भारतीय प्रायद्वीप में अनेक नदियां प्रवाहित हैं।मैदानी भाग की नदियों की अपेक्षा प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली की नदियाँ आकार में छोटी हैं। प्रायद्वीपीय भारत की नदियां अधिकांशतः मौसमी हैं और वर्षा पर आश्रित हैं। वर्षा ऋतु में इन नदियों के जल-स्तर में वृद्धि हो जाती है, पर शुष्क ऋतु में इनका जल-स्तर काफी कम हो जाता है।
इस क्षेत्र की नदियां कम गहरी हैं, परंतु इन नदियों की घाटियां चौड़ी हैं और इनकी अपरदन क्षमता लगभग समाप्त हो चुकी है। यहां की अधिकांश नदियां बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं, कुछ नदियां अरब सागर में गिरती हैं और कुछ नदियां गंगा तथा यमुना नदी में जाकर मिल जाती हैं। प्रायद्वीपीय क्षेत्र की कुछ नदियां अरावली तथा मध्यवर्ती पहाड़ी प्रदेश से निकलकर कच्छ के रन या खंभात की खाड़ी में गिरती हैं।
प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली की नदियों का विभाजन
प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली की नदियां दो भागों में विभक्त होती हैं –
- अरब सागर में गिरने वाली नदियां
- बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां
अरब सागर में गिरने वाली नदियां
भादर नदी
भादर नदी भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात में सौराष्ट्र प्रायद्वीप की एक नदी है । यह अपने उद्गम स्थान गुजरात के राजकोट से निकलकर जसदान के माध्यम से दक्षिण की ओर बहती है। इसके बाद दक्षिण-पश्चिम और फिर पश्चिम की ओर मुड़ जाती है तथा आगे बढ़ते हुए पोरबंदर के पास अरब सागर में मिल जाती है।
शतरंजी नदी (शेत्रुंजी नदी)
शतरंजी नदी अथवा शेत्रुंजी नदी (Shetrunji River) प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली है। यह भारत के गुजरात राज्य में बहने वाली एक नदी है। शतरंजी नदी (शेत्रुंजी नदी) अमरेली ज़िले में गीर पहाड़ियों में उत्पन्न होकर पूर्व दिशा में बहती है। आखिर में यह अरब सागर की खम्भात की खाड़ी में मिल जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई 227 किमी है।
साबरमती नदी
साबरमती नदी भारत की प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली की एक प्रमुख नदी है। साबरमती नदी का उद्गम स्थान राजस्थान के उदयपुर ज़िले में अरावली पर्वतमाला में है। यहाँ से निकलकर यह राजस्थान और गुजरात में दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर बहते हुए 371 किमी का सफर तय करते हुए अरब सागर की खम्भात की खाड़ी में मिल जाती है।
साबरमती नदी की लम्बाई राजस्थान में 48 किमी है। जबकि गुजरात में इसकी लम्बाई 323 किमी है। साबरमती नदी गुजरात की प्रमुख नदी है। साबरमती के तट पर अहमदाबाद और गांधीनगर जैसे प्रमुख नगर बसे हैं। साबरमती नदी पर ही धरोई बाँध योजना बनायीं गयी है। जिसके माध्यम से इसके जल का प्रयोग गुजरात में सिंचाई और विद्युत् उत्पादन के लिए किया जाता है।
माही नदी
माही नदी प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली की एक नदी है। इसका प्रवाह मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात राज्यों में है। इसकी सहायक नदियां सोम एवं जाखम नदी है। यह नदी पश्चिमी भारत की एक प्रमुख नदी हैं। माही नदी का उद्गम स्थान मध्यप्रदेश के धार जिला के समीप मिन्डा ग्राम की विंध्याचल पर्वत श्रेणी में है। यह दक्षिणी मध्य प्रदेश के धार, झाबुआ व रतलाम जिलों से प्रवाहित होती हुई गुजरात तथा राजस्थान राज्य में पहुचती है। यहाँ से निकलकर यह नदी खंभात की खाड़ी द्वारा अरब सागर में मिल जाती है। माही/महि नदी को वागड़ व कंठाल की गंगा तथा दक्षिण राजस्थान की सवर्ण रेखा उपनामों से भी जाना जाता है।
नर्मदा नदी
नर्मदा नदी प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली की एक नदी है। नर्मदा नदी को स्थानीय रूप से कही-कही रेवा नदी भी कहा जाता है। नर्मदा नदी पश्चिम-दिशा में बहने वाली सबसे लम्बी नदी तथा भारत की पांचवी सबसे लम्बी नदी है। यह नदी मध्य प्रदेश राज्य की भी सबसे बड़ी नदी है। नर्मदा विन्ध्याचल पर्वत माला एवं सतपुडा पर्वतमाला के बीच भ्रंश घाटी में बहती है। नर्मदा नदी का उद्गम मैकाल पर्वत की अमरकंटक चोटी से होता है।
नर्मदा नदी मध्य प्रदेश (87 प्रतिशत), महाराष्ट्र (1.5 प्रतिशत) और गुजरात (11.5 प्रतिशत) में प्रवाहित होती है। इसे अपने जीवनदायी महत्व के लिए “मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवनरेखा” भी कहा जाता है। नर्मदा नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के अनूपपुर ज़िले के अमरकंटक पठार से होता है। यहाँ से निकलकर यह पश्चिम की ओर1,312 किमी (815.2 मील) की दूरी तय करते हुए भरूच से 30 किमी (18.6 मील) पश्चिम में खम्भात की खाड़ी में गिरकर अरब सागर में मिल जाती है। कुछ स्रोतों में इस नदी को उत्तर भारत और दक्षिण भारत की प्रारम्परिक विभाजक माना जाता है।
प्रायद्वीप भारत में केवल नर्मदा और ताप्ती नदी ही दो मुख्य नदियाँ हैं जो पूर्व से पश्चिम बहती हैं। इस नदियों को उलटी दिशा में बहने वाली नदिया कहते हैं। नर्मदा नदी विंध्य पर्वतमाला और सतपुड़ा पर्वतमाला द्वारा सीमित एक रिफ़्ट घाटी में बहती है। नर्मदा नदी अन्य नदियों की भांति ही खंभात की खाड़ी में गिरने से पहले ज्वारनदमुख (एश्चुअरी) का निर्माण करती है।
नर्मदा नदी की सहायक नदियां – तवा, बरनेर, दूधी, शक्कर, हिरन, बरना, कोनार, माचक।
एस्चुअरी या ज्वारनदमुख
नदी का जलमग्न मुहाना जहाँ स्थल से आने वाले जल और सागरीय खारे जल का मिलन होता है। नदी के जल में तीव्र प्रवाह के कारण मलवों का निक्षेप मुहाने पर नहीं हो पाता है और नदी जल के साथ मलबा भी समुद्र में गिर जाता है। इस प्रकार नदी का मुहाना गहरा हो जाता है। इस गहरे मुहाने को एस्चुअरी या ज्वारनदमुख कहते हैं।
तापी नदी (ताप्ती नदी)
ताप्ती नदी, जिसे तापी नदी भी कहा जाता है। ताप्ती नदी प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली की एक नदी है जो भारत के मध्य भाग में प्रवाहित होती है। यह नर्मदा नदी से दक्षिण में बहती है। प्रायद्वीप भारत में केवल नर्मदा और ताप्ती ही मुख्य नदियाँ हैं जो पूर्व से पश्चिम दिशा में बहती हैं।
ताप्ती नदी मध्य प्रदेश राज्य के बैतूल ज़िले के मुल्ताई नामक स्थान से निकलती है। यहाँ से निकलकर यह सतपुड़ा पर्वत प्रक्षेपों के मध्य से पश्चिम की ओर बहती हुई महाराष्ट्र के खानदेश के पठार एवं सूरत के मैदान को पार करती हुई गुजरात स्थित खम्भात की खाड़ी में गिर कर अरब सागर में मिल जाती है। यह नदी खम्भात की कड़ी में मिलने से पहले पूर्व से पश्चिम की ओर लगभग 740 किलोमीटर की दूरी तक बहती है। सूरत बन्दरगाह इसी नदी के मुहाने पर स्थित है। इसकी प्रधान सहायक नदी (उपनदी) का नाम पूर्णा नदी (पूरणा नदी) है। इस नदी को सूर्यपुत्री भी कहा जाता है।[
तापी मध्यप्रदेश के बैतुल जिले के मुल्लाई नामक स्थान से निकलती है। यह सतपुड़ा एवं अजंता पहाड़ी के बीच भ्रंश घाटी में बहती है। तापी नदी का बेसिन महाराष्ट्र (79 प्रतिशत), मध्यप्रदेश (15 प्रतिशत) एवं गुजरात (6 प्रतिशत) है। तापी नदी खंभात की खाड़ी में अपना जल गिरते समय एश्चुअरी का निर्माण करती है।
माण्डवी नदी (महादायी नदी)
मांडवी नदी को महादायी नदी भी कहा जाता था। यह नदी प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली के अंतर्गत भारत के गोवा, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्यों में बहने वाली एक नदी है। यह नदी कर्नाटक में पश्चिमी घाट की पर्वतों की ढलानों में भीमगाड झरने से उत्पन्न होती है और लगभग 81 किमी तक का सफ़र तय करने के बाद गोवा में ज़ुवारी नदी से संगम करती और और फिर यह संयुक्त नदी अरब सागर में मिल जाती है। इसके सागर में विलय स्थल से मुरगांव (मोरमुरगांव) की प्राकृतिक बंदरगाह बनती है। मांडवी नदी को मांडोवी, महादायी या महादेई तथा कुछ स्थानों पर गोमती नदी के नाम से भी जाना जाता है।
जुआरी नदी
जुवारी नदी प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली के अंतर्गत भारत के गोवा राज्य में बहने वाली सबसे लम्बी नदी है। यह एक ज्वारीय नदी है। इस नदी का उद्गम पश्चिमी घाट में स्थित हेमद-बार्शम में है। जुवारी नदी को आन्तरिक क्षेत्रों में अघनाशिनी नाम से भी जाना जाता है। यह नदी दक्षिण-पश्चिम दिशा में बहती है और तिस्वाड़ी, पोण्डा, साष्टी, संगेम और केपेम तालुकों (तहसील) से होकर प्रवाहित होती है। जुआरी नदी गोवा राज्य में पश्चिमी घाट में स्थित हेमद-बार्शम निकलकर पश्चिम दिशा में बहते हुए अरब सागर में गिरती है।
शरावती नदी
शरावती नदी प्रायद्वीपीय भारत के नदी प्रणाली के अंतर्गत एक नदी है जो भारत के कर्नाटक राज्य में पश्चिमी घाट पर्वत की अम्बुतीर्थ नामक पहाड़ी से निकलती है एवं कर्नाटक राज्य में बहते हुए अरब सागर में गिरती है। इस नदी का अधिकांश भाग पश्चिमी घाट में है। प्रसिद्ध जोग जलप्रपात इसी नदी के द्वारा ही बना है। यह नदी तथा इस नदी के आस-पास का क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से बहुत समृद्ध है।
गंगावेली नदी अथवा गंगवल्ली नदी (Gangavalli River)
गंगावेली नदी अथवा गंगवल्ली नदी भारत के कर्नाटक राज्य के पश्चिमी भाग में बहने वाली एक नदी है। यह धारवाड़ ज़िले में पश्चिमी घाट की पहाड़ियों में शालमाला नदी के नाम से आरम्भ होती है और पश्चिम दिशा में बहती है। यह नदी कलघटगी के समीप बेडती नदी से संगम करती है जिसके पश्चात गंगवल्ली नदी के नाम से जानी जाती है। संगम स्थल से कुछ पहले मागोड नामक स्थान के समीप बेडती नदी 180 मीटर (590 फीट) ऊँचा मागोड जलप्रपात बनाती है। गंगवल्ली नदी कुछ दूर पश्चिम में बहकर यह उत्तर कन्नड़ ज़िले में अंकोला में अरब सागर में मिल जाती है।
पेरियार नदी
पेरियार नदी भारत के केरल राज्य की सबसे लम्बी और बड़ी नदी है। इस नदी की लम्बाई 244 किमी है। यह तमिलनाडु राज्य में पश्चिमी घाट की ऊँचाईयों में आरम्भ होती है। केरल में जलविद्युत का सबसे बड़ा स्रोत, इदुक्की बांध, इसी पर बना हुआ है। राज्य के कई मुख्य नगरों में जल इसी नदी से प्राप्त होता है।
यह तीव्र ढाल में प्रवाहित होने के कारण समानांतर प्रतिरूप का निर्माण करती है। पश्चिम की ओर से बहने वाली नदियों में पेरियार दूसरी सबसे लंबी नदी है। तथा भारत के केरल प्रदेश की सबसे लम्बी नदी है। इसकी लम्बाई 244 किमी है। इसका अधिकतम पानी मुल्लापेरियार नामक बांध में एकत्रित होता है, जिससे तमिलनाडु एवं उसके पड़ोसी राज्यों की सिंचाई होती है। पेरियार नदी का उद्गम स्थल पश्चिम घाट की शिवागिरी की पहाड़ियों (अन्नामलाई पहाड़ी) से माना जाता है। यह अन्नामलाई पहाड़ी से निकलती है एवं केरल राज्य में बहते हुए पश्चिम की ओर बहते हुए अरबसागर में गिरती है। इसे केरल की जीवन रेखा भी कहा जाता है। इसका प्रवाह क्षेत्र केरल एवं तमिलनाडु राज्यों में है।
भरतपूजा नदी / भारतपुड़ा नदी (Bharathappuzha River) अथवा नीला नदी (Nila River)
भरतपूजा नदी / भारतपुड़ा नदी अथवा नीला नदी भारत के तमिल नाडु और केरल राज्यों में बहने वाली एक नदी है। पेरियार नदी के बाद, केरल में बहने वाली नदियों में यह दूसरी सबसे लंबी नदी है। यह केरल राज्य में 209 किलोमीटर की दूरी तय करती है, हालाँकि इसकी कुल लंबाई लगभग 250 किलोमीटर है, जिसका 41 किलोमीटर हिस्सा तमिलनाडु में है। इसके नाम भरतपूजा नदी / भारतपुड़ा का अर्थ है “भारत की नदी। इसका अन्य नाम पोन्नानी है।
पंबा नदी
पम्पा नदी जिसे पम्बा नदी भी कहा जाता है, भारत के प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली के एक नदी है। यह भारत के केरल राज्य में प्रवाहित होती है। पेरियार नदी और भारतपुड़ा नदी के बाद यह केरल की तीसरी सबसे लम्बी नदी है। इसे दक्षिण भागीरथी भी कहा जाता है। भगवान अय्यप्पा को समर्प्ति प्रसिद्ध सबरिमलय हिन्दू मन्दिर इसी के किनारे स्थित है। यह नदी बेम्बनाद झील में गिरती है।
बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियां
हुगली नदी
हुगली नदी, जिसे भागीरथी-हुगली नदी भी कहा जाता है, भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में बहने वाली एक नदी है। कुछ स्रोतों में इसे गंगा नदी की वितरिका बताया जाता है। इस नदी को विश्व का सबसे अधिक विश्वासघाती नदी कहते है। इस नदी के तट पर कोलकाता बन्दरगाह स्थित है। हुगली नदी पश्चिम बंगाल में गंगा नदी की वितरिका के रूप में उद्गमित होती है एवं बंगाल की खाड़ी में अपना जल गिराती है।
दामोदर नदी
दामोदर नदी भारत के झारखण्ड और पश्चिम बंगाल राज्यों में बहने वाली एक नदी है। इस नदी के जल से पनबिजली की दामोदर घाटी परियोजना चलाई जाती है, जिसका संचालन दामोदर घाटी निगम करती है। इतिहास में इस नदी पर भयंकर बाढ़ आया करती थी, जिसके कारण इसे दुख की नदी कहा जाता था। परन्तु आज के समय में इसपर नियंत्रण पा लिया गया है। यह नदी छोटा नागपुर पठार, पलामू जिला, झारखण्ड से निकलती है पूर्व दिशा में बहते हुए पश्चिम बंगाल में हुगली नदी में मिल जाती है। दामोदर नदी अतिप्रदूषित नदी है। यह बंगाल का शोक कहलाती है। इसका प्रवाह क्षेत्र झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल राज्य है।
स्वर्ण रेखा नदी
स्वर्ण रेखा नदी, रांची के पठार के राँची नगर से 16 किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में स्थित नगड़ी गाँव में रानी चुआं नामक स्थान से निकलती है। यहाँ से निकलने के बाद यह उत्तर पूर्व की ओर बढ़ती हुई मुख्य पठार को छोड़कर जल प्रपात बनती हुई गिरती है। इस जल प्रपात (झरना) को हुन्डरु जलप्रपात कहते हैं।
हुन्डरु जल प्रपात के रूप में गिरने के बाद नदी का बहाव पूर्व की ओर हो जाता है और मानभूम जिले के तीन संगम बिंदुओं के आगे यह दक्षिण पूर्व की ओर मुड़कर सिंहभूम में बहती हुई उत्तर पश्चिम से मिदनापुर जिले में प्रवेश करती है। मिदनापुर जिले के पश्चिमी भूभाग के जंगलों में बहती हुई यह नदी बालेश्वर जिले में पहुँचती है। यहाँ पर यह नदी पूर्व पश्चिम की ओर टेढ़ी-मेढ़ी बहती हुई बालेश्वर नामक स्थान पर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। यह पश्चिम बंगाल और उडीसा के बीच सीमा रेखा बनाती है।
वैतरणी नदी
बैतरणी नदी या वैतरणी नदी भारत के ओड़िशा राज्य में बहने वाली छह प्रमुख नदियों में से एक है। वैतरणी नदी 900 मीटर की ऊँचाई पर ओडीसा के क्योंझर (केन्दुझर) ज़िले की गुप्तगंगा पहाड़ियों में गोनासिका से उत्पन्न होती है। इस नदी की लम्बाई 360 किमी है। यह नदी ब्राह्मणी नदी के साथ मिलकर बालेश्वर ज़िले में धामरा के पास बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। यह नदी ओडिशा की सबसे पवित्र नदी है और इसे ओडिशा की गंगा कहा जाता है। इस नदी में अक्सर बाढ़ आया करती है। इसका प्रवाह क्षेत्र ओडीसा एवं झारखण्ड राज्य है।
ब्राह्मणी नदी
ब्राह्मणी नदी भारत के ओड़िशा राज्य में बहने वाली एक ऋतु-निर्भर नदी है, यानि यह वर्ष के कुछ महीनों में ही बहती है। यह शंख नदी और दक्षिणी कोयल नदी के संगम से प्रारंभ होती है। यह नदी सुन्दरगढ़, देवगढ़, अनुगुल, ढेंकानाल, कटक, जाजपुर और केन्द्रापड़ा ज़िलों से होकर प्रवाहित होती है। इसके बाद यह वैतरणी नदी के साथ बंगाल की खाड़ी पर एक डेल्टा नदीमुख बनाकर धामरा के पास समुद्र में विलय हो जाती है। यह महानदी के नदीतंत्र का भाग है। इसकी उत्पत्ति ओडीसा राज्य की कोयेल एवं शंख नदियों की धाराओं के मिलने से हुई है। यह बंगाल की खाड़ी में अपना जल गिराती है।
महानदी
महानदी प्रायद्वीपीय भारत से निकलने वाली नदी है, जो छत्तीसगढ़ तथा ओड़िशा राज्य की सबसे बड़ी नदी है। प्राचीनकाल में महानदी का नाम चित्रोत्पला था। महानदी के दो अन्य नाम महानन्दा एवं नीलोत्पला भी हैं। महानदी का उद्गम रायपुर के पास धमतरी जिले में स्थित सिहावा (सिंहाना) नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की तरफ है। सिहावा पहाड़ी से निकलकर राजिम में यह जब पैरी और सोढुल नदियों के जल को ग्रहण करती है तब तक विशाल रूप धारण कर लेती है।
इसके पश्चात ऐतिहासिक नगरी आरंग और उसके बाद सिरपुर में और विकसित हो जाती है। इस प्रकार विकसित होते हुए जब शिवरीनारायण में पहुँचती है तब अपने नाम के अनुरुप महानदी बन जाती है। महानदी की धारा इस धार्मिक स्थल से मुड़ जाती है और दक्षिण से उत्तर के बजाय यह पूर्व दिशा में बहने लगती है। महानदी संबलपुर जिले में प्रवेश लेकर छ्त्तीसगढ़ से बिदा ले लेती है। महानदी अपनी पूरी यात्रा का आधे से अधिक भाग छत्तीसगढ़ में बिताती है। सिहावा (सिंहाना) पहाड़ी से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरने तक महानदी लगभग 855 किमी की दूरी तय करती है।
छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर धमतरी, कांकेर, चारामा, राजिम, चम्पारण, आरंग, सिरपुर, शिवरी नारायण और ओड़िशा में सम्बलपुर, बलांगीर, कटक आदि स्थान हैं। महानदी की सहायक नदियों के नाम पैरी, सोंढुर, शिवनाथ, हसदेव, अरपा, जोंक, तेल आदि नदियाँ हैं। महानदी का डेल्टा कटक नगर से लगभग सात मील पहले से शुरू होता है। यहाँ से यह कई धाराओं में विभक्त हो जाती है तथा बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। महानदी पर बने प्रमुख बाँध रुद्री, गंगरेल तथा हीराकुंड है। यह नदी पूर्वी मध्यप्रदेश और उड़ीसा की सीमाओं को भी निर्धारित करने का काम करती है।
गोदावरी नदी
गोदावरी नदी भारत के प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली की एक प्रमुख नदी है। इसे दक्षिण गंगा व वृद्ध गंगा भी कहा जाता है। इसकी उत्पत्ति पश्चिमी घाट में नासिक जिले की त्रयंबक पहाड़ी से हुई है। यह महाराष्ट्र में नाशिक ज़िले से निकलती है। इसकी लम्बाई लगभग 1465 किलोमीटर है। इस नदी का पाट बहुत बड़ा है। गोदावरी नदी महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसढ़, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, ओडीसा, कर्नाटक एवं यनम (पुदुचेरी) राज्यों से होकर बहते हुए राजमंड्री नगर के पास बंगाल की खाड़ी मे जाकर मिलती है।
गोदावरी नदी की सहायक नदियां – दुधना, पूर्ण, पेन गंगा, वेनगंगा, इन्द्रावती, सेलूरी, प्राणहिता एवं मंजरा/मंजीरा।
कृष्णा नदी
कृष्णा नदी प्रायद्वीपीय भारत में बहने वाली एक नदी है। यह पश्चिमी घाट के पर्वत महाबलेश्वर से निकलती है। इसकी लम्बाई लगभग 1400 किमी है। कृष्णा नदी प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे लंबी नदी है। यह दक्षिण-पुर्व राज्य महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश में बहती हुई बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती है। यह बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले डेल्टा बनाती है।
पेन्नार नदी
पेन्ना नदी को पेन्नार और उत्तर पिनाकिनी भी कहते हैं। पेन्नार नदी भारत के कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश राज्यों में बहने वाली एक नदी है। यह कर्नाटक के चिक्कबल्लापुर ज़िले (कोलार जिले) में नंदी पहाड़ियों (नंदीदुर्ग पहाड़ी) से उत्पन्न होती है और उत्तर व पूर्व दिशाओं में कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश राज्यों से बहकर बंगाल की खाड़ी में विलय हो जाती है। नदी की कुल लम्बाई 597 किमी है।
कावेरी नदी
कावेरी नदी कर्नाटक तथा उत्तरी तमिलनाडु में बहनेवाली एक सदानीरा नदी है। यह कर्नाटक राज्य के पश्चिमी घाट के कुर्ग जिले की ब्रह्मगिरी पर्वत से निकली है। इसकी लम्बाई लगभग 760 किमी है। दक्षिण पूर्व में बहते हुए कावेरी नदी बंगाल की खाड़ी में मिलती है। हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान शहर तिरुचिरापल्ली कावेरी नदी के किनारे ही बसा है। कावेरी नदी के डेल्टा पर अच्छी खेती होती है। इसके पानी को लेकर दोनो राज्यों में विवाद है। इस विवाद को कावेरी जल विवाद कहा जाता हैं।
दक्षिण भारत की यह एकमात्र नदी है जिसमें वर्ष भर सतत रूप से जल प्रवाह बना रहता है। इसका कारण है – कावेरी का ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र कर्नाटक, दक्षिण-पश्चिम मानसून से वर्षा जल प्राप्त करता है। जबकि निचला जलग्रहण क्षेत्र तमिलनाडु, उत्तरी-पूर्वी मानसून से जल प्राप्त करता है।कावेरी नदी के अपवाह का 56 प्रतिशत तमिलनाडु, 41 प्रतिशत कर्नाटक व 3 प्रतिशत केरल में पड़ता है।
कावेरी नदी की सहायक नदियां – लक्ष्मण तीर्थ, कंबिनी, सुवर्णावती, भवानी, अमरावती, हेरंगी, हेमावती, शिमसा, अर्कवती।
वैगाई नदी
वैगइ नदी (वैगाई नदी) भारत के तमिल नाडु राज्य में बहने वाली एक नदी है। यह नदी प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली के अंतर्गत आती है। यह तमिलनाडु के तेनी ज़िले में पश्चिमी घाट की वरुसुनाडु (वरशानद) पहाड़ियों में उत्पन्न होती है। इसका अंत पाक जलसंधि (पाक की खाड़ी) में विलय होने से होता है। तमिलनाडु के तेनी, डिंडिगुल और मदुरई शहर इस नदी के किनारे बसे हुए हैं।
पाक जलसंधि (Palk Strait)
पाक जलसंधि (Palk Strait) भारत के तमिलनाडु राज्य और श्रीलंका के उत्तरी प्रान्त के जाफना ज़िले के बीच में स्थित एक जलसंधि है। यह जलसंधि पूर्वोत्तर में पाक खाड़ी तथा दक्षिण पश्चिम में मन्नार की खाड़ी को आपस में जोड़ती है। इसकी न्यूनतम गहराई 9.1 मीटर से कम है। पाक जलसन्धि की चौड़ाई 64 किमी से 137 किमी है। तथा इसकी लम्बाई 136 किमी है। इस जलसन्धि में कई नदीयाँ बहती है, जिसमें वैगई नदी शामिल है।
पाक जलसंधि के दक्षिणी छोर पर प्रसिद्ध राम सेतु स्थित है। हिन्दू मान्यता के अनुसार त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदेश से उनकी वानर सेना ने इस पुल का निर्माण किया था। इसी पुल के रास्ते से जाकर श्रीराम लंका पर विजय प्राप्त किये, और रावण का वध करके माता सीता को ले आए थे।
तामिरबरणी नदी (Thamirabarani River) / ताम्रपर्णी नदी (Tamraparni River)
तामिरबरणी नदी को ताम्रपर्णी नदी या पोरुनई नदी भी कहा जाता है। यह नदी भारत के तमिलनाडु राज्य के तिरूनेलवेली और तूतुकुड़ी ज़िलों में बहने वाली एक बारहमासी नदी है। तामिरबरणी नदी पश्चिमी घाट में अगस्त्य मलय की पहाड़ियों में अगसत्यरकूदम शिखर से निकलती है। यह शिखर अम्बासमुद्रम तालुक में पापनाशम के ऊपर स्थित है। यहाँ से निकलने के बाद यह नदी पूर्वी दिशा में बहती हुई यह तिरूनेलवेली नगर को लांघती हुई तूतुकुड़ी ज़िले में तिरुवैकुण्डम (श्रीवैकुण्ठम) धाम के समीप मन्नार की खाड़ी में मिल जाती है।
पुरातन काल में इस नदी को ताम्रपर्णी कहा जाता था। इसी नदी के नाम पर श्रीलंका का पुराना नाम रखा गया था। नदी का प्राचीन तमिल नाम पोरूनाई है । यह नदी अपने उद्गम स्थान अगसत्यरकूदम शिखर से समुद्र तक, लगभग 128 किलोमीटर (80 मील) लंबी है। तामिरबरणी नदी दक्षिण भारत की एकमात्र बारहमासी नदी है। यह नदी शुरू में उत्तर दिशा की ओर बहती है परन्तु, बाद में पूर्व दिशा की ओर मुड़ जाती है।
अंतःस्थलीय नदियाँ
कुछ नदियाँ ऐसी होती है जो सागर तक नहीं पहुंच पाती और रास्ते में ही विलुप्त हो जाती हैं। ये नदियाँ अंतःस्थलीय नदियाँ कहलाती हैं।
घग्घर और लुनी नदी इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
घग्गर-हकरा नदी
घग्गर-हकरा नदी भारत और पाकिस्तान में वर्षा-ऋतु में बहने वाली एक मौसमी नदी है। इसे हरियाणा के ओटू वीयर (बाँध) से पहले घग्गर नदी के नाम से और उसके आगे हकरा नदी के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार इस नदी का संयुक्त नाम घग्गर-हकरा नदी है। घग्घर को ही वैदिक काल की सरस्वती माना जाता है। हालांकि इस पर मतभेद है। कुछ विद्वानों के अनुसार यह प्राचीनकाल में बहने वाली महान सरस्वती नदी का ही बचा हुआ रूप है। तो कुछ अन्य विद्वानों का मानना है कि ऋग्वेद में कुछ स्थानों पर जिस सरस्वती नदी का ज़िक्र है वो दूसरी नदी थी, यह नदी नहीं थी।
इस नदी का उद्गम चण्डीगढ के निकट हिमालय की निचली ढालों से (कालका के समीप) हिमाचल व हरियाणा की सीमाओं पर शिवालिक पर्वत से होता है। चण्डीगढ के पास इसी नाम का रेल्वे स्टेशन भी है। घग्गर-हकरा नदी पटियाला, संगरूर, सिरसा, हनुमानगढ व श्रीगंगानगर जिलों से प्रवाहित होती हुई, राजस्थान की अनूपगढ तहसील से होते हुए पाकिस्तान में प्रवेश कर जाती है। यह नदी अनुपगढ़ (राजस्थान) में लुप्त हो जाती है और पुनः पाकिस्तान में प्रकट होती है। इसके बरसाती जल व कठोर चिकनी मिट्टी में धान की अच्छी खेती होती है।
लूनी नदी / लूणी नदी
लूणी नदी का प्राचीन नाम लवण्वती था। यह नदी भारत के राजस्थान और गुजरात राज्यों में बहने वाली एक नदी है। लूनी नदी अरावली पर्वत के निकट अजमेर जिले के नाग पहाड़ (snake mount) से निकल कर दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में नागौर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालौर राजस्थान में 330 किमी प्रवाहित होते हुए, गुजरात में कच्छ के रण में जाकर मिलती है। कच्छ के रण के पश्चिमोत्तर भाग की बंजर भूमि में यह नदी विलुप्त हो जाती है।
लूनी का नाम लवणाद्रि तथा संस्कृत शब्द लवणगिरि (नमकीन नदी) से लिया गया है। इसका यह नाम इसकी अत्यधिक लवणता के कारण पड़ा है। महाकवि कालिदास ने अपनी रचना अंत: सलिला में कहा था, “प्राचीन नाम लवण्वती।” यह नदी अरावली पर्वत श्रेणी के समानांतर पश्चिम दिशा में बहती है।
प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र की (प्रायद्वीपीय नदियों की) विशेषताएं
- प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ (प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र की नदियाँ) समतल भागों से होकर प्रवाहित नदी होती हैं, इसलिए इनसे नहरें नहीं निकाली जातीं है।
- प्रायद्वीपीय भारत की नदियों में पूरे वर्ष पानी नहीं रहता है।
- इन नदियों को मौसमी नदिया कहते हैं।
- प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र (प्रायद्वीपीय भारत) की नदियाँ टेढ़ी-मेढ़ी नहीं बहती है अर्थात ये नदियाँ विसर्प नहीं बनातीं हैं।
हिमालय से निकलने वाली नदियों तथा प्रायद्वीपीय भारत के नदियों में अन्तर
हिमालय से निकलने वाली नदियों तथा प्रायद्वीपीय भारत के नदियों में निम्नलिखित प्रमुख अंतर पाए जाते हैं:-
विषय | विवरण |
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नदियाँ की प्राचीनता | प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ अत्यंत प्राचीन हैं, जबकि हिमालय की नदियाँ नवीन हैं। हिमालय की नदियाँ अपनी युवावस्था में है, अर्थात् ये नदियाँ अभी भी अपनी घाटी को गहरा कर रही हैं। जबकि प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ अपनी प्रौढावस्था में हैं। इसका तात्पर्य यह है कि प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ अपनी घाटी को गहरा करने का काम लगभग समाप्त कर चुकी हैं और आधार तल को प्राप्त कर चुकी हैं। किसी भी नदी का आधार तल समुद्र तल होता है। |
नदियों की लम्बाई | हिमालयी नदियाँ अधिक लम्बी हैं क्योंकि हिमालयी नदियों का उद्गम मुहाने से अधिक दूर है, हिमालय से निकलने वाली भारत की सबसे लम्बी नदी गंगा नदी की लम्बाई 2525 किमी है। जबकि अधिकतर प्रायद्वीपीय भारत के पठार की नदियाँ छोटी हैं क्योंकि उनका उद्गम मुहाने से ज्यादा दूर नहीं है। प्रायद्वीपीय भारत से निकलने वाली दक्षिण भारत की सबसे लम्बी नदी गोदावरी नदी है, जिसकी लम्बाई 1465 किमी है। |
नदियों के स्रोत | हिमालय से निकलने वाली नदियाँ वर्षवाहिनी (सदानीरा) हैं, अर्थात् हिमालयी नदियों में वर्ष भर जल प्रवाहित होता रहता है, क्योंकि हिमालयी नदियों के जल के दो स्रोत हैं- (a) ग्लेशियर (b) वर्षाजल हिमालय की अधिकाँश चोटियाँ 6000 मीटर से भी ऊँची हैं, जबकि वायुमंडल में हिमरेखा की ऊँचाई लगभग 4400 मीटर होती है। हिमालय की जो चोटी हिमरेखा के ऊपर होती है वो वर्षभर बर्फ से आच्छादित रहती है। वास्तव में हिमालय में पाये जाने वाले ग्लेशियर का जल ही हिमालय की नदियों का मुख्य स्रोत है। जबकि प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ वर्षवाहिनी न होकर मौसमी हैं, अर्थात् वर्ष के कुछ महीने ही जल की मात्रा बनी रहती है। अन्य महीनों में इनमे या तो जल कम हो जाता है या ये नदियाँ सूख जाती है। |
नदियों का विसर्पण | हिमालय से निकलने वाली नदियाँ उत्तर भारत के मैदान में पहुँचकर विसर्पण करती हुई चलती हैं और कभी-कभी ये नदियाँ विसर्पण करते हुए अपना रास्ता बदल देती हैं। कोसी नदी इसका एक प्रमुख उदहारण है। जबकि प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ कठोर पठारीय संरचना द्वारा नियंत्रित होने के कारण विसर्पण नहीं कर पाती हैं। प्रायद्वीपीय भारत की नदियों का मार्ग लगभग निश्चित होता है। ये नदियाँ उद्गम से लेकर मुहाने तक अपनी घाटी पर ही प्रवाहित होती हैं। प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ अपने उद्गम से लेकर मुहाने तक कठोर चट्टानों पर प्रवाहित होती हैं। |
ग्लेशियर और नदियाँ | हिमालय से निकलने वाली नदियाँ सदानीरा नदियाँ हैं। हिमालयी नदियों में वर्ष भर जल प्रवाहित होता रहता है, क्योंकि हिमालयी नदियों के जल के दो स्रोत हैं- ग्लेशियर और वर्षाजल। हिमालय की चोटियाँ हिमरेखा से ऊपर तक हैं इस कारण इन पर हमेशा बर्फ जमा रहता है। इन्ही बड़े बड़े बर्फ के ग्लेशियर के पिघलने से इन नदियों में जल कभी नहीं सूखता। प्रायद्वीपीय नदियों को केवल वर्षा के जल पर ही निर्भर रहना पड़ता है। हिमरेखा की औसत ऊँचाई 4400 मीटर है, जबकि प्रायद्वीपीय भारत के पठार की औसत ऊँचाई 800 मीटर ही है। इसका तात्पर्य यह है कि प्रायद्वीपीय भारत के पठार पर ग्लेशियर नहीं मिलते हैं। |