रहा है।

आधुनिक युग में, प्रयागराज अपनी पुरानी परंपराओं को सहेजते हुए विकास के नए आयाम छू रहा है। यह नगर अपने धार्मिक, ऐतिहासिक, और सांस्कृतिक महत्व के कारण देश और दुनिया के नक्शे पर एक विशेष स्थान रखता है।

प्रयागराज का इतिहास और इसकी सांस्कृतिक धरोहर भारत की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। यहाँ के धार्मिक स्थल, ऐतिहासिक किले, और सांस्कृतिक धरोहर न केवल भारतीय इतिहास के सुनहरे अध्यायों को समेटे हुए हैं, बल्कि यह तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र हैं। प्रयागराज ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक दृष्टि से भी अद्वितीय है।

यहाँ के दर्शनीय स्थल, घाट, पार्क और शैक्षणिक संस्थान इसे एक विशेष स्थान बनाते हैं। यह शहर भारत की विविधता और विरासत का प्रतीक है। प्रयागराज की यात्रा न केवल एक आध्यात्मिक अनुभव है, बल्कि यह इतिहास और कला के प्रति हमारे दृष्टिकोण को भी समृद्ध करती है। साथ ही साथ भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर से भी परिचित कराती है।

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